जिहाद क्या है और कैसे किया जाता है ?
फतवा , जिहाद और , कट्टरवाद , पर मैं पहले भी लिख चुका हूँ. फतवा देने का हक हर एक मुल्ला को नहीं हुआ करता। कट्टरवाद का सबसे बुरा रू...
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फतवा , जिहाद और ,कट्टरवाद , पर मैं पहले भी लिख चुका हूँ. फतवा देने का हक हर एक मुल्ला को नहीं हुआ करता। कट्टरवाद का सबसे बुरा रूप यह हैं की, आप को खुद अपने धर्म की अच्छी बातें भी बताने का अधिकार नही। इस कट्टरवाद मैं नफरत का रूप है, इस से हर इंसान को बचना चहिये| हम सबको एक दुसरे के धर्म की इज्ज़त करनी चहिये और दुसरे धर्म की अच्छी बातों को सुनना चहिये. , तभी एकता और भाईचारा बढ़ सकता है। आतंकवाद और जिहाद के बीच भेद स्पष्ट करना आवश्यक है|
जिहाद इस्लाम मैं भगवान या अल्लाह की सेवा का एक रूप है जबकि युद्ध मैं यह सेवा रूप का आभाव है. आतंकवाद एक ऐसा युद्ध है जो अल्लाह के नाम पे अल्लाह के हुक्म की खुली नाफ़रमानी है।
जिहाद के कई चरण होते हैं:- सुबह जब एक मुसलमान अज़ान की आवाज़ सुन ता है तो दिल कहता है ज़रा और सोने दो और एक अंदर की आवाज जोर देकर कहते हैं, 'उठो अल्लाह की इबादत का वक़्त हो गया है. और एक जिहाद शुरू हो जाता है इन्सान और उसके नफ्स के बीच. यह भी एक जिहाद है....
जिहाद के कई चरण होते हैं:- सुबह जब एक मुसलमान अज़ान की आवाज़ सुन ता है तो दिल कहता है ज़रा और सोने दो और एक अंदर की आवाज जोर देकर कहते हैं, 'उठो अल्लाह की इबादत का वक़्त हो गया है. और एक जिहाद शुरू हो जाता है इन्सान और उसके नफ्स के बीच. यह भी एक जिहाद है....
जब एक मुसलमान किसी गुनाह की तरफ या बुराई के तरफ अमादा होता है तो उनके दिल से एक आवाज़ आती है देखो तुम ग़लत कर रहे हो | यह आवाज़ बलात्कारी के पास भी आती है, चोर के पास भी आती है और ज़ालिम के पास भी आती है | इस अंतरात्मा की आवाज़ को सुन के गुनाह से खु को रोक लेना भी एक जिहाद है |
समाज मैं जब बुराई बढ़ जाती है और नेकी कम हो जाती है तो भी जिहाद किया जाता है कलम के ज़रिये ,अपने लेखों के ज़रिये, समाज में ,शांति स्थापित करने और बुराइयाँ दूर करने के लिए. यह भी अल्लाह की इबादत का एक रूप है और यह कुरआन और मुहम्मद (स.अव.) की हिदायतों और नसीहतों के ज़रिये ही किया जा सकता है।
इस्लाम हमें बताता है कि मुसलमानों को पहले अपने स्वयं के भीतर की बुराइयों के खिलाफ जिहाद करना चाहिए, हमारे बुरी आदतों के खिलाफ , झूठ बोलने की आदत के खिलाफ,फितना ओ फसाद फैलाने की आदत के खिलाफ, जलन, द्वेष, नफरत के खिलाफ , इस जिहाद को स्वयं के खिलाफ संघर्ष कहा जाता है।
यह जिहाद का जिक्र श्रीमद् भगवद गीता में कुछ ऐसे किया गया है:
शत्रौ मित्रे पुत्रे बन्धौ, मा कुरु यत्नं विग्रहसन्धौ।
सर्वस्मिन्नपि पश्यात्मानं, सर्वत्रोत्सृज भेदाज्ञानम् ॥२५॥
भावार्थ : शत्रु, मित्र, पुत्र, बन्धु-बांधवों से प्रेम और द्वेष मत करो, सबमें अपने आप को ही देखो, इस प्रकार सर्वत्र ही भेद रूपी अज्ञान को त्याग दो ॥२५॥
कामं क्रोधं लोभं मोहं, त्यक्त्वाऽत्मानं भावय कोऽहम्।
आत्मज्ञान विहीना मूढाः, ते पच्यन्ते नरकनिगूढाः ॥२६॥
भावार्थ : काम, क्रोध, लोभ, मोह को छोड़ कर, स्वयं में स्थित होकर विचार करो कि मैं कौन हूँ, जो आत्म- ज्ञान से रहित मोहित व्यक्ति हैं वो बार-बार छिपे हुए इस संसार रूपी नरक में पड़ते हैं ॥२६॥
अपनी मेहनत की कमाई से अनाथों और विधवाओं और गरीबों की सहायता करना भी एक जिहाद है । इस इबादत का दर्जा बहुत ऊंचा है।
और सबसे आखिरी जिहाद है हथियार का, यह जिहाद केवल रक्षात्मक ही हो सकता है। या यह कह लें की सिर्फ बचाव मैं ही हथियार उठाया जा सकता है, सामने से हमला करना जिहाद नहीं...अपने बचाव मैं किये जिहाद का भी कानून है. बच्चों , औरतों और बूढ़े, जो आपको नुकसान नहीं पहुंचा रहे, उनको कुछ ना कहो, नुकसान ना पहुँचाओ, अगर कोई अमन की आवाज़ बलंद करे तो उसे भी जाने दो। दुश्मन अगर पीठ दिखा जाए तो भी उसपे हमला मना है. यह जिहाद भी सिर्फ अल्लाह की राह मैं उसके दीन को बचाने के लिए किया जा सकता है।
अगर इस्लाम पे कोई हमला करे तो उसको बचाने का काम हथियार से होता है, जो की केवल रक्षात्मक ही हो सकता है और इस्लाम फैलाने का काम , कलम से, खुतबे से , अच्छा किरदार पेश करने से, और इन्साफ करने से होता है. इस्लाम मैं जब्र नहीं और इस्लाम को फैलाने के लिए ज़बरदस्ती मना है. कुरआन २: 256. दीन (के स्वीकार करने) में कोई ज़बर्दस्ती नहीं है.
कुरान ५:३२ मैं कहा गया है की अगर किसी ने एक बेगुनाह इंसान की जान ली तो यह ऐसा हुआ जैसे पूरे इंसानियत का क़त्ल किया और अगर किसी ने एक इंसान की जान बचाई तो उसने पूरी इंसानियत की जान बचाई.
अगर इस्लाम पे कोई हमला करे तो उसको बचाने का काम हथियार से होता है, जो की केवल रक्षात्मक ही हो सकता है और इस्लाम फैलाने का काम , कलम से, खुतबे से , अच्छा किरदार पेश करने से, और इन्साफ करने से होता है. इस्लाम मैं जब्र नहीं और इस्लाम को फैलाने के लिए ज़बरदस्ती मना है. कुरआन २: 256. दीन (के स्वीकार करने) में कोई ज़बर्दस्ती नहीं है.
कुरान ५:३२ मैं कहा गया है की अगर किसी ने एक बेगुनाह इंसान की जान ली तो यह ऐसा हुआ जैसे पूरे इंसानियत का क़त्ल किया और अगर किसी ने एक इंसान की जान बचाई तो उसने पूरी इंसानियत की जान बचाई.
२: १९० . जो तुम से लड़े, तुम भी उनसे अल्लाह की राह में जंग करो, परन्तु हद से न बढ़ो (क्योंकि) अल्लाह हद से बढ़ने वालों से प्रेम नहीं करता। २: १९२ . अगर वह अपने हाथ को रोक लें तो अल्लाह बड़ा क्षमा करने वाला और दयावान है।
जब इस्लाम इस रक्षात्मक जिहाद मैं इतनी शर्तें लगा सकता है तो यह इंसानों की जान लेने जैसी हरकतों को कैसे सही ठहरा सकता है, जिसमें यह भी नहीं पता होता की मरने वाला, बच्चा है, की औरत, बूढा है या , जवान, गुनाहगार है या बेगुनाह ?
इस्लाम ने उन लोगों को दो चेहरे वाला (मुनाफ़िक़) कहा है जो इस्लाम का नाम ले के कुरान की हिदायत के खिलाफ कोई भी काम अंजाम देते हैं. कुरआन में कहा गया है की (मुनाफ़िक़ यह समझते हैं कि) वह अल्लाह व मोमिनों को धोका दे रहे हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि वह स्वयं को धोका देते हैं, लेकिन वह इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं।
की बेहतरीन मिसाल आप को वाक़ए कर्बला मैं देखने को मिलेगी और यहीं पे जिहाद और युद्ध या आतंकवाद का फर्क भी देखने को मिलेगा. इमाम हुसैन (अ) का आन्दोलन मानव इतिहास की एक अमर घटजिहाद ना है। सन 61 हिजरी में दसवीं मोहर्रम को जो कुछ कर्बला की धरती पर हुआ, वह केवल एक असमान युद्ध और एक दुख भरी कहानी नहीं थी । ये घटना सदगुणों के सम्मुख अवगुणों और भले लोगों से अत्याचारियों का युद्ध थी ।
कर्बला में क्या हुआ अगले लेख में ..इंतज़ार करें
कल 07/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
जिहाद के ऊपर ऊपर सारगर्वित लेख बहुत सुंदर लगी
ReplyDeleteAlso Read जिहाद क्या है ? here https://hi.letsdiskuss.com/What-is-Jihad
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