हज़रत अली अ. क्यूँ शहीद हुये?

अमीरूल मोमिनीन अलैहिस्सलाम की समाजी और सियासी ज़िंदगी में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ “न्याय व इंसाफ़” है। जिस तरह आपकी निजी ज़िंदगी का सबसे स...

अमीरूल मोमिनीन अलैहिस्सलाम की समाजी और सियासी ज़िंदगी में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ “न्याय व इंसाफ़” है। जिस तरह आपकी निजी ज़िंदगी का सबसे स्पष्ट पहलू तक़वा है उसी तरह आपकी समाजी व सियासी ज़िंदगी का सबसे महत्वपूर्ण पहलू “अद्ल व इंसाफ़” है।यह हमारे लिए जो खुद को अमीरूल मोमिनीन अलैहिस्सलाम का अनुयायी समझते हैं, महत्वपूर्ण बात है। न्याय व इंसाफ़ का ख्याल रखना, न्याय व इंसाफ़ को महत्व देना और वही करना जो इंसाफ की मांग हो, हमारी जिम्मेदारी है|

 आपकी पांच साल की हुकूमत के दौर में होने वाली घटनाओं पर अगर नज़र डाली जाए तो पता चलता है कि इस दौरान आपके सामने जो भी मुश्किलें पेश आईं वह आपकी इंसाफ़ पसंदी का नतीजा थीं। इससे पता चलता है कि न्याय व इंसाफ़ का मुद्दा कितना गंभीर मुद्दा है।
इंसाफ़ पसंदी और न्याय को लागू करने की कोशिश, कहने में तो आसान है लेकिन अमल में उसकी राह में इतनी मुश्किलें और रुकावटें पेश आती हैं|


अमीरूल मोमिनीन अलैहिस्सलाम अपनी इस ख़ुदादादी ताक़त और इलाही शान के बावजूद हमेशा इसी इंसाफ़ को लागू करने के लिए प्रयत्नशील थे। इसीलिए आपने फ़रमायाः यानी खिलाफ़त छोड़ देना तो मामूली बात है अगर मुझे जंजीरों से बांध दिया जाये और कांटेदार तारों पर नंगे बदन घसीटा जाए तब भी मैं किसी एक ख़ुदा के बन्दे पर भी अत्याचार के लिए तैयार नहीं होऊँगा।

 आपको अपने इसी सिद्धांत की वजह से खिलाफ़त के दौरान मुश्किलें पेश आईं और खिलाफत केवल
पाँच वर्षीय कार्यकाल तक ही रही |

अमीरूल मोमिनीन अलैहिस्सलाम ने इंसाफ़ की पहली लाइन लिख दी है कि न्याय व इंसाफ़ की ख़ातिर इस्लामी शासक के लिए चाहे जितनी मुश्किलें पेश आ जाएं उनके सामने आत्मसमर्पण न किया जाए। आत्मसमर्पण न करने का मतलब यह है कि न्याय व इंसाफ़ के रास्ते से मुंह न मोड़ा जाए।

 तीन तरह के लोग आप के मुक़ाबले में आये; क़ासेतीन यानी बनी उमय्यः और शाम (सीरिया) वाले यह अत्याचारी और ज़ालिमाना व्यवहार अपनाने वाले लोग थे, अमीरूल मोमिनीन अलैहिस्सलाम के मुक़ाबले में आने का भी उन्होंने बहुत ज़ालिमाना तरीका अपनाया।
दूसरे नाकेसीन (बैअत तोड़ने वाले), यह अमीरूल मोमिनीन अ. के पुराने साथी और दोस्त थे लेकिन आपके इंसाफ़ की ताब न लाते हुए आपके खिलाफ़ जंग के लिए उठ खड़े हुए। यह लोग अमीरूल मोमिनीन अ. अली को पहचानते थे, आपको इमाम मानते थे यहां तक कि कुछ ने तो खिलाफ़त तक आपको पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उसके बाद आपके हाथ पर बैअत भी की थी लेकिन आपके न्याय व इंसाफ़ की ताब न लाते हुए आप ही के खिलाफ़ जंग के लिए उठ खड़े हुए। चूंकि देख चुके थे कि आप जान पहचान, दोस्ती और पिछले रिकॉर्ड पर कोई ध्यान ही नहीं देते।
तीसरे मारेक़ीन यानी अपने विचारों के बारे में कट्टरपंथी, अतिवादी और भेदभाव वाले लोग थे, बिना इसके कि उन्हें दीनी एतेक़ादात (विश्वास) के आधार की सही पहचान हो।
ग़लती से मारेक़ीन को तक़द्दुस मआब (बहुत सदाचारी) कह दिया जाता है, तक़द्दुस मआब होने की बात नहीं है, अमीरूल मोमिनीन अ. के असहाब के बीच ऐसे लोग मौजूद थे जो उनसे कहीं ज़्यादा ईमान व तक़वा रखते थे। बात यह थी कि इन लोगों की सोच और विचार देखने में दीन के अनुरूप थें, लेकिन उनकी बुनियादें कमजोर और सही मारेफ़त व पहचान से ख़ाली थे।


 उनके पास इतनी समझ नहीं थी कि शक व संदेह की जगहों पर गुमराही से बच सकते। कहीं इतनी शिद्दत व कठोरता कि चूंकि क़ुरआन नैज़ों पर है इसलिए उसकी तरफ़ तीर नहीं चलाए जा सकते क्योंकि कुरान मुक़द्दस व पवित्र है। सिफ़्फ़ीन की जंग में शाम वालों ने मक्कारी करते हुए जैसे ही क़ुरआन नैज़ों पर बुलंद किया (चूंकि उन्हें हार का एहसास हो चुका था इसलिए नैज़ों को कुरान पर बुलंद करने लगे) यह लोग क़ुरआन के सिलसिले में इतना ज्यादा कट्टरपंथी हो गए कि क़ुरआने नातिक़ अमीरूल मोमिनीन अलैहिस्सलाम पर क़ुरआने सामित को प्राथमिकता देने लगे और आप पर जोर डालने लगे कि यह कुरान वाले हैं हमारी मुसलमान भाई हैं, उनके साथ जंग मत करो, धमकियां दे दे के अमीरूल मोमिनीन अ. को जंग अधूरी छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
उन्हें बाद में जब पता चला कि उनके साथ धोखा हुआ है, उन्हें धोखा दिया गया है तो उस ओर से इतने कमजोर साबित हुए कि कहने लगे कि हम सब काफ़िर हो गए हैं, अली (नऊज़ बिल्लाह) काफ़िर हो गए हैं इसलिए तौबा करना चाहिए। इन लोगों के पास चूंकि ईमान और मारेफ़त की सही बुनियादें नहीं थी इसलिए आसानी से एक सौ अस्सी डिग्री तक ग़लत रास्ते पर चल पड़े। हमारे इस्लामी इंकेलाब में अगर आप इस तरह के लोगों की मिसाल जानना चाहते हैं तो वह मुनाफ़ेक़ीन हैं, यह लोग इंक़ेलाब के शुरू में अमेरिका के खिलाफ़ संघर्ष में इमाम खुमैनी तक को नहीं मानते थे। इसके बाद अमेरिका ही के साये में जा छिपे, अमेरिका से पैसे लिए और फिर सद्दाम के पास पनाह ले ली।
जब विचारधाराएं मारेफ़त व सही पहचान पर आधारित न हों, ख़ुद अपनी मानसिक जानकारियों से नादानी के कारण घमंड आ चुका हो और उसके साथ साथ दिखावे में दीन पर अमल भी हो तो इसके नतीजे में मारेक़ीन सामने आते हैं।
अमीरूल मोमिनीन अलैहिस्सलाम के लिए सबसे खतरनाक क़ासेतीन थे। यह वह लोग थे जिनकी हुकूमत का आधार ही ज़ुल्म पर था, हुकूमत के सिलसिले में अल्वी और इस्लामी तर्क को मानते ही नहीं थे, अमीरूल मोमिनीन अ. को मानते ही नहीं थे, लोगों की आपके हाथ पर बैअत भी उन्हें स्वीकार नहीं थी, निष्पक्ष व्यवहार, माल व दौलत का निष्पक्ष विभाजन और न्याय व इंसाफ़ की आवश्यकताओं के अनुसार कदम उठाने पर उनका विश्वास ही नहीं था। इसलिए कि अगर वह इंसाफ़ लागू करने देते या इंसाफ़ का नाम लेते तो सबसे पहले उन्हीं का गिरेबान पकड़ा जाता।


 यह हमारी जिम्मेदारी है और आज अमीरूल मोमिनीन अलैहिस्सलाम का हमारे लिए यही सबसे बड़ा दर्स है। आपने उन्हीं गुणों और अपनी ज़ात में जमा उन्हीं प्रतिष्ठित मूल्यों की वजह से ज़रबत खाई और गुमराह व ज़ालिम इंसानों के हाथों इतनी बड़ी इंसानी मुसीबत व दुर्घटना घटी।
आपके ख़ून का बदला लेने वाला भी ख़ुदा है आप इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़ियारत में कहते हैः
''السلام علیک یا ثار اللہ وابن ثارہ'
केवल इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ख़ून का बदला ख़ुदा नहीं लेगा बल्कि अमीरूल मोमिनीन अलैहिस्सलाम भी सारल्लाह ثار اللہ हैं यानी आपके खून का बदला लेने वाला और आपके ख़ून का वारिस भी खुद अल्लाह तआला है।
आज का दिन कूफ़े और इस्लामी समाज के लिए ग़म का दिन था। और यह ग़म अमीरूल मोमिनीन अलैहिस्सलाम की शहादत से पड़ने वाले प्रभावों और आपकी इंसाफ़ पर आधारित हुकूमत से इस्लामी दुनिया की महरूमी की वजह से था। आज का दिन हर मुसलमान नस्ल बल्कि दुनिया भरके आज़ादी पसंद लोगों के लिए शोक का दिन है।
यह दुर्घटना इतनी बड़ी थी कि जब भोर से थोड़ा पहले अमीरूल मोमिनीन अलैहिस्सलाम इब्ने मुलजिम के वार से घायल हुए और आपकी दाढ़ी और चेहरे पर ख़ून बहने लगा तो एक आसमानी आवाज़ सुनी गईः
(''تھدمت واللہ ارکان الھدیٰ'')
यानी हिदायत के खंभे ध्वस्त हो गए।
अमीरूल मोमिनीन अलैहिस्सलाम की जवानी सरापा जिहाद थी, दरमियानी उम्र में दिल खून के आंसू बहाता रहा, ग़म ही ग़म थे और ज़िंदगी का अंतिम दौर मुश्किलों में घिरा रहा। इस तरह आपने बहुत ही मज़लूमियत के साथ ज़िंदगी बिता दी। वास्तव में आप दुनिया के सबसे मज़लूम इंसान हैं। आख़िरी दौर मज़लूमियत के साथ बीता और अनंततः आप शहीद हो गये।
रिवायतों के हवाले से दो तीन जुमले आपके मसाएब के बयान कर देता हूं, लूत इब्ने यहिया अबी मख़नफ़ का कहना हैः
(''فلمّااحسّ الامام بالضرب لم یتأوّہ'')
यानी जब मस्जिद के मेहराब में आपके मुबारक सर पर वार हुआ और आपकी पेशानी दो हिस्सों में बट गई तो आपने कोई आह व फ़रियाद नहीं की (''وصبر واحتسب'') अपने को क़ाबू में रखा और सब्र किया (''ووقع علیٰ وجہہ ولیس عندہ احد'') हज़रत मुंह के बल ज़मीन पर गिर गए क्योंकि उस समय वहाँ पास में कोई नहीं था क्योंकि अभी नमाज़ शुरू नहीं हुई थी। मस्जिद में अंधेरा था और लोग अलग अलग नाफ़ेला की नमाज़ पढ़ने में व्यस्त थे इसलिये पहले तो किसी को पता ही नहीं चला कि क्या हुआ है,
('قائلاً بسم اللہ وباللہ وعلیٰ ملۃ رسول اللہ''۔)
ज़रबत लगने के बाद आपकी ज़बान पर यह शब्द जारी हुए। हम दूसरी जगहों पर भी यह शब्द सुनते रहे हैं। जब सैयदुश शोहदा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने ज़रबत खाई और ज़मीन पर गिरे तो रिवायत में है कि आपकी ज़बान पर भी यही शब्द जारी हुयेः
('قائلاً بسم اللہ وباللہ وعلیٰ ملۃ رسول اللہ''۔)
ख़ुदा के नाम से ख़ुदा के लिये और रसूले ख़ुदा स.अ. के रास्ते पर। यानी ज़िंदगी को इसी राह पर कुर्बान कर देना। रिवायत में है कि अमीरूल मोमिनीन अलैहिस्सलाम ने यह जुमला भी कहा थाः
(''فزت وربّ الکعبہ'')
काबे के रब की क़सम मैं कामयाब हो गया। एक दूसरी रिवायत में है कि आप ने कहाः
('لمثل ھذا فلیعمل العاملون'')
यानी ऐसी आक़ेबत के लिए इंसान जितना भी अमल करे कम है।
इसलिए ऐसी आक़ेबत और ऐसे अंत के लिए अमल करना चाहिए। इससे पता चलता है कि यह पाक व पाकीज़ा रूह कितनी अल्लाह से लौ लगाये हुए थी। यहां तक कि (यह जुमले उस समय के हैं) जब अभी आप ज़िंदा और इसी दुनिया में थे।
(''ثم صاح وقال قتلنی الّلعین'')
मुनाजात ख़त्म करने के बाद हज़रत ने तेज़ आवाज़ में कहा ताकि लोगों को पता चले और क़ातिल फरार न करने पाये कि मलऊन ने मुझे मार डाला।
(''فلمّا سمع النّاس الضّجّۃ' )
लोगों तक जब आपकी आवाज़ पहुंची
(ثارالیہ کلّ من کان فی المسجد'')
सब मेहराब की ओर दौड़े, उन्हीं पता नहीं था कि क्या हुआ और क्या करें।
(ثمّ احاطوابأمیرالمؤمنین'')
उसके बाद सबने आपको घेर लिया।
(وھو یشدّ رأسہ بمئزرہ والدّم یجری علیٰ وجہہ ولحیتہ)
जब लोग इकट्ठा हुए तो उन्होंने देखा कि हज़रत इसी ज़ख़्मी हालत में जब कि आपका सर कटा हुआ है, एक रूमाल से घाव बांध रहे हैं और आपके चेहरे और दाढ़ी से ख़ून बह रहा है।
(''وقد خضبت بدمائہ'')
आपकी दाढ़ी जो सफेद थी ख़ून से लाल हो गई है और आप कह रहे हैं
(''ویقول ھذا ما وعد اللہ ورسولہ وصدق اللہ ورسولہ'')
यही ख़ुदा और पैगंबर स.अ. का वादा था। ख़ुदा और पैगंबर स.अ. ने सच कहा था, उनका वादा पूरा हुआ।


सारांश 

मौला अली (अ.स) के खिलाफ जो लोग आये उनमे कुछ कट्टरपंथी, अतिवादी और भेदभाव वाले लोग थे और दुसरे बादशाहत और ताक़त के लालची अत्याचारी बनी उमय्यः के लोग |
लेकिन ऐसे लोगो की तादात भी बहुत थी जिन्होने बैअत करके तोडं दी | यह अमीरूल मोमिनीन अ. के पुराने साथी और दोस्त थे लेकिन आपके इंसाफ़ की ताब न लाते हुए आपके खिलाफ़ जंग के लिए उठ खड़े हुए।
यह लोग अमीरूल मोमिनीन अ. अली को पहचानते थे, आपको इमाम मानते थे यहां तक कि कुछ ने तो खिलाफ़त तक आपको पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उसके बाद आपके हाथ पर बैअत भी की थी लेकिन आपके न्याय व इंसाफ़ की ताब न लाते हुए आप ही के खिलाफ़ जंग के लिए उठ खड़े हुए।
अल्लाह से दुआ है कि हमे ना तो कट्टरपंथी बनाये, ना बादशाहत का लालची और ना ही "अद्ल व इंसाफ़" की सख्ती के डर से जाने या अनजाने मे अली (अ.स) का साथ छोडने वालो मे रखे |.....एस एम मासूम

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