google.com, pub-0489533441443871, DIRECT, f08c47fec0942fa0 इस्लाम में सेक्स करें और कब ना करें | भाग -2 | हक और बातिल

इस्लाम में सेक्स करें और कब ना करें | भाग -2

मैथुन के तरीक़े चूँकि इस्लाम की दृष्टि में शादी का वास्तविक और बुनियादी तात्पर्य शिष्टाचार (अख़्लाक़) और पाकदामनी (इस्मत) की हिफाज...



मैथुन के तरीक़े


 https://www.facebook.com/jaunpurazaadari/चूँकि इस्लाम की दृष्टि में शादी का वास्तविक और बुनियादी तात्पर्य शिष्टाचार (अख़्लाक़) और पाकदामनी (इस्मत) की हिफाज़त करते हुए औरत और मर्द का एक दूसरे के उचित (जाएज़, हलाल) अंगों से सेक्सी इच्छा की पूर्ति करना है। जिसका सम्बन्ध औऱत और मर्द के पूरे जीवन से रहता है। इसीलिए इस्लाम धर्म ने रोज़े की हालत में, एतिक़ाफ़ (एकान्त वास अर्थात एकान्त में ईश्वर की तपस्या) की सूरत में और औरत के खूने हैज़ (अर्थात मासिकधर्म) निफास (रक्त स्राव जो प्रसूतिका के शरीर से बच्चा जनने के चालिस दिन तक होता रहता है) आने की सूरत के अतिरिक्त किसी और समय पर एक दूसरे से सेक्सी इच्छा की पूर्ति करने में रूकावट नही डाली है। मगर यह कि इस्लाम के शिक्षकों (आइम्मः-ए-मासूमीन (अ.) ने कुछ ऐसे अवसरों या हलाल की ओर इशारा ज़रूर किया है जिसका असर (प्रभाव) पति या पत्नी या संतान पर पड़ता है। जिसके नतीजे में पति और पत्नी में जुदाई (अलगाव) या औलाद नेक, बुरी होती है, और अधिकतर अवसरों में संतान में कुछ शारीरिक कमीयां भी हो जाती हैं। जबकि सेक्सी मिलाप के द्वारा मिलने वाले औलाद जैसे महान फल के नेक और हर प्रकार की शारीरिक कमियों से दूर होने के प्रत्येक माता-पिता तमन्ना (इच्छा) करते हैं। अतः ज़रूरी है कि पति और पत्नी दोनों को सेक्सी इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए संभोग के शरई (धार्मिक) तरीकों का ज्ञान होना चाहिए ताकि वह हराम (मनाही), मक्रूह (घ्रणित), मुस्तहिब (पुनीत) और वाजिब (अनिवार्य) को ध्यान में रखते हुवे एक दूसरे से स्वाद और आन्नद उठा सकें। पाकीज़गी बाक़ी रख सकें और सेक्सी मिलाप से मिलने वाला फल (औलाद) नेक और हर तरह की शारीरिक बुराईयों और कमियों से पाक हो।

मैथुन की मनाही


याद रखना चाहिए कि इस्लामी शरीअत के उसूलों और क़ानूनों के अनुसार जीवन व्यतीत करने वाले सच्चे मुसलमान का एक-एक क़दम और एक-एक कार्य अज्र व सवाब (पुण्य) के लिए होता है। जिसमें जीवन के सभी हिस्सों के साथ-साथ औरत और मर्द की मैथुन क्रिया भी है। इसमें भी इस्लामी शरीअत ने पवित्रता (तक़द्दुस) का रंग भर दिया है।

रसूल-ए-खुदा (स,) ने इर्शाद फ़र्मायाः

तुम लोग जो अपने बीवीयों के पास जाते हो यह भी पुण्य का कारण है। सहाबा ने पूछा या रसूल्लाह (स.)। हम में का कोई व्यक्ति अपनी सेक्सी इच्छा की पूर्ति करता है और इसमें क्या उसको सवाब (पुण्य) मिलेगा? आप ने फ़र्माया तुम्हारा क्या ख़्याल (विचार) है, यदि वह अपनी इच्छा हराम (ग़लत) तरीक़े से पूरी करे तो गुनाह (पाप) होगा या नही ? सहाबा जवाब दिया हाँ, गुनाह होगा। आप ने फ़र्माया तो इसी तरह जब वह हलाल (सहीह) तरीक़े से अपनी सेक्सी इच्छा पूरी करे तो उस से सवाब मिलेगा। (सहीह मुस्लिम आदाब ए ज़वाज पेज (61) व आदाब ए इज़दिवाज पेज 15
)

 इस्लाम धर्म ने जहाँ औरत और मर्द का एक दूसरे से अपनी सेक्सी इच्छा को पूरा करना सवाब और पुण्य का कारण हुवा करता है वहीं कुछ मौकों पर हराम होने की वजह से पाप और अज़ाब का कारण हो जाता है।

1.याद रखना चाहिए की औरत की योनि (जहाँ संभोग के समय मर्द अपना लिंग दाखिल करता है) के रास्ते से प्राकृतिक तौर पर प्रत्येक माह  तीन से दस दिन तक खूने हैज़ (अर्थात मासिक धर्म) आता है। उस हालत में औरत से संभोग करना हराम है। क्योंकि उस हालत में संभोग करना औरत और मर्द दोनों के लिए शारीरिक तकलीफों और आतशक व सोज़ाक जैसी भयानक बीमारियों के पैदा होने और गर्भ ठहरने पर बच्चे में कोढ़ और सफेद दाग की बीमारी होने का कारण होता है। जबकि इस्लाम धर्म मनुष्य को तन्दुरूस्त और निरोग देखना चाहता है। इसी लिए इस्लाम धर्म ने हैज़ आने के दिनों में संभोग को हराम (अर्थात वह काम जिसके करने पर पाप हो) करार दिया है। क़ुर्आन-ए-करीम में मिलता हैः

(ए रसूल (स)) तुम से लोग हैज़ के बारे में पूछते हैं। तुम उनसे कह दो कि यह गन्दगी और घिन बीमारी है तो हैज़ (के दिनों) में तुम औरतों से अलग रहो और जब तक वह पाक (अर्थात खून आना बन्द) न हो जाए उनके पास न जाओ। फिर जब वह पाक हो जायें तो जिधर से तुम्हे खुदा ने आदेश (हुक्म) दिया है उनके पास जाओ। बेशक खुदा तौबहः करने वालों और साफ सुथरे लोगों को पसन्द करता है। ( क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-बकरा आयत न. (222) व हाशिया)

चूँकि हैज़ के ज़माने में औरत की तबीअत खून निकलने की ओर लगी रहती है और मैथुन से कार्य करने की कुव्वत में हैजान (बेचैनी) होती है और दोनों कुव्वतों के एक दूसरे के विपरीत होने की वजह से तबीअत को जो बदन की बादशाह है हैजान होता है और उसी की वजह से विभिन्न तरह की बीमारियां होती हैं। इसके अतिरिक्त मर्द की सेक्सी इच्छा मैथुन के समय मनी (वीर्य) निकालने की तरफ लगी रहती है और शरीर के रोम-कूप (मसामात) खुल जाते है और खूने हैज़ से बुखारात (भाप) बुलन्द (ऊपर उठकर) हो कर बुरे असर (प्रभाव) डालती है। इसके अलावा खुद खून भी मर्द के लिंग के सूराख़ में दाखिल होकर सोजाक आदि जैसी बीमारी पैदा करने का कारण होता है। इन्ही कारणों से शरीअत ने हैज़ की हालत मे मैथुन क्रिया को पूरी तरह से हराम करार दिया है। ( क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-बकरा आयत न. (222) व हाशिया)

-आदाब-ए-ज़वाज- के लेखक ने लिखा है कि हायजः औरत (अर्थात वह औऱत जिसके खूने हैज़ आ रहा हो) से मैथुन करने की मनाही (हराम होने, हुरमत) में दो युक्तियाँ हैं। एक मासिक धर्म की गन्दगी जिससे मनुष्य की तबीयत घ्रणित (कराहियत) करती है। दूसरे यह कि मर्द और औरत को बहुत से शारीरिक नुक़सान पहुँचते है। चुनाँचे आधुनिक चिकित्सा ने हायजः औरत से मैथुन की जिन हानियों व बिमारियों को स्पष्ट किया है उनमे से दो मुख्य और अहम हैं। एक यह कि औरत के लिंग में दर्द पैदा हो जाता है औऱ कभी कभी गर्भाशय में जलन पैदा हो जाती है। जिससे गर्भाशय खराब हो जाता है और औरत बांझ हो जाती है। दूसरा यह कि हैज़ के कीटाणु (मवाद) मर्द के लिंग में पहुँच जाते हैं जिस से कभी कभी पीप जैसा माददः (पदार्थ) बनकर जलन पैदा करता है। और कभी कभी यह पदार्थ फैलता हुआ अंडकोष तक पहुँच जाता है और उनको तकलीफ देता है। आखिरकार (अन्त में) मर्द बांझ हो जाता है, इस प्रकार की और भी बीमारियाँ और तकलीफें पैदा होती है। जिसको दृष्टिगत रखते हुवे सभी आधुनिक चिकित्सक इस बात को मानते हैं कि हैज़ आने की हालत में मैथुन क्रिया से दूर रहना अनिवार्य है। यह ऐसी वास्तविकता है जिसे हज़ारों साल पहले कुर्आन-ए-हकीम ने बताया था यह भी कुर्आन-ए-करीम का मौजिजः है|

ऐसी (अर्थात खूने हैज़ आने की) सूरत (हालत) में इस्लामी शरीअत ने यह अनुमति (इजाज़त) ज़रूर दे रखी है कि संभोग के अलावा औरत के शरीर का बोसा लेना, प्यार करना छातियों से खेलना, साथ लेटना और सोना, शरीर से शरीर मिलाना संक्षिप्त यह कि किसी भी तरह से स्वाद व आन्नद उठाना जाएज़ है।

वरना संभोग के कर गुज़रने का खतरा होने की सूरत में बीवी से दूर रहना ही बेहतर (उचित) है। लेकिन फिर भी अगर कोई व्यक्ति अपनी सेक्सी इच्छाओं को काबू न कर पाने की सूरत में संभोग कर बैठे तो शरीअत ने उस पर कफ्फारः (जुर्माना) लगाया है।

मसाएल में यहाँ तक मिलता है कि हायज़ः औरत की योनि (अर्थात आगे के सूराख) में मर्द के लिंग के खतरे वाली जगह से कम हिस्सा भी दाखिल न हो। (191)

2.खूने हैज़ आने की हालत में मर्द कभी-कभी (बीमारी आदि के डर से) औरत के आगे के सूराख को छोड़कर पीछे के सूराख में अपना लिंग इस ख्याल से दाखिल कर देता है कि खूने हैज़ पीछे के सूराख से नही आ रहा है अर्थात वह पाक है। या यह कहा जाए कि वह आगे और पीछे दोनों सूराखों को एक ही जैसा समझता है। जबकि कुछ आलिमों (विद्वानों) ने पीछे के सूराख में लिंग को दाखिल करना हराम और कुछ ने सख्त मकरूह माना है। रसूल-ए-खुदा का इर्शाद है किः-

उस व्यक्ति पर अल्लाह की लानत है जो अपनी औरत के पास उसके पीछे के रास्ते में आता है। (मसनद अहमद, 444/2, 479, अबू दाऊद भाग (1) किताब अल निकाह, बाब फी जेमाअ अल निकाह, जिमाअ के आदाब, सुल्तान अहमद इस्लामी पेज 28-29 अल कलम प्रेस एण्ड पब्लीकेशन्स, नई दिल्ली, 1991 ई. से नक़्ल।.
)

और जामेअ तिरमिज़ी में हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास से रिवायत है किः

अल्लाह तआला (क़यामत के दिन) उस व्यक्ति की ओर निगाह उठा कर नही देखेगा जो किसी मर्द या किसी औरत के पास पीछे के रास्ते में आएगा। (तिरमिज़ी भाग 1, अबवाब अल रिज़ाअ, जिमाअ के आदाब पेज. (250) से नक़्ल।)

क्योंकि पीछे के रास्ते में लिगं दाखिल करने और वीर्य के निकलने से वीर्य नष्ट (बेकार) हो जाता है और इस्लामी शरीअत कदापि पसन्द नही करती कि प्राकृतिक तौर पर तैय्यार होने वाले क़ीमती जौहर (मूल्यवान वीर्य) को नष्ट होने दिया जाए। इसीलिए इस्लाम ने गुदमैथुन को हराम करार दिया है। क्योंकि इसमें वीर्य नष्ट हो जाता है। ध्यान देने योग्य बात है कि अगर हैज़ आने के दिनों में औरत के पीछे के सूराख में लिंग को दाखिल करने की अनुमति होती तो हैज़ आने के दिनों में औरत से दूर रहने (अर्थात मैथुन न करने) का हुक्म नही दिया जाता और यह कहा जाता किः

फिर जब वह पाक हो जाए तो जिधर से तुम्हे खुदा ने हुक्म दिया है उनके पास जाओ। बेशक खुदा तौबा करने वालों और पाक व पाकीज़ा लोगों को पसन्द करता है। ( क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-बकरा आयत न. 222)

अर्थात हर हालत में औरत के पास जाने का आदेश केवल उनके आगे के सूराख मे है----- और पाक होने का अर्थ विद्वानों ने खूने हैज़ का आना बन्द हो जाना माना है न कि स्नान करना।


मसाएल में मिलता है किः

जब औरत हैज़ से पाक हो जाए चाहे अभी स्नान न किया हो उसको तलाक़ देना सहीह है और उसका पति उस से संभोग भी कर सकता है और उचित यह है कि संभोग से पहले योनि के स्थान को धो ले, फिर भी यह मुसतहिब है कि स्नान करने से पहले संभोग करने से बचा रहे। लेकिन दूसरे काम जो हैज़ की हालत में हराम थे (अर्थात जिसकी मनाही थी) जैसे मस्जिद में ठहरना, क़ुर्आन के शब्दों को छूना अब भी हराम है जब तक स्नान न कर ले। (तौज़ीह अल मसाएल, खुई पेज (51) व गुलपाएगानी पेज 80-81)

अर्थात खूने हैज़ आना बन्द हो जाने की सूरत में शर्मगाह (योनि) को धोकर संभोग किया जा सकता है। विद्वानों ने यह भी लिखा है कि उचित यह है कि स्नान के बाद ही संभोग करे।

3.खूने हैज़ की तरह खूने नफ़ास (रक्तस्राव, अर्थात वह खून जो बच्चा पैदा होने के बाद औरत की योनि से निकलता है) आने की हालत में भी औरत से संभोग करना हराम है। मसाएल में मिलता है किः

नफ़ास की हालत में औरत को तलाक़ देना और उससे संभोग करना हराम है लेकिन यदि उस से संभोग किया जाये कफ्फारः (जुर्मानः) वाजिब नहीं है। (तौज़ीह अल मसाएल खूई पेज 58, जबकि आकाए गुलपाएगानी ने कफ्फारः अदा करने को अहतियाते मुसतहिब बताया है। मिलता है किः

निफास की हालत में औरत को तलाक़ देना बातिल है और उससे संभोग करना हराम है और अगर शौहर उस से संभोग कर ले तो अहतियाते मुसतहिब यह है कि जिस तरह अहकामे हैज़ में बयान हो चुका है कफ्फारः अदा करे। (देखिए तौज़ीह अल मसाएल (उर्दू) आकाए गुलपाएगानी पेज 92))

4.इस्लामी शरीअत ने औरत और मर्द को सेक्सी इच्छा की पूर्ति की पूरी आज़ादी देने के साथ-साथ रोज़े की हालत में संभोग की मनाही की है। क्योंकि रोज़ः बातिल (टूट) हो जाता है। मसाएल में मिलता है किः

संभोग से रोज़ः टूट जाता है। चाहे केवल खतने का हिस्सः ही अन्दर दाखिल हो और वीर्य भी बाहर न निकले। ( तौज़ीह अल मसाएल (उर्दू) खूई, पेज 172)

जबकि रोज़ो (अर्थात रमज़ान के महीने और रोज़ो) की रातों में अपनी बीवी से संभोग करना जाएज़ और हलाल है।

क़ुर्आन-ए-करीम में हैः

(मुस्लमानों) तुम्हारे लिए रोज़ों की रातों मे अपनी बीवीयों के पास जाना हलाल कर दिया गया, औरतें तुम्हारी चोलीं है और तुम उसके दामन हो, खुदा ने देखा तुम (पाप करके) अपनी हानि करते थे (कि आँख बचाके अपनी बीवी के पास चले जाते थे) तो उसने तुम्हारी तौबः कुबूल की (स्वीकृति कर ली) और तुम्हारी ग़लती को माफ कर दिया। अब तुम उस से संभोग करो और (संतान से) जो कुछ खुदा ने तुम्हारे लिए (भाग्य में) लिख दिया है उसे मांगो और खाओ पियो। यहाँ तक कि सुबह की सफ़ेद धारी (रात की) काली धारी से आसमान पर पूर्व की ओर तुम्हें साफ दिखाई देने लगे। फिर रात तक रोज़ा पूरा करो और (हाँ) जब तुम मस्जिदों में एतिकाफ़ (एकान्त में ईशवर की तपस्या) करने बैठो तो उनसे (रात को भी) संभोग न करो। यह खुदा की (तय की हुवी) हदें हैं। तो तुम उनके पास भी न जाना यूँ बिल्कुल स्पष्ट रूप से खुदा अपने क़ानूनों को लोगो के सामने बयान करता है ताकि वह लोग (क़ानून उल्लघंन) से बचें। (क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-बकरा आयत न. 187)

5.क़ुर्आन की उपर्युक्त आयत से यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि एतिकाफ़ की हालत में संभोग की मनाही की गयी है। मसाएल में यह भी मिलता है किः

औरत से संभोग करना और सावधानी (अहतियात) के रूप में उसे छूना, सेक्स के साथ बोसा देना (प्यार करना) चाहे मर्द हो या औरत हराम है। ( तौज़ीह अल मसाएल (उर्दू) खूई पेज 190)

औरः

मुस्तहिब (पुनीत) सावधानी यह है कि एकान्त में ईश्वर की तपस्या करने वाला हर उस चीज़ से बचा करे जो हज के मौक़े पर एहराम (अर्थात वह वस्त्र जो हाजी हज के मौक़े पर पहनते हैं) की हालत में हराम हैं। ( तौज़ीह अल मसाएल (उर्दू) खूई पेज 190)

6.याद रखना चाहिए कि हाजी जब मीक़ात (अर्थात एहराम बांधने की जगह) से हज की नीयत कर लेता है और तकबीर पढ़ लेता है तो कुछ मुबाह (जाएज़) चीज़े उस पर हराम हो जाती है। इन ही मुबाह चीज़ों में पति और पत्नी भी है जो एक दूसरे पर एहराम की हालत में हराम हो जाते हैं। मिलता है किः

एहराम की हालत में अपनी पत्नी से संभोग करना, बोसा (चुम्मा, प्यार) लेना, सेक्स की निगाह से देखना बल्कि हर तरह का स्वाद और आन्नद हासिल करना हराम है। (दस्तूर ए हज, मसाएल ए हज मुताबिक फतवाए अबू अल कासिम अल खूई, रूह अल्लाह खुमैनी, अनुवादक सैय्यद मुहम्मद सालेह रिज़वी, पेज 39, निज़ामी प्रेस, लखनऊ, 1980 ई.।)

और यह हराम, हलाल में उस समय बदलता है जब तवाफें निसाअ  कर लिया जाए। मसाएल में है किः

तवाफ़े निसाअ और नमाज़े तवाफ के बाद औरत पर पति और पति पर पत्नी हलाल हो जाती है। (दस्तूर ए हज, पेज (82) व 83)

याद रखना चाहिए किः

तवाफ़े निसाअ केवल मर्दों से मख़सूस (के लिए) नहीं है बल्कि औरतों. नपुंस्कों, नामर्दों और तमीज़ रखने वाले (अर्थात अच्छा-बुरा समझने वाले) बच्चों के लिए भी ज़रूरी है। अगर व्यक्ति तवाफ़े निसाअ न करे तो पत्नी हलाल न होगी। जैसा कि पूर्व में बयान किया जा चुका है। इसी तरह अगर औरत तवाफ़े निसाअ न करे तो पति हलाल न होगा। बल्कि अगर अभिभावक तमीज़ न रखने वाले बच्चे के एहराम बाँधे तो अहतियात वाजिब (ज़रूरी एहतीयात) यह है कि उसको तवाफ़े निसाअ करना चाहिए ताकि बालिग़ होने के बाद औरत या मर्द उस पर हलाल हो जाऐं। (दस्तूर ए हज, पेज (82) व 83)


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