इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम एक वैज्ञानिक चिन्तक और दार्शनिक थे

इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम  एक वैज्ञानिक चिन्तक और दार्शनिक थे आप की पैदाइश :-  हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु की विलादत बसआ...

इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम  एक वैज्ञानिक चिन्तक और दार्शनिक थे

आप की पैदाइश :- हज़रत सय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु की विलादत बसआदत 17, रबीउल अव्वल बरोज़ पीर के दिन 80, हिजरी या 83, हिजरी मदीना शरीफ में हुई, में
आप हज़रत सय्यदना इमाम मुहम्मद बाक़र रदियल्लाहु अन्हु के बेटे हैं और हज़रत इमाम ज़ैनुल अबिदीन रदियल्लाहु अन्हु के पोते और शहीदे कर्बला हज़रते सय्यदना इमाम हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के पर पोते थे,

आप का इसमें मुबारक कुन्नियत व लक़ब :- आप का नाम “जाफर बिन मुहम्मद” कुन्नियत अबू अब्दुल्लाह अबू इस्माईल, और लक़ब “सादिक़” “फ़ाज़िल” और “ताहिर” है,

आप की वालिदा मुहतरमा :- आप की वालिदा मुहतरमा  का नाम “उम्मे फरवाह” है 

आप का हुलिया शरीफ :- आप बड़े हसीनो जमील और निहायत शकील खूब सूरत थे, क़द मुबारक जच्चा तुला रंग गंदुम गेहूं जैसा, बाक़ी सूरतो सीरत में अपने आबाओ अजदाद के मिस्ल थे,



आज जिनकी याद में तमाम शिया कुंडों की नजर अपने घरों में दिलाते है, उनमें से बहुत लोग नहीं जानते कि वह दुनिया के पहले ऐसे वैज्ञानिक थे जिन्होंने 1400 साल पहले ही ब्रह्माण्ड के बारे में ऐसी बातें बताई जो बहुत बाद में अन्य वैज्ञानिकों ने बहुत खोज करके सही सिद्ध कर दी, उन्होंने लगभग 1400 साल पहले ही बता दिया था कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है और चौकोर नहीं गोल है। जिसे बाद में गैलेलीयो ने सही सिद्ध किया।
 
ज़ाफ़र अल सादिक़ (जन्म 20 अप्रैल 700) अरब के हज़रत अली की चौथी पीढी में थे। उनके पिता इमाम मोहम्मद बाक़र एक वैज्ञानिक थे और मदीना में पढ़ाया करते थे। उनके दादा जैनुल अब्दीन अलैहिस्सलाम थे।
सादिक ने अरस्तू की चार मूल तत्वों की थ्योरी से इनकार किया और कहा कि मुझे आश्चर्य है कि अरस्तू ने कहा कि विश्व में केवल चार तत्व हैं, मिटटी, पानी, आग और हवा. मिटटी स्वयं तत्व नहीं है बल्कि इसमें बहुत सारे तत्व हैं। इसी तरह जाफर अल सादिक ने पानी, आग और हवा को भी तत्व नहीं माना। हवा को भी तत्वों का मिश्रण माना और बताया कि इनमें से हर तत्व सांस के लिए ज़रूरी है। मेडिकल साइंस में इमाम सादिक ने बताया कि मिटटी में पाए जाने वाले सभी तत्व मानव शरीर में भी होते हैं। इनमें चार तत्व अधिक मात्रा में, आठ कम मात्रा में और आठ अन्य सूक्ष्म मात्रा में होते हैं।

परिचय
जाफ़र सादिक़ का मुख़्तसर तआरुफ़ यह एक वैज्ञानिक, चिन्तक और दार्शनिक थे,यह आधुनिक केमिस्ट्री के पिता जाबिर इब्ने हय्यान (गेबर) के उस्ताद थेयह अरबिक विज्ञान के स्वर्ण युग का आरंभकर्ता थे इन्हों ने विज्ञान की बहुत सी शाखाओं की बुनियाद रखी. 20 अप्रैल 700 में अरबिक भूमि पर जन्मे उस वैज्ञानिक का नाम था जाफर अल सादिक। इस्लाम की एक शाखा इनके नाम पर जाफरी शाखा कहलाती है जो इन्हें इमाम मानती है।जबकि सूफी शाखा के अनुसार ये वली हैं. इस्लाम की अन्य शाखाएँ भी इनकी अहमियत से इनकार नहीं करतीं.

इमाम जाफर अल सादिक हज़रत अली की चौथी पीढी में थे. उनके पिता इमाम मुहम्मद बाक़र स्वयं एक वैज्ञानिक थे और मदीने में अपना कॉलेज चलाते हुए सैंकडों शिष्यों को ज्ञान अर्पण करते थे. अपने पिता के बाद जाफर अल सादिक ने यह कार्य संभाला और अपने शिष्यों को कुछ ऐसी बातें बताईं जो इससे पहले अन्य किसी ने नहीं बताई थीं.

उन्होंने अरस्तू की चार मूल तत्वों की थ्योरी से इनकार किया और कहा कि मुझे आश्चर्य है कि अरस्तू ने कहा कि विश्व में केवल चार तत्व हैं, मिटटी, पानी, आग और हवा. मिटटी स्वयं तत्व नहीं है बल्कि इसमें बहुत सारे तत्व हैं. इसी तरह जाफर अल सादिक ने पानी, आग और हवा को भी तत्व नहीं माना. हवा को भी तत्वों का मिश्रण माना और बताया कि इनमें से हर तत्व सांस के लिए ज़रूरी है. मेडिकल साइंस में इमाम सादिक ने बताया कि मिटटी में पाए जाने वाले सभी तत्व मानव शरीर में भी होते हैं. इनमें चार तत्व अधिक मात्रा में, आठ कम मात्रा में और आठ अन्य सूक्ष्म मात्रा में होते हैं. आधुनिक मेडिकल साइंस इसकी पुष्टि करती है.

उन्‍होंने एक शिष्य को बताया, "जो पत्थर तुम सामने गतिहीन देख रहे हो, उसके अन्दर बहुत तेज़ गतियाँ हो रही हैं." उसके बाद कहा, "यह पत्थर बहुत पहले द्रव अवस्था में था. आज भी अगर इस पत्थर को बहुत अधिक गर्म किया जाए तो यह द्रव अवस्था में आ जायेगा."

ऑप्टिक्स (Optics) का बुनियादी सिद्धांत 'प्रकाश जब किसी वस्तु से परिवर्तित होकर आँख तक पहुँचता है तो वह वस्तु दिखाई देती है.' इमाम सादिक का ही बताया हुआ है. एक बार अपने लेक्चर में बताया कि शक्तिशाली प्रकाश भारी वस्तुओं को भी हिला सकता है. लेजर किरणों के आविष्कार के बाद इस कथन की पुष्टि हुई. इनका एक अन्य चमत्कारिक सिद्धांत है की हर पदार्थ का एक विपरीत पदार्थ भी ब्रह्माण्ड में मौजूद है. यह आज के Matter-Antimatter थ्योरी की झलक थी. एक थ्योरी इमाम ने बताई कि पृथ्वी अपने अक्ष के परितः चक्कर लगाती है. जिसकी पुष्टि बीसवीं शताब्दी में हो पाई. साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि ब्रह्माण्ड में कुछ भी स्थिर नहीं है. सब कुछ गतिमान है.

ब्रह्माण्ड के बारे में एक रोचक थ्योरी उन्होंने बताई कि ब्रह्माण्ड हमेशा एक जैसी अवस्था में नहीं होता. एक समयांतराल में यह फैलता है और दूसरे समयांतराल में यह सिकुड़ता है.

कुछ सन्दर्भों के अनुसार इमाम के शिष्यों की संख्या चार हज़ार से अधिक थी. दूर दूर से लोग इनके पास ज्ञान हासिल करने के लिए आते थे. इनके प्रमुख शिष्यों में Father of Chemistry जाबिर इब्ने हय्यान, इमाम अबू हनीफ़ा, जिनके नाम पर इस्लाम की हनफी शाखा है, तथा मालिक इब्न अनस (Malik Ibn Anas), मालिकी शाखा के प्रवर्तक, प्रमुख हैं.

हज़रत ईमाम जाफर ए सादिक अलेह सलाम

हज़रत ईमाम जाफर ए सादिक अ.स.आईम्मा ए अहलेबेत के 12 ईमामों मे से छठे ईमाम हैं आप की विलादत मदीना मुनव्वरा मे 17 रब्बी उल् अव्वल 83 हिजरी मुताबिक 20 अप्रेल 702 ईसवी बरोज जुमेरात हुई आप के वालिद हज़रत ईमाम मोहम्मद बाकिर अलेह सलाम और वालदा फरदा बिन्ते कासिम रजि• बिन्ते इब्ने मोहम्मद रजि• बिन हज़रत अबूबक्र सिद्दिक रज़ि• थीं
आप का इल्म कमालत, माहारत, शर्क से गर्ब तक मशहुर है सब का इत्तेफाक है के आप के इल्म से तमाम उलेमा तक कासिर थे
सुन्नियों के सब से बड़े ईमाम फिकह हज़रत ईमाम अबू हनीफा नोमानी रजि• आप के शागीर्द थे और अकीदत भी रखते थे
हज़रत ईमाम अबू हनीफा ब गरज हूसूल फैज़ ज़ाहीरी और बातिनी दो साल ईमाम ज़ाफर ए सादिक अ.स. की खीदमत मे रहे
इनका सुलूक बातिनी ईमाम की खीदमत मे ही मुकम्मल हुआ और जब रुख्सत हुए तो हमेशा फरमाते थे अगर दो साल खिदमत के ना मिलते तो नोमान हलाक हो जाता
नकशबंदी सिलसिले के बड़े बुजूर्ग सुलतान उल अरीफींन हज़रत बायज़िद बिस्तामी रज़ि• अरसे तक सिक्का (पानी भरने वाले ) दरगाह ए ईमाम जाफर ए सादिक अ.स. रहे हज़रत बायज़िद बिस्तामी रज़ि• का काम और मरतबा आप ही की निगाह ए करम से तकमील को पहूँचा!
वोह कारमात ओ तसर्रूफात जो आपके आबा ओ अजदाद के वक़्त से परदे मे थे आप से बिला तकल्लूफ ज़ाहिर हुए वोह अजीब तरीन इल्म जो वारिसतन सरकार ए दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सिना ब सिना चले आ रहे थे आप ने ज़ाहीर किये (इस किताब बारह ईमामेंन मे इलमों के नाम और तफसील लिखी गयी है )
"आप फरमाते थे पुछलो जो कुछ पूछना है हमारे बाद कोई ऐसी बातें बताने वाला नही होगा"
आप से बहुत सी करामात ज़ाहीर हुई
एक दिन हज़रत ईमाम जाफर ए सादिक अलेह सलाम एक गली में से गुजर रहे थे देखा एक औरत अपने बाल बच्चों के साथ बेठी
रो रही है आप ने उस से दरयाफत किया क्यूँ रो रही हो ?
उसने कहा मेरे पास एक गाय थी जिसके दूध पर मेरा और मेरे बच्चों का गुजारा था अब वोह गाय मर गयी हेरान हूँ क्या करूँ
ईमाम अलेह सलाम ने दुआ की और अपना पांव गाय पर मारा गायी खडी हुई और चलने लगी !
मुख्तसर ज़िक्र किताब "बारह ईमामेंन ए मासुमीन" से लिया गया है
इमाम जाफर सादिक (अ) इस्लाम के महान धर्माधिकारी हुए हैं. ये पैगम्बर मुहम्मद(स.) की छठी पीढ़ी में थे और उमय्यद वंश के अंतिम व अब्बासी दौर के प्रारम्भ में हुए हैं. इन के ज़माने में इस्लाम की खुशबू पूरी दुनिया में फैल चुकी थी। और यह खुशबू थी इस्लाम के ज्ञान और सच्चाई की। ज्ञान की तलाश में भटकते दूर दराज़ के लोग इस्लामी विद्वानों से आकर मिलते थे और फायदा हासिल करके वापस जाते थे। इस बार मैं आपको ऐसा ही वाक़िया बताने जा रहा हूं जब एक हिन्दुस्तानी चिकित्सक इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम से आकर मिला। वह इमाम को अपना ज्ञान देना चाहता था, लेकिन हुआ इसका उल्टा और वह खुद इमाम से ज्ञान हासिल करके वापस हुआ।

यह वाक़िया दर्ज है शेख सुद्दूक (अ.र.) की लिखी ग्यारह सौ साल पुरानी किताब अललश-शरअ में निम्न शीर्षक के अंतर्गत “(भाग 1 बाब 87) वह सबब जिस की बिना पर इंसान में आज़ा व जवारेह पैदा हुए” । उपरोक्त किताब उर्दू में आसानी से उपलब्ध् है और कोई भी इसे हासिल करके तस्दीक कर सकता है। किताब में लिखा पूरा वाकिया मैं हूबहू उतार रहा हूं।

एक दिन हज़रत इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम दरबार में तशरीफ लाये। उस वक्त खलीफा मंसूर के पास एक मर्द हिन्दी (हिन्दुस्तानी) चिकित्सा की किताबें पढ़कर मंसूर को सुना रहा था। इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम खामोश बैठे सुनते रहे। जब वह मर्द हिन्दी सुनाकर फारिग हुआ तो इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम से बोला जो कुछ मेरे पास है वह आपको चाहिए? तो इमाम ने फरमाया नहीं, इसलिये कि तुम्हारे पास जो कुछ है उससे बेहतर हमारे पास खुद मौजूद है। उसने कहा आपके पास क्या है?

इमाम ने फरमाया मैं सर्दी का इलाज गर्मी से करता हूं और गर्मी का सर्दी से। तरी का खुशकी से इलाज करता हूं और खुशकी का तरी से और तमाम फैसले खुदा के हवाले कर देता हूं। रसूल अल्लाह (स.) ने जो कुछ फरमाया है उसपर अमल करता हूं। चुनान्चे रसूल (स.) ने ये फरमाया कि वाजय रहे कि मेदा (पेट) बीमारियों का घर है और बुखार खुद एक दवा है और मैं बदन को उस तरफ पलटाता हूं जिस का वह आदी है।

मर्द हिन्दी ने कहा कि यही तो तिब (चिकित्सा) है इस के अलावा और क्या है। इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने फरमाया क्या तुम्हारा ये ख्याल है कि मैंने किताबें पढ़कर ये सबक हासिल किया है? उस ने कहा जी हाँ। आपने फरमाया नहीं, खुदा की कसम मैंने जो कुछ लिया है सिर्फ अल्लाह से लिया है। अच्छा बताओ मैं इल्म तिब ज्यादा जानता हूं या तुम? मर्द हिन्दी ने कहा नहीं आप से ज्यादा मैं जानता हूं। इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने फरमाया अच्छा ये दावा है तो मैं तुम से कुछ सवाल करता हूं।

ऐ हिन्दी ये बताओ कि सर में हड्डियों के जोड़ क्यों है? उसने कहा मैं नहीं जानता। आपने फरमाया और सर के ऊपर बाल क्यों बनाये गये हैं? उस ने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया और पेशानी (माथे) को बालों से खाली क्यों रखा गया है। उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया और पेशानी पर ये खुतूत और लकीरें क्यों हैं? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया दोनों भवों को दोनों आँखों के ऊपर क्यों बनाया गया? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। फरमाया बताओ आँखें बादाम की तरह क्यों बनाई गयीं? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया ये नाक दोनों आँखों के दरमियान क्यों बनाई गयी? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। फरमाया नाक के सुराख नीचे क्यों हैं? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया होंठ और मूंछें मुंह के ऊपर क्यों बनाई गयीं? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। फरमाया बताओ सामने के दाँत तेज़ क्यों हैं? दाढ़ के दाँत चौड़े और साइड के लम्बे क्यों हैं? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया मर्दों के दाढ़ी क्यों निकलती है? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। फरमाया बताओ नाखूनों और बालों में जान क्यों नहीं होती? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया बताओ इंसान का दिन सुनोबरी शक्ल में क्यों बनाया गया? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। फरमाया बताओ फेफड़ों को दो टुकड़ों में क्यों बनाया गया? और उसकी हरकत अपनी जगह पर क्यों है? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया बताओ जिगर उभरा हुआ कुबड़े की शक्ल में क्यों है? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। फरमाया बताओ गुरदा लोबिया की दाने की शक्ल में क्यों है? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया बताओ घुटने पीछे की तरफ क्यों मुड़ते हैं? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने फरमाया तुझे नहीं मालूम ये दुरुस्त है लेकिन मुझे मालूम है। अब मर्द हिन्दी ने कहा आप बताईए।

इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि सर में हड्डियों के जोड़ इसलिए हैं कि ये अन्दर से खोखला है अगर ये बिला जोड़ और बिला फस्ल हों तो बहुत जल्द सर में दर्द होने लगेगा। जोड़ व फस्ल की वजह से सरदर्द दूर रहता है। 

सर पर बालों की पैदाइश इसलिए है ताकि उसकी जड़ों के जरिये तेल वगैरा दिमाग तक पहुंचे और उस के किनारों से नुकसानदायक बुखारात निकलते रहें और सर गर्मी व सरदी के असर को दूर रखे। 

पेशानी (माथे) को बालों से खाली इसलिए रखा गया कि वहाँ से आँखों की तरफ रोशनी की रेजिश होती है और पेशानी पर खुतूत (लकीरें) इसलिए हैं कि सर से जो पसीना बह कर आँखों की तरफ आये वह इस पर रुका रहे जिस तरह ज़मीन पर नहरें और दरिया जो पानी को फैलने से बचाते हैं। 

और आँखों पर दोनों भवें इसलिए पैदा की गयीं ताकि आँखों तक ज़रूरत से ज्यादा रोशनी न पहुंचे। ऐ हिन्दी क्या तुम नहीं देखते कि रोशनी तेज़ होती है तो लोग अपनी आँखों पर हाथ रख लेते हैं ताकि हद से ज्यादा रोशनी आँखों तक न पहुंचे। 

इन दोनों आँखों के दरमियान नाक अल्लाह ने इसलिए रख दी ताकि दोनों के बीच रोशनी बराबर से तक़सीम (वितरित) हो जाये। 

आँखों को बादाम की शक्ल में इसलिए बनाया ताकि उसमें सुरमे की सलाई दवा के साथ मुनासिब तौर पर चल सके और आँखों का मर्ज दूर हो सके। 

नाक के सुराख इसलिए नीचे रखे ताकि दिमाग से जो खराब माद्दा निकले वह नीचे गिर जाये और नाक से खुशबू ऊपर जाये। अगर ये सुराख ऊपर होते तो न दिमाग का फासिद माद्दा नीचे गिरता और न किसी शय की खुशबू वगैरा मिलती। 

और मूंछें व होंठ मुंह के ऊपर इसलिए रखे गये ताकि वह दिमाग से बहते हुए फासिद माद्दे को रोके और मुंह तक न पहुंचे ताकि इंसान के खाने पीने की चीज़ों को गंदा न करे।

 और मरदों के चेहरे पर दाढ़ी इसलिए ताकि एक नज़र में औरत मर्द की पहचान हो सके। और पता चल जाये कि आँखों के सामने मर्द है या औरत। 

सामने के दाँतों को तेज़ इसलिए बनाया कि इससे चीज़ों को काटते हैं और दाढ़ के दाँत चौकोर इसलिए कि उससे गिज़ा को पीसना है और किनारे के दाँतों को लम्बा इसलिए रखा ताकि दाढें और सामने के दाँत मज़बूती से जमे रहें। जिस तरह किसी इमारत के सुतून (पिलर) होते हैं।

हथेलियों को बालों से अल्लाह ने इसलिए खाली रखा कि इंसान इसी से छूता और मस करता है। अगर इनमें बाल हों तो इंसान को पता न चले कि क्या चीज़ छू रहा है और बाल व नाखून को जिंदगी से इसलिए खाली रखा कि उनका लम्बा होना गन्दगी का सबब है। उनका तराशना अच्छा है। अगर दोनों में जान होती तो इंसान को उन्हें काटने में तकलीफ होती।

और दिल सुनोबर के फल की तरह इसलिए है कि वह सरंगूं रहे और उस का सर पतला रहे, इसलिए कि वह फेफड़ों में दाखिल होकर उससे ठंडक हासिल करे। ताकि उसकी गरमी से दिमाग भुन न जाये। 

फेफड़ों को दो टुकड़ों में इसलिए बनाया ताकि उन दोनों के भिंचने और दबाव में वह अन्दर रहे और उन की हरकत से राहत हासिल करे। 

और जिगर को कुबड़े की शक्ल इसलिए दी ताकि वह मेदे पर वज़न डाले और पूरा उसपर गिर जाये और निचोड़ दे ताकि वह बुखारात वगैरा जो उसमें हैं निकल जायें। 

और गुरदे को लोबिया के दानों की शक्ल इसलिए दी क्योंकि मनी (वीर्य) का अनज़ाल इसी पर बूंद बूंद होता है। अगर ये चौकोर या गोल होता तो पहला कतरा दूसरे को रोक लेता और उस के निकलने से किसी जानदार को लज्ज़त न महसूस होती। क्योंकि मनी रीढ़ की गिरहों से गुर्दे पर गिरती है जो कपड़े की तरह सिकुड़ता और फैलता रहता है और मनी को एक एक क़तरा करके मसाने की तरफ फेंकता रहता है जैसे कमान से तीर। 

और घुटने को पीछे की तरफ इसलिए अल्लाह ने मोड़ा कि इंसान अपने आगे की तरफ चले तो उस की हरकत मातदिल (बैलेन्स्ड) रहे, अगर ऐसा न होता तो आदमी चलने में गिर पड़ता।

उस मर्द हिन्दी ने कहा आपको ये इल्म कहाँ से मिला? फरमाया मैंने ये इल्म अपने आबाये कराम से और उन्होंने रसूल अल्लाह (स.) से और उन्होंने हज़रते जिब्रील (अ.) से और उन्होंने उस रब्बुलआलमीन से जिसने तमाम अजसाम व अरवाह को खल्क किया। उस मर्द हिन्दी ने कहा आप सच फरमाते हैं, मैं गवाही देता हूं कि नहीं है कोई अल्लाह सिवाय उसी अल्लाह के और मोहम्मद उसी अल्लाह के रसूल और बन्दे हैं। और आप अपने ज़माने के सबसे बड़े आलिम हैं।

मुसन्नीफ - मोलाई व मूर्शीदी मेहबूब उल् अरीफींन हज़रत सय्यद मेहबूब उर् रहमान कादरी ,चिश्ती नियाजी र.अ.विडंबना रही कि दुनिया ने इमाम जफ़र अल सादिक की खोजों को हमेशा दबाने की कोशिश की. इसके पीछे उस दौर के अरबी शासकों का काफी हाथ रहा जो अपनी ईर्ष्यालू प्रकृति के कारण इनकी खोजों को दुनिया से छुपाने की कोशिश करते रहे.
इसके पीछे उनका डर भी एक कारण था. इमाम की लोकप्रियता में उन्हें हमेशा अपना सिंहासन डोलता हुआ महसूस होता था. इन्हीं सब कारणों से अरबी शासक मंसूर ने 765 में इन्हें ज़हर देकर शहीद कर दिया. और दुनिया को अपने ज्ञान से रोशन करने वाला यह सितारा हमेशा के लिए धरती से दूर हो गयाl 


Discover Jaunpur , Jaunpur Photo Album

Jaunpur Hindi Web , Jaunpur Azadari

 

Related

इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम 1617564919722945909

Post a Comment

emo-but-icon

Follow Us

Hot in week

Recent

Comments

इधर उधर से

Comment

Recent

Featured Post

नजफ़ ऐ हिन्द जोगीपुरा का मुआज्ज़ा , जियारत और क्या मिलता है वहाँ जानिए |

हर सच्चे मुसलमान की ख्वाहिश हुआ करती है की उसे अल्लाह के नेक बन्दों की जियारत करने का मौक़ा  मिले और इसी को अल्लाह से  मुहब्बत कहा जाता है ...

Admin

item