क़ुरान पढ़ने में कहाँ सजदा वाजिब है ?
क़ुरान पढ़ने में कहाँ सजदा वाजिब है ? कुरान करीम की तिलावत करते वक़्त कुछ मकाम ऐसे आते है जहाँ सजदा करना वाजिब है कुरान में चार मकाम ऐसे...
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क़ुरान पढ़ने में कहाँ सजदा वाजिब है ?
कुरान करीम की तिलावत करते वक़्त कुछ मकाम ऐसे आते है जहाँ सजदा करना वाजिब है कुरान में चार मकाम ऐसे है जहा सजदा करना वाजिब है और ताखीर नही करनी चाहिए फ़ौरन सजदे अदा करने चाहिए और 11 मकाम ऐसे है जहा वाजिब नही है बलके मुस्तहब है यानि करेगे तो सवाब होगा !
4 मकामात कौन से है?
सूरत ए अस सजदा सुराह नंबर 32 आयत नंबर 15
सूरत ए फुसेलत सुराह नंबर 41 आयत नंबर 37
सूरत ए अन नज्म सुराह नंबर 53 आयत नंबर 62
सूरत ए अल अलाक़ या इकरा सुराह नंबर 96 आयत नंबर 19
इन सजदो में क़िबला रुख की शर्त नही है मसलन कोई ख़ातून है उसके सर पर रुपट्टा नही भी है और उसने सजदा कर लिया तो कोई हर्ज नही है हो सकता है अपने वजू न किया हो तब भी आप इन सजदो को कर सकते है इन सजदो में नमाज़ के सजदे की तरह शर्त नही है सजदे में सात अजा टिकाने ज़रूरी है और दुरान ए सजदा कोई भी ज़िक्र कर सकते है !
नियत: सजदा करती हूँ या करता हूँ कुरान का जो वाजबी है कुर्बतन इल्ललाह और सजदा करेगे और उसके बाद अल्ला हो अकबर कहकर उठ जायगे ना तशुद है और सलाम है और ना ही कोई खास ख़सूसी तोर पर विर्द है आप सजदे में कोई भी ज़िक्र कर सकते है जैसे: सुभहाना रब्बिल आला वाबे हम्देही. अल्लाह हो अकबर या कोई भी ज़िक्र आप कर सकते है आप का सजदा अदा हो जाएगा !
सजदा कब वाजिब होता है?
आप कुरान पढ रहे है और आप सजदे की आयात को पढ़ते है तो आप पर सजदा वाजिब हो जायगा और आपको बिना देरी किये फ़ौरन इस सजदे को अदा करना है !
क्या कुरान की तिलावत सुनने वाले पर भी सजदा वाजिब हो जाएगा ?
अगर कुरान की तिलावत हो रही है और कोई बंदा वहा से निकला हुवा जा रहा है और वो कुरान की आयात को सुन लेता है तो उस पर सजदा वाजिब नही है !
लेकिन जानबुझ कर कोई इंसान कुरान की तिलावत सुन रहा है या हो सकता है लाइव क्लास चल रही है तो उस सूरत में सजदा वाजिब है और सजदे को फ़ौरन अदा करना ज़रूरी है !
कुरान की अनिवार्य (वाजिब) सजदे
अयातुल्लाह सिस्तानी
हुक्म 1079. चारों सूरहों सज्दा, फुस्सिलात, नज्म और अल-अलक़ में से हर एक में सजदे की एक आयत है।[1] यानी अगर कोई इस आयत को पढ़े या सुने तो उसे आयत खत्म होने के तुरंत बाद सजदा करना चाहिए। अगर वह ऐसा करना भूल जाए तो उसे जब भी याद आए सजदा करना चाहिए। अगर कोई ऐसी आयत अनजाने में सुन ले तो सजदा करना वाजिब नहीं है, हालाँकि बेहतर है कि वह ऐसा करे।
हुक्म 1080. अगर कोई सजदे की आयत सुनते समय उसके साथ-साथ पढ़े तो उसे दो सजदा करना चाहिए।
1081. अगर कोई शख़्स नमाज़ के अलावा कोई सजदा कर रहा हो और वह सजदे की कोई आयत पढ़ ले या सुन ले तो ज़रूरी है कि सजदे से सिर उठाए और दोबारा सजदा करे।
1082. अगर कोई शख़्स सजदे की कोई आयत किसी ऐसे शख़्स से सुन ले जो सोया हुआ या पागल हो या कोई बच्चा जो क़ुरआन की आयतें न पहचानता हो, सुन ले तो उस पर सजदा फ़र्ज़ हो जाता है। लेकिन अगर वह उसे ग्रामोफ़ोन या टेपरिकॉर्डर [या किसी और आवाज़ बजाने वाले यंत्र] से सुने तो सजदा फ़र्ज़ नहीं है। अगर वह पहले से रिकॉर्ड की गई हो तो रेडियो से सुनने पर भी यही बात लागू होती है [यानी सजदा फ़र्ज़ नहीं है]। लेकिन अगर कोई शख़्स रेडियो पर सजदे की कोई आयत लाइव पढ़े और कोई उसे लाइव सुने तो सजदा फ़र्ज़ है।
हुक्म 1083. एहतियाते वाजिब यह है कि कुरान के वाजिब सजदे के लिए सजदा करने की जगह पर अतिक्रमण न किया जाए। और एहतियाते मुस्तहब यह है कि उसके माथे की जगह उसके घुटनों और पैरों की उंगलियों के मुक़ाबले में चार बंद उंगलियों की ऊंचाई से ज़्यादा या कम न हो। लेकिन उसके लिए वुज़ू या ग़ुस्ल करना, क़िबला की तरफ़ मुँह करना या अपने गुप्तांगों को ढकना या उसके बदन और माथे की जगह का पाक होना ज़रूरी नहीं है। इसके अलावा नमाज़ पढ़ने वाले के कपड़ों से जुड़ी शर्तें लागू नहीं होतीं।
हुक्म 1084. एहतियाते वाजिब यह है कि कुरान के वाजिब सजदे के लिए इंसान को अपना माथा किसी टरबा या किसी और चीज़ पर रखना चाहिए जिस पर सजदा करना जायज़ हो। और एहतियाते मुस्तहब यह है कि नमाज़ में सजदा करने के बारे में जो हिदायतें बताई गई हैं, उनके मुताबिक बदन के बाकी हिस्सों को भी ज़मीन पर रखे।
हुक्म 1085. अगर कोई शख्स कुरान के वाजिब सजदे की नीयत से पेशानी ज़मीन पर रखते वक्त ज़िक्र न कहे तो काफ़ी है। हालाँकि, धिक्र कहने की सिफारिश की जाती है, और निम्नलिखित कहना बेहतर है:
لَا إِلٰهَ إِلَّا اللهُ حَقًّا حَقًّا, لَا إِلٰهَ إِلَّا اللهُ إِيْمَانًا وَتَصْدِيْقًا, لَا إِلٰهَ إِلَّا اللهُ عَبُوْدِيَّةً وَرِقًّا، سَجَدْتُ لَكَ يَا رَبِّ تَعَبُّدًا और भी बहुत कुछ عَبْدٌ ذَلِيْلٌ ضَعِيْفٌ خَائِفٌ مُسْتَجِيْرٌ
ला इलाहा इल्ल लाहु हक्कन हक्का, ला इलाहा इल्ल लाहु इमानन वा तशदीका, ला इलाहा इल्ल लाहु सुबुदियातन वा रिक्का, सजदतु लाका या रब्बी तब्बूदन वा रिक्का, ला मुस्तनकिफान वा ला मुस्तकबीरा, बल अना अब्दुन धालिलुन दैइफुन खाइफुन मुस्तजिर वास्तव
में, वास्तव में अल्लाह के अलावा कोई भगवान नहीं है। अल्लाह के अलावा कोई ईश्वर नहीं है, मैं इस बात पर यकीन करता हूं और इसकी पुष्टि भी करता हूं। अल्लाह के अलावा कोई भगवान नहीं है, मैं दासता में और दास के रूप में इसकी गवाही देता हूं। हे मेरे प्रभु, मैं तेरे आगे दासतापूर्वक और दासतापूर्वक सजदा करता हूँ, न कि घृणापूर्वक और न ही अहंकारपूर्वक। बल्कि मैं दीन, दुर्बल, भयभीत और शरणागत दास हूँ।