इमाम ऐ ज़माना (अ.स) के ज़हूर ना होने की एक वजह ये भी है |
इमाम ऐ ज़माना (अ.स) के ज़हूर की दुआ बिना तैयारी के कोई मायने नहीं रखती और तैयारी ऐसी हो की हमारा मकसद समाज में ...
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इमाम ऐ ज़माना (अ.स) के ज़हूर की दुआ बिना तैयारी के कोई मायने नहीं रखती और तैयारी ऐसी हो की हमारा मकसद समाज में अच्छाइयों को बढ़ाना और बुराइयों से लोगों को रोकना होना चाहिए और इन सबका मकसद अल्लाह के दीं की हिफाज़त करना और उसे बढ़ाना हो |
इमाम सादिक़ अ. के ज़माने के बादशाहों के विरुद्ध होने वाले अक्सर आंदोलनों में इमाम सादिक़ अ. की मर्ज़ी शामिल नहीं थी। और आप अहलेबैत अलैहिस्सलाम की शिक्षाओं को प्रचलित करने को प्राथमिकता देते थे। इसलिए चूँकि वह लोग जो बनी हाशिम को आंदोलन के लिए उकसाते थे और उनकी मदद का वादा करते थे सबके सब या उनमें से अधिकतर समय के हाकिमों की हुकूमत को पसन्द नहीं करते थे या हुकूमत को अपने हाथ में लेना चाहते थे और हरगिज़ बिदअत को मिटाना और अल्लाह के दीन को प्रचलित करना या पैग़म्बरे इस्लाम के अहलेबैत की सहायता उनका उद्देश्य नहीं था।
लेकिन कभी कभी सच्चाई यहाँ तक कि इमाम के ख़ास शियों के लिए भी संदिग्ध हो जाती थी और इमाम सादिक़ अ. से आंदोलन में शामिल होने की अपील करने लगते थे|
कुलैनी र.अ. ने सुदैरे सहरफ़ी के हवाले से लिखा है: मैं इमाम सादिक़ अ. के पास गया और उनसे कहा ख़ुदा की क़सम जाएज़ नहीं है कि आप आंदोलन न करें! क्यों? इसलिए कि आपके दोस्त शिया और मददगार बहुत ज़्यादा हैं। अल्लाह की क़सम अगर अली अ. के शियों और दोस्तों की संख्या इतनी ज़्यादा होती तो कभी भी उनके हक़ को न छीना जाता। इमाम अ. ने पूछा सुदैर उनकी संख्या कितनी है? सुदैर ने जवाब दिया एक लाख। इमाम ने फ़रमाया एक लाख? सुदैर ने कहा जी बल्कि दो लाख। इमाम ने आश्चर्य से पूछा दो लाख? सुदैर ने कहा जी दो लाख बल्कि आधी दुनिया आपके साथ है।
इमाम ख़ामोश हो गए सुदैर कहते हैं कि इमाम उठ खड़े हुए मैं भी उनके साथ चल पड़ा रास्ते में बकरी के एक झुँड के बग़ल से गुज़र हुआ इमाम सादिक़ अ. ने फ़रमाया :-
ऐ सुदैर अल्लाह की क़सम अगर इन बकरियों भर भी हमारे शिया होते तो आंदोलन न करना मेरे लिए जाएज़ नहीं था फिर हमने वहीं पर नमाज़ पढ़ी और नमाज़ के बाद हमने बकरियों को गिना तो उनकी संख्या 17 से ज़्यादा नहीं थी। (यानी सच्चे शियों और इमाम सादिक़ अ. के जमाने के हबीब इब्ने मज़ाहिर जैसे दोस्तों की संख्या 17 भी नहीं थी।) अल -काफ़ी जिल्द 2 पेज 243
इसलिए अम्र बिल मारूफ व नहया अनिल मुनकर करते रहे और इमाम ऐ ज़माना (अ.स) के ज़हूर की दुआ करें दिल से | इंशाल्लाह जल्द से जल्द ज़हूर होगा और हमारी परेशानियां ख़त्म होंगी |