शहादत जनाब ऐ मुस्लिम के दोनों बेटे मुहम्मद और इब्राहिम की |




२८ रजब  का चला काफिला ४ शाबान को मक्का पहुंचा । इस वक़्त तक इमाम हुसैन (अ. स ) ने अभी तक यह तय नहीं किया था की उन्हें किस तरफ जाना है बस यह सोंचा रहे थे की ज़िलहिज्जा के महीने में हज करने के बाद आगे कहाँ का सफर करना है तय किया जायगा ।

उधर इराक़ के शहर कूफा में लोगों को पता चला कि इमाम हुसैन (अ स ) के साथ क्या हुआ तो उन्हें भी फ़िक्र होने लगी की कूफा में क्या होगा क्यों की वहाँ के लोग वैसे ही मुआव्विया के सताए हुए थे और उन्हें   इस बात की फ़िक्र भी रहा करती थी की हज़रत  मुहम्मद  स अ व के बताये और फैलाये इस्लाम को कही ये बातिल खलीफा इतना न बिगाड़ दें की आने वाले नसलें असल इस्लाम जो अमन और शांति का संदेश देता भुला दिया जाय । वहाँ के लोगों को एक ऐसे इमाम की ज़रुरत पेश आई जो दीन ऐ इलाही को बचा सके और उन्हें सही क़ुरआन की तफ़्सीर और अहादीस बता सके ।

ऐसे में कूफा वालों ने सुलेमान बिन सुराद के घर पे मीटिंग की और फैसला किया की इमाम हुसैन को कूफा खत लिख के बुलाया जाय  । उन सभी के अपने क़ासिद के हाथों हज़ारों की तादात में खत लिखे और इमाम को यह कह के बुलाया की उनके पास कोई इमाम नहीं है ।  खत देखने के बाद इमाम हुसैन (अ स ) ने अपने भाई जनाब ऐ मुस्लिम को कूफा भेजा जिससे वहाँ के हालात मालूम हो सकें ।

मुसलम हज़रत  अली (अ स ) के भाई अक़ील के बेटे थे और  जब जनाब ऐ मुस्लिम कूफा की तैयारी करने लगे तो इमाम हुसैन ने जनाब ऐ मुस्लिम से कहाँ की तुम अकेले जाओगे तो शायद वहाँ का गवर्नर ये ना समझ ले की तुम जंग की नीयत से आ रहे हो इसलिए अपने दो बेटों मुहम्मद जो १० साल का था और इब्राहिम जो ८ साल का था, को अपने साथ ले जाओ जिस से लोगों को लगे की तुम्हारा जंग का इरादा नहीं है । इस तरह जब जनाब ऐ मुस्लिम कूफा की जानिब अपने दो बेटो को ले के चले तो एक बेटा अब्दुल्लाह और एक बेटी रुकैया इमाम हुसैन के साथ रह  गए ।

सबसे जनाब ऐ मुस्लिम को सेहरा के एक सख्त सफर के लिए रुखसत किया । जनाब ऐ मुस्लिम जुलकाद के आखिरी दिनों में कूफा पहुंचे और वहाँ पे १८००० से ज़्यादा लोगों ने उनके हाथ पे बैयत कर ली । जनाब ऐ मुस्लिम ने इमाम हुसैन को खत लिखा की यहां १८००० से ज़्यादा लोगों ने उकी बैयत कर ली है इसलिए कूफ़े की तरफ रवाना हो जाएँ ।

इधर यह खबर यज़ीद तक भी पहुँची की जनाब ऐ  मुस्लिम कूफा पहुँच चुके हैं और जल्द ही इमाम हुसैन भी आने वाले है । यज़ीद ने फौरन अपने एक ज़ालिम गवर्नर ओबेदुल्ला इब्ने ज़ियाद को हुक्म दिया की कूफा जाय और वहाँ के नरम दिल गवर्नर नुमान इब्ने बसीर को हटा दे और वहाँ के हालात को संभाले और मुस्लिम बिन अक़ील को जितनी जल्द हो सके क़त्ल कर दे ।

इब्ने ज़ियाद जैसे ही कूफा पहुंचा उसने ऐलान करवा दिया की जो कोई भी मुस्लिम का साथ देगा उसकी सजा मौत होगी और यह भी हुक्म दिया  हो सके मुस्लिम को उनके हवाले किया जाय और कोई मुस्लिम को पनाह ना दे। इसी के साथ कूफा से बाहर जाने वाले सारे रस्ते बंद कर दिए गए ।

जनाब ऐ मुस्लिम अल मुख्तार के घर में उस वक़्त ठहरे हुए थे लेकिन खतरा देख के  जनाब ऐ हानी ने उन्हें अपने घर बुला लिया । लेकिन इब्ने ज़ियाद को इसकी खबर लग गयी और उसने जनाब ऐ हानी को बुला भेजा और मुस्लिम का पता ना बताने में उन्हें ज़ख़्मी कर के क़ैद कर दिया । जनाब ऐ मुस्लिम से सोंचा क्यों जनाब ऐ हानी के घर वालो को कोई नुकसान इब्ने ज़ियाद की तरफ से पहुंचे और घर अपने दोनों बच्चो के साथ वहाँ से निकल गए । अपने दोनों बच्चों को वहाँ के क़ाज़ी के घर पे छोड़ा और खुद निकल गए सेहरा की तरफ इस कोशिश के लिए की इमाम हुसैन से मना कर दें की वो कूफा ना आएं क्यों की िंबे ज़ियाद के खौफ से बैयत करने वालों ने बैयत छोड़ दी है ।

ये ७ ज़िलहिज्जा थी जब जनाब ऐ मुस्लिम ने पूरी  कोशिश कर ली कूफा से बाहर जाने की लेकिन सभी रास्ते बंद होने की वजह से थक के बैठ गए । ८ ज़िलहिज्जा को जनाब ऐ मुस्लिम ने एक घर के बाहर दस्तक दी तो तुआ नाम की एक साहिबा से दरवाज़ा खोला जनाब ऐ मुस्लिम ने  पानी माँगा उसके बाद पुछा कौन है मुसाफिर और जब मुस्लिम ने बताया की वो मुस्लिम बिन अक़ील हैं तो उन्हें अपने घर में बुला लिया और उन्हें खिला पिला के घर के एक कोने में सोने का इंतज़ाम कर दिया ।

 देर रात उस औरत का बेटा  घर आया और जब उसे पता चला की ये वो शख्स है जिसकी तलाश में इब्ने ज़ियाद है तो दौलत और इनाम पाने की लालच  में इब्ने ज़ियाद को खबर कर दी । सुबह होते ही इब्ने ज़ियाद के ५०० से ज़्यादा सिपाहियों ने उस घर को घेर लिए । जनाब ऐ मुस्लिम बहादुर थे और उन्होंने ३ बार फ़ौज को पीछे भगाया और इब्ने ज़ियाद फ़ौज में सिपाही बढ़ाता गया । फिर भी जब वो मुस्लिम को क़ैद ना कर सके तो उन्हने मैदान में गढ्डे खुदवा के उसे घास से धक दिया और कुछ को ऊचाई से बिठा दिया की वहाँ से पथ्थर मारे और जनाब ऐ मुस्लिम ज़ख़्मी और ढके हारे एक गढ्ढे में फँस गए ।

जनाब ऐ मुस्लिम को ५० सिपाहयो ने क़ैद कर लिया और ज़ंजीरों में बाँध के इब्ने ज़ियाद के पास ले गए । इब्ने ज़ियाद के खा की अब तुम्हारी मौत सामने है अगर कोई वसीयत हो तो बताओ । जनाब ऐ मुस्लिम ने कहा मैंने कुछ क़र्ज़ लिया है जिसे मेरी तलवार बेच के अदा कर देना । दुसरे मेरे क़ब्र में मुझे शरीयत के मुताबिक़ दफन किया जाय और तीसरे इमाम हुसैन को कूफा आने से मना कर दिया जाय । इब्ने ज़ियाद ने पहली वसीयत तो मानी लेकिन बाक़ी से इंकार कर दिया ।

जनाब ऐ मुस्लिम को दारुल अमारा की छत पे ले जाय गया जहां उनका सर क़लम करने के बाद उनके जिस्म को वहीं से नीचे फैंक दिया गया । यह ९ ज़िलहिज्जा थी और जनाब ऐ मुस्लिम की शहादत के फ़ौरन बाद जनाब ऐ हानी  को भी वैसे ही शहीद कर दिया गया ।

जनाब ऐ मुस्लिम के दोनों बेटे मुहम्मद और इब्राहिम ।

 जब जनाब ऐ मुस्लिम शहीद कर दिए गए तो उनके दोनों बेटो मुहम्मद और इब्राहिम को भी कैदी  बना लिया गया । २० ज़िलहिज्जा को जब जेलर उनको खाना देने आया तो उसने देखा दोनों नमाज़ अदा कर रहे हैं । नमाज़ ख़त्म होने के बाद उस जेलर ने उन बच्चों से पुछा की वो कौन हैं और जब उसे पता चला की ये मुस्लिम के बच्चे हैं तो उसने उन दोनों को रिहा कर दिया । दोनों ने रिहा होते ही सबसे पहले सोंचा की चलो कूफा से बाहर जाते हैं और इमाम हुसैन को यहां आने से रोक देते हैं लेकिन इतना सख्त पहरा था की दोनों जा ही नहीं सके और सुबह होने का वक़्त आ गया । दोनों ने आस पास देखा और खुद को नहर ऐ  फुरात के किनारे पाया । दोनों ने पानी फुरात से पीया और इस डर से की कोई देख ना ले एक पेड़ पे चढ़ गए और इंतज़ार  करने लगे रात होने का । इतने में एक औरत पानी भरने फुरात पे आई और उसने छुपे हुए बच्चों को देखा फिर बच्चो को बोली मैं जिनकी खादिम हूँ वो बहुत ही नेक औरत है चलो मेरे साथ वो तुम्हारी मदद ज़रूर करेगी ।

जब बच्चे उसके घर पहुंचे और उसे पता चला की ये कौन बच्चे हैं तो वो घबरा गयी क्यों की उसका शौहर हारीत इब्ने ज़्याद के लिए काम करता था जो ख़ुशक़िस्मती से घर पे नहीं था । बच्चे सो गए लेकिन रात को अचानक मुहम्मद उठ गया और रोने लगा । जब इब्राहिम ने वजह पूछी तो उसने बताया बाबा ख्वाब में आये थे इतना सून्नना था की इब्राहिम ने बताया की उसने भी बाबा को देखा है और कह रहे थे की जल्द ही तुम दोनों मेरे साथ होगे ।

मुहम्मद का रोना सुन के हारीत जो घर आ चूका था उन बच्चों के पास पहुंच गया और जब उसे पता चला की यह मुस्लिम के बच्चे हैं तो उनको खम्बे से बाँध  दिया इस लालच में की इब्ने ज़ियाद से इनाम पाएगा । उसकी बीवी ने जब मना  किया तो उसे भी मारा  पीटा ।


 रात भर बच्चे खम्बे से बंधे रहे और सुबह होते ही उन दोनों को फुरात के किनारे ले गया और तलवार निकाल ली । इब्राहिम ने पुछा क्या तुम हम दोनों को मारने जा रहे हो ? हारीत ने कहा हाँ । बच्चों ने नमाज़ ऐ सुबह की इजाज़त मांगी ।  बच्चों ने अल्लाह से दुआ मांगी की उनका इन्साफ करना और उनकी मान को सब्र देना बस इतना ही दुआ मांग सके थे की तलवार चली और दोनों  शहीद हो गए और उनका लाश एक दुसरे को पकडे नहर ऐ फुरात में बह गयी गयी



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