मरहूम मौलाना हसन अब्बास खान ग़रीबों का मददगार थे |
आज के दौर की सबसे बड़ी मुश्किल यह है की गुनाहं के आम हो जाने और लोगों के गुनाहों पे राज़ी हो जाने वाले समाज को देख के लोगों के ज़हन में यह...
आज के दौर की सबसे बड़ी मुश्किल यह है की गुनाहं के आम हो जाने और लोगों के गुनाहों पे राज़ी हो जाने वाले समाज को देख के लोगों के ज़हन में यह आता है की कौन आज कल हदीस और क़ुरआन पे चलता है ? जब आप इमाम (अ ) की सीरत बयान करे तो कहते हैं अरे वो इमाम थे कहाँ वो कहाँ हम ? जब मुजतहिदीन के किरदार से मिसाल दो तो कहते हैं अरे वो मुजतहिद हैं हम कहाँ उनका मुक़ाबला कर सकते हैं ?
हकीकत में यह सब इब्लीस की दलीलों का सिलसिला है वरना हम पे हुज्जत इमाम भी है , मुजतहिद भी और हमें उनसे ही सीखना है और उनके ही बताय उन रास्तों पे चलना है जिसपे चल के वे हमें दिखा गए |
इन बातों को नज़र में रखते हुए मैंने उन उलेमा की नेकियों को पेश करना शुरू किया जिन्हे मुजतहिद का दर्जा हासिल नहीं | हमारे बीच में उठते बैठते हैं | उम्मीद तो यही है की अब हम यह तो नहीं कहेंगे की हम इन मौलाना जैसे भी किरदार में नहीं हो सकते | बाक़ी तो इब्लीस के वजूद से इंकार नहीं और जो अहलेबैत का सच्चा चाहने वाला है उसे इब्लीस नहीं गुमराह कर पाता यह भी एक सच्चाई है | मैंने आज तीन दिनों में मरहूम मौलाना सय्यद अली क़ासिम रिज़वी, मौलाना एहसान जवादी मरहूम , की सिर्फ एक एक नेकी बतायी जबकि उनकी ज़िंदगी से बहुत कुछ आगे भी दूंगा जिसे मैंने खुद देखा और महसूस किया |
आज आपके सामने एक तेज़ तर्रार , अहलेबैत के चाहने वालों के लिया दवा और दुश्मन के लिए तलवार , निडर हक़ पसंद मरहूम मौलाना हसन अब्बास खान के बारे में बताता हूँ |
मौलाना हसन अब्बास खान की ह्क़ पसंदगी की वजह से अक्सर लोग उनसे नाराज़ हो जाते थे क्यों की आइना देखना कोई नहीं चाहता आज के दौर में और शायद यही वजह थी बहुत जान पहचान होने के बाद भी बहुत दौलत नहीं कमा सके थे अपनी ज़िन्दगी में | जैसा की मैंने पहले बताया मौलाना एहसान जवादी मरहूम के ज़िक्र वाली पोस्ट में की मौलाना हसन अब्बास खान साहब को रात में मीरा रोड में जब दिल का दौरा पड़ा तो हॉस्पिटल किसी जान पहचान वाले के साथ गए और वहाँ उनकी मौत हार्ट सर्जरी के दौरान हो गयी | नर्सिंग होम का बिल अदा ना कर पाने की वजह से उनकी बॉडी नहीं दी जा रही थी लेकिन और उलेमा की मदद से उनके बिल को कम करवाया गया | ऐसा इसलिए की मरहूम इतने दौलत भी न जमा कर सके थे की बुरे वक़्त में दो ढाई लाख खर्च का बोझ उठा सकें जो उनकी शख्सियत को देखते हुए यक़ीनन ताज्जुब की बात थी |
उनके इंतेक़ाल के बाद बहुत सी मुश्किलें आयीं लेकिन एक दिन जिस घर में वे रहते थे उस गली से निकलते वक़्त एक दूकान थी जहां वे अक्सर बैठा करते थे | वो दूकानदार आया उनके घर और उसने बताया मरहूम उसकी बहुत मदद करते थे और उन्होंने जो मदद की रक़म अब तक दी थी उस दूकानदार ने वापस की जो की उस से ज़्यादा थी जितना उनका हॉस्पिटल का बिल आया जिसे उनके घर वाले अदा नहीं कर सके थे |
साफ़ ज़ाहिर है की मरहूम सबसे छुपा के लोगों की मदद किया करते थे और अपने पास कोई जमा पूँजी नहीं रखते थे | बहुत से लोगन ने उनका पैसा नहीं भी दिया | ऐसा मुख्लिस और मददगार आज के दौर में भी इस दुनिया में रहे और हैं जिनसे हमें सीखना चाहिए क्यों की यही अहलेबैत से सच्चे चाहने वाले हैं | मरहूम मौलाना हसन अब्बास खान का दुनिया से चले जाना क़ौम का एक बड़ा नुकसान साबित हुआ |
अल्लाह मरहूम को जन्नत नसीब करे |
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