इस्लाम में सेक्स की हकीकत भाग -१
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इस्लाम वह बड़ा और अच्छा धर्म है जिसने ज़िन्दगी के सभी हिस्सों से सम्बन्घित हर बात को विस्तार से बयान किया है ताकि एक सच्चे मुसलमान को ज़िन्दगी के किसी भी हिस्से मे नाकामयाबी या मायूसी ना हो। इन्ही सब हिस्सो मे से एकहिस्सा सेक्स का भी है।
आम तौर से समाज मे सेक्स से सम्बन्धित कुछ बाते करना, सोचना, पढ़ना बहुत ही बुरा समझा जाता है और फिर इस हस्सास (संवेदनशील) विषय पर कुछ लिखना----- लेकिन इस्लाम सेक्स से सम्बन्धित अमल (कार्य) विस्तार से बयान करता है ताकि मनुष्य गुमराही और बुराई से बचकर संयम नियम का पालन करने तथा इद्रिंयों को वश मे करने वाला (तक़्वा और परहेज़गारी करने वाला) बन सके।
सेक्स एक ऐसी वास्तविकता है जिसे बुरा ज़रुर समझा जाता है लेकिन इससे इन्कार नही किया जा सकता। क्योकि इस संसार मे नर का मादा और मादा का नर की तरफ सेक्सी लगाव केवल मनुषयों और जानवरों मे नही है बल्कि यह सेक्सी लगाव पेड़ पौधों मे भी देखा जा सकता है।
इस्लाम मे जवानी (बालिगो) की पहचान मे लडकी की आयु कम से कम चौदह वर्ष और लडकी की आयु कम से कम नौ वर्ष पूरा हो जाना बताया है। लेकिन अगर किसी को अपनी आयु मालूम नही है तो इसकी आसान पहचान यह है कि लडके के चेहरे पर दाढी और मूंछ निकलने लगे और लडकी के सीने (अर्थात छाती) पर उभार आने लगे। साथ ही साथ दोनों की आवाज़ भारी हो जाये। इसके अलावा दोनों की बग़लों और नाभि के नीचे बाल उग आयें, लडके के सोते या जागते मे वीर्य (मनी) निकल आये इसी तरह लडकी के मसिक धर्म का खून (हैज़, आर्तव)आने लगे।
ऐसे में यदी शादी न हो सके तो स्त्री और पुरुषों के भटकने का डर बना रहता है और समाज की बंदिशों के कारण नौजवान हस्त मैथुन, गुदा मैथुन और समलिंगी सेक्स जैसी बुरी आदतों में पड़ जाया करते हैं | वीर्य जैसी क़ीमती चीज़ को हस्त मैथुन के ज़रिए बराबर नष्ट करते रहने से नौजवान में वह क़ुव्वत, सहत, मर्दानगी. जवांमर्दी, अक्लमंदी और जोश व ख़रोश बाक़ी नही रहता है जो वीर्य को बचाए रखने से प्राकृतिक तौर पर हासिल होता है। बराबर हस्त मैथुन करते रहने से संवेदन शक्ति (ज़कावते हिस) बढ जाती है, वीर्य पतला हो जाता है, नौजवान बहुत जल्द वीर्यपात का मरीज़ हो जाता है, निगाह खराब हो जाती है, स्मरण शक्ति कमज़ोर हो जाती है, खाना पच नही पाता, चेहरा पीला दिखाई देता है, आँखें अन्दर को धंस जाती हैं, टाँगों और कमर में दर्द रहने लगता है, बदन थका थका सा रहने लगता है, चक्कर आते हैं, ख़ौफ, घबराहट, परेशानी और लज्जा हर वक्त बनी रहती है---- संक्षिप्त यह कि नौजवान चलती फिरती लाश बनकर रह जाता है। वह इस बात पर गौर नही करता कि हस्त मैथुन से एक या दो मिनट तक महसूस होने वाले मज़े का नुकसान पूरी ज़िन्दगी सहना पडता है, मर्दानः शक्ति बर्बाद हो जाती है। शरीयत में यह सब अप्राकृतिक सेक्स हराम है और इसके नतीजे सेहत को खराब कर देते हैं |
हज़रत अली (अ.) ने इरशाद फरमाया हैः-“वह मज़ा जिससे शर्मिन्दगी (लज्जा) मिले। वह सेक्स और इच्छा जिससे दर्द में बढोतरी हो, उसमे कोई अच्छोई नही है”।
कुर्आने करीम में यह वाकेया मौजूद है कि शैतान ने क़ौमे-ए-लूत (14) को एक ऐसे बुरे काम में फसा दिया जो उनसे पहले दुनिया की किसी क़ौम का फर्द (मनुष्य) ने नही किया था और न किसी को उसकी खबर थी। वह बुरा काम यह था कि मर्द नौजवान लड़कों के साथ बुरा काम करते थे और अपनी सेक्सी इच्छा को औरतों के बजाए लड़कों से पूरा करते थे। इस पर अल्लाह ने अपने पैग़म्बर हज़रत लूत (अ.) को आदेश दिया कि वह इन लोंगो को इस से बचे रहने की नसीहत करें। आपने अल्लाह के आदेश का पालन करते हुए, अपनी कौंम को, कौंम की लड़कियों से निकाह करने के लिए कहा। लेकिन इस काम में फंसे लोगों ने आप की एक न सुनी। आख़िर कार लूत (अ,) की कौम पर खुदा का अज़ाब (पाप) आया और इस काम में फंसे लोग अपने पूरे माल व असहाब (अर्थात सामान) और शान व शौकत के साथ हमेशा-हमेशा के लिए ग़र्क हो (डूब) गए।
जब किसी क़ौम में गुद मैथुन की ज़्यादती हो जाती है तो खुदा उस क़ौम से अपना हाथ उठा लेता है और उसे इसकी परवाह (ख्याल) नही होती कि यह क़ौम किसी जंगल में हल़ाक कर दी जाए”
इसी लिए इस्लाम जहाँ हस्त मैथुन, गुद मैथुन और बलात्कारी जैसे बुरे और हराम कामों पर सख्त पाबन्दी लगाता है। वहीं प्राकृतिक सेक्सी इच्छाओं की पूर्ति के लिए शादी (विवाह) का आदेश भी देता है।
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लेखक डा. मोहम्मद तक़ी अली आबदी की किताब के एक हिस्से से लिया गया एडिटेड)
पी. एच. डी. (फ़ारसी, लखनऊ विश्वविधालय), सनदुल अफ़ाज़िल (सुल्तानुल मदारिस, लखनऊ), मौलवी, कामिल, फ़ाज़िले फ़िकह (अरबी व फ़ारसी इलाहाबाद बोर्ड)