ग़ीबत एक ऐसी बुराई है जो इंसान के दिलो दिमाग़ को नुक़सान पहुंचाती है
ग़ीबत यानी पीठ पीछे बुराई करना है, ग़ीबत एक ऐसी बुराई है जो इंसान के दिलो दिमाग़ को नुक़सान पहुंचाती है और समाजिक संबंधों के लिए भी ज...
ग़ीबत यानी पीठ पीछे बुराई करना है, ग़ीबत एक ऐसी बुराई है जो इंसान के दिलो दिमाग़ को नुक़सान पहुंचाती है और समाजिक संबंधों के लिए भी ज...
अमीरूल मोमिनीन अलैहिस्सलाम की समाजी और सियासी ज़िंदगी में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ “न्याय व इंसाफ़” है। जिस तरह आपकी निजी ज़िंदगी का सबसे स...
ईश्वरीय दूतों का इस लिए पापों से दूर रहना आवश्यक है क्योंकि यदि वे लोगों को पापों से दूर रहने की सिफारिश करेगें किंतु स्वंय पाप करेंगे ...
इंसान अकेले नहीं रह सकता उसे हर उम्र में एक साथी की आवश्यकता होती है | कोई भी इंसान जब वयस्क हो जाता है या बालिग़ हो जाता है तो उसे अकेले ...
इस्लाम एक सामाजिक धर्म है और कुरान में अल्लाह ने सामाजिक रिश्तों को बनाने पे बहुत जोर दिया और यहाँ तक की रिश्तेदारों के,पड़ोसियों के,काबि...
इमामत व ख़िलाफ़त का मक़सद समाज से बुराईयों को दूर कर के अदालत (न्याय) को स्थापित करना और लोगों के जीवन को पवित्र बनाना है। यह उसी स...
परलोक पर विश्वास के लिए क़यामत व प्रलय का अत्यधिक महत्व है किंतु वास्तव में क़यामत या प्रलय है क्या? प्रलय उस दिन को कहते हैं जिस दिन ल...
लखनऊ अज़ादारी की पहचान है और अज़ादारी को आगे बढाने में इसका बहुत बड़ा योगदान रहा है | अब लखनऊ आबादी बढ़ने की वजह से फैलने लगा है | लखनऊ ...
इस्लाम में नशा कोई भी हो हराम है या कह दें मना है | अक्सर लोग पूछते हैं क्या सिगरेट भी मना है क्या तम्बाकू और गुटका भी मना है ? भाई जिस ...
जी हाँ यह अजीब सा ज़रूर लगता है लेकिन सच हैं की हम उस दौर से गुज़र रहे हैं जहां एक भाई दुसरे भाई से दूरी रखने में और गैरों से दोस्ती में य...
सबसे पहले तो मैं यह बता दूँ की मैं फिरका परस्ती के सख्त खिलाफ हूँ और बावजूद ऐतिहासिक मतभेदों के मुसलमान यदि गौर ओ फ़िक्र करे तो मिल के रह...
मुसलमान इस महीने हजरत मुहम्मद (स.अ.व) की बेटी जनाब ऐ फातिमा (स.अ) की वफात और उनपे हुए ज़ुल्म को याद करता है और दुखी होता है | बीबी फातिमा...
इन्सान की उत्कृष्ट भावनाओं में से एक अन्य इन्सानों की सेवा करना और सहायता करना है। इन्सान पत्थर की तरह बेजान नहीं है, इसी लिए वह अन्य इन...
हर सच्चे मुसलमान की ख्वाहिश हुआ करती है की उसे अल्लाह के नेक बन्दों की जियारत करने का मौक़ा मिले और इसी को अल्लाह से मुहब्बत कहा जाता है ...