वाह रे मुसलमान तेरा जवाब नहीं जलता रहा घर तेरे नबी की बेटी का और तू देखता रहा |
सबसे पहले तो मैं यह बता दूँ की मैं फिरका परस्ती के सख्त खिलाफ हूँ और बावजूद ऐतिहासिक मतभेदों के मुसलमान यदि गौर ओ फ़िक्र करे तो मिल के रह...
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सबसे पहले तो मैं यह बता दूँ की मैं फिरका परस्ती के सख्त खिलाफ हूँ और बावजूद ऐतिहासिक मतभेदों के मुसलमान यदि गौर ओ फ़िक्र करे तो मिल के रह सकता है क्यूँ की उनकी किताब एक पैगम्बर एक फिर क्यूँ आपस में दूर दूर रहते हैं ? मुसलमानों का फिरकों में बंट जाने की वजह मुनाफिकात, सच का साथ न देना , कुरान के सही इल्म का ना होना और दुनियावी लालच है यह सभी जानते हैं |
जो स्थान हजरत मुहम्मद (स.अ.व) को मुसलमानों के दिलों में हासिल है उसकी जगह कोई नहीं ले सकता और मुसलमान कहते ही उसे हैं जो हजरत मुहम्मद (स.अ.व) पे पूरी तरह से यकीन करे और उनकी बैटन को वैसे माने जैसा उन्होंने कहा था | यहाँ तक की मुसलमान उनके बाल उनकी दाढ़ी उनके सुरमे और उनकी पगड़ी पहनने के तरीके को भी अपना लेना चाहता है जिसे वो सुन्नत ए रसूल (स.अ.व) का नाम दिया करता है |
इतनी मुहब्बत अल्लाह के रसूल (स.अ.व) से करने वाले मुसलमान को देखिये की उनकी वफात के बाद उनकी बेटी फातिमा (स.अ) का घर मुसलमानों ने खुद जला डाला , उनकी बेटी फातिमा की प्रोपटी जिसे बाग ऐ fadak के नाम से जाना जाता था सिर्फ उनसे छीना ही नहीं बल्कि दरबार में जब फातिमा (स.अ) गयीं अपना हक मांगने तो उनका मज़ाक उड़ाया गया और उन्हें झूठा कहा गया |
मैंने जब हर फिरके की किताबों को देखा तो पाया कि फातिमा का घर जलाया गया यहाँ कोई मतभेद मुसलमानों में नहीं हाँ किसने जलाया इस बात पे मतभेद है | बाग ऐ fadak छीन लिया गया फातिमा (स.अ) से इस् पे मतभेद नहीं बल्कि उसे लेना सही था या नहीं इस् पे मतभेद है |
यह हजरत मुहम्मद (स.अ) की सुन्नत और कुरान पे अमल करने वाला मुसलमान खुद बयान करता है की जनाब ऐ फातिमा सिद्दीक़ा थीं | उनके दरवाज़े पे मलाएका आते थे, उनके दरवाज़े पे हजरत मुहम्मद (स.अ.व) आके उनको सलाम करते थे , जब फातिमा आती थी तो हजरत मुहम्मद (स.अव) उनकी ताजीम में उठ खड़े होते थे| यह हदीस हर मुसलमान मानता है की हजरत मुहम्मद (स.अ.व) ने कहा जिसने फातिमा को दुःख पहुँचाया उसने मुझे दुःख पहुँचाया क्यूंकि फातिमा मेरे जिगर का टुकड़ा है |
कुछ अजीब सा नहीं लगता कि यह मुसलमान कुरान में अह्लेबय्त की अफ्ज़लियत को भी मानता है लेकिन फिर भी कहता है फातिमा (स.अ) का दावा fadak के लिए सही नहीं था | फिर भी कहता है की उनके दरवाज़े को खलीफा की बय्यत लेने के लिए जला देना सही था | और यह सब ज़ुल्म हुआ हजरत मुहम्मद (स.अ.व) की वफात के फ़ौरन बाद | सिर्फ फातिमा (स.अ) का यह हाल नहीं हुआ बल्कि हजरत मुहम्मद (स.अव) से ले कर उनके घराने के हर फर्द को तकलीफें दी गयीं चाहे वो हजरत अली (अ.स) हों, या उनके बेटे हसन हुसैन और अब्बास हों और यह सिलसिला नस्ल दर नसला चलता रहा | जिस ज़ुल्म में से कर्बला आज सभी को याद है |
चलिए इस्लाम का इतिहास देखे के समझने की कोशिश करते हैं की ऐसा क्यूँ हुआ ?
हज़रत आदम और बीबी हव्वा की दो औलादें थी, हाबील और काबील। दोनों ईश्वर की आराधना करने निकले तो ईश्वर ने हाबील की भेंट को स्वीकार किया और काबील की भेंट को ठुकरा दिया तो गुस्से में काबील ने ने हाबील का कत्ल कर दिया।
यही हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के साथ भी हुआ। उन्होंनें इस दुनिया के मुकाबले में खुदा को पसंद किया तो दुनिया वाले उनके मुखालिफ हो गयें जब उन्होनें अपनी कौम को दीन की दावत दी तो उन्होंनें हज़रत नूह अलैहिस्सलाम को तो ठुकराया ही और साथ ही साथ उन्हें धमकी देते हुये कहा, "हे नूह! अगर तू बाज़ न आया, तो ज़रुर संगसार कर दिये जाओगे।" (सूरह शुअरा, 117 )
यही हिमाकत हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के साथ भी की। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने भी अपनी कौम को जब एक खुदा की इबादत के लिये बुलाया तो उन्होंनें उनको पहले डराने की कोशिश की फिर जिंदा आग में जलाना चाहा। (सूरह अंबिया, 67)
हज़रत शुएब अलैहिस्सलाम के साथ भी यही कुछ हुआ। उनकी तौहीद की दावत को सुनकर उनकी जाति के बड़े सरदार जो खुद को बड़ा समझते थे ने उन्हें धमकाते हुये कहा, ‘हे शुएब ! हम तुझे और उन लोगों को जो तेरे साथ ईमान लाये हैं, अपनी बस्ती से निकाल कर रहेंगें या तो तुम्हें हमारे पंथ में लौट आना होगा। (सूरह आराफ, 88)
इसी तरह हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम की ऊंटनी को भी उनकी कौम वालों ने मार डाला और उन्हें तकलीफें दी। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने जब फिरऔन को दीन की दावत दी, तो उसने भी हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को कत्ल करना चाहा।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम बनी ईसराईल की तरफ भेजे गये थे। उन्होंनें जब यहूदियों को तौहीद की तरफ बुलाया तो उन्होंनें हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को गिरफ्तार करवा दिया, उन्हें मारा-पीटा और सूली पर चढ़ा दिया ! यही जुल्म आखिरी नबी मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम और उनके मानने वालों के साथ भी किया गया। जब उन्होंनें अपने दीन की तब्लीग आरंभ की तो मक्का में उनपर जुल्मो-सितम के पहाड़ तोड़े गये, उनका सामाजिक और आर्थिक बायकॉट किया गया और उन्हें अपने वतन को छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।|
हक की आवाज़ बलंद करने वालों का अल्लाह की बताई राह पे चलने वालों का हाल क्या होता था यह इन कुरान में कहे अल्लाह के कलाम से ज़ाहिर है |
आप ज़रा सहीह बुखारी की इस हदीस पे गौर करें जिसे वो इस्तेमाल करते हैं जो अली और फातिमा पे हुए इन ज़ुल्मों को सही बताते हैं | इस हदीस को मैं दो हिस्सों में बाँट रहा हूँ इसलिए की बात आप सभी की समझ में आ जाये |
sahih hadith from bukhari Volume 5, Book 59, Number 546
Narrated 'Aisha: Fatima the daughter of the Prophet sent someone to Abu Bakr (when he was a caliph), asking for her inheritance of what Allah's Apostle had left of the property bestowed on him by Allah from the Fai (i.e. booty gained without fighting) in Medina, and Fadak, and what remained of the Khumus of the Khaibar booty. On that, Abu Bakr said, "Allah's Apostle said, "Our property is not inherited. Whatever we leave, is Sadaqa, but the family of (the Prophet) Muhammad can eat of this property.' By Allah, I will not make any change in the state of the Sadaqa of Allah's Apostle and will leave it as it was during the lifetime of Allah's Apostle, and will dispose of it as Allah's Apostle used to do." So Abu Bakr refused to give anything of that to Fatima. So she became angry with Abu Bakr and kept away from him, and did not task to him till she died. She remained alive for six months after the death of the Prophet. When she died, her husband 'Ali, buried her at night without informing Abu Bakr and he said the funeral prayer by himself. When Fatima was alive, the people used to respect 'Ali much, but after her death, 'Ali noticed a change in the people's attitude towards him.
इस पहले हिस्से में वो सभी ज़ुल्म साफ़ साफ़ लिखे हैं जिन्हें फातिमा (स.अ) पे हुए ज़ुल्म में बहुत से मुसलमान किया करते हैं | यहाँ में सफाई में यह कहा जाता है की हजरत आयेशा को यह बता ही नहीं था की हजरत अली (अ.स) ने गेयत हजरत अबुबकर की शुरू में ही कर ली थी | अब बताएं एक तो उम्मुल मोमिनीन हजरत आयेशा की हदीथ से इनकार दुसरे यह की उन्हें साचा का पता ही नहीं रहता था और हदीस बयान कर देती थी औ तीसरे यह की मानते हैं जनाब ऐ फातिमा (स.अ) हजरत अबुबकर से नाराज़ गयीं और फिर बड़े शान से वही लोग यह भी बयान करते हैं की हजरत मुहम्मद (स.अ.व) ने कहा जिसने फातिमा को नाराज़ किया उसने मुझे नाराज़ किया |
साफ़ ज़ाहिर है की बाद वफात ऐ हजरत मुहम्मद (स.अ.व) इनका कहना है अब वो चले गए अब हमें देखना है क्या किया जाये या क्या ना किया जाये |
अजीब सा नहीं लगता क्या की बालों की, सुरमे की सुन्नत का इतनी सख्ती से पाबंद मुसलमान उनकी औलाद को ही तकलीफ पहुंचा रहा है और उनकी हदीस से इनकार और उनकी पत्नी को गैर ज़िम्मेदार बता रहा है |
second part of same hadith---
When Fatima was alive, the people used to respect 'Ali much, but after her death, 'Ali noticed a change in the people's attitude towards him. So Ali sought reconciliation with Abu Bakr and gave him an oath of allegiance. 'Ali had not given the oath of allegiance during those months (i.e. the period between the Prophet's death and Fatima's death). 'Ali sent someone to Abu Bakr saying, "Come to us, but let nobody come with you," as he disliked that 'Umar should come, 'Umar said (to Abu Bakr), "No, by Allah, you shall not enter upon them alone " Abu Bakr said, "What do you think they will do to me? By Allah, I will go to them' So Abu Bakr entered upon them, and then 'Ali uttered Tashah-hud and said (to Abu Bakr), "We know well your superiority and what Allah has given you, and we are not jealous of the good what Allah has bestowed upon you, but you did not consult us in the question of the rule and we thought that we have got a right in it because of our near relationship to Allah's Apostle ." Thereupon Abu Bakr's eyes flowed with tears. And when Abu Bakr spoke, he said, "By Him in Whose Hand my soul is to keep good relations with the relatives of Allah's Apostle is dearer to me than to keep good relations with my own relatives. But as for the trouble which arose between me and you about his property, I will do my best to spend it according to what is good, and will not leave any rule or regulation which I saw Allah's Apostle following, in disposing of it, but I will follow." On that 'Ali said to Abu Bakr, "I promise to give you the oath of allegiance in this after noon." So when Abu Bakr had offered the Zuhr prayer, he ascended the pulpit and uttered the Tashah-hud and then mentioned the story of 'Ali and his failure to give the oath of allegiance, and excused him, accepting what excuses he had offered; Then 'Ali (got up) and praying (to Allah) for forgiveness, he uttered Tashah-hud, praised Abu Bakr's right, and said, that he had not done what he had done because of jealousy of Abu Bakr or as a protest of that Allah had favored him with. 'Ali added, "But we used to consider that we too had some right in this affair (of rulership) and that he (i.e. Abu Bakr) did not consult us in this matter, and therefore caused us to feel sorry." On that all the Muslims became happy and said, "You have done the right thing." The Muslims then became friendly with 'Ali as he returned to what the people had done (i.e. giving the oath of allegiance to Abu Bakr).
अब यहाँ कहा जा रहा है की फातिमा की कितनी इज्ज़त थी की जब वो जिंदा थीं तो हजरत अली की इज्ज़त थी और उनके बाद लोग वो इज्ज़त नहीं देते थे | जबकि हजरत अली को खलीफा का हक़दार मन जा रहा है और फातिमा में ज़ुल्म को भी कबूल किया जा रहा है |
यहाँ बताता चलूँ की हजरत अली (अ.स) ने बियत अगर ले ली होती हजरत अबुबकर से तो उनपे इतना ज़ुल्म भी नहीं होता | और बाद में न सुलह ऐ हसन होती और ना कर्बला होती क्यूंकि इस्लाम की शक्ल ही बदल चुकी होती |
इन हदीसों में हजरत अबुबकर ने हजरत अली (अ.स) की अफ्ज़लियत को माना और यह कहा की चूँकि आप हजरत मुहम्मद (स.अ.व) के साथ उनकी वफात के बाद थे और तीसरे दिन उनके कफ़न दफ़न में लगे थे और आपने अपने इस काम को छोड़ के हम लोगों के सामने अपना दावा खिलाफत पे पेश नहीं किया इसलिए हमने समझा की आप की मर्जी मेरी खिलाफत में ही है |
जो ज़ुल्म हाबी पे हुआ, जनाब ऐ नुह पे हुआ, हजरत इब्राहीम पे हुआ, मूसा पे हुआ ,शुएब पे हुआ वही ज़ुल्म हजरत अली पे हुआ , फातिमा पे हुआ, इमाम हसन पे हुआ, हुसैन पे हुआ और आगे की जिंतनी औलाद इ फातिमा थी सब पे हुआ और फिर देखिये कमाल की यही मुसलमान फिर कहता है हजरत मेहदी आयेंगे और वो होंगे फातिमा (स.अ) की औलादों में से और बाप का नाम होगा हसन अस्करी |
अल्लाह से दुआ है हम सब को सिरात ऐ मुस्तकीम पर रखे और हमें आखिरत में उनका साथ दे जिन्होंने अल्लाह की राह में कुर्बानिय पेश की और उनसे दूरी रखे जिन्होंने ज़ुल्म किया और जालिमो का साथ दिया | आमीन
लगता ह अहले हदीस हो जो ऐसी हदीसे वही बता के गुमराह करते ह
ReplyDeleteमेरे कुछ सवाल ह मूसा अलैहि सलाम पे जुल्म करने वाला क्या मुसलमान था मूसा अलैही सलाम पे जुल्म मुसलमान ने किया और क्या यजीद एक सीधी राह पे था तो फिर कर्बला क्यों क्योकि अल्लाह ने जिब्राइल से नबीए करीम सलल्लाहो अलैही व सल्लम से कहलवा दिया कि हुसैन कर्बला में शहीद होंगे अल्लाह ही बेहतर जनता ह की वो अपने बंदों को किस काम में ले तुम खुद कहा गुमराह हो और किसके साथ हो सोचो एक तरफ अल्लाह के बंदे होते ह जिनका मदद गार अल्लाह होता ह दूसरी तरफ शैतान ओर तुमने जो रास्ता इख्तियार किया वो शैतान का है