हसद का इलाज क्या है?
हसद का मतलब होता है किसी दूसरे इंसान में पाई जाने वाली अच्छाई और उसे हासिल नेमतों के ख़त्म हो जाने की इच्छा रखना। हासिद इंसान यह नहीं ...


इस्लामी शिक्षाओं में हसद जैसी बुराईयों की बहुत ज़्यादा आलोचना की गई है और क़ुरआने मजीद की आयतों तथा पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम और उनके अहलेबैत की हदीसों में लोगों को इससे दूर रहने की सिफ़ारिश की गई है। इन हदीसों में हसद को दुनिया व आख़ेरत के लिए बहुत ज़्यादा हानिकारक बताया गया है। मिसाल के तौर पर कहा गया है कि हसद, दीन को तबाह करने वाला, ईमान को ख़त्म करने वाला, अल्लाह से दोस्ती के घेरे से बाहर निकालने वाला, इबादतों के क़बूल न होने का कारण और भलाइयों का अंत करने वाला है। हसद, तरह तरह के गुनाहों का रास्ता भी तय्यार करता है। हासिद इंसान हमेशा डिप्रेशन व तनाव में ग्रस्त रहता है। उसके आंतरिक दुखों व पीड़ाओं का कोई अंत नहीं होता। इस्लामी शिक्षाओं में इस बात पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिया गया है कि हासिद इंसान कभी भी मेंटली हिसाब से शांत व संतुष्ट नहीं रहता। वह ऐसी बातों पर दुःखी रहता है जिन्हें बदलने की उसमें क्षमता नहीं होती। वह अपनी नादारी से दुःखी रहता है जबकि उसके पास न तो दूसरे से वह नेमत छीनने की क्षमता होती है और न ही वह उस नेमत को ख़ुद हासिल कर सकता है।
कभी कभी हसद उन चीज़ों से फ़ायदा उठाने की ताक़त भी हासिद से छीन लेता है जो उसके पास होती हैं और वह उनसे आनंद उठा सकता है। इस तरह का इंसान मेंटली सुकून नहीं रखता है और यह बात तरह तरह के ख़तरनाक मेंटली व जिस्मानी बीमारियों में उसके ग्रस्त होने का कारण बनती है। इस तरह से कि डिप्रेशन, दुःख व चिंता धीरे धीरे हासिद इंसान को जिस्मानी हिसाब से कमज़ोर बना देती है और उसका जिस्म तरह तरह की बीमारियों में ग्रस्त होने के लिए तैयार हो जाता है। यही कारण है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम, हसद से दूरी को सलामती का कारण बताते हैं क्योंकि हसद, जिस्म को स्वस्थ नहीं रहने देता। मेंटली सुकून, सुखी मन और चिंता से दूरी ऐसी बातें हैं जो हासिद इंसान में नहीं हो सकतीं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया है कि हासिद, सबसे कम सुख उठाने वाला इंसान होता है।
अब सवाल यह है कि इस्लामी शिक्षाओं में हसद के एलाज के क्या रास्ते बताये गए हैं? इसके जवाब में कहा जा सकता है कि इस्लाम ने हसद के एलाज के लिए बहुत से रास्ते सुझाए हैं। इसके एलाज का पहला स्टेज यह है कि इंसान, अपनी ज़िंदगी और रूह पर हसद के हानिकारक नतीजों व प्रभावों के बारे में फ़िक्र करे और यह देखे कि हसद से उसकी दुनिया व आख़ेरत को क्या नुक़सान होता है? हसद के एलाज के लिए पहले उसके कारणों को समझना चाहिए ताकि उन्हें ख़त्म करके इस बीमारी का सफ़ाया किया जा सके। हसद का मुख्य कारण बुरे विचार रखना है। नेचुरल सिस्टम और अल्लाह के बारे में नेगेटिव सोच, हसद पैदा होने के कारणों में से एक है क्योंकि हासिद इंसान दूसरों पर अल्लाह की नेमतों को सहन नहीं कर पाता या यह सोचने लगता है कि अल्लाह उससे प्यार नहीं करता और इसी लिए उसने फ़लां नेमत उसे नहीं दी है।
यही कारण है कि इस्लामी शिक्षाओं में दूसरों के बारे में पॉज़ेटिव व भले विचार रखने पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिया गया है। अल्लाह, उसके गुणों तथा उसके कामों पर ईमान को मज़बूत बनाना, हसद को रोकने का एक दूसरे रास्ता है। यानि इंसान को यह यक़ीन रखना चाहिए कि अल्लाह ने जिस इंसान को जो भी नेमत दी है वह उसकी रहमत, अद्ल व इंसाफ़ के आधार पर है। अगर इंसान इस यक़ीन तक पहुंच जाए कि अल्लाह के इल्म के बिना किसी पेड़ से कोई पत्ता तक नहीं गिरता तो फिर वह इस नतीजे तक पहुंच जाएगा कि हर इंसान को किसी नेमत मिलने का मतलब यह है कि उसे किसी काम का इनाम दिया गया है, अल्लाह की ओर से उसका इम्तेहान लिया जा रहा है या फिर कोई दूसरे बात है जिसकी उसे ख़बर नहीं है और केवल जानकार अल्लाह ही है जो यह जानता है कि वह क्या कर रहा है। इस बात पर ध्यान देने से इंसान के अंदर संतोष की भावना पैदा होती है और जो चीज़ें उसे दी गई हैं उन पर वह संतुष्ट रहता है जिसके नतीजे में, दूसरों को हासिल नेमतों से उसे हसद नहीं होता।
इंसान को इसी तरह यह कोशिश करनी चाहिए कि वह बुरी अंतरात्मा के बजाए अच्छी अंतरात्मा का मालिक हो। उसे दूसरे लोगों के पास मौजूद चीजों के बारे में ख़ुद को हीन भावना में ग्रस्त करने की जगह पर अपने स्वाभिमान और साख पर ध्यान केंद्रित रखना चाहिए। स्वार्थ और आत्ममुग्धता के बजाए अल्लाह की पहचान, अल्लाह से मुहब्बत तथा विनम्रता और दुश्मनी के बजाए दोस्ती से काम लेना चाहिए। हसद से मुक़ाबला करने का एक दूसरे रास्ता यह कि इंसान सभी लोगों से मुहब्बत करे और उन्हें बुरा भला कहने की जगह पर उनकी सराहना करे, इस तरह से कि उसके और दूसरे लोगों के संबंधों में प्यार, दोस्ती व रहेमदिली की ही छाया रहे। जो कुछ लोगों के पास है उस पर ध्यान न देना और अल्लाह ने हमें जो कुछ दिया है केवल उन्हीं चीज़ों पर ध्यान देना, हसद से मुक़ाबले के आंतरिक रास्तों में से एक है। अगर इंसान यह देखे कि उसके पास वह कौन कौन सी भौतिक व आध्यात्मिक नेमतें हैं जो दूसरों के पास नहीं हैं और वह कोशिश व मेहनत करके इससे भी ज़्यादा नेमतें हासिल कर सकता है तो यह बात हासिद इंसान की इस बात में मदद करती है कि वह अपने भीतर हसद की जड़ों को ख़त्म कर दे।
जिस इंसान से हसद किया जा रहा है वह भी हसद को ख़त्म करने में मदद कर सकता है। जब इस तरह का इंसान, हासिद इंसान से मुहब्बत करेगा तो वह भी अपने रवैये में तब्दीली लाएगा और दोस्ती के लिए उचित रास्ता तय्यार हो जाएगा। इस तरह हसद और बुरे विचारों का रास्ता बंद हो जाएगा। क़ुरआने मजीद के सूरए फ़ुस्सेलत की 34वीं आयत में लोगों के बीच पाए जाने वाले नफ़रत को ख़त्म करने के लिए यही मेथेड सुझाया गया है। इस आयत में अल्लाह कहता है। (ऐ पैग़म्बर!) अच्छाई और बुराई कदापि एक समान नहीं हैं। बुराई को भलाई से दूर कीजिए, अचानक ही (आप देखेंगे कि) वही इंसान, जिसके और आपके बीच दुश्मनी है, मानो एक क़रीबी दोस्त (बन गया) है।
हसद को ख़त्म करने का एक दूसरे रास्ता यह है कि जब ज़िंदगी में ऐसे लोगों का सामना हो जिनकी संभावनाएं और हालात बेहतर हैं तो तुरंत ही उन लोगों के बारे में सोचना चाहिए कि जिनकी स्थिति हमसे अच्छी नहीं है। इस तरह हमें यह समझ में आ जाएगा कि अगरचे हम अपनी बहुत सी इच्छाओं को हासिल नहीं कर सके हैं लेकिन अभी भी हमारी स्थिति दुनिया के बहुत से लोगों से काफ़ी अच्छी है। वास्तव में हम ऐसी बहुत सी चीज़ों की अनदेखी कर देते हैं या उन्हें भुला देते हैं जो प्राकृतिक रूप से हमारे पास हैं या फिर हमने उन्हें हासिल किया है। मिसाल के तौर पर हेल्थ, जवानी, ईमान, अच्छा परिवार, क़रीबी दोस्त और इसी तरह की दूसरी बहुत सी चीज़ें और बातें हैं जिनकी हम अनदेखी कर देते हैं। अगर हम इन पर ध्यान दें तो हमें पता चलेगा कि हमारे पास कितनी ज़्यादा संभावनाएं और विशेषताएं हैं जिनके वास्तविक मूल्य व महत्व को हम इस लिए भूल चुके हैं कि हम उनके आदी हो चुके हैं। अलबत्ता इस वास्तविकता को भी क़बूल करना चाहिए कि ज़िंदगी में केवल भलाई व आसानियों का वुजूद नहीं होता। ज़िंदगी, अच्छी व बुरी बातों का समूह है। अगर किसी के पास कोई ऐसी संभावना है जो आपके पास नहीं है तो इसके बदले में आपके पास भी कोई न कोई ऐसी विशेषता है जो दूसरों के पास नहीं है।
हसद को ख़त्म करने का एक दूसरे रास्ता यह है कि उन लोगों के व्यक्तित्व की विशेषताओं और सोचने के तरीक़े को पहचाना जाए जो हासिद नहीं हैं। ऐसे लोग जो वास्तव में आपकी कामयाबी से ख़ुश होते हैं। अब आप कोशिश कीजिए कि उस तर्क को समझने की कोशिश कीजिए जिसके अंतर्गत वे आपकी तरक़्की से ख़ुश होते हैं। उनके व्यक्तित्व की विशेषताओं को पहचानें और अपने बारे में उनकी सोच की शैली पर ध्यान दें। इन लोगों की सोच की क्या विशेष शैली और क्या विशेषता है? किस तरह वह अल्लाह की ताक़त व तत्वदर्शिता पर इतना ठोस ईमान रखते हैं? और किस तरह वे दिल से दूसरों से मुहब्बत कर सकते हैं और उनकी कामयाबी की कामना कर सकते हैं? इस सवालो के बारे में सोचें और ध्यान दें कि उन्होंने किस तरह यह शांति व संतोष हासिल किया है?
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