सूरए मोमिनून, आयतें 52-56

सूरए मोमिनून, आयतें 52-56, और निश्चय ही तुम्हारा यह समुदाय, एकजुट समुदाय है और मैं तुम्हारा पालनहार हूँ। तो केवल मुझ से डरो। (23:52)  ईश...

सूरए मोमिनून, आयतें 52-56,



और निश्चय ही तुम्हारा यह समुदाय, एकजुट समुदाय है और मैं तुम्हारा पालनहार हूँ। तो केवल मुझ से डरो। (23:52)

 ईश्वर ने सभी पैग़म्बरों और उनके अनुयाइयों को भले कर्म करने का निमंत्रण दिया और उनसे कहा कि वे हर प्रकार की बुराई से दूर रहते हुए आहार के लिए केवल हलाल और वैध वस्तुएं प्रयोग करें। यह आयत सभी मनुष्यों को संबोधित करते हुए कहती है कि तुम सभी एक समुदाय हो और एक ही मत, अर्थात एकेश्वरवाद का पालन करते हो। सभी पैग़म्बर अनन्य ईश्वर की ओर से आए हैं और उन्होंने लोगों को एकेश्वरवाद और ईश्वर से डरने का निमंत्रण दिया है।

पैग़म्बरों की अधिक संख्या, संसार के रचयिता के एक से अधिक होने का प्रमाण नहीं है क्योंकि सभी पैग़म्बरों की शिक्षाएं एक ही हैं, उनकी दिशा व लक्ष्य एक है। वे एक शैक्षिक व्यवस्था के आरंभिक माध्यमिक और उच्च चरणों के अलग-अलग शिक्षकों की भांति हैं कि जिनमें से सब का लक्ष्य एक ही होता है। वे अपने संबोधकों की स्थिति के अनुसार शिक्षा के स्तर और उनके दायित्वों को निर्धारित करते हैं।

अनन्य ईश्वर ने सभी मनुष्यों को एकता, एकजुटता और एकेश्वरवाद के एकमात्र पंथ के अनुसरण का निमंत्रण दिया है।

सभी ईश्वरीय पैग़म्बरों के निमंत्रण के सिद्धांत एक ही हैं जिस प्रकार से कि सभी मनुष्यों की प्रकृति व प्रवृत्ति भी एक ही है।


सूरए मोमिनून की 53वीं और 54वीं आयत



किन्तु उन्होंने अपने (अपने धर्म के) मामले को आपस में विवाद करके टुकड़े-टुकड़े कर दिया। हर गुट के पास जो है वह उसी पर प्रसन्न है। (23:53) तो (हे पैग़म्बर!) आप उन्हें एक समय तक के लिए उनकी निश्चेतना में छोड़ दीजिए। (23:54)

इससे पहले वाली आयत में सभी मनुष्यों को एकता का निमंत्रण दिया गया था। ये आयतें सभी को फूट और मतभेद से दूर रहने का निमंत्रण देते हुए कहती हैं कि लोगों का हर गुट अपने पैग़म्बर और किताब के बहाने दूसरों से अलग हो गया जबकि सभी पैग़म्बर और सभी आसमानी किताबें एक ही ईश्वर की ओर से आई हैं और लोगों को एक ईश्वर और एक धर्म की ओर बुलाती हैं।

दूसरों के तर्क सुने बिना ही अपने विचारों व आस्थाओं पर अनुचित हठ धर्म लोगों के बीच विवाद और विभिन्न प्रकार के मानवीय मतों के अस्तित्व में आने का कारण बना है। जबकि बुद्धि व तर्क का कहना है कि अगले पैग़म्बर के आने और नई आसमानी किताब के भेजे जाने के बाद पिछले पैग़म्बर के अनुयाइयों को उन पर ईमान ले आना चाहिए और हठ धर्म छोड़ देना चाहिए। वस्तुतः इस प्रकार के अनुचित धार्मिक हठ धर्म का ईश्वरीय धर्मों की असली शिक्षाओं से कोई संबंध नहीं है बल्कि इसका कारण, स्वार्थ और अहंकार है।

आगे चलकर आयत पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए कहती है कि अब जबकि आपके विरोधी सत्य को खोजना और उसे स्वीकार करना नहीं चाहते बल्कि अपनी ग़लत आस्थाओं पर ही आग्रह कर रहे हैं तो आप उन्हें उनके हाल पर छोड़ दीजिए कि वे अपनी निश्चेतना व पथभ्रष्टता में पड़े रहें यहां तक कि या तो अपनी इस शैली को बदल दें या उन्हें मृत्यु आ जाए।

इन आयतों से हमने सीखा कि धर्म के अनुयाइयों के बीच फूट और यहूदियों, ईसाइयों एवं मुसलमानों के बीच मतभेद हज़रत मूसा, हज़रत ईसा व हज़रत मुहम्मद अलैहिमुस्सलाम जैसे महान नेताओं की इच्छाओं के अनुसार नहीं है।

दलगत व सांप्रदायिक जुड़ाव अपनी आंतरिक इच्छाओं और व्यक्तिगत प्रेम व द्वेष के आधार पर नहीं अपितु सही बौद्धिक एवं धार्मिक आधार पर होना चाहिए।

आइये अब सूरए मोमिनून की 55वीं और 56वीं आयत



क्या वे समझते है कि हम जो उन्हें धन और सन्तान प्रदान किए जा रहे हैं। (23:55) इस लिए है कि हम उन्हें भलाइयां पहुंचाने में जल्दी कर रहे हैं? (कदापि नहीं) बल्कि वे तो समझते ही नहीं। (23:56)

ये आयतें लोगों के बीच प्रचलित एक ग़लत विचार की ओर संकेत करते हुए कहती हैं कि कुछ लोग यह सोचते हैं कि यदि काफ़िर आराम व ऐश्वर्य में जीवन बिता रहे हैं और भौतिक दृष्टि से समृद्ध हैं तो यह उन पर ईश्वर की दया व कृपा का चिन्ह है। इस प्रकार से ईश्वर ने जीवन में उनकी सहायता की है और उन पर भलाइयों के द्वार खोल दिए हैं। जैसा कि क़ुरआने मजीद क़ारून की घटना में कहता है कि लोग बड़ी लालसा से उसकी धन संपत्ति को देखते थे और उनकी कामना होती थी कि ईश्वर उन्हें भी वैसी ही धन संपत्ति प्रदान करे।

जबकि प्रथम तो यह कि ईश्वर, भौतिक व सांसारिक संभावनाएं प्रदान करने में काफ़िर व ईमान वाले के बीच कोई अंतर नहीं रखता और जो भी प्रयास करता है, ईश्वर उसे प्रदान करता है और दूसरी बात यह कि धन संपत्ति सभी के लिए परीक्षा का साधन है चाहे वे ईमान वाले हों या काफ़िर। अतः इसे धनवान पर ईश्वर की दया व कृपा का चिन्ह नहीं समझा जा सकता।

इन आयतों से हमने सीखा कि हमें अपने धन, संतान और संभावनाओं पर घमंड नहीं करना चाहिए कि इनमें से कोई भी मनुष्य के लिए मोक्ष व मुक्ति का कारण नहीं है।

काफ़िरों के जीवन की समीक्षा में ग़लत निष्कर्षों से बचना चाहिए और उनके विदित ऐश्वर्य को उनके कल्याण का प्रमाण नहीं समझना चाहिए।






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