नफ्स की बीमारियाँ - उज्ब (खुद की तारीफ करना)

जिस तरह से इंसान का जिस्म बाहरी जरासीमों की वजह से बीमार हो जाया करता  है  वैसे ही समाज की बुराईयों के असर से इंसान की रूह भी बीमार हो जाया ...

जिस तरह से इंसान का जिस्म बाहरी जरासीमों की वजह से बीमार हो जाया करता  है  वैसे ही समाज की बुराईयों के असर से इंसान की रूह भी बीमार हो जाया करती है. रमजान के महीने मैं हर एक इंसान की यह कोशिश होनी चाहिए की वो अपने नफ्स को इन बिमारीयों से पाक कर ले और आने वाले दिनों मैं एक मोमिन की तरह ज़िंदगी गुज़ारे.
नफ्स की बहुत सी बीमारियाँ हैं जिनमें आज बात होगी 
- उज्ब या (खुद की तारीफ करना)
  • ऐसे बहुत से लोग हैं जो अक्सर यह समझते हैं की वो बहुत नेक काम कर रहे हैं और उस नेकियों  की वजह से वो खुद  से बेहतर समझने  हैं.
  •  ऐसे भी बहुत से लोग होते हैं जो यह समझते हैं की जो उनका सोचना है या जिस काम को वो सही कह रहे हैं बस वही सही है. दूसरों की नेकियाँ  और इबादतें उसको अपनी नेकियों और इबादतों के मुकाबले  कम लगती हैं.
  • ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो खुद की नेकियों की वजह से या इबादत की वजह से खुद को अल्लाह की नज़र मैं दूसरों से अफज़ल समझने लगते हैं. 
  • इस बीमारी के शिकार कुछ तो ऐसे लोग होते हैं जो अपनी नेकियों के कारण खुद को अल्लाह के बहुत करीब समझने लगते हैं और जब किसी नबी का नाम लिया जाता है तो वो खुद को उसी नबी जैसा समझने लगते हैं.

हजरत अली (अ.स) का कहना है है की जिसको यह बीमारी लग गए उस की बर्बादी निश्चित है.

क्यों की ऐसा इंसान अपनी इबादतों  और नेकियों को और नहीं बढ़ाता क्यों की वो जितनी इबादत और नेकियाँ  करता है उसको ही बहुत समझता है. ऐसा इंसान दूसरों से सीखने को तैयार नहीं होता  और इसी कारण से अपनी ग़लतियों को नहीं सुधारता .

हजरत मुहम्मद (स.अ.व) ने बताया की कामयाब  इंसान वो होता है जो दूसरों की नेकियों को  अपने से ज्यादा और अपनी नेकियों को दूसरों  से कम समझा करता है.

इस बीमारी को पहचानने और इसे छुटकारा पाने का आसान तरीका यह है की  आप खुद की नेकियों और इबादतों को दूसरों की नेकियों और इबादतों से कम समझें.  जितनी इबादत और नेकी करें अल्लाह का शुक्र अदा करें और दुआ करें की वो आप को और नेकी और इबादत करने की तौफीक अदा करे.
और जब भी कोई काम करें खुद को पहचानने की कोशिश करें और खुद की ग़लतियों को तलाशने की कोशिश करें. यकीन जानिए हर इंसान खुद को बेहतर समझता है और उसकी अंतरात्मा हमेशा उसे सही और ग़लत क्या है बता देती है लेकिन ग़लत  इंसान उसे ना  मानने के कई बहाने तलाश के अंजाम देता रहता है.
इस बीमारी का शिकार खुद को भी बेवकूफ बनता रहता है और गुनाह करता रहता है.

इंसान ज़िंदगी के हर दौर मैं सीखता है लेकिन सीखता वो तभी है जब यह समझे की उनका इल्म अभी भी दूसरों से कम है.

 इस माहे रमजान मैं अल्लाह की इबादत करो ,नेकियाँ करो, ग़रीबों की मदद करो, अपने भाइयों के साथ साथ दुसरे मज़हब के लोगों के काम आओ और अपनी नफ्स को इस उज्ब की बीमारी से पाख करो.


एस एम् मासूम

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