अली! यह वही है जिसको पा कर तुमने शुक्र का सजदा किया था...

विलायत पोर्टल : घर में सन्नाटा छाया हुआ था और शौहर बाहर गए हुए थे, वह तन्हा थी और अपने हुजरे में बंद अपने रब से मुलाक़ात के लिए ख़ुद को तै...

विलायत पोर्टल : घर में सन्नाटा छाया हुआ था और शौहर बाहर गए हुए थे, वह तन्हा थी और अपने हुजरे में बंद अपने रब से मुलाक़ात के लिए ख़ुद को तैयार कर रही थी, और अपने मालिक की तसबीह और तहलील में मसरूफ़ थी, उसके दिमाग़ में बीते हुए सारे हादसे एक के बाद एक आते जा रहे थे।


उसके बाबा जब से इस दुनिया से गए थे दुनिया उससे दुश्मनी पर उतर आई थी अभी बाबा की वफ़ात को कुछ ही दिन बीते थे कि उसने देखा उसका शौहर उसका हमदम न जाने किन विचारों में खोया हुआ सर झुकाए हुए घर के एक कोने में बैठा है, वह क़रीब गई...
अली! निगाहें उठाओ, मेरी तरफ़ देखो...
अली! देखो यह कौन है...
अली! यह वही है जिसको पा कर तुमने शुक्र का सजदा किया था...
अली! यह वही है जिसको देख कर तुम अपना दर्द अपनी तकलीफ़ भूल जाया करते थे, मगर आज तुम्हें क्या हो गया है...

तुम अपने ग़म मुझ से नहीं बताओगे तो फिर किस से बताओगे...
अली ने अपनी आंखों में उतर आने वाले आंसुओं को अपने अंदर पीते हुए नज़रें उठाईं...
लरज़ती पलकों और थरथराते वुजूद के साथ अपनी शरीक-ए-हयात की तरफ़ देखा...
आंखों में उम्मीद और मायूसी के न जाने कितने छोटे छोटे दिये रौशन थे...
अली उनको इसी तरह रौशन देखना चाहते थे, इसीलिए अपनी निगाहें झुका ली, अली नहीं चाहते थे कि उनकी जान से ज़्यादा अज़ीज़ ज़िंदगी की साथी उससे ज़्यादा दुख झेले, बस इतना कहा, ऐ रसूल की लख़्ते जिगर ...
और आंसुओं की एक लड़ी ख़ैबर फ़तह करने वाले बहादुर के रुख़्सार पर लुढ़कती चली गई, शायद अली के यह आंसू के क़तरे अपनी ज़ुबान में फ़रियाद कर रहें हों...
ऐ रसूल की बेटी,
अली को माफ़ करना कि तुम्हारे रुख़्सार पर तमाचा लगा और मैं कुछ कर न सका, तुम्हारे बाज़ुओं पर ताज़ियाने मारे गए लेकिन मैं कुछ कर नहीं सका, तुम्हारी पसलियां टूट गईं मगर मैं कुछ कर न सका, मैं क्या करूं जब तुम्हारे ऊपर यह ज़ुल्म हो रहे थे तो मेरे गले में रस्सी का फंदा था और मेरे हाथ बंधे हुए थे।
...अपने आंसुओं को रोकने की नाकाम कोशिश करते हुए अली बिलक बिलक कर रो रहे हैं, बस इतना ही कहा, ऐ हसनैन की मां, मुझे माफ़ कर दो और ग़म की शिद्दत से अली निढ़ाल हो गए... और वह उस फ़ौलाद पैकर इंसान को देखती रही जो अंदर ही अंदर टूट कर बिखर चुका था।
यह तो बीते ज़माने की एक तस्वीर थी जो ज़ेहन के पर्दे पर आ कर उसे बेतहाशा दर्द की तकलीफ़ों में तड़पता छोड़ कर चली गई थी, फिर न जाने कितनी ही तस्वीरें उनके ज़ेहेन पर आती रहीं और वह अंदरूनी दर्द से तड़पती रही, और फिर धीरे धीरे बीते दिनों की यादों के दरवाज़े बंद होने लगे अब उनको ऐसा लग रहा था जैसे उनकी रूह निकलने ही वाली हो, उन्होंने इशारे से कनीज़ को क़रीब बुलाया और कहा, अब मैं कुछ पल से ज़्यादा ज़िंदा नहीं रह सकती, जब मेरे बच्चे आएं तो पहले उनको खाना खिला देना पानी पिला देना उसके बाद मेरे बारे में कुछ और बताना, और अली ..... न जाने वह क्या कहना चाहती थीं कि उनकी आवाज़ ने होंटों तक आते आते दम तोड़ दिया और उनकी सांसे उखड़ गईं, अब वह इस दुनिया की क़ैद से आज़ाद हो कर अपने बाबा के पास जा चुकी थीं।
नन्हे नन्हे बच्चे अपने छोटे छोटे क़दम बढ़ाते हुए घर में दाख़िल हुए, घर में आते ही दोनों ने एक साथ आवाज़ दी, अम्मा... अम्मा हम आ गए...
अम्मा! हमारे सलाम का जवाब क्यों नहीं देतीं,
बच्चे अभी मां को तलाश ही कर रहे थे कि घर की कनीज़ क़रीब आई और दोनों के सरों पर हाथ रखा और दोनों को प्यार किया और अपनी गोद में ले कर घर के आंगन में आई और कहा, बच्चों! पहले खाना खा लो फिर अम्मा से बाद में मिल लेना, बच्चों ने एक साथ कहा असमा! क्या तुमने कभी देखा है कि हमने अपनी मां के बिना खाना खाया हो, असमा जब तक हम अम्मा की आग़ोश में न जाएंगे खाना नहीं खा सकते, असमा जिन्होंने अभी तक अपने सब्र पर क़ाबू कर रखा था और बच्चों से मुस्कुरा कर मिल रही थी अब अपने आप को रोक न सकी और रो पड़ी, हिचकियों और आंसुओं को रोकने की नाकाम कोशिश करते हुए असमा ने जो कहा उसको सुन कर बच्चों ने बस यहा कहा, अम्मा!!!
नन्हे नन्हे बच्चों की आवाज़ हवा को कांधों पर सवार हो कर न जाने कितनी दूर तक गई... मगर हां फिर ऐसा लगा जैसे हर एक चीज़ चीख़ मार कर रो रही हो, दर व दीवार रो रहे हों, आसमान आंसू बहा रहा हो, ज़मीन हिचकियां ले रही हो... हर तरफ़ बस एक ही आवाज़ आ रही थी, मां! मां! मां!
ऐसा लग रहा था जैसे उन बच्चों के साथ ज़मीन और आसमान का एक एक ज़र्रा रो रहा हो, ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उन बच्चों ही की नहीं सारी दुनिया की मां चली गई हो, और ऐसा ही था....
कुछ ऐसा ही तो था कि वह उन बच्चों ही की नहीं हम सब की मां थी, हमारा वुजूद हमारी पैदाइश उसी एक मां के वुजूद की देन थी, बल्कि यह पूरी दुनिया उसी के सदक़े में पैदा की गई है, वह दुनिया का मरकज़ थीं, वह इस दुनिया की ज़िंदगी का कारण थीं, वह फ़ातिमा (सलामुल्लाहे अलैहा) थीं, हक़ीक़त में वह एक मां थीं। ......

Related

fatema 2191489577522991399

Post a Comment

  1. हां, यह बिना किसी संदेह के एक अच्छा ब्लॉग है।

    ReplyDelete

emo-but-icon

Follow Us

Hot in week

Recent

Comments

इधर उधर से

Comment

Recent

Featured Post

नजफ़ ऐ हिन्द जोगीपुरा का मुआज्ज़ा , जियारत और क्या मिलता है वहाँ जानिए |

हर सच्चे मुसलमान की ख्वाहिश हुआ करती है की उसे अल्लाह के नेक बन्दों की जियारत करने का मौक़ा  मिले और इसी को अल्लाह से  मुहब्बत कहा जाता है ...

Admin

item