नमाज़ क़ौल ऐ मासूमीन (अ.स) के आईने में |

لا تَزالُ اُمَّتى بِخَيرٍ ما تَحابّوا وَ اَقامُوا الصَّلاةَ و َآتَوُا الزَكاةَ و َقَروا الضَّيفَ... ؛
हमेशा मेरे उम्मती खैरो बरकत को देखेंगे जब तक की एक दूसरे से मौहब्बत करते रहे, नमाज पढ़ते रहे, जकात देते रहे और मेहमान की इज़्ज़त करते रहे।
(अमाली शेख तूसी पेज न. 647 हदीस न. 1340)
दुआ रहमत की चाबी है। और वुज़ु नमाज़ की चाबी और नमाज़ जन्नत की चाबी है।
(नहजुल फसाहा पेज न. 485 हदीस न. 1588)
أَوَّلُ الْوَقْتِ رِضْوَانُ اللَّهِ وَ آخِرُهُ عَفْوُ اللَّه
अव्वले वक्त मे नमाज़ पढ़ना खुशनूदीऐ खुदा और आखिरे वक्त मे नमाज़ पढ़ना बखशिशे खुदा है।
(मनला यहज़रोहुल फक़ीह जिल्द 1 पेज न. 217 हदीस न. 651)
لَو يَعلَمُ المُصَلّى ما يَغشاهُ مِنَ الرَّحمَةِ لَما رَفَعَ رَأسَهُ مِنَ السُّجودِ
अगर नमाज़ पढ़ने वाला जान ले कि नमाज़ पढ़ते वक्त उस पर कितनी रहमते खुदा बरस रही है तो हरगिज़ सजदे से सर नही उठाऐगा।
(गुरारूल हिकम पेज न. 175 हदीस न. 3347)
اُنظُر فيما تُصَلّى و َعَلى ما تُصَلّى اِن لَم يَكُن مِن وَجهِهِ و َحِلِّهِ فَلا قَبولَ
5. इमाम अली (अ.स)
देखो कि तुम किस लिबास मे और किस चीज़ पर नमाज़ पढ़ रहे हो अगर हलाल माल से खरीदे हुऐ नही है तो नमाज़ कुबुल नही होगी।
(तोहफुल उक़ूल पेज न. 174)
مَن قَبِلَ اللّه مِنهُ صَلاةً واحِدَةً لَم يُعَذِّبهُ و َمَن قَبِلَ مِنهُ حَسَنَهً لَم يُعَذِّبهُ
परवरदिगारे आलम जिस की एक नमाज़ को कुबुल कर लेगा या उसकी एक नेकी को कुबुल कर लेगा तो उसको कभी अज़ाब नही करेगा।
(उसूले काफी जिल्द न. 3 पेज न. 266 हदीस न. 11)
يُعرَفُ مَن يَصِفُ الحَقَّ بِثَلاثِ خِصالٍ: يُنظَرُ اِلى اَصحابِهِ مَن هُم؟ و َاِلى صَلاتِهِ كَيفَ هىَ؟ و َفى اَىِّ وَقتٍ يُصَلّيها
जो शख्स भी अपनी हक्कानियत का दम भरता हो तो उसकी पहचान के तीन तरीक़े हैः
1. देखो कि उसके दोस्त कैसे लोग है।
2. उसकी नमाज़ कैसी है।
3. और वो किस वक्त नमाज़ पढ़ता है।
(महासिन पेज न. 254 हदीस न. 281)
أَقرَبُ ما یَکُونُ العَبدُ إلَی اللهِ وَ هُوَ ساجِدٌ
बंदे को परवरदिगार के सबसे ज्यादा नजदीक कर देने वाली हालत, हालते सजदा है।
(उसूले काफी जिल्द 3 पेज न. 324 हदीस 11)
أَثَافِيُّ الْإِسْلَامِ ثَلَاثَةٌ الصَّلَاةُ وَ الزَّكَاةُ وَ الْوَلَايَةُ لَا تَصِحُّ وَاحِدَةٌ مِنْهُنَّ إِلَّا بِصَاحِبَتَيْهَا.
इस्लाम की बुनयाद तीन चीज़ो पर हैः
1) नमाज़
2) ज़कात
3) और विलायत
और उनमे से कोई एक भी दूसरे के बग़ैर सही नही है।
(काफी जिल्द न. 2 पेज न. 18 हदीस न. 4)
اِنَّ مِن تَمامِ الصَّومِ اِعطاءُ الزَّکاةِ یَعنى الفِطرَة کَما اَنَّ الصَّلَاةَ عَلَى النَّبِى (صلی الله علیه و آله و سلم) مِن تَمامِ الصَّلَاةِ
रोज़े की तकमील फितरा अदा करना है इसी तरह नमाज़ की तकमील नबी पर सलवात भेजना है।
(मनला यहज़रोहुल फक़ीह जिल्द 2 पेज न. 183 हदीस न. 2085)
اَفضَلُ ما یَتَقَرَّبُ به العَبدُ اِلی اللهِ بَعدِ المَعرِفَةِ به، الصَلاةُ
मारेफते खुदा के बाद अफज़लतरीन चीज़ के जो बंदे को खुदा के क़रीब करती है, नमाज़ है।
(तोहफुल उक़ूल पेज न. 391)
لِکُلِّ شَیءٍ وَجهٌ وَ وَجهُ دینِکم الصَّلاةُ؛
हर चीज का एक चेहरा है और तुम्हारे दीन का चेहरा नमाज़ है।
(उसूले काफी जिल्द न. 3 पेज न. 270 हदीस न. 16)
لا یَنالُ شَفاعَتی مَن اَخَّرَ الصَّلاةَ بَعدَ وَقتِها
जो शख्स भी नमाज़ को उस वक्त के बाद पढ़ेगा उसे हमारी शफाअत नसीब नही होगी।
(बिहारूल अनवार जिल्द न. 80 पेज न. 20, हदीस न. 35)
مَن صَلّی رَکعَتَینِ یَعلَمُ مایَقولُ فِیهما اِنصَرَفَ وَ لَیسَ بَینَه وَ بَینَ اللهِ - عَزَّ وَ جَلَّ - ذَنبٌ
जो शख्स भी दो रकअत नमाज़ इस हाल मे पढ़े कि जानता हो (और समझता हो) कि क्या कह रहा है। और इसी हाल मे नमाज़ को खत्म करे तो उसके और खुदा के दरमियान कोई गुनाह बाकि नही है।
(यानी उसके तमाम गुनाह जो खुदा से ताल्लुक़ रखते थे माफ कर दिये गऐ।)
(मकारिमुल अखलाक़ पेज न. 300)
لا یَنالُ شَفاعَتَنا مَن استَخَفَّ بِالصَّلاة
जिसने नमाज़ को हल्का समझा उसे हमारी शिफाअत नसीब नही होगी।
(उसूले काफी जिल्द 3 पेज न. 270, हदीस न. 15)
الصَّلاةُ حِصنٌ مِن سَطَواتِ الشَّیطانِ
नमाज़ एक मज़बूत किला है कि जो बंदे को शैतान के हमलो से बचाता है।
(गुरारूल हिकम पेज. न. 175 हदीस न. 3343)
فَجَعلَ اللهُ الایمانَ تَطهیراً لَکم مِنَ الشِّرکِ ، وَ الصَّلاةَ تَنزیهاً لَکم عَن الکِبرِ
खुदा वंदे आलम ने ईमान को शिर्क से पाकीज़गी और नमाज़ को तकब्बुर से दूर रखने के लिऐ करार दिया है।
(अहतेजाजे तबरसी जिल्द न. 1 पेज न. 99)
اَحَبُّ الاعمالِ اِلَی اللهِ الصَّلاةُ لِوَقتِها ثُمَّ بِرُّ الوالِدَین ثُمَّ الجِهادُ فی سَبیلِ اللهِ
खुदा वंदे आलम के नज़दीक सबसे महबूब तरीन अमल नमाज़ को उसके वक्त पर पढ़ना है उसके बाद माँ-बाप से नेकी करना और खुदा की राह मे जंग करना है।
(नहजुल फसाहा, पेज न. 167, हदीस न. 70)