किस करवट सोने से क्या फायदे होते हैं?
यह नामुमकिन है कि कोई इंसान सोते वक्त करवट न बदले। कभी वह दाईं करवट सोता है, कभी बायीं जानिब तो अक्सर सीधा भी सोता है। और अक्सर कुछ लोगों क...
https://www.qummi.com/2013/11/blog-post_6.html

इस्लामी विद्वान शेख सुद्दूक (र-) की किताब ‘अय्यून अखबारुलरज़ा’ में इमाम हज़रत अली (अ.स.) का कौल इस तरह दर्ज है, ‘नींद चार किस्म की होती है, 1-अंबिया सीधे सोते हैं और वह सोते में भी वही इलाही के मुन्तजिर होते हैं। 2- मोमिन क़िब्ला रू होकर दाईं करवट के बल सोता है। 3- बादशाह और उन की औलाद बाईं करवट के बल सोते हैं ताकि उन की गिज़ा हज्म़ हो सके। 4- इब्लीस और उसके भाई बन्द और दीवाने और आफत रसीदा अफराद मुंह के बल उल्टे सोया करते हैं।’
अब देखते हैं कि हज़रत अली (अ.स.) के कलाम का आधुनिक सांइस से क्या सम्बन्ध् है।
मौजूदा रिसर्च (जिन्हें मैंने इण्टरनेट की कई आथेनटिक साइट्स से इकट्ठा किया है।) के अनुसार लगभग 15 प्रतिशत लोग सीधे सोते हैं। ऐसे लोगों की आदतों का जब अध्ययन हुआ तो ये सरल स्वभाव के, लोगों से घुलने मिलने वाले और भरोसेमन्द साबित हुए। ये सब आदतें अंबिया में देखी गयी हैं। सीधे सोने में जिस्म के भीतरी अंगों को आराम मिलता है और इंसान सुकून महसूस करता है।
जिस्म के हाजमे सिस्टम में लीवर अहम रोल निभाता है जो कि जिस्म में दायीं तरफ होता है। इसके अलावा हाज्मे सिस्टम के और भी अहम हिस्से दायीं ओर ही होते हैं। इसलिये खाना हज्म हो जाये इसके लिये मुनासिब ये है कि बायीं करवट सोया जाये ताकि लीवर और हाजमे के सिस्टम पर कोई दबाव न पड़े और वह आसानी से अपना काम कर ले। जिन लोगों का हाज्मा गड़बड़ रहता है और बदहजमी की शिकायत रहती है, उन्हें डाक्टर बायीं करवट लेटने की सलाह देते हैं। इसी तरह गर्भवती औरतों को भी बायीं करवट लेटने की सलाह दी जाती है क्योंकि इससे प्लेसेन्टा तक न्यूट्रीशन और खून ज्यादा पहुंचता है।
दायीं करवट सोने से दिल पर ज़ोर कम पड़ता है और वह जिस्म व दिमाग को ज्यादा आसानी के साथ खून व आक्सीज़न की सप्लाई पहुंचाता रहता है। जिसके नतीजे में दिमाग की सोचने की ताकत बढ़ जाती है और वह अल्लाह और उसकी बनाई दुनिया के बारे में कहीं अच्छी तरह सोचता है जिससे उसका ईमान मज़बूत होता है। इसीलिए दायीं करवट सोने वाले को मोमिन कहा गया है। इसे और आगे बढ़ाते हुए ये भी निष्कर्ष निकलता है कि बुद्धिमता और दिमागी ताकत बढ़ने का सीधा सम्बन्ध् दायीं तरफ सोने से है।
एक आम इंसान के लिये रातभर किसी एक करवट सोना फायदेमन्द नहीं होता। उसे करवट बदल बदलकर सोना चाहिए। लेकिन किसी भी हालत में औंधे मुंह नहीं सोना चाहिए क्योंकि इससे रीढ़ की हड्डी पर प्रेशर पड़ता है और यह खतरनाक हो सकता है। औंधे मुंह सोने वालों में नर्वसपन और घबराहट के भी आसार ज्यादा देखे गये हैं। ऐसे लोग ज्यादा दबाव झेल नहीं पाते और साथ ही मुजरिमों के तरह लड़ाकू और जिद्दी भी होते हैं। इन्हें लगता है कि पूरी दुनिया इनके खिलाफ है। देखा जाये तो औंधे मुंह सोना निहायत खराब आदत है और इसीलिए इमाम हज़रत अली (अ.) ने फरमाया कि ‘इब्लीस और उसके भाई बन्द और दीवाने और आफत रसीदा अफराद मुंह के बल उल्टे सोया करते हैं।’
गलत तरीके से सोना बहुत सी सेहत संबंधी बीमारियों को पैदा करता है जिनमें सरदर्द, माइग्रेन, पीठदर्द, कान का बजना, कान में सीटी की आवाज़, माँसपेशियों में थकान व दर्द, जिस्म का चलते हुए महसूस होना जबकि वह आराम कर रहा हो, पायरिया, सोते में दाँत किटकिटाना, चिन्ता, जिस्म का डिसबैलेंस होना जैसी अनेकों बीमारियां शामिल हैं। अच्छी स्लीपिंग पोजीशंस इंसान को सेहतमन्द और स्मार्ट बनाती है अत: इन्हें अहमियत न देने में अच्छा खासा नुकसान हो सकता है। और उसे ऐसी बीमारियां लग सकती हैं जो इंसान के सेहत और पर्सनालिटी दोनों को चट कर सकती हैं।
इस तरह हम देखते हैं कि इंसान की सोने की पोज़ीशन उसकी जिस्मानी और दिमागी सेहत व पर्सनालिटी पर बहुत कुछ असर डालती है। ये बात साइंस ने काफी रिसर्च के बाद साबित की है लेकिन आज से चौदह सौ साल पहले इमाम हज़रत अली (अ.) अगर इन बातों को बिना किसी रिसर्च के बता रहे थे तो यकीनन इसे एक चमत्कार ही कहना होगा।
लेखक जीशान जैदी