जानिए अखबारियों के लिए अयातुल्लाह खामनाइ क्या कहते हैं |
इस्लाम में अल्लाह ने यह कोशिश करने को अहमियत दी है की दुनिया में जितने भी इंसान है सबको इंसानियत के रिश्ते से एक करके रखो , झगड़ों और...

इस्लाम में अल्लाह ने यह कोशिश करने को अहमियत दी है की दुनिया में जितने भी इंसान है सबको इंसानियत के रिश्ते से एक करके रखो , झगड़ों और मतभेद से परहेज़ करो और अगर किसी का अक़ीदा आप से टकरा जाय या अलग हो तो उसे मुहब्बत से अपना अक़ीदा समझाओ लेकिन किसी को बुरा भला कहना और इंसानियत के रिश्ते ख़त्म करना किसी तरह से भी मुनासिब नहीं यहां तक की जिसे काफिर कहा जाता है उसके साथ भी इंसानियत के रिश्ते रखने का हुक्म है |
दुनिया में बहुत से मज़हब हैं और यहां तक की छोटी छोटी बातों के अक़ीदे के फ़र्क़ पे मुसलमानो में अनगिनत फ़िरक़े है तो क्या हम एक दुसरे को बुरा भला कहते हुए पूरी दुनिया को नफरत से भर दें ? नहीं इसकी इजाज़त इस्लाम नहीं देता |
लेकिन जब जब बादशाओं को अपनी गद्दी बचाने के लिए ज़रुरत हुयी तो उन्होंने इसी मज़हबी या अक़ीदे के फ़र्क़ को उभारा और इंसानो को बांटा , एक दुसरे के लिए दिलों में नफरत भरी जो की इस्लाम में हराम है |
अखबारी और उसूली का मसला भी बहुत पुराना है और यह उस वक़्त उभरा जाता है जब यह महसूस किया जाता है की शिया क़ौम को बाँटना है और जब मक़सद ख़त्म हो जाता है कोई सांस भी नहीं लेता की ऐसा कोई मसला है भी या नहीं |
आज सोशल मीडिया पे जिसे जो दिल में आता है लिख देता है और " सेल्फ मेड मोमिनो "का तो ऐसा हाल है की किरदार से कहीं उनमे हुसैन नज़र नहीं आता | इसका सुबूत यह है की मसला चाहे अखबारी का हो या अज़ादारी का "सेल्फ मेड मोमिन" इसे फ़ौरन उठा लेते हैं और सामने वाले के खिलाफ गलियों , ग़ीबत ,झूट, तोहमतों और नफरतों का ऐसा सिलसिला शुरू हो जाता है जो खुलेआम इस्लाम के उसूलों की धंज्जियाँ उड़ाता नज़र आता है | यक़ीनन लोगों को आप बताएं की अखबारी अक़ीदा सही नहीं और अपने भाइयों को इल्मी लेहाज़ से समझाएं की इस से कैसे बचा जा सकता है लेकिन इसके लिए तरीक़ा भी इस्लामी ही होना चाहिए | गैर इस्लामी तरीक़ा बता देता है की आपकी यह जंग अल्लाह की राह में नहीं बल्कि इसका मक़सद दुनियावी है|
आज कल कुछ ज़ाकिरों और शोरा को निशाने पे रख के इस अखबारी के मसले पे मामला गर्म है और ज़किरों या शोरा हज़रात को ऐसे महफ़िलों से परहेज़ करना चाहिए जहां ग़लत अक़ीदे का इज़हार हो और क़ौम की गुमराही का खौफ हो लेकिन तरीक़ा भी सही नहीं की उनका वीडियो तलाश के उनके खिलाफ लोगों को लानत करने , गालियां बकने के लिए उकसाया जाय और क़ौम को नफरत की आग में झोंका जाय | सबसे बेहतर तरीका है इल्मी लिहाज़ से अखबारियात के खिलाफ मज़मून लिखें और लोगों को बेदार करें |
१९९७ से अखबारियात और मलंगों का मसला इंटरनेट पे सबसे गरम टॉपिक रहा है और जब जब शिया क़ौम को बाँटने की ज़रुरत पेश आती है जैसे माह ऐ मुहर्रम में तो यह गर्म मुद्दों को हवा दे दी जाती है और शुरू हो जाता है इस्लाम के क़वानीन की धज्जियां उड़ाता नफरतों का खेल | २००३ में जब यह मुद्दा उठा तो हमारे मित्र ने इस मसले में अयातुल्लाह खामेनाइ से सवाल किया ताकि लोगों को समझाया जा सके की इस अखबारियात के मसले पे हम क्या करें |
सवाल के जवाब में अयातुल्लाह ख़ामेनई से कहा जहां तक अखबारियों के मुसलमान होने का सवाल है तो वे मुसलमान हैं , पाख है , उनके हाथ का खाना पीना सही है हालाँकि की वे सही राह से भटके हुए हैं |
आप को चाहिए की नरमी के साथ मुहब्बत के साथ उन्हें समझाएं और लोगों को भी इस अखबारियत के गलत होने के बारे इल्मी लिहाज़ से समझाएं |
ख्याल रहे अखबारियत तो तक़लीद के खिलाफ हैं ही जो की गलत है लेकिन जो लोग अखबारियात के खिलाफ अपने मरजा ऐ तक़लीद के बताय तरीके को अपना ते हुए नहीं बोलते वे भी तक़लीद से इंकार करने वालों में ही गिने जाएंगे |

From: Inqelaab
To: Imam Khameneis Office in Qom
Sent: Thursday, October 23, 2003 6:29 PM
Subject: Question about Akhbariyat
dear brothers and sisters in Islam,
I would like to ask a religious question to my Marja-e-Taqleed and our
Wilayat-e-Faqih Hazrat Imam Khamenei (may Allah shower HIS blessings on
him).
Dear Imam Khamenei, as Salam Aleykum
I wanted to ask you a
important religious question about a new group among Ithna Asheriyyah
Shia, which is called Ithna Asheriyyah Imamiyah Akhbari.
Masoomeen(as). But they reject Marjiyat and the conept of Taqleed, saying,
that they are doing taqleed of Imam al-Mahdi (as) directly.
like the Wali-e-Faqih Imam Khamenei, and also Imam Khomeini (r.), they
absolutely disrespect he great Ulema of Shia, sometimes even from the pulpit (Minbar).
The Akhbari believe that the shahaadah of Aliyun Waliullah is obligatory(wajib) in
every namaaz in the tashahud. Furthermore Akhbaris believe, that
the quran has been changed and Azadari of Imam al-Mazloom (as) is more important
than prayer. They have also constructed a internet website http://www.akhbari.org there you
can read more of their beliefes. They are nowadays very active among shia especially in
Muharram during Majaalis of ShuhDah-e-Kerbala (as). They tell wrong things about Islam
and also write wrong books. The Akhbaris are confusing many of our shia brothers and
sisters.
Some true shia preachers have said that the religion of Akhbariat is different
from true shiism and that these people are Kuffar. My question is now:
2) Is it permissible to eat and drink from them?
3) How should the shia brothers and sisters warned against the Akhbari
religion, because many people don’t know about them?
From: istiftaa
To: Inqelaab
Sent: Saturday, November 01, 2003 2:27 PM
Subject: 17167e
The answer is as follows:
1) As long as their belief does not make them denying the fundamental of
the religion or the prophethood of the Last Prophet Muhammad (s.), they
are rued as Muslims and taahir (pure) although their deviation is confirmed.
morals, getting good information through reading, to be able to guide them.
You may also make the others aware of their deviated thoughts.
is due to great deal of work and the huge number of emails reaching us from
all over the world.
wassalam
With Thanks to..
