नहजुल बलाग़ा ख़ुत्बा 79-80

ख़ुत्बा-79 ऐ लोगों ! उम्मीदों को कम करना नेमतों (वर्दानों) पर शुक्र (धन्यवाद) अदा करना, और हराम चीज़ों (वर्जित वस्तुओं) से दामन बचाना ही ज़ु...

ख़ुत्बा-79

ऐ लोगों ! उम्मीदों को कम करना नेमतों (वर्दानों) पर शुक्र (धन्यवाद) अदा करना, और हराम चीज़ों (वर्जित वस्तुओं) से दामन बचाना ही ज़ुह्द व वरअ (संयम एंव इन्द्रिय निग्रह) है अगर (दामने उम्मीद को समेटना) तुम्हारे लिये मुश्किल (कठिन) हो जाए तो इतना तो हो कि हराम तुम्हारे सब्रो शिकेब (संतोष एंव धैर्य) पर ग़ालिब न आ जाय (वशीभूत न कर ले) और नेमतों के वक्त (वर्दानों की प्राप्ति के समय) शुक्र (धन्यवाद) को न भूल जाओ। खुदा वन्दे आलम ने रौशन (प्रकाशमान) और खुली हुई दलीलों (तर्कों) से और हुज्जत तमाम करने वाली (विवाद समाप्त करने वाली) वाज़ेह किताबों के ज़रीए (स्पष्ट पुस्तकों के द्वारा) तुम्हारे लिये हीलो हुज्जत (बहाना करने) करने का मौक़ा (अवसर) नहीं रहने दिया।

ख़ुत्बा-80

मैं इस दारे दुनिया (संसार रुपी गृह) की हालत (स्थिति) क्या बयान करुं कि जिस की इब्तिदा (आरम्भ) रंज (दुख) और इन्तिहा (अन्त) फ़ना (नाश) हो। जिस के हलाल (भक्ष्य) में हिसाब और हराम (अभक्ष्य) में सज़ा व इक़ाब (दण्ड व उत्पीड़न) हो। यहां कोई ग़नी (धनी) हो तो फ़ित्नों (उपद्रवों) से वासिता (सम्बंध) और फ़क़ीर हो तो हुज्नों मलाल (शोक एवं क्षोभ) से साबिक़ा (सामना) रहे। जो दुनिया के लिये सई व कोशिश (प्रयत्न व प्रयास) में लगा रहता है उस की दुनियवी आर्ज़ूयें (सांसारिक आकांछायें) बढ़ती ही जाती हैं। और जो कोशिशों से हाथ उठा लेता है दुनिया ख़ुद ही उस से साज़गार (अनुकूल) हो जाती है। जो शख्स (व्यक्ति) दुनिया को इब्रतों का आईना (उपदेशों का दर्पण) समझ कर देखता है तो वह उस की आंखों को रौशन (प्रकाशमय व बीना) कर देती हैं, और जो सिर्फ़ दुनिया पर ही नज़र रखता है तो वह उसे अंधा बना देती हैं।

दुनिया की इब्तिदा (उत्पत्ति) मशक्कत (परिश्रम) और इन्तिहा हलाकत (अन्तनाश) है यह वाक्य उसी यथार्थ का परिचायक है जिसे क़ुरआन ने “लक़द खलक़नल इन्साना फ़ी कबिद” (हम ने मनुष्य को परिश्रम एंव यातनाओं में रहने के लिये पैदा किया है) के शब्दों में प्रस्तुत किया गया है। यह सत्य है कि मनुष्य के जीवन काल की कर्वटें गर्भ तंगियों से ले कर (ब्रहग्ण) की विशालताओं तक कहीं भी शांत व स्थिर नहीं होतीं। जब जीवन से परिचित होता है तो वह अपने को एक ऐसी काल कोठरी में जकड़ा हुआ पाता है कि जहां हाथ पैरों को हिला सकता है और न कर्वट बदल सकता है। और जब इन जकड़ बन्दियों से छुटकारा पा कर संसार में आता है तो विभिन्न यातनाओं के दौर से उसे गुज़रना पड़ता है। आरम्भ में न ज़बान से बोल सकता है कि अपने दुख दर्द को कह सके। और न शरीर के अंगों में शक्ति रखता है कि अपनी आवश्यकताएं पूरी कर सके। केवल उस की दबी हुई सिसकियां अश्रु धारायें ही उस की आवश्यकताओं का वर्णन और शोक व क्षोभ की परिचायक होती हैं। उस काल के बीतने के बाद जब शिक्षा व दीक्षा की आयु में पग धरता है तो बात बात पर डांट डपट की आवाज़ें उस का स्वागत करती हैं। हर समय भयभीत और सहमा हुआ दिखाई देता है। जब इस पराधीनता के युग से मुक्ति पाता है तो बाल बच्चों की बन्दिशों और जीवनोपाय की चिन्ताओं में घिर जाता है, जहां कभी सहकर्मी प्रतिद्वन्द्वियों की द्वैष भावनाओं, कभी शत्रुओं से टकराव, कभी परिस्थितियों एंव दुर्घटनाओं का मुक़ाबिला, कभी रोगों का आक्रमण और कभी औलाद का दुख उसे दरपेश रहता है। यहां तक कि बुढ़ापा लाचारियों और बेबसीयों का सन्देश ले कर आ पहुंचता है और अन्तत : ह्रदय में आकांछायें एंव गहरा दुख लिये इस नाशवान संसार को अलविदा कह देता हैय़

फिर दुनिया के सम्बंध में फ़रमाते हैं कि इस की हालत (भक्ष्य) चीज़ों में हिसाब की मूशिगाफ़ियां (बारीकियां) और हराम (अभक्ष्य) चीज़ों में इक़ाब (दण्ड) की सख़तियां हैं जिस से खुशगवार लज़्ज़तें (अच्छे स्वाद) भी उस के कामों दहन में तल्खी कड़वाहट पैदा कर देता है। अगर इस दुनिया में मालो दौलत की फ़रावानी (अधिकता) हो तो इन्सान एक ऐसे चक्कर में पड़ जाता है कि जिस में राहत व सुकून (शांति व स्थिरता) खो बैठता है। और अगर तंग दस्ती व नादारी (निर्दनता) हो तो तौलत (धन) के ग़म में घुला जाता है और जो इस दुनिया के लिये तगोदौ (भाग दौड़) में लगा रहता है उस की आर्ज़ूओं की कोई इन्तिहा नहीं रहती। एक उम्मीद बर आती है (आश पूरी हाती है) तो दूसरी आर्ज़ू को पूरा करने की हवस दामन गीर हो जाती है। इस दुनिया की मिसाल (उपमा) साए की तरह है कि अगर उस के पीछे दौड़ो तो वह आगे भागता है और अगर उस से दामन छुड़ा कर पीछे भागो तो वह पीछे तोड़ने लगता है। यूं ही जो दुनिया के पीछे नहीं दौड़ता तो वह खुद (स्वयं) उस के पीछे दौड़ती है। तात्पर्य यह है कि जो लालच और हवस के फंदों को तोड़ कर बेजा दुनिया तलबी से हाथ खींच लेता है दुनिया उसे भी प्राप्त होती है और वह उस से वंचित नहीं कर दिया जाता। अस्तु जो व्यक्ति दुनिया की सतह से ऊंचा उठ कर दुनिया को देखे और उस के हालात और घटनाओं से शिक्षा ग्रहण करे और उस की नैरंगियों और साज सज्जा से संसार के रचयिता की शक्ति, उपाय, ज्ञान और दया व कृपा और उस के पालन पोषण का पता लगाए तो उस की आखें प्रकाशमान हो जायेंगी। और जो व्यक्ति दुनिया की रंगीनियों में खोया रहता है और उस की साज सज्जा पर मर मिटता है तो वह दिल की आखें खोल कर उस की अंधियारियों ही में भटकता रहता है। इसी लिये क़ुद्रत ने ऐसी दृष्टि से दुनिया को देखने से मना फ़रमाया है :--

“कुछ लोगों को हम ने सांसारिक जीवन की हरियाली से सुशोभित किया है ताकि उन का परीक्षण करें तुम इस सांसारिक धन दौलत की ओर नज़र उठा कर न देखो। ”

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