मैं मुसलमान हो गया |

अक्सर यह इलज़ाम इस्लाम को मानने वालों पे लगाया जाता रहा है की इस्लाम तलवार की ज़ोर पे फैला | जबकि इस्लाम का उसूल है किसी पे जब्र नहीं | ज...

अक्सर यह इलज़ाम इस्लाम को मानने वालों पे लगाया जाता रहा है की इस्लाम तलवार की ज़ोर पे फैला | जबकि इस्लाम का उसूल है किसी पे जब्र नहीं | ज़बरदस्ती किसी को ताक़त या लालच के ज़ोर पे मुसलमान नहीं बनाया जा सकता और अगर कोई बन भी गया तो वोह मुसलमान नहीं कहलाएगा |

हक पे आने की दावत देना कोई बुरी बात नहीं लेकिन किसी को लालच से या ज़बरदस्ती इस्लाम पे लाने  की कोशिश खुद इस्लाम के कानून के खिलाफ है |

एक दिन मैंने सुना एक साहब बड़े खुश हो रहे थे की मुबारक को फलाने मियां आज मुसलमान हो गए | मैंने भी सुना और कहा भाई मुबारक हो लेकिन आप कब मुसलमान हुए?

बस इतना सुनना था की जनाब तैश में आ गए और कहने लगे मियाँ मैं सच में मुसलमान हो गया हूँ इस्लाम धर्म क़ुबूल कर चूका हूँ  |

मैंने कहा सुबूत दें ...

जनाब का जवाब आया मैं कलेमा पढता हूँ ,नजाम पांचो वक़्त पढता हूँ, रोज़े रखता हूँ, हज भी की है,ख़ुम्स और  ज़कात भी दिया है|

मैंने पुछा और..

फिर जवाब आया भाई मैं दाढ़ी भी रखता हूँ, लुंगी,और ऊँचा पजामा भी पहनता हूँ, बीवियां पर्दा करती हैं |
मैंने कहा माशाल्लाह आप को पक्के मुसलमान लगते हैं | इतना सुनना था की वो खुश हो गए |


फिर मैंने बात बदल दी और उनके बारे में उनके वालेदैन के बारे में पूछने लगा | मालूम हुआ की जनाब के वालेदैन उनसे नाराज़ हैं, भाई बहनों की जिमेदारी को जनाब बोझ समझते हैं |

अपने जैसे दुसरे मज़हब के इंसानों से यह साहब इंसानियत से पेश नहीं आते| जिस ज़मीन पे घर बनाया है वो नाजाएज़ तरीके से क़ब्ज़ा कर के बनाई गयी है |

झगडा, लोगों की बुराई करना , लोगों को आपस में लडवाना इनके पसंदीदा शौक हैं |

मैंने गौर से जब कुरान की नज़र से देखा तो पाया की बावजूद, नमाज़,रोज़े,हज ज़कात के यह साहब कहीं से भी  इस्लाम को मानने वाले नहीं लगते और जब इस्लाम के कानून को ही नहीं माना  तो मुसलमान कैसे हो सकते हैं |

क्योंकि इस्लाम में इंसानों में झगडे लगाने वाला, ज़ालिम, मान बाप को नाराज़ रखने वाला, चोरी करने वाला, कुछ भी हो सकता है लेकिन मुसलमान नहीं हो सकता |

मुसलमान होने के लिए इस्लाम के बताये कानून पे ही चलना होता है | आप किसी को हक की राह पे अगर किसी को सही राह दिखाना चाहते हैं तो एक सच्चे मुसलमान का किरदार दिखाओ ,जिससे लोग यह पूछें की भाई यह इमानदार,शरीफ इंसान कौन है और इसका मज़हब क्या है ?

आपका किरदार ही दूसरों को आपके करीब ला सकता है | इस्लाम इंसान को इंसानियत सीखने आया है न ज़ुल्म और जब्र|


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