सेक्स करने के तरीके के असरात बच्चे के किरदार पे होते हैं |



इस्लाम  में शादी (निकाह) का तात्पर्य सेक्सी इच्छा की पूर्ति के साथ-साथ सदैव नेक व सहीह व पूर्ण संतान का द्रष्टिगत रखना भी है। इसी लिए आइम्मः-ए-मासूमिन (अ.) ने मैथुन के लिए महीना, तारीख, दिन, समय और जगह को द्रष्टिगत रखते हुवे अलग-अलग असरात (प्रभाव) बताये है जिसका प्रभाव बच्चे पर पड़ता है।

कमर दर अक्रब (अर्थात जब चाँद व्रश्चिक राशि मे हो) और तहतशशुआअ (अर्थात चाँद के महीने के वह दो या तीन दिन जब चाँद इतना महीन होता है कि दिखाई नही देता) में मैथुन करना घ्रणित है। (तहज़ीब अल इस्लाम पेज 108)

तहतशशुआअ में मैथुन करने पर बच्चे पर पड़ने वाले प्रभाव से सम्बनधित इमाम-ए-मूसी-ए-काज़िम (अ.) ने इर्शाद फ़र्माया किः


जो व्यक्ति अपनी औरत से तहतशशुआअ में मैथुन करे वह पहले अपने दिल में तय करले कि पैदाइश (हमल, गर्भ, बच्चा) पूर्व होने से पहले गर्भ गिर जायेगा। (औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तकीन में यही हदीस इमाम ए जाफर ए सादिक (अ.) से नक्ल है )

तारीख से सम्बन्धित इमाम-ए-जाफ़र-ए-सादिक (अ.) ने फ़र्मायाः

महीने के आरम्भ, बीच और अन्त में मैथुन न करो क्योंकि इन मौकों में मैथुन करना गर्भ के गिर जाने का कारण होता है और अगर संतान हो भी जाए तो ज़रूरी है कि वह दीवानगी (पागलपन) में मुब्तला (ग्रस्त) होगी या मिर्गी में। क्या तुम नहीं देखते कि जिस व्यक्ति को मिर्गी की बीमारी होती है, या उसे महीने के शुरू में दौरा होता है या बीच में या आखिर में। (तहज़ीब अल इस्लाम पेज 108- 109)

दिनों के हिसाब से बुद्धवार की रात में मैथुन करना घ्रणित बताया गया है इमाम-ए-जाफ़र-ए-सादिक (अ.) का इर्शाद है किः

बुद्धवार की शाम को मैथुन (संभोग) करना उचित नहीं है। (तोहफत अल अवामपेज 430)

जहाँ तक समय का सम्बन्ध है उसके लिए ज़वाल (बारह बजे के आस पास) औऱ सूर्यास्त के समय सुबह शुरू होने के समय से सूर्योदय तक के अलावा पहली घड़ी में संभोग नही करना चाहिए। क्योंकि अगर बच्चा पैदा हुआ तो शायद जादूगर हो और दुनियां को आख़िरत पर इख़्तियार करे। 

यह बात रसूल-ए-खुदा (स.) ने हज़रत अली (अ.) को वसीयत करते हुवे इर्शाद फर्मायी किः

या अली (अ.) रात की पहली घड़ी (पहर) में संभोग न करना क्योंकि अगर बच्चा पैदा हुआ तो शायद जादूगर हो और दुनियां को आख़िरत पर इख्तियार करे। या अली (अ.) यह वसीयतें (शिक्षाऐं) मुझ से सीख लो जिस तरह मैने जिबरईल से सीखी है। (तहज़ीब अल इस्लामपेज 113)

वास्तव में रसूल-ए-खुदा (स.) की यह वसीयत (अन्तिम कथन) केवल हज़रत अली (अ,) से नही है बल्कि पूरी उम्मत से है। इसी वसीयत में रसूल-ए-खुदा (स,) ने मक्रूहात (घ्रणित मैथुन) की सूची इस तरह गिनाई हैः

.......ऐअली (अ.) उस दुल्हन को सात दिन दूध, सिरका, धनिया और खटटे सेब न खाने देना। हज़रत अमीरूल मोमिनीन (अ.) ने कहा किः या रसूलल्लाह (स.) इसका क्या कारण है ? फ़र्माया कि इन चीज़ो के खाने से औरत का गर्भ ठंडा पड़ जाता है और वह बाँझ हो जाती है और उसके संतान नही पैदा होती।

या अली (अ.) अपनी बीवी से महीने के शुरू, बीच, आखिर में संभोग न किया करो कि उसको और उसके बच्चों को दीवानगी, बालखोरः (एक तरह की बीमारी) कोढ़ और दिमाग़ी ख़राबी होने का डर रहता है।

 या अली (अ,) ज़ोहर की नमाज़ के बाद संभोग न करना क्योंकि बच्चा जो पैदा होगा वह परेशान हाल होगा। 

या अली (स,) संभोग के समय बातें  करना अगर बच्चा पैदा होगा तो इसमें शक नहीं कि वह गूँगा हो। और कोई व्यक्ति अपनी औरत की योनि की तरफ न देखे बल्कि इस हालत में आँखें बन्द रखे। क्योंकि उस समय योनि की तरफ देखना संतान के अंधे होने का कारण होता है।


बातें न करने से सम्बन्धित ही इमाम ए जाफऱ ए सादिक (अ) ने इर्शाद फर्माया किः
अगर संभोग के समय बात किया जाए तो ख़ौफ है कि बच्चा गूँगा पैदा हो और अगर उस हालत में मर्द औरत की तरफ देखे तो खौफ है कि बच्चा अन्धा पैदा हो। (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज 109)

 या अली (अ,) जब किसी और औरत के देखने से सेक्स या इच्छा पैदा हो तो अपनी औरत से संभोग न करना क्योंकि बच्चा जो पैदा होगा नपुंसक या दिवाना होगा। 

या अली (अ.) जो व्यक्ति जनाबत (वीर्य निकलने के बाद) की हालत में अपनी बीवी के बिस्तर में लेटा हो उस पर लाज़िम है कि क़ुर्आन-ए-करीम न पढ़े क्योंकि मुझे डर है कि आसमान से आग बरसे और दोनों को जला दे।

 या अली (अ,) संभोग करने से पहले एक रूमाल अपने लिए और एक अपने बीवी के लिए ले लेना। ऐसा न हो कि तुम दोनों एक ही रूमाल प्रयोग करो कि उस से पहले तो दुश्मनी पैदा होगी और आखिर में जुदाई तक हो जाएगी

 या अली (अ.) अपनी औरत से खड़े खड़े संभोग न करना कि यह काम गधों का सा है। अगर बच्चा पैदा होगा तो वह गधे ही की तरह बिछौने पर पेशाब किया करेगा

 या अली (अ,) ईद-उल-फितर की रात संभोग न करना कि अगर बच्चा पैदा होगा तो उससे बहुत सी बुराईयां प्रकट होंगी। 

या अली (अ,) ईद-उल-क़ुर्बान की रात संभोग न करना अगर बच्चा पैदा होगा तो उसके हाथ में छः उँगलियाँ होंगी या चार। या अली (अ,) फलदार पेड़ के नीचे संभोग न करना अगर बच्चा पैदा होगा तो या क़ातिल व जल्लाद (हत्यारा) होगा या ज़ालिमों (अत्याचारों) का लीडर। 


या अली (अ,) सूर्य के सामने संभोग न करना मगर यह कि परदः डाल लो क्योंकि अगर बच्चा पैदा होगा तो मरते दम तक बराबर बुरी हालत और परेशानी में रहेगा। 

या अली (अ,) अज़ान व अक़ामत के बीच संभोग न करना। अगर बच्चा पैदा होगा तो उसकी प्रव्रति खून बहाने की ओर होगी।

या अली (अ,) जब तुम्हारी बीवी गर्भवती हो तो बिना वज़ू के उस से संभोग न करना वरना बच्चा कनजूस पैदा होगा। 


या अली (अ,) शाअबान की पन्द्रहवीं तारीख को संभोग न करना वरना बच्चा पैदा होगा तो लुटेरा और ज़ुल्म (अत्याचार) को दोस्त रखता होगा और उसके हाथ से बहुत से आदमी मारें जायेंगे। 

या अली (अ. कोठे पर संभोग न करना वरना बच्चा पैदा होगा तो मुनाफिक़ और दग़ाबाज़ होगा। 

या अली (अ.) जब तुम यात्रा (सफर) पर जाओ तो उस रात को संभोग न करना वरना बच्चा पैदा होगा तो नाहक़ (बेजा) माल खर्च करेगा और बेजा खर्च करने वाले लोग शैतान के भाई हैं और अगर कोई ऐसे सफर में जायें जहाँ तीन दिन का रास्ता हो तो संभोग करे वरना अगर बच्चा पैदा हुआ तो अत्याचार को दोस्त रखेगा।(तहज़ीब अल इस्लाम पेज 111-112)

जहाँ रसूल-ए-खुदा (स.) ने उपर्युक्त बातें इर्शाद फ़र्मायीं हैं वहीं किसी मौक़े पर यह भी फ़र्माया किः

उस खुदा कि कसम जिस की क़ुदरत में मेरी जान है अगर कोई व्यक्ति अपनी औरत से ऐसे मकान में संभोग करे जिस में कोई जागता हो और वह उनको देखे या उनकी बात या सांस की आवाज़ सुने तो संतान जो उस मैथुन से पैदा होगी नाजी न होगी (अर्थात उसे मोक्ष नहीं प्राप्त हो सकती) बल्कि बलात्कारी होगी। 

शायद इसी लिए इमाम-ए-ज़ैनुल आबिदीन (अ,) जिस समय संभोग का इरादः करते तो नौकरों को हटा देते, दरवाज़ा बन्द कर देते, पर्दः डाल देते और फिर किसी नौकर को उस कमरे के करीब आने की इजाज़त (आज्ञा, अनुमति) नहीं होती थी। ( तहज़ीब अल इस्लाम पेज 110, 115)

अतः ज़रूरी अहतेयात यह है कि अच्छे और बुरे की तमीज़ (समझ) न रखने वाले बच्चे के सामने भी मैथुन न करें। क्योंकि इस से बच्चे के बलात्कार की ओर आकर्षित होने का डर है।

यह भी घ्रणित है कि कोई एक आज़ाद (स्वतन्त्र) औरत के सामने दूसरी आज़ाद औरत से संभोग करे।

और आप ही ने इर्शाद फ़र्माया किः

तीन चीज़ शरीर के लिए बहुत खतरनाक (हानिकारक) बल्कि कभी हलाक करने वाली (प्राण घातक) भी होती है। पेट भरे होने की हालत में हमाम में जाना (अर्थात स्नान करना) पेट भरा होने की हालत में संभोग और बूढ़ी औरत से संभोग करना। (हयात ए इन्सान के छः मरहले पेज 38)


संभोग के समय इसका भी ख्याल (ध्यान) रखना चाहिए किः

अगर किसी के पास कोई ऐसी अंगूठी हो जिस पर कोई नामे खुदा हो उस अंगूठी को उतारे बिना संभोग न करे। (तहज़ीब अल इस्लाम पेज 115-116, 110-111)

जहाँ यह सभी चीज़े हैं वहीं काबे की तरफ मुँह करके संभोग करना घ्रणित है। इमाम-ए-जाफ़र-ए-सादिक़ (अ.) से सवाल करने वाले ने सवाल किया किः

क्या मर्द नंगा (निर्वस्त्र) होकर संभोग कर सकता है। फ़र्माया नहीं। इसके अतिरिक्त न ही क़िब्ले की ओर मुँह करके संभोग कर सकता है न काबे की ओर पीठ करके और न ही किश्ती में। (225)



जबकि आधुनिक युग के अधिकतर जोड़े पूरे नंगे होकर (अर्थात पूरे कपड़े उतार कर) संभोग करने से अधिक स्वाद और आन्नद महसूस करते हैं और यह कहते हैं कि इस से संभोग में कई गुना बढ़ोतरी हो जाती है। लेकिन उन्हे यह मालूम नहीं कि इस तरह मैथुन क्रिया से पैदा होने वाले बच्चे बेशर्म होते हैं। रसूल-ए-अकरम ने फ़र्मायाः

जंगली जानवरों की तरह नंगे न हो, क्योंकि नंगे होकर संभोग करने से संतान बेशर्म पैदा होती है। (कानून ए मुबाशरत पेज 12)

बहरहाल अगर बहुत ज़्यादा ग़ौर से देखा जाए तो मालूम होगा कि सभी मकहूरात (घ्रणित मैथुन) संभोग से अधिकतर बच्चे का फायदः (अर्थात शारीरिक कमीयों से पाक) होगा और कुछ (जैसे संभोग के बाद लगी हुई गंदगी को दूर करने के लिए मर्द और औरत से अलग-अलग रूमाल होने) में औरत और मर्द का फायदः (अर्थात दुश्मनी या जुदाई न होना) होगा।

याद रखना चाहिए कि जिस तरह घ्रणित मैथुन से मर्द और औरत या बच्चे का लाभ होगा उसी तरह पुनीत मैथुन (मुस्तहिबाते जिमाअ) से औरत और मर्द या बच्चे का ही लाभ होगा।


पुनीत मैथुनः पिछले अध्याय में लिखा जा चुका है कि संभोग के समय वज़ू किये होना और बिस्मिल्लाह कहना पुनीत है। वास्तव में यह इस्लाम धर्म की सर्वोच्च शिक्षाऐं है कि वह व्यक्ति को ऐसे हैजानी, जज़बाती और भावुक माहौल (संभोग के समय) में भी अपने खुदा से बेखबर नही होने देना चाहता। जिसका अर्थ यह है कि एक सच्चे मुस्लमान का कोई काम खुदा की याद या खुदा के क़ानून से अलग हट कर नही होता है। उसके दिमाग़ में हर समय यह बात रहती है कि वह दुनियां का हर काम (यहाँ तक कि मैथुन भी) खुदा कि खुशनूदी के लिए करता है ------ यही कारण है कि ऐसा खुदा का नेक, अच्छा व्यक्ति जिस समय सेक्सी इच्छा की पूर्ति कर रहा होता है उस समय खुदा अपने छिपे हुए खज़ाने से, उसके लिए संतान जैसी वह महान नेअमत (अर्थात ईश्वर का दिया हुआ वह महान धन) तय करता है जो दीन (धर्म) और दुनिया के लिए लाभदायक और प्रयोग योग्य सिद्ध होती है।


दिन के हिसाब से सेक्स करने के नतीजे |

उसी नेक औऱ लाभदायक और प्रयोग योग्य संतान प्राप्त करने के लिए जहाँ रसूल-ए-खुदा (स.) ने हज़रत अली (अ,) को घ्रणित मैथुन की शिक्षा दी है वहीं पुनीत मैथुन से सम्बन्धित बताया है किः

या अली (अ,) सोमवार की रात को मैथुन करना अगर संतान पैदा हुवी तो हाफिज़े क़ुर्आन और खुदा की नेअमत पर राज़ी व शाकिर होगी। 

या अली (अ,) अगर तुम ने मंगलवार की रात को मैथुन किया तो जो बच्चा पैदा होगा वह इस्लाम की सआदत (प्रताप) प्राप्त करने के अलावा शहादत का पद (मरतबा) भी पायेगा। मुँह से उसके खुशबूँ आती होगी। दिल उसका रहम (दया) से भरा होगा। हाथ का वह सखी (दाता) होगा। और ज़बान उसकी दूसरों की बुराई और उनसे सम्बन्धित ग़लत बात कहने से रूकी रहेगी। 

या अली (अ,) अगर तुम ब्रहस्पतिवार की रात को मैथुन करोगे तो जो बच्चा पैदा होगा वह शरीअत का हाकिम (पदाधिकारी) होगा या विद्धान और अगर ब्रहस्पतिवार के दिन ठीक दोपहर के समय मैथुन करोगे तो आखिरी समय तक शैतान उस के पास न आ सकेगा और खुदा उसको दीन और दुनिया में तरक्की देगा। 

या अली (अ,) अगर तुम ने शुक्रवार की रात को मैथुन किया तो बच्चा जो पैदा होगा वह बात चीत में बहुत मीठा और सरल व सुन्दर मंजी हुवी भाषा के बोलने वालों में प्रसिद्ध होगा और कोई बोलने वाला (व्याखता) उसकी बराबरी न कर सकेगा और अगर शुक्रवार के दिन अस्र की नमाज़ के बाद मैथुन करे तो बच्चा जो पैदा होगा वह ज़माने के बहुत ही बुद्धिजीवीयों में गिना जाएगा। अगर शुक्रवार की रात इशाअ की नमाज़ के बाद मैथुन किया तो उम्मीद है कि जो बच्चा पैदा होगा वह पूर्ण उत्तराधिकारियों (वली-ए-कामिल) में गिना जाएगा। (तहज़ीब अल इस्लामपेज 112-113 व तोहफः ए अहमदया भाग (2) पेज 141)

पुनीत मैथुन से सम्बन्धित यह भी मिलता है कि छुप कर मैथुन करना चाहिए जैसा कि ऊपर भी वर्णन किया जा चुका है कि इमाम-ए-ज़ैनुल आबेदीन (अ,) जब भी संभोग का इरादः करते थे तो दरवाज़े बन्द करते, उन पर पर्दः डालते और किसी को कमरे की तरफ न आने देते थे। छुप कर संभोग करने ही से सम्बन्धित उन घ्रणित मैथुन को भी दृष्टिगत रखा जा सकता है जिसमें अच्छे और बुरे की पहचान न रखने वाले बच्चे के सामने भी संभोग करने को मना किया गया है। या एक आज़ाद (स्वतन्त्र) और से मौजूदगी (उपस्थिति) में दूसरी आज़ाद औरत के साथ मैथुन करने को भी घ्रणित बताया गया है। अतः इस से यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो जाती है कि छुप कर मैथुन करना ही पुनीत (मुस्तहिब) है। इसी से सम्बन्धित रसूल-ए-खुदा (स.) ने इर्शाद फ़र्माया किः

कव्वे की सी तीन आदतें सीखो। छुप कर मैथुन करना, बिल्कुल सुबह रोज़ी की तलाश में जाना, दुश्मनों से बहुत बचे रहना। (तहज़ीब अल इस्लाम पेज (114) व (109) व औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तकीन पेज 314)

पुनीत मैथुन में यह भी मिलता है कि कोई भी व्यक्ति अपनी औरत से फौरन संभोग न करे। बल्कि पहले छाती, रान आदि को मसले, सहलाए, (अर्थात मसास करे) छेड़-छाड़ और मज़ाक करे। इस बात को सेक्सी शिक्षा के विद्धानों ने माना है। उनकी दृष्टि में एकदम से संभोग करने पर मर्द का वीर्य शीघ्र ही निकल जाता है जिसके कारण मर्द की इच्छा तो पूरी हो जाती है लेकिन औरत की इच्छा पूरी नहीं हो पाती। जिसकी वजह से औरत अपने मर्द से नफ़रत करने लगती है। शायद इसी लिए प्राकृतिक धर्म इस्लाम ने मसास (मसलना, सहलाना) चूमना चाटना छेड़-छाड़, हंसी-मज़ाक, प्यार व मुहब्बत की बातें आदि को पुनीत करार दिया है ताकि औरत उपर्युक्त कार्यों से संभोग के लिए पूरी तरह तैय्यार हो जाए और जब उससे संभोग किया जाए तो वह भी मर्द की तरह से पूरी तरह सेक्सी संतुष्टि (अर्थात स्वाद और आन्नद) प्राप्त कर सके। इसीलिए रसूल-ए-खुदा ने इर्शाद फ़र्माया किः

जो व्यक्ति अपनी औरत से संभोग करे वह मुर्ग़ की तरह उस के पास न जाए बल्कि पहले मसास और छेड़-छाड़ी हंसी मज़ाक करे उसके बाद संभोग करे। (229)

यही वजह है कि जिस समय इमाम-ए-जाफ़र-ए-सादिक़ (अ,) से किसी ने पूछा किः

अगर कोई व्यक्ति हाथ या उंगली से अपनी बीवी  की योनि के साथ छेड़-छाड़ करे तो कैसा ? फ़र्माया कोई नुकसान नहीं लेकिन बदन (शरीर) के हिस्सों (अंगों) के अलावा कोई और चीज़ (वस्तु) उस स्थान में प्रवेश न करे। (231)

अर्थात औरत को संभोग के लिए पूरी तरह तैय्यार करने और गर्म करने के लिए मर्द औरत की योनि (शर्मगाह) में अपनी उंगली या शरीर के किसी अंग से छेड़-छाड़ कर सकता है ताकि औरत और मर्द को पूरी तरह से सेक्सी स्वाद और आन्नद प्राप्त हो सके।


याद रखना चाहिए कि इमाम ए जाफर ए सादिक (अ) से संभोग से सम्बन्धित निम्नलिखित बातें भी पूछी गयी कि
(अ) अगर संभोग के समय औरत या मर्द के मुँह से कपड़ा हट जाए तो कैसा। फर्माया कुछ हर्ज नहीं।
(ब) अगर कोई संभोग करने की हालत में अपनी औरत का बोसा ले (प्यार करे) तो कैसा। फर्माया कुछ हर्ज नही। (इस तरह करने से सेक्सी स्वाद व आनन्द काफी हद तक बढ़ जाता है। जिसका अहसास (अनुभव) औरत और मर्द दोनों को होता है।) (तकी अली आबदी)
(स) अगर कोई व्यक्ति अपनी औरत को नंगा कर के देखे तो कैसा। फर्माया न देखने में स्वाद व आनन्द ज़्यादा है।
(द) क्या पानी में संभोग कर सकते हैं। फर्माया कोई हर्ज नहीं।
और इमाम रज़ा (अ) से पूछा गया कि हम्माम (स्नानग्रह) में संभोग कर सकते हैं। फर्माया कुछ हर्ज नहीं। (देखिए तहज़ीब अल इस्लामपेज (109) व 110)


तौज़ीह अल मसाएल (उर्दू) मुहम्मद रज़ा गुलपाएगानी पेज (391) और अबू अल कालिस अल खूई के अमलये मे मिलता है कि
मर्द को अपनी जवान और विवाहित बीवी से चार महीनें में एक बार ज़रूर संभोग करना चाहिए। (देखिए तौज़ीह अल मसाएल अल खूई पेज 287
वर्तमान युग में कुछ जगह ज़रूर यह देखने में आया है कि अगर मर्द पहली रात (अर्थात सुहाग रात) में अपनी नई नवेली दुल्हन से किसी वजह से संभोग नही करता तो लड़की के घर वाले (मुख्य रूप से माँ) मर्द के नामर्द (नपुन्सक) होने का यकीन करके विभिन्न प्रकार की बातें करने लगते है जबकि उन्हे दो चार दिन हालात को देख कर ही फैसला करना चाहिए न कि पहले ही दिन।

 इमाम ए ज़ैनुल आबेदीन (अ) ने इर्शाद फर्मायाः तुम पर औरत का हक़ यह है कि उसके साथ मेहरबानी करो क्योंकि वह तुम्हारी देख भाल में है उसके खाने कपड़े का इन्तिज़ाम करोउसकी ग़लतीयों को माँफ करो। (देखिए बिहार अल अनवार भाग (47) पेज 5, खानदान का अख्लाक पेज (198) से नक्ल)



रसूल ए खुदा (स) ने इर्शाद फर्मायाः

औरत की मिसाल पसली की हड्डी सी है कि अगर उसके हाल पर रहने दोगे तो फायदः पाओगे और अगर सीधा करना चाहोगे तो सम्भव है कि वह टूट जाऐ। (संक्षिपत यह है कि ज़रा ज़रा सी अप्रसन्ताओं पर सब्र करो।) (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज 122)

जिस शहर में किसी व्यक्ति की पत्नी मौजूद हो वह उस शहर में रात को किसी दूसरे व्यक्ति के मकान में सोये और अपनी बीवी के पास न आये तो यह बात उस मकान मालिक की हलाकत (मर जाने) का कारण होगा। (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज 121,)


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