नहजुल बलाग़ा ख़ुत्बा 81

ख़ुत्बा-81 तमाम हम्द (प्रशंसा, अराधना) अल्लाह के लिये है जो अपनी ताक़त के एतिबार से (शक्ति के आधार पर) बलन्द (ऊंचा) अपनी बख़शिश के लिहाज़ से...

ख़ुत्बा-81

तमाम हम्द (प्रशंसा, अराधना) अल्लाह के लिये है जो अपनी ताक़त के एतिबार से (शक्ति के आधार पर) बलन्द (ऊंचा) अपनी बख़शिश के लिहाज़ से (क्षमा के कारण) क़रीब (समीप) है। हर नफ़्अ व ज़ियादती (लाभ बढ़ौतरी) और हर मुसीबत व इब्तिला (संकट एंव आपत्ति) का दूर करने वाला है। मैं उस के करम की निवाज़िशों (कृपा की देन) और नेमतों की फ़रावानी (वर्दानों की अधिकता) की बिना पर उस की हम्दो सना (अराधना व उपासना) करता हूं। मैं उस पर ईमान रखता हूं चूंकि वह अव्वल व ज़ाहिर (प्रथम व प्रत्यक्ष) है और उस से हिदायत (मार्ग दर्शन) चाहता हूं चूंकि वह क़रीबतर और हादी (मार्ग दर्शक) है। और उसी से मदद चाहता हूं चूंकि वह क़ादिर व तवाना (शक्तिमान एंव समर्थ्म) है, और उस पर भरोसा करता हूं क्योंकि वह हर तरह की किफ़ायत व इआनत (पोषण व सहयोग) करने वाला है। और मैं गवाही देता हूं कि मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम उस के अब्द (बन्दे, दास) और रसूल (पैग़मबर) हैं। जिन्हें अहकाम के निफ़ाज़ (आदेशों के क्रियान्वयन) और हुज्जत के इतमाम (विवादों के अन्त) और इबरतनाक वाक़िआत (शिक्षा दायक घटनाओं को) पेश कर के पहले से मुतनब्बेह (सचेत) कर देने के लिये भेजा।

खुदा के बन्दो ! मैं तुम्हें अल्लाह से डरने की वसीयत करता हूं, जिस ने तुम्हारे (समझाने के लिये) मिसालें पेश कीं और तुम्हारी ज़िन्दगी के औक़ात मुक़र्रर किये (समय सारिणी निर्धारित किये)। तुम्हां मुख्तलिफ़ लिबासों से ढांपा और तुम्हारे रिज़्क (जीविका) का सामान फ़रावां (प्रचुर) किया। उस ने तुम्हारा पूरा जाइज़ा (सर्वेक्षण) ले रखा है और तुम्हारे लिये जज़ा मुक़र्रर (निर्धारित) की है और तुम्हें अपनी वसीई नेमतों और फ़राख़ अतीयों (विस्तृत दानों) से नवाज़ा (सम्मानित किया) और मुवस्सिर दलीलों (प्रभावी तर्को) से तुम्हें मुतनब्बेह (सतर्क) कर दिया है। वह एक एक कर के तुम्हें गिर चुका है और इस मक़ामे आज़माइश (परीक्षण स्थान) व महल्ले इबरत (शिक्षालय) में उस ने तुम्हारी उमरें मुक़र्रर (निश्चित) कर दी हैं। इस में तुम्हारी आज़माइश (परीक्षण) है। और इस की दर आमद व बरआमद (आयात व निर्यात) पर तुम्हारा हिसाब होगा। इस दुनिया का घाट गंदला और सेराब होने (तृप्ति) की जगह कीचड़ से भरी हुई है। इस का ज़ाहिर खुशनुमा (प्रत्यक्ष सुन्दर) और बातिन (परोक्ष) तबाहकुन (नाश कारक) है। यह एक मिट जाने वाला धोका, ग़ुरुब (लुप्त) हो जाने वाली रौशनी (प्रकाश), ढल जाने वाला साया और झुका हुआ सुतून (स्तम्भ) है। जब उस से नफ़रत (घृणा) करने वाला उस से दिल लगा लेता है और अजनबी (अपरिचित) उस से मुतमइन (सन्तुष्ट) हो जाता है तो यह अपने पैरों को उठा कर ज़मीन (पृथ्वी) पर दे मारती है, और अपने जाल में फांस लेती है, और अपने तीरों का निशाना बना लेती है, और उस के गले में मौत का फँदा डाल कर तंग व तार (अंधेरी) क़ब्र और वह्शतनाक मंज़िल (भंयकर स्थल) तक ले जाती है, कि जहां से वह अपना ठिकाना (स्वर्ग या नर्क) देख ले, और अपने किये का नतीजा पा ले। बाद में आने वालों की हालत भी अगलों की सी है। न मौत काट छांट से मुंह मोड़ती है और न बाक़ी रहने वाले गुनाह (पाप) से बाज़ आते हैं। बाहम (परस्पर) एक दूसरे के तौर तरीक़ों की पैरवी (अनुसरण) करते हैं, और एक के बाद एक मंज़िले मुन्तहा (अन्तिम गंतव्य) व मक़ामे फ़ना (विनाश स्थान) की तरफ़ बढ़ रहे हैं। यहां तक कि जब तमाम मुआमलात ख़त्म हो जायेंगे और दुनिया की उम्र तमाम हो जायेगी और क़यामत का हंगाम (प्रलय का क्षण) आ जायेगा तो अल्लाह सब को क़ब्र के गोशों (कोनों), परिन्दों के घोसलों, दरिन्दों (हिंसक जंतुओं) के भटों और हलाकत गाहों (बधस्थलों) से निकालेगा। गुरोह दर गुरोह (समूह दर समूह) सामित व साकित (मौन व स्थिर) ईस्तादा व सफ़बस्ता (पंक्तिबद्ध खड़े) अम्रे इलाही (अल्लाह के आदेश) की तरफ़ बढ़ते हुए और अपनी जाए बाज़ गश्त (पलट कर जाने का स्थान) की जानिब दौड़ते हुए, निगाहे क़ुदरत उन पर हावी (सर्वशक्तिमान की दृष्टि उन पर व्याप्त) और पुराने वाले की आवाज़ उन सब के कान में आती हुई होगी।

वह ज़ोफ़ व बेचारगी (निर्बलता एंव विवशता) का लिबास (वस्त्र) पहने हुए होंगे और इज्ज़ व बेकासी की वजह से ज़िल्लत उन पर छाई हुई होगी। हीले और तर्कीबे (बहाने एंव उपाय) ग़ायब और उम्भीदें मुनक़तअ (आशाएं कटी हुई) हो चुकी होंगी। दिल मायूसाना खामोशियों के साथ बेठते होंगे। आवाज़ें दब कर खामोश हो जाऐंगी पसीना मुंह से फ़ंन्दा डाल देगा। वहशत (वयाकुलता) बढं जायेगी और जब उन्हें आखरी फैसला (अन्तिम निर्णय) सुनाने, अमालों (कर्मों) का मुआवज़ा देने, और अज़ाब व उक़ूबत (दण्ड व यातना) और अजूर व सवाब के लिए बुलाया जायेगा तो पुकारने वाले की गरजदार आवाज़ से कान लरज़ (कांप) उठेंगे। यह बन्दे उस के इक़तिदार (सत्ता) का सबूत देने के लिए वजूद में आए हैं और ग़लबा व तसल्लुत (आधिपत्य व सत्ता) के साथ उन की तरबियत (दीक्षा) हुई है। नज़्अ के वक़्त (चंद्रा के समय) उन की रुहें (आत्माएं) क़ब्ज़ (ग्रहण) कर ली जाती हैं और क़बरों में रख दीये जाते हैं। जहां यह रेज़ा रेज़ा (कण कण में परिवतित) हो जायेंगे। और फिर क़ब्रों से अकेले उठाए जायेंगे और अमवों के मुताबिक़ (कर्मानुसार) जज़ा (पुरस्कार) पायेंगे और सब को अलग अलग हिसाब देना होगा। उन्हें दुनिया में रहते हुए गुलू ख़लासी (जान बचाने) का मौक़ा (अवसर) दिया गया था, और सीधा रास्ता भी दिखाया जा चुका था, और अल्लाह की ख़ुश्नूदी हासिल करने के लिये मोहलत भी दी गई थी। शक व शुब्हात (शंकाओं व सन्देहों) की तारीकियां उन से दूर कर दी गई थीं और उस मुद्दते हयात और आमाजगाहे अमल (कर्मभूमि) में उन्हें खुला छोड़ दिया गया था ताकि आख़िरत (परलोक) में दौड़ लगाने की तैयारी और सोच विचार से मक़सद की तलाश कर लें। और इतनी मोहलत पायें जितनी फ़वायद (लाभ) हासिल करने और अपनी आइन्दा मंज़िल (आगामी गंतव्य) का सामान करने के लिए ज़रुरी है। यह कितनी ही सहीह मिसालें (उदाहरण) और शिफ़ा बख्श नसीहतें हैं बशर्ते कि उन्हें पाकीज़ा दिल (पवित्र दिल) और सुनने वाले कान और मज़बूत रायें (दृढ़ परामर्श) और होशियार अक़्लें (चतुर बुद्धियां) नसीब हों। अल्लाह से डरो। उस शख्स के मानिन्द (समान) जिसने नसीहत की बातों को सुना तो झुक गया। गुनाह (पाप) किया तो उस का एतिराफ़ (स्वीकार) किया, डरा तो अमल किया। ख़ौफ़ किया तो नेकियों की तरफ़ बढ़ा, क़ियामत (प्रलय) का यक़ीन (विश्वास) किया तो अच्छे अअमाल बजा लाया (अच्छे कर्म किये) इब्रतें दिलाई गईं तो उस ने इबरत (शिक्षा) हासिल की और ख़ौफ़ दिलाया गया तो बुराईयों से रुक गया। और अल्लाह की पुकार पर लब्बैक कही तो फिर उस की तरफ़ रुख़ मोड़ लिया और तौबा व इनाबत (प्रायश्चित एंव पश्चातप) के साथ मुतवज्जह हुआ। अमलों की पूरी पूरी पैरवी (अनुसरण) की, और हक़ (यथार्थ) के दिखाए जाने पर उसे देख लिया, ऐसा शख्स तलबे हक़ (सत्य की खोज में) कि लिये सरगर्म अमल रहा, और दुनिया के बंधनों से छूट कर भाग खड़ा हुआ, उसने अपने लिए ज़खीरा फ़राहम (भण्डारण) किया, और बातिन (अन्तरात्मा) को पाक व साफ़ रखा, और आख़िरत का घर आबाद कर लिया, सफ़रे आख़िरत और उस की राह नवर्दी के लिये और एह्तियाज के मवाक़े (आवश्यकता के अवसरों) और फ़क़्रो फ़ाक़ा के मक़ामात के पेशे नज़र उसने ज़ाद अपने हमराह बार कर लिया है। अल्लाह के बन्दों ! अपने पैदा होने की ग़रज़ो ग़ायत के पेशे नज़र ुस से डरते रहो, और जिस हद तक उस ने तुम्हें डराया है उस हद तक उस से ख़ौफ़ खाते रहो, और उस से उस के सच्चे वअदे का ईफ़ा (पूर्ति) चाहते हुए और हौले क़ियामत से डरते हुए उन चीज़ों का इस्तेहक़ाक (अधिकार) पैदा करो, जो उस ने तुम्हारे लिये मुहैया (उपलब्ध) कर रखी हैं।

[ इसी ख़ुत्बे में यह भी है ]

उस ने तुम्हारे लिये कान बनाए ताकि ज़रुरी और अहम (महत्वपूर्ण) चीज़ों को सुन सको और सुरक्षित रख सको, और उस ने तुम्हें आखें दी हैं ताकि वह कोरी व बे बसरी (अंधेपन) से निकल कर रौशन व ज़ियाबार (प्रकाशमान) हों और ज़िस्म के मुख्तलिफ़ हिस्से (विभिन्न भाग) जिन में से हर एक में बहुत से अअज़ा हैं जिनके पेचो ख़म (धुमाव व झुकाव) उन की मुनासिबत से है अपनी सूरतों की तर्कीब और उम्र की मुद्दतों (आयु की अवधियों) के तनासुब के साथ साथ ऐसे बदनों (शरीरों) के साथ जो अपने ज़रुरीयात (आवश्यकताओं) को पूरा कर रहे हैं। और ऐसे दिलों के साथ हैं जो अपनी ग़िज़ाए रुहानी (आध्यात्मिक भोजन) की तलाश में लगे रहते हैं। अलावा दीगर बड़ी नेमतों और ऐहसान मन्द (कृतज्ञ) बनाने वाली बखशिशों और सलामती के हिसारों (सुरक्षा व्यूहों) के। और उस ने तुम्हारी उम्रें मुक़र्रर कर दी हैं जिन्हें तुम से मख्फी (गुप्त) रखा है। और गुज़श्ता (भूतपूर्व) लोगों के हालात व वाक़िआत से तुम्हारे लिए इबरत अन्दोज़ी (शिक्षा ग्रहण करने) के मवाक़े (अवसर) बाक़ी रख छोड़े हैं। ऐसे लोग जो अपने हज़ व नसीब से लज़्ज़त अन्दोज़ थे (स्वाद) ले रहे थे। और खुले बन्दों आज़ाद फ़िरते थे। किस तरह उम्मीदों के बर आने से पहले (आशाओं की पूर्ती से पूर्व) मौत ने उन्हें जा लिया और उम्र के हाथ ने उन्हें उन उम्मीदों से दूर कर दिया। उस वक़्त उन्हों ने कुछ सामान न किया जब बदन तन्दरुस्त (शरीर स्वस्थ) थे, और उस वक़्त इब्रत व नसीहत हासिल न की कि जब जवानी का दोर था। किया यह भर पूर जवानी वाले कमर झुका देने वाले भुड़ापे के इन्तेज़ार में हैं ? और सेहत की तरो ताज़गी वाले टूट पड़ने वाली बीमारियों के इन्तेज़ार में हैं। और यह ज़िन्दगी वाले फ़ना (नाश) की घड़ियां देख रहे हैं ? जब चल चलाओ का हंगाम नज़दीक और कूव (प्रस्थान) क़रीब होगा और बिस्तरे मर्ग (मरण शेया पर क़लक़ व इज़तिराब (क्षोभ व व्याकुलता) और सोज़ व तपिश के बेचेनियां और लुआबे दहन (लार) के फ़न्दे होंने और अज़ीज़ो अक़ारिब और औलाद व अहबाब में मदद के लिए फ़रियाद करते हुए इधर उधर कर्वटें बदलने का वक़्त आ गया होगा तो क्या क़रिबीयों ने मौत को रोक लिया या रोने वालियों के रोने ने कुछ फ़ायदा पहुंचाया ? उसे तो क़ब्रिस्तान के एक तन्ग व तारीक गोशे के अन्दर जकड़ बान्द कर अकेला छोड़ दिया गया है। सांप और बिच्छुओं ने उस की जिल्द (त्वचा) को छलनी कर दिया है और वहां की पामालियों ने उस की तरो ताज़गी को फ़ना कर दिया है। आंधियों ने उस के आसार मिटा डाले और हादिसात (दुर्घटनाओं) ने उस के निशानात तक महव (मिटा) कर दिये तरोताज़ा जिस्म (हष्ट पुष्ट शरीर) लागर व पजमुर्दा (निर्जीव) हो गए। हड्डियां गल सड़ गईं और रूहें गुनाह के बारे गरां (बड़े बोझ) के नीचे दबी पड़ी हैं और ग़ेब की ख़बरों पर यक़ीन कर चुकी हैं लेकिन उन के लिए अब न अच्छे अमलों में अज़ाफ़े की कोई सूरत और न बद अअमालियों (कुकर्मों) से तौबा (प्रायशचित) की कुछ गुंजाइश है। क्या तुम उन्हीं मर चुकने वालों के बेटे, बाप भाई, और क़रीबी (समीपवर्ती) नहीं हो ? आख़िर तुम्हें भी तो बिलकुल उन्हीं के से हालात का सामना करना और उन्हीं की राह पर चलना है और उन्हीं की शाह राह पर गुज़रना है। मगर दिल अब भी हज्ज़ो सआदत से बेरग़बत (रुचिहीन) हैं, और हिदायत से बे पर्वा हैं और ग़लत मैदान में जा रहे हैं गोया इन के अलावा कोई और मुराद व मुखातब है, और गोया इन के लिए दुनिया समेट लेना ही सहीह रास्ता है। याद रखो कि तुम्हें गुज़रना है सिरात (मार्ग) पर से और वहां की ऐसी जगहों पर से जहां क़दम लड़ खड़ाने लगते हैं, और पैर फिसल जाते हैं, और क़दम क़दम पर ख़ोफ़ व देहशत के खतरात हैं अल्लाह से इस तरह डरो जिस तरह वह मर्दे ज़िरक व दाना (चतुर एंव बुद्धि मान व्यक्ति) डरता है कि जिस के दिल को उक़बा की सोंच विचार ने और चीज़ों से ग़ाफिल (निश्चिन्त) कर दिया हो और ख़ोफ़ ने उस के बदन को तअब व कुलफ़त (कष्ट व क्लेश) में डाल दिया हो, और नमाज़े शब ने उस की थोड़ी पहुत नीन्द को भी बेदारी में बदल दिया हो और उम्मीदे सवाब में उस के दिन की तपती हुई दोपहरें प्यास से गुज़रती हों, और ज़ुह्दो वरअ (सयंम एंव इन्द्रिय निग्रह) ने उस की ख्वाहिशों को रोक दिया हो, और ज़िक्रे इलाही (अल्लाह की याद) से उस की ज़बान हर वक़्त हरकत में हो। खतरों के आने से पहले उस ने ख़ोफ ख़ाया हो और कटी फटी राहों से बचता हुआ सीधी राह पर हो लिया हो और राहे मक़सूद (वांछित मार्ग) पर आने के लिए सीधा रास्ता इख्तियार किया हो, न खुश फरेबयों (प्रसन्नतादायक कष्टों) ने उस में पैचोताब (आक्रोश) पेदा किया हो और न मुशतबह (सन्देहात्मक) बातों ने उस की आखों पर पर्दा डाला हो ऐसा व्यक्ती बुशारत (शुभ समाचार) की खुशियों और नेमत की आसाइशों (वर्दानों के सुखों) को पाकर मीठी निन्द सोता है और अमन चेन से दिन गुज़ारता है। वह दुनिया की उबूरगाह (पेतरणी) से क़ाबिले तारीफ़ सीरत के साथ गुज़र गया और आखिरत की मंज़िल पर सआदतों (सोभाग्यों) के साथ पहुंचा। वहां के खतरों के पेशे नज़र (दृष्टिगत) उस ने नेकियों की तरफ़ कदम बढ़ाया और अच्छाइयों के लियें इस वक़फऐ हयात (जीवन काल) में तेज़गाम (तीव्र गती से) चला तलबे आखिरत में दिल जमई व रग़बत (एकाग्रचीत एव रुची पूर्वक) से बढता गया और बुराईयों से भागता रहा, और आज के दिन (आने वाले) कल का ख्याल रखा, और पहले से अपने आगे की ज़रुरतों पर नज़र रखी बखशिश व अता के लिए जन्नत और अज़ाब व इक़ाब के लिए दोज़ख से बढ़ कर क्या होगा, और इन्तिक़ाम लेने और मदद करने के लिये अल्लाह से बढ़कर कौन हो सकता है, और सनद व हुज्जत (प्रमाण व तर्क) बन्द कर अपने खिलाफ़ सामने आने के लिये क़ुर्आन से बढ़ कर क्या है ? मैं तुम्हें अल्लाह से डरने की वसीयत करता हूं। जिस ने डराने वाली चीज़ों के ज़रीए खुदा तराशी (खुदा बना लेने) की कोई गुंजाइश बाक़ी नहीं रखी। और सीधी राह दिखा कर हुज्जत तमाम कर दी है और तुम्हें उस दुश्मन से होशियार (सतर्क) कर दिया है जो चुपके से सीनों में नुफ़ूज़ (प्रवेश) कर जाता है और काना फूसी करते हुए कानों में (अपना मंत्र) फ़ूंक देता है। चुनांचे वह गुमराह (पथभ्रष्ट) कर के तबाह व बरबाद कर देता है। और वादे कर के तिफ्ल तसल्लियों (बच्चों जैसी) ढ़ारस बधाए रखता है। पहले तो बड़े बड़े मोहलिक गुनाहों (जान लेवा पापों) को हलका और सुबुक कर के दिखाता है। और जब बहकाए हुए नफ्स को गुमराही के ढ़र्रे पर लगा देता है और उसे अपने फ़न्दों में अच्छी तरह जकड़ लेता है तो जिसे सजाया था उस को बुरा कहने लगता है और जिसे हलका और सुबुक (महत्वहीन) दिखाया था उस की गरां बारी व अहम्मीयत (महत्ता) बताता है, और जिस के मुतमइन (संतूष्ट) और बेखोफ़ (निर्भीक) किया था उस से डराने लगता है।

[ इसी ख़ुत्बे का एक जुज़ (अंश) यह है जिस में इन्सान की पेदाइश का बयान (वर्णन) है ]

या पिर उसे देखो, जिसे अल्लाह ने मां के पेट की अंधयारियों और परदे की अन्दरुनी (आन्तरिक) तहों में बनाया जो एक (सजिव शुक्राणु) से छलकता हुआ नुत्फा (वीर्य) और बेशकलो सूरत (बिना आकृति एंव रूप) का मुन्जमिद खून (जमा हुआ रक्त) था फिर मानव रूप एंव आकृति के सांचे में ढ़ल कर जनीन (गर्भस्थ) बना और फिर तिफ्ले शीर खार (दूध पीता शिशु), और फिर दूध पीने की सीमा से निकल कर तिफले नोखैज़ (किशोर बच्चा), और फिर पूरा पूरा जवान (युवक) हुआ। अल्लाह ने उसे निगहदाश्त (सरक्षंण) करने वाला दिल, और बोलने वाली ज़बान, और देखने वाली आंखे दीं, ताकि इब्रत हासिल (शिक्षाग्रहण) करते हुए कुछ समझे बूझे और नसीहत (उपदेश) का असर लेते हुए बुराइयों से बाज़ रहे। मगर हुआ यह कि जब उस के अअज़ा (अंग) में तवाज़ुन (संतुलन) व एतिदाल (एंव समता) पेदा हो गया और उस का क़दो क़ामत (आकार व डील डोल) अपनी बलन्दी (ऊचाई) पर पहुंच गया तो गुरूर व सरमस्ती (धमंण्ड व मस्ती) में आकर हिदायत से भड़क उठा, और अंधाधुन्ध भटकने लगा। इस तरह की रिन्दी व हवस नाकी (स्वच्छन्दता एंव लोलुपता) के डोल भर भर के खींच रहा था। और निशात व तरब (हर्ष एंव आनन्द) की कैफीयतों (अवस्थाओं) और हवस बाज़ी की तमन्नाओं (स्वच्छन्दता की आकांछाओं) को पूरा करने में जान खपाए, हुए था, न किसी मुसीबत (संकट) को खातिर में लाता था न किसी डर अन्देशे का असर लेता था। आखिर इन्हीं शोरीदगियों (उद्दन्डताओं) में ग़ाफिल व मदहोश हालत में मर गया। और जो थोड़ी बहुत ज़िन्दगी थी उसे बेहूदगियों (दुष्टता) में गुज़ार गया। न सवाब कमाया न कोई फ़रीज़ा कर्तव्य पूरा किया। अभी व बाक़ी मांदा सरकशीयों (अवशेष उद्दण्डताओं) की राह ही में था कि मौत लाने वाली बीमारियां उस पर टूट पड़ीं, कि वह भौंचक्का सा हो कर रह गया, और उस ने रात अन्दोह व मुसीबत की कुलफतों और दर्द व आलाम (पीड़ा व क्षोभ) की सखतियों में जागते हुए इस तरह गुज़ार दी कि वह हक़ीक़ी (सगा) भाई, मेहरबान बाप (कृपालू बाप) बेचेनी से याद करने वाली और बेक़रारी से सीना कूटने वाली बहन के सामने सकरात की मदहोशियों (यम यातना की निश्चेत अवसथाओं) और सख्त बद हवासीयों और दर्द नाक चीखों और सांस उखड़ने की बेचेनियों और नज्अ (चन्द्रा) की दरमान्दा (बेहाल) कर देने वाली शिद्दतों में पड़ा हुआ था। फिर उसे कफ़न में नामुरादी के आलाम में लपेट दिया गया, और वह बड़े चुपके से बिला मुज़ाहमत (बिना प्रक्रिया) दूसरों की नक़लो हरकत (अन्य लोगों की गति विधियों) का पाबन्द रहा। फिर उसे तखते पर डाला गया इस आलम में कि वह मेहनत व मशक़्क़त से खस्ता हाल और बिमारीयों के सबब निढ़ाल हो चुका था। उसे सहारा देने वाले नव जवानों, और तआवुन (सहयोग) करने वाले भाईयोंने कांधा देकर परदेस के घर तक पहुंचा दिया कि जहां मेल मुलाक़ात के सारे सिलसिले टूट जाते हैं और जब मशायअत करने (शवयात्रा में साथ चलने) वाले और मुसीबत ज़दा (संकटग्रस्त) अज़ीज़ वाअक़ारिब पलट आए, तो उसे क़ब्र के गढे में उठा कर बिठा दिया गया। फरिशतों से सवाल व जवाब (प्रशनोत्तर) के वास्ते सवाल की देहशतों (प्रशन के भय) और इमतेहान की ठोकरें खाने के लिए और फिर वहां की सब से बड़ी आफत खोलते हुए पानी की मेहमानी और जहन्नम में दाखिल होना है। और दोज़ख की लपटें और भड़कते हुए शोलों (जवालाओं) की तेज़ीया (तीब्रतायें) हैं। ना उसमें राहत के लिए कोई वक़फा (अन्तराल) है और न सुकून व राहत के लिए कुछ देर के लिए बचाओ है। ना रोकने वाली कोई क़ुवत है और ना अब सुकून देने वाली मौत, ना तकलीफ़ को भुला देने के लिए नीन्द बल्कि वह हर वक़्त क़िस्म क़िस्म की मौतों और घड़ी घड़ी के नित्य नए अज़ाबो में होगा। अब अल्लाह ही से पनाह के ख्वास्तगार हैं।

अल्लाह के बन्दों! वह लोग कहां हैं जिन्हें उम्रे दी गईं तो वह नेमतों (वर्दानों) से बहरा याव (लाभांवित) होते रहे। और उन्हें बताया गया तो वह सब कुछ समझ गए और वक़्त दिया गया तो उन्हों ने वक़्त गफ़लत (निशचेतना) में गुज़ार दिया, और सहीह व सालिम रखे गये तो इस नेमत (वर्दान) को भूल गए। उन्हें लम्बी मोहलत दी गई थी, अच्छी अच्छी चीज़ें (वस्तुयें) भी उन्हें बख्शीं (प्रदान की) गई थीं दर्द नाक अज़ाब (निर्मम दण्डं) से उन्हें डराया भी गया था, और बड़ी चीज़ों के उनसे वअदे भी किये गए थे। तो अब तुम्ही वर्तए हलाकत (मृत्यु भवरं) में डालने वाले गुनाहों (पापों) और अल्लाह को नाराज़ करने वाली खताओं (अपराधों) से बचते रहो।

ऐ चशमो गोश (आंख कान) रखने वालों! ऐ सेहत व सर्वत (स्वास्थ्य एंव समृद्धि) वालो! क्या बचाओ की कोई जगह या छुटकारे की कोई गुंजाइश है ? या कोई पनाहगाह या ठिकाना है ? भाग निकलने का मोक़ा या फिर दुनिया में पलट कर आने की कोई सूरत है ? अगर नहीं है, तो फिर कहां भटक रहे हो ? और किधर का रुख किये हुए हो ? और किन चीज़ों के फरेब में आ गए हो ? हालांकि इस लम्बी चोड़ी ज़मीन (पृथ्वी) में से तुममें से हर एक का हिस्सा अपने क़द भर का टुकड़ा ही तो है, कि जिस में वह मिट्टी से अटा हुआ रुखसार के बल पड़ा होगा। यह अभी ग़नीमत है खुदा के बन्दों ! जब कि गर्दन में फन्दा नही पड़ा हुआ है और रुह भी आज़ाद है। हिदायत हासिल (अनुदेश ग्रहण) करने की फुरसत और जिस्मों (शरीरों) की राहत और मजलिसों के इजतिमा (सभाओं में जमाव) और ज़िन्दगी की बक़ाया मोहलत और अज़ सरे नव (नये सिरे से) इख्तियार से काम लेने के मवाक़े और तौबा की गुंजाइश (प्रायश्चित के अवसर) और इत्मीनान की हालत में क़ब्ल इस के कि तंगी और ज़ीक़ (ससेहट) में पड़ जाए और खोफ़ व इज़मेहलाल (भय एंव खित्रता) उस पर छा जाए और क़ब्ल इस के कि मौत आजाए और क़ादिर व ग़ालिब (सर्व शक्ति मान व आधि पत्य वाले) की गिरफ्त उसे जकड़ ले।

सैय्यद रज़ी कहते हैं कि प्रत्यक दर्शकों का बयान है कि जब हज़रत ने यह खु़त्बा इर्शाद फ़रमाया तो बदन (शरीर) लरज़ने (कांपने) लगे, रोंगटे खड़े हो गए, आंखों से आंसू बह निकले और दिल कांप उठे। कुछ लोग इस ख़ुत्बे को ख़ुतबए ग़र्रा के नाम से याद करते हैं।

ख़ुदावन्दे आलम ने प्रत्येक जानदार को प्राकृतिक वस्त्र से सुसज्जित किया है जो सर्दी और गर्मी में उस के लिए बचाओ का साधन होता है, किसी को परो में ढ़ाप रखा है और किसी को ऊनी लबादे उढ़ा दिए हैं। मगर मानव विवेक की उच्चता और उस की लाज लज्जा का सार दूसरी सृष्टियों से वीभेद चाहता है। अस्तु उस के विभेद को स्थापित रखने के लिए उसे शरीर ढ़कने की विधियां बताई गईं हैं। इसी प्राकृतिक मांग का परिणाम था कि जब हज़रत आदम (अ.स.) के शरीर से वस्त्र उतरवा लिया गया तो उन्होंने स्वर्ग के पत्तो से अपने गोपनीय अंगों को छिपाया जैसा कि क़ुदरत का इर्शाद है :--

“ जब उन दोनों ने उस वृक्ष के फ़ल को चखा तो उन के वस्त्र उतर गये और स्वर्ग के पत्तों को जोड़ कर अपने ऊपर ढ़ांप ने लगे। ”

यह उस रोष का परिणाम था, जो तर्के औला (उत्तम को त्याग ने) के कारण हुआ था। तो जब वस्त्र का उतरवाना रोष प्रदर्शन है तो उस का पहनाना दया एंव आभार होगा, और क्योंकि यह मानव जाती के लिए विशिष्ट है इस लिए विशेष रूप से इस की चर्चा की गई है।

तात्पर्य यह है कि खुदावन्दे आलम मरने वालों को प्रलय के दिन उठायेगा, चाहें वह हिंसक जंतुओं का भोजन और मासाहारी पक्षियों का चारा बन कर उन के शरीर के अंश बन चुके हों, इस से उन दार्शनिको का खंडन उद्देशय है जो “अल मअदूमुन ला युआद ” (नष्ट होजाने के बाद पलटना असम्भव है) के आधार पर सशरीर पलटने के समर्थक नहीं है। उन के इस तर्क का सारांश यह है कि जो चीज़ नष्ट हो कर लुप्त हो जाये वह बिल्कुल वेसी ही दोबारा पलट नहीं सकती, अस्तु ब्राह्याँड के मिट जाने के बाद किसी चीज़ का दोबारा पलट कर आना असम्भव है। परन्तु यह मत उचित नहीं है क्योकि अंशों का बिखर जाना उन का नष्ट हो जाना नहीं है उन के दौबारा संमिश्रण पाकर एकत्र होने को नष्ट एंव लुप्त की पुनरावृत्ति कहें। बल्कि अस्तव्यस्त एंव बिखरे हुए अंश किसी न किसी रूप में मौजूद रहते हैं अलबत्ता इस सिलसिले में यह एतिराज़ कुछ वज़्न रखता है कि जब हर व्यक्ति को बिल्कुल वेसे ही अपने अंशों के साथ उठाया जाना है तो उस दशा में कि एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को निगल चुका होगा और एक के शारीरिक अंश दूसरे के शारीरिक अंशों के साथ पलटाना किस प्रकार संभव होगा जब कि इस से खाजाने वाले मनुष्य को अंशों में कमी होजाना आवश्यक होगा। इस का जवाब दार्शनिको ने यह दिया है कि हर शरीर में कुछ असली अंश होते हैं और कुछ अंश अनावश्यक होते हैं। असली अंश आरम्भिक आयु से अन्तिम आयु तक स्थीर एंव विद्दामान रहते हैं और उन में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता और प्रलय में उठाए जाने का सम्बंध इन ही अंशों से है कि जिनके पलटा लेने से काजाने वाले इन्सान के अंशों में कमी पैदा न होगी।

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