वे मसाएल जिनका जानना ज़रूरी है |

तक़लीद सवाल :  क्या तक़लीद के बाद पूरी तौज़ीहुल मसाइल का पढ़ना ज़रुरी है ? जवाब :  आयतुल्लाह सीस्तानी :   उन मसाइल का जानना ...




तक़लीद
सवाल: क्या तक़लीद के बाद पूरी तौज़ीहुल मसाइल का पढ़ना ज़रुरी है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: उन मसाइल का जानना ज़रूरी है जिस से इंसान हमेशा दोचार है।
आयतुल्लाह ख़ामेनई: ज़रूरी नही है बल्कि सिर्फ़ दर पेश आने वाले मसाइल का जानना ज़रूरी है।
सवाल: अगर किसी मसले में मुजतहिद का फ़तवा न हो तो क्या दूसरे की तक़लीद की जा सकती है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: अगर किसी मसले में किसी मरजअ ने फ़तवा न दिया हो तो रूतबे के ऐतेबार से उस के बाद वाले मुजतहिद के फ़तवे पर अमल करना वाजिब है।
आयतुल्लाह ख़ामेनई: किसी दूसरे मुसावी मुजतहिद के फ़तवे पर अमल किया जा सकता है।

ग़ुस्ल
सवाल: अगर इंसान मसला न जानने या बे तवज्जोही की बेना पर वाजिब ग़ुस्लों को अंजाम न दे तो उस की इबादात का क्या हुक्म है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: ऐसी सूरत में नमाज़े बातिल हैं और अगर ग़ुस्ले जनाबत, हैज़, निफ़ास जान बूझ कर अंजाम नही दिया है तो उस का रोज़ा भी बातिल है लेकिन अगर मसला न जानने की वजह से ऐसा किया है तो रोज़ा सही है।
आयतुल्लाह ख़ामेंनई: अगर बे तवज्जोही की वजह से वाजिब ग़ुस्लों को अंजाम न दे तो नमाज़ और रोज़े की क़ज़ा के साथ साथ रोज़े का कफ़्फ़ारा भी वाजिब है लेकिन अगर मसला न जानने की वजह से ऐसा किया है तो सिर्फ़ नमाज़ों की क़ज़ा करेगा और अगर मसला जानने में कोताही न की हो तो फ़क़त रोज़ों की क़ज़ा करेगा।
सवाल: जिस शख़्स पर कई ग़ुस्ल हों क्या वह एक ही ग़ुस्ल में तमाम ग़ुस्लों का नीयत कर सकता है?
जवाब:  आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: हाँ एक ग़ुस्ल सब के लिये काफ़ी है लेकिन तमाम ग़ुस्लों की नीयत ज़रुरी है।


नमाज़ और उस में पर्दा:
सवाल:  नमाज़ की हालत में एक औरत पर कितना पर्दा वाजिब है?
जवाब:   आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: तमाम बदन का छिपाना वाजिब है सिवाए चेहरे का इतना हिस्सा जो वुज़ू में धोया जाता है, कलाई से उंगलियों के सिरे तक और पैरों को उंगलियों से टख़ने तक अलबत्ता वाजिब मिक़दार के यक़ीन के लिये चेहरा, कलाई और टख़ने के अतराफ़ में थोड़ा बढ़ा कर छिपाये।
सवाल:   अगर नमाज़ के दौरान ख़ातून मुतवज्जे हो जाये कि उस के बाल दिखाई दे रहे हैं तो उस की क्या ज़िम्मेदारी क्या है और अगर नमाज़ के बाद मालूम हो तो उस की नमाज़ का क्या हुक्म है?
जवाब:  आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: नमाज़ के दौरान जैसे मुतवज्जे हो फ़ौरन उसे छुपाये और अगर नमाज़ के बाद मालूम हो तो उस की नमाज़ सही है।

ग़ुस्ल
सवाल:    क्या वह रुतूबत जो औरत की शर्मगाह से ख़ारिज होती है, पाक है?
जवाब:   तमाम मराजे ए केराम:  रुतूबत पाक है ग़ुस्त की ज़रुरत नही है लेकिन अगर यक़ीन हो कि पेशाब या मनी है तो ऐसी सूरत में नजिस है।
सवाल:     किन गुस्लों को अंजाम देने के बाद उससे नमाज़ पढ़ सकते हैं?
जवाब:   आयतुल्लाह सीस्तानी: तमाम वाजिब और मुसतहब ग़ुस्लों (ग़ुस्ले इस्तेहाज़ ए मुतवस्सिता के अलावा के साथ नमाज़ पढ़ सकते हैं लेकिन ऐहतेयाते मुसतहब यह है कि वुज़ू भी करे।)
आयतुल्लाह ख़ामेनई: सिर्फ़ ग़ुस्ले जनाबत के साथ नमाज़ पढ़ी जा सकती है दूसरे ग़ुस्लों के बाद वुज़ू भी ज़रुरी है।

नमाज़
सवाल:   अगर किसी इंसान के ज़िम्मे वाजिब नमाज़ और रोज़ा क़ज़ा हों तो क्या वह मुसतहब्बी नमाज़ और रोज़े अंजाम दे सकता है?
जवाब:  तमाम मराजे ए केराम: मुसतहब्बी नमाज़ पढ़ सकता है लेकिन मुसतहब्बी रोज़े नही रख सकता।
सवाल:   अगर कमरे का फ़र्श नजिस हो तो ऐसी सूरत में क्या उस पर नमाज़ सही है?
जवाब:   तमाम मराजे ए केराम: अगर नजिस फ़र्श ख़ुश्क हो और उस की रुतूबत पढ़ने वाले के बदन या लिबास तक न पहुचे तो कोई हरज नही है लेकिन सजदे की जगह (सजदा गाह) पाक होनी चाहिये।
सवाल:  अगर नमाज़ी नमाज़ की हालत में दूसरी रकअत में तशह्हुद भूल जाये तो क्या उस की नमाज़ बातिल है?
जवाब:   आयतुल्लाह सीस्तानी:  नही बल्कि ऐसी सूरत में नमाज़ तमाम होने के बाद दो सजद ए सहव अंजाम देगा। सजद ए सहव का तरीक़ा यह है कि नमाज़ ख़त्म होने के फ़ौरन बाद सजदे में जाये और कहे: बिस्मिल्लाहि व बिल्लाह अल्ला हुम्मा सल्ले अला मुहम्मद व आलि मुहम्मद, और फिर दूसरे सजदे में भी यही कहे और फिर तशह्हुद व सलाम बजा लाये और सलाम में सिर्फ़ अस सलामों अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू कहना काफ़ी है।
आयतुल्लाह ख़ामेनई:    ऐसी सूरत में नमाज़ तमाम होने के बाद तशह्हुद की कज़ा करेगा और सजद ए सहव अंजाम देगा।
सवाल:   अगर नमाज के दौरान नमाज़ी को याद आ जाये कि ग़ैर शरई तरीक़े से ज़िबह शुदा जानवर के चमड़े का बेल्ट लगाये हुए है उस की घड़ी का पट्टा उस चमड़े से बना है तो उसे क्या करना चाहिये?
आयतुल्लाह सीस्तानी:  अगर नमाज़ के दौरान याद आ जाये तो उसे फ़ौरन उतार दे और उस की नमाज़ सही है।
आयतुल्लाह ख़ामेनई नमाज़ बातिल है लिहाज़ा दोबारा पढ़नी पढ़ेगी।

पर्दा व हेजाब
सवाल:   क्या हेजाब ज़रूरियाते दीन यानी उन चीज़ों में से है जिन के वाजिब होने पर अक़ीदा न होने से इंसान दीन से ख़ारिज हो जाता है और वह लोग जो हेजाब से मुतअल्लिक़ ला परवाही करते हैं, उन का क्या हुक्म है?
जवाब:   आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई:   हेजाब ज़रूरियाते दीन में से है और लापरवाही करने वाले लोग गुनाहगार हैं।
सवाल:    क्या ऐसी दुकानों पर काम करना जायज़ है जहाँ नंगी तस्वीरों पर मुश्तमिल रिसाले बिकते हों और क्या ऐसे रिसालों की तिजारत व तबाअत जायज़ है?
जवाब:   आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई:  यह तमाम काम जायज़ नही हैं क्यों कि फ़ेअले हराम की तरवीज और फ़ह्हाशी का प्रचार है।
सवाल:    क्या औरतें शादी बियाह में मेकअप और आराइश के साथ जा सकती हैं जबकि ना महरम मर्द उन्हे देख रहे हैं?
जवाब:  आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई:   औरतों पर हेजाब वाजिब है और वह अपने महासिन को किसी ना महरम के सामने ज़ाहिर नही कर सकती हैं।
सवाल:   वह ग़ैर मुस्लिम औरतें जो मोहतरम भी नही हैं और पर्दे की क़ायल भी नही है, क्या उन्हे लज़्ज़त की निगाह से देखा जा सकता है?
जवाब:     लज़्ज़त की निगाह से देखना जायज़ नही है।

ग़ीबत
सवाल:    ग़ीबत किसे कहते हैं और इस का क्या हुक्म है?
जवाब:   आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई:   गीबत यानी किसी शख़्स की बुरी आदत या काम को उस की ग़ैर मौजूदगी में दूसरे के सामने बयान करना। ग़ीबत करना और सुनना दोनो हराम और गुनाहाने कबीरा में से है।
सवाल:    अगर कोई शख़्स बे नमाज़ी है लेकिन खुले आम गुनाह नही करता तो क्या उस की ग़ीबत करना जायज़ है?
जवाब:    नही जायज़ नही है।

सिगरेट
सवाल:     अवामी जगहों (Public Place) पर सिगरेट पीने का क्या हुक्म है?
जवाब:   आयतुल्लाह सीस्तानी:   अगर दूसरों को कोई ख़ास नुक़सान पहुच रहा हो या आईन्दा नुक़सान पहुचने का अंदेशा हो तो जायज़ नही है। इसी तरह अपने बारे में भी अगर मालूम है कि नुक़सान देह है तो पीना जायज़ नही है।

शादी बियाह
सवाल:   लहवो लअब वाली शादी बियाह की महफ़िलों में शिरकत न करना ख़ानदान और रिश्तेदारोंमें आपसी रंजिश का सबब बनता है ऐसी सूरत में क्या ज़िम्मेदारी है?
जवाब:   आयतुल्लाह सीस्तानी:     अगर हराम में मुब्तला हो रहा है तो जायज़ नही है।
आयतुल्लाह ख़ामेनई:    हराम महफिलों में शिरकत करना किसी भी सूरत में जायज़ नही है और अम्र बिल मारूफ़ व नही अनिल मुन्कर हर शख़्स पर वाजिब है।
सवाल:   शादी बियाह की ऐसी महफ़िलों में शिरकत करना कैसा है जिन में नाच गाना और म्यूज़िक (Music) हो?
जवाब:   आयतुल्लाह सीस्तानी:    अगर गाना बजाना और म्यूज़िक लह व लअब और अय्याशी जैसी महफ़िलों की तरह हो तो शिरकत करना जायज़ नही है।
आयतुल्लाह ख़ामेनई:   इस क़िस्म के प्रोग्राम में शिरकत करने की सूरत में अगर गुनहगारों की ताइद हो रही हो तो जायज़ नही है।

ख़ुम्स
सवाल:   ख़ुम्स किन लोगों पर वाजिब है?
जवाब:   आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई:    नमाज़ और रोज़े की तरह हर बालिग़ो आक़िल इंसान पर सालाना बचत का पाचवां हिस्सा बतौरे ख़ुम्स निकालना वाजिब है।
सवाल:   क्या बेटी के जहेज़ के पैसों और सामान या वाजिब हज के लिये जमा किये गये पैसों पर ख़ुम्स वाजिब है?
जवाब:   आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई:   बेटी के (शायाने शान) ख़रीदे गये जहेज़ के सामान और वाजिब हज के लिये जमा किये गये पैसे पर ख़ुम्स वाजिब नही है लेकिन अगर जहेज़ वग़ैरह के लिये रक़्म जमा की है तो उस पर ख़ुम्स वाजिब है।

फ़ितरा
सवाल: क्या शबे ईद किसी को इफ़तार कराने से उस का फ़ितरा भी वाजिब हो जाता है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: सिर्फ़ इफ़तार कराने से फ़ितरा वाजिब नही होता बल्कि मेयार यह है कि इफ़तार करने वाला उस के यहाँ खाने वाला (नान ख़ोर) शुमार हो।
सवाल: फ़ासिक़ या बे नमाज़ी फ़क़ीर को सदक़ा, फ़ितरा या कफ़्फारा देने का क्या हुक्म है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: ऐहतेयाते वाजिब की बेना पर इस क़िस्म के अफ़राद को फ़ितरा और कफ़्फ़ारा नही देना चाहिये और दीनदार अफ़राद के होते हुए ऐसे अफ़राद को सदक़ा देने से भी परहेज़ करना चाहिये।
आयतुल्लाह ख़ामेनई: अगर अलानिया फ़िस्क़ व फ़ुजूर में मुब्तला नही है और माल को फ़िस्क़ व फ़ुजूर की राह में ख़र्च नही करता तो कोई हरज नही है।

चांद
सवाल: क्या नुजूमी क़वायद व ज़वाबित के ज़रिये चांद साबित किया जा सकता है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: नही, साबित नही होगा सिर्फ़ उस वक़्त साबित हो सकता है जब इंसान को उस के ज़रिये यक़ीन हासिल हो जाये।
सवाल: अगर चंद आदिल अफ़राद गवाही दें कि दो आदिलों ने चांद देखा है तो क्या उससे चांद साबित हो जायेगा?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: नहीं, बल्कि दो आदिल शख़्स ख़ुद इंसान के लिये गवाही दें कि उन्होने चांद देखा है और वास्ते से नक़्ल करें तो काफ़ी नही है अलबत्ता अगर उन के कहने से यक़ीन हासिल हो रहा हो तो काफ़ी है।

क़सम खाना
सवाल: क़सम खाना कैसा है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: क़सम खाने वाली की बात अगर सही हो तो क़सम खाना मकरुह है और अगर झूट हो तो क़सम खाना हराम और गुनाहाने कबीरा में से है।
सवाल: क्या क़सम पर अमल करना ज़रूरी है और क़सम का कफ़्फ़ारा क्या है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: अगर ख़ुदा के नामों में से किसी एक नाम की क़सम खाई जाये तो उस पर अमल करना वाजिब है और अमल न करने की सूरत में कफ़्फ़ारा वाजिब है।
क़सम का कफ़्फारा दस मिसकीनों को पेट भर खाना खिलाये या उन्हे लिबास मुहय्या करे और अगर यह नही कर सकता हो तो तीन दिन लगातार रोज़ा रखे।

अम्र बिल मारुफ़ व नही अनिल मुन्कर
सवाल: अम्र बिल मारुफ़ व नही अनिल मुन्कर के क्या शरायत हैं?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: अम्र बिल मारुफ़ व नही अनिल मुन्कर करने वाले के लिये ज़रूरी है कि वह मारूफ़ व मुन्कर को जानता हो, तासीर का ऐहतेमाल हो, मफ़सदा न हो और बदकारी पर इसरार न हो।
आयतुल्लाह ख़ामेनई: मारुफ़ व मुन्कर को जानता हो, तासीर का ऐहतेमाल हो, शख़्स अपने काम पर मुसिर न हो और अम्र बिल मारुफ़ व नही अनिल मुन्कर करने से मफ़सदा न हो। (यानी उसको या दूसरे को नुक़सान न पहुचे)
सवाल: क्या अम्र बिल मारुफ़ व नही अनिल मुन्कर (नेकी की हिदायत और बुराई से रोकना) सिर्फ़ उलामा पर वाजिब है या सब पर?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: शरायत के मौजूद होने पर हर मुसलमान पर वाजिब है।


ख़ुम्स
सवाल: क्या ईनाम या तोहफ़े में मिलने वाली चीज़ पर ख़ुम्स वाजिब है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: अगर ख़ुम्स की तारीख़ आने पर उस में से कुछ बचा है तो उस पर ख़ुम्स है
आयतुल्लाह ख़ामेनई: उस पर ख़ुम्स वाजिब नही है।
सवाल: अगर एक घर में मर्द व औरत दोनो कमाते हों तो क्या दोनो पर ख़ुम्स वाजिब है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: दोनो पर ख़ुम्स वाजिब है।

फ़ितरा
सवाल: जिस लड़की का अक़्द हो गया है उस का फ़ितरा किस पर वाजिब है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: अगर बाप की किफ़ालत में है तो बाप पर वाजिब है।
सवाल: क्या बेटे के मोहताज होने की सूरत में बाप उसे फ़ितरा दे सकता है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: अगर बेटे मोहताज हों तो मां बाप पर उन की किफ़ालत वाजिब है लेकिन उन्हे फ़ितरा नही दिया जा सकता।

ना महरम
सवाल: क्या ख़्वातीन उन मर्दों का बदन देख सकती हैं जो अज़ादारी के  दौरान अपना लिबास उतार देते हैं?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: ऐहतेयाते वाजिब की बेना पर ऐसा नही करना चाहिये।
आयतुल्लाह ख़ामेनई: जायज़ नही है।
सवाल: ज़नानी महफ़िलों में औरतों का कुछ पढ़ना कैसा है जब कि उन की आवाज़ ना महरम भी सुन रहें हों और उस में फ़साद का भी शायबा पाया जाता हो?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: जायज़ नही है।

सजदा
सवाल: किन चीज़ों पर सजदा सही है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: ज़मीन और ज़मीन से उगने वाली वह तमाम चीज़ें जो खाई या पहनी नही जाती हैं लेकिन मअदनियात में से न हो जैसे सोना, चांदी, अक़ीक़ वग़ैरह। अलबत्ता मजबूरी की सूरत में इंसान अतक़तरे से बनी ज़मीन को दूसरी चीज़ों पर तरजीह दे।
आयतुल्लाह ख़ामेनई: ज़मीन और ज़मीन से उगने वाली वह तमाम चीज़ें जो खाई या पहनी नही जाती हैं लेकिन मअदनियात में से न हो जैसे सोना, चांदी और अक़ीक़ वग़ैरह।
सवाल: बाज़ औक़ात कैसेट के ज़रिये से आयते सजदा सुनी जाती है तो क्या ऐसी सूरत में सजदा वाजिब है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: इस सूरत में सजदा वाजिब नही है।
आयतुल्लाह ख़ामेनई: अगर तिलावते क़ुरआने क़रीम को ख़ुद बाक़ायदा सुन रहा है तो सजदा वाजिब नही है और अगर तिलावते क़ुरआन की आवाज़ अचानक उस के कान में पड़ गई तो सजदा वाजिब नही है।

दाड़ी
सवाल: दाड़ी मूढ़ने की उजरत लेना कैसा है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: हराम है।
आयतुल्लाह ख़ामेनई: हराम काम के लिये उजरत लेना हराम है।
सवाल: क्या फेरेन्च कट (French style) दाड़ी रखना जायज़ नही है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: जायज़ नही है ऐहतेयाते वाजिब की बेना पर पूरी दाड़ी रखनी चाहिये।
आयतुल्लाह ख़ामेनई: हराम है, दाड़ी का कुछ हिस्सा मुढ़वाना पूरी दाड़ी मुढ़वाने के हुक्म में है।

रोज़ा
सवाल: जो शख़्स ज़ोहर से पहले सफ़र पर जाना चाहता है उस के रोज़े का क्या हुक्म है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: अगर ज़ोहर से पहले सफ़र करे तो ऐहतेयाते वाजिब की बेना पर उस का रोज़ा सही नही है लेकिन हद्दे तरख़्ख़ुस तक पहुचने से पहले कोई भी ऐसा काम नही कर सकता जो रोज़े को बातिल करता है।
आयतुल्लाह ख़ामेनई: अगर ज़ोहर से पहले सफ़र करे तो उस का रोज़ा सही नही है लेकिन हद्दे तरख़्ख़ुस तक पहुचने से पहले कोई भी ऐसा काम नही कर सकता जो रोज़े को बातिल करता है।
सवाल: नौ साल की लड़की के लिये रोज़ा रखना सख़्त होता है तो क्या वह कमज़ोरी, ना तवानी की वजह से रोज़ा छोड़ सकती है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: सिर्फ़ कमज़ोरी व ना तवानी की वजह से रोज़ा नही छोड़ सकती, हां अगर तकलीफ़ ना क़ाबिले बर्दाश्त हो तो रोज़ा छोड़ सकती है। (अलबत्ता उसकी क़ज़ा वाजिब है।)
सवाल: पढ़ाई और इम्तेहानात की वजह से कमज़ोरी व सुस्ती हो जाती है तो क्या रोज़ा छोड़ा जा सकता है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: कमज़ोरी और सुस्ती आम तौर पर हर रोज़ेदार को पेश आती है लिहाज़ा इस सूरत में रोज़ा नही छोड़ा जा सकता लेकिन अगर ना क़ाबिले बर्दाश्त कमज़ोरी हो तो रोज़ा छोड़ा जा सकता है। (अलबत्ता क़ज़ा वाजिब है।)
सवाल: अगर कोई रमज़ान में जान बूझ कर अपना रोज़ा इस्तिमना के ज़रिये बातिल करे तो उस का क्या हुक्म है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: इस्तिमना (जान बूझ कर मनी निकालना) हर सूरत में हराम है और रोज़े की हालत में ऐसा करने से क़ज़ा के अलावा कफ़्फ़ारा (ऐहतेयाते मुसतहब की बेना पर साठ रोज़े रखे और साठ मिसकीनों को खाना खिलाये) भी वाजिब है।
सवाल: किसी शख़्स को शक या यक़ीन हो कि अगर रोज़े की हालत में सो गया तो मनी ख़ारिज हो जायेगी तो उस के सोने का क्या हुक्म है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: सोने में कोई हरज नही है और अगर मनी ख़ारिज भी हो जाये तब भी रोज़ा सही है।

बीमारी में रोज़ा
सवाल: अगर डाक्टर ने रोज़ा रखने से मना किया हो लेकिन वह ख़ुद जानता हो कि रोज़ा उस के लिये नुक़सानदेह नही है तो क्या वह रोज़ा रख सकता है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: अगर जानता है कि रोज़ा उस के लिये ज़रर नही रखता तो रोज़ा रखना ज़रुरी है।
सवाल: अगर रोज़ा रखने की वजह से मरज़ देर में ठीक हो तो रोज़ा रख सकता है या नही?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: रोज़ा नही रख सकता।

वुज़ू
सवाल: क्या करते वक़्त कोई चीज़ खाने से वुज़ू बातिल हो जाता है?
जवाब: तमाम मराजे ए केराम वुज़ू बातिल नही होता लेकिन बेहतर है कि वुज़ू करते वक़्त ऐसे कामों से परहेज़ किया जाये।
सवाल: क्या अब्दुल्लाह व हबीबुल्लाह जैसे नामों को बग़ैर वुज़ू के मस किया जा सकता है?
जवाब: आयततुल्लाह सीस्तानी: कोई हरज नही है लेकिन बेहतर है कि मस न करे।
आयतुल्लाह ख़ामेनई: अल्लाह के नाम को बग़ैर वुज़ू के मस करना जायज़ नही है चाहे किसी का नाम ही क्यों न हो।

नमाज़े जुमा
सवाल: क्या नमाज़े जुमा में सूर ए जुमा पढ़ना वाजिब है?
जवाब:  आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: नही, वाजिब नही है बल्कि कोई दूसरा सूरह भी पढ़ा जा सकता है  अगर चे मुसतहब है कि नमाज़े जुमा में सूर ए जुमा पढ़ा जाये।
सवाल: अगर एक इलाक़े में शरई फ़ासले से कम पर दो नमाज़े जुमा हो रही हों तो कौन सी नमाज़ सही है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: अगर एक साथ शुरू हों तो दोनो बातिल हैं लेकिन अगर एक की तकबीर पहले हुई हो तो दूसरी बातिल है।
आयतुल्लाह ख़़ामेनई: पहले शुरु होने वाली सही और दूसरी बातिल है।
सवाल: नमाज़े जुमा के लिये कम से कम कितने लोगों को होना शर्त है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़़ामेनई: कम से कम पांच अफ़राद का होना ज़रूरी है।
सवाल: नमाज़े जुमा के ख़ुतबों के दरमियान बात करना कैसा है और अगर कोई ख़ुतबों के बाद नमाज़ में पहुचे तो नमाज़ का क्या हुक्म है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी: नमाज़ सही है और ज़ोहर पढ़ने की ज़रुरत नही है लेकिन नमाज़ में हाज़िर होने की सूरत में ऐहतेयात की बेना पर ख़ुतबा सुनना वाजिब है।
आयतुल्लाह ख़ामेनई: नमाज़े जुमा, नमाज़े ज़ोहर से किफ़ायत करती है चाहे नमाज़ के ख़ुतबों के दरमियान बात की हो या ख़ुतबों में न पहुचा हो, लेकिन ख़ुतबों के दरमियान बात करने से अगर ख़ुतबे का फ़ायदा ख़त्म हो रहा हो तो जायज़ नही है।

रोज़ा
सवाल: वह लोग जो बग़ैर किसी शरई उज़्र के जान बूझ कर रोज़ा नही रखते उन का क्या हुक्म है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: ऐसे लोगों पर क़ज़ा के साथ कफ़्फ़ारा भी वाजिब है और वह कफ़्फ़ारा यह है दो महीने रोज़ा रखे जिन में से इकतीस दिन लगातार रोज़ा रखे और बाक़ी उनतीस दिन का रोज़ा फ़ासले के साथ रख सकता है या साठ फ़क़ीरों को खाना खिलाये या उन सब को एक मुद तआम दे यानी खाने की जगह हर फ़क़ीर को सात सौ पचास ग्राम गेंहू, रोटी या जौ या इस तरह की चीज़ें भी दे सकता है और अगर दूसरे साल के रमज़ानुल मुबारक तक क़ज़ा नही की तो ऐहतेयाते वाजिब की बेना पर हर रोज़ के बदले एक मुद तआम दे।
सवाल:  अगर किसी को याद न रहे कि कितने रोज़े रमज़ान में छूटे हैं तो उस का क्या फ़रीज़ा है?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: सबसे कम मिक़दार पर इकतेफ़ा कर सकता है यानी जितने रोज़े के छूटने का यक़ीन है उस की क़ज़ा की जाये और उस से ज़्यादा ज़रूरी नही है।
सवाल: माहे मुबारके रमज़ान में सफ़र की वजह से रोज़े छोड़ने वाला क्या क़ज़ा के साथ कफ़्फ़ारा भी देगा?
जवाब: आयतुल्लाह सीस्तानी व ख़ामेनई: सिर्फ़ रोज़े की क़ज़ा वाजिब है कफ़्फ़ारा नही है अलबत्ता अगर रोज़ों की क़ज़ा को आईन्दा साल रमज़ान तक न बजा लाये तो ताख़ीर की वजह से हर दिन के बदले एक मुद (750 ग्राम) तआम कफ्फ़ारे के तौर पर देगा।



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