नजफ़ ऐ हिन्द जोगीपुरा का मुआज्ज़ा , जियारत और क्या मिलता है वहाँ जानिए |

हर सच्चे मुसलमान की ख्वाहिश हुआ करती है की उसे अल्लाह के नेक बन्दों की जियारत करने का मौक़ा  मिले और इसी को अल्लाह से  मुहब्बत कहा जाता है | अल्लाह के नेक बन्दे  अपनी ज़िन्दगी में भी अल्लाह के नेक बन्दों के आस पास रहना पसंद करते हैं और मौत के बाद उनके रोजों , क़ब्रों पे जा के अकीदत पेश किया करते हैं और उनकी ज़िन्दगी से ,उनके कौल और अमल से अपनी ज़िन्दगी संवारा करते हैं |


इस बार जब मैं लखनऊ आया तो मुझसे मेरे परिवार वालों ,भाई बहनों ने कहा चलो इस बार मौला अली (अ.स) के दरबार नजफ़ ऐ हिन्द जोगीपुरा जियारत को चला जाए | बस आनन फानन में ये तय हो गया और हम सभी चल पड़े मौला के दरबार जोगी पूरा की तरफ अपनी अकीदत पेश करने और अपने दिल में अपनी मुरादें लिए |
 



जोगीपुरा जाने के लिए सबसे बेहतरीन दिन होता है शब् ऐ जुमा और जायरीन के लिए जितना बेहतरीन इंतज़ाम मैंने वहाँ देखा शायद कहीं नहीं देखा था | जोगीपुरा जाने के लिए आपको उत्तेर प्रदेश वेस्ट के नजीबाबाद रेलवे स्टेशन पे उतरना होता है |

अगरआपकेपास जोगीपुरा दरगाह का फ़ोन नंबर है तो वहाँ से आप टैक्सी भी बुला सकते हैं और अगर नहीं है तो आप ३००/- रुपये दे के स्टेशन के बाहर टैक्सी मिलती है उस से १५मिन में रौज़ा ऐ मौला अली (अ.स ) पे पहुँच जाते हैं | कुछ बस की सुविधाएं भी हैं लेकिन उनका वक़्त तय नहीं होने के कारन नए जायरीन को मुश्किल हो जाया करती है |

नजीबाबाद रेलवे स्टेशन स्टेशन से जोगीपुरा ७-८ किलोमीटर की दूरी पे है | जैसे ही टैक्सी जोगीपुरा दरगाह के  गेट पे पहुंची तो दिल में एक ख़ुशी सी महसूस हुयी और ऐसा लगा दुनिया के सारे ग़मऔर मुश्किलात दूर हो गयीं क्यूँ हम पहुँच चुके थे मौला मुश्किल कुशा हज़रत अली (अ.स ) के दरबार में |

दरगाह के दफ्तर में पहुँचते ही वहाँ लोगों से जब कमरे के बारे में पुछा तो उन्होंने के कई कमरे दिखाए जिन्हें और १००-१५०-२०० जैसे हदिये पे ले सकते हैं | और मौला की तरफ से दो  वक़्त आप को बेहतरीन साफ़ सफाई के साथ खाना भी मुफ्त में दिया जाता है |



क्यूँ जोगीपुरा को नजफ़ इ हिन्द कहा जाता है और यहाँ कौन सा मुआज्ज़ा हुआ था जानिये |

१६५७ सितम्बर के महीने में मुग़ल बादशाह शाहजहाँ बीमार पड़ा तो ये मशहूर हो गया की शाहजहाँका इन्तेकाल हो गया | बादशाहत इस से कमज़ोर होने लगी लेकिन उनका बेटा औरंगजेब तो सियासत में तेज़ था उसने अपने बड़े भाई जो वारिस था शाहजहाँ का उसे एकसाल के अंदर ही इस दौड़ से अलग कर दिया |

रौज़ा मौला अली (अ.स ), जोगी पूरा |

औरंगजेब ने शाहजहाँ के किले में ही क़ैद कर लिया और बादशाह बन बैठा | तख़्त पे बीतते ही उसने शाहजहाँ के वफादार कमांडर और गवर्नर को जान से मार दिए जाने का हुक्म सुना दिया |
ज़री मुबारक मौला अली (अस)

उन्हें कमांडर में से एक थे राजू दादा जिन्होंने ने औरंगजेब को पसंद नहीं किया | औरंगजेब से बचने के लिए राजू दादा अपने वतन जोगी राम पूरा , बिजनौर वापस चले आये | वहां उन्होंने अपने गाँव वालों को बता दिया की औरंगजेब के फ़ौज से उनकी जान को खतरा है | राजू दादा की इमानदारी और गरीब परवर मिज़ाज ने उन्हें गाँव में अच्छी इज्ज़त दे रखी थी| गाँव वाले उनकी हिफाज़त करने लगे और बहुत ही सावधान रहते थे की कहीं औरंगजेब के लोग राजू दादा का कोई नुकसान ना कर दें |


राजू दादा अपने गाँव के पास वाले जंगल में छुपे रहते थे | राजू दादा मौला अली (अ.स ) के चाहने वाले थे और उन्होंने मौला अली (अ.स) को मदद के लिए नाद ऐ अली और या अली अद्रिकनी पढ़ के बुलाना शुरू किया | एक दिन एक बूढ़े हिन्दू ब्राह्मण जो घास काट रहा था और इतना बुध था की ठीक से देख भी नहीं सकता था उसने एक आवाज़ सुनी और जब नज़र डाली तो उसे महसूस हुआ की कोई शख्स घोड़े पे सवार है और उस से कह रहा है कहा है राजू दादा जो मुझे बुलाया करता था ? जाओ उस से कह दो मैंने मिलने को बुलाया है | उस बूढ़े ने कहा मैं ठीक से देख नहीं सकता और कमज़ोर भी हूँ जंगले में कैसे जाऊं उन्हें बुलाने ?

अचानक उस बूढ़े को महसूस हुआ की उसे सब कुछ दिखाई देने लगा और उसके जिस्म में ताक़त भी आ गयी | फिर हजरत अली (अ.स ) ने कहा अब जाओ और राजू दादा से कहो मैं आया हूँ | जब राजू दादा ने उस किसान से सुना तो वो समझ गए कीहजरतअली (अ.स)आयेहैंऔर राजूदादा दौड़ के उस  मुकाम की तरफ चले | गाँव वालों ने  जब राजू दादा को दौड़ते देखा तो समझे औरंगजेब के सिपाही आये हैं और राजू दादा की मादा के लिए उनके पीछे भागने लगे |

राजू दादा जब उस जगह पे पहुंचे तो वहाँ कोई नहीं था लेकिन घोड़े के खड़े होने के निशाँ बाकी थे | लोगों से उस जगह को घेर दिया लेकिन राजू दादा उसी जगह पे  जहां मौला अली (अ.स ) आये थे वहाँ बिना कुछ खाए पिए सात दिन तक नाद ऐ अली पढ़ पढ़ के मौला अली (अ.स ) को बुलाने लगे |


मिटटी में यहाँ की शेफा है |

सातवें दिन मौला अली (अ.स० ) ने राजू दादा को बशारत दी और कहा मत घबराओ औरंगजेब तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता तुम्हे उस से डरने की ज़रुरत नहीं है | राजू दादा ने मौला अली (अ.स ) से कहा की वो चाहते हैं की आप ऐसी कोई चीज़ दे जायें जिस से कौम को शेफा हो उनका भला हो |

तो मौला मौला अली (अ.स ) के मुआज्ज़े से वहाँ एक पानी का चश्मा फूटा जो आज भी मौजूद है | जहां मौला अली (अ.स) खड़े थे वहाँ की मिटटी में आज भी शेफा है और वहाँ एक दूध का चश्मा निकला था जो अब नहीं है |

वो जगह जहाँ पानी का चश्मा फूटा था |
दरगाह के दफ्तर में पहुँचते ही वहाँ लोगों से जब कमरे के बारे में पुछा तो उन्होंने के कई कमरे दिखाए जिन्हें और 100-१५०-२०० जैसे हदिये पे ले सकते हैं | और मौला की तरफ से तो वक़्त आप को बेहतरीन साफ़ सफाई के साथ खाना भी मुफ्त में दिया जाता है |


ज़िन्दान बीबी सकीना

मश्क ज़िन्दान बीबी सकीना  के पास 
रौज़ा हज़रत अब्बास अलमदार


रौज़ा इमाम हुसैन ,राजू दादा के रौज़े के पास 
मस्जिद

रौज़ा हज़रात अब्बास अलमदार

मौला अली (अ.स)

दरगाह का दफ्तर

मौला अली (अस) के रौज़े का शेर दरवाज़ जहां से शेर सलाम करने आता था\

मौला अली (अस) का रौज़ा

दुआओं और मुरादों के बाद आराम और बेफिक्री के कुछ पल |

                                                             लेखक : एस एम् मासूम

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