ग़ीबत एक ऐसी बुराई है जो इंसान के दिलो दिमाग़ को नुक़सान पहुंचाती है
ग़ीबत यानी पीठ पीछे बुराई करना है, ग़ीबत एक ऐसी बुराई है जो इंसान के दिलो दिमाग़ को नुक़सान पहुंचाती है और समाजिक संबंधों के लिए भी ज...


ग़ीबत यानी पीठ पीछे बुराई करना है, ग़ीबत एक ऐसी बुराई है जो इंसान के दिलो दिमाग़ को नुक़सान पहुंचाती है और समाजिक संबंधों के लिए भी ज़हर होती है। पीठ पीछे बुराई करने की इस्लामी शिक्षाओं में बहुत ज़्यादा आलोचना की गयी है। ग़ीबत की परिभाषा में कहा गया है पीठ पीछे बुराई करने का मतलब यह है कि किसी की अनुपस्थिति में उसकी बुराई किसी दूसरे इंसान से की जाए कुछ इस तरह से कि अगर वह इंसान ख़ुद सुने तो उसे दुख हो। पैगम्बरे इस्लाम स.अ ने ग़ीबत करने की परिभाषा करते हुए कहा है कि ग़ीबत या पीठ पीछे बुराई करना यह है कि अपने भाई को इस तरह से याद करो जो उसे नापसन्द हो। लोगों ने पूछाः अगर कही गई बुराई सचमुच उस इंसान में पाई जाती हो तब भी वह ग़ीबत है? तो पैगम्बरे इस्लाम स.अ ने फ़रमाया कि जो तुम उसके बारे में कह रहे हो अगर वह उसमें है तो यह ग़ीबत है और अगर वह बुराई उसमें न हो तो फिर तुमने उस पर तोहमत यानि आरोप लगाया है। यहां पर यह सवाल उठता है कि इंसान किसी की पीठ पीछे बुराई क्यों करता है? पीठ पीछे बुराई के कई कारण हो सकते हैं। कभी जलन, पीठ पीछे बुराई का कारण बनती है। जबकि इंसान को किसी दूसरे की स्थिति से ईर्ष्या व जलन होती है तो वह उसकी ईमेज खराब करने के लिए पीठ पीछे बुराई करने का सहारा लेता है। कभी ग़ुस्सा भी इंसान को दूसरे की पीठ पीछे बुराई करने के लिये उकसाता है। एसा इंसान अपने ग़ुस्से को शांत करने के लिए उस इंसान की बुराई करता है। पीठ पीछे बुराई का एक दूसरे कारण आस पास के लोगों से प्रभावित होना भी है। कभी कभी किसी बैठक में कुछ लोग मनोरंजन के लिए ही लोगों की बुराईयां बयान करते हैं और इस स्थिति में इंसान यह जानते हुए भी कि पीठ पीछे बुराई करना हराम और गुनाह है, लोगों का साथ देने और अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए दूसरे लोगों की बुराइयां सुनने लगता है और कभी कभी माहौल का उस पर इतना हावी हो जाता है कि वह ख़ुद भी बुराई करने लगता है ताकि इस तरह से अपने साथियों को ख़ुश कर सके। पीठ पीछे बुराई करने का एक दूसरा कारण लोगों का मज़ाक उड़ाने की आदत भी है और इस तरह से मज़ाक़ उड़ा के कुछ लोग, दूसरे लोगों की हैसियत व मान सम्मान से खिलवाड़ करते हैं। कुछ लोगों दूसरों को ख़ुश करने और उन्हें हंसाने के लिए किसी इंसान की पीठ पीछे बुराई करते हैं। कुछ दूसरे लोग, हीनभावना में ग्रस्त होने के कारण, दूसरे लोगों की पीठ पीछे बुराई करते हैं ताकि इस तरह से ख़ुद को दूसरे लोगों से श्रेष्ठ और बड़ा दर्शा सके, दूसरे लोगों को बेवक़ूफ़ कहते है ताकि ख़ुद को अक़्लमंद दर्शाएं। अब सवाल यह है कि पीठ पीछे बुराई करने का इंसान की ज़िंदगी पर क्या प्रभाव पड़ता है? वास्तव में इस बुराई के समाज में फैलने से समाज की सब से बड़ी पूंजी यानी एकता व यूनिटी को नुक़सान पहुंचता है और सामाजिक सहयोग की पहली शर्त यानी एक दूसरे पर विश्वास व ऐतेबार ख़त्म हो जाता है। लोग एक दूसरे की बुराई करके और सुन कर, एक दूसरे की छिपी बुराईयों से भी अवगत हो जाते हैं और इसके नतीजे में एक दूसरे के बारे में उनकी सोच अच्छी नहीं होती और एक दूसरे पर भरोसा ख़त्म हो जाता है। पीठ पीठे बुराई, ज़्यादातर अवसरों पर लड़ाई झगड़े को जन्म देती है और लोगों के बीच दुश्मनी की आग को भड़काती है। कभी कभी किसी की बुराई आम करने से वह इंसान उस बुराई पर और ज़्यादा ज़िद कर सकता है क्योंकि जब किसी का कोई गुनाह, पीठ पीछे बुराई के कारण सार्वाजनिक हो जाता है तो फिर वह इंसान उस गुनाह से दूरी या उसे छिप कर करने का कोई कारण नहीं देखता। कुरआने मजीद में इस बुराई के नुक़सान का बड़े साफ शब्दों में बयान किया गया है और मुसलमानों को इस बुराई से दूर रहने को कहा गया है। कुरआने मजीद के सुरए हुजुरात की आयत नंबर १२ में कहा गया है। ऐ ईमान लाने वालो! बहुत सी भ्रांतियों से दूर रहो, क्योंकि कुछ भ्रांति गुनाह है। और कदापि दूसरो के बारे में जिज्ञासा न रखो और तुम में से कोई भी दूसरे की पीठ पीछे बुराई न करे क्या तुम में से कोई यह पसन्द करेगा कि वह अपने मरे हुए भाई का गोश्त खाए निश्चित रूप से तुम सबके लिए यह बहुत की घृणित काम है। अल्लाह से डरो कि अल्लाह तौबा (प्राश्यचित) को क़बूल करने वाला और रहेमदिल है। कुरआने मजीद की इस आयत में पीठ पीछे बुराई करने को मुर्दा भाई के गोश्त खाने जैसा बताया गया है कि जिससे हरेक को नफ़रत होगी। कुरआने मजीद ने इन शब्दों का इस्तेमाल करके यह कोशिश की है कि पीठ पीछे बुराई की कुरूपता को अक़्लमंदों के सामने सपष्ट किया जाए ताकि वह ख़ुद ही इस बुराई के बुरे असर का अंदाज़ा लगाएं। इस तरह से कुरआने मजीद ने अपने शब्दों से अंतरात्माओं को झिंझोड़ दिया है। इसी तरह इस आयत में किसी के बारे में बुरे विचार और भ्रांति को जिज्ञासा का कारण और जिज्ञासा को दूसरे लोगों के रहस्यों से पर्दा हटने का कारण बताया है जो वास्तव में पीठ पीछे बुराई का कारण बनता है और इस्लाम ने इन सब कामों से कड़ाई के साथ रोका है। पीठे पीछे बुराई करना इतना बुरा अमल है कि पैगम्बरे इस्लाम स.अ. ने कहा है कि पीठ पीछे बुराई करना, इतनी जल्दी अच्छे कामों को तबाह कर देता है जितनी जल्दी आग सूखी घास को भी नहीं जलाती। इसी लिए उन्होंने एक दूसरे स्थान पर फ़रमाया है कि अगर तुम कहीं हो और वहां किसी की पीठ पीछे बुराई हो रही हो तो जिसकी बुराई की जा रही हो उसकी ओर से बोलो और लोगों को उसकी बुराई से रोको और उनके पास से उठ जाओ। इस्लामी इंक़ेलाब के संस्थापक इमाम खुमैनी ने अपनी किताब चेहल हदीस में इस बुराई से बचने के लिए कहते हैं कि तुम अगर उस इंसान से दुश्मनी रखते हो जिसकी बुराई कर रहे हो तो दुश्मनी के कारण होना यह चाहिए कि तुम उसकी बिल्कुल ही बुराई न करो क्योंकि एक हदीस में कहा गया है कि पीठ पीछे बुराई करने वाले के अच्छे काम जिसकी बुराई की जाती है उसे दे दिये जाते हैं तो इस तरह से तुमने ख़ुद से दुश्मनी की है। पीठ पीछे बुराई करने वाला अपने काम पर ध्यान देकर उस कारक पर विचार कर सकता है जिसने उसे किसी की पीठ पीछे बुराई करने पर उकसाया है। इसके बाद वह उस कारक को दूर करने का कोशिश करे। अगर पीठ पीछे बुराई इस लिए कर रहा है ताकि इस बुराई में ग्रस्त अपने साथियों का साथ दे सके तो उसे जान लेना चाहिए वह अपने इस काम से अल्लाह के ग़ज़ब व आक्रोश को भड़काता है इस लिए बेहतर यही होगा कि वह एसी लोगों के साथ उठना बैठना छोड़ दे। अगर उसे यह लगता है कि वह गर्व के लिए और दूसरे लोगों के सामने अपनी बढ़ाई के लिए दूसरों की पीठ पीछे बुराई करता है तो उसे इस वास्तविकता पर ध्यान देना चाहिए दूसरे लोगों के सामने बड़ाई करने से आत्मसम्मान गंवाने के अलावा और कोई नतीजा नहीं निकलेगा। अगर पीठ पीछे बुराई करने का कारण ईर्ष्या है तो उसे यह जान लेना चाहिए कि उसने दो गुनाह किये हैं। एक जलन और दूसरा पीठ पीछे बुराई करना इसके साथ ही दुनिया व आख़ेरत के नतीजों के दृष्टिगत, पीठ पीछे बुराई करने वाला किसी दूसरे से अधिक ख़ुद अपने आप को नुक़सान पहुंचाता है। इस लिए उसे इस बुराई से दूर रहने के लिए उसके नतीजों पर ध्यान देना चाहिए। इस गुनाह के इस दुनिया में बुरे नतीजों के साथ ही, आख़ेरत में अल्लाह के अज़ाब का भी सामना होगा। इंसान को नतीजों से डरना चाहिए इस बात से डरना चाहिए कि अगर आज वह पीठ पीछे बुराई करके दूसरे लोगों का राज़ सब के सामने उजागर करता है तोज कल क़यामत में अल्लाह भी उसके रहस्यों से पर्दा हटा कर उसे सबके सामने अपमानित करेगा।