आज ज़रूरत है ऐसे उलेमा की | मौलाना सैय्यद अली क़ासिम रिज़वी मरहूम

मौलाना सैय्यद अली क़ासिम रिज़वी मरहूम  आज यह ज़रूरी हो गया है की हम अपने दौर के उन उलेमा को क़रीब से जानें जिनका किरदार हर दौर में लोगों को...

मौलाना सैय्यद अली क़ासिम रिज़वी मरहूम 

आज यह ज़रूरी हो गया है की हम अपने दौर के उन उलेमा को क़रीब से जानें जिनका किरदार हर दौर में लोगों को सही राह दिखाएगा क्यों की आज यह लोग कहने लगे हैं की क़ुरआन पे और अहादीस पे आज कौन चलता है ? 

आज आपके सामने एक आलिम का ज़िक्र है जिन्होंने दौलत और शोहरत को कभी अहमियत नहीं दी और ना ही कभी अपने इल्म का इस्तेमाल शोहरत कमाने के लिए किया | जो भी उनसे मिलने जाता कोई भी वक़त हो फ़ौरन हाज़िर हो जाते थे | 


मेरे लखनऊ रहाइश  के दौरान मेरा मरहूम मौलाना क़ासिम साहब से मिलना जुलना बहुत रहा करता था और अक्सर तहसीन गंज जमा मस्जिद लखनऊ में बाद नमाज़ उनके साथ बैठने और सीखने का मौक़ा मिलता था  और अगर कुछ दिन न जाता तो मरहूम पैदल चार किलोमीटर चल के खैरियत लेने आया करते हैं | न घमंड न कोई अकड़ बस यूँ समझ लीजे की घर वाले भी उनसे अक्सर नाराज़ हो जाते थे की इतना सीधा होना ठीक नहीं जबकि रुसूख़ में या इल्म में उनका मुक़ाबला करने वाले लखनऊ में कम ही थे  | 

इस्लामी इंक़िलाब के अलम्बरदार इमाम खुमैनी (रआ) की तहरीक में साथ रहने वाले और उनके उर्दू अनुवादक मौलाना सैय्यद अली क़ासिम रिज़वी  ने बड़ी सादगी के साथ ज़िन्दगी गुज़ारी | वाज़ेह रहे मौलाना अली क़ासिम रिज़वी ने मज़हबी तालीम लखनऊ के सुल्तानुल मदारिस से सदरुल्लाह फ़ाज़िल किया था इसके बाद वह ईरान उच्च शिक्षा के लिए चले गए जहाँ पर उन्होंने इस्लामी क्रांति में इमाम खुमैनी का साथ देते हुए हिस्सा लिया और इमाम खुमैनी के उर्दू अनुवादक के तौर पर काम करते हुए अपना किरदार अदा किया। उसके बाद वह 1988 में लखनऊ आ गए और ज़हरा कॉलोनी मुफ्तीगंज में रहने लगे।   


अपने सादे और इन्क़िलाबी विचारों के लिए मौलाना अली क़ासिम ने कम वक़्त में ज़्यादा मक़बूलियत हासिल कर ली। 

आज से तक़रीबन चार साल पहले मौलाना अली क़ासिम अपनी दो बेटियों और बहन के साथ ज़ियारत के लिए इराक गए थे और वहीँ  नजफ़ के होटल में लिफ्ट से चोट लग जाने के कारण ज़ख़्मी हुए और वहीँ इंतेक़ाल हुआ | मौलाना को नजफ़ स्थित वादी उस सलाम क़ब्रिस्तान में सुपुर्द ए ख़ाक किया गया। 

मरहूम मौलाना अली क़ासिम ने  एक हफ्ता पहले बहन को कर्बला में इंतेक़ाल हो जाने की वजह से वहीँ दफ़न किया और  बाद में खुद नजफ़ ए अशरफ में स्थित वादी उस सलाम कबरिस्तान में जगह पा कर जवरहे-ए-मासूमीन में जगह पाने की तस्दीक कर दी।  

दुनिया ने देखा अल्लाह के नेक बन्दों को अल्लाह कैसे इज़्ज़त देता है | 

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