सिला ऐ रहमी जिसका असर हमारी ज़िन्दगी की खुशियों पे पड़ता है
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वे गुनाह जिनका असर सीधे हमारी ज़िन्दगी की खुशियों पे पड़ता है |
अल्लाह ने हमें ख़ल्क़ किया दुनिया में भेजा और हमारे तरबियत से ज़रिये पैदा किये | नबी पैग़म्बर इमाम अपनी हिदायतों की किताब क़ुरआन साथ साथ मां बाप दिए जिस से की हम दुनिया में टेंशन फ्री ज़िन्दगी गुज़ार सकें और कामयाब वापस अल्लाह के पास अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाते हुए वापस पलट के आएं |
हमें बार बार दुनिया की लज़्ज़तें अपनी तरफ खींचती रही हम अल्लाह की इन नेमतों के ज़रिये बेहतर ज़िन्दगी गुज़ारने की जगह उन लज़्ज़तों के ग़ुलाम होते गए |हमने अपना एक अलग निज़ाम अपनी सहूलियतों के हिसाब से बना लिया और उसी अनकहे दुनियावी क़ानून के मुताबिक़ जीने लगे यह हमारे उलेमाओं की देंन है की हम अपने अक़ीदे तो नहीं भूले अमल तराज़ू पे कमज़ोर हो ते रहे |
और नतीजा यह हुआ कि मुसलमान सिर्फ नाम के रहे या कह लें कमज़ोर इमान वाले मुसलमान बन के रह गए |
अक़ीदा याद है अल्लाह की हिदायत की किताब क़ुरआन को पहचानते हैं , मस्जिदों में जमात से नमाज़ें पढ़ते हैं , नबी पैग़म्बर इमाम की सीरत का इल्म है तो अमल के दुरुस्त होने के रास्ते हमेशा खुले हुए हैं , उम्मीद की सकती है | मसलन हम ऐसे मुसलमान है की जब हराम की कमाई का मौक़ा हाथ लगता है तो जी भर के कमाते है और फिर उसी हराम की कमाई ने नेकियाँ करने लगते है जो की जाया हो जाती है और आमालनामा खाली |
हमारी नेकियाँ में सुकून का सबब और बदी परेशानी का सबब हुआ करती हैं यह एक ऐसा सच हैं जो हमारे मानने या ना मानने से नहीं बदलता | ऐसे ही कुछ नेकियों का सिला फायदा दुनिया में फ़ौरन मिलता है और कुछ गुनाहों की सजा दुनिया में ही मिलना शुरू हो जाती है |
ऐसे ही दो गुनाह हैं ग़ीबत और क़ता ऐ राहमि | जहां ग़ीबत हमारी नेकियों को खाते हुए समाज में खालफिशार की वजह बनते हुए , अल्लाह की रहमतों से हमें दूर करता करता है | हमारे दुआ क़ुबूल न होने की वजह बनता है यह गुनाह उसी तरह क़ता ऐ रही हमारी ज़िन्दगी को कम करता है और अल्लाह की रहमतों से दूर करता है |
सिला ऐ रहमी
आज के दौर में पश्चिमी सभ्यता का असर मुसलमानो पे पड़ता साफ़ दिखाई देता है | इस्लाम हर तरह की बेहयाई बेशर्मी, ना इंसाफ़ी ,के खिलाफ है | इस्लाम ने अकेले सिर्फ खुद के लिए जीने हो हराम क़रार दिया है और हर मुसलमान पे अपने समाज अपने आस पास के लोगों के प्रति एक ज़िम्मेदारी तय कर रखी है | अल्लाह ने बारह बार क़ुरान में सिला ऐ रहमी और कता ऐ रहमी का ज़िक्र किया है और साफ़ साफ़ कहा है जो सिला ऐ रही करेगा लम्बी खुशहाल िन्दगी पाएगा और जो क़ता ऐ रहमि करेगा उसपे अल्लाह की लानत होगी |
सिला ऐ रहमी का मतलब यह होता है की वे रिश्तेदार जो आपके जन्म से रिश्तेदार है जैसे औलादें, माँ बाप ,भाई बहन ,चाचा फूफी खाला मामू और उनकी औलादें वगैरह | यहां यह कहता चलूँ की हदीसों में यह सिलसिला भाई बहनो ,फूफी खला और उनकी औलादों पे रुका नहीं हैं बल्कि आगे उनकी और उनकी औलादों तक जाता है लेकिन कम से कम औलादें, माँ बाप ,भाई बहन ,चाचा फूफी खाला मामू और उनकी औलादों के साथ सिला ऐ रही वाजिब है |
इस्लाम में इन क़रीबी रिश्तेदारों की एक दूसरे के लिए एक ज़िम्मदेरी तय की गयी है और यह इतना सख्त क़ानून है की अल्लाह हदीस ऐ क़ुद्सी में कहता है अगर तुम अपने इन क़रीबी रिश्तेदारों के साथ ताल्लुक़ात ख़त्म करोगे तो जन्नत से महरूम रहोगे और अल्लाह तुमसे रिश्ते ख़त्म कर देगा ।
इमाम से मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फरमाते हैं की सिला ऐ रहमी रूह की ताज़गी और रिज़्क़ में इज़ाफ़े की वफ्फ होती है और रिश्तेदारों से नाता तोड़ देना (क़ता ऐ रहमी) चाहे वे नालायक़ ही क्यों न हों रिज़्क़ में कमी , अचानक मौत की वजह होती है |
इस सिलसिले में कहा गया है की अगर रिश्ते आपस में ठीक न भी हों तो भी सामने मिलने पे सलाम करना खैरियत दिल से पूछना और दूर हैं तो खतों से फ़ोन से खाल चाल लेना और परेशानी की मदद करना सिला ऐ रहमी है |
अलकाफ़ि से रवायत है की एक सहाबी ऐ इमाम मुहम्मद जाफर ऐ सादिक़ अलैहिस्लाम उनके पास आया और अपने रिश्तेदारों की शिकायत की और कहा वे उसे इतना परेशान करते हैं की मजबूर हो के उसने खुद को क़ैद कर लिया है | इमाम ने फ़रमाया सब्र करो और तुम उनसे रिश्ते न तोडना कुछ दिन में तुम्हे राहत मिलेगी |
उस शख्स ने कुछ दिन गुजरने के बाद जब देखा कोईफर्क नहीं उसके रिश्तेदारों के बर्ताव में तो उसने फैसला किया की अब क़ानूनी तौर पे उनकी शिकायत बादशाह और काज़ी से की जाय | अभी वो सोंच ही रहा था की की उसके इलाक़े में प्लेग फैला और उसके वे रिश्तेदार जो उसका जीना हराम किये थे इस बीमारी की वजह से मर गए | वो शख्स इमाम के पास फिर से गया तो इमाम ने बताया उनपे यह अज़ाब अपने क़रीबी रिश्तेदारों से रिश्ता तोड़ने उनका हक़ मारने और उन्हें परेशान करने की वजह से आया | Shaytan, vol. 1, pg. 515; al-Kafi
दुसरी रवायत है की हसन इब्ने अली जो इमाम जाफर ऐ सादिक़ अलैहिसलाम का चहेरा भाई था किसी बात पे उनकी इमाम से अनबन हो गयी और वो इस हद तक चला गया की उसने इमाम पे हमला कर दिया |
इमाम का जब आखिरी वक़्त आया तो उन्होंने कहा उस भाई को 70 दीनार उसको भी दिए जाएँ | लोगों ने कहा या मौला आप उसे ही ७० दीनार दे रहे हैं जिसने आप्पे हमला किया था |
इमाम ने कहा अल्लाह ने जन्नत बनायीं और उसमे खुशबु पैदा की और ऐसी खुशबु की उसे दो हज़ार की दूरी से भी महसूस किया जा सकता है लेकिन जन्नत क्या वो शख्स जन्नत की खुशबु भी नहीं पा सकता जिसने अपने रिश्तेदारों से ताल्लुक़ात ख़त्म किये हों या जो माँ बाप का आक़ किया गया हो | Hikayat-ha-e-Shanidani, vol. 5, pg. 30; Al-Ghunyah of (Sheikh) Tusi, pg. 128
इमाम जफर ऐ सादिक़ अलैहिसलाम फरमाते हैं की रिश्तेदारों से नाता न तोडा करो क्यों मैंने क़ुरआन मी तीन जगह ऐसे लोगों पे अल्लाह को लानत करते देखा है |
इमाम जाफर ऐ सादिक़ अलैहिसलाम ने कहा अपने को हलिका से बचाओ क्यों की यह ज़िंदगियाँ खराब कर देता है \ किसी से पुछा हालीक़ा क्या है तो इमाम ने कहा रिश्तेदारों से रिश्ते तोडना |
एक शख्स ने हज़रात मुहम्मद सॉ से पुछा अल्लाह की नज़र में सबसे ना पसंदीदा काम क्या है ?
जवाब आया शिर्क करना |
क़ता ऐ रहमी
बुरे काम को बढ़ावा देना और अच्छे को रोकना |
हज़रात मुहम्मद सॉ ने फ़रमाया तीन काम जिनकी सजा दुनिया और आख़िरत दोनों में मिलती है
ना इंसाफ़ी, रिश्ते तोडना और झूटी क़सम खाना
क़ुरान में अल्लाह फरमाता है
हे लोगो! अपने पालनहार से डरो जिसने तुम्हें एक जीव से पैदा किया है और उसी जीव से उसके जोड़े को भी पैदा किया और उन दोनों से अनेक पुरुषों व महिलाओं को धरती में फैला दिया तथा उस ईश्वर से डरो जिसके द्वारा तुम एक दूसरे से सहायता चाहते हो और रिश्तों नातों को तोड़ने से बचो (कि) नि:संदेह ईश्वर सदैव तुम्हारी निगरानी करता है। (4:1) सूरा ऐ निसा
और याद करो उस समय को जब हमने बनी इस्राईल से प्रतिज्ञा ली कि तुम एक ईश्वर के अतिरिक्त किसी की उपासना नहीं करोगे, माता पिता, नातेदारों, अनाथों और दरिद्रों के साथ अच्छा व्यवहार करोगे, और ये कि लोगों के साथ भली बातें करोगे, नमाज़ क़ाएम करोगे, ज़कात दोगे, फिर थोड़े से लोगों को छोड़कर तुम सब अपनी प्रतिज्ञा से फिर गए और तुम मुहं मोड़ने वाले लोग हो। (2:83)
(हे पैग़म्बर) वे आपसे पूछते हैं कि भलाई के मार्ग में क्या ख़र्च करें? कह दीजिए कि माता-पिता, परिजनों, अनाथों, दरिद्रों तथा राह में रह जाने वालों के लिए तुम जो चाहे भलाई करो, और तुम भलाई का जो भी काम करते हो, निःसन्देह ईश्वर उसको जानने वाला है। (2:215)
इमाम मुहम्मद बाक़िर फरमाते हैं सिरात पुल्ल है और इसके एक तरफ होगा सिला ऐ रही और दूसरी तरफ अमानतदारी | इनदोनो के बिना यह पुल्ल पार नहीं पार नहीं कर सकेगा कोई |
हज़रत मुहम्मद सॉ से किसी ने पुछा की ऐसा कौन स अमल है जो किसी की उम्र घटा सकता है और बढ़ा सकता है ?
रसूल ने कहा क़ता ऐ रही उम्र घटा देता है और सिला ऐ रही उम्र को बढ़ाता है और यह तादात तीन से तीस साल तक बताई गयी है |
इमाम ऐ रज़ा से एक बार दो लोग मिलने आय तो इमाम ने बात चीत के दौरान एक शख्स से कहा ऐ शख्स तू क़िस्मत वाला है क्यों की इस सफर में आज के दिन तेरी मौत थी लेकन अल्लाह ने उसे पांच साल बढ़ा दी | उस शख्स ने पुछा अल्लाह इतना मेहरबान क्यों हुआ ? तो इमाम बोले रास्ते में सफर के तेरी फूफी का घर पड़ता था और तुझे उसकी मुहब्बत आयी और तू उनसे मिलने चला गया | अल्लाह ने इस सिला ऐ रहमि की वजह से तेरी उम्र बढ़ा दी |
रवायतों में है की ५ शख्स उसी दिन इंतेक़ाल कर गया जो दिन इमाम ने बताया था |
हमारी ज़िन्दगी की खुशियों
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