ज्ञान का सही मार्ग

मानवीय ज्ञान को चार प्रकारों में बांटा गया है।  एक है प्रयोगिक ज्ञान  जिसे विज्ञान कहा जाता है, यह ज्ञान इंद्रियों के माध्यम से प्राप्त होत...

मानवीय ज्ञान को चार प्रकारों में बांटा गया है। एक है प्रयोगिक ज्ञान जिसे विज्ञान कहा जाता है, यह ज्ञान इंद्रियों के माध्यम से प्राप्त होता है। अर्थात मनुष्य आंखों से देखकर, कानों से सुनकर, त्वचा से छू कर, नाक से सूंघ कर और ज़बान से चख कर कुछ बातों की जानकारी प्राप्त करता है जबकि बुद्धि भी इस प्रक्रिया में अपनी भूमिका निभाती है।


ज्ञान की दूसरी क़िस्म वो है जो बुद्धि और विवेक के प्रयोग से प्राप्त होती है। यह ज्ञान वस्तुतः वह निष्कर्ष है जो मानव बुद्धि निकालती है। उदाहरण स्वरूप यह निष्कर्ष निकालना कि दो धन दो बराबर चार होते हैं। इस प्रकार के ज्ञान को तर्क शास्त्र, दर्शन-शास्त्र तथा गणित जैसे विषयों में प्रयोग किया जाता है। 


तीसरे प्रकार का ज्ञान है अनुकरणीय ज्ञान। अर्थात कुछ सूत्रों और स्रोतों पर पूर्ण विश्वास के कारण मनुष्य उनकी बातों को सच मानता है और इस माध्यम से ज्ञान प्राप्त करता है। 

ईश्वरीय धर्म के मानने वाले ईश्वरीय दूतों की बातों पर इसी प्रकार के ज्ञान के अंतर्गत विश्वास करते हैं और कभी कभी तो उनका विश्वास पहले की दो प्रकार के ज्ञानों से अधिक दृढ़ व ठोस होता है।


ज्ञान की चौथी क़िस्म अंतर-दृष्टि के माध्यम से प्राप्त होती है। यह ज्ञान सबसे विश्वस्त ज्ञान है। इसमें किसी प्रकार की शंका और संदेह की गुंजाइश नहीं होती। 



किंतु यह बात जानना भी उचित होगा कि यह ज्ञान उसी को प्राप्त हो सकता है जिसकी आत्मा और मन पूर्ण रूप से पवित्र हो।अब हमें यह देखना है कि धर्म और आयडियालोजी के जो मूल विषय हैं उन्हें ज्ञान के इन चारों प्रकारों में से किसके माध्यम से समझा जा सकता है? 

और कौन सा ज्ञान इस मामले में दूसरे ज्ञानों से अच्छा है?

प्रायोगिक गतिविधियों और क्रियाओं से प्राप्त होने वाला ज्ञान चूंकि सीमित होता है इसलिए इसके माध्यम से केवल भौतिक और सांसारिक वस्तुओं का ही ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है और विज्ञान द्वारा विचारधारा के सिद्धान्तों की पहचान संभव नहीं है क्योंकि इस प्रकार के विषय भौतिक ज्ञान से परे हैं और कोई भी भौतिक ज्ञान इस संदर्भ में कुछ नहीं कह सकता। उदाहरण स्वरूप ईश्वर के अस्तित्व को किसी भी प्रकार से वैज्ञानिक मार्गों या प्रयोगशालाओं में परीक्षणों द्वारा सिद्ध नहीं किया जा सकता। 


क्योंकि विज्ञान चाहे जितना विकास कर ले, सीमित ही रहेगा और वह किसी भी प्रकार से इस संसार से हटकर अर्थात भौतिकता से दूर किसी विषय के बारे में कुछ नहीं कह सकता।इस आधार पर वैज्ञानिक व भौतिक विचारधारा के जो अर्थ हमने बताए हैं उन अर्थों में केवल एक धोखा है और उसे वास्तव में विचारधारा नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह भौतिक वस्तुओं व अर्थों तक ही सीमित होता है। अधिक से अधिक उसे भौतिक संसार के ज्ञान का नाम दिया जा सकता है और यह ज्ञान विचारधारा के मूल विषयों पर बहस करने में सक्षम नहीं है।

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