क्या है अज़ादारी, अलम, ताजिया ,तुर्बत और ज़ुल्जिनाह ?

1) अज़ादारी क्या है ? मुसलमानों का एक  फिरका है शिया ऐ अहलेबय्त जो कर्बला में इमाम हुसैन (अ.स) (अहलेबय्त) के क़त्ल पे दुःख प्रकट करता ह...

1) अज़ादारी क्या है ?

मुसलमानों का एक  फिरका है शिया ऐ अहलेबय्त जो कर्बला में इमाम हुसैन (अ.स) (अहलेबय्त) के क़त्ल पे दुःख प्रकट करता है और उनका ग़म मनाता है और दुनिया वालों को भी बताता है की कर्बला में क्या हुआ था और क्यूँ हुआ था ? इस से मकसद सिर्फ इतना है की यह फिरका हजरत मुहम्मद (स.अ.व) से अपनी मुहब्बत का इज़हार करता है और कहता है या रसूल ऐ खुदा (स.अ.व) हम आपके नवासे के क़त्ल पे दुखी हैं और उनके कातिल यज़ीद को ज़ालिम और मुजरिम मानते हैं |और अल्लाह से कहता है ऐ अल्लाह तूने जिन अहलेबय्त के एहतेराम का हुक्म दिया था उसे भूखा प्यासा यजीद के हुक्म के उसके लश्कर के क़त्ल कर दिया हम ऐसे ज़ालिम यजीद के साथी नहीं हैं और अहलेबय्त पे हुए ज़ुल्म पे दुखी हैं |ऐसा करने के लिए अपनी अकीदत पेश करने के लिए वो अज़ादारी करता है| अज़ादारी के तरीकों में नौहा करना, मर्सिया करना , अलम ताजिया तुर्बत , ज़ुल्जिनाह के जुलुस निकालके लोगों को बताना की क्या हुआ था कर्बला  में और ज़ालिम यजीद ने कितना ज़ुल्म किया था अहलेबय्त पे ,शामिल है | इनमे से कोई ही  तरीका न तो बिद्दत है ना हराम  और न ही शिर्क क्यूँ की अहलेबय्त के चाहने वालों से ऐसा कोई तसव्वुर करना ही गलत होगा |

हकीकत में यजीद एक ज़ालिम बादशाह था जिसे डर से मुसलमानों ने खलीफा बना दिया था और उसने हजरत मुहम्मद (स.अ.व) के घराने (अहलेबय्त) पे ज़ुल्म किया और जब मुसलमानों में बगावत होने लगी सत्य जान के तो उनको क़ैद से आज़ाद कर दिया | उस समय यजीद ने यह बहुत चाहा की उसके इस ज़ुल्म की कहानी कर्बला और कूफे की दीवारों में दफन ही जाये और इसकी नाकाम कोशिश उसने की लेकिन आजादी की खबर सुनते ही हजरत अली (अ.स) की बेटी जनाब ऐ जैनब ने सबसे पहले उसी यजीद से एक जगह मांगी और कहा कर्बला में उनके घराने वालों की शहादत के बाद ज़ालिम फ़ौज ने उन्हें उनपे रोने भी नहीं दिया इसलिए वो एक जगह चाहती हैं जहा वो उनपे रो सकें और यजीद ने उन्हें एक जगह दे दी | यही ग़म ऐ हुसैन में पहली मजलिस थी और पहली अज़ादार जनाब ऐ जैनब  थीं | इस मजलिस का हिस्सा थे हुसैन और उनके परिवार में हुए ज़ुल्म को बनाय करते हुए नौहा करना और मसायब पढना |

आज भी यजीद की उस कोशिश की उसके ज़ुल्म के बारे में दुनिया ना जान सके पे चलने वाले लोग मौजूद हैं | इनमे से कुछ ऐसे हैं जो यजीद की साजिश उसका जुर्म छुपाने की समझ नहीं सके और अनजाने में अज़ादारी के खिलाफ बोलते और इसे रोकने की कोशिश करते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो जानते हैं लेकिन उनके दिलों में ज़ालिम यजीद की मुहब्बत है और अहलेबय्त से नफरत और इसी वजह से वो अज़ादारी के खिलाफ बोला करते हैं |यहाँ यह बताता चलूँ की यजीद का कहना था की न कोई वही हजरत मुहम्मद (स.अ.व० ) पे आयी थी और न की कोई अहलेबय्त की अफ्ज़लियत की बात थी यह सब अहलेबय्त का फैलाया ढोंग था और इसी बात को आज कुछ मुसलमान  आज भी मानते है |यह गिनती में कम अवश्य हैं लेकिन सौदिया में इनकी तादात अधिक है जिसकी वजह से यह गुमराह करने में अक्सर कामयाब हो जाया करते हैं |

मेरे इस लेख का मकसद सिर्फ दुनिया के सारे मुसलमानों को यह समझाना है की पहचान लो कौन है वो जो अहलेबय्त से मुहब्बत करने वालों का दुश्मन है और उनके दुःख में होने वाली अज़ादारी का दुश्मन है उअर इन अज़दारो के लिए कभी बिद्दत, कभी शिर्क कभी ताजिया देखने पे निकाह टूटने इत्यादि के फतवे देता रहता है | आज भी वो अपनी कौम को हिदायत देता है की अहलेबय्त के चाहने वालों से अज़ादारी करने वालों से बात मत करो क्यूँ की यजीद वाका डर आज भी उसके दिलों में मौजूद है की कहीं यजीद की जालिमाना हरकत दुनिया को पता ना लगने पाए लेकिन हक का और मजलूम का साथ अल्लाह देता है और आज सिर्फ मुसलमान ही नहीं गैर मुसलमान भी यजीद का नाम नफरत से और हुसैन (अहलेबय्त) का नाम इज्ज़त से लेता है |

आज जो लोग इस अज़ादारी , अलम ताजिये , तुर्बत ,नौहा , सोग ,मर्सिया को बिद्दत , शिर्क ,हराम  बताते हैं हैं वो इसे उनके मुल्लाओं के फतवे से ही साबित करते हैं | कुरान या हजरत मुहम्मद (स.अ.व) की अहादीस से वो कभी साबित नहीं कर पाते |  और जब भी यह इसे कुरान के खिलाफ बताने की कोशिश करते हैं तो वैसे ही नाम होते हैं जैसे यजीद हुआ था | जब अहलेबय्त को कैदी बना के दरबार ऐ यजीद  में लाया गया तो यजीद ने हजरत अली (अ.स) की बेटी जनाब ऐ जैनब से कहा की देखो अल्लाह कुरान में फरमाता है “ मैं जिसे चाहे इज्ज़त देता हूँ और जिसे चाहे ज़िल्लत “ और देखो मैं बादशाह के तख़्त पे इज्ज़त से बैठा हूँ और तुम कैदी हो | ज़ाहिरी तौर पे देखने में यह सही भी लगता था लेकिन हकीकत में जिसने अल्लाह की राह में कुराबी दी उसी को इज्ज़त मिलती है और जिसने ज़ुल्म किया उसे बेईज्ज़ती | आज नाम ऐ यजीद नफरत से लिया जाता है और वो ज़लील है और नाम ऐ हुसैन (अ.स) इज्ज़त से लिए जाता है जो हकीकत में कुरान की उस आयात की तफसीर है जिसे यजीद ने अपने हक में इस्तेमाल करने की भूल की थी |

यजीद और इमाम हसन (अ.स० ) के फर्क को जाने के लिए किताब शहीदे करबला और यज़ीद लेखकः मौलाना क़ारी तैयब साहब रह., पूर्व मोहतमिम दारूल उलूम देवबन्द अवश्य पढ़ें | शहीदे करबला और यज़ीद’ नामक किताब एक सुन्नी आलिम की लिखी हुई किताब है। दारूल उलूम देवबन्द के संस्थापक मौलाना क़ासिम नानौतवी साहब रह. का क़ौल भी इसके पृष्ठ 85 पर दर्ज है। जो उनके एक ख़त (क़ासिमुल उलूम, जिल्द 4 मक्तूब 9 पृष्ठ 14 व 15) से लिया गया है। इसमें मौलाना क़ासिम साहब रह. ने ‘यज़ीद पलीद’ लिखा है। आलिमों की अक्सरियत ने यज़ीद को फ़ासिक़ माना है और जिन आलिमों पर यज़ीद की नीयत भी खुल गई। उन्होंने उसे काफ़िर माना है। इमाम अहमद बिन हम्बल रहमतुल्लाह अलैहि एक ऐसे ही आलिम हैं। सुन्नी समुदाय में उनका बहुत बड़ा रूतबा है। इस किताब के पृष्ठ 109 पर इस बात का भी तज़्करा है। इमाम हुसैन शिया और सुन्नी के लिए ही इमाम (मार्गदर्शक) नहीं हैं बल्कि हरेक इंसान के लिए मार्गदर्शक हैं।

‘...और क़त्ले हुसैन और उनके साथियों के क़त्ल के बाद उसने मुंह से निकाला कि मैंने (हुसैन वग़ैरह से) बदला ले लिया है जो उन्होंने मेरे बुज़ुर्गों और रईसों के साथ बदर में किया था।’
-शहीदे करबला और यज़ीद, पृष्ठ 109, लेखकः मौलाना क़ारी तैयब साहब रह., पूर्व मोहतमिम दारूल उलूम देवबन्द,


‘तो ज़ैद (बिन अरक़म) रोने लगे तो इब्ने ज़ियाद ने कहा ख़ुदा तेरी आंखों को रोता हुआ ही रखे। ख़ुदा की क़सम अगर तू  बुड्ढा न होता जो सठिया गया हो और अक्ल तेरी मारी गई न होती तो मैं तेरी गर्दन उड़ा देता, तो ज़ैद बिन अरक़म खड़े हो गए और यहां से निकल गए, तो मैंने लोगों को यह कहते हुए सुना। वे कह रहे थे अल्लाह, ज़ैद बिन अरक़म ने एक ऐसा कलिमा कहा कि अगर इब्ने ज़ियाद उसे सुन लेता तो उन्हें ज़रूर क़त्ल कर देता। तो मैंने कहा, क्या कलिमा है जो ज़ैद बिन अरक़म ने फ़रमाया। तो कहा कि ज़ैद बिन अरक़म जब हम पर गुज़रे तो कह रहे थे कि ऐ अरब समाज! आज के बाद समझ लो कि तुम ग़ुलाम बन गए हो। तुमने फ़ातिमा के बेटे को क़त्ल कर दिया और सरदार बना लिया इब्ने मरजाना (इब्ने ज़ैद) को। जो तुम में के बेहतरीन लोगों को क़त्ल करेगा और बदतरीन लोगों को पनाह देगा।’
-शहीदे करबला और यज़ीद, पृष्ठ 101 लेखकः मौलाना क़ारी तैयब साहब रह., पूर्व मोहतमिम दारूल उलूम देवबन्द


हज़रत ज़ैद बिन अरक़म रज़ि. ने जो कहा था। वह हरफ़ ब हरफ़ सच साबित हुआ। इसी किताब के पृष्ठ 106 पर मशहूर अरबी किताब ‘अल-बदाया वन्-निहाया’ जिल्द 8 पृष्ठ 191 के हवाले से क़ारी तैयब साहब ने लिखा है कि जब इमाम हुसैन रज़ि. के क़त्ल पर इब्ने ज़ियाद ख़ुश हो रहा था। तब उसे हज़रत अब्दुल्लाह बिन अफ़ीफ़ अज़दी ने टोक दिया। इब्ने ज़ियाद ने उसे वहीं फांसी दिलवा दी।

आज उनके लिए जो हक की तलाश में रहते हैं मैं यह बताने की कोशिश कर रहा हूँ की इमामबाडा , अज़ादारी, मर्सिया, नौहा, अलम , ताजिया , तुर्बत क्या है और क्या है यह अज़ादारी का जुलूस क्या है ? जिस से मुसलमान गुमराही से बच सकें और अल्लाह की रहमत के करीब रहे |

२) इमामबाडा क्या है ?


इमामबाडा कर्बला में इमाम हुसैन (अ.स) के रौज़े की नकल है ठीक उसी तरह जिस तरह मस्जिदों बनती हैं जो मस्जिद इ नबवी या मस्जिद ऐ अक्सा की नकल हैं | बस इन इमामबाड़ों में हर कौम के इंसानों को आने की इजाज़त है जिस से वो जान सकें इस्लाम क्या था, ज़ुल्म और ज़ालिम इस्लाम का हिस्सा नहीं और क्यूँ यजीद से मुसलमान नफरत  करता है और हुसैन (अ.स) से मुहब्बत ? अहलेबय्त -इमाम हुसैन (अ.स) से मुहब्बत और ज़ालिम से नफरत अल्लाह का हुक्म भी है और रसूल ए खुदा (स.अ.व) की सुन्नत भी है ,जिसके इज़हार के लिए इमामबाड़े हैं और इसलिए  इबादतगाह भी माना गया है क्यूँ की अल्लाह और रसूल (स.अ.व) के हुक्म और उनकी सुन्नत पे चलना इबादत है |
जौनपुर का शार्की समय का इमामबाडा इमाम पुर 
lucknow का छोटा इमामबाडा
lucknow का बड़ा इमामबाडा .

अगले लेख का इंतज़ार करें जिसमे आप सभी को बताऊंगा कि अलम, ताज़ा ,तुर्बत और ज़ुल्जिनाह क्या है ? यदि मिसी समझदार मुसलमाना भाई को इसमें से कुछ हराम , बिद्दत, शिर्क लगे तो अवश्य बताएं ?

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