जनाब इ फातिमा ज़हरा और अज़ान ऐ बिलाल |

फ़ातेमा ज़हरा इमाम अली की निगाह में| जब इमाम अली (अ) और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) की ईश्वर के आदेश से शादी हो गई तो  शादी के दूसरे दिन ज...


फ़ातेमा ज़हरा इमाम अली की निगाह में|
जब इमाम अली (अ) और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) की ईश्वर के आदेश से शादी हो गई तो शादी के दूसरे दिन जब पैग़म्बर (स) ने अली (अ) से पूछा: हे अली तुमने मेरी बेटी फ़ातेमा (स) को कैसा पाया?
इमाम ने जवाब दिया, फातिमा (स) अल्लाह की इताअत में सबसे अच्छी मददगार हैं।
अमीरुल-मोमनीन (अ) फ़रमाते हैं: फातिमा (स) कभी भी मुझसे नाराज़ नहीं हुईं, और न मुझको नाराज़ किया.जब भी मैं उनके चेहरे पर नज़र करता हूं, मेरे सभी दुख दूर हो जाते हैं और सारी तकलीफ़ें समाप्त हो जाती हैं। न उन्हों ने कभी मुझे क्रोधित किया और न कभी मै ने उनको रसूल्लाह (स) फ़रमाते हैं अगर अली (अ) न होते तो फ़ातिमा (स) के कोई बराबर न होता।

जनाब इ फातिमा ज़हरा और अज़ान ऐ बिलाल |

बिलाल ने दूर से बड़े ध्यान से दृष्टि डाली। मदीना नगर के हरे- भरे और ऊंचे-२ खजूरों के पेड़ दिखाई दे रहे थे और उनके पीछे मदीना नगर के छोटे- छोटे कच्चे घर दिखाई दे रहे थे। बिलाल ने एक गहरी सांस ली ताकि वह मदीने से आने वाली ठंडी मधुर समीर का आभास कर सकें। मदीने से आने वाली बयार अपने साथ एक जानी पहचानी सी सुगंध लिए हुए थी। पैग़म्बरे इस्लाम की सुगंध, मस्जिदुन्नबी और उस मीनार की महक जिसमें उन्होंने वर्षों तक अज़ान दी थी। नगर के फाटक को पार करके वह एक किनारे खड़े हो गये। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के नगर के आदरभाव में उन्होंने अपने वस्त्रों से रास्ते की धूल झाड़ी और अपने चारों ओर एक दृष्टि डाली। लोग अपने दिनचर्या के कार्यों में व्यस्त थे अतः किसी ने भी उन्हें नगर में आते हुए नहीं देखा। वह बनी हाशिम की गली में प्रवेश करते हैं। पतली एवं अंधेरी सी वही गली है जिसमें वह पैग़म्बरे इस्लाम को देखने के लिए प्रतिदिन आकर खड़े रहा करते थे और जब पैग़म्बरे इस्लाम मस्जिद की ओर जाने लगते थे तो वह उनके पीछे चल पड़ते थे। वह पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री का दर्शन करने के लिए हज़रत अली अलैहिस्सलाम के घर की ओर चल पड़ते हैं। यद्यपि उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि अब वह उस मदीने में वापस नहीं आयेगें जिसने पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों को भुला दिया है। जब वह घर के पास पहुंचे तो बड़ी चिंतित स्थिति में आगे बढ़े और कहा पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों पर सलाम हो"


हज़रत अली और जनाबे फातेमा ज़हरा के बच्चों इमाम हसन और इमाम हुसैन ने जब जानी- पहचानी आवाज़ सुनी तो तुरंत घर से बाहर निकल आये और बोले, बिलाल आये हैं। बिलाल ने दोनों बच्चों को गोद में उठा लिया और रोने लगे। उन लोगों ने अच्छे दिनों की मीठी यादों को दोहराया। बिलाल ने पैग़म्बरे इस्लाम के पावन अस्तित्व की सुन्दर व मनमोहक महक का उन दोनों बच्चों में आभास किया। कुछ ही क्षण गुज़रे थे कि बिलाल ने बच्चों से उनकी माता फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के बारे में पूछा, इमाम हसन और इमाम हुसैन ने बिलाल का हाथ पकड़ा और उन्हें अपने घर के अंदर ले गये। हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा बीमारी के बिस्तर पर लेटी हुईं थीं। बिलाल ने उन्हें सलाम किया। हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने बिलाल की आवाज़ पहचान ली। वह बिलाल की प्रतीक्षा में थीं क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम ने स्वप्न में ही हज़रत फातेमा को यह सूचना दे रखी थी कि बिलाल उन्हें देखने के लिए आयेंगे। हज़रत फातेमा ने थर्राती हुई कमज़ोर आवाज़ में बिलाल के जवाब में कहा" तुम पर सलाम हो हे मेरे प्रिय पिता के मोअज़्जिन। हज़रत फ़ातेमा की कमज़ोर आवाज़ ने बिलाल की चिंता और बढ़ा दी। उन्होंने पूछा हे पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री क्या हुआ है कि आप इस तरह बीमार हो गयीं हैं? हज़रत फातेमा ने कोई उत्तर नहीं दिया बिल्कुल चुप रहीं और फिर बड़े दुःख भरे स्वर में एक फ़रमाइश की। आपने कहा" हे बिलाल मैं चाहती हूं कि मरने से पहले उन दिनों की याद में, जब मेरे पिता जीवित थे, मस्जिद में जाओ और अज़ान दो। मैं एक बार फिर तुम्हारी अज़ान की आवाज़ सुनकर नमाज़ पढ़ना चाहती हूं। केवल एक बार"


बिलाल बहुत आश्चर्यचकित एवं प्रभावित हुए। वह समझ गये कि पैग़म्बरे इस्लाम की बेटी स्वस्थ होकर अब दोबारा ज़मीन पर क़दम नहीं रखेंगी। बिलाल ने हज़रत फातेमा की फ़रमाइश पूरी करने में जल्दी की। अब वह कुछ भी नहीं सोच रहे थे। मानो वह लोगों को देख की नहीं रहे थे। वे दौड़ रहे थे ताकि स्वयं को पैग़म्बरे इस्लाम की मस्जिद तक पहुंचा दें। मस्जिद के मीनार की सीढ़ियों को फलांगते हुए ऊपर चढ़े। वहां से नीचे देखा तो पूरा मदीना नगर सामने आ गया। ठीक उन्हीं दिनों की भांति जब वे अज़ान दे रहे होते थे और पैग़म्बरे इस्लाम को वज़ू करते देखते थे परंतु इस बार स्थिति पहले से भिन्न थी। इस बार वह केवल हज़रत फ़ातेमा के कहने पर आये थे। बिलाल के मुंह से निकली अल्लाहो अकबर की आवाज़ मदीना नगर के वातावरण में गूंजने लगी। लोगों ने एक क्षण के लिए काम से हाथ रोक लिया। मानो मदीने के वातावरण में एक बार फिर सन्नाटा छा गया। काफी समय के बाद पैग़म्बरे इस्लाम की मस्जिद से जाने- पहचाने व्यक्ति के अज़ान की आवाज़ आ रही थी। बिलाल ने अज़ान जारी रखते हुए अशहदो अल ला एलाहा इल्लल्लाह कहा। अर्थात मैं गवाही देता हूं कि एक ईश्वर के अतिरिक्त कोई दूसरा पूज्य नहीं है। लोग समझ गये कि यह तो बिलाल हैं। लोग उत्सुकता व जिज्ञासा के साथ मस्जिद की ओर दौड़े। बिलाल ने अज़ान जारी रखते हुए कहा अशहदो अन्ना मुहमदर्रसूल्लाह अर्थात मैं गवाही देता हूं कि मोहम्मद ईश्वर के दूत हैं। लोग मीनार के नीचे एकत्रित हो गये थे और कुछ लोग उन्हें भीगे नेत्रों से देख रहे थे। हज़रत फातेमा ज़हरा की आंखों से अज़ान में अपने महान व स्वर्गीय पिता का नाम सुनकर आंसू बहने लगे। बिलाल ने जैसे ही अज़ान के बाद वाले वाक्य को कहना चाहा वैसे ही उन्हें इमाम हसन और इमाम हुसैन अलैहमास्लाम की पुकार सुनाई दी। घबराकर नीचे देखा। हज़रत फातेमा के बच्चों ने कहा हे बिलाल तुम्हें ईश्वर की सौगन्द अब आगे की अज़ान न कहो। हमारी मां नमाज़ के सज्जादे पर रोते-2 मूर्छित हो गईं हैं। यह सुनकर बिलाल मीनार से नीचे उतर आये। दोनों बच्चों को गोद में उठा लिया। बिलाल कुछ कहना चाहते थे परंतु उनका दिल भर आया था और वह बेचैन होकर रोने लगे।


पैग़म्बरे इस्लाम एक दिन मस्जिद में बैठे हुए थे और चारों से उनके साथी व अनुयाई उन्हें घेरे हुए थे। उसी दौरान एक बूढ़ा व्यक्ति फटे पुराने वस्त्रों और बड़ी ही दयनीय दशा में मस्जिद में आ पहुंचा। वह बूढ़ा और कमज़ोर व्यक्ति था। पैग़म्बरे इस्लाम उसके पास गये और उसका हाल- चाल पूछा। बूढ़े व्यक्ति ने उनसे कहा हे ईश्वरीय दूत मैं परेशान, भूखा और दरिद्र हूं आप मुझे खाना दीजिये। मेरे पास वस्त्र नहीं है मुझे वस्त्र दीजिये। मैं परेशान हूं मेरी परेशानी दूर कीजिये। पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा अभी तो मेरे पास कुछ नहीं है परंतु भलाई की ओर मार्ग दर्शन करने वाला भलाई करने वाले की भांति होता है" उसके पश्चात आपने उसका मार्गदर्शन हज़रत फातेमा ज़हरा के घर की ओर किया। बूढ़े व्यक्ति ने मस्जिद से हज़रत फातेमा के घर की थोड़ी दूरी तय की और अपनी समस्याओं को हज़रत फ़ातेमा के समक्ष बयान किया। हज़रत फातेमा ने कहा अभी मेरे घर में कुछ भी नहीं है। इसी मध्य उन्हें अब्दुल मुत्तलिब बिन हमज़ा की सुपत्री द्वारा उपहार में दिये गये हार की याद आई। हार को गले से उतारा और उस बूढ़े दरिद्र को दे दिया और कहा इसे बेच दो ईश्वर ने चाहा तो तुम इससे अपनी आवश्यकता की पूर्ति कर सकोगे। बूढ़े दरिद्र व्यक्ति ने हार लिया और मस्जिद में आया। पैग़म्बरे इस्लाम उसी प्रकार अपनी साथियों के मध्य बैठे हुए थे। बूढ़े व्यक्ति ने कहा हे ईश्वरीय दूत हज़रत फातेमा ने यह हार मुझे दान स्वरूप प्रदान किया है ताकि मैं इसे बेच कर अपनी आवश्यकता की पूर्ति करूं। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत फातेमा के दान से बहुत प्रसन्न हुए और कहा" जो भी इस हार को ख़रीदेगा ईश्वर उसके पापों को क्षमा कर देगा" अम्मार यासिर ने कहा हे ईश्वर के दूत क्या आपकी अनुमति है कि मैं इस हार को ख़रीद लूं? पैग़म्बरे इस्लाम ने अनुमति दी। अम्मार यासिर ने बूढ़े दरिद्र से पूछा, हार को कितने में बेचेगो बूढ़े दरिद्र ने जवाब दिया मैं इसे उतने पैसे में बेचना चाहता हूं जिससे मेरा पेट भर सके, उतना वस्त्र चाहिये जिससे मेरा शरीर ढक सके और यात्रा का ख़र्चा कि जो मुझे अपने घर तक पहुंचा दे। अम्मार यासिर ने उत्तर दिया मैं इस हार को सोने के २० दीनार में ख़रीदूंगा और इसके अतिरिक्त खाना, वस्त्र और इसके लिए सवारी भी ख़रीदूंगा। अम्मार यासिर बूढे दरिद्र को अपने घर ले गये ,खाना खिलाया, वस्त्र पहनाया और उसे सवारी दी तथा २० दीनार भी उसे दिया। उस समय हार को एक कपड़े में लपेटा और अपने दास से कहा इसे पैग़म्बरे इस्लाम की सेवा में ले जाकर प्रस्तुत करो। तुम्हें भी मैंने उन्हें दान में दे दिया। पैग़म्बरे इस्लाम ने भी दास और हार को हज़रत फातेमा को दान दे दिया। दास हज़रत फातेमा के पास आया। आपने हार ले लिया और दास से कहा मैंने ईश्वर के मार्ग में तुम्हें स्वतंत्र किया यह सुनकर दास हंसा। हज़रत फातेमा ने उससे हंसने का कारण पूछा तो उसने उत्तर में कहा हे पैग़म्बरे इस्लाम की बेटी इस हार की विभूति ने मुझे आश्चर्यचिकत कर दिया है क्योंकि उसने एक भूखे का पेट भरा है, निर्वस्त्र को वस्त्र पहनाया है निर्धन व दरिद्र को धनी कर दिया एक दास को स्वतंत्र कर दिया और अंत में वह अपने स्वामी के पास लौट भी आया।


एक महिला मदीने की गलियों में चक्कर लगा रही थी। उसकी दशा एवं फटे पुराने व चकती लगे कपड़े उसकी निर्धनता के सूचक थे। वह सहायता की आस लगाये मदीना के एक-२ घर का चक्कर लगा रही थी परंतु हर जगह से निराशा हाथ आ रही थी। अंत में वह पैग़म्बरे इस्लाम के घर पहुंची और उसने जब यह देखा कि पैग़म्बरे इस्लाम के घर में बहुत सी महिलाएं आ-जा रही हैं तो उसे बड़ा आश्चर्च हुआ। वह आगे आई, समझ गई कि सभी लोग हज़रत अली व हज़रत फातेमा के विवाह समारोह में भाग लेने की तैयारी कर रहे हैं। मानो तय है कि पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री कुछ महिलाओं के साथ हज़रत अली के घर जायेंगी। निर्धन महिला एक कोने में खड़ी हो गई। कुछ क्षणों के लिए वह अपनी निर्धनता एवं परेशानी को भूल गई। इस मध्य हज़रत फातेमा ज़हरा पैग़म्बरे इस्लाम के घर से बाहर निकलीं। निर्धन महिला सहसा कुछ क़दम आगे बढ़ी। निकट से उसने हज़रत फातेमा के तेजस्वी चेहरे को पहचान लिया। हज़रत फातेमा की दृष्टि भी दरिद्र व निर्धन महिला पर पड़ी। महिला हज़रत फातेमा के निकट गई और उसने हज़रत फातेमा को सलाम किया। उसने हज़रत फातेमा के प्रेम, दया और दानशीलता के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था और हज़रत फातेमा किसी को भी निराश नहीं लौटाती थीं। निर्धन महिला ने पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री से सहायता मांगी। हज़रत फातेमा ने थोड़ा सोचा। उन्होंने अपने नये कपड़ों पर दृष्टि डाली जिसे उन्होंने अपने विवाह के कारण पहन रखा था। उसके पश्चात हज़रत फातेमा अविलंब घर में वापस चली गयीं। हज़रत फातेमा के आस- पास खड़ी दूसरी महिलाओं ने उनके इस व्यवहार पर आश्चर्य किया। कुछ ही क्षणों के बाद हज़रत फातेमा घर से बाहर निकलीं इस स्थिति में कि विवाह का नया जोड़ा उनके पावन हाथों में था। आपने बड़े ही प्रेम व आदरभाव के साथ उस वस्त्र को निर्धन महिला को दे दिया। इस प्रकार हज़रत फातेमा साधारण वस्त्र में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के घर गयीं परंतु उनका हृदय ईश्वरीय प्रेम और उसकी प्रसन्नता से ओत- प्रोत था। वह बहुत प्रसन्न थीं क्योंकि ईश्वर ने एक विवाह के अवसर पर भी उन्हें अपने बंदो की सेवा करने का अवसर प्रदान किया था।

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