पाप या ग़लती का अज्ञानता व सूझबूझ से गहरा संबंध|
ईश्वरीय दूतों का इस लिए पापों से दूर रहना आवश्यक है क्योंकि यदि वे लोगों को पापों से दूर रहने की सिफारिश करेगें किंतु स्वंय पाप करेंगे ...
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ईश्वरीय दूतों का इस लिए पापों से दूर रहना आवश्यक है क्योंकि यदि वे लोगों को पापों से दूर रहने की सिफारिश करेगें किंतु स्वंय पाप करेंगे तो उनकी बातों का प्रभाव नहीं रहेगा जिससे उनके आगमन का उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा। ईश्वरीय दूत समस्त मानव जाति के लिए मार्गदर्शक होते है इस लिए मानव जाति की महानता की अंतिम श्रेणी पर उनका होना आवश्यक है क्योंकि यदि एसा न हुआ तो और वे अपने से उच्च श्रेणी वालों का मार्गदर्शन नहीं कर सकते क्योंकि उन लोगो पर उनकी बातों का प्रभाव नहीं होगा।
क्यों ईश्वरीय दूतों का पापों ओर ग़लतियों से पवित्र रहना आवश्यक है और किस प्रकार ईश्वरीय दूत पापों से पवित्र रहते थे?
ईश्वरीय संदेश की प्राप्ति के लिए कुछ विशेष प्रकार की योग्यताओं और क्षमताओं का होना आवश्यक है जो व्यवहारिक रूप से हर मनुष्य में नहीं हो सकतीं और यही कारण है कि ईश्वरीय संदेश पहुंचाने की ज़िम्मेदारी कुछ विशेष लोगों पर डाली गयी जिन्हें हम ईश्वरीय दूत कहते हैं।
यह विशेष लोग, ईश्वरीय संदेश प्राप्त करने के लिए चुने ही इस लिए जाते हैं क्योंकि उनमें विशेष प्रकार की क्षमताएं और योग्यताएं होती हैं जो उन्हें साधारण मनुष्य से उच्च बना देती हैं किंतु इन क्षमताओं और विशेषताओं के परिणाम में उनमें जो परिवर्तन होता है वह केवल यही नहीं होता कि वे ईश्वरीय संदेश की प्राप्ति के
पात्र बन जाते हैं बल्कि यह परिवर्तन बहु आयामी होता है और ईश्वरीय दूतों की आत्मा व मन को विशेष रूप दे देता है जिसके कारण वे ज्ञान व जानकारी व सूझबूझ के उच्चतम श्रेणी पर पहुंच जाते हैं क्योंकि ईश्वरीय संदेश की प्राप्ति की एक शर्त ज्ञान व जानकारी का पूर्ण होना है किंतु यह भी स्पष्ट है कि जिसका ज्ञान व पहचान व
जानकारी पूर्ण होगी व न गलती करेगा न पाप ।वास्तव में पाप या अपराध या गलती का अज्ञानता व सूझबूझ से गहरा संबंध है। उदाहरण स्वरूप एक अपनी आर्थिक समस्याओं के निवारण के लिए परिश्रम करने के स्थान पर चोरी की योजना बनाता है। अपने हिसाब से उसकी योजना पूरी होती है और वह हर पहलु पर ध्यान देते हुए कार्यवाही करता है और अपनी पहचान छुपाने की भी व्यवस्था करता है किंतु फिर भी वह पकड़ा जाता है क्योंकि उसे इस बात का ज्ञान नहीं था कि उदाहरण स्वरूप उस घर की निगरानी की जा रही है और उदाहरण स्वरूप सामने वाले घर में कई सुरक्षा कर्मी रात दिन उस घर पर नज़र रखे हैं जिसमें वह चोरी करना चाहता है। यदि उसे इस बात का ज्ञान होता तो वह कदापि उस घर में चोरी न करता।
इसके अतिरिक्त यदि उसमें सूझबूझ होती और बुद्धि पूरी होती तो वह चोरी के परिणामों पर ध्यान देता और दूरदर्शिता से सोचते हुए यह काम न करता। इसी लिए जिन लोगों को अपराध की बुराईयों और परिणामों का भलीभांति ज्ञान होता है वे कभी भी अपराध नहीं करते किंतु जिन लोगों का ज्ञान कम होता है और
मूर्खों की भांति अपनी बनायी योजना से आश्वस्त होकर सोचते हैं कि वे पकड़े नहीं जाएगें वही अपराध करते हैं और पकड़े जाते हैं। इस प्रकार से यह स्पष्ट हुआ कि अपराध की बुराई और परिणाम का यदि किसी को सही रूप से पूरी तरह से ज्ञान हो तो वह अपराध नहीं कर सकता।
बिल्कुल यही दशा ईश्वरीय दूतों की होती है। चूंकि ईश्वरीय संदेश प्राप्त करने की योग्यता के कारण उनका ज्ञान पूर्ण और वे विलक्षण बुद्धि के स्वामीतथा दूरदर्शिता व सूझबूझ की चरम सीमा पर होते हैं इस लिए वे पाप जो वास्तव में धार्मिक अपराध है नहीं करते क्योंकि उन्हें पाप की बुराई और उसके परिणाम का पूर्ण रूप से ज्ञान होता है।
यह यह ज्ञान वास्तव में उनकी उन्हीं विशेष क्षमताओं व योग्यताओं के कारण होता है जिसके आधार पर उन्हें ईश्वरीय संदेश प्राप्त करने का पात्र समझा जाता है। इस प्रकार से हम देखते हैं कि ईश्वरीय दूत ज्ञान की उस सीमा पर होते हैं जहां उनकी सूझबूझ और वास्तविकता का ज्ञान उन्हें पाप नहीं करने देता और उनकी दूरदर्शिता वसम्पूर्ण बुद्धि इस बात का कारण बनती है कि वे हर प्रकार की ग़लती से भी सुरक्षित रहते हैं क्योंकि गलती भी अज्ञानता का परिणाम है।
उदाहरण स्वरूप कोई व्यक्ति वर्षों तक अपने घर में रहने और प्रतिदिन आने जाने के बाद अपने उस घर के मार्ग के बारे में कभी गलती नहीं कर सकता क्योंकि अपने घर के मार्ग के बारे मेंउसका ज्ञान सम्पूर्ण होता है। उसका ज्ञान अपने घर के बारे में सम्पूर्ण होता है इस लिए वह अपने घर के मार्ग में गलती नहीं करता किंतु ईश्वरीय
दूतों का ज्ञान हर मामले में सम्पूर्ण होता है इस लिए वे किसी भी मामले में गलती नहीं करते।
पैग़म्बरों अर्थात ईश्वरीय दूतों के पापों से पवित्र होने की चर्चा को आगे बढ़ाते हुए हम अपनी बात को अधिक स्पष्ट करने के लिए पाप व पुण्य व भलाई वबुराई जैसे कामों की इरादे से लेकर काम करने की पूरी प्रक्रिया पर एक दृष्टि डालते हैं ताकि यह स्पष्ट हो सके कि ईश्वरीय दूत स्वेच्छा से पापों से दूर रहते हैं और
जो शक्ति उन्हें पापों से दूर रखती है वह उनकी अपनी होती है और इससे शक्ति के प्रभावशाली होने के कारण, मनुष्य को प्राप्त चयन अधिकार समाप्त नहीं होता।वास्तव में हर काम चाहे वह सही हो या गलत इरादे और इच्छा से आरंभ होता है और काम करने पर जाकर समाप्त होता है किंतु इस पूरी प्रक्रिया में कई चरणआते हैं जो वास्तव में प्रत्येक मनुष्य की मानसिक दशाओं के अनुसार कम या अधिक होते हैं।
उदारहण स्वरूप जब एक मनुष्य कोई काम करने का इरादा करता है तो उसकी अच्छाइयों और बुराईयों और परिणाम के बारे में सोचता है यदि उसका ज्ञान कम किंतुदूरदर्शिता अधिक होती है तो वह उस बारे में जानकारी रखने वालों से भी पूछताछ करता है अन्य लोगों से सलाह मशविरा करता है फिरअपने हिसाब से उचित समय की प्रतीक्षा करता है और समय आने पर वह काम कर लेता है किंतु यदि उसमें आत्मविश्वास की कमी होगी तो यह प्रक्रिया उसमें लिए लंबी होगी
और वह बार बार अपने फैसले बदलेगा किंतु यदि उसमें आत्मविश्वास होगा तो वह प्रक्रिया अपेक्षाकृत छोटी होगी और इसी प्रकार यदि किसी के पास उस काम के बारे में पर्याप्त जानकारी होगीतो उसके लिए वह काम करने की प्रक्रिया और अधिक छोटी होगी और उसके लिए ढेर सारे इरादों और मनोकामनाओं में से संभव व सरलता से पूरी की जाने वाली कामना तक पहुंचा सरल होगा।इस प्रकार से यह स्पष्ट होता है कि ज्ञान व जानकारी, जहां गलतियों से बचाव को सुनिश्चित करती है वहीं सही मार्ग के चयन की संभावना को अधिक करती है।
इस लिए जानकारी व अनुभव जितना अधिक होगा गलतियों से दूरी उतनी ही निश्चित होगी तो यदि हम किसी एसे व्यक्ति की कल्पना करेंजिसकी जानकारी व अनुभव पूर्ण हो और उसमें किसी प्रकार की कोई कमी न हो फिर उससे गलती की संभावना नहीं होती किंतु उसमें संभावना न होने काअर्थ यह नहीं है कि वह गलतियों से दूर रहने पर विवश होता है और उसमें चयन शक्ति का विशेष अधिकार ही नहीं होता।
यह ठीक उसी प्रकार है जैसे यदि कोई बुद्धि रखने वाला व्यक्ति किसी शर्बत में विष गिरते अपनी आंखों से देख ले तो वह कदापि उस शर्बत को नहीं पीएगा।अर्थात हम यह कह सकते हैं कि बुद्धि रखने वाला मनुष्य उस शर्बत को पी नहीं सकता किंतु पी नहीं सकता कहने का अर्थ यह नहीं है कि उसमें वह शर्बत पीने की क्षमता ही नहीं है
और वह शर्बत न पीने पर विवश है और शर्बत पीने या न पीने के मध्य निर्णय का अधिकार ही उसके पास नहीं है।यह अधिकार उसके पास है किंतु बुद्धि व विष के होने का ज्ञान उन्हें शर्बत पीने से रोक देता है ।
यही स्थिति ईश्वरीय दूतों की भी होती है एक मनुष्य होने के नाते और ईश्वर द्वारा मनुष्यों को प्रदान की गयी चयन शक्ति व अधिकार के दृष्टिगत यदि वे चाहें तो पाप कर सकते हैंकिंतु उन्हें जो वास्तविकताओं का पूर्ण ज्ञान होता है और पापों की बुराइयों से चूंकि वे अवगत होते हैं इस लिए पूर्ण ज्ञान उनके भीतर पाप की इच्छा को जन्म ही नहीं लेने
देता किंतु इसका अर्थ यह नहीं होता कि वे पाप करने में अक्षम और मनुष्य को प्रदान किये गये चयन अधिकार से वंचित होते हैं।वास्तव में पापों की बुराई ईश्वरीय दूतों के लिए उसी प्रकार स्पष्ट होती जैसा बुद्धि रखने वाले के लिए विष की बुराईयों और जिस प्रकार बुद्धि रखने वाला व्यक्ति शर्बत मेंअपनी आखों से विष गिरते देखने के बाद अपनी इच्छा से उसे नहीं पीता उसी प्रकार ईश्वरीय दूत भी पापों से अपनी इच्छा से दूर रहते हैं और इस उनकी इस इच्छा का कारण उनका ज्ञान होता है।
हमारी आज की चर्चा के मुख्य बिन्दु इस प्रकार थेःईश्वरीय दूत इस लिए ईश्वरीय संदेश प्राप्त करने का प्राप्त बनते हैं क्योंकि उनमें कुछ एसी विशेषताएं व क्षमताएं होती हैं
जो हर मनुष्य में नहीं हो सकती और यही विशेषताएं व क्षमताएं उन्हें पापों से भी रोकती हैं।