परदे अपने दिलों दिमाग से हटा डालो |
इंसान अशरफुल मख्लुकात है लेकिन यह इंसान अपने में इतना मशगूल हो जाया करता है की वो अपनी सलाहियतों को भी नहीं पहचान पाता | इंसान को चाहिए क...

यह हिजाब अपने ज़हन पे हमने अपने गुनाहों और तमन्नाओं का का डाल रखा है उसकी ही वजह से हम अपनी मुक़म्मल ताक़तों का इस्तेमाल नहीं कर पाते और अपने रब से दूर रहते हैं जबकि हमारा रब हमारे करीब हर वक़्त रहता है |
इमाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया है : यह हिजाब वह शयातीन हैं जिन्हों ने हमारे आमाल की वजह से हमारे अन्दर नफ़ूज़(घुस) कर के हमारे दिल के चारों तरफ़ से घेर लिया है। अगर शयातीन बनी आदम के दिलों का आहाता न करते तो वह आसमान के मलाकूत को देखा करते।
क्या आप ने कभी ऐसे वक़्त हवाई जहाज़ का सफ़र किया है जब आसमान पर घटा छाई हो ? ऐसे में हवाई जहाज़ तदरीजन ऊपर की तरफ़ उड़ता हुआ आहिस्ता आहिस्ता बादलों से गुज़र कर जब उपर पहुँच जाता है, तो वहाँ पर सूरज पूरे ज़ोर के साथ चमकता मिलता है और सब जगह रौशनी फैली होती है। इस मक़ाम पर पूरे साल कभी भी काले बादल नही छाते और सूरज अपनी पूरी आबो ताब के साथ चमकता रहता है क्योँ कि यह मक़ाम बादलों से ऊपर है।
यह ताज्जुब की बात है कि अल्लाह तो हम से बहुत नज़दीक है ; लेकिन हम उस से दूर हैं, आख़िर ऐसा क्योँ ? जब वह हमारे पास है फिर हम उस से जुदा क्यों हैं ? क्या यह बिल कुल ऐसा ही नही है कि हमारा दोस्त हमारे घर में बैठा है और हम उसे पूरे जहान में ढूँढ रहे हैं।
और यह हमारा सब से बड़ा दर्द, मुश्किल और बद क़िस्मती है जब कि इसके इलाज का तरीक़ा मौजूद है।
agar insaan ishvar ke paas hai to usake dil aur dimag par ye parda padata hi nahin hai lekin ham sirph usake hi kareeb jane kee koshish nahin karte hain balki duniyan kee tamam aiso aaram ke liye bhatakate rahate hain aur usake liye na jaane kitne gunah kar dalate hain.
ReplyDeleteरेखा जी आपकी यह टिपण्णी मेरे दिल को छु गयी | इतनी गहरी और समझ बड़े बड़े ज्ञानिओं में नहीं हुआ करती | मैंने वो लेख लिखा अवश्य था लेकिन आशा नहीं थी की कोई समझेगा |
ReplyDeleteआभार
एस एम् मासूम
हर चीज़ की कामयाबी अपने मक़सद को पूरा करने के साथ वाबस्ता है। दुनिया की हर चीज़ वही काम कर रही है, जिसके लिए वह बनी है सिवाय इंसान के। आप इंसान से पूछिये कि उसे दुनिया में क्यों भेजा गया है ?
ReplyDeleteहरेक इंसान अलग जवाब देगा। वे नहीं जानते कि उनके जीवन का असली मक़सद क्या है ?
मक़सद भूलने के बाद हर इंसान अलग रास्ते पर चल पड़ा। कोई ख़ुदा के क़रीब वैसे ही रहा जैसे कि अपनी पैदाईश के वक्त सब थे और बाक़ी ख़ुदा से दूर होते चले जा रहे हैं। इमामों का सारी इंसानियत पर अहसाने अज़ीम है कि उन्होंने पूरी इंसानियत को उसका भूला हुआ मक़सद याद दिलाया और उसे सीधा रास्ता दिखाया और अपनी जानो माल की ऐसी अज़ीम क़ुरबानियां दीं कि वे इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गईं। अब रास्ता सबके सामने है। जो उस पर नहीं चलता। वह जानबूझकर ख़ुद भटक रहा है।
जो ख़ुद भटकता है, उसे ख़ुदा भी राह नहीं दिखाता।