इस्लाम और सेक्स लेखक: डा. मोहम्मद तक़ी अली आबदी
इस्लाम और सेक्स लेखक: डा. मोहम्मद तक़ी अली आबदी पुस्तकालय › अख़लाक़ व दुआ › अख़लाक़ी किताबें हिंदी 2017-04-10 12:55:36 यह किताब अल...

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इस्लाम और सेक्स लेखक: डा. मोहम्मद तक़ी अली आबदी
पुस्तकालय › अख़लाक़ व दुआ › अख़लाक़ी किताबें
हिंदी 2017-04-10 12:55:36
यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.
इस्लाम और जिन्सियात
लेखकः डा. मोहम्मद तक़ी अली आबदी
नोटः ये किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क के ज़रीऐ अपने पाठको के लिऐ टाइप कराई गई है और इस किताब मे टाइप वग़ैरा की ग़लतीयो को सुधार दिया गया है।
Alhassanain.org/hindi
लेखक एक दृष्टि में
नामः डा. मोहम्मद तक़ी अली आबदी
पिताः श्री सैय्यद हैदर अली आबदी
माताः श्रीमती सैय्यदा ज़किया बेगम
जन्म तिथि व स्थानः- दो जुलाई उन्नीस सौ बासठ ई. ( 02-07-1962), लखनऊ , यू.पी.
भाईः मोहम्मद सफ़दर अली (बड़े) , मोहम्मद नक़ी अली , मोहम्मद रज़ा अली (छोटे)
बहनः सैय्यद हैदरी बेगम (बड़ी)
पत्नीः सैय्यदः साजिदा बानो पुत्री सैय्यद सज्जाद अली आबदी
पुत्रः अस्करी मेंहदी अकबर
शैक्षिक योगताः पी. एच. डी. (फ़ारसी , लखनऊ विश्वविधालय) , सनदुल अफ़ाज़िल (सुल्तानुल मदारिस , लखनऊ) , मौलवी , कामिल , फ़ाज़िले फ़िकह (अरबी व फ़ारसी इलाहाबाद बोर्ड)
पुस्तकेः- 1. परवीन ऐतीसामी के हालात और शायरी , 1984 ई. नामी प्रेस , लखनऊ.
2. जदीद फ़ारसी शायरी , 1988 ई. नामी प्रेस , लखनऊ. (उ.प्र. उर्दू अकादमी , लखनऊ से ईनाम पाई हुई)
3. फ़ारसी अदब की शख्सियात 1992 ई , निज़ामी प्रेस , लखनऊ , (उ.प्र. उर्दू अकादमी , लखनऊ से ईनाम पाई हुई) (उपरोक्त सभी पुस्तकें फखरूद दीन अली अहमद मेमोरियल कमेटी , हुकूमत उ.प्र. लखनऊ की मदद से प्रकाशित)
4. इस्लाम और जिन्सियात , 1994 ई. अब्बास बुक एजेन्सी , लखनऊ की मदद से प्रकाशित।
5. इस्लाम और सेक्स (हिन्दी) , 1995 ई. अब्बास बुक एजेन्सी , लखनऊ की मदद से प्रकाशित।
6. रिसालः –ए- नख्लबन्दी , मुकददमः , हवाशी और तर्जुमे के साथ (प्रकाशनाधीन)
और लगभग ( 50) धार्मिक और साहित्यिक लेख प्रकाशित
कार्यः- 1. पार्ट टाईम लेक्चरर ( Part time Lecturer) डिपार्टमेन्ट आँफ ओरिएन्टल स्टडीज़ इन अरबिक एण्ड परशियन , लखनऊ , यूनिवर्सिटी।
2. शोध विषय – तरतीब व तसहीह तज़किरः ए अरफ़ात अल आशिकीन अज़ तक़ी औहदी – डी. लिट. के लिए (रिसर्च ऐसोसिएट , यू.जी.सी. डिपार्टमेन्ट आँफ़ परशियन , लखनऊ यूनिवर्सिटी)
पताः हैदर मंज़िल , 450/128/13, फ्रेन्डस कालोनी , न्यु मुफ़ती गंज , लखनऊ – (226) 003 (यू.पी.)
प्राक्कथन
सब से पहले खुदा की बारगाह मे अपने सर को झुकाने के साथ साथ मुहम्मद (स.) , आले मुहम्मद (आ.) और असहाबे पैग़म्बर (स.) पर दुरूद व सलाम भेजने मे गर्व महसूस करता हूँ जिनकी दया और कृपा से यह काम समाप्ति की मंज़िल तक पहुँचा।
कहना यह है कि ------ आज से लगभग छ: महीने पहले मै सुबह की नमाज़ और कुर्आन शरीफ को पढकर नाश्ते पर बैठने ही वाला था कि घंटी बजी बाहर निकल कर आया तो देखा मौलाना अली अब्बास तबातबाई गेट पर मौजूद हैं। अभी ठीक से सलाम व दुआ भी न होने पाई थी और मै इसी बीच सोच ही रहा था कि मौलाना ने मुझे अपनी तरफ आकर्षित करते हुए शीकायती अन्दाज़ मे कहा कि तक़ी साहब , आप के पास कई लोगों से पैगाम भिजवा चुके हैं , आप को मतलब मालूम ही हो गया होगा , मै उसी काम के सिलसिले मे आप का इन्तिज़ार करते करते आप के पास सुबह सुबह आ धमका ताकि आप के घर से निकलने से पहले ही मुलाक़ात हो जाये और बात तय हो जाये------- यह वह जुमले थे जिसने मेरी सोच मे बढोतरी कर दी। जिस की वजह से थोड़ी ही देर मे कई सवाल दिमाग मे आये---- क्या पैगाम था ? क्या मतलब है ? क्या तय करने आये हैं ? और हर सवाल का जवाब था--- हमें नही मालूम --- फ़ौरन सभी सवलों का जवाब मिलते ही मैं ने कहा ------- अब्बास भाई आप ने किस-किस से क्या पैग़ाम भिजवाया ? क्या मतलब है ? क्यों इन्तिज़ार करते रहे ? क्या तय करना है ? मुझे तो कुछ मालूम नही---- आख़िर मामला क्या है ? कुछ बताइये तो समझ मे आ सके --- अच्छा रूकिये मै बाहरी कमरा खोलता हूँ बैठकर सुक़ून से बात होगी------ मै यह कह कर पलटा --- अब्बास साहब ने नाम गिनाना शुरू किये , असद साहब से , सईद साहब से , फाज़िल साहब से--- मै नाम सुनते सुनते घूम कर कमरे मे पहुँच चुका था। दरवाज़ा खोलकर उनको कमरे मे बुला चुका था---- उनके बैठते-बैठते मैने कह भी दिया कि नही भाई मुझे किसी से कोई पैग़ाम नही मिला ---- तब उन्होंनें कहा ठीक है आप बैठें मै खुद आप को पैग़ाम देता हूँ।
“हमारी क़ौम मे शादी के तरीक़े से सम्बन्धित कोई मालूमाती किताब न होने की वजह से अक्सर लोग हराम मे पड़ जाते हैं-------- इसलिए मैं यह चाहता हूँ कि आप एक ऐसी किताब लिख दें कि जिस से कौंम के नौजवानों को कुछ शादी से सम्बन्धित मालूम हो सके। अकसर लोग दुक़ान पर आते हैं। जो इस समय की खास आव्यश्कता है। यह तो एक दीनी और मज़हबी काम है। जिस मे आप की मदद चाहता हूँ। इस सिलसिले में खुदा आपको बहुत सवाब देगा ”।
इन वाक्यों को सुनते ही मैने बिना कुछ सोचे समझे शादी के विषय पर किताब लिखने का वादा करते हुवे कही ठीक है मुझे भी आज से लगभग दस साल पहले शादी के समय ऊर्दू या हिन्दी में एक ऐसी मज़हबी उसूल और क़ानून की किताब की तलाश थी जिसमें शादी की सभी बातें लिखी हों ताकि मज़हबी उसूल की रौशनी में सेक्सी मज़ा हासिल कर सकूँ। लेकिन इस सिलसिले मे उस समय ऊर्दू मे “तहज़ीब-उल-अखलाक़ ” के अलावा कोई और दूसरी किताब न मिल सकी। इस के अलावा कुछ उसूली बातें तोहफ़त-उल-अवाम से सीखीं और उसी को काफी समझा। क्योंकि उस समय शोध की ओर ज़्यादा ध्यान नही दिया-------- इसलिए आप की बात शत प्रतिशत सही मालूम होती है कि आप की दुक़ान पर कुछ लोग सेक्स से सम्बन्धित किताब तलाश करते हुवे आ जाते हैं और वह शायद इसलिए ऐसा करते होगें कि इस्लाम ने सेक्स से सम्बन्धित हर बात को खुब समझा कर बताया होगा (जो सच है) जिसकी रौशनी में सेक्सी बातों को बहुत आसानी से समझा जा सकता है। हालांकि मुमकिन है कि कुछ लोगों को यह बात अजीब व गरीब लगे कि क्या इस्लाम मे भी एक ऐसे विषय से सम्बन्धित कुछ मिल सकता है जो समाज का बहुत ही खराब और गिरा हुवा विषय समझा जाता है। एक ऐसा विषय है जिसका समाज मे नाम लेना , जिस से सम्बन्धित कुछ सोचना , कुछ बातें करना या कुछ पढना भी बहुत बुरा समझा जाता है। लेकिन क्या कहना इस्लाम धर्म का जिसने ज़िन्दगी के हर हिस्से के साथ सेक्स जैसे मुख्य और आवश्यक हिस्से से सम्बन्धित भी हर बात को विस्त्रत रूप से बयान किया है ताकि हर मनुष्य इस्लाम की रौशनी में सेक्सी बातों को समझ सके।
इस्लाम ने शुरूअ जवानी में पैदा होने वाली प्राकृतिक सेक्सी इच्छा और उसको पूरा करने के ग़लत और हराम तरीक़ों (मुश्त ज़नी (हस्तमैथुन) , इग़लाम बाज़ी (गुदमैथुन) और ज़िना कारी (जारकर्म , हरामकारी , बलात्कार) की तरफ इशारा करने के साथ जायज़ और हलाल तरीक़ों (थोड़े समय या पूरी उम्र के लिये निकाह) की तरफ इशारा किया है जिसको आज के तरक्क़ी करते हुवे वैज्ञानिक दौर मे भी माना जा रहा है। उदाहरण स्वरूप इस्लाम ने 1400 साल पहले हस्तमैथुन , गुदमैथुन और बलात्कार के व्यक्ति , समाज और माहौल पर पड़ने वाले खराब असर को बताया। जिसे आज बड़े से बड़े समाज शास्त्री , सेक्स शास्त्र , और मर्दों व औरतों की शारीरिक सेक्सी बीमारियों को दूर करने वाले डाक्टरों ने भी माना है। साथ ही तरक्क़ी करने वाले देशों मे मनुष्य को विभिन्न बीमारियों और बुराईयों से बचने के लिए ही थोड़े समय की शादी या जानकारी की शादी को जगह दी जा रही है (जो इस्लाम धर्म में मुतअ: की शक्ल मे शुरू से मौजूद है) ताकि मनुष्य प्राकृतिक सेक्सी इच्छा को पूरा करने के लिए ग़लत तरीक़ों का प्रायोग न करे जिसके मनुष्य और समाज दोनो पर बुरे असर पड़ते हैं।
बहरहाल सेक्स एक ऐसा मुख्य और आव्यशक विषय है जिससे कोई भी मनुष्य बच नही सकता। क्योंकि नौजवानी मे कदम रखने के साथ ही हर नौजवान पुरूष और स्त्री का ------- शारीरिक मशीन की इच्छा की बुनियाद पर प्राकृतिक और कुदरती तौर पर एक दूसरे की तरफ लगाव होने लगता है ताकि प्राकृतिक सेक्सी इच्छाओं को पूरा कर सकें।
चूँकि हर स्वस्थ और निरोग मनुष्य में प्रकृति की ओर से सेक्सी इच्छा मौजूद होती है और वह सेक्सी इच्छा को पूरा करने के तरीके तलाश करता रहता है। इसीलिए हर धर्म मे प्ररकृतिक सेक्सी इच्छा को पूरा करने के लिए शादी का रिवाज है (कुछ धर्मो मे बिना शादी 7 के रहने को ही अच्छा समझा जाता है) और इस्लाम में तो खुदा के नज़दीक सब से ज़्यादा अज़ीज़ और महबूब (अर्थात पसन्द की जाने वाली) चीज़ शादी को ही बताया गया है।
इस्लाम धर्म मे जहाँ ज़िन्दगी के सभी हिस्सों से सम्बन्धित पूरी मालूमात दी है वहीं ज़िन्दगी के वणिर्त आवश्यक और मुख्य हिस्से “सेक्स ” से सम्बन्धित भी खुल कर बयान किया है ताकि हर मुस्लमान इस्लामी दायरे मे रहकर भरपूर सेक्सी आनन्द और स्वाद उठा सके -------- अत: हर मुसलमान का कर्तव्य है कि जिस तरह वह ज़िन्दगी के और हिस्सों से सम्बन्धित इस्लामी शीक्षा को सीखता , मालूम करता और अमल करता है उसी तरह सेक्स से सम्बन्धित भी मालूमात हासिल करे , और इसमे किसी तरह की बुराई न समझे ताकि हराम (अर्थात वह काम जिसके करने पर गुनाह या न करने पर सवाब न हो) , मुस्तहब (अर्थात वह काम जिसके करने में सवाब और न करने पर गुनाह न हो) और वाजिब (अर्थात वह काम जिसके करने पर सवाब और न करने पर गुनाह हो) की मालूमात हो सके और मामूली गलती या थोड़ी देर के मज़े की कारण हराम काम न कर बैठे या ज़हनी बेचैनी (जैसे बच्चे की शारीरिक कमज़ोरी और खराबी , औरत और मर्द का अलगाव या बीमारीयों में घिर जाना आदि) न हो सके। बल्कि इस तरह मज़ा (लज़्ज़त , स्वाद) उठाये कि सवाब भी मिल सके और इस सवाब के नतीजे में मिलने वाली औलाद नेक और शारीरिक कमज़ोरी और बुराई से दूर भी हो।
इस्लाम ने सेक्सी स्वाद उठाने में किसी तरह की रूकावट नहीं डाली है। बल्कि सेक्सी रूचि दिलाने के लिए यह ज़रूर कहा है कि औरतें तुम्हारी खेतियाँ हैं , तुम जिस तरह , जैसे और जब चाहो उनसे स्वाद हासिल करो , उनके पास पहुँच कर सुकून और आराम हासिल करो , उनके रहिनम (गर्भाशय) मे अपना नुतफा (वीर्य) डालो इतियादि। यह वह कुर्आनी आयतें हैं जिन से सेक्स से सम्बन्धित हर पहलू पर भरपूर रौशनी पड़ती है और जहाँ विवरण या विस्तार की आवश्यकता महसूस की गई है वहां मुहम्मद (स.) व आले मुहम्मद (अ.) ने खुद से अपने सुनहरे प्रवचन से या किसी के सवाल करन पर अपने जवाबों से उसको विस्तार से बयान कर दिया है ताकि मनुष्य हराम व हलाल या फायदा व नुक़सान को आसानी से समझ सके।
इसी हराम व हलाल या फायदे और नुक़सान को सामने रखते हुए ही लेखक ने – इस्लाम और सेक्स – किताब कुर्आन , आइम्मा –ए- मासूमीन के प्रावचनों की रौशनी में लिखने की कोशीश की है। इस कीताब को छह अध्यायों में बाटा गया है।
पहले अध्याय मे –सेक्स और प्राकृति- से बहस की गई है। जिसमें मनुष्य के द्वारा प्राकृतिक सेक्सी इच्छाओं की पूर्ति के लिए अप्राकृतिक और हराम तरीकों (हस्तमैथुन. गुदमैथुन , बलात्कार) का वर्णन किया गया है और कुर्आन और आइम्मा –ए- मासूमीन के प्रावचनों की रोशनी में यह बात साबित (स्पष्ट) करने की कोशीश की गयी है कि हस्तमैथुन. गुदमैथुन , और बलात्कारी से मनुष्य अपनी सेहत और तनदुरुस्ती को खराब करने के साथ साथ गुनाह (पाप) का पात्र भी हो जाता है। अत: सेक्सी इच्छओं की पूर्ति के लिए जाएज़ (सही) और हलाल तरीक़ा ही अपनाया जाए।
इस्लाम के बताए हुए जाएज़ और हलाल तरीक़े से सम्बन्धित बहस किताब के दूसरे अध्याय -इस्लाम और सेक्स- मे पेश किया गया है। जिसमें पूरी ज़िन्दगी के लिए निकाह (शादी) और थोड़े समय के लिए निकाह (मुतअः) का वर्णन किया गया है और हज़रत अली (अ ,) के प्रवचन से यह बात साबित करने की कोशिश की गयी है कि थोड़े समय का निक़ाह (मुतअः) ही दुनिया से बलात्कारी को खत्म करने का अकेला तरीक़ा है। जिसे इस्लाम ने 1400 साल पहले बताया।
तीसरा अध्याय –स्त्री और पुरूष- विषय पर आधारित है। जिनका सेक्सी इच्छा की पूर्ति के लिए एक दूसरे के लिए होना आवश्यक है। इसी अध्याय में अच्छी और बुरी स्त्री और अच्छे और बुरे पुरूषों की पहचान बताई गय़ी है।
किताब के चौथे अध्याय में –शादी का तरीक़ा- बताया गया है। जिसमें शादी का ख्याल पैदा होने पर दुआ , महीना , तारीख , दिन , और समय को ध्यान में हुए निकाह की तारीख़ों का तय करना , महर , दहेज , निकाह , रुखसती (विदाई) वलीमः (बहू भोज) आदि का वर्णन है।
पाचवे अध्याय में –जिमाअ (मैथुन , संभोग) के आदाब- (अर्थात मैथुन के तरीकों) का वर्णन किया गया है। जिसमे मैथुन के वर्जित होने (हुर्मत-ए-जिमाअ) , वह मैथुन जिस से घिन आये (मक्रूहात-ए-जिमाअ) वह मैथुन जो अच्छा हो और करने पर पुण्य मिले (मुसतहिब्बात-ए-जिमाअ) और वह मैथुन जो ज़रूरी हो (वाजेबाते-ए-जिमाअ) के साथ-साथ विवाहित ज़िन्दगी को अच्छा बनाने के लिए इस्लाम के बताए हुवे स्त्री और पुरूष के अधिकार और कर्तव्य को भी बयान किया गया है ताकि मनुष्य की विवाहित ज़िन्दगी लाजवाब और बेमीसाल बीत सके।
आखरी अर्थात यानी छटा अध्याय –सेक्स और परलोक- शीर्षक पर आधारित है। जिसमें यह बताने की कोशिश की गयी है कि दुनिया के नेक कार्य की परलोक की ज़िन्दगी को बना सकते हैं। जहाँ सेक्सी इच्छा को पूरा करने और आराम व सुकून के लिए हूर और ग़िलमान मौजूद हैं।
लेखक ने इस किताब में अपने बस भर सभी बातें कुर्आन या मासूमीन (आ.) के प्रावचनों से सहारा लेकर ही लिखने की कोशिश की है ताकि लेख में वज़न पैदा हो और बात पूरे सुबूत से साबित हो सके। लेकिन मुमकिन है कि इसमें कुछ जगह कमीयाँ या गलतीयाँ हुई हों या नतीजे निकालने में गलतियाँ पैदा हुई हों। इसलिए मै खुदा-ए-रब्बुल इज़्ज़त और आइम्मः-ए-मासूमीन (आ.) की बारगाह में सच्चे दिल से अपनी ग़लतियों को मानते हुवे तौबः करता हूँ और आप से दुआ चाहता हूँ ताकि मेरी गलतियों को माफ कर दिया जाये--- और वह (खुदा) तो बड़ा ग़फूर व रहीम (माफ करन और बख्शने वाला) है।
मुझे इस बात का पूरी तरह अहसास है कि मैने अब तक जो भी लिखा है उसमें सब से मुख्य किताब यही है। क्योंकि अगर मैने या किसी और ने सेक्स से सम्बन्धित इस्लामी शीक्षा की रौशनी में अपनी दुनिया की ज़िन्दगी ग़ुज़ार ली तो अवश्य ही परलोक (आखिरत) की ज़िन्दगी भी बेहतर हो जाएगी।
मुझे इस बात का भी अहसास है कि मैं यह किताब उस वक्त तक पेश नही कर सकता था जब तक के मेरे कुछ दोस्तों विषय से सम्बन्धित कुछ किताबें तलाश करने व जुटाने में मेरा साथ न दिया होता या सेक्स से सम्बन्धित बात चीत कर के कुछ बातों की तरफ इशारा न किया होता। अतः यह मेरे लिए ज़रूरी है कि मैं अपने उन दोस्तों का दिल की गहराईयों से शुक्रीया अदा करूँ जिन्होंने इस सिलसिले में मेरी मदद फरमाई। इन लोगों में रज़ा आबिद रिज़वी (ज्योलोजिकल सर्वे आँफ़ इन्डिया , लखनऊ) सैय्यद असरार हुसैन (सूचना एवं जनसमंपर्क विभाग , लखनऊ) साजिद ज़ैदपुरी (सुल्तानुल मदारिस , लखनऊ) मोहम्मद सादिक़ (उ.प्र. उर्दू अकादमी , लखनऊ) अली मेहदी रिज़वी एडवोकेट (मशक गंज लखनऊ) सैय्यद एहतिशाम हुसैन (टांडा) , डा एहतिशाम अब्बास हैदरी (तनज़ीमुल मकातिब , लखनऊ) सैय्यद मोहम्मद जाफर रिज़वी (उ.प्र. सचिवालय) अज़ीज़ुल हसन जाफरी (ईरान कलचरल हाऊस , नई दिल्ली) मौलाना मुहम्मद ज़फर-अल-हुसैनी (बनारस) इरफान ज़ंगीपुरी (उ.प्र उर्दू अकादमी , लखनऊ) सैय्यद मुनतज़िर जाफरी (दूल्हीपुर , बनारस) डा. महमूद आबदी (शीया डिग्री कालेज , लखनऊ) के नाम विशेष रूप से ज़रूरी हैं। जिन्होने किताबें दी या विशेष बातों की तरफ ध्यान आकर्षित कराया।
इसके अलावाः डा. इराक़ रज़ा ज़ैदी (पंजाबी यूनीवर्सिटी , पटीयाला) मौलाना सैय्यद अली नक़वी (लखनऊ , यूनीवर्सिटी , लखनऊ) मौलाना मुजताबा अली खाँ अदीब-उल-हिन्दी (लखनऊ) मौलाना सैय्यद जाबिर जौरासी (सम्पादक , इस्लाह लखनऊ) डा. निजाबत अदीब (बरेली) सईद हसन (शिया कालेज सिटी ब्रान्च , लखनऊ) असद रज़ा (मुफ्तीगंज , लखनऊ) भी धन्यवाद के पात्र हैं। जिनसे पूरी किताब या किताब के किसी न किसी हिस्से पर खुल कर बात चीत हुई। जिस्से कुछ नतीजे निकालने में आसानी हुई। खास तौर से शुक्रिया के पात्र मौलाना सैय्यद फरीद महदी रिज़वी (जामे-उत-तबलीग , लखनऊ) हैं। जिन्होनें मुझे इस काम में फंसवाकर छः महीने तक किसी दूसरे काम का नही रखा। उपर्युक्त लोगों के साथ घर के सभी लोगों मुख्य रूप से अपनी धर्म पत्नी सैय्यदः साजिदा बानो का शुक्रिया अदा करता हूँ जिन्होंने मुझे काम करने का पूरा मौका दिया और किताब का पुरूफ पढने में पूरा साथ भी। वास्तव में इन लोगों का शुक्रिया ज़बान या कलम से अदा नही किया जा सकता क्योंकि यह बहुत कम है।
आखिर में मौलाना अली अब्बास तबातबाई (अब्बास बुक एजेन्सी , लखनऊ) का शुक्रिया अदा करना भी ज़रूरी है जिन्होंने (एजेन्सी के अलिफ , ये को को निकाल कर जिन्सी) किताब लिखने की फरमाईश की , किताबें दी , समय समय पर किताब जल्दी पूरी करने के लिए टोका और किताब को छपवाने की पूरी ज़िम्मेदारी निभाई। जिससे यह किताब छप कर सामने आ सकी।
यहाँ पर उल्लेख ज़रूरी है कि यह किताब पहले फारसी (उर्दू) लिपि में लिखी गई जो अगस्त 1994 ई. मे एजेन्सी की ओर से प्राकाशित हो चुकी है। जिसकी बढती हुई लोकप्रियता को देखते हुए अब्बास साहब ने इसे राष्ट्र भाषा हिन्दी (देवनागरी) लिपि में करने कि ज़िम्मेदारी भी मुझ पर सौंपी। ताकि इस किताब से उर्दू न जानने वाले लोग भी लाभान्वित हो सकें।
बहरहाल किताब पूरी होकर अब आपके सामने है। जिसका खास मकसद नौजवान मुसलमानों को इस्लामी दायरे में रहकर भरपूर सेक्सी आन्नद और मज़ा उठाने के तरीकों की मालूमात देना है और ये काम केवल धार्मिक भावना (दीनी जज़बः) की खातिर किया गया है। इसमें मुझे कहाँ तक कामयाबी मिलती है इसका अनदाज़ः पाठक गणों के पत्रों से ही लगाया जा सकता है। इस मौक़े पर मेरी पाठक गणों से यह गुज़ारिश ज़रूर है कि अगर उन्हे इस किताब में कोई गलती या कमी महसूस हो तो कृपया मुझे बता दें ताकि बाद में उस ग़लती और कमी को दूर किया जा सके।
अन्त में खुदा वन्दे करीम से केवल यही दुआ है कि खुदाया हम सब को कुर्आन-ए-करीम और आइम्मः-ए-मासूमीन के प्रावचनों की रोशनी में सेक्सी मसलों को समझने , उनका हल निकालने और आन्नद और मज़ा उठाने की उमंग अता फ़र्मा। आमीन सुम्मा आमीन।
मोहम्मद तक़ी अली आबदी हैदर मंज़िल , 450/128/13, फ्रेन्डस कालोनी , न्यू मुफ़्तीगंज लखनऊ - 226003 (यू.पी.) ( 10) सितम्बर 1994
पहला अध्याय
सेक्स और प्रकृति
अ- जवानी की पहचान
ब- हस्त मैतुन
स- गुद मैतुन
द- बलात्कार
इस्लाम वह बड़ा और अच्छा धर्म है जिसने ज़िन्दगी के सभी हिस्सों से सम्बन्घित हर बात को विस्तार से बयान किया है ताकि एक सच्चे मुसलमान को ज़िन्दगी के किसी भी हिस्से मे नाकामयाबी या मायूसी ना हो। इन्ही सब हिस्सो मे से एकहिस्सा सेक्स का भी है।
आम तौर से समाज मे सेक्स से सम्बन्धित कुछ बाते करना , सोचना , पढ़ना बहुत ही बुरा समझा जाता है और फिर इस हस्सास (संवेदनशील) विषय पर कुछ लिखना----- लेकिन इस्लाम सेक्स से सम्बन्धित अमल (कार्य) और सेक्सी हरकत के आख़िरी नुक़ते स्त्री और पुरुष की मैथुन क्रिया के तरीक़े भी विस्तार से बयान करता है ताकि मनुष्य गुमराही और बुराई से बचकर संयम नियम का पालन करने तथा इद्रिंयों को वश मे करने वाला (तक़्वा और परहेज़गारी करने वाला) बन सके।
सेक्स और प्रकृति
सेक्स एक ऐसी वास्तविकता है जिसे बुरा ज़रुर समझा जाता है लेकिन इससे इन्कार नही किया जा सकता। क्योकि इस संसार मे नर का मादा और मादा का नर की तरफ सेक्सी लगाव केवल मनुषयों और जानवरों मे नही है बल्कि यह सेक्सी लगाव पेड़ पौधों मे भी देखा जा सकता है।
ताड़ के वृक्ष मे नर और मादा होते हैं। नर असर डालने की शक्ति रखता है और मादा असर को क़ुबुल करने की ( 1)। इसी तरह पपीते के पेङों मे भी नर और मादा होते हैं। एक फल कम लाता है और दूसरा ज़्यादा। ताड़ और पपीते की तरह खजूर खजूर के पेड़ो मे भी नर और मादा पाये जाते हैं जो जानवरों से मिलते जुलते हैं और उनके गुच्छे मे आदमी के वीर्य (मनी) की जैसी महक होती है जिसके लिए मिलता है:
“ यह एक बड़ा पेड़ है। इसकी जानवरो से बहुत मुशाबिहत (एक रूपता) है। उदाहरण के लिए अगर इसका सर काट दें तो मर जाता है फिर नही बढता। इसमें भी नर और मादा होते हैं। जब तक इसके नर का मादा से मिलाप नही होता अच्छे फल नही देता। इसके नर से मादा से इश्क़ (मुहब्बत) और लगाव है। इसीलिए कहते है कि मादा के लिए एक बाग़ से दूसरे बाग़ की तरफ आकर्षित होता है और झुक जाता है। इसके गुच्छे मे आदमी के वीर्य की जैसी महक़ होती है ”।( 2)
इस तरह मालूम होता है कि खुदा ने पेड़ पौधों मे भी नर और मादा को बनाया है। दोनों में मुहब्बत और लगाव पैदा किया है। और नर का मादा से मिलाप होने पर ही अच्छे फल आते हैं। इसी फल का नाम औलाद (संतान) है। जिससे नस्ल बाक़ी रहती है। और हर जानदार अपनी नस्ल के ज़रिये ज़िन्दा (जीवित) रहना चाहता है।
अगर पेड़ पौधों से हट कर जानवरों का अध्ययन करें तो मालूम होगा कि उनमे भी नर और मादा से मिलाप (मैथुन) करता है ताकि औलाद पैदा हो और दुनिया मे उसका नाम व निशान बाक़ी रहे (यहाँ औलाद पैदा करने का तात्पर्य कोई फायदः नही बल्कि केवल अपनी नस्ल को बढाना ही है) जानवरों मे यह सेक्सी लगाव बचपन से ही प्रकट होने लगते है जिसको बकरी , गाय , भैंस , सुअर , कुत्ते आदि के छोटे छोटे बच्चों मे देखा जा सकता है जो लिंग (अर्थात नर या मादा) की पहचान किये बिना आपस मे सेक्सी खेल खेलने की कोशिश करते हैं। और जब वह जवान हो जाते है और औलाद जैसे फल को हासिल (प्राप्त) करना चाहते हैं तो वह अपनी सेक्सी इच्छा को प्रकट करने के लिए अपनी ही लिंग का विपरीत लिंग से मुहब्बत व लगाव पैदा करते हैं और जब विपरीत लिंग से पूरी तरह से इच्छा पूर्ति हो जाती है अर्थात् सेक्सी मिलाप कर लेते हैं तो खुशी और ताज़गी महसूस करते हैं। क्योंकि जानवरों मे यह सेक्सी मज़ा और आनन्द प्राप्त करने के लिए सेक्सी मिलाप के अलावा और कोई दूसरा रास्ता या तरीका नहीं है।
जबकि मनुष्य , सेक्सी आनन्द और मज़े को प्राप्त करने के लिए विभिन्न तरीक़े अपनाता है। बचपन मे अपनी माँ की छाती को प्राकृतिक भोजन प्राप्त करने के लिए मुँह मे लेता और चूसता है। साथ ही साथ मज़ा महसूस करता है। यह भी देखने मे आता है कि हर बच्चा (लड़का हो या लड़की) प्राकृतिक तौर पर भोजन प्राप्त करने के बीच अपनी माँ की छाती को हाथों से मसलता और सहलाता रहता है जिससे माँ और बच्चा दोनों मज़ा महसूस करते हैं और फ्राइड के अनुसार जब उसे अपनी माँ की छाती नही मीलती है तो वह मज़ा (न कि भोजन) प्राप्त करने के लिए अपना अंगूठा या कोई और चीज़ चूस कर ही संतोश प्राप्त कर लेता है।( 3)
बच्चा कुछ बडा होने पर अच्छे और बुरे की तमीज़ (पहचान) किये अथवा सोचे समझे बिना ही अपने खास अंग (लिंग) से मज़ा हासिल करने के लिए खेलता रहता और आनन्द हासिल करने के लिए खेलता रहता है और आनन्द हासिल करता है। इस बात को फ्राइड ने भी माना है। उसके अनुसार
“ सेक्सी ज़िन्दगी केवल बालिग़ होने की उम्र से शुरू नही होती बल्कि पैदा होने के कुछ ही समय बाद यह पूरी तरह से प्रकट होने लगती है ”।( 4)
जब यही बच्चा कुछ और बड़ा होकर जवान हो जाता है , अच्छे और बुरे की तमीज़ (पहचान) करने लगता है और सोचने समझने लगता है तो वह अपनी विपरीत लिंग के साथ रहने या केवल उसे देखने मे मज़ा और आनन्द महसूस करता है। यह भी ज्ञात हुआ है कि कभी कभी मनुष्य केवल विपरीत लिंग का ख़्याल करके ही सेक्सी मज़ा हासिल कर लेता है। कभी आपस मे सेक्सी बातें करके सेक्सी मज़ा महसूस करता है और कभी सेक्स से सम्बन्दित कुछ पढकर। कभी नाचने गाने की महफीलों मे बैठकर सेक्सी मज़े को प्राप्त करता है और कभी अपनी ही लिंग या विपरीत लिंग के साथ बैठकर या शरीर को छूने से ही सेक्सी इच्छा को पूरा कर लेता है। इत्यादि।
लेकिन उपरोक्त सभी तरीके सेक्सी मज़े और आनन्द को हासिल करने के लिए पूरी तरह इच्छा पूर्ति का साधन नही होते हैं। क्योंकि पूरी तरह इच्छा पूर्ति केवल सेक्स मिलाप अर्थात मैथुन क्रिया से ही हो सकती है। जो प्राकृतिक है और यह प्राकृतिक सेक्सी इच्छा हर तनदुरुस्त और पुरुष मे जवान होने के कम से कम तीस साल बाद तक बाक़ी रहती है।
जवानी की पहचान
इस्लाम मे जवानी (बालिगो) की पहचान मे लडकी की आयु कम से कम चौदह वर्ष और लडकी की आयु कम से कम नौ वर्ष पूरा हो जाना बताया है। लेकिन अगर किसी को अपनी आयु मालूम नही है तो इसकी आसान पहचान यह है कि लडके के चेहरे पर दाढी और मूंछ निकलने लगे और लडकी के सीने (अर्थात छाती) पर उभार आने लगे। साथ ही साथ दोनों की आवाज़ भारी हो जाये। इसके अलावा दोनों की बग़लों और नाभि के नीचे बाल उग आयें , लडके के सोते या जागते मे वीर्य (मनी)( 5) निकल आये इसी तरह लडकी के मसिक धर्म का खून (हैज़ , आर्तव)( 6) आने लगे।
यही वह मौका होता है जब जवान लडके और लडकियों मे प्यार व मुहब्बत की भावना पैदा होती है और उसके अन्दर प्राकृतिक तौर पर एक तूफानी ताक़त जोश मारना शुरु कर देती है। उसके अन्दर सेक्सी इच्छा पैदा होती है। एक उमंग उठती है एक न दबने वाली भावना और न रुकने वाला जोश उसके सीने मे उठता है। वह खुद इस बात को समझ नही पाता है कि यह सब कुछ क्या है ? उस समय उसे प्राकृतिक तौर पर यह अहसास होता है कि उसे एक साथी की आव्श्यकता है। पुरुष स्त्री की तरफ खिंचता है और स्त्री पुरुष की तरफ खिंचती चली जाती है। ज़िन्दगी के यही वह दिन होते हैं जब नौजवान रास्ता भटक जाते हैं। उन्हे उस समय न धर्म का डर होता है न रवाज का खौफ़ , न माली रुकावट आती है , न परिवार के राज़ी होंने की फिक्र। उसे हर समय यही अहसास और ख्याल रहता है कि उसे अपनी ज़िन्दगी का साथी चाहिए। बहुत कम ऐसे होते हैं जो इन दिनों सीधे रास्ते पर बाक़ी रहे , वरना जवानी वास्तव मे मसतानी और दीवानी होती है , जो होश व हवास भुला देती है और इन ही दिनों मे जवान इच्छा पूर्ति के नये नये तरीके निकालते हैं जिनमे हस्त मैथुन , गुद मैथुन और बलात्कार ( 7) सभी शामिल हैं। जो एक अच्छे खासे जवान की अच्छी खासी ज़िन्दगी को बर्बाद कर देते हैं।
हस्त मैथुन
आम तौर से यह बात समझी जाती है कि जवानी में केवल लड़के ही हस्त मैथुन (मुश्त ज़नी) जैसा खतरनाक काम करते हैं जब कि यह गलत है क्योंकि इस बात का सुबूत मौजूद है कि हस्त मैथुन लड़कियाँ भी करती हैं। वह एकान्त मे बैठकर अपनी उंगली या उस जैसी किसी दूसरी चीज़ को अपनी योनि (शर्म गाह) में डालकर धीरे-धीरे हरकत देंती हैं और आन्नद और मज़ा महसूस करती हैं। कभी-कभी दो जवान लड़कियाँ एक दूसरे की छाती को मुहँ में डालकर चूसती और एक दूसरे को उंगलियों से वीर्यपात (इंज़ाल) कराती हैं। ( 8) लेकिन लड़कियों और औरतों की यह हरकत बहुत बुरी और हानिकारक है। ऐसी लड़कियों की शर्मगाह में वरम (सूजन) हो जाता है , धार्मिक खून के दिनों में असंबध्दता (बेकाइदगी) पैदा हो जाती है। कभी कभी गंदे हाथों की वजह से योनि में ज़ख्म हो जाते हैं , जो मैथुन मे तकलीफ़ देते हैं। अतः चाहिए कि इस बुरे और हानिकारक काम से बचा जाए।
बहरहाल दुनियां में यह बात पूरी तरह से मानी जा चुकि है कि नब्बे प्रतिशत से अधिक नौजवान लड़के और लड़कियां हस्त मैथुन करते हैं। लेकिन नौजवान लड़कियों की संख्या कुछ कम है। इसका मुख्य कारण यह है कि लड़कों की सेक्सी शक्ति लड़कियों से अधिक हुआ करती है। वह सेक्स को भड़काने वाली तस्वीर , बात , खूबसूरत शरीर या विचार के ही द्वारा अपने लिगं (क्योंकि पुरूष में सेक्सी अंग केवल एक है जो शीघ्र ही असर को कबूल कर लेता है) में जोश और तनाव महसूस करते हैं। लड़को को यह तनाव उस समय भी महसूस होता है जब उन के लिगं पर कपड़े या किसी और चीज़ से हल्की-हल्की रगड़ लगती रहती है। जिस से उन्हें मज़ा मिलता और आन्नद महसूस होता है। कभी-कभी शुरू में लड़के खुद या किसी दोस्त के बताने पर आन्नद और मज़े को हासिल करने के लिए अपने लिंग को अपने हाथ से धीरे-धीरे सहलाते , मसलते और रगड़ते रहत हैं जिस से सख्त तनाव और जोश पैदा होता है और इस तनाव और जोश का आख़री नतीजा वीर्य का निकल जाना (वीर्यपात , इंज़ाल या अहतिलाम) हुआ करता है। जिसके बाद लिंग के साथ-साथ पूरे शरीर को थोड़ी देर के लिए सुकून और एक खास तरह का मज़ा और आन्नद महसूस होता है। और नौजवान का पूरा बदन मुख्य रूप से लिंग ढीला पड़ जाता है। इसी थोड़े समय के सुकून और हस्त मैथुन स जवान खुश होता है और धीरे-धीरे इसी को अपनी आदत बना लेता है। क्योंकि इसमें न तो दौलत की ज़रूरत होती है (मगर खून जैसी कीमती दौलत नष्ट (बर्बाद) ज़रूर होती है) और न ही किसी दूसरे लिंग की ज़रूरत होती है। इसलिए नौजवान सोचने लगता है कि शादी और सेक्सी मिलाप से पहले सेक्सी इच्छा को पूरा करने के लिए हस्त मैथुन के ज़रिए ही वीर्य को निकालना आसान और बेहतर तरीक़ा है। कभी-कभी वह यह भी सोचता है कि हराम कारी (बलात्कारी) से बेहतर हस्त मैथुन के ज़रिए सेक्सी इच्छा को पूरा करना ही ठीक है। लेकिन उसे इस बात का ख्याल नही रहता कि चौदह से बीस साल की आयु का यह वीर्य कच्चा और कम होता है। और कच्चे वीर्य को इस तरह से नष्ट करना अपनी सेहत और तनदुरूस्ती को सदैव के लिए बरबाद करना हुआ करता है। इस बुरे और हानिकारक कार्य के लिए हमेशा नर्म और नाज़ुक (कोमल) अंग को छेड़ते रहने से लिंग छोटा , पतला , कमज़ोर और टेढा हो जाता है। जो शादी या सेक्सी मिलाप के समय लज्जा का कारण बनता है।
यह सही है कि वीर्य जैसी क़ीमती चीज़ को हस्त मैथुन के ज़रिए बराबर नष्ट करते रहने से नौजवान में वह क़ुव्वत , सहत , मर्दानगी. जवांमर्दी , अक्लमंदी और जोश व ख़रोश बाक़ी नही रहता है जो वीर्य को बचाए रखने से प्राकृतिक तौर पर हासिल होता है। बराबर हस्त मैथुन करते रहने से संवेदन शक्ति (ज़कावते हिस) बढ जाती है , वीर्य पतला हो जाता है , नौजवान बहुत जल्द वीर्यपात का मरीज़ हो जाता है , निगाह खराब हो जाती है , स्मरण शक्ति कमज़ोर हो जाती है , खाना पच नही पाता , चेहरा पीला दिखाई देता है , आँखें अन्दर को धंस जाती हैं , टाँगों और कमर में दर्द रहने लगता है , बदन थका थका सा रहने लगता है , चक्कर आते हैं , ख़ौफ , घबराहट , परेशानी और लज्जा हर वक्त बनी रहती है---- संक्षिप्त यह कि नौजवान चलती फिरती लाश बनकर रह जाता है। वह इस बात पर गौर नही करता कि हस्त मैथुन से एक या दो मिनट तक महसूस होने वाले मज़े का नुकसान पूरी ज़िन्दगी सहना पडता है , मर्दानः शक्ति बर्बाद हो जाती है।
दुनिया में इस बात के सुबूत मौजूद हैं कि इस बुरे और हानिकारक कार्य मे नौजवानों के अलावा कुछ प्रौढ लोग भी पड जाते हैं।
कभी-कभी हस्त मैथुन के आसान तरीक़े को वह प्रौढ लोग अपनाते हैं जो कुछ कठीनाईयों (मुख्य रुप से आर्थिक कठीनाईयों) के कारण से शादी (धार्मिक तरीक़े पर सेक्सी मिलाप) नही कर पाते। लेकिन प्राकृतिक सेक्सी इच्छा की वजह से हस्त मैथुन जैसे बुरे और हानिकारक कार्य से संतोष प्राप्त करते रहते हैं।
इस बुरे , हानिकारक और हराम कार्य को वह विवाहित पुरूष भी अपनाते हैं जो पत्नी से दूर रहते हैं। जिनकी पत्नी बीमार रहती है या पत्नी , पति की सेक्सी आव्शकता को पूरा नही कर पाती। इसलिए पति , पत्नी को सेक्सी मिलाप के लिए बार बार परेशान करके अपनी घरेलू ज़िन्दगी को खराब करने की जगह पर हस्त मैथुन से सेक्सी संतोष हासिल करता रहता है। और नतीजे में उन तमाम बीमारीयों का मालिक बन जाता है जो इस बुरे और हानिकारक कार्य से पैदा होती हैं।
इसीलिए इस्लाम धर्म ने इस बुरे और हानिकारक कार्य (हस्त मैथुन) को हराम (अर्थात जिस के करने पर गुनाह हो) बताया है और हज़रत अली (अ.) ने इरशाद फरमाया हैः-
“ मुझे आश्चर्य है उस मनुष्य से जो मज़े से खतरनाक़ (हानिकारक) नतीजों को जानता है। वह इफ़्फ़त और पाक़ीज़गी (बुराईयों से बचने और पवित्र रहने) का रास्ता क्यों नही अपनाता। ” (10)
दूसरी जगह इरशाद फरमाते हैः
“ वह मज़ा जिससे शर्मिन्दगी (लज्जा) मिले। वह सेक्स और इच्छा जिससे दर्द में बढोतरी हो , उसमे कोई अच्छोई नही है ”।( 11)
अतः हर मनुष्य को लज्जा और खतरनाक़ नतीजों के सामने रखते हुए हस्त मैथुन जैसे बुरे , हानिकारक और हराम कार्य से तौबः करके इज़्ज़त और पाकीज़गी का रास्ता अपनाना चाहिए ताकि उसकी सहत और तन्दुरूस्ती बाक़ी रहे और यही इस्लामी शीक्षा का बुनयादी उद्देश्य है।
गुद मैथुन
हस्त मैथुन की तरह गुद मैथुन (इग़लाम बाज़ी अर्थात लड़कों के साथ बुरा काम करना) भी केवल पुरूषों में नही है बल्कि दुनियाँ में गुद मैथुन क्रिया की शीकार औरतों में भी पाई जाती हैं जो अपनी सेक्सी इच्छा के संतोष के लिए इधर उधर मुँह मारती फिरती हैं। अपने सेक्सी अंगों को दिखाती हैं ताकि अधिक से अधिक लड़के (पुरूष) उनकी ओर आकर्षित हों। अधिकतर देखा गया है कि ऐसी औरतें बड़ी आयु के लोगों को घांस नही डालती हैं बल्कि नौजवानों को चुनती हैं और वह जल्द उन औरतों के मुहब्बत के जाल मे गिरफ्तार हो जाते हैं। यह ज़माने को देखी हुई औरतें चूँकि सेक्स और मैथुन के सभी उसूलों और तरीकों को जानती हैं इस लिए जब नौजवान को अपनी मुहब्बत के जाल में फंसाने के लिए उस से लिपटती , चिमटती , चूमती और उसके लिंग को पकड़ कर मसलती और प्यार करती हैं तो नौजवान लड़का अपनी भावनाओं (जज़्बे पर काबू नही रख पाता। फिर वह इस तरह से मैथुन करती है कि बस वह उसी का गुलाम हो कर रह जाता है ( 12) ----- फिर कुछ दिन बाद ऐसे नौजवान सेक्सी तौर पर बेकार हो जाते हैं। और वह औरतें दूसरे नौजवान को तलाश कर लेती हैं।
पुरूष में यह सेक्सी लगाव अपनी ही जाती (लिंग) अर्थात् लड़को की तरफ होता है जिनसे दोस्ती पैदा कर लेने में ज्यादा कठिनाई नही होती। लेकिन यह रास्ता पहले (अर्थात हस्त मैथुन) से भी अधीक तबाह करने वाला होता है। क्योंकि पैदा करने वाले (अर्थात खुदा) ने पुरूष को पुरूष के साथ बुरा काम करने के लिए नही पैदा किया है।
ग़ौर से देखें और दुनिया की सभी चीज़ों का निरीक्षण करें तो मालूम होगा कि चौपाये , पंक्षी और जंगली जानवर सब इस जुर्म और बुरी आदत से बहुत दूर हैं। इन्सान के अतिरिक्त किसी दूसरे जानवर में नर को नर के साथ बुरा काम करते नही देखा जा सकता है।( 13) अर्थात एक ऐसा जुर्म है जिसकी कल्पना भी उनमें मौजूद नही। लेकिन यह इन्सान का अभाग्य है कि उसने अपनी तबाही के लिए नया रास्ता निकाल लिया है। आदम की औलादों में सब से ज़्यादा बुरा , खराब और बेग़ैरत वह लड़का है जो दूसरे से बुरा काम करवाता है और बहुत लानत है उस लड़के पर जो अपने ही जैसे लड़के के साथ बुरा काम करता है।
कुर्आने करीम में यह वाकेया मौजूद है कि शैतान ने क़ौमे-ए-लूत ( 14) को एक ऐसे बुरे काम में फसा दिया जो उनसे पहले दुनिया की किसी क़ौम का फर्द (मनुष्य) ने नही किया था और न किसी को उसकी खबर थी। वह बुरा काम यह था कि मर्द नौजवान लड़कों के साथ बुरा काम करते थे और अपनी सेक्सी इच्छा को औरतों के बजाए लड़कों से पूरा करते थे। इस पर अल्लाह ने अपने पैग़म्बर हज़रत लूत (अ.) को आदेश दिया कि वह इन लोंगो को इस से बचे रहने की नसीहत करें। आपने अल्लाह के आदेश का पालन करते हुए , अपनी कौंम को , कौंम की लड़कियों से निकाह करने के लिए कहा। लेकिन इस काम में फंसे लोगों ने आप की एक न सुनी। आख़िर कार लूत (अ ,) की कौम पर खुदा का अज़ाब (पाप) आया और इस काम में फंसे लोग अपने पूरे माल व असहाब (अर्थात सामान) और शान व शौकत के साथ हमेशा-हमेशा के लिए ग़र्क हो (डूब) गए।
अतः इस बुरे और खराब काम से बचना ज़रूरी है। वरना लूत की कौम वाला हाल हो जाएगा। ऐसे लोगों की सज़ा इस्लाम में कत्ल है।( 15) इससे लिंग की रगें मर जाती हैं और आदमी नामर्द (नपुंसक) हो जाता है साथ ही साथ सहत व तनदुरूस्ती ख़त्म और बीमारियाँ लग जाती हैं। जबकि इस्लाम मनुष्य को तन्दुरूस्त देखना चाहता है न कि बीमार।
क़ुर्आन में गुद मैथुन अर्थात अपनी ही लिंग से सेक्सी इच्छा को पूरा करने वाले लोगों से सम्बन्धित यह मिलता हैः-
“ (हाँ) तुम औरतों को छोड़कर सेक्सी इच्छा की पूर्ति के वास्ते मर्दों की ओर आकर्षित होते हो (हालांकि इसकी ज़रूरत नहीं) मगर तुम लोग हो ही बेहूदा (बेकार) सर्फ़ (खर्च) करने वाले (कि नुतफ़े अर्थात वीर्य को नष्ट करते हो)। “ (16)
और
“ क्या तुम औरतों को छोड़ कर काम वासना (इच्छा पूर्ति) से मर्दों के पास आते हो (यह तुम अच्छा नही करते) बल्कि तुम लोग बड़ी अनपढ क़ौम हो ”।( 17)
या
“ क्या तुम लोग (औरतों को छोड़कर काम वासना के लिए) मर्दों की तरफ गिरते हो और (मुसाफिरों की) रहज़नी (लूट पाट) करते हो ”।( 18)
यह भी है कि
“ क्या तुम लोग (काम वासना के लिए) सारी दुनिया के लोगों में मर्दों ही के पास जाते हो और तुम्हारे लिए जो बीवीयाँ तुम्हारे खुदा ने पैदा की हैं उन्हे छोड़ देते हो (यह कुछ नहीं) बल्कि तुम लोग हद से गुज़र जाने वाले आदमी हो ”।( 19)
और
“ जब किसी क़ौम में गुद मैथुन की ज़्यादती हो जाती है तो खुदा उस क़ौम से अपना हाथ उठा लेता है और उसे इसकी परवाह (ख्याल) नही होती कि यह क़ौम किसी जंगल में हल़ाक कर दी जाए ”। ( 20)
यह भी मिलता है
“ अल्लाह तआला उस मर्द की तरफ देखना भी पसन्द नही करता जो किसी औरत या मर्द से गुद मैथुन करता है। (यह तो क़ुफ़्र के बराबर है) ” (21)
अतः इस बुरे और हराम काम से सच्चे दिल से तौबः करनी चाहिए और केवल औरतों से उसकी जाएज़ और हलाल जगह से ही सेक्स इच्छा की पूर्ति हासिल करना चाहिए। जो प्राकृतिक है।
बलात्कार
जब यह बात साबित हो गई कि हस्त मैथुन और गुद मैथुन से बचना चाहिए और प्राकृतिक सेक्सी इच्छा को पूरा करने के लिए औरत और मर्द को एक दूसरे की जाएज़ जगह से स्वाद , मज़ा और आन्नद उठाना चाहिए। तो यह भी समझ लेना चाहिए कि यह आज़ादी हर मर्द और औरत के साथ नही है।
यूँ प्राकृतिक तौर पर हर सहत मंद नौजवान लड़के औक लड़कियां चाहे अनचाहे एक दूसरे की तरफ ललचाही निगाहों से घूरने लगते हैं। वह यह इच्छा करते हैं कि एक दूसरे के पास घंटों बैठें , मिलें , बातें करें , छुऐं , गोद में लें , प्यार करें , चूमें चाटें और शारीरिक मिलाप के द्वारा इच्छा पूरी करें------ यही वह सच्ची इच्छा है जिसे सेक्सी इच्छा (काम वासना) कहते हैं। यह सेक्सी इच्छा ज़िन्दगी में एक ज़रूरी चीज़ है। इसे नापाक , खराब , शर्मनाक या बुरी नही समझना चाहिए। क्योंकि प्राकृतिक तौर पर शरीर में वह कीमती जौहर (वीर्य) बनने लगता है जो इन्सानी नस्ल को बाक़ी रखने का ज़रीया है। इसी से औलादें पैदा होती हैं।
लेकिन कभी-कभी इसी सच्ची सेक्सी इच्छा को पूरा करने के लिए मनुष्य अधार्मिक कदम उठा कर बलात्कारी (हराम कारी) का शीकार हो जाता है। इसकी खास वजह औरतों के संवेदनशील (हस्सास) अंगों की नुमाईश है। जिसकी एक झलक भी मर्दों की काम वासना को जगा देती है और मर्द , औरत के मामूली इशारे पर ही हरामकारी (बलात्कारी) पर तैयार हो जाता है।( 22)
कुछ अनुभवी औरतें एक खास तरह के इशारे और हरकतें करती हैं जिसको अनुभवी मर्द आसानी से समझ लेते हैं और एक़ान्त में जाकर दोनो सेक्सी इच्छा की पूर्ति करते हैं। ऐसी औरतें , मर्दों को संभोग की दावत देने के लिए कभी बार-बार दुपट्टा छाती से नीचे गिराती है , दुपट्टा न होने पर अपना हाथ छाती पर ले जाकर अंगों की नुमाईश करती हैं , जान बुझ कर बिस्तर पर लेटती हैं , कभी-कभी सर में दर्द का बहाना भी करती हैं कि मर्द सर दबाने के साथ साथ सब कुछ दबा जाए और उनके साथ संभोग भी कर ले जो उनका खास मक़सद होता है। क्योंकि वह मर्द से नही केवल उसके लिंग से मुहब्बत करती है और मर्द जो लिंग का पुजारी होता है वह ऐसी औरतों से सेक्स कर के अपनी जीत समझता है. ऐसे मर्दों के लिए बाज़ारी (बुरी , वैश्या) औरतों (इस तरह की औरतें करीब करीब हर ज़माने में पायी जाती हैं) के दर्वाज़े हमेशा खुले रहते हैं। जहाँ वह जाकर अपनी काम वासना को पूरा कर सकते हैं।
ऐसी बाज़ारी और फाहिशः (कुकर्म , वैश्या) औरतों के लिए डाक्टर फ़्रेकल लिखता है कि
“ मर्द और औरत के खुसूसी अंगों की बनावट में बड़ा अन्तर है। एक बदकार (बुरी औरत दिन रात में बहुत से मर्दों की सेक्सी इच्छा की पूर्ति का कारण बन सकती है ( 23) और बिना किसी तरह की शारीरिक तक़लीफ और परेशानी के वह कई मर्दों से ग़लत संम्बन्ध रख सकती है। इसके अतिरिक्त मर्द काफी कुव्वत और ताक़त रखने के बावजूद भी कुछ सालों तक प्रतिदिन एक बार संभोग की क्रिया नही कर सकता। अगर कोई मर्द बुरे पेशे से रोज़ी कमाएगा तो कितने दिनों , महीनों या सालों तक। इसका समय बहुत कम होगा और वह कुछ वर्षों बाद हड्डियों का ढ़ाँचा बन के रह जाएगा ”। ( 24)
अर्थात औरतें ही अपनी दुकान को सजाए मर्दों को हराम कारी के लिए बुलाती रहती हैं। शायद यह बात औरतों को बुरी लगे लेकिन चूँकि सेक्स शास्त्र के विशेषज्ञों ने यही राय निकाली इसलिए लेखक ने नक़्ल कर दी। बहरहाल औरत और मर्द को बुरे काम (बलात्कारी) की ओर दावत देने का सुबूत क़ुर्आन-ए-करीम में मौजूद जनाबे यूसुफ (अ.) और ज़ुलेख़ा का वाकिआ भी मिल जाता हैः-
“ और जिस औरत के घर यूसुफ रहते थे (ज़ुलेख़ा) उसने अपने (ग़लत) मकसद को हासिल करने के लिए खुद उनसे आरज़ू (ख़्वाहिश) की और सब दर्वाज़े बन्द कर दिए और (उत्कंठित अर्थात बेताब हो) कहने लगी लो आओ यूसुफ ने कहा मआज़अल्लाह वह (तुम्हारे पति) मेरे मालिक हैं उन्होंने मुझे अच्छी तरह रखा है। (मैं ऐसी गलती क्यों कर सकता हूँ) बेशक ऐसी गलती करने वाले नेकी नही पाते। ज़ुलैखा ने तो उनके साथ (बुरा) इरादः कर ही लिया था और अगर यह भी अपने खुदा की दलील न देख चुके होते तो इरादः कर बैठते (हमने उसको यूँ बचाया) ताकि हम उससे बुराई और बदकारी को दूर रखें। बेशक वह हमारे खास बन्दों में से था और दोनों दर्वाज़े की तरफ झपट पड़े और ज़ूलैख़ा ने पीछे से उनका कुर्ता (पकड़कर खैंचा और) फाड़ डाला और दोनों ने ज़ुलैख़ा के पति को दरवाज़े के पास (खड़ा) पाया। ज़ुलैख़ा फ़ौरन (अपने पति से) कहने लगी जो तुम्हारी बीवी के साथ बदकारी का इरादः करे उसकी सज़ा इसके अलावा और कुछ नही कि या तो कैद कर दिया जाए या दर्द नाक आज़ाब में ड़ाल दिया जाए। यूसुफ ने कहा इसने खुद मुझ से मेरी आरज़ू (ख्वाहिश) की थी और ज़ुलैख़ा के परिवार वालों में से एक ग़वाही देने वाले (दूध पीते बच्चे) ने गवाही दी कि अगर इनका कुर्ता आगे से फटा हुआ हो तो यह सच्ची और वह झूठे और अगर उनका कुर्ता पीछे से फटा हुआ हो तो यह झूठी और वह सच्चे फिर जब अज़ीज़-ए-मिस्र ने उनका कुर्ता पीछे से फटा हुआ देखा तो (अपनी औरत से) कहने लगे यह तुम ही लोगों के चलत्तर (बहानें) हैं इसमें कोई शक नही कि तुम लोगों के चलत्तर बड़े (खतरनाक) होते हैं ”।( 25)
अर्थात ज़ुलैख़ा (औरत) ने अपनी सेक्सी इच्छा की पूर्ति के लिए खुदा के नेक बन्दे जनाबे यूसुफ (मर्द) को हरामकारी की दावत दी और जब जनाबे यूसुफ (मर्द) उस से बचकर भागे तो ज़ुलैखा (औरत) ने अज़ीज़ मिस्र (अपने पति) के सामने अपने चल्लतर दिखा कर अपने को पाक और साफ और जनाबे यूसुफ को दोषी साबित करने की कोशिश की। इससे यह नतीजा नीकाला जा सकता है कि अधिकतर औरतें ही दोषी होती हैं मर्द नहीं।
बहरहाल यही औरतें क्लबों और होटलों में थोड़े पैसों पर ही अपनी मान मर्यादा (इज़्ज़त व आबरू) का सौदा कर लेती हैं , दफ़तरों और मिलों में मर्दों के दिल खुश करती हैं , दुकानों पर सेक्सी अंगों की नुमाईश करती हैं , बाज़ारों और कम्पनियों में ग्राहक को बढ़ाने के लिए टेलीविज़न पर विभिन्न अदायें दिखाती हैं फिल्मों में मर्दों को खुश करने के लिए नंगी नाचती हैं ------ जिससे मर्द की सेक्सी इच्छा जागती है और वह औरत को अपनी सेक्सी इच्छा की पूर्ति का निशाना बना लेता है और औरतें समझती हैं कि औरतों को आज़ादी है। जबकि यह आज़ादी उनको बर्बादी की तरफ ले जा रही है। औरतें यह नही समझती कि अधिक बुद्धी रखने वाला मर्द , कम अक्ल रखने वाली औरत की आज़ादी से सम्बन्धित बात करके उसे अपनी सेक्सी इच्छा पूर्ति के लिए निशाना बनाता रहता है ------- इसिलिए इस्लाम में औरतों को घर की चहारदिवारी में घर की मालिकः (रानी) बनाया है ताकि मान मर्यादा बाक़ी रहे। लेकिन औरतों ने घर को क़ैदखाना समझकर घर से बाहर क़दम निकाला और मर्दों के हाथों अपनी मान मर्यादा को बेच दिया। जिसका मुख्य दोषी मर्द को साबित किया जाता है। जो औरतों की खूबसूरती और बनाव सिंगार पर रीझ कर अपना ग़लत क़दम उठाता है। जिससे बचने का तरीक़ा हज़रत अली (अ.) ने अपने ज़माने में उस समय पेश किया जबकि आप अपने असहाब के साथ बैठे थे औरः
“ एक बार एक खूबसूरत औरत का गुज़र हुआ तो लोगों ने उस पर ताक झांक शुरू कर दी जिस पर आप ने कहा इन मर्दों की निगाहें ताकने वाली हैं और यह ताक झांक उनकी सेक्सी इच्छा को उभारने का कारण हैं। अतः जब तुम में से किसी की निगाह ऐसी औरत पर पड़े जो उसे भली मालूम हो तो चाहिए कि वह अपनी पत्नी के पास जाये क्योंकि वह भी औरत जैसी औरत है ”।( 26)
यह इस बात की दलील है कि औरत की खूबसूरती बनाव सिंगार और बेपर्दिगी ही मर्दों को ग़लत कदम उठाने पर उभारती हैं। इसी लिए जनाबे फातिमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा ने कहा है कि
“ पर्दः औरतों का सब से बड़ा ज़ेवर है ”।( 27)
इसी पर्दे से सम्बन्धित क़ुर्आन में है।
“ (ऐ रसूल स.) ईमानदार औरतों से भी कह दो कि वह भी अपनी निगाहें नीचे रखें और अपनी शर्मगाह की हिफाज़त (सुरक्षा) करें और अपने बनाव सिंगार (के हिस्सों) को (किसी पर) प्रकट न होने दें मगर जो खुद से प्रकट हो जाता है (छुप न सकता हो उसका गुनाह नही) और अपनी चादरों को अपने गरेबानों (सीनों , छातियों) पर ड़ाले रहें और और अपने पतियों या बाप दादाओं या अपने पति के बाप दादाओं या अपने बेटों या अपने पति के बेटों या अपने भाईयों या अपने भतीजों या भानजों या अपनी (तरह की) औरतों या नौकरानियों यह घर के वह नौकर चाकर जो मर्द की सूरत हैं मगर (बहुत बूढ़े होने की वजह से) औरतों से कुछ मतलब नही रखते या वह कम उम्र लड़के जो औरतों के पर्दे की बात नही जानते। इनके अलावा (किसी पर) अपना बनाव सिंगार प्रकट न करें और चलने में अपने पैर ज़मीन पर इस तरह न रखें की लोगों को उनके छुपे हुए बनाव सिंगार की खबर हो जाए ”।( 28)
अर्थात औरतों को चाहिए कि वह अपनी छाती पर चादरें (दुपट्टा) डाले रहें ताकि वह खूबसूरती जो खुदा ने उनकी छाती के उभार में पैदा की है वह ग़ैर मर्दों पर प्रकट न होने पाए।
औरतों की इसी बेपर्दिगी और शरीर के छीपे हुए बनाव सिंगार की नुमाईश से सम्बन्धित रिवायत में मिलता है कि पैग़मबर-ए-इस्लाम ने फर्मायाः
“ एक नौजवान लड़की अपनी बेपर्दिगी और अपने शरीर को ग़ैर मर्दों को दिखाने के नतीजे में नर्क मे जाएगी। उसकी माँ जो पर्दे में रहती थी अपने आप को ग़ैर मर्दों से छिपाती थी वह भी अपनी बेपर्दः बेटी के साथ नर्क में जाएगी ”। ( 29)
इस तरह के नमूने रास्ता चलते बहुत से दिखाई देते हैं। जिसमें माँ पर्दे में होती है और बेटी बेपर्दः मेकप किए , आधी नंगी अपने शरीर के संवेदन-शील अंगो की नुमाईश करती है। जिसकी वजह से कभी-कभी हरामकारी और बलात्कारी में पड़ जाती है। जिसकी मुख्य दोषी लड़की की माँ है। क्योंकि वह अपनी बेटी को इस्लामी शिक्षा के अनुसार शिक्षा नही प्रदान कर सकी। अतः आव्यशक है कि इस्लामी आदेश के अनुसार औरत पर्दे में रहे ताकि बदकारी , हरामकारी , बलात्कारी से बच सके। इन सभी बुरे कामों से बचने के लिए मौला अली (अ ,) ने आसान तरीक़ा बताया है कि औरत अपने अन्दर तकब्बुर ( 30) अर्थात घमण्ड (जो देखने में बुरी बात है) पैदा कर ले। क्योंकि यही उसके नफ्स अर्थात काम वासना की सुरक्षा करता है।
जब कि आज की औरत घमण्ड नहीं करती वह अपने शरीर को शीघ्र ही मर्द के सामने पेश कर देती हैं , वह अपने शरीर की नुमाईश करना आज़ादी और फ़ैशन समझती है , वह विवाहित और अपनी बीवी से नाखुश और असंतुष्ट मर्दों को अपने शरीर से खेलने की खुली छूट देती है -------- जिससे बलात्कारी , बदकारी और हरामकारी में प्रतिदिन बढ़ोतरी होती जा रही है।
जब कि यह काम हर धर्म और समाज में बुरा और खराब जाना जाता है और इस्लाम का भी आदेश है किः-
“ और (देखो) बलात्कारी के पास भी न फटकना। क्योंकि बेशक वह बड़ी बेशर्मी का काम है और बहुत बुरा चलन है ”। ( 31)
यह ऐसा बुरा काम है कि जिसका स्पष्ट एलान और स्वीकृति फाहिशः औरत या मर्द के अतिरिक्त कोई नही करता। फिर भी बलात्कारी मर्द या औरत का पता चल जाने पर कुर्आन उसकी सज़ा का एलान करता हैः-
“ और तुम्हारी औरतों मे से जो औरतें हरामकारी करें तो उनकी हरामकारी पर अपने लोगों मे से चार की गवाही लो , फिर अगर चारों गवाह उस बात को सच बतायें तो (उसकी सज़ा यह है कि) उनको घरों में बन्द रखो यहाँ तक की मौत आ जाए या खुदा उनकी कोई (दुसरी) राह निकाले और तुम लोगों मे जिन से हरामकारी हुई हो उनको मारो पीटो। फिर अगर वह दोनों अपनी हरकत से तौबः करें और सुधार पैदा कर लें तो उनको छोड़ दो। बेशक खुदा बड़ा तौबः करने वाला महरबान है ”।( 32)
और
“ बलात्कारी औरत और बलात्कारी मर्द (अगर अविवाहित हों) उन दोनों में से हर एक को सौ कोड़े मारो और अगर तुम खुदा और आखिरत के दिन पर ईमान रखते हो तो खुदा का आदेश लागू करने में तुम को उनके बारे में किसी तरह का लिहाज़ न होने पाए और उन दोनों की सज़ा के वक्त मोमेनीन के एक गिरोह को मौजूद रहना चाहिए (ताकि लोग उससे सबक़ हासिल करें) ” (33)
और अगर विवाहित मर्द और औरत हैं तो
“ विवाहित मर्द और औरत अगर हरामकारी (ज़िना) करें तो उनको पत्थर मारो ताकि दोनों मर जायें ”।( 34)
बलात्कारी मर्द या औरत की या तो दुनिया में दी जाने वाली सज़ा है और अगर वह किसी तरीक़े से इस सज़ा से यहाँ बच भी गए तो अल्लाह के यहाँ उन लोगों के लिए दर्दनाक अज़ाब (पाप) है। वैसे भी बलात्कार करने से बरकत उठ जाती है , मुँह की रौनक जाती रहती है , चेहरे पर मनहूसियत छा जाती है , आतशक (लिंग पर एक गंदा और पीप से भरा हुआ फोड़ा निकलना) और सोज़ाक (लिंग के अन्दर फुसियाँ निकलना) जैसी बीमारियाँ लग जाती हैं , हौसलः कमज़ोर हो जाता है , फिक्र और परेशानी लग जाती है , खानदान की मान मर्यादा का जनाज़ः (शव) निकल जाता है , शर्म और हया (लज्जा) खत्म हो जाती है , इख़लाक़ और ईमान तबाह हो जाता है-
अतः चाहिए कि इस बुरे और ख़राब काम से दुनिया को बचाया जाए। जिस के लिये डाक्टर एन. फ़िटन भविष्य वाणी करता हैः-
“ यह केवल औरत ही है जो दुनिया को हरामकारियों से बचा सकती है पापी जीवन व्यतीत करने वाली औरतें , मर्दों के युग की बहुत खराब यादगार हैं। इनसे सभ्यता और मानवता बहुत तकलीफ उठा रही है। यह पेशा (धन्धा) इंसानी तरक्क़ी के रास्ते में रोड़े का काम दे रहा है। लेकिन इस पेशे (धन्धे) को दूर करने का फ़र्ज़ (कर्तव्य) भी औरत के हाथ है ”।( 35)
वैसे भी बलात्कारी जैसे बुरे और हराम काम से औरत या मर्द की वह सेक्सी इच्छा पूरी नही हो सकती जो विवाह के बाद अपनी औरत या मर्द से होती है----- क्योंकि बलात्कार (ज़िना) कर रहे औरत या मर्द को यह डर लगा रहता है कि कही कोई आ न जाए , कोई देख न ले , किसी को पता न चल जाए--- इसलिए दोनों एक दूसरे से शीघ्र ही अलग होने की कोशीश करते हैं जिससे भरपूर सेक्सी इच्छा की पूर्ति नही हो पाती है। इसके अलावा उनको अकसर मौक़ा ढूढ़ना पड़ता है। और मौका न मिल पाने की सूरत में मुर्दः दिल हो जाते हैं ------ जबकि शादी (अर्थात धर्म के बताए हुए तरीक़े के अनुसार औरत और मर्द को सेक्सी इच्छा पूर्ति अर्थात शारीरिक मिलाप की इजाज़त) के बाद यह डर नही रहता। क्योंकि धर्म और समाज दोनों की ओर से औरत और मर्द को शारीरिक मिलाप (अर्थात संभोग) का पूरा हक़ हासिल होता है। वह जब चाहे एक दूसरे से सेक्सी आन्नद हासिल कर सकते हैं। और खुदा ने उन्हे एक दूसरे से सेक्सी स्वाद और आन्नद हासिल करने के लिए ही बनाया है।
इसी लिए इस्लाम जहाँ हस्त मैथुन , गुद मैथुन और बलात्कारी जैसे बुरे और हराम कामों पर सख्त पाबन्दी लगाता है। वहीं प्राकृतिक सेक्सी इच्छाओं की पूर्ति के लिए शादी (विवाह) का आदेश भी देता है।
दूसरा अध्याय
इस्लाम और सेक्स
अ – शादी
ब – मुतअः
पिछले अध्याय में यह बात स्पष्ट हो चूकी है कि सेक्सी इच्छाओं की पूर्ति के सभी अप्राकृतिक और अधार्मिक तरीक़े (अर्थात हस्त मैथुन , गुद मैथुन और बलात्कार) मनुष्य की सहत और तन्दुरूस्ती को बरबाद कर देते हैं जिसको इस्लाम बिल्कुल पसन्द नही करता ------ इसी इस्लाम ने प्राकृतिक और धार्मिक तरीक़े से शादी करके सेक्सी इच्छा की पूर्ति को जायज़ और बल्कि हरामकारी के खौफ से वाजिब बताया है। ताकि मनुष्य की सेहत और तनदुरूस्ती बाक़ी रहे , आराम व सुकून मिले , खुशी प्रतीत हो , अल्लाह के करीब होने में बढ़ोतरी हो , गुनाह से बचा रहे और ईमान बाक़ी रहे।
शादीः- इस्लाम के अनुसार शादी नौजवानों के लिए एक ऐसी बड़ी दौलत है जो उनको हरामकारियों और बुराईयों से बचा कर के पाक दामनी और पर्हेज़गारी अता करती है। जिसके कारण नौजवान का आधा धर्म सुरक्षित हो जाता है। इसी लिए पैग़म्बर इस्लाम का इरशाद-ए-गिरामी हैः-
“ए- जवानों अगर शादी करने का सामथ्य रखते हो तो शादी करो क्योंकि शादी आँख की बुराईयों से बचाये रखती है और पाकदामनी और पर्हेज़गारी अता करती है ”। ( 36)
आप ही का इर्शाद (प्रवचन) हैः-
“ जिसने शादी की उसने अपना आधा धर्म सुरक्षित कर लिया ”। ( 37)
या
“ जिसने एक औरत से शादी की उसने आधे धर्म की सुरक्षा की और बाक़ी आधे में तक़वे (अर्थात दूसरे हराम कामों से बचे रहने) की ज़रूरत रही ”। ( 38)
इसी तरह इमाम-ए-जाफ़र-ए-सादिक (अ.) ने फर्मायाः-
“ मेरे ख्याल में किसी मोमिन मर्द के ईमान की तरक्क़ी नही हो सकती अलावा इसके कि वह औरत से मुहब्बत रखे ”।( 39)
यह भी फर्माया कि
“ जिसे औरतों से ज्यादा मुहब्बत होती है उसके ईमान में तरक्क़ी होती है ”। ( 40)
बहरहाल यह वास्तविकता है कि शादी प्राकृतिक सेक्सी इच्छाओं की पूर्ति का अकेला रास्ता है जिससे इन्सान गुमराही , बे दीनी और हरामकारी से बचकर तक़वा और पर्हेज़गारी को अपनाता है। जिससे उसके ईमान की सुरक्षा होती है। वह मनुष्य जिसकी रगों में जवानी का खून और दिल में जवानी की उमंगे हैं वह जिसको खुदा ने प्राकृतिक तौर पर सेक्सी इच्छाओं का मालिक बनाया है वह कि जिन में प्राकृतिक तौर पर अपनी विपरीत जाति की तरफ़ खिचाव और लगाव होता है ----- अगर अपनी इच्छाओं और उमंगो पर ज़ोहद और तक़वा (संयम और पर्हेज़गारी) के सख़्त पहरे बिठा कर प्राकृतिक सेक्सी इच्छाओं की पूर्ति न करे तो वास्तव में उसकी सहत और तन्दुरूस्ती ख़राब और इन्सानी नस्ल खत्म हो जायेगी। जिसको इन्सान हरगिज़ पसन्द नही करता। इसीलिए इस्लाम ने शादी से भागने और कुँवारा रहने को अच्छा नही समझा है। बल्कि शादी को ज़रूरी और मसतहब (जिसके करने में सवाब) बताया है। जो खुदा को पसन्द है।
पैग़म्बर-ए-इस्लाम इर्शाद फ़र्माते हैं।
“ इस्लाम में कोई चीज़ ऐसी नही जो खुदा के नज़दीक़ शादी से ज़्यादा अज़ीज़ और महबूब (अर्थात पसन्द की जाती) हो ”। ( 41)
एक और इर्शादे-ए-गिरामी हैः-
“ ऐसा मर्द जो बीवी नही रखता , गरीब और बेचारः है। चाहे वह मालदार ही क्यों न हो। इसी तरह बिना पति के औरत ग़रीब और बेचारी है चाहे वह मालदार ही क्यों न हो ”। ( 42)
इसी से सम्बन्धित इमाम-ए-जाफर-सादिक़ (अ ,) ने एक शख्स से पूछाः-
“ तुम्हारी बीवी है ? उसने कहा नही। आप ने फरमाया मैं पसन्द नही करता कि एक रात भी बिना बीवी के रहूँ। चाहे उसके बदले में सारी दुनिया की दौलत का मालिक ही क्यों न बन जाऊँ ”। ( 43)
कुछ इसी तरह की बात इमाम-ए-मुहम्मद-ए-बाक़िर (अ ,) ने इर्शाद फर्मायी हैः-
“ मुझे यह बात किसी तरह बर्दाशत नही कि दुनिया और इसमें जो कुछ भी है वह पूरा का पूरा हासिल हो जाए और एक रात बिना औरत के सोऊँ ”।( 44)
उपर्युक्त प्रवचनों से यह बात स्पष्ट होती है कि पूरी दुनिया की दौलत बीवी से कम होती है और पति और पत्नी के दुनिया की दौलत व मालदारी , गरीबी और बेचारगी जैसी है ----------- कौन नही चाहता कि वह मालदार हो जाए और वास्तविक मालदारी विवाह के बिना सम्भव नही। इसी लिए क़ुर्आन-ए-करीम में मिलता हैः-
“ और अपनी (क़ौम की) बिना पति की औरतों और अपने नेक चलन गुलामों और लौंङियों (नौकरानियों) का भी निकाह ( 45) कर दिया करो। अगर यह लोग ग़रीब होंगे तो खुदा अपने रहम (व करम) से मालदार बना देगा ”।( 46)
सिर्फ़ यही नही बल्कि महान खुदा , कुर्आन-ए-मजीद में इस बड़ी नेमत (दौलत) का वर्णन करते हुए फर्माता हैः-
“ खुदा की निशानियों में से एक निशानी यह है कि उसने तुम्हारी जाती में ही से तुम्हारे लिए ज़िन्दगी का साथी पैदा किया ताकि उन से मुहब्बत पैदा करो और उनके साथ आराम व सुकून से रहो और तुम्हारे बीच मुहब्बत और लगाव पैदा किया। इस सिलसिले में ग़ौर करने वालों के लिए बहुत से निशानियां मौजूद हैं ”।( 47)
अर्थात कुर्आन-ए-करीम की दृष्टि में शादी कोई ख़राबी या बुराई नहीं बल्कि आराम व सुकून और मुहब्बत और लगाव का बेहतरीन साधन है और शायद यही दिल को मिलाने वाला वह सुकून हो जो ईमान में बढ़ोतरी का कारण बनता हो। क्योंकि क़ुर्आन ने ईमान में बढ़ोतरी का कारण सुकून ही बताया है।
मिलता हैः-
“ वह वही (खुदा) तो है जिसने मोमिनीन के दिलों में सुकून (और तसल्ली) नाज़िल फ़र्मायी ताकि अपने (पहले) ईमान के साथ ईमान को बढ़ाये ”।( 48)
अतः सुकून हासिल करने के लिए शादी करना आव्यशक है। इसी लिए इस्लाम ने अकेला अर्थात अविवाहित रहने को अच्छा नहीं समझा है बल्कि इसकी कठोर निन्दा की है। रसूल-ए-खुदा का इर्शाद हैः-
“ मेरी उम्मत के बेहतरीन लोग विवाहित हैं और वह लोग बुरे हैं जो अविवाहित हैं ”।( 49)
यह भी फ़र्मायाः-
“ तुम में सब से खराब लोग अविवाहित हैं ”।( 50)
मासूम ने यह भी इर्शाद फ़र्मायाः-
“ तुम में सबसे खराब मर्द वह है जो अविवाहित मर जाए ”।( 51)
जहाँ उपरोक्त सभी बातें बतायीं वहीं विवाहित और अविवाहित की तुलना करते हुए इरशाद फ़र्मायाः-
विवाहित की दो रक़त नमाज़ , अविवाहित की सत्तर रक़त से बेहतर है।( 52)
और विवाहित लोगों से सम्बन्धित इमाम-ए-सय्यद-अल-साजिदीन (अ ,) से रिवायत है किः-
“ अगर कोई शख्स खुदा को खुश करने और औलाद के लिए शादी करे तो क़यामत के दिन उसके सर पर ऐसा ताज होगा जिससे वह बादशाह मालूम होगा ”।( 53)
जब कि आधुनिक युग में कुछ नौजवान आर्थिक कठिनाईयों के कारण शीघ्र शादी करना नही चाहते , कुछ बेमिस्ल (ला जवाब) पत्नी या पति की तमन्ना (आरज़ू , कामना) में अपनी उम्र गुज़ार देते हैं , कुछ बढ़ती हुई आबादी को देखते हुए केवल बच्चों के लिए शादी करना उचित नहीं समझते , कुछ शिक्षा पूरी करने का बहाना करके शादी से बचते हैं , कुछ शादी के झमेलों में पड़ने के बजाए ग़लत सेक्सी सम्बन्धों को बनाए रखना उचित समझते है , कुछ सेक्सी आज़ादी को मानते हैं। इत्यादि।
लेकिन इस्लाम धर्म ने उपर्युक्त रखने वाले हर गिरोह का खूबसूरत जवाब मौजूद है। जो कम आमदनी को सामने रखकर केवल इस लिए शादी नही करते कि घर के खर्चें कैसे पूरे होगें। उनके लिए क़ुर्आन में मिलता हैः-
“ और अपनी (कौम की) बिना पति की औरतों और अपने नेक चलन ग़ुलामों और लौंङियों (नौकरानियों) का भी निकाह कर दिया करो। अगर यह लोग ग़रीब होंगें तो तो खुदा अपने रहम (व करम) से मालदार बना देगा ”। ( 54)
यह खुदा वायदा है ------- फिर भी अगर आर्थिक कठिनाईयों और ग़रीबी व परेशानी को सामने रखा जाए तो मानना पड़ेगा कि खुदा कि क़ुदरत और वायदे पर भरोसा नहीं। इसी लिए रसूल-ए-अकरम (स ,) ने इर्शाद फ़र्माया है किः-
“ जो शख्स ग़रीबी और परेशानी के डर से निकाह न करता हो इसमें कोई शक नहीं कि वह खुदा से बदगुमान (अर्थात खुदा की ओर से बुरी धारणा रखने वाला) है। क्योंकि हक्क़े तआला (अर्थात खुदा) फ़र्माता है कि अगर वह फक़ीर होगें तो खुदा अपने फ़जल व करम से उन्हे ग़नी (मालदार) कर देगा ”।( 55)
कम आमदनी वाले लोगों को कभी ठंडे दिल से सोचना चाहिए कि उनकी उम्र हो गयी , उस पूरी उम्र में कितने दिन बीत चुके , उन बीते हुए दिनों में उन्हे कितने दिन खाना , पानी , लिबास या सर छुपाने की जगह नहीं मिली है तो दिवानों (पागलों) के अलावा शायद ही कोई ऐसा मिले जिसे दो चार दिन तक खाना पानी न मिला हो , लिबास शरीर पर न हो और सर छुपाने की जगह न रही हो ----------अतः मानना पड़ेगा कि जो खुदा को इस उम्र तक खाना देता रहा और ज़िन्दगी की सभी ज़रूरतों को पूरा करता रहा है वह भविष्य में भी राज़िक़ रहेगा और ज़िन्दगी की सभी आव्यश्कताओं को पूरा करता रहेगा। बस प्रयत्न करना मनुष्य का कर्तव्य है ( 56) और राज़िक़ (रोटी) पहुँचाना ( 57) तथा आव्यश्कताओं को पूरा करना खुदा की ज़िम्मेदारी।
ग़ौर करना चाहिए कि अगर कोई शादी कर के अपने ऊपर और ज़िम्मेदारियों का बोझ नही लेना चाहता तो इस से बेहतर है कि वह अपने अन्दर सेक्सी इच्छा को ही न पैदा होने दे ताकि उसकी पूर्ति का भी मसला न हो सके ------- लेकिन यह मनुष्य के बस की बात नहीं। क्योंकि सेक्सी इच्छाओं का पैदा होना प्राकृतिक और कुदरती है। अतः जवानों के लिए शादी (जायज़ शारीरिक मिलाप) प्राकृतिक सेक्सी इच्छाओं की बुनियादी आव्यश्कता है। इसके अलावा दुनिया में ज़िन्दगी की और आव्यश्कताऐं दूसरे नम्बर पर आती हैं। यूँ भी दुनिया का कोई मनुष्य ऐसा नही मिल सकता जिसकी सभी दुनिया की आव्यश्कताऐं उसकी आखिरी उम्र तक पूरी रहें----------- अंतः बुनियादी आव्यश्कता (प्राकृतिक सेक्सी इच्छा) मौजूद होने पर हर लड़के और लड़की को शादी के लिए कदम बढ़ाना चाहिए।
फिर भी अगर कोई शादी में होने वाले प्रारम्भिक खर्चों को देखते हुए शादी के लिए कदम नहीं बढ़ाता , वह भी ग़लत है। क्योंकि इस्लाम में उसके हल पेश किये हैं ----- उदाहरणार्थ लड़की के माता-पिता और संरक्षक दहेज , रस्म व रिवाज और दूसरे कामों से खौफ खाते हैं तो उसके लिए इस्लाम ने हल पेश किया है कि लड़की को चाहने (अर्थात शादी करने) वाला लड़का पहले आधा महर दे जिससे दहेज और दूसरी ज़रूरतों को पूरा किया जा सके और निकाह के समय बाक़ी आधा महर भी दे दे-------- और महर की माँग लड़की के माता पिता या संरक्षक उसी तरह करें जिस तरह रसूल-ए-अकरम (स.) ने अपनी बेटी फातिमः-ए-ज़हरा (स ,) के साथ शादी की मांग करने वाले हज़रत अली (अ.) से किया और महर मिल जाने के बाद ही निकाह (अक्द) किया।
इस्लाम के इस उसूल से लड़की वालों को लड़की की शादी में कोई मुश्किल नही हो सकती ---- लेकिन सम्भव है कि लड़की वाले इस्लाम के उपर्युक्त उसूल से फायदः उठाकर अधीक से अधीक महर तय करने (लेनें) की कोशिश करें और लड़का उसे न दे पाने की सूरत में शादी न कर सके। अतः रसूल-ए-इस्लाम (स ,) ने इसका हल भी पेश किया। आप ने इरशाद फर्मायाः-
“ मेरी उम्मत की बेहतरीन और हैं जो खूबसूरत हों और उनका महर कम हो ”। ( 58)
इसी तरह इमाम-ए-जाफर-ए-सादिक़ (अ ,) ने इर्शाद फर्मायाः-
“ वह औरत बा बरकत है जो कम खर्च हो ”।( 59)
इस तरह इस्लाम धर्म ने लड़के और लड़की दोनों की आर्थिक कठिनाईयों को दूर करने का आसान और खूबसूरत तरीक़ा पेश किया है। जिसको अपना कर मुसलमान कठिनाईयों में पड़े बिना बहुत आसानी से शादी कर सकता है।
माली परेशानियों से अलग हट कर बेमिस्ल पत्नी या पति की तमन्ना (कामना) करने वाले लोगों को पहले अपने को देखना चाहिए कि क्या वह भी बेमिस्ल है या नही ? तो निष्कर्ष निकलेगा कि नहीं। उनमें भी बहुत सी कमियाँ हैं। अतः हर एक को सोचना चाहिए की अगर किसी में कुछ कमियां हैं तो उसको अपनाने में पहल करे ताकि उम्र न गुज़रे और जवानी में मिले हुए खुबसूरत दिनों में अल्लाह की नेअमत से स्वाद और आन्नद का मौका मिल सके। इससे एक मुख्य लाभ यह होगा कि शादी हो जाने के बाद लड़के और लड़की से खराब , बुरे और हराम और शर्म वाले वाकेआत नहीं होंगे।
आम तौर से आधुनिक युम में बेमिस्ल पति या पत्नी की परिभाषा में ईमानदारी , पाक़ीज़गी , पक़वा व पर्हेज़गारी की खूबसूरती , मालदारी और बड़ा खानदान माना जाना लगा है कि जब कि पैग़म्बर-ए-इस्लाम (स ,) कुछ और ही शिक्षा देते हुए दिखाई देते हैः-
“ तुम जब भी निकाह का इरादा करो तीन निशानियों को अवश्य देखो , उसका इख्लाक़ , उसका दीन और अमानत (यह निशानियाँ लड़की और लड़के दोनो के लिए हैं ” )।
आगे फर्माते हैः-
“ अगर तुम ने निकाह के लिए उस के इख्लाक़ , दीन और उसके अमानत दार होने को नही देखा और शादी कर दी तो तुम ने अपनी औलाद की नस्ल काट दी और बड़े लड़ाई झगड़े के अतिरिक्त कुछ नही मिलेगा ”।( 60)
इसी तरह हज़रत अली (अ) ने जनाब-ए-फातिमा ज़हरा (स) की वफात के बाद जब दूसरी शादी का इरादः किया तो अपने भाई जनाब-ए-अकील से कहाः-
“ अक़ील ऐसा बहादुर खानदान और मुत्तक़ी स्त्री तलाश करो जिस के पेट से ऐसा बहादुर बच्चा पैदा हो कि जो कर्बला में हुसैन का साथ दे सके ”।( 61)
और जब एक शख्स ने इमाम-ए-हसन (अ) की सेवा में आकर पूछा किः-
“ मौला बेटी जवान हो गई है। उसकी शादी करना चाहता हूँ। किस से निकाह करूँ ?”
इमाम ने जवाब दियाः-
“ न हुस्न देखना और न दौलत ”। ( 62)
इमाम-ए-हसन (अ.) की ही इर्शाद हैः-
“ किसी को बेटी दो तो यह देखो कि लड़का नेक , पर्हेज़गार और मुत्तक़ी है या नही। क्योंकि अगर तेरी बेटी उसे पसन्द आई तो उससे मुहब्बत करेगा और तेरी बेटी की इज़्ज़त करेगा। लेकिन अगर तेरी बेटी अगर उसकी कसौटी पर पूरी नही उतरी तो वह कभी ज़ुल्म (परेशान) नही करेगा। क्योंकि मुत्तक़ी कभी ज़ुल्म नही करता ”। ( 63)
और इमाम-ए-जाफ़र-ए-सादिक़ (अ) ने इरशाद फर्मायाः-
“ अगर खूबसूरती और हुस्न के लिए शादी करोगे तो न हुस्न मिलेगा और न दौलत बल्कि बरबादी के पात्र होगे ”।( 64)
याः-
“ जो शख्स माल व हुस्न व जमाल के लिए निकाह करगा वह दोनों से महरूम रहेगा और जो शख्स पर्हेज़गारी और दीन के लिए निकाह करेगा , हक़-ए-तआला (खुदा) उसको माल भी देगा और जमाल भी ”। ( 65)
उपर्युक्त प्रवचनों की रौशनी में यह बात स्पष्ट हो जाती है कि पत्नी या पति की तलाश के लिए तक़वा व पर्हेज़गारी , इख्लाक़ व मुरव्वत , दीनदारी , ईमानदारी और बहादुरी आदि को देखना चाहिए न कि हुस्न व जमाल , माल या दौलत या आधुनिक आज़ादी आदि। कुर्आन में साफ-साफ ऐलान मौजूद हैः-
गन्दी औरतें गन्दें मर्दों के लिए (उपयुक्त) हैं और गन्दे मर्द गन्दी औरतों के लिए और पाक औरतें पाक मर्दों के लिए (उपयुक्त) हैं और पाक मर्द पाक औरतों के लिए।( 66)
और यही आपस में एक दूसरे के साथ शादी करने के लिए उचित हैं। जहाँ तक मोमिन मर्दों और मोमिनः औरतों की पहचान का सम्बन्ध है उनके लिए कुर्आन में मिलता हैः-
“ ए-रसूल। ईमानदारों से कह दो कि अपनी निगाहों को नीचे रखें और अपनी शर्मगाहों की सुरक्षा करें। यही उनके वास्ते ज़्यादा सफाई की बात है (ए रसूल) ईमानदार औरतों से भी कह दो कि वह भी अपनी निगाहें नीचे रखें और अपनी शर्मगाहों की सुरक्षा करें और अपने बनाव सिंगार (की जगहों) को (किसी पर) प्रकट न होने दें। मगर जो अपने आप प्रकट हो जाता है। (छुप न सकता हो उसका गुनाह नहीं) और अपनी ओढ़नियों (चादरों , दुपटटों) को अपने सीनों पर डाले रहें और अपने पतियों या अपने बाप दादाओं या अपने पति के बाप दादाओं या अपने बेटों या अपने पति के बेटों या अपने भाईयों या अपने भतीजों या अपने भानजों या अपनी तरह की औरतों या अपनी नौकरानियों या (घर के) वह नौकर जो मर्द की सूरत तो हैं मगर (बहुत बुढ़े होने कि वजह से) औरतों से कुछ मतलब नही रखते या वह कम उम्र लड़के जो औरतों के पर्दे की बात नही जानते। उन के अतिरिक्त (किसी पर) अपना बनाव सिंगार प्रकट न होने दिया करें और चलने में अपने पैर ज़मीन पर इस तरह से रखें कि लोगों को उनके छुपे हुए बनाव व सिंगार की खबर हो जाए ”। ( 67)
जो लोग बढ़ती हुई आबादी को देखते हुए केवल बच्चों के लिए शादी करना उचित नहीं समझते , वह कभी यह क्यों ग़ौर क्यों नही करते कि क्या मनुष्य की तरह जानवर और पेड़ पौधे भी यह सोचते हैं कि औलाद न हो , फल न आए और नस्ल बाक़ी न रहे ------- नहीं ऐसा नहीं होता। जानवरों और पेड़ पौधों में नर और मादा का इश्क व लगाव और मिलाप केवल औलाद और फल के लिए होता है ताकि दुनिया में उसकी नस्ल बाक़ी रहे। तो मनुष्य जो अशरफ-उल-मख़्लूक़ात (सारे प्राणी वर्ग में सब से श्रेष्ठ) है वह ऐसा क्यों सोचता है कि औलाद न हो और उसकी नस्ल बाक़ी न रहे------ वास्तव में औलाद का होना या न होना , मनुष्य के बस की बात नही है --------- और अगर उसी के बस की बात होती तो दुनिया में बहुत से इन्सानी जोड़े केवल एक औलाद की कामना में दुआ , दवा , मन्नत , मुराद न करते फिरते ------ इसके विपरीत वह जोड़े जो ग़रीबी के खौफ ( 68) से नस्ल से खत्म करने के लिए फैमिली प्लानिंग के उसूलों पर अमल करते हैं वह एक के बाद एक बच्चे को खुशी से या मजबूरी में अपनी गोद में न पालते रहते।
अगर इस्लाम की दृष्टि में नस्ल का बाक़ी रखना तात्पर्य न होता तो शायद इस्लामी शरीअत हस्त मैथुन और गुद मैथुन के द्वारा वीर्य की पूरी तरह बरबादी और बलत्कारी के द्वारा काफी हद तक बरबादी पर सख्त पाबंदी लागू नही करती -------- इसी कीमती वीर्य की सुरक्षा (बरबादी से बचाने) के लिए ही शरीअत ने यहाँ तक आदेश दिया है कि अपनी आज़ाद निकाही पत्नी से संभोग करते समय अपने वीर्य को पत्नी की योनि के बाहर बिना इजाज़त के नही ड़ाल सकते। ( 69) (क्योंकि इससे वीर्य की बरबादी है) ------ अतः मानना पड़ेगा कि शादी केवल औलाद के लिए होना चाहिए और औलाद खुदा कि एक महान नेअमत का नाम है। इसी लिए रसूल-ए-इस्लाम (स ,) ने फर्मायाः-
“ मोमिन को कौन सी चीज़ इस बात से मना करती है कि वह निकाह करे। शायद खुदा उसको ऐसा बेटा दे जो ज़मीन को कल्मः-ए-ला इललल्लाह से शोभा दे ”। ( 70)
अगर शिक्षा का बहाना ले कर शादी न की जाए तो यह उस समय तक ठीक और उचित रहेगा जब तक कि हराम का खौफ न हो। अगर हराम का खौफ़ या डर हो तो उस समय पर शादी वाजिब (अनिवार्य) हो जाएगी। वैसे भी क़ुर्आन के अनुसार शादी के द्वारा आराम व सकून मिलता है और पढ़ाई के लिए आराम व सकून आव्यश्क है। इसलिए मानना पड़ेगा कि पढ़ने की नीयत रखने वाले लोग शादी के बाद और दिल लगाकर पढ़ सकते हैं।
जो लोग शादी के झमेलों में पड़ने या स्थायी तौर से शादी करने के बजाए ग़लत सेक्सी सम्बन्धों को बनाए रखना उचित समझते हैं। अर्थात सही चीज़ को ग़लत तरीक़े से हासिल करने की बात को सही मानते हैं वह शरीअत-ए-इस्लाम के अनुसार हराम कारी और बलात्कारी करते हैं। जिनके लिए अज़ाब (पाप) है और यही सेक्सी आज़ादी को मानने वाले लोगों के लिए भी है।
शायद ऐसे ही लोगों के लिए इस्लाम ने सामायिक शादी (मुतअः) का आदेश दिया है। जिसके द्वारा जाएज़ चीज़ को जाएज़ तरीक़े से हासिल किया जा सकता है। क्योंकि शादी (हमेशा के लिए हो या सामायिक) का बुनियादी उद्देशय सेक्सी इच्छा की पूर्ति ही है और औलाद होना सेक्सी पूर्ति का नतीजा है। जो दूसरे नम्बर पर आती है। यही कारण है कि सेक्सी इच्छा की पूर्ति न होने पर शादी का उद्देशय ही खत्म हो जाता है लेकिन औलाद (सन्तान) के बिना ऐसा नही होता। और मनुष्य कभी-कभी सेक्सी इच्छा की पूर्ति की आव्श्कता महसूस करता है लेकिन सन्तान की इच्छा नही करता। इसी लिए इस्लाम धर्म ने पत्नी न होने या पत्नी से पूरी तरह इच्छा पूर्ति न होने पर सेक्सी इच्छा की पूर्ति के लिए मुतअः (सामायिक शादी को जाएज़ करार दिया है।
“ मुतआः- इस्लाम ने ज़ाएज़ चीज़ को जाएज़ तरीक़े से हासिल करने अर्थात सेक्सी इच्छा की पूर्ति के लिए निकाह की शर्त लगाई है और निकाह पढ़ लेने के बाद औरत , मर्द पर हलाल हो जाती है जिसके बाद दोनों (स्त्री और पुरूष) आपस में किसी भी तरह से स्वाद और आन्नद उठा सकते हैं। इस निकाह के दो प्रकार हैं। निकाह-ए-दायमी (हमेशा के लिए निकाह) और निकाह-ए-मुवक्कती (सामायिक निकाह अर्थात मुतअः) दोनों प्राकृतिक आव्यश्कता और सेक्सी इच्छा की पूर्ति के लिए ही होते हैं। दोनों के अभिप्राय और उद्देशय एक है केवल फर्क इतना है कि हमेशा के लिए निकाह में समय सीमा तय नही होती और न ही किसी तरह की शर्त लगाई जाती है जब कि सामायिक निकाह में समय सीमा तय होती है और शर्त भी लगाई जा सकती है। उदाहरण के लिए जब कोई स्त्री मुतअः करने के समय यह शर्त कर दे कि उसका पति उसके साथ संभोग न करे तो मुतअः भी सही है और शर्त भी। और उसका पति उस से हर तरह का स्वाद और आन्नद हासिल कर सकता है। लेकिन अगर पत्नी स्वंय बाद में राज़ी हो जाए तो उसका पति उस से संभोग कर सकता है ”। ( 71)
मुतअः (अर्थात सामायिक शादी) ना जाएज़ सेक्सी सम्बन्ध और बलात्कारी से विभिन्न चीज़ है। जब कि कुछ मुतअः के विरोधी इसको बलात्कार का नाम देते हैं। लेकिन मुतअः और बलात्कारी में बड़ा अन्तर है। मुतअः शरीअत (धर्म) के बताए हुवे तरीक़े के अनुसार खास सीग़ों (निकाह के समय पढ़े जाने वाले मुख्य धार्मिक वाक्य) के पढ़े जाने का नाम है। जिसमें ईजाब (अनिवार्य करना) और क़ुबूल अपनाना होता है और बलात्कारी अधार्मिक काम है जिस में सीगे नही पढ़े जाते अर्थात ईजाब व कुबूल नही होता।
यह वास्तविक्ता है कि मनुष्य को कभी-कभी ऐसे हालात से ग़ुज़रना पड़ता है कि जिसमें निकाह सम्भव नही होता और वह ज़िना , (बलात्कार) या मुतअः (सामायिक शादी) मे से किसी एक को अपनाने पर मजबूर हो जाता है। ऐसे हालात में ज़िना के मुकाबले में मुतअः कर लेना बेहतर है। अर्थात इस्लाम धर्म में आव्यश्कता के समय मुत्अः वह बड़ी नेअमत है जो जवानों की पाकदामनी और पर्हेज़गारी को बाक़ी रखने और हरामकारी से बचाए रखने में मददगार साबित होता है। मुतअः से सम्बन्धित क़ुर्आन-ए-करीम में मिलता हैः-
“ जिन औरतों से तुम ने मुतअः किया हो तो उन्हें जो महर तय किया हो दे दो और महर के तय होने के बाद आपस में (कमी व ज़्यादती पर) राज़ी हो जाओ तो इस में तुम पर कुछ गुनाह नही है। बेशक खुदा (हर चीज़ का) जानकार मसलहतों का पहचाननें वाला है ”।( 72)
उपरोक्त आयत मुतअः के जाएज़ व हलाल होने पर दलील है जो मनुष्य को गुमराही और बदकारी से बचा सकती है। मुतअः से सम्बन्धित मिलता है किः-
“ जो शख्स मुतअः करे आयु में एक बार वह स्वर्ग के लोगों मे से है और उस पर पाप नही किया जाएगा जो स्त्री और पुरूष मुतअः करें। मगर स्त्री पाक दामन हो , मोमिनः हो ”। ( 73)
लेकिन कुँवारी लड़की से मुतअः करना मकरूह है।
मुतअः के जाएज़ होने का सुबूत इस से भी मिलता है कि रसूल (स.) के ज़माने के बाद रसूल (स ,) के असहाब (हज़रत अबू बकर और हज़रत उमर) हुकूमत के दौर में भी मुतअः होता रहा। बाद मे हज़रत उमर ने लोगों को मुतअः से मना किया. जिसकी तरफ़ हज़रत अली (अ.) ने इस तरह इशारः किया हैः-
“ अगर हज़रत उमर लोगों को मुतअः से मना करते तो कयामत तक अलावा शक़ी (निर्दय) और बदबख़्त (अभागा) के कोई दूसरा ज़िना नही करता ”। ( 74)
अर्थात हज़रत अली (अ.) के नज़दीक मुतअः ज़िना और हराम कारी से बचने वाली चीज़ है अतः मुतअः से रोकना ठीक नही। क्योंकि हज़रत अली (अ.) मुतअः से रोकने को ठीक नही समझते हैं। जबकि इस युग में मुतअः से काफी दूर भागने की कोशीश की जा रही है। यह भी देखने में आता है कि कुछ लोग मुतअः को जाएज़ जानते हुए भी मुतअः नही करते , लेकिन कभी-कभी ज़िना कारी पर तैय्यार हो जाते हैं। शायद इसकी वजह यह है कि ज़िना कारी छिप कर होती है। और अधीकतर लोगों को इसका ज्ञान भी नही हो पाता। लेकिन मुतअः ऐलानिया होता है इस लिए समाज ऐसे लोगों से हमेशा के लिए निकाह करने पर तैय्यार नहीं होता , जिसने मुतअः किया है। क्योंकि समाज की दृष्टि में मुतअः करने वाले लोगों के दामने किरदार पर सेक्सी इच्छाओं का धब्बा लग जाता है। जो बिल्कुल ग़लत है। क्योंकि मुतअः कोई अधार्मिक कार्य नही बल्कि प्राकृतिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए धार्मिक और जाएज़ कार्य है। इस से मुत्अः करने वाले लोगों के ईमान व अमल , तक़वा व पर्हेज़गारी और इफ़्फ़त व पाकीज़गी का सुबूत भी मिलता है। इसी लिए इमाम-ए-जाफ़र-ए-सादिक़ (अ.) ने इर्शाद फर्मायाः-
“ एक बात ऐसी है कि जिसे बयान करने में कभी तकय्यः नही करूँगा वह मुतअः कि बात है ”। ( 75)
मुतअः के बाद यह सम्भव है कि स्त्री व पुरूष दोनों आपस में एक दूसरे के मिज़ाज को समझ सकें और तबीयतों में एकरूपता होने पर सामायिक निकाह को हमेशा के निकाह में बदल लें और आने वाली ज़िन्दगी खुशगवार हो सके और तबीयतों में विभिन्ता होने पर एक तय किये हुवे समय पर अलग हो जायें।
आने वाली ज़िन्दगी को खुशगवार बनाने के लिए ही अब योरप में बिना निकाह के (अर्थात समाज की तरफ से स्त्री और पुरूष को सेक्सी मिलाप की इजाज़त मिलने के बाद) सेक्सी सम्बन्ध बनाए जाते हैं। इन सेक्सी सम्बन्धों का तात्पर्य यह होता है कि निकाह से पूर्व ही आने वाली शादी की ज़िन्दगी के खुशगवार होने का यक़ीन कर लिया जाए और इस तरह की शादीयों को आरज़ी (अस्थायी) आज़माईशी (परख की) या वक्ती शादी का नाम दिया जाता है।( 76) और यह समझा जाता है कि इस तरह की शादी के द्वारा जवानी के ज़माने में सेक्सी परेशानियों और शारीरिक बीमारियों से बचा जा सकता है और एक दूसरे के मिज़ाज को समझ कर हमेशा के लिए शादी भी की जा सकती है। इसी लिए ब्रितेन्ड रसल जवानी के ज़माने की सेक्सी परेशानियों की तहक़ीक़ (पर शोध) करने के बाद लिखता है किः-
“ इस मुश्किल का सही हल यह है कि शहरी क़ानूनों में आयु के इस संवेदनशील आयली (घरेलू) ज़िन्दगी की तरह खर्चों का बार न हो ताकि नौजवानों को विभिन्न ग़ैर क़ानूनी और नाजाएज़ कामों से रोका जा सके और तरह तरह की रूहानी (आत्मिक) और जिसमानी (शारीरिक) बीमारियों से बचाया जा सके ”।( 77)
इससे यह सुबूत मिलता है कि इस तरक़्क़ी के युग में ग़ैर कानूनी और नाजाएज़ कामों से रोकने और प्राकृतिक इच्छाओं को पूरा करने के लिए सामायिक शादी को जगह दी जा रही है। जो काफी हद तक इस्लामी (अर्थात प्रकृति के अनुसार धर्म के) क़ानून मुतअः से मिलती जुलती है। इसी लिए तो हज़रत अली (अ.) ने कहाः-
“ अगर हज़रत उमर लोगों को मुतअः से मना न करते तो क़यामत तक सिवाये शक़ी और बदबख़्त के कोई दूसरा ज़िना न करता। ( 78)
लेकिन दीने फ़ितरत (अर्थात प्रकृति के अनुसार धर्म-इस्लाम) के क़ानून मुतअः के सिलसिले में यह बात हमेशा याद रखना चाहिए कि मुतअः आव्यश्कता होने पर ही (जैसे जब हराम में पड़ जाने का डर हो , सफर में हो , दवा के लिए हो , (79) किसी की मदद करना मक़सद हो आदि) होना चाहिए न कि बिना ज़रूरत। चुनाँचे हक़ बात कहने वाले इमामों ने अकसर यह शीक्षा दी है कि आवयश्कता न होने पर मुतअः न किया जाए। उदाहरण के लिए एक शख़्स ने इमाम-ए-मूसी-ए-काज़िम (अ.) से मुतअः से सम्बन्धित पूछा तो आप ने इर्शाद फर्मायाः-
“ पत्नी की मौजूदगी में तुम्हे मुतअः की क्या ज़रूरत ” ?(80)
या
“ तुम्हे मुतअः करने की ज़रूरत है। खुदा ने तुम्हें तो इस ज़रुरत से दूर रखा है ”।( 81)
और
“ मुतअः उसके लिए है जिसे अल्लाह ने पत्नी के होते हुए , उससे बेनियाज़ (बेपर्वा) न किया हो। जिसकी पत्नी हो वह केवल उस समय मुतअः कर सकता है जब उसका अधिकार (इख्तियार) अपनी पत्नी के ऊपर न हो ”। ( 82)
अतः यह बात साबित हो जाती है कि मुतअः के शरई जवाज़ (अर्थात धर्म के अर्थाप जाएज़ होने) से नाजाएज़ फायदः उठाना यक़ीनी तौर पर उसकी हिक़मत (युक्ति) और मसलहत (परामर्श या हित) को मिट्टी में मिला देना है और ऐसा करना अक़्ली तौर पर जुर्म से कम नही है। मगर यह कि हराम का ख़ौफ़ होने पर सामायिक निकाह (अर्थात मुतअः) या दायमी निकाह (अर्थात पूरी ज़िन्दगी के लिए निकाह) वाजिब (ज़रूरी) है।
तीसरा अध्याय
स्त्री और पुरूष
अ- स्त्रियों के प्रकार
ब- पदमनी
स- चितरनी
द- संखनी
य- हस्तनी
र- पुरूषों के प्रकार
ल- शाश
व- म्रग
श- बर्श
स- आशू
पिछली बहसों से यह बात पूरी तरह साबित हो जाती है कि इस्लाम धर्म (अर्थात प्रकृति के अनुसार धर्म) ने हराम कारी और बलात्कारी पर सख़्त पाबन्दी लगाने के साथ-साथ हमेशा के लिए निकाह या सामायिक निकाह के द्वारा स्त्री और पुरूष को एक दूसरे के जाएज़ स्थानों से आन्नद और मज़ा उठाने की इजाज़त दी है। अतः आराम व सुकून हासिल करने और प्राकृतिक सेक्सी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हर सूरत में स्त्री और पुरूष की और पुरूष को स्त्री की ज़रूरत है। यही वजह है कि परवर्दिगार-ए-आलम ने बाबा आदम (अ.) को पैदा करने के साथ-साथ उनकी बची हुई मिट्टी से ही उनकी पत्नी अम्मा हव्वा (अ ,) को पैदा किया ताकि दोनों एक साथ रहें सहें और फिर उन ही दो पति-पत्नी से बहुत से स्त्री और पुरूष दुनिया में फैला दिये। क़ुर्आन में हैः-
“ ए लोगो , अपने उस पालने वाले से डरो जिसने तुम सब को (केवल) एक शख़्स से पैदा किया और (वह इस तरह कि पहले) उन (की बाक़ी मिट्टी) से उनकी बीवी (हव्वा) को पैदा किया और (केवल) उन्ही दो (मियाँ बीवी) से बहुत से मर्द और औरतें दनिया में फैला दिये ”।( 83)
या
वह खुदा ही तो है जिसने तुम को एक शख़्स (आदम) से पैदा किया और उस (की बची हुवी मिट्टी) से उसका जोड़ा भी बना डाला ताकि उसके साथ रहे सहे। फिर जब इन्सान अपनी बीवी से संभोग करता है तो बीवी एक हल्के से हमल (गर्भ) से हामिलः (गर्भवती) हो जाती है , फिर उसे लिए-लिए चलती फिरती है , फिर जब वह अधिक दिन होने से भारी हो जाती है तो दोनो (मियाँ बीवी) अपने परवरदिगार से दुआ करने लगे कि अगर तू हमें नेक (सन्तान) अता फर्माये तो हम तेरे शुक्र ग़ुज़ार होंगे।( 84)
अर्थात पुरूष को स्त्री की आव्यश्कता है जिस से वह संभोग करे ताकि स्त्री गर्भवती हो , सन्तान पैदा हो और आदम की नस्ल बाक़ी रहे।
इसी लिए परवर्दिगार-ए-आलम ने पुरूष (नर) और स्त्री (मादा) दो क़िस्मों ( 85) को पैदा किया है ताकि दोनों मिलकर सेक्सी इच्छा की पूर्ति के साथ साथ नस्ल को बाक़ी रखने की ज़िम्मेदारी निभाते रहें। क्योंकि दोनों की मनी (वीर्य) के मिलने से ही गर्भ करार पा सकता है , अकेले नही। और यही वीर्य रीढ़ और सीने की हडडियों में प्राकृतिक तौर पर बनता रहता है। जिसके लिए क़ुर्आन मे मिलता है किः-
तो इन्सान को देखना चाहिए कि वह किस चीज़ से पैदा हुआ है वह उछलते हुवे पानी (वीर्य) से पैदा हुआ है जो पीठ (अर्थात रीढ़ की हडडी) और सीने के (ऊपर वाले) हड्डियों के बीच से निकलता है। ( 86)
यह रीढ़ और सीने की हड्डियों से निकलने वाला पानी क्रामनुसार पुरूष और स्त्री का वीर्य होता है। ( 87) जो गर्भशय (रहिम) में एकत्र ( 88) हो जाता है , बाद में वह जमा हुआ खून हो जाता है , फिर वह जमा हुवा खून गोश्त का लोथड़ा बनता है , गोश्त के लोथड़े में हड्डियाँ पैदा होती है , उन हड्डियों में गोश्त चढ़ता है। अन्त में वह स्त्री या पुरूष की क़िस्म में पैदा हो जाता है।
क़ुर्आन-ए-करीम में मिलता हैः-
क्या वह (आरम्भ में) वीर्य का एक क़तरा न था जो गर्भशय में डाली जाती है फिर लोथड़ा हुआ , फिर खुदा ने उसे बनाया , फिर उसे ठीक किया , फिर उसकी दो क़िस्में बनायी (एक) मर्द और (एक) औरत। ( 89)
कुर्आन में इन्सान की पैदाइश से सम्बन्धित नुत्फे (वीर्य) से लेकर पैदाइश तक की सभी बातें इस तरह मिलती हैं।
और हमने आदमी को गीली मिट्टी के जौहर से पैदा किया फिर हमने उसको एक सुरक्षित जगह (औरत के गर्भाशय) में नुत्फा बना कर रखा फिर हमने नुत्फे को जमा हुआ खून बनाया , फिर हम ही ने जमे हुए खून को गोश्त का लोथड़ा बनाया फिर हम ही ने लोथड़े की हड्डियाँ बनायी , फिर हम ही ने हड्डियों पर गोश्त चढ़ाया , फिर हम ही ने उसको (रूह डालकर) एक दूसरी सूरत में पैदा किया तो (सुबहानल्लाह) खुदा बा बरक़त है जो सब बनाने वालों से बेहतर है। ( 90)
लेकिन इस पूरी कार्यवाही के लिए स्त्री और पुरूष का शारीरिक मिलाप और नुत्फ़े का ठहरना (जो प्राकृतिक तौर पर होता है) ज़रूरी है। अतः नस्ल को बढ़ाने और प्राकृतिक सेक्सी इच्छाओं की पूर्ति के लिए स्त्री और पुरूष दोनों एक दूसरे की ज़रूरत है जो आपस में धर्म का विरोध करके अधार्मिक , नापाक और बुरे रिश्ते को या धार्मिक उसूल व क़ानून की पाबन्दी कर के शरई (धार्मिक) , पाक व पाकीज़ा रिश्ते को क़ायम कर सकते हैं।
इस्लामी शरीअत ने शरई (धार्मिक) और पाक व पाकीज़ा रिश्ता क़ायम करने के लिए ही निकाह (हमेशा के लिए या कुछ समय के लिए) का आदेश दिया है और यह ज़िम्मेदारी पुरूष पर डाली है कि वह औरत को निकाह करने के लिए पसन्द करे।
पैग़म्बर-ए-इस्लाम (स.) ने इर्शाद फर्मायाः-
जो शख़्स मेरी सुन्नत को दोस्त रखता है उसे चाहिए कि निकाह करे और जो मेरी सुन्नत का पैरो है यह समझ ले कि ख्वासत्गारी-ए-ज़न (अर्थात औरत को चाहना) मेरी सुन्नत में दाखिल है।( 91)
और इमाम-ए-जाफर-ए-सादिक़ (अ ,) से मनकूल है किः-
औरतों को ज़्यादा अज़ीज़ रखना पैग़म्बरों के अख़्लाक़ में दाखिल था। ( 92)
या इसी तरह इमाम अली-ए- रिज़ा (अ ,) से मनक़ूल है किः-
तीन चीज़ पैग़म्बरों की सुन्नत में दाखिल है। अव्वल खुशबूँ सूघँना , दूसरे जो बाल बदन पर ज़रूरत से ज़्यादा है उनको दूर करना , तीसरे औरतों से ज़्यादा मानूस होना और उनसे ज़्यादा मुक़ारबत करता (अर्थात समीप होना) संभोग करना। ( 93)
औरतों से संभोग से सम्बन्धित इमाम-ए-जाफर-ए-सादिक़ (अ ,) से मनक़ूल हैः-
उसमान बिन मज़ऊन की पत्नी हज़रत रसूल अल्लाह (स.) की ख़िदमत (के पास) आयी और यह अर्ज़ की , या रसूल अल्लाह। उस्मान दिन-दिन भर रोज़े रखते हैं , रात भर नमाज़ पढ़ते हैं और मेरे पास नही आते। हज़रत ग़ज़बनाक़ (ग़ुस्सा) हो कर उस्मान के पास तशरीफ लाए और इर्शाद फ़र्मायाः-
ए उस्मान खुदा ने हमें रोहबानियत (अर्थात काम वासना से बचने के लिए सब से अलग-अलग रहना , सारी उम्र ब्रहमचारी रहना) क लिए नही भेजा है। मै रोज़ा भी रखता हूँ , नमाज़ भी पढ़ता हूँ और अपनी औरतों से मुबाशिरत भी करता हूँ। जो शख़्स मेरे दीन को चाहता हो (पसन्द करता हो) उसे चाहिए कि मेरी सुन्नत पर अमल भी करे और जहाँ मेरी और सुन्नत हैं यह भी है कि औरतों से मुबाशिरत और निकाह किया करें।( 94)
और औरतों से मुबाशिरत (संभोग) के सवाब से सम्बन्धित मिलता हैः-
एक औरत ने हज़रत रसूल-ए-खुदा (स ,) की ख़िदमत में हाज़िर हो कर शिकायत की कि मेरा पति मेरे पास नही आता। हज़रत ने फर्माया कि तू अपने आप को ख़ुश्बू से मोअत्तर किया कर (अर्थात अपने ख़ुश्बू लगाया कर) ताकि वह तेरे पास आए। उस ने अर्ज़ की (कहा) मैने हर ख़ुश्बू से खुद को मोअत्तर कर के देख लिया है वह बहर सूरत (हर हाल में) दूर ही रहा। आँन हज़रत (स ,) ने फर्माया कि अगर उसे तुझ से मुकारिबत करने का सवाब मालूम होता तो वह हरगिज़ दूर नही रहता। फिर इर्शाद फर्माया कि अगर वह तेरी जानिब मुतवज्जेह होगा (अर्थात तेरी तरफ लगाव पैदा करेगा) तो फ़रिशते उसे अहाता कर (घेर) लेगें और उसे इतना सवाब मिलेगा गोया तलवार ख़ैंच कर खुदा की राह में जिहाद किया है और जिस वक्त तुझ से जिमाअ (संभोग) करेगा उस के गुनाह इस तरह झड़ जायेंगे जैसे मौसम-ए-खिज़ां (पतझड़) में पत्ते झड़ जाते हैं और जिस वक्त गुस्ल (स्नान) करेगा तो कोई गुनाह उसके ज़िम्मे (ऊपर) बाक़ी न रहेगा। ( 95)
अतः हर पुरूष के खुश व खुरम (प्रसन्न) रहने , आराम व सुकून से ज़िन्दगी बिताने , हराम कारियों से बचने और सवाब हासिल करने के लिए स्त्री का होना अनिवार्य है जिस के बिना पुरूष अधूरा रहता है। उसकी ज़िन्दगी सूनी और वीरान रहती है। उसको घर जंगल और कैद खाना महसूस होता है। उसकी रूह (आत्मा) मर चुकि होती है और वह चलती फिरती लाश की तरह हो जाता है। इसी लिए जदीद (आधुनिक) फ़ारसी शायरः परवीन ऐतिसामी ने कहाः
दर आन सराय कि ज़न नीस्त उन्स व शफ़कत नीस्त
दर आन वुजूद कि दिल मुर्द , मुर्दः अस्त रवान ( 96)
अर्थात जिस घर में औरत नही है वहाँ उन्स व शफ़कत (सहानुभूति और कृपा दृष्टि) नही है (क्योंकि) जिसका दिल मर जाता है उसकी रूह (आत्मा) भी मर जाती है (और औरत घर की जान होती है जिस के बिना घर-घर नही होता) मक़ान रहता है। एक ऊर्दू शायर ने क्या खूब कहा हैः
मेरे खुदा मुझे इतना तो मोअतबर कर दे
मै जिस मकान में रहता हूँ उसको घर कर दे
गोया मर्द का औरत की इच्छा करना मुर्दः दिली की निशानी है ------- लेकिन वास्तविकता यह है कि जवानी में मर्द प्राकृतिक तौर पर औरत की इच्छा करता है। इसलिए ज़रूरी है कि मर्दों को औरतों की किस्मों (के प्रकार) से सम्बन्धित मालूमात हो ताकि उन्हे औरत के चुनने (इंतिख़ाब) में आसानी हो सके।
स्त्रियों के प्रकार
पंडित कोका ने सेक्सी हिसाब से औरतों के चार प्रकार बताये हैं।
1. पदमनी
2. चितरनी
3. संखनी
4. हस्तनी
इसकी पहचान के बारे में है किः-
1. पदमनीः
यह सब से अच्छी औरत है। इसके बाद चितरनी , संखनी और हस्तनी है। इसकी आँख कंवल की तरह , बदन छुरैरा , आवाज़ मीठी और लच्छेदार , बाल लम्बे , आँखें सुडौल और खूबसूरत , इस औरत के बदन से नीलूफर जैसी खूशबू आती है। इसकी आँखों की चमक की एक झलक भी बर्दाशत नही हो सकती। इसका चेहरा एक खिला हुआ फूल मालूम होता है। यह औरत अच्छे वस्त्र पहनती और साफ सुथरी रहती है।
पदमनी नेकी का पुतला , दूसरों से नरमी के साथ पेश आने वाली , हर किसी पर दया करने वाली , अपने पति की ख़िदमत करने वाली और वफादार पत्नी होती है।
जिस घर में वह रहती है , वहाँ अम्न , सलामती , और खुशी का दौर दौरा रहता है। खुशहाली , नेकी और दौलतमंदी के निशान मिलते है , दुख , ग़म और बीमारी उस घर से कोसों दूर रहती है और वह घर देवताओं का घर मालूम होता है।
यह लम्बे कद की होती है , सीना खूबसूरत होता है , अख़लाक और मुरव्वत की जीती जागती तस्वीर है। पाकीज़ा और साफ सुथरे ख्यालात वाली और सेक्सी इच्छाओं से दूर रहती हैं। ऍसी औरत प्रेम बहुत कम करती हैं और अगर प्रेम करें तो यह रोग ज़िन्दगी भर उसके लिए अज़ाब (पाप) बन जाता है और वह मर मिटती है।
2.चितरनी
चितरनी खूबसूरत , औसत कद वाली , खूबसूरती को पसन्द करने वाली और दान दक्षिणा और इबादत इसको पसन्द। अपने पति की वफादार , अच्छी बात करने वाली और सदैव अच्छे शब्द ही उसके मुहँ से निकलते हैं। यह पदमनी के बाद सब से ऊँची और श्रेष्ठ है। शरीर न बहुत दुबला न बहुत मोटा , बाल लम्बे , सीना चौड़ा , जलन करने वाली , पेट बड़ा , चंचल चित्त , (अर्थात कभी कुछ सोचे कभी कुछ) मज़ाक करने वाली , चंचल तबीयत , गाने बजाने को चाहने वाली , रंगीन वस्त्रों को पसन्द करने वाली , सेक्स में संतुलन को बनाये रखने वाली होती हैं। कुछ प्रेम को पसन्द करती हैं। संभोग के लिए पति से राज़ी हो जाती हैं खुद भी स्वाद उठाती है और दूसरो को स्वाद और आन्नद उठाने का मौक़ा देती है। चटपटी और मज़ेदार चीज़ खाना पसन्द करती हैं और खुदा का खौफ दिल में रखती है।
3.संखनी
यह तीसरे दर्जे की औरत है , लम्बे कद की लाग़र (कमज़ोर) कलाई और पिंड़लियाँ दुबली और पतली , हाथ पैर लम्बे होते हैं। हर एक से लड़ती झगड़ती है। मक्कारः चापलूस , झूठी और जल्दबाज़ होती है। मैला कुचैली रहती है। नशे वाली चीज़ो पर जान देने वाली होती है। तेज़ आवाज़ से हंसती है , मर्द को ज़्यादा चाहती और सेक्स की ओर ज़्यादा लगाव होता है। पति से कम डरती और दूसरे पुरूषों से मुलाक़ात में नही हिचकिचाती। सेक्सी मिलाप के लिए बेचैन रहती है। भूख और प्यास को बर्दाशत नही कर सकती। चलने का अन्दाज़ अनोखा लेकिन दिल पकड़ लेने वाला होता है। प्रेमियों की तादाद बढ़ाने में फख्र महसूस करती है। छाती सुडौल और शरीर स्मार्ट होता है।
4.हस्तनी
यह चौथे दर्जे की औरत है। थिरकती औक मटकती हुई चलती है। सेक्स से भरी हुई और दुनियां के स्वादों की आरज़ू करने वाली , मोटे शरीर वाली , बहुत छोटे या लम्बे कद की , गरदन छोटी , आँखें जलते हुए अंगारे की तरह सुर्ख , नथने बड़े , शरीर के बाल खड़े रहते है और लगभग शरीर के हर हिस्से पर बाल बहुत पैदा होते हैं। होंठ मोटे , छाती बड़ी , शरीर से शराब की बू आती है और सेक्स की ज़्यादती की वजह से अप्राकृतिक तराक़ों को अपनाती है। यह बुरी ज़बान , बुरे क़िरदार और बेलगाम होती है। मर्दों की बेइज़्ज़ती में फख्र महसूस करती है। न उसे अपनी इज़्ज़त का ख्याल होता है और न वह दूसरों की इज़्ज़त का ख्याल करती है। चाल में मर्दों का अन्दाज़ ज़्यादा होता है। सेक्स की ग़ुलाम होती है। हर वक़्त सेक्सी आवारगी का शिकार रहती है। ग़ैर मर्दों से सेक्सी इच्छा कि पूर्ति के लिए मिलती रहती है। अपनी बातों में सेक्सी अंगों का वर्णन करती रहती है। ऐसी औरत कभी-कभी बच्चों से बहुत प्यार करती है और कभी कभी उन्हें देखना भी पसन्द नही करती। ऍसी औरत अपने पति को ग़ुलाम से ज़्यादा नही समझती। ऍसी औरत किसी की भी वफादार नही हो सकती------ मक्कार और दग़ाबाज़ होती है।
मगर औरतों की उपर्युकत किस्मों में – दोशीज़ा – पुस्तक के लेखक ने इन्कार किया है और लिखा है कि इस तरह से औरतों की बहुत सी क़िस्में हो जाएगी। क्योंकि दुनियां में शारीरिक रूप से केवल चार किस्में नही हो सकतीं और यह बात सही है। इस लिए केवल दो ही क़िस्म मानी जा सकती हैं।
1.अच्छी
2.बुरी
बहरहाल मर्द को चाहिए कि वह अच्छी और बुरी औरत की पहचान कर के ही अपने मिज़ाज और इच्छा के अनुसार औरत को चुने। क्योंकि औरत गुलूबन्द (गले का हार) की तरह हुआ करती है जिस को मर्द अपने गले में ज़िन्दगी भर के लिए बांध लेता है। इसी लिए इमाम-ए-जाफऱ-ए-सादिक़ (अ ,) ने फर्मायाः-
औरत उस गले की हार कि तरह है जो तुम अपनी गर्दन में बांधते हो और यह देख लेना तुम्हारा काम है कि कैसा गले का हार तुम अपने लिए पसन्द करते हो।( 98)
आप ने यह भी फर्मायाः-
पाकदामन और बदकार औरत किसी तरह बराबर नही हो सकती। पाकदामन की कद्र और क़ीमत सोने चाँदी से कहीं ज़्यादा है बल्कि सोना चाँदी उसके मुकाबले में कुछ भी नही है और बदकार औरत ख़ाक (मिट्टी) के बराबर भी नही बल्कि ख़ाक उस से कहीं बेहतर है और मेरे जद्दे अमजद (दादा) रसूल-ए-खुदा (स ,) ने फर्माया है कि अपनी बेटी अपने हम कफ़ों और हम मिस्ल (जैसे) को दो और अपने हम कफ़ों और अपने मिस्ल ही से बेटी लो और अपने नुत्फ़े (वीर्य) के लिए ऍसी औरत तलाश करो जो उसके लिए मौज़ूँ (मुनासिब , उचित) हो ताकि उसके लाएक़ (हुनरमन्द) औलाद पैदा हो। ( 99)
पाक दामन औरतों से शादी करने से सम्बन्धित ही रसूल-ए-खुदा (स.) ने फ़र्मायाः-
पाकदामन औरत से शादी करो कि ज़्यादा औलाद पैदा हो और खूबसूरत औरत जिस से औलाद न पैदा होती हो न मरो। क्योंकि मुझे क़यामत के दिन और पैग़म्बरों की उम्मत पर तुम्हारे ही कारण से मुबाहात (गर्व) करनी होगी। ( 100)
एक और हदीस मे फर्मायाः-
ऍसी कुँवारी औरतों को निकाह के लिए पसन्द करो जिन के मुँह से खूशबू अधिक आती हो , जिनके गर्भाशय मे वीर्य को कुबूल करने की खुसूसियत अधिक हो , जिनकी छातियों पर दूध अधिक होने की उम्मीद हो , जिनके गर्भाशय में औलाद अधिक पैदा हो। क्या तुम्हें यह मालूम नही कि मै कल क़यामत के दिन तुम्हारी अधिकता पर फ़ख्र व मुबाहात (गर्व) करूँगा यहाँ तक कि वह बच्चा भी गिनती मे आ जाएगा जो पूरा नही हुआ हो और गिर गया हो------।( 101)
औरत के चयन अर्थात उससे निकाह करने से ही सम्बन्धित हज़रत अली (अ.) ने औरतों के कुछ गुणों की ओर इस तरह इशारा किया हैः-
जिस औरत को निकाह के लिए चुना जाए उसमें यह गुण होना चाहिए। रंग गेहूँआ , माथा चौड़ा , आँखें काली , कद औसत दर्जे का , सुरीन (चूतड़) भारी। अगर किसी को ऐसी औरत दिखाई दे और वह उस से निकाह भी करना चाहता हो और महर देने को न हो तो वह महर की रक़म मुझ से ले जाए। ( 102)
जहाँ हज़रत अली (अ.) ने अच्छी , खूबसूरत ( 103) और हसीन औरत के गुणों से सम्बन्धित रंग , माथा , आँखें , कद और चूतड़ का वर्णन किया है वही रसूल-ए-खुदा (स.) ने भी औरतों की खूबसूरती से सम्बन्धित कुछ निशानियाँ बताई हैं। मिलता हैः-
हज़रत रसूल-ए-खुदा (स.) किसी मशशातः (स्त्रियों का बनाव- सिंगार करने वाली स्त्रियों) को किसी औरत को निकाह के लिए पसन्द करने के लिए भेजते थे तो यह फर्माते थे कि उसकी गर्दन को सूंघ लेना कि उससे खूशबू आती हो , टख्ने और ऐड़ी के बीच का हिस्सा गोश्त से भरा हुआ हो। ( 104)
और इमाम-ए-जाफर-ए-सादिक़ (अ ,) ने फर्मायाः-
जिस समय तुम किसी औरत से निकाह करना चाहो तो उसके बालों के बारे में मालूमात कर लो , क्योंकि बालों की खूबसूरती आधा हुस्न है। ( 105)
यह भी फर्माया किः-
औरत की सब से बड़ी खूबसूरती यह है कि उसका अंदामेनिहानी (योनि) कम हो उस से जन्ना (पैदा करना) दुशवार (मुश्किल) न हो और बहुत बड़ा दोष यह है कि महर अधिक हो और जन्ना उस से दुशवार हो। ( 106)
जहाँ औरतों के गुणों और खूबसूरती से सम्बन्धित उपरोक्त सभी बातें आइम्मः-ए-मासूमीन (अ ,) ने बताई हैं वहीं क़ुर्आन-ए-करीम के सूरः-ए-नूर में मिलता हैः-
ए रसूल (स ,) ईमानदार औरतों से भी कह दो कि वह भी अपनी निगाहें नीची रखें और अपनी शर्म की जगहों की हिफाज़त (सुरक्षा) करें और अपने बनाव-सिंगार (की जगहों) को (किसी पर) प्रकट (ज़ाहिर) न होने दें। ( 107)
अर्थात आँखों को नीची रखना , शर्म की जगहों की हिफाज़त करना , बनाव-सिंगार (सीने से ऊपर की खूबसूरती) को ज़ाहिर न होने देना ही औरतों के बहतरीन (अच्छे) गुण और खूबसूरती की निशानियाँ हैं। इसके अतिरिक्त हज़रत अली (अ ,) ने नहजुल बलागा में औरतों के तीन गुणों से सम्बन्धित इर्शाद फर्मायाः-
औरतों की बेहतरीन औरतों की बदतरीन आदतों में तकब्बुर (घमण्ड) , बुज़दिली और कनजूसी है। अतः औरत जब घमण्डी होगी तो अपना नफ्स (जिस्म , आत्मा) किसी के काबू में न देगी और कंजूस होगी तो अपने और शौहर (पति) के माल की हिफाज़त करेगी और अगर बुज़दिल (कमज़ोर दिल) होगी तो हर उस चीज़ से डरेगी जो उसकी राह (रास्ता) रोके। ( 108)
हज़रत अली (अ ,) उपरोक्त इर्शाद से औरतों की अच्छी आदतों के साथ साथ मर्दों की बुरी आदतों के बारे में भी पता चल जाता हैः अतः हर औरत , उसके माता पिता या संरक्षक को चाहिए कि वह मर्द को चयन करते समय मर्दों की बुरी आदतों को मुख्य रूप से ध्यान दें ताकि बाद में औरत परेशानियों में न घिर सके।
चूँकि प्राकृतिक और क़ुदरती तौर पर जवानी में हर औरत के लिए मर्द की आव्यश्कता है इसलिए आव्यश्क है कि हर औरत , उसके माता पिता या संरक्षकों को मर्दों की किस्मों (प्रकार) के बारे में ज्ञान हो ताकि चयन में आसानी हो सके।
पुरूषों के प्रकार
पंडित कोका ने सेक्स के अनुसार मर्दों की भी चार क़िस्में ( 109) बतायी हैं।
1.शाश
2.म्रग
3.बर्श
4.आशू
इनकी पहचान के बारे में है कि
1.शाश
बातचीत से गम्भीरता , सहनशीलता और सहिष्णुता को ज़ाहिर करता है। सच्चाई पर जान को देता और हमेशा अच्छी बात ज़बान से निकालता है। हमेशा नेक और अच्छे लोगों से मिलना पसन्द करता है। वह खुद खूबसूरत और तन्दुरूस्त होता है और ईश्वर की प्रार्थना को वह दिल से पसन्द करता है। उसका कद न बहुत लम्बा होता है और न बहुत छोटा। वह अपने बड़ो और अपने से उच्च कोटि के लोगों को बहुत अदब (आदर) करता है। वह हमेशा दूसरों के साथ नेकी करना पसन्द करता है। उसकी आवाज़ गहरी और मीठी होती है। उसके दिल का आईना कभी मैला नही होता। वह अपनी बीवी से टूट कर प्रेम (मुहब्बत) करता है और उसे ही अपने जीवन का मक़सद (तात्पर्य) समझता है। रात को भी उसके ज़ानू पर सर रखकर सोने का आदी होता है। यह मर्दों की सब से ऊँची किस्म है। जो औरतों की सब से ऊँची और अच्छी क़िस्म –पदमनी- के पति बनने के योग्य होते हैं।
2.मग्र
इसका चेहरा खिला हुआ , हंसता और मुस्कराता हुआ मालूम होता है। अंग लम्बे शरीर मज़बूत , राग और नाच को पसन्द करता है। इसकी आँखें सदैव बेचैनी को प्रकट करती हैं। वह भोजन अधिक खाता है। महमानदारी को पसन्द करता है। मज़हबी प्रोग्रामों और इबादतों में शामिल होता है , वह औरत को चाहता है और प्रत्येक दिन संभोग करना अपना पैदाईशी हक़ समझता है। इस क़िस्म के मर्द –चितरनी- क़िस्म की औरतों के पति बनने के योग्य होते हैं।
3.बर्श
यह खूबसूरत होता है। इसके रिश्तेदार बहुत होते हैं। अक़्लमंद और स्वभाव का अच्छा होता है-------जिसकी टाँगें छोटी और शरीर खूब मज़बूत हो , जिसकी शर्म व हया कम हो वह भी बर्श क़िस्म का है। जो औरत को देखकर तुरन्त प्रभावित होता है और जो गुनाह वाली ज़िन्दगी से बिल्कुल न घबराता हो वह भी बर्श क़िस्म में है। वह व्यक्ति जो कम सोने वाला लेकिन सेक्स का गुलाम हो वह भी बर्श क़िस्म में है। इस क़िस्म के मर्द हर वक़्त सेक्सी परेशानियों का शिकार रहते हैं। शराब और बलात्कार इनकी कमज़ोरी होती है। इस क़िस्म के मर्द –संखनी- क़िस्म की औरत के पति बनने योग्य होते हैं।
4.आशू
इसके शरीर की खाल खुरदरी होती है। हमेशा बुराई की ओर आकर्षित , बे ख़ौफ , ऊँचे कद का , तेज़ चलने वाला होता है। जिस शख्स का रंग काला हो , दूसरों की बुराई को तलाश करता हो , सेक्स से भरा हुआ और शीघ्र प्रभावित होने वाला हो , नेकी और शराफत का दुश्मन हो वह भी आशू क़िस्म से है। चोरी , शराब , बलात्कार का आदी होता है। नींद की खुशी और आराम से कभी पूरा फायदः नही उठाता , जिस्म मोटा होता है और जितने भी ज़्यादा उसे बुरे काम करने हों उसका जी नही भरता। औरत उसकी कमज़ोरी होती है वह औरत के एक इशारे पर क़ुर्बान हो जाता है। इस प्रकार के मर्द –हस्तनी- क़िस्म की औरतों के पति बनने के योग्य होते हैं।
लेकिन मर्दों की भी वर्णित सभी क़िस्मों से इन्कार किया जा सकता है क्योंकि इस आधार पर मर्दों की भी औरतों की तरह बहुत सी क़िस्म हो जाएगी और यह वास्तविकता भी है कि दुनियां में शारीरिक रूप से केवल चार क़िस्में नही हो सकतीं। इसलिए औरतों की तरह मर्दों की भी केवल दो ही क़िस्मों को माना जा सकता है।
1.अच्छे
2.बुरे
अच्छे मर्दों की पहचान के लिए इस्लाम की कानूनी किताब क़ुर्आन-ए-करीम के सूरः-ए-नूर में मिलता हैः-
(ए रसूल (स ,)) ईमानदारों से कह दो कि अपनी निगाहों को नीची रखें और अपनी शर्मगाहों (लिंगों) की हिफ़ाज़त (सुरक्षा) करें यही उसके लिए ज़्यादा सफ़ाई की बात है। ( 110)
क़ुर्आन-ए-करीम के सूरः-ए-नूर में मर्द और औरत से सम्बन्धित मिलने वाली एक के बाद एक दो आयतों से अच्छे मर्दों और अच्छी औरतों की पहचान आसानी के साथ की जा सकती है। जिन में अच्छाई की दो पहचानें निगाहों को नीची रखना और शर्मगाह (लिंग) की हिफ़ाज़त करना , मर्द और औरत दोनों के लिए एक जैसी है। इस के अतिरिक्त औरत की एक पहचान और है कि वह अपने जिस्म के छिपे हुए बनाव ( 111) सिंगार को प्रकट न करे। यह वह पहचानें है जो हर धर्म , क़ौम और समाज में किसी न किसी तरह से ज़रूर पाई जाती हैं।
यही वजह (कारण) है कि दुनियां में हर शरीफ़ और नेक औरत (शहरी हो या देहाती) अपनी शर्म की इस तरह हिफ़ाज़त करती है कि किसी मर्द की निगाह उस पर नही पड़ सकती ------- उसकी शर्मगाह का प्रयोग करना तो बहुत दूर की बात है। इसके जीवित नमूनों को रेलवे लाइनों के किनारे झाङियों या खेतों में टट्टी फिरने के लिए बैठी हुई औरतों को देखा जा सकता है जो बहुत तेज़ गति से जाने वाली ट्रनों के गुज़रने पर भी अपनी शर्मगाहों को छुपायें रखती हैं। ताकि किसी की निगाह (द्रष्टि) शर्मगाह पर न पड़े। (यहाँ मर्दों का वर्णन नही है क्योंकि वह तेज़ गति से चलने वाली या धीमी गति से चलने वाली या कभी-कभी रूकी हुई ट्रेन होने पर भी टट्टी फिरते समय अपनी शर्मगाह को नही छिपाते। जो प्राकृतिक मज़हब (धर्म) इस्लाम के कानून की रौशनी में ग़लत है।)
यही नेक और शरीफ औरतें निगाहों के पर्दे (अर्थात निगाहें नीची रखने) के लिए घूँघट , चादर या नक़ाब ( 112) डाले रहती हैं ताकि मर्द से आँखें चार न हों और यही औरत अपने सीने की खूबसूरती को प्रकट नही होने देतीं। बल्कि यह भी देखने में आता रहता है कि केवल नाम मात्र की आधुनिक औरतें भी अचानक मर्द को देखने पर अपनी निगाहों को हटा कर अपने सीने की खूबसूरती को छुपाना चाहती हैं। जो फ़ौरन दुपट्टा या कपड़े को बराबर करना हाथ का सीने पर आ जाना या इस तरह से सिमटना कि सीना छुप सके , से प्रकट हो जाता है। औरत यह अमल (कृत्य , काम) कुदरती और प्राकृतिक रूप से होता है जो प्रत्येक औरत में एक जैसा है। (यहाँ कुछ उन औरतों का वर्णन नही है जो प्राकृति से मुकाबला करके अपनी छुपी हुवी खूबसूरती को प्रकट करने में एक हद तक जीत जाती हैं और गर्व महसूस करती हैं।)
जहाँ तक औरत और मर्द को अपनी-अपनी निगाहें नीची रखने का आदेश दिया गया है वह शायद इसी लिए है कि दोनों की आँखें चार न हों ------- क्योंकि आँखें चार होते ही अधिकतर संभावना इस बात की होती है कि मुहब्बत , प्रेम और लगाव पैदा हो जाए ----- जिसमें पूरी ग़लती आँखों की ही होती है। जिसकी आखरी हद बलात्कारी और हरामकारी है। क्योंकि आँखें बिजली की तरह होती है , उसका प्रभाव गहरा और बहुत देर तक बाक़ी रहने वाला होता है और यही मनुष्य के ख़्यालों और इरादो को बहुत खूबसूरती के साथ प्रकट कर देती है ---- इसीलिए इस्लाम ने आँखें (निगाह) नीची रखने का आदेश दिया है। साथ ही साथ मर्द और औरत दोनों को यह भी हुक़्म (आदेश) दिया है कि अपनी-अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें ------ यह वास्तविकता है कि यदि अपनी-अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त की हिफाज़त नही होगी तो अधार्मिक कार्य बलात्कार , गुदमैथुन और हरामकारी का होना ज़रूरी है। क्योंकि यही शर्मगाहें आज़ाए तनासुल ( 113) (अर्थात नर और मादा का मिलकर संतान उतपन्न करने वाले अंग) होती है। जो बच्चों की पैदाईश और पूरी तरह से सेक्सी इच्छा की पूर्ति के लिए एक दूसरे अर्थात औरत और मर्द के लिए ज़रूरी है। इसलिए ज़रूरी है कि अच्छे मर्द या औरत की इच्छा पैदा होने पर क़ुर्आन की बतायी हुई सभी वर्णित पहचानों को ज़रूर ध्यान में रखना चाहिए।
चयन और निकाह से सम्बन्ध में ही क़ुर्आन ने बिल्कुल स्पष्ट शब्दों में बताया है किः-
और मुशरिक (अर्थात वह शख्स जो ईश्वर को एक नही मानता) औरतों से जब तक वह ईमान न लाए निकाह न करो हालाँकि ईमान वाली लौड़ी मुशरिक बीवी से बेहतर है चाहे वह बीवी तुम को कितनी भी अच्छी मालूम होती हो। और मुशरिक जब तक ईमान न ले आए उनके निकाह में (मुसलमान औरतें) न दो। क्योंकि मोमिन ग़ुलाम (आज़ाद) मुशरिक से बेहतर है चाहे वह (मुशरिक) तुम को अच्छा ही मालूम हो। वह तुम को नर्क की ओर बुलाते हैं और अल्लाह अपने हुक्म से स्वर्ग और मग़फिरत (मोक्ष मुक्ति) की ओर बुलाता है और लोगों के लिए अपने आदेश (अहकाम) खोल कर बयान करता है कि वह नसीहत (सदुपदेश) हासिल (ग्रहण) करें। ( 114)
क़ुर्आन में यह भी मिलता है किः-
बलात्कार करने वाले मर्द तो बलात्कार करने वाली ही औरत या मुशरिकः (अर्थात वह औरत जो ईश्वर को एक नही मानती) से निकाह करेगा और बलात्कार करने वाली औरत भी केवल बलात्कार करने वाले ही मर्द या मुशरिक से निकाह करेगी और सच्चे ईमानदारों पर तो इस तरह के सम्बन्ध हराम हैं। ( 115)
अर्थात वैवाहिक जीवन के लिए अच्छे का अच्छा और बुरे का बुरा साथी होना चाहिए।
बहरहाल शादी एक नेअमत (अर्थात ईश्वर की दी हुवी दौलत) है जो औरत और मर्द को एक दूसरे के जाएज़ (उचित) स्थानों से सेक्सी इच्छा की पूर्ति की पूरी आज़ादी देती है , बुराईयों से बचा कर पाकदामनी और पर्हेज़गारी पैदा करती है , दोनो (अर्थात मर्द औऱ औरत) में प्राकृतिक मुहब्बत और प्यार होने की वजह से अच्छी ज़िन्दगी की बुनियाद पड़ती है , दोनों को सच्चा आराम व सुकून मिलता है--- जो शादी (अर्थात बीबी) के बिनी सम्भव नही। इसीलिए क़ुर्आन-ए-करीम में मिलता है किः-
और उसी (की कुदरत) की निशानियों में एक यह (भी) है कि उस से तुम्हारे लिए तुम्हारी ही जिन्स (जाति) की बीवीयाँ पैदा कीं , ताकि तुम उन के साथ रह कर चैन करो और तुम लोगों के बीच प्यार और मुहब्बत पैदा कर दिया , इसमें शक नही कि इसमें ग़ौर करने वालों के लिए (खुदा की कुदरत की) वास्तव में बहुत सी निशानियाँ हैं। ( 116)
यह बिल्कुल सच है , यह खुदा की शान और क़ुदरत कि ------ वह मर्द और औरत जिन्होंने एक दूसरे को निकाह से पहले कभी देखा भी नही होता है वह निकाह (अर्थात धार्मिक तरीक़े से शादी) होते ही आपस में ऐसी मुहब्बत और लगाव पैदा कर लेते हैं कि जो माँ , बाप , भाई , बहन , परिवार के लोगों और दोस्तों से नही होती ------- मर्द और औऱत (अर्थात पति और पत्नी) में यह प्राकृतिक मुहब्बत और लगाव खुदा अपनी क़ुदरत से पैदा करता है जिसके द्वारा खुदा मर्द और औरत से नस्ल बढ़ाने का काम भी लेना चाहता है। इसीलिए रसूल-ए-खूदा (स ,) की हदीस हैः-
निकाह करो , नस्ल बढ़ाओ और याद रखो कि जिन बच्चों का गर्भ गिर जायेगा (न कि गिराया जायेगा) वह भी क़यामत (आखिरत) के दिन एक एक जन गिने जायेगें। ( 117)
इसी निकाह के लिए क़ुर्आन-ए-करीम में यहाँ तक मिलता है किः-
और औरतों से अपनी इच्छा के अनुसार दो-दो और तीन-तीन और चार-चार निकाह करो फिर अगर तुम्हें इसका ख़्याल (डर) हो कि तुम (कई बीवीयों में) न्याय न कर सकोगे तो एक ही पर इक्तिफ़ा करो (अर्थात एक को पर्याप्त समझो)। ( 118)
लेकिन कुछ इस्लाम के विरोधी इस्लाम के उपर्युकत कानून (अर्थात एक से अधिक औरतों से निकाह करने) को बुलहवसी (लोलुपी , लालची) और अय्याशी (भोग-विलास का शौकीन) का नाम देते हैं। जबकि इस्लाम प्रकृति पर आधारित धर्म है। इसने मर्द को प्राकृतिक इच्छाओं पर दो , तीन और चार औरतों तक से निकाह करने की इजाज़त (अनुमति) दी है। यह हक़ीक़त है कि औरत एक मर्द के साथ सेक्सी तकलीफ और परेशानी को महसूस किये बिना ज़िन्दगी (जीवन) व्यतीत कर सकती है। लेकिन मर्द के लिए एक औरत के साथ जीवन व्यतीत करना कुछ मौकों पर अत्याधिक मुशकिल (कठीन) हो जाता है। जैसे अगर मर्द तन्दुरूस्त और पूरी तरह से सही है तो उसे बीवी की हर समय आव्यश्कता है। इसके अतिरिक्त औरत को हर महीने तीन से दस दिन तक खून-ए-हैज़ (मासिक धर्म का खून) आने के बीच पति की कोई आव्यश्कता नहीं पड़ती। हर महीने इस निश्चित दिनों के अतिरिक्त औरत के ज़िन्दगी में कुछ और लम्बे-लम्बे
ठहराव (जैसे गर्भावस्था , बच्चे का जन्म और खून-ए-निफास अर्थात औरत के शरीर से बच्चा जनने के बाद निकलने वाला चालीस दिन तक खून , के ज़माने में) ऐसे आते रहते है जिनमें उसका मर्द से दूर रहना ही ज़रूरी होता है -------- लेकिन प्राकृतिक सेक्सी इच्छाओं की पूर्ति के लिए मर्द को औरत की आव्यश्कता रहती है। जिसको वह दूसरी , तीसरी या चौथी औरत से पूरा कर सकता है। इसके अतिरिक्त चूँकि मर्द और औरत के शारीरिक मिलाप का तात्पर्य केवल स्वाद और आनन्द हासिल करना नही बल्कि नस्ल को बढ़ाना है। इसीलिए एक मर्द की कई बीवीयाँ होने पर यह तो सम्भव है कि नौ महीने में कई बच्चे ----------------------------------- (यदि औरत में गर्भ ग्रहण करने की योग्यता मौजूद हो तो) पैदा हो जाए। लेकिन एक औरत कई मर्द रख कर भी इस बात पर क़ादिर (समर्थ) नहीं हो सकती की वह नौं महीने के समय में एक से अधिक ( 119) बच्चों को पैदा कर सके। अतः बच्चों की अधिकता के लिए मर्द को दूसरी या तीसरी चौथी औरत की आव्यश्कता हो सकती है।
यह भी एक खास और मुख्य बात है कि इस्लाम ने एक मर्द को चार (तीन या पाँच नही) औरतों की अनुमति क्यों दी है ? इसको सैय्यद मुस्तफ़ा हसन रिज़वी ने अपनी किताब –रसूल (स.) और तअद्दुद अज़वाज- में एक उदाहरण के द्वारा इस प्रकार समझाया हैः-
एक सेहतमन्द , तन्दुरूस्त और सहीह-अल-कवा मर्द ने पहली जनवरी को शादी की और इत्तिफ़ाक़ (संयोग) से उसी दिन उसकी बीवी को गर्भ ठहर गया। तीन महीने में यह पूरी तरह मालूम हो सकेगा कि वास्तव में उसकी बीवी गर्भवस्था में है। अब पहली अप्रैल से पति को पत्नी से कम से कम नौ महीने तक अलग रहना ज़रूरी (अनिवार्य) है। लेकिन चूँकि उसकी सहत और तन्दुरूस्ती उसे बराबर नौ महीने तक अकेले रहने की अनुमति (इजाज़त) नही दे सकती इस लिए उसके लिए ज़रूरी होगा कि वह पहली अप्रैल को दूसरी शादी कर ले। अगर इत्तेफाक से उसी दिन दूसरी बीवी का भी गर्भ ठहर गया तो जून की आख़िर तक उसे दूसरी बीवी से भी अनिवार्य रूप से अलग हो जाना पड़ेगा। पहली जुलाई को वह मजबूर (विवश) मजबूर हो कर दूसरी शादी करेगा। अगर उसी दिन तीसरी बीवी को भी गर्भ ठहर गया तो अब पहली अकतूबर से पूरी तरह अलग होने की सूरत में वह चौथी शादी करने पर मजबूर हो जाएगा और अगर उस चौथी बीवी के भी गर्भ ठहर गया तो उस बीवी से दिसम्बर के आख़िर तक फ़ायदा उठाने के बाद पहली जनवरी को फिर उसे नई बीवी की आव्यश्कता होगी। लेकिन उस समय तक उसकी पहली बीवी अपने गर्भावस्था के दिन , बच्चे को जनना और बच्चे को जनने के बाद आने वाले खून-ए-निफ़ास के दिनों को पूरी तरह से पूरा कर के और तन्दुरूस्त होकर इस योग्य हो चुकी होगी कि वह बिल्कुल नए सिरे से पुनः बीवी होने की पूरी ज़िम्मेदारियों को निभा सकती है। उन चार बीवीयों में यह बात सदैव जारी रह सकती है और कभी पाँचवी बीवी की ज़रूरत नही हो सकती। अगर इस्लाम एक ही समय में चार से ज़्यादा बीवीयाँ करने की अनुमति दे देता तो वह बुलहवसी (लोलुप , लालच) और अय्याशी (भोग- विलास का शौक़) पर तैय्यार करने के समानार्थक (मुतरादिफ़) होता। जिस तरह से चार से अधिक बीवीयाँ करने की अनुमति इफ्रात (बहुतात) की हद में आती है। उसी तरह अगर इस्लाम एक पत्नी को केवल एक पति के लिए ही उचित समझता तो वह तफ्रीत (कमी) की हद में आ जाती। ( 120)
यह हर मुसलमान मर्द को याद रखना चाहिए कि इस्लाम धर्म ने जहाँ उन्हे चार औरतों तक की शादी करने की अनुमति दी है वहीं एक मुश्किल शर्त भी लगाई है किः-
अगर तुम्हें इसका डर हो कि तुम (कई बीवीयों में) न्याय न कर सकोगे तो एक ही पर इक्तिफ़ा करो (अर्थात एक ही को पर्याप्त समझो) ( 121)
अर्थात नयाय और इंसाफ़ न कर पाने की हालत में चार क्या दो औरतों की भी अनुमति नही है --------- लेकिन मर्द के लिए प्राकृतिक सेक्सी ईच्छाओं की पूर्ति के लिए एक औरत का होना हर हाल में ज़रूरी है। जो माँ , बहन , बेटी , फुफी , खाला , भतीजी , भानजी हरगिज़ नही हो सकती क्योंकि इनके हराम होने का स्पष्ट और साफ ऐलान इस्लाम की क़ानूनी किताब क़ुर्आन-ए-करीम में इस तरह मौजूद हैः-
(मुसलमानों , निम्नलिखित) औरतें तुम पर हराम की गयीं , तुम्हारी मायें , (दादी , नानी आदि सब) और तुम्हारी बेटीयाँ (पोतियाँ , नवासियाँ आदि) और तुम्हारी बहने और तुम्हारी फुफियाँ और खालाऐं और भतीजियाँ और भानजियाँ और तुम्हारी वह मायें जिन्होने तुम को दूध पिलाया है और तुम्हारी रिज़ाई (दूध शरीक) बहनें और तुम्हारी बीवीयों की मायें (सास) और वह लड़कियाँ जो तुम्हारी गोद में पल चुकी हों और उन औरतों के पेट से (पैदा हुई हों) जिन से तुम संभोग कर चुके हो हाँ अगर तुम ने उन बीवीयों से (केवल निकाह किया हो) संभोग न किया हो तो (उन) लड़कियों से (निकाह करने में) तुम पर कुछ गुनाह (पाप) नहीं और तुम्हारे सुल्बी (अर्थात एक नुत्फे से पैदा हुवे) लड़कों (पोतों नवासों आदि) की बीवीयों (बहुऐं) और दो बहनों से एक साथ निकाह करना। मगर जो कुछ हो चुका (वह मआफ़ है) बेशक खुदा बड़ा बख्शने वाला महरबान है। ( 122)
यहाँ इस बात का उल्लेख करना ज़रूरी है कि जिस तरह उपर्युक्त औरतें मर्दों पर हराम हैं उसी तरह उनके विपरीत (म़ुकाबिल) मर्द , बाप दादा , नाना बेटा , पोता नवासा भाई , चचा , मामूँ , भतीजा , भानजा आदि औरतों पर हराम हैं।
जब क़ुर्आन-ए-करीम और आइम्मः-ए-ताहिरीन (अ ,) की हदीसों मे हराम व हलाल और अच्छे व बुरे , मर्द और औरत की पहचान हो गयी है तो लाज़मी है कि हर मुलसमान मर्द और औरत हराम व हलाल और अच्छे व बुरे को ध्यान में रखते हुए ही अपने जीवन साथी को तलाश करे। क्योंकि साथी मिलने (अर्थात शादी होने) पर एक नई ज़िन्दगी की शुरूआत होती है जो अच्छी भी हो सकती है और बुरी भी। जिससे ज़िन्दगी आराम व सुकून में भी व्यतीत हो सकती है और आज़ाब में भी ------- और आराम व सुकून से जीवन व्यतीत करने के लिए लाज़मी है कि नई ज़िन्दगी करने वाले दोनो साथी क़दम-क़दम पर बीना शीकायत और ऐतिराज़ के साथ निभाने का वायदा करें------ और यही ज़िन्दगी के सच्चे साथी की निशानी है। जिसका आरम्भ शादी का पैग़ाम देने से होता है।
चौथा अध्याय
शादी का तरीक़ा
अ. शादी का ख्याल आने पर दुआ
ब. पैग़ाम देना
स. मंगनी
द. निकाह की तारीखों का तय करना
च. महर
छ. खुतबः और निकाह के सीग़े
ज. रूखसती (विदाई) व दुआ
झ. दावत-ए-वलीमा (विवाह भोज)
शादी का बुनियादी तात्पर्य –संभोग-
जवानी में क़दम रखने के बाद प्राकृतिक रूप से प्रत्येक नौजवान मर्द और औरत को अपनी नई ज़िन्दगी का आरम्भ करने के लिए एक अच्छे साथी की तलाश होती है और यह तलाश औरत के मुक़ाबले में मर्द को ज़्यादा होती है। क्योंकि उसे अपनी सेक्सी इच्छा की पूर्ति के साथ-साथ अपने नाम व निशान अर्थात नस्ल को बाक़ी रखने के लिए औलाद की ख्वाहिश होती है जिसका पूरा होना औरत के बिना सम्भव नही है ------ मर्द को औरत की तलाश इसलिए भी होती है कि वह प्राकृतिक तौर पर औरत की सरपरस्ती (देख-भाल , पालन-पोषण) करना चाहता है और औरत इसलिए मर्द का साथ इख़्तियार कर लेती है कि वह प्राकृतिक तौर पर मर्द की सरपरस्ती (अभीभावकता) को क़ुबूल करना चाहती है ------ प्राकृतिक तौर पर मर्द और औरत एक दूसरे की इच्छा इसलिए भी करते हैं कि दोनों मिलकर एक घर को बसा सकें और घरेलू जीवन (अर्थात जोड़ा बनाकर जीवन) व्यतीत कर सकें।
घरेलू जीवन व्यतीत करने की यह प्राकृतिक इच्छा मनुष्यों के अलावा कुछ पशु-पक्षियों (जैसे शेर-शेरनी , कबूतर-कबूतरी , चिङिया-चिडढ़ा आदि) में भी पाई जाती है जो जोड़ा बनाकर ही जीवन व्यतीत करते हैं ------ क़ुदरती और प्राकृतिक तौर पर इन जोड़ो में मादा , नर की सेक्सी इच्छा की पूर्ति के साथ-साथ औलाद देने की ज़िम्मेदारी भी निभाती है और नर प्राकृतिक इच्छा की पूर्ति के साथ-साथ घर (अर्थात मादा और बच्चों) की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी निभाता है।
यह बात देखने में आती है कि इस तरह घरेलू जीवन व्यतीत करने के लिए जोडा बनाने (मुख्य रूप से कबूतर को देखा जा सकता है जो कबूतरी से कोशिश के साथ जोड़ा बनाता है) घर बसाने और घर की हिफ़ाज़त (देखरेख) करने का पूरा रोल नर ही अदा करता है। जो मनुष्य में भी पाया जाता है।
शादी का ख़्याल आने पर दुआ
चूँकि क़ुदरती और प्राकृतिक मर्द जोड़ा बनाने , घर बसाने और औलाद की इच्छा के लिए हमेशा एक अच्छी (न कि बुरी) औरत की तलाश करता रहता है। इसीलिए इमाम-ए-जाफर-ए-सादिक़ (अ.) ने हर मर्द को प्राकृतिक तौर पर औरत का ख्याल आने और शादी का इरादः करने पर दो रकअत नमाज़ पढ़ने , खुदा की तारीफ करने और निम्नलिखित दुआ पढ़ने की शीक्षा दी हैः
अल्लाहुम्मा इन्नी ओरीदो अनअताज़व्वजा फकददिर ली मिनन निसाऐअअफ़्फहुन्ना फरजाँव व अहफज़हुन्ना ली फी नफसेहा व माली वऔसअहुन्ना ली रिज़कन व अअज़माहुन्ना ली बरकतन फी नफ़सेहा व माली इन्नी अतरोको फकददिर ली मिनहा वलादन तय्येबन तजअलोहू खलाफन सालेहन फी हयाती व बअदा मौती। ( 123)
(अर्थात) ए अल्लाह- मेरा इरादः है कि मै निकाह कँरू , तू मेरे लिए औरतों मे से ऐसी औरत मेरे भाग्य में लिख जो पर्हेज़गारी में सब से बढ़ी हूई हो और मेरे लिए अपने नफ़्स (आत्मा) और मेरे माल की सबसे ज़्यादा हिफाज़त (सुरक्षा) करने वाली हो और मेरे लिए रिज़्क (रोज़ी) की बढ़ोतरी के हिसाब से सब से ज़्यादा नसीब वाली हो और इसी तरह बरकत (लाभ) में भी मेरे लिए सबसे बढ़ी हो। फिर मुझे उसके गर्भ से एक पाकीज़ा और नेक औलाद देना जो मेरी ज़िन्दगी में और मरने के बाद मेरी नेक यादगार बने।
मासूम (अ ,) की बताई हुई उपर्युकत दुआ से इस बात का अन्दाज़ा हो जाता है कि औरत का पाक और पाकिज़ा होना , अपने नफ्स और पति के माल की हिफाज़त करना , पति की रोज़ी व बरकत में बढ़ोतरी होना और नेक औलाद को जनना ही मुख्य खूबियों मे है जिस के लिए अल्लाह ने शुरू शुरू (अर्थात शादी के लिए औरत का ख्याल आते ही) में ही दुआ करना एक मोमिन का कर्तव्य है और दुआ को कबूल करना अल्लाह के ऊपर। क्योंकि क़ुर्आन-ए-करीम में है किः-
और तुम्हारा पर्वरदीगार फ़र्माता है कि तुम मुझ से दुआऐं मांगो मै तुम्हारी (दुआ) क़ुबूल करूगाँ। ( 124)
बहरहाल यह याद रखना चाहिए कि क़ुदरत (हालात) होने पर हर नौजवान मर्द को शादी करने और घर बसाने का ख्याल करना चाहिए क्योंकि रसूल-ए-अक़रम (स ,) का इर्शाद हैः-
ए जवानों- अगर शादी करने की क़ुदरत रखते हो तो शादी करो क्योंकि शादी आँख को नामहरमों से ज़्यादा दूर रखती है और पाकदामनी और पर्हेज़गारी पैदा करती है। ( 125)
इसके अतिरिक्त शादी करने और घर बसाने की क़ुदरत न होने की हालत में क़ुर्आन में मिलता हैः-
और जो लोग निकाह करने की क़ुदरत नही रखते उनको चाहिए की पाकदामनी पैदा करें यहाँ तक की खुदा उनको अपने फज़ल (व करम) से मालदार बना दे। ( 126)
जो इस बात का सुबूत है कि घर बसाने की क़ुदरत न होने की हालत में शादी नही करना चाहिए। लेकिन अगर क़ुदरत है तो चाहिए कि नौजवान मर्द अपने शादी के ख्याल को अपने माता-पिता पर भी प्रकट कर दें , उनसे सलाह लें और उनकी सलाह पर अमल करें तो बेहतर (उचित) है क्योंकिः-
बेटे का बाप पर एक हक़ होता है और बाप का बेटे पर एक हक़ होता है। चूनाँचे बाप का बेटे पर यह हक़ है कि बेटा हर बात में उसका कहना माने मगर खुदा की नाफरमानी में (न माने) और बेटे का हक़ बाप पर यह है कि बाप उसका नाम अच्छा रखे उसको अच्छी-अच्छी बातें सिखाए और उसे क़ुर्आन-ए-पाक की शीक्षा दे। ( 127)
और शादी के लिए रिश्ते का चयन करना खुदा-ए-पाक की नाफरमानी (अर्थात उसके आदेश का न मानना) नहीं है।
माता-पिता की सलाह पर अमल करना इसलिए भी उचित है कि अधिकतर नौजवानों से ज़्यादा माता-पिता या अभिभावक बेटे की नई ज़िन्दगी को द्रष्टिगत रखकर अच्छे से अच्छा साथी तलाश करने की फिक्र में रहते हैं। और वह अपनी इस तलाश में अपने अनुभव के कारण काफी हद तक क़ामयाब भी रहते हैं ------ और लड़की के माता-पिता या अभिभावक को तो इस्लाम धर्म ने पूरी इजाज़त दी है कि वह उसके लिए पति का चयन करें। मसायल में यहाँ तक मिलता है किः-
जब लड़की किशोरी (जवान) हो जाए और अपने बुरे भले को समझने का सलीक़ा रखती हो अगर वह किसी के साथ शादी करना चाहे और अगर वह कुँवारी हो तो वह लाज़मी अहतियात की बुनियाद पर अपने बाप या दादा से इजाज़त ले। लेकिन माँ और भाई की इजाज़त ज़रूरी नही। ( 128)
पैग़ाम देना
बहरहाल माता-पिता की सलाह के बाद ज़माने (समय) के उसूल के अनुसार मर्द या उसके माता-पिता को औरत के घर शादी का पैग़ाम भेजना चाहिए। ज़माने के इस उसूल से औरत की हैसीयत और उसकी इज़्ज़त का भी अन्दाज़ा होता है। जिसमें मर्द की तरफ से शादी का पैग़ाम दिया जाता है और औरत की तरफ से शादी के पैग़ाम की स्वीक्रति या अस्वीक्रति होती है------- और अगर लड़की के माता-पिता या अभिभावक अपनी ओर से रिश्ते (चयन) की पेशकश करें तो यह तरीक़ा शरीअत (धर्म के क़ानून) के विपरीत नही है बल्कि पैग़म्बर (स.) की सुन्नत (अर्थात वह काम जो पैग़म्बर (स.) ने किया हो) पर अमल करना। क़ुर्आन-ए-करीम में मिलता है किः-
(तब) शुएब (अ.) ने कहा मै चाहता हूँ कि अपनी इन दोनों लड़कियों में से एक के साथ तुम्हारा इस (महर) पर निकाह कर दूँ--------। ( 129)
अर्थात जनाबे शुएब (अ ,) पैग़म्बर ने जनाबे मूसा (अ ,) जैसे नेक , पर्हेज़गार , सच्चे , अच्छे ईमानदार और बहादुर मर्द के निकाह में देने के लिए अपनी एक लड़की की पेश-कश की जिस से यह नतीजा निकलता है कि नेक , पर्हेज़गार और ईमानदार मर्द के निकाह में देने के लिए अपनी लड़की की पेश-कश की जा सकती है। जो शरीयत के हिसाब से ग़लत नही है। वरन् वर्तमान समाज में बुरा ज़रूर समझा जाता है। अतः उचित है कि पसन्द के होते हुवे भी मर्द की ओर से पैग़ाम भेजा जाए ताकि समाज में औरत की हैसियत और इज़्ज़त बाक़ी रहे।
यूँ भी प्रकृति ने मर्द को मुहब्बत का देवता और औरत को मुहब्बत की देवी बनाया है। मर्द परवाहः (पतंगा) जैसा है और औरत शमअ। शमअ हमेशा अपनी जगह पर मौजूद रहती है और परवानः दूर से उसके करीब जाता है और अपनी जान को निछावर कर देता है। ठीक इसी तरह से बुलबुल और फूल (गुल) का भी रिश्ता है। फूल अपनी जगह पर मौजूद रहता है और बुलबुल उसको तलाश करते हुवे उसके पास पहुँच जाती है------- इसी तरह मर्द को भी चाहिए कि वह बुलबुल या परवानः की तरह फूल या शमअ को तलाश करते करते औरत के घर तक पहुँचे और अपना शादी का पैग़ाम दे। क्योंकि मर्द को शादी के लिए औरत करना और अपना पैग़ाम देना कोई बुराई की बात नहीं है।
लेकिन इस्लामी शरीअत के अनुसार मर्द , अपनी शादी का पैग़ाम हर औरत के पास नही दे सकता। बल्कि उसे हराम और हलाल ( 130) औरतों को ज़रूर देखना होगा। क्योंकि हराम औरत से शादी करने के बाद औलाद हराम और हलाल औरत से शादी करने के बाद औलाद हलाल होगी और समाज में केवल उन्हीं औलादों को इज़्ज़त मिलती है जो हलाल है और शादी का तात्पर्य भी यही होता है कि घर बसाने के साथ-साथ जाएज़ और हलाल औलाद को हासिल किया जा सके। जिन को समाज में इज़्ज़त की निगाह से देखा जा सके।
पिछले अध्याय में इस बात को स्पष्ट किया जा चुका है कि औरत के चयन में हलाल और हराम को ध्यान में रखने के साथ-साथ अच्छी और बुरी को भी देख लेना चाहिए क्योंकि औरतें मर्दों की खेतियाँ ( 131) हैं। जिसमें मर्द अपनी बीज डालता है। अतः औरत यदि अच्छी होगी तो उससे मिलने वाला फल (अर्थात बच्चा) भी होगा। इसीलिए रसूल-ए-खुदा (स ,) अपने असहाब (साथियों) को समझाते थे कि वह पत्नी के चयन में बहुत देख भाल करें अर्थात बीज डालने से पहले यह देख लिया करें कि ज़मीन भी अच्छी और ठीक है या नही ताकि औलाद में माँ की तरफ से बुरी बातें पैदा न हों। ( 132)
रसूल-ए-खुदा (स.) ने यह भी इर्शाद फर्माया किः-
इस बारे में निगाह रखो कि तुम अपनी औलाद को किस बर्तन में रख रहे हो। क्योंकि अरूक़-ए-निसवानी –वसास- (अर्थात अख़लाक़-ए- माता-पिता बच्चों की तरफ परिवर्तित करने वाली) होती है। ( 133)
शायद इसी लिए हज़रत अली (अ ,) को कहना पङाः-
अक़ील ऐसा बहादुर ख़ानदान पर्हेज़गार औरत तलाश करो कि जिस के गर्भ में ऐसा बहादुर बच्चा पैदा हो कि जो कर्बला में हुसैन (अ.) की देख-रेख कर सके। ( 134)
और हुवा भी यही कि बहादुर खानदान की पर्हेज़गार औरत जनाबे उम्मुल बनीन के गर्भ से जनाबे अबुल फ़ज़्लिल अब्बास (अ.) जैसे पर्हेज़गार , मासूम जैसे और बहादुर बेटे पैदा हुवे जिन्होनें कर्बला में इमामे हुसैन (अ ,) की सुरक्षा का हक़ अदा कर दिया।
अतः प्रत्येक मर्द को चाहिए कि वह अपने बराबर और अपने जैसी औरत के चयन में , औरत से सम्बन्धित मालूमात हासिल करने के साथ-साथ उसके पूरे खानदान से सम्बन्धित भी मालूमात हासिल करे ताकि एक अच्छा रिश्ता बनाया जा सके--------- और मालूमात हासिल करने के बाद पति-पत्नी का रिश्ता बनाने के लिए मर्द स्वयं , उस औरत के यहाँ अपनी शादी का पैग़ाम भेजे या अपने माता-पिता , अभिभावक , परिवार के दूसरे लोगों , दोस्तों आदि किसी के द्वारा औरत के यहाँ अपनी शादी का पैग़ाम ( 135) भिजवाए------ और शादी का पैग़ाम आने पर लड़की वालों को चाहिए कि वह भी मर्द और उसके खानदान से सम्बन्धित मालूमात हासिल करें , हराम व हलाल ( 136) और अच्छे व बुरे ( 137) पर ध्यान दें और अपने हम कफो ( 138) (बराबर) और अपने जैसे होने पर ही अपनी बेटी देने (अर्थात शादी करने) पर राज़ी होने को उस समय ज़ाहिर करें जब लड़की की मर्ज़ी ले लें। क्योंकि इस्लाम में अपनी शादी के लिए पति के चयन में लड़कियों का पूरा अधिकार होता है। अतः उनकी मर्ज़ी लेना ज़रूरी है।
तारीख इस बात की गवाह है कि रसूल-ए-खुदा (स.) ने अपनी बेटी जनाबे फ़ातिमा ज़हरा (स.) को अपने लिए पति के चयन में पूरी तरह आज़ाद रखा -------- जब हज़रत अली (अ ,) ने रसूल-ए-खुदा से उनकी बेटी जनाबे फ़ातिमा ज़हरा (स.) की शादी अपने साथ करने का ख्याल ज़ाहिर किया तो रसूल-ए-खुदा (स.) ने हज़रत अली (अ ,) को जवाब दिया कि अब तक कई लोग फ़ातिमा ज़हरा (स.) से शादी का ख़्याल लेकर मेरे पास आये. तो मैने उनकी बात फ़ातिमा ज़हरा (स.) के सामने रखी। लेकिन फ़ातिमा ज़हरा (स.) के चेहरे से मालूम हुआ कि वह उन लोगों के साथ शादी नहीं करना चाहती हैं। इसलिए तुम्हारी बात भी फ़ातिमा ज़हरा (स.) से कहूँगा------ रसूल-ए-खुदा (स.) फ़ातिमा ज़हरा (स.) के पास गए और शादी के लिए आए हुवे पैग़ाम को सुनाया तो फ़ातिमा ज़हरा ने मुँह नही फेरा और चुपचाप बैठी रहीं। चुपचाप रहने से रसूल-ए-खुदा (स.) समझ गये कि फ़ातिमा ज़हरा (स.) ने इस पैग़ाम को मान लिया है ------ बाद में जनाबे ज़हरा (स.) के राज़ी होने की खबर हज़रत अली (अ ,) को दे दी।
उपर्युक्त वाक़िए (विवरण) से यह सबक़ मिलता है कि हर बाप को अपनी बेटी के लिए पति के चयन में बेटी की मर्ज़ी (सहमति) लेना ज़रूरी है। बेटी की मर्ज़ी से ही सम्बन्धित एक वाक़िया यह भी मिलता है किः-
एक परेशान व दुखी लड़की हज़रत पैग़म्बर (स.) के पास आई और कहा कि – या रसूलल्लाह (स) खुद इस के हाथों........। आख़िर तुम्हारे बाप ने क्या किया है ? इन्होंने अपने एक भतीजे से मेरी मर्ज़ी के बिना मेरी शादी कर दी है। ------ अब तो वह शादी कर चुका , इसलिए अब तुम विवाद (मुख़ालिफत) न करो ------ मुत्मइन (संतुष्ट) रहो और चचा के बेटे की बीवी बन कर रहो। या रसूलल्लाह (स.) चचा के बेटे से मुझे मुहब्बत नही है। ऐसे मर्द की बीवी कैसे बनूँ जिससे कि मुहब्बत न हो ?
अगर तुम उससे मुहब्बत नहीं करती हो तो कोई बात नहीं है तुम्हे अधिकार है जाओ जिससे तुम्हे मुहब्बत है उसे अपना पति बना लो--------
या रसूलल्लाह (स.) -------- वास्तव में मै उसे बहुत चाहती हूँ। उसके अलावा और किसी से मुहब्बत नही करती , इसलिए उसके अलावा और किसी की बीवी नही बन सकती। बात तो बस इतनी है कि मेरे बाप ने शादी के लिए मेरी रज़ामन्दी (इच्छा) क्यों नहीं ली। मै जानबूझकर आप के पास आई हूँ कि आपसे सवाल करूँ और यह जवाब आप से सुन लूँ और पूरी दुनियां की औरतों को बता दूँ कि शादी के लिए बाप पूरी तरह फैसला नही कर सकता। शादी के लिए लड़कीयों को भी अधिकार है और उनकी रज़ामन्दी भी ज़रूरी है। ( 139)
इस्लामी शरीअत ने शादी के लिए लड़के और लड़की की रज़ामन्दी हासिल करने के लिए लड़के और लड़की को यहाँ तक इजाज़त दी है कि वह दोनों नामहरम (अर्थात वह लोग जो एक दूसरे को नही देख सकते) होने के बावजूद ज़रूरत के मुताबिक़ एक दूसरे को देख कर अपनी पसन्द से रिश्ता तय कर सकते हैं। रसूल-ए-खुदा का इर्शाद है किः-
एक दूसरे को देखकर अपनी पसन्द से शादी करना दोनों के बीच हमेशा प्रेम व मुहब्बत का कारण होता है। ( 140)
मंगनीः- बहरहाल पैग़ाम दिये जाने के बाद लड़के और लड़की की रज़ामन्दी होने पर ही मंगनी (अर्थात रिश्ता तय करने) की रस्म होनी चाहिए। जिस के लिए हज़रत अली (अ ,) का इर्शाद हैः-
जुमए (शुक्रवार) का दिन मंगनी का दिन है। ( 141)
जो औरत की इज़्ज़त और हैसियत बनाए रखने का सबसे अच्छा तरीक़ा है।
मुसलमानों में मंगनी और निकाह के बीच कुछ और भी रसमें होती है जिन में मिठाई और तरकारी का जाना या आना , मांझा , तिलक , रात्री जागरण (रत जगा) आदि। इनमें कुछ में कोई शरई रूकावट नही लेकिन कुछ रस्में (जैसे तिलक आदि) दूसरी क़ौमों की रस्में हैं जिनको अपनाना ग़लत है। क्योंकि क़ुर्आन-ए-करीम में मिलता है किः-
और जो व्यक्ति सीधे रास्ते के प्रकट (ज़ाहिर) होने के बाद रसूल (स.) से मुखालिफत (सरकशी) करे और मोमिनीन के तरीक़े के अलावा किसी और रास्ते पर चले जो जिधर वह फिर गया है हम भी उधर फेर देंगे और (आखिर) उसे जहन्नम (नरक) में झोंक देंगे और वह तो बहुत ही बुरा ठिकाना है। ( 142)
निकाह की तारीखों का तय करनाः- मंगनी होने के बाद अक्द-ए-निकाह अर्थात बारात की तारीखें तय होना चाहिए। जिसके लिए चाँद के महीनें (( 143)) और तारीख के साथ दिन और वक़्त का भी ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि आइम्मः-ए-मासूमीन (अ.) ने महीना , तारीख , दिन और वक़्त को ध्यान में रखते हुवे होने वाले निकाह के अलग अलग असरात (प्रभाव) बताए हैं। एक हदीस में मिलता हैः-
शव्वाल (ईद) के महीने में निकाह करना अच्छा नहीं है। ( 144)
जहाँ तक तारीख का सवाल है तो इस में नेक और बद (अर्थात अच्छी और बुरी , सअद व नहस) तारीख को ध्यान में रखते हुवे तहतशशुआअ ( 145) (अर्थात चाँद के महीने के वह दो या तीन दिन जब चाँद इतना महीन होता है कि दिखाई नही देता। यह दिन ख़राब माने जाते हैं) और क़मर दरअक्रब ( 146) (चाँद का वृश्चिक राशि अर्थात् बुर्ज-ए-अक्रब में होना जो बहुत ज़्यादा खराब माना जाता है) का मुख्य रूप से ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि इमाम-ए-जाफर-ए-सादिक़ (अ.) ने इर्शाद फर्मायाः-
जो व्यक्ति तहतशशुआअ में निकाह या संभोग करे वह याद रखे उसका जो वीर्य (नुत्फ़ा) पैदा होगा वह पूर्ण होने से पहले गिर जाएगा। ( 147)
और आप ही का इर्शाद है किः-
जो व्यक्ति क़मर दरअक़्रब मे शादी या संभोग करे उसका अन्जाम (अन्त) अच्छा नही होगा। ( 148)
महीने की तारीख के साथ-साथ दिन और वक़्त का भी ख़्याल रखना चाहिए. हज़रत अली (अ.) ने बताया किः-
जुमए का दिन मंगनी और निकाह का दिन है। ( 149)
और समय के लिए इमाम-ए-जाफ़र-ए-सादिक़ (अ ,) ने इर्शाद फर्माया किः-
रात के वक़्त निकाह करना सुन्नत है। ( 150)
इससे विपरीत दिन में निकाह से सम्बन्धित मिलता है किः-
इमाम-ए-मुहम्मद-ए-बाक़िर (अ.) को ख़बर पहुँची कि एक व्यक्ति ने दिन में ऐसे वक़्त निकाह किया है कि हवा गर्म चलती थी। फ़र्माया मुझे गुमान (शंका) नहीं है कि उनमें आपस में मुहब्बत और प्रेम हो। चुनाँचे थोड़े ही समय के बाद अलगाव हो गया। ( 151)
बहरहाल निकाह के लिए महीना , तारीख , दिन और वक़्त तय होने पर बताना चाहिए , मोमिनीन को निकाह में बुलाना चाहिए और उन्हे खाना खिलाना चाहिए। जिस के लिए हज़रत अली (अ.) ने इर्शाद फ़र्माया किः-
निकाह में मोमिनीन को बुलाना , उनको खाना खिलाना और निकाह से पहले खुतबः पढ़ना सुन्नत है। ( 152)
महर
निकाह के समय सब से मुख्य बात महर (अर्थात वह रक़्म जो निकाह के समय दुल्हन को दिये जाने के लिए तय होती है) का तय होना है। जिसे बातचीत होने के समय भी तय किया जा सकता है। और निकाह से पहले शरई तौर से लड़की वाले , लड़के वालों से आधा महर माँग सकते हैं। जिससे वह लड़की के दहेज (( 153)) या शादी के दूसरे खर्चों को पूरा कर सकें और निकाह के समय बाक़ी आधा महर या पूरा महर लड़के को अदा कर देना चाहिए---------- लेकिन सम्भव है कि इस्लाम के उपर्युक्त उसूल (क़ानून , नियम) और कायदे से फायदः उठा कर लड़की वाले अधिक से अधिक महर तय करने की कोशीश करें। इस लिए पैग़म्बर-ए-इस्लाम (स.) ने इर्शाद फ़र्मायाः-
मेरी उम्मत की बेहतरीन औरत वह हैं जो खूबसूरत (सुन्दर) हों और जिन का महर कम हो। ( 154)
और उचित यह है कि सुन्नत महर तय करें जो पाँच सौ दिरहम ( 155) है और हदीस मे आया है कि वह बहुत ख़राब औरत है जिसका महर बहुत हो। इसके विपरीत इमाम-ए-जाफ़र सादिक़ (अ ,) का इर्शाद है किः-
वह औरत बरकत वाली है जो कम खर्च हो। ( 156)
और अगर कोई औरत अपने पति को अपना महर माफ कर दे तो खुदा वन्दे आलम हर दिरहम के बदले में एक नूर उसकी कब्र मे देता है और हर दिरहम के बदले में हज़ार फरिश्तों को हुक्म फ़र्माता है कि वह उस औरत के लिए क़यामत तक नेकियाँ लिखें। ( 157) इसी महर से सम्बन्धित क़ुर्आन-ए-करीम में मिलता हैः-
और औरतों को उनके महर खुशी-खुशी दे डालो फिर अगर वह खुशी-खुशी तुम्हें कुछ छोड़ दें तो शौक से नोशे जान खाओ पियो। ( 158)
याः-
.... तो उन्हें जो महर तय किया है दे दो और महर के तय होने के बाद अगर आपस में (कम व ज़्यादा पर) राज़ी हो (मान) जाओ तो इसमें तुम पर कुछ गुनाह नहीं है। बेशक खुदा (हर चीज़ से) वाकिफ़ (जानने वाला) और मसलहतों (भलाइयों) का पहचान ने वाला है। ( 159)
अर्थात महर माफ़ करना या आपस में कमी या ज़्यादती पर राज़ी हो जाना शरई हिसाब से ठीक है।
खुतबः और निकाह के सीग़ेः- महर के तय होने के बाद निकाह की बारी आती है। जिसमें सब से पहले निकाह का खुतबः ( 160) पढ़ना चाहिए और उसके बाद निकाह के सीग़े जारी करना चाहिए। जिसे कई तरह से पढ़ा जा सकता है। मर्द और औरत के अलग-अलग वकील (आम तौर से यही तरीक़ा प्रचलित है) , मर्द और औरत खुद (स्वयं) , मर्द खुद औरत का वकील , मर्द और औरत दोनों नाबालिग़ होने पर दोनों के वली (संरक्षक , अभिभावक) के अलग-अलग वकील , एक ही व्यक्ति मर्द और औरत दोनों का वकील आदि निकाह के सीग़े जारी कर सकते हैं।
निकाह के सीग़े जारी होने अर्थात ईजाब व क़ुबूल के बाद मर्द और औरत दोनों ससुराल वाले हो जाते हैं। जिसके लिए क़ुर्आन में मिलता हैः-
और वही तो वह (खुदा) है जिस ने पानी (मनी अर्थात वीर्य) से आदमी को पैदा किया फिर उसको खानदान और ससुराल वाला बनाया। ( 161)
निकाह के बाद निकाह मे शरीक़ लोगों को चाहिए कि दूल्हा और दुल्हन को ख़ैर व बरकत की दुआऐं दें और पति (शौहर) अपनी धर्म पत्नी (ज़ौजअः-ए-मनकूहा) को निकाह व महर को सनद लिख कर दे जो की निकाहः नामा कहलाता है। इसी मौक़े पर निकाह में शरीक होने वाले लोगों की दावत करें। क्योंकि यह पैग़म्बरों (अ.) की सुन्नत है। रसूल-ए-खुदा (स ,) का इर्शाद हैः-
निकाह के वक़्त खाना पैग़म्बरों की सुन्नत है। ( 162)
रुख़्सती (विदाई) व दुआ
निकाह के बाद हर खानदान में दुल्हन के घर में कुछ खास रस्में अदा की जाती हैं और बाद में रुखसती है। उस वक़्त अल्लाहो अकबर पढ़ना सुन्नत है ( 163) (आम तौर से अज़ान दी जाती है जिसमें कोई नुकसान नहीं) इस मौक़े पर हर माता-पिता को चाहिए कि वह अपनी बेटी को उसके नए घर और नए माहौल में जाने के आदाब (तौर तरीक़े) पति के साथ रहन-सहन के तरीक़े , और उसकी ज़िम्मेदारियों और हुक़ूक़ से सम्बन्धित वसीयत और नसीहत करें। क्योंकि यह नसीहत वह महान नेअमत (तोहफ़ा) है जिस पर अमल करने से लड़की की पूरी ज़िन्दगी , हंसते खेलते और खुश रहते हुवे व्यतीत होती है। जिसकी हर माता-पिता ख्वाहिश करता है।
बहरहाल रूख्सती के बाद जिस वक़्त दूल्हा (लड़का) दुल्हन (लड़की अर्थात धर्म पत्नी) को अपने घर लोए तो उसे हज़रत अली (अ ,) की बतायी हुवी यह दुआ पढ़ना चाहिएः-
अल्लाहुम्मा बे कलेमातेका असतहललतोहा व बेअमानतेका अख़ज़तोहा अल्लाहुम्म- जअलहा वलूदाँव व दूदन ला तफ़रको ताकोलो मिममा राहा व ला तसअलो अम्मा साराहा।
अर्थात ए अल्लाह मैने तेरे कलाम-ए-मुक़ददस (पाक व पाकीज़ा कलाम) से अपने लिए हलाल किया और तेरी हिफाज़त में इसे लिया , या अल्लाह इससे औलाद बहुत ज़्यादा पैदा हो। मुझ से इसे मुहब्बत रहे और कभी दुश्मनी न हो। जो मिले खाले और जो मिल जाए पहन लें। ( 164)
और इमाम-ए-जाफर-ए-सादिक़ (अ ,) ने बताया है कि यह दुआ पढ़ेः-
बे कलेमातिल्लाहे इस तहललकतो फरजहा व फी अमानतिल्लाहे अखज़तोहा अल्लाहुम्मा इन क़ज़ैता ली फी रहमेहा शैअन फजअलहो बररन तक़ीय्यवं वजअलहो मुसललमन सविय्यन व ला तजअल फीहे शिरकन लिश्शैतान।
अर्थात मैनें अल्लाह के कलेमात मुक़ददस से इसकी योनि (अन्दामेनिहानी) को अपने ऊपर हलाल और अल्लाह के अमान में इसको लिया। ए खुदा- अगर तू ने इसके गर्भ से मेरे लिए कोई चीज़ तय की है तो उसको पाक व पाकीज़ा , हर तरह से सहीह व सालिम व पूर्ण बना। जिसमें शैतान का कोई हिस्सा न हो। ( 165)
इमाम-ए-जाफर-ए-सादिक़ (अ ,) से भी यह नक़्ल है कि जब दूल्हा दुल्हन को विदा करा के अपने घर में लाए तो दूल्हा और दुल्हन दोनों क़िबले की ओर मुँह करके खड़े हो जायें और दूल्हा अपना दाहिना हाथ दुल्हन के माथे पर रखकर यह दुआ पढ़ेः-
अल्लाहुम्मा अला किताबेका तज़व्वजतोहा व फी अमानतेका अखज़तोहा व बेकलेमातेका इसतहललतो फरजहा फाइन कज़ैता ली फी रहमेहा शैअन फजअलहो मोसल्लामन सविय्यन वला तजअलहो शिरका शैतानिन।
अर्थात ए अल्लाह – मैने तेरी किताब के क़ानून के अनुसार इस से निकाह किया है और तेरी हिफाज़त में इसको लिया है और तेरे पाक व पाकीज़ा कलमात से इस की योनि (अन्दामेनिहानी) को अपने लिए हलाल किया हैः अतः अगर तूने इस के गर्भाशय से मेरे लिए कोई चीज़ तय की है तो उसको पूर्ण और सहीह व सालिम बना और उसमें शैतान का हिस्सा न होने पाए। ( 166)
फिर दुल्हन के दोनों पैर एक बर्तन में धोये जायें और उस पानी को घर के कोने कोने छिड़क दें। क्योंकि यह खैर व बरकत के लिए होता है। मिलता है कि पैग़म्बर-ए-इस्लाम (स ,) ने हज़रत अली (अ ,) को वसीअत फ़र्मायी किः-
ऐ अली (अ ,)। जब दुल्हन तुम्हारे घर आए तो उसकी जूतियाँ उतरवा दो कि वह बैठे। फिर उसके पैर धुलवा कर उस घर के दर्वाज़े से पीछली दीवार तक सब जगह छिड़कवा दो कि ऐसा करने से सत्तर हज़ार किस्म की बरकतें दाखिल होंगी। सत्तर हज़ार तरह की रहमतें तुम पर और उस दुल्हन पर नाज़िल होंगी। उस रहमत की बरकत उस मकान के हर कोने में पहुँचेगी और वह दुल्हन जब तक उस मकान में रहेगी दीवानगी और कोढ़ की बीमारियों से बची रहेगी। ( 167)
यह है इस्लामी शिक्षाऐं। जो संभोग का समय करीब आने से पहले ही दूल्हा को हर-हर क़दम पर अपने लिए ख़ैर व बरकत की दुआऐं करने , शैतान से बचे रहने , नेक , सहीह व सालिम अर्थात पूर्ण औलाद न होने , परेशानियों से दूर होने , रहमतें और बरकतें नाज़िल होने आदि से सम्बन्धित दुआऐं और अमल की शीक्षा देता है। साथ ही साथ दूल्हा के दिमाग़ में यह बात बैठा देना चाहता है के तुम्हारे लिए दुल्हन के पैर का धोवन ( 168) भी रहमत व बरकत का कारण होता है न कि ज़हमत और परेशानी का ----------- तो घर में दुल्हन का रहना कितना ज़्यादा बरकत का कारण होगा --------- अतः हर सच्चे मुसलमान मर्द (पति) पर औरत (पत्नी) का आदर करना और उसकी हयात व वुजूद को बाक़ी रखना ( 169) आव्यशक है। ताकि घर पर हमेशा खुदा की रहमत व बरकत बनी रहे।
बहरहाल हर खानदान में दुल्हन आने के बाद दूल्हा के घर भी कुछ मुख्य रस्में अदा होती हैं। उसके बाद दूल्हा को दुल्हन के पास लाया जाता है और केवल दूल्हा से दुल्हन के आँचल पर दो रकअत नमाज़ पढ़ाई जाती है (जो रस्म सी बन गई है) जबकि इमाम-ए-मुहम्मद-ए-बाक़िर (अ.) ने दूल्हा और दुल्हन दोनों को दो दो रकअत नमाज़ पढ़ने की शीक्षा दी है और इसकी ज़िम्मेदारी दूल्हा को दी है। ( 170) मिलता है किः-
जब दुल्हन को तुम्हारे पास लायें तो उससे कहो कि पहले वज़ू कर ले और तुम भी वज़ू कर लो और वह दो रकअत नमाज़ पढ़े और तुम भी दो रकअत नमाज़ पढ़ो। इसके बाद खुदा की तारीफ करो और मुहम्मद (स ,) व आले मुहम्मद (अ.) पर दुरूद भेजो फिर दुआ मांगो और जो औरत दुल्हन के साथ आई हों उन से कहो वो सब आमीन कहें और यह दुआ पढ़ोः-
अल्लाहुम्मर ज़ुक़नी उलफताहा व वुददहा व रेज़ाहा वरज़ेनी बेहा वजमऊ बैनना बे अहसनिजतेमाईन व ऐसरे ईतेलाफिन फइन्नका तोहिब्बुल हलाला व तुकरेहुल हरामा
(अर्थात या अल्लाह। मुझे इस औरत की मुहब्बत , प्रेम , दोस्ती और खुशी अता कर और मुझे इस से राज़ी रख और मेरे और इसके बीच मुहब्बत व प्रेम बनाए रख क्योंकि तू हलाल को पसन्द करता है और हराम से नाराज़ है) इसके बाद इमाम (अ ,) ने इर्शाद फ़र्माया यह याद रखो कि प्रेम व मुहब्बत खुदा की तरफ से है और दुश्मनी शैतान की तरफ से और शैतान यह चाहता है कि जिस चीज़ को खुदा ने हलाल किया है आदमियों की तबीयतें (रूचियाँ) किसी न किसी तरह उससे फिर जायें। ( 171)
इसके बाद धीरे धीरे वह समय करीब आने लगता है जिसका इन्तिज़ार औरत और मर्द को जवानी में क़दम रखने से पहले से होता है। प्राकृतिक तौर पर दूल्हा और दुल्हन की धड़कने तेज़ हो जाती हैं , दोनो में ख़ास मुहब्बत और लगाव की प्रवृत्ति पैदा हो जाती है , दोनो उचित और हलाल प्राकृतिक सेक्सी इच्छा की पूर्ति के लिए बेचैन होते हैं। यहाँ तक की दोनों को सेक्सी क्रिया (अमल) की आखिरी हरकत जिमाअ (मैथुन , संभोग) (जिसके शरई उसूल और क़ानून अगले अध्याय में लिखे जायेंगे) के लिए एकान्त (अर्थात कमरे) में भेज दिया जाता है। जो प्राकृतिक धर्म इस्लाम की दृष्टि में शादी का असल और बुनियादी तात्पर्य होता है। जिसके लिए दूल्हा और दुल्हन धार्मिक और सामाजिक रूप से पूरे जीवन के लिए पूरी तरह स्वतन्त्र (आज़ाद) होते हैं। इसी को सुहाग रात कहा जाता है। जो बेहद जज़बाती (भावुक) , खुशी अता करने वाली और नशीली होती है। ऐसे समय पर भी अपनी भावनाओं और इच्छाओं (ख्वाहिशात) पर काबू रखना और शरीअत के तय की हुवी हदों से क़दम बाहर न निकालना कोई आसान काम नहीं है।
इस्लामी शीक्षाओं ने इस बेहद भावुक , खुशीयों से भरी हुई और नशीली रात को भी खुदा के ज़िक्र (की याद) और दुआ से भर दिया है। इमाम-ए-जाफर-ए-सादिक़ (अ.) ने बताया है कि जब दूल्हा संभोग के लिए पहली बार दुल्हन के पास जाए तो उसकी पेशानी (माथे) के बाल पकड़ कर क़िबले की ओर मुँह करे और यह दुआ पढ़ेः-
अल्लाहुम्मा बे अमानतेका अखज़तोहा व बेकलेमातेका असतहललतोहा फइन क़ज़ैता ली मिनहा वलादन फजअलहो मुबारकन तकिय्यन मिन शीअते आले मुहम्मदिव व ला तजअल लिशशैताने फीहे शिरकांव वला नसीबा।
अर्थातऐअल्लाह। मैने तेरी हिफाज़त से इसे लिया और तेरे कलामात से अपने ऊपर इसे हलाल किया अब अगर तूने इसके गर्भ से मेरे लिए कोई बच्चा तय किया है तो उसे मुबारक व पाकीज़ा और आले मुहम्मद (अ.) के शीओं मे से बना , उसमें शैतान का कोई हिस्सा न हो। ( 172)
और जब किसी ने मासूम (अ.) से सवाल किया कि बच्चा शैतान का हिस्सा क्योंकर बन सकता है तो फ़र्मायाः
अगर संभोग के समय खुदा का नाम लिया गया है तो शैतान दूर हो जाएगा और अगर नही लिया गया है तो वह अपना लिंग उस व्यक्ति के लिंग के साथ दाखिल कर देगा। फिर रावी ने पूछा कि यह क्योंकर जानें कि किसी व्यक्ति में शैतान शरीक हुआ है या नहीं। फ़र्माया जो व्यक्ति हमें दोस्त रखता है उसमें शैतान शरीक नहीं हुआ और जो हमारा दुश्मन है उसमें ज़रूर शरीक हुआ है। ( 173)
किसी पूछने वाले ने यह पूछा कि आदमी के वीर्य में शैतान के शरीक होने की रोक थाम क्योंकर हो सकती है तो आप ने फ़र्मायाः- जिस समय संभोग का इरादः हो यह पढ़ो
बिस्मिल्लाह हिर् रहमान निर् रहीमिल लज़ी ला इलाहा इल्ला होवा बदीउस्समावाते वलअरज़े अल्लाहुम्मा इन क़ज़ैता मिन्नी फी हाज़ेहिल लैलते ख़लीफतन फला तजअल लिश्शैताने फीहे शिरकाँव व ला नसीबाँव व ला हज़्ज़ा वजअलहो मोमिनम मुखलेसम मुसफ्फम मिनश्शैतान व रिज़जहू जल्ला सनाअका।
अर्थात मै उस खुदा के नाम से शुरू करता हूँ जो बड़ा रहम करने वाला और महरबान है। उसके अलावा और कोई खुदा नहीं वह आसमान और ज़मीन का पैदा करने वाला है या अल्लाह अगर तूने इस रात में मेरा वारिस (उत्तराधिकारी) मेरे वीर्य से पैदा करना तय किया है तो इस में शैतान का कोई हिस्सा न हो बल्कि इसको पूर्ण रूप से मोमिन बना जो शैतान और पहली बुराईयों से दूर हो। तेरी तारीफ़ (वंदना) हमारी ताक़त से बहुत ज़्यादा है। ( 174)
खुद और बच्चे को शैतान से बचाने के लिए ही हज़रत अली (अ.) ने मैथुन के समय यह दुआ पढने को बतायी हैः
बिस्मिल्लाह व बिल्लाहे अल्लाहुम्मा जन्निबनी व जन्नेबिश्शैतान अम्मा रज़कतनी।
अर्थात मैं अल्लाह के नाम और अल्लाह की मदद से आरम्भ करता हूँ या अल्लाह तू मुझको शैतान से बचा और जो औलाद मुझे दे उसे भी शैतान से बचाना। ( 175)
और पैग़म्बर-ए-इस्लाम ने इर्शाद फ़र्माया कि जब तुम में से कोई व्यक्ति से संभोग करना चाहे तो यह दुआ पढ़े।
बिस्मिल्लाहे अल्लाहुम्मा जन्निबनश्शैताना व जन्नेबिश्शैताना मा रज़कतना।
अर्थात अल्लाह के नाम से आरम्भ करता हूँ ,ऐअल्लाह तू हमें शैतान से बचा और शैतान को उस चीज़ से अलग रख जो तू हमें अता करे। ( 176)
और यह फ़र्माया कि जब अगर बच्चा पैदा होगा तो शैतान कदापि उसको नुक़सान (हानि) न पहुँचा सकेगा। शैतान से बचने के लिए सबसे आसान तरीक़ा यह बताया गया है कि बिस्मिल्लाह और आऊज़ो बिल्लाह पढ़ ले। ( 177) और इमाम-ए-मुहम्मद-ए-बाक़िर (अ ,) ने बताया है कि सेक्सी मिलाप अर्थात संभोग के समय यह दुआ पढ़ोः
अल्लाहुम्मर ज़ुकनी वलदाँव वज अल्हो तक़ीययन ज़कीय्यन लैसा फी ख़लक़ेही ज़ियादतुँव व ला नुकसानुन वजअल आकेबताहू इला खैरिन।
अर्थात या अल्लाह मुझे एक ऐसी औलाद दो जो पाक व साफ हो और उसकी पैदाईश में कमी या ज़्यादती न हो अर्थात् पूर्ण हो और उसका अन्त अच्छा हो। ( 178)
इसका मतलब यह है कि इस्लाम धर्म के शिक्षकों (अर्थात् आइम्मः-ए-मासूमीन (अ.)) ने जाएज़ सेक्सी इच्छा की पूर्ति का ख़्याल पैदा होने से लेकर मैथुन की आख़िरी मंज़िल तक खुदा की याद को बाक़ी रखने , नेक साथी की तमन्ना करने , शैतान से बचे रहने , नेक और पूर्ण औलाद पैदा होने की दुआ करने से सम्बन्धित दुआओं की शिक्षा दी है ताकि औरत और मर्द की भावनाऐं पाकीज़ा रहें और वह ईश्वर से दुआ भी करे तो पाक दामनी के साथ नेक औलाद की दुआ करें।
बहरहाल सुहागरात ( 179) (शबे ज़ुफ़ाफ) के बाद भी दुआओं के इस क्रम को बाक़ी रखने के लिए इस्लाम धर्म ने दूल्हा और दुल्हन पर , मुसतहिब करार दिया है कि वह घर में आए और सभी रिश्तेदारों को सलाम करें और उनके लिए दुआ करें। साथ ही साथ रिश्तेदारों के लिए भी मुसतहिब है कि वह दूल्हा और दुल्हन को ख़ैर और बरकत की दुआऐं दें।
दावत-ए-वलामः- इसके बाद ज़रूरी है कि दावत-ए-वलीमः (अर्थात विवाह भोज , बहू-भोज , महमानी के खाने) का इन्तिज़ाम करे ताकि लोगों को औरत और मर्द के जाएज़ सेक्सी मिलाप का इल्म (ज्ञान) हो सके। इसी दावत-ए-वलीमः के लिए रसूल-ए-खुदा (स.) ने इर्शाद फ़र्माया है किः
वलीमः पहले दिन ज़रूरी है दूसरे दिन कोई हरज (नुकसान) नहीं और तीसरे दिन रियाकारी (ढ़ोंग) है। ( 180)
और वलीमः के दिन में होने से सम्बन्धित मिलता है किः
निकाह का रात में होना सुन्नत है और वलीमः दिन में तैय्यार कराना सुन्नत है।
वलीमे के अवसर पर भी मुसतहिब है कि दावत-ए-वलीमः में शरीक होने वाले लोग दूल्हा और दुल्हन को ख़ैर व बरकत की दुआऐं दें।
शादी का बुनियादी तात्पर्य –संभोगः- इन सभी मंज़िलों से गुज़रने के बाद औरत औऱ मर्द एक दूसरे से हर तरह का (मुख्य रूप से मैथुन , संभोग अर्थात सेक्सी) का स्वाद उठा सकते हैं। जिसके लिए शादी का क़दम उठाया जाता है और यही शादी का वास्तविक और बुनियादी तात्पर्य भी होता है।
अगर इस्लाम की दृष्टि में शादी का वास्तविक और बुनियादी तात्पर्य मैथुन (अर्थात औरत और मर्द का शारीरिक और सेक्सी मिलाप) न होता तो इस्लाम धर्म , सेक्सी इच्छाओं की पूर्ति के न होने की सूरत में औरत और मर्द दोनों को बिना किसी तलाक़ के निकाह तोड़ देने का हक़ न देता। मसाएल में मिलता है किः
अगर औरत को निकाह के बाद मालूम हो जाए कि उसका पति निकाह से पहले दीवाना (पागल) था या बाद में दीवाना हुआ है या उसे पता चल जाये कि वह लिंग नही रखता या नामर्द है और संभोग नही कर सकता या निकाह के बाद संभोग करने से पहले ही नामर्द हो जाए या उसका अंड कोष निकाह से पहले निकाल दिया गया हो तो वह (अगर चाहे तो) निकाह को तोड़ सकती है। ( 182)
इसी तरहः
अगर मर्द को निकाह के बाद मालूम हो जाए कि औरत दीवानी (पागल) है या उसको कोढ़ है , या उसके सफेद दाग़ है , या वह अन्धी है या फालिज (लक़वे) आदि के कारण चलने उठने के लायक़ नही है , या उसके पेशाब और हैज़ का रास्ता या हैज़ और पाखाने का रास्ता एक हो गया है या उसकी शर्मगाह (योनि) में ऐसा गोश्त या हड्डी है जिसके कारण संभोग नही किया जा सकता है तो वह (अगर चाहे तो) निकाह को तोड़ सकता है। ( 183)
इनमें औरत और मर्द की कुछ बुराईयों (अर्थात पागलपन , कोढ़ , सफेद दाग आदि) ऐसे हैं जो दिमाग़ी सुकून पर बार होते हैं और कुछ बुराईयों (अर्थात लिंग न होना , संभोग के लायक न होना , पेशाब और हैज़ या हैज़ और पाखाने का रास्ता एक होना , योनि में अलग का गोश्त या हड्डी होना) ऐसे हैं जो शादी के असल तात्पर्य के ही विपरीत है। इसलिए इस्लाम धर्म ने बिना तलाक़ के निकाह को तोड़ देने का हक़ (अधिकार) दोनों (औरत और मर्द) को दिया है ताकि वह अपनी सेक्सी इच्छा की पूर्ति के लिए दूसरे को तलाश करें और दिमाग़ी सुकून तथा प्राकृतिक सेक्सी इच्छा की पूर्ति कर सकें। क्योंकि इसका सम्बन्ध मर्द और औरत की पूरी ज़िन्दगी से रहता है।
पांचवा अध्याय
मैथुन के तरीक़े
अ- मैथुन की मनाही
ब- घ्रणित मैथुन
स- पुनीत मैथुन
द- अनिवार्य मैथुन
य- वज़ू और दुआ
र- एकान्त
ल- मसास व दस्तबाज़ी
व- स्नान व तयम्मुम
श- मैथुन के राज़ को बयान करने की मनाही
ष- संतान
स- संतान की शिक्षा और प्रशिक्षण
ह- मर्द और औरत के अधिकार
चूँकि इस्लाम की दृष्टि में शादी का वास्तविक और बुनियादी तात्पर्य शिष्टाचार (अख़्लाक़) और पाकदामनी (इस्मत) की हिफाज़त करते हुए औरत और मर्द का एक दूसरे के उचित (जाएज़ , हलाल) अंगों से सेक्सी इच्छा की पूर्ति करना है। जिसका सम्बन्ध औऱत और मर्द के पूरे जीवन से रहता है। इसीलिए इस्लाम धर्म ने रोज़े की हालत में , एतिक़ाफ़ (एकान्त वास अर्थात एकान्त में ईश्वर की तपस्या) की सूरत में और औरत के खूने हैज़ (अर्थात मासिकधर्म) निफास (रक्त स्राव जो प्रसूतिका के शरीर से बच्चा जनने के चालिस दिन तक होता रहता है) आने की सूरत के अतिरिक्त किसी और समय पर एक दूसरे से सेक्सी इच्छा की पूर्ति करने में रूकावट नही डाली है। मगर यह कि इस्लाम के शिक्षकों (आइम्मः-ए-मासूमीन (अ.) ने कुछ ऐसे अवसरों या हलाल की ओर इशारा ज़रूर किया है जिसका असर (प्रभाव) पति या पत्नी या संतान पर पड़ता है। जिसके नतीजे में पति और पत्नी में जुदाई (अलगाव) या औलाद नेक , बुरी होती है , और अधिकतर अवसरों में संतान में कुछ शारीरिक कमीयां भी हो जाती हैं। जबकि सेक्सी मिलाप के द्वारा मिलने वाले औलाद जैसे महान फल के नेक और हर प्रकार की शारीरिक कमियों से दूर होने के प्रत्येक माता-पिता तमन्ना (इच्छा) करते हैं। अतः ज़रूरी है कि पति और पत्नी दोनों को सेक्सी इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए संभोग के शरई (धार्मिक) तरीकों का ज्ञान होना चाहिए ताकि वह हराम (मनाही) , मक्रूह (घ्रणित) , मुस्तहिब (पुनीत) और वाजिब (अनिवार्य) को ध्यान में रखते हुवे एक दूसरे से स्वाद और आन्नद उठा सकें। पाकीज़गी बाक़ी रख सकें और सेक्सी मिलाप से मिलने वाला फल (औलाद) नेक और हर तरह की शारीरिक बुराईयों और कमियों से पाक हो।
मैथुन की मनाही
याद रखना चाहिए कि इस्लामी शरीअत के उसूलों और क़ानूनों के अनुसार जीवन व्यतीत करने वाले सच्चे मुसलमान का एक-एक क़दम और एक-एक कार्य अज्र व सवाब (पुण्य) के लिए होता है। जिसमें जीवन के सभी हिस्सों के साथ-साथ औरत और मर्द की मैथुन क्रिया भी है। इसमें भी इस्लामी शरीअत ने पवित्रता (तक़द्दुस) का रंग भर दिया है।
रसूल-ए-खुदा (स ,) ने इर्शाद फ़र्मायाः
तुम लोग जो अपने बीवीयों के पास जाते हो यह भी पुण्य का कारण है। सहाबा ने पूछा या रसूल्लाह (स.)। हम में का कोई व्यक्ति अपनी सेक्सी इच्छा की पूर्ति करता है और इसमें क्या उसको सवाब (पुण्य) मिलेगा ? आप ने फ़र्माया तुम्हारा क्या ख़्याल (विचार) है , यदि वह अपनी इच्छा हराम (ग़लत) तरीक़े से पूरी करे तो गुनाह (पाप) होगा या नही ? सहाबा जवाब दिया हाँ , गुनाह होगा। आप ने फ़र्माया तो इसी तरह जब वह हलाल (सहीह) तरीक़े से अपनी सेक्सी इच्छा पूरी करे तो उस से सवाब मिलेगा। ( 184)
इस्लाम धर्म ने जहाँ औरत और मर्द का एक दूसरे से अपनी सेक्सी इच्छा को पूरा करना सवाब और पुण्य का कारण हुवा करता है वहीं कुछ मौकों पर हराम होने की वजह से पाप और अज़ाब का कारण हो जाता है।
1.याद रखना चाहिए की औरत की योनि (जहाँ संभोग के समय मर्द अपना लिंग दाखिल करता है) के रास्ते से प्राकृतिक तौर पर प्रत्येक माह ( 185) तीन से दस दिन तक खूने हैज़ (अर्थात मासिक धर्म) आता है। उस हालत में औरत से संभोग करना हराम है। क्योंकि उस हालत में संभोग करना औरत और मर्द दोनों के लिए शारीरिक तकलीफों और आतशक व सोज़ाक जैसी भयानक बीमारियों के पैदा होने और गर्भ ठहरने पर बच्चे में कोढ़ और सफेद दाग की बीमारी होने का कारण होता है। जबकि इस्लाम धर्म मनुष्य को तन्दुरूस्त और निरोग देखना चाहता है। इसी लिए इस्लाम धर्म ने हैज़ आने के दिनों में संभोग को हराम (अर्थात वह काम जिसके करने पर पाप हो) करार दिया है। क़ुर्आन-ए-करीम में मिलता हैः
(ए रसूल (स )) तुम से लोग हैज़ के बारे में पूछते हैं। तुम उनसे कह दो कि यह गन्दगी और घिन बीमारी है तो हैज़ (के दिनों) में तुम औरतों से अलग रहो और जब तक वह पाक (अर्थात खून आना बन्द) न हो जाए उनके पास न जाओ। फिर जब वह पाक हो जायें तो जिधर से तुम्हे खुदा ने आदेश (हुक्म) दिया है उनके पास जाओ। बेशक खुदा तौबहः करने वालों और साफ सुथरे लोगों को पसन्द करता है। ( 186)
चूँकि हैज़ के ज़माने में औरत की तबीअत खून निकलने की ओर लगी रहती है और मैथुन से कार्य करने की कुव्वत में हैजान (बेचैनी) होती है और दोनों कुव्वतों के एक दूसरे के विपरीत होने की वजह से तबीअत को जो बदन की बादशाह है हैजान होता है और उसी की वजह से विभिन्न तरह की बीमारियां होती हैं। इसके अतिरिक्त मर्द की सेक्सी इच्छा मैथुन के समय मनी (वीर्य) निकालने की तरफ लगी रहती है और शरीर के रोम-कूप (मसामात) खुल जाते है और खूने हैज़ से बुखारात (भाप) बुलन्द (ऊपर उठकर) हो कर बुरे असर (प्रभाव) डालती है। इसके अलावा खुद खून भी मर्द के लिंग के सूराख़ में दाखिल होकर सोजाक आदि जैसी बीमारी पैदा करने का कारण होता है। इन्ही कारणों से शरीअत ने हैज़ की हालत मे मैथुन क्रिया को पूरी तरह से हराम करार दिया है। ( 187)
-आदाब-ए-ज़वाज- के लेखक ने लिखा है कि हायजः औरत (अर्थात वह औऱत जिसके खूने हैज़ आ रहा हो) से मैथुन करने की मनाही (हराम होने , हुरमत) में दो युक्तियाँ हैं। एक मासिक धर्म की गन्दगी जिससे मनुष्य की तबीयत घ्रणित (कराहियत) करती है। दूसरे यह कि मर्द और औरत को बहुत से शारीरिक नुक़सान पहुँचते है। चुनाँचे आधुनिक चिकित्सा ने हायजः औरत से मैथुन की जिन हानियों व बिमारियों को स्पष्ट किया है उनमे से दो मुख्य और अहम हैं। एक यह कि औरत के लिंग में दर्द पैदा हो जाता है औऱ कभी कभी गर्भाशय में जलन पैदा हो जाती है। जिससे गर्भाशय खराब हो जाता है और औरत बांझ हो जाती है। दूसरा यह कि हैज़ के कीटाणु (मवाद) मर्द के लिंग में पहुँच जाते हैं जिस से कभी कभी पीप जैसा माददः (पदार्थ) बनकर जलन पैदा करता है। और कभी कभी यह पदार्थ फैलता हुआ अंडकोष तक पहुँच जाता है और उनको तकलीफ देता है। आखिरकार (अन्त में) मर्द बांझ हो जाता है , इस प्रकार की और भी बीमारियाँ और तकलीफें पैदा होती है। जिसको दृष्टिगत रखते हुवे सभी आधुनिक चिकित्सक इस बात को मानते हैं कि हैज़ आने की हालत में मैथुन क्रिया से दूर रहना अनिवार्य है। यह ऐसी वास्तविकता है जिसे हज़ारों साल पहले कुर्आन-ए-हकीम ने बताया था यह भी कुर्आन-ए-करीम का मौजिजः हैः-( 188)
ऐसी (अर्थात खूने हैज़ आने की) सूरत (हालत) में इस्लामी शरीअत ने यह अनुमति (इजाज़त) ज़रूर दे रखी है कि संभोग के अलावा औरत के शरीर का बोसा लेना , प्यार करना छातियों से खेलना , साथ लेटना और सोना , शरीर से शरीर मिलाना संक्षिप्त यह कि किसी भी तरह से स्वाद व आन्नद उठाना जाएज़ है। ( 189)
वरना संभोग के कर गुज़रने का खतरा होने की सूरत में बीवी से दूर रहना ही बेहतर (उचित) है। लेकिन फिर भी अगर कोई व्यक्ति अपनी सेक्सी इच्छाओं को काबू न कर पाने की सूरत में संभोग कर बैठे तो शरीअत ने उस पर कफ्फारः (जुर्माना) लगाया है। ( 190)
मसाएल में यहाँ तक मिलता है कि हायज़ः औरत की योनि (अर्थात आगे के सूराख) में मर्द के लिंग के खतरे वाली जगह से कम हिस्सा भी दाखिल न हो। ( 191)
2.खूने हैज़ आने की हालत में मर्द कभी-कभी (बीमारी आदि के डर से) औरत के आगे के सूराख को छोड़कर पीछे के सूराख में अपना लिंग इस ख्याल से दाखिल कर देता है कि खूने हैज़ पीछे के सूराख से नही आ रहा है अर्थात वह पाक है। या यह कहा जाए कि वह आगे और पीछे दोनों सूराखों को एक ही जैसा समझता है। जबकि कुछ आलिमों (विद्वानों) ने पीछे के सूराख में लिंग को दाखिल करना हराम और कुछ ने सख्त मकरूह माना है। रसूल-ए-खुदा का इर्शाद है किः-
उस व्यक्ति पर अल्लाह की लानत है जो अपनी औरत के पास उसके पीछे के रास्ते में आता है। ( 192)
और जामेअ तिरमिज़ी में हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास से रिवायत है किः
अल्लाह तआला (क़यामत के दिन) उस व्यक्ति की ओर निगाह उठा कर नही देखेगा जो किसी मर्द या किसी औरत के पास पीछे के रास्ते में आएगा। ( 193)
क्योंकि पीछे के रास्ते में लिगं दाखिल करने और वीर्य के निकलने से वीर्य नष्ट (बेकार) हो जाता है और इस्लामी शरीअत कदापि पसन्द नही करती कि प्राकृतिक तौर पर तैय्यार होने वाले क़ीमती जौहर (मूल्यवान वीर्य) को नष्ट होने दिया जाए। इसीलिए इस्लाम ने गुदमैथुन को हराम करार दिया है। क्योंकि इसमें वीर्य नष्ट हो जाता है। ध्यान देने योग्य बात है कि अगर हैज़ आने के दिनों में औरत के पीछे के सूराख में लिंग को दाखिल करने की अनुमति होती तो हैज़ आने के दिनों में औरत से दूर रहने (अर्थात मैथुन न करने) का हुक्म नही दिया जाता और यह कहा जाता किः
फिर जब वह पाक हो जाए तो जिधर से तुम्हे खुदा ने हुक्म दिया है उनके पास जाओ। बेशक खुदा तौबा करने वालों और पाक व पाकीज़ा लोगों को पसन्द करता है। ( 194)
अर्थात हर हालत में औरत के पास जाने का आदेश केवल उनके आगे के सूराख मे है----- और पाक होने का अर्थ विद्वानों ने खूने हैज़ का आना बन्द हो जाना माना है न कि स्नान करना।
मसाएल में मिलता है किः
जब औरत हैज़ से पाक हो जाए चाहे अभी स्नान न किया हो उसको तलाक़ देना सहीह है और उसका पति उस से संभोग भी कर सकता है और उचित यह है कि संभोग से पहले योनि के स्थान को धो ले , फिर भी यह मुसतहिब है कि स्नान करने से पहले संभोग करने से बचा रहे। लेकिन दूसरे काम जो हैज़ की हालत में हराम थे (अर्थात जिसकी मनाही थी) जैसे मस्जिद में ठहरना , क़ुर्आन के शब्दों को छूना अब भी हराम है जब तक स्नान न कर ले। ( 195)
अर्थात खूने हैज़ आना बन्द हो जाने की सूरत में शर्मगाह (योनि) को धोकर संभोग किया जा सकता है। विद्वानों ने यह भी लिखा है कि उचित यह है कि स्नान के बाद ही संभोग करे।
3.खूने हैज़ की तरह खूने नफ़ास (रक्तस्राव , अर्थात वह खून जो बच्चा पैदा होने के बाद औरत की योनि से निकलता है) आने की हालत में भी औरत से संभोग करना हराम है। मसाएल में मिलता है किः
नफ़ास की हालत में औरत को तलाक़ देना और उससे संभोग करना हराम है लेकिन यदि उस से संभोग किया जाये कफ्फारः (जुर्मानः) वाजिब नहीं है। ( 196)
4.इस्लामी शरीअत ने औरत और मर्द को सेक्सी इच्छा की पूर्ति की पूरी आज़ादी देने के साथ-साथ रोज़े की हालत में संभोग की मनाही की है। क्योंकि रोज़ः बातिल (टूट) हो जाता है। मसाएल में मिलता है किः
संभोग से रोज़ः टूट जाता है। चाहे केवल खतने का हिस्सः ही अन्दर दाखिल हो और वीर्य भी बाहर न निकले। ( 197)
जबकि रोज़ो (अर्थात रमज़ान के महीने और रोज़ो) की रातों में अपनी बीवी से संभोग करना जाएज़ और हलाल है।
क़ुर्आन-ए-करीम में हैः
(मुस्लमानों) तुम्हारे लिए रोज़ों की रातों मे अपनी बीवीयों के पास जाना हलाल कर दिया गया , औरतें तुम्हारी चोलीं है और तुम उसके दामन हो , खुदा ने देखा तुम (पाप करके) अपनी हानि करते थे (कि आँख बचाके अपनी बीवी के पास चले जाते थे) तो उसने तुम्हारी तौबः कुबूल की (स्वीकृति कर ली) और तुम्हारी ग़लती को माफ कर दिया। अब तुम उस से संभोग करो और (संतान से) जो कुछ खुदा ने तुम्हारे लिए (भाग्य में) लिख दिया है उसे मांगो और खाओ पियो। यहाँ तक कि सुबह की सफ़ेद धारी (रात की) काली धारी से आसमान पर पूर्व की ओर तुम्हें साफ दिखाई देने लगे। फिर रात तक रोज़ा पूरा करो और (हाँ) जब तुम मस्जिदों में एतिकाफ़ (एकान्त में ईशवर की तपस्या) करने बैठो तो उनसे (रात को भी) संभोग न करो। यह खुदा की (तय की हुवी) हदें हैं। तो तुम उनके पास भी न जाना यूँ बिल्कुल स्पष्ट रूप से खुदा अपने क़ानूनों को लोगो के सामने बयान करता है ताकि वह लोग (क़ानून उल्लघंन) से बचें। ( 198)
5.क़ुर्आन की उपर्युक्त आयत से यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि एतिकाफ़ की हालत में संभोग की मनाही की गयी है। मसाएल में यह भी मिलता है किः
औरत से संभोग करना और सावधानी (अहतियात) के रूप में उसे छूना , सेक्स के साथ बोसा देना (प्यार करना) चाहे मर्द हो या औरत हराम है। ( 199)
औरः
मुस्तहिब (पुनीत) सावधानी यह है कि एकान्त में ईश्वर की तपस्या करने वाला हर उस चीज़ से बचा करे जो हज के मौक़े पर एहराम (अर्थात वह वस्त्र जो हाजी हज के मौक़े पर पहनते हैं) की हालत में हराम हैं। ( 200)
6.याद रखना चाहिए कि हाजी जब मीक़ात (अर्थात एहराम बांधने की जगह) से हज की नीयत कर लेता है और तकबीर पढ़ लेता है तो कुछ मुबाह (जाएज़) चीज़े उस पर हराम हो जाती है। इन ही मुबाह चीज़ों में पति और पत्नी भी है जो एक दूसरे पर एहराम की हालत में हराम हो जाते हैं। मिलता है किः
एहराम की हालत में अपनी पत्नी से संभोग करना , बोसा (चुम्मा , प्यार) लेना , सेक्स की निगाह से देखना बल्कि हर तरह का स्वाद और आन्नद हासिल करना हराम है। ( 201)
और यह हराम , हलाल में उस समय बदलता है जब तवाफें निसाअ ( 202) कर लिया जाए। मसाएल में है किः
तवाफ़े निसाअ और नमाज़े तवाफ के बाद औरत पर पति और पति पर पत्नी हलाल हो जाती है। ( 203)
याद रखना चाहिए किः
तवाफ़े निसाअ केवल मर्दों से मख़सूस (के लिए) नहीं है बल्कि औरतों. नपुंस्कों , नामर्दों और तमीज़ रखने वाले (अर्थात अच्छा-बुरा समझने वाले) बच्चों के लिए भी ज़रूरी है। अगर व्यक्ति तवाफ़े निसाअ न करे तो पत्नी हलाल न होगी। जैसा कि पूर्व में बयान किया जा चुका है। इसी तरह अगर औरत तवाफ़े निसाअ न करे तो पति हलाल न होगा। बल्कि अगर अभिभावक तमीज़ न रखने वाले बच्चे के एहराम बाँधे तो अहतियात वाजिब (ज़रूरी एहतीयात) यह है कि उसको तवाफ़े निसाअ करना चाहिए ताकि बालिग़ होने के बाद औरत या मर्द उस पर हलाल हो जाऐं। ( 204)
घ्रणित मैथुनः
फक़ीहों (विद्धानों) ने आठ मौकों पर मैथुन करने को मक्रूह करार दिया है।
1.चन्द्र ग्रहण की रात
2.सूर्य ग्रहण का दिन
3.सूर्य के पतन (गिराव अर्थात ( 12) बजे के आस-पास) के समय (ब्रहस्पतिवार के अतिरिक्त किसी दिन में)।
4.सूर्य के डूबते समय , जब तक की लाली न छट जाये।
5.मुहाक़ की रातों में (अर्थात चाँद के महीने की उन दो या तीन रातों में जब चाँद बिल्कुल नहीं दिखाई देता)
6.सुबह होने से लेकर सूरज निकलने तक।
7.रमज़ान के अतिरिक्त हर चाँद के महीने की चाँद रात को
8.हर माह की पन्द्रहवीं रात को इस के अतिरिक्त विद्धानों ने कुछ और मौक़ो पर भी मैथुन को घ्रणित बताया है।
1.जैसे सफर की हालत में जब कि स्नान के लिए पानी न हो।
2.काली , पीली या लाल आंधी चलने के समय।
3.ज़लज़ले (भूकंप) के समय। ( 205)
मोअतबर हदीस (यक़ीन करने योग्य हदीसों) में मिलता है कि निम्नलिखित मौक़ों पर मैथुन करना मक्रूह (घ्रणित) है।
1.सुबह से सूर्य निकलने (सूर्योदय) तक ( 206)
2.सूर्यास्त से लेकर लाली खत्म होने तक
3.सूर्य ग्रहण के दिन
4.चन्द्र ग्रहण के दिन
5.उस रात या दिन में जिसमें काली , पीली या लाल आँधी आये या भूकंप मसहूस हो , खुदा की क़सम यदि कोई व्यक्ति इन मौकों पर मैथुन करेगा और उससे सन्तान पैदा होगी तो उस संतान में एक भी आदत ऐसी नहीं देखेगा जिस से (प्रसन्ता) हासिल हो क्योंकि उसने खुदा के ग़ज़ब की निशानियों को कम समझा। ( 207)
इन क़ानूनो के ज़ाहरी कारण यह है कि चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण ज़मीनी निज़ाम पर लाज़मी (अनिवार्य) रूप से अपना असर छोड़ते हैं। अतः इस बात का डर है कि ऐसे मौके पर गर्भ ठहरने की सूरत में बच्चे मे कुछ ऐसी कमियाँ पैदा हो जायें जो माता-पिता के ज़हनी सुकून को बरबाद कर दें , जिसको प्राकृतिक धर्म (इस्लाम) पसन्द नहीं करता----- शायद इसी लिए इस्लाम धर्म ने उपर्युक्त मौक़ो पर मैथुन क्रिया को घ्रणित करार दिया गया है।
इस्लाम में शादी (निकाह) का तात्पर्य सेक्सी इच्छा की पूर्ति के साथ-साथ सदैव नेक व सहीह व पूर्ण संतान का द्रष्टिगत रखना भी है। इसी लिए आइम्मः-ए-मासूमिन (अ.) ने मैथुन के लिए महीना , तारीख , दिन , समय और जगह को द्रष्टिगत रखते हुवे अलग-अलग असरात (प्रभाव) बताये है जिसका प्रभाव बच्चे पर पड़ता है।
कमर दर अक्रब (अर्थात जब चाँद व्रश्चिक राशि मे हो) और तहतशशुआअ (अर्थात चाँद के महीने के वह दो या तीन दिन जब चाँद इतना महीन होता है कि दिखाई नही देता) में मैथुन करना घ्रणित है। ( 209)
तहतशशुआअ में मैथुन करने पर बच्चे पर पड़ने वाले प्रभाव से सम्बनधित इमाम-ए-मूसी-ए-काज़िम (अ.) ने इर्शाद फ़र्माया किः
जो व्यक्ति अपनी औरत से तहतशशुआअ में मैथुन करे वह पहले अपने दिल में तय करले कि पैदाइश (हमल , गर्भ , बच्चा) पूर्व होने से पहले गर्भ गिर जायेगा। ( 210)
तारीख से सम्बन्धित इमाम-ए-जाफ़र-ए-सादिक (अ.) ने फ़र्मायाः
महीने के आरम्भ , बीच और अन्त में मैथुन न करो क्योंकि इन मौकों में मैथुन करना गर्भ के गिर जाने का कारण होता है और अगर संतान हो भी जाए तो ज़रूरी है कि वह दीवानगी (पागलपन) में मुब्तला (ग्रस्त) होगी या मिर्गी में। क्या तुम नहीं देखते कि जिस व्यक्ति को मिर्गी की बीमारी होती है , या उसे महीने के शुरू में दौरा होता है या बीच में या आखिर में। ( 211)
दिनों के हिसाब से बुद्धवार की रात में मैथुन करना घ्रणित बताया गया है इमाम-ए-जाफ़र-ए-सादिक (अ.) का इर्शाद है किः
बुद्धवार की शाम को मैथुन (संभोग) करना उचित नहीं है। ( 212)
जहाँ तक समय का सम्बन्ध है उसके लिए ज़वाल (बारह बजे के आस पास) औऱ सूर्यास्त के समय सुबह शुरू होने के समय से सूर्योदय तक के अलावा पहली घड़ी में संभोग नही करना चाहिए। क्योंकि अगर बच्चा पैदा हुआ तो शायद जादूगर हो और दुनियां को आख़िरत पर इख़्तियार करे। यह बात रसूल-ए-खुदा (स.) ने हज़रत अली (अ.) को वसीयत करते हुवे इर्शाद फर्मायी किः
या अली (अ.) रात की पहली घड़ी (पहर) में संभोग न करना क्योंकि अगर बच्चा पैदा हुआ तो शायद जादूगर हो और दुनियां को आख़िरत पर इख्तियार करे। या अली (अ.) यह वसीयतें (शिक्षाऐं) मुझ से सीख लो जिस तरह मैने जिबरईल से सीखी है। ( 213)
वास्तव में रसूल-ए-खुदा (स.) की यह वसीयत (अन्तिम कथन) केवल हज़रत अली (अ ,) से नही है बल्कि पूरी उम्मत से है। इसी वसीयत में रसूल-ए-खुदा (स ,) ने मक्रूहात (घ्रणित मैथुन) की सूची इस तरह गिनाई हैः
.......ऐअली (अ.) उस दुल्हन को सात दिन दूध , सिरका , धनिया और खटटे सेब न खाने देना। हज़रत अमीरूल मोमिनीन (अ.) ने कहा किः या रसूलल्लाह (स.) इसका क्या कारण है ? फ़र्माया कि इन चीज़ो के खाने से औरत का गर्भ ठंडा पड़ जाता है और वह बाँझ हो जाती है और उसके संतान नही पैदा होती।ऐअली (अ ,) जो बोरिया घर के किसी कोने में पड़ा हो उस औरत से अच्छा है जिसके संतान न होती हो। फिर फ़र्माया या अली (अ.) अपनी बीवी से महीने के शुरू , बीच , आखिर में संभोग न किया करो कि उसको और उसके बच्चों को दीवानगी , बालखोरः (एक तरह की बीमारी) कोढ़ और दिमाग़ी ख़राबी होने का डर रहता है। या अली (अ ,) ज़ोहर की नमाज़ के बाद संभोग न करना क्योंकि बच्चा जो पैदा होगा वह परेशान हाल होगा। या अली (स ,) संभोग के समय बातें ( 214) करना अगर बच्चा पैदा होगा तो इसमें शक नहीं कि वह गूँगा हो। और कोई व्यक्ति अपनी औरत की योनि की तरफ न देखे ( 215) बल्कि इस हालत में आँखें बन्द रखे। क्योंकि उस समय योनि की तरफ देखना संतान के अंधे होने का कारण होता है। या अली (अ ,) जब किसी और औरत के देखने से सेक्स या इच्छा पैदा हो तो अपनी औरत से संभोग न करना क्योंकि बच्चा जो पैदा होगा नपुंसक या दिवाना होगा। या अली (अ.) जो व्यक्ति जनाबत (वीर्य निकलने के बाद) की हालत में अपनी बीवी के बिस्तर में लेटा हो उस पर लाज़िम है कि क़ुर्आन-ए-करीम न पढ़े क्योंकि मुझे डर है कि आसमान से आग बरसे और दोनों को जला दे। या अली (अ ,) संभोग करने से पहले एक रूमाल अपने लिए और एक अपने बीवी के लिए ले लेना। ऐसा न हो कि तुम दोनों एक ही रूमाल प्रयोग करो कि उस से पहले तो दुश्मनी पैदा होगी और आखिर में जुदाई तक हो जाएगी। या अली (अ.) अपनी औरत से खड़े खड़े संभोग न करना कि यह काम गधों का सा है। अगर बच्चा पैदा होगा तो वह गधे ही की तरह बिछौने पर पेशाब किया करेगा या अली (अ ,) ईद-उल-फितर की रात संभोग न करना कि अगर बच्चा पैदा होगा तो उससे बहुत सी बुराईयां प्रकट होंगी। या अली (अ ,) ईद-उल-क़ुर्बान की रात संभोग न करना अगर बच्चा पैदा होगा तो उसके हाथ में छः उँगलियाँ होंगी या चार। या अली (अ ,) फलदार पेड़ के नीचे संभोग न करना अगर बच्चा पैदा होगा तो या क़ातिल व जल्लाद (हत्यारा) होगा या ज़ालिमों (अत्याचारों) का लीडर। या अली (अ ,) सूर्य के सामने संभोग न करना मगर यह कि परदः डाल लो क्योंकि अगर बच्चा पैदा होगा तो मरते दम तक बराबर बुरी हालत और परेशानी में रहेगा। या अली (अ ,) अज़ान व अक़ामत के बीच संभोग न करना। अगर बच्चा पैदा होगा तो उसकी प्रव्रति खून बहाने की ओर होगी।
या अली (अ ,) जब तुम्हारी बीवी गर्भवती हो तो बिना वज़ू के उस से संभोग न करना वरना बच्चा कनजूस पैदा होगा। या अली (अ ,) शाअबान की पन्द्रहवीं तारीख को संभोग न करना वरना बच्चा पैदा होगा तो लुटेरा और ज़ुल्म (अत्याचार) को दोस्त रखता होगा और उसके हाथ से बहुत से आदमी मारें जायेंगे। या अली (अ. कोठे पर ( 216) संभोग न करना वरना बच्चा पैदा होगा तो मुनाफिक़ और दग़ाबाज़ होगा। या अली (अ.) जब तुम यात्रा (सफर) पर जाओ तो उस रात को संभोग न करना वरना बच्चा पैदा होगा तो नाहक़ (बेजा) माल खर्च करेगा और बेजा खर्च करने वाले लोग शैतान के भाई हैं और अगर कोई ऐसे सफर में जायें जहाँ तीन दिन का रास्ता हो तो संभोग करे वरना अगर बच्चा पैदा हुआ तो अत्याचार को दोस्त रखेगा।( 217)
जहाँ रसूल-ए-खुदा (स.) ने उपर्युक्त बातें इर्शाद फ़र्मायीं हैं वहीं किसी मौक़े पर यह भी फ़र्माया किः
उस खुदा कि कसम जिस की क़ुदरत में मेरी जान है अगर कोई व्यक्ति अपनी औरत से ऐसे मकान में संभोग करे जिस में कोई जागता हो और वह उनको देखे या उनकी बात या सांस की आवाज़ सुने तो संतान जो उस मैथुन से पैदा होगी नाजी न होगी (अर्थात उसे मोक्ष नहीं प्राप्त हो सकती) बल्कि बलात्कारी होगी। ( 218)
इसी तरह की बात इमाम-ए-जाफ़र-ए-सादिक़ (अ ,) ने इर्शाद फ़र्मायी है किः
मर्द को उस मकान में जिसमें कोई बच्चा हो अपनी औरत या लौंडी से संभोग नही करना चाहिए वरनः वह बच्चा बलात्कारी होगा। ( 219)
शायद इसी लिए इमाम-ए-ज़ैनुल आबिदीन (अ ,) जिस समय संभोग का इरादः करते तो नौकरों को हटा देते , दरवाज़ा बन्द कर देते , पर्दः डाल देते और फिर किसी नौकर को उस कमरे के करीब आने की इजाज़त (आज्ञा , अनुमति) नहीं होती थी। ( 220)
अतः ज़रूरी अहतेयात यह है कि अच्छे और बुरे की तमीज़ (समझ) न रखने वाले बच्चे के सामने भी मैथुन न करें। क्योंकि इस से बच्चे के बलात्कार की ओर आकर्षित होने का डर है।
यह भी घ्रणित है कि कोई एक आज़ाद (स्वतन्त्र) औरत के सामने दूसरी आज़ाद औरत से संभोग करे।
इमाम-ए-मुहम्मद-ए-बाक़िर (अ.) ने इर्शाद फ़र्माया है किः
एक आज़ाद औरत से दूसरी आज़ाद औरत के सामने संभोग मत करो मगर ग़ुलाम (कनीज़) से दूसरी कनीज़ के सामने संभोग करने में कोई नुक़सान (आपत्ति) नहीं है। ( 221)
इन सभी चीज़ो के साथ-साथ औरत और मर्द को इस बात का भी ख़्याल रखना चाहिए कि वह ख़िज़ाब लगाकर या पेट भरा रहने की सूरत में संभोग न करें। क्योंकि इमाम-ए-जाफ़र-ए-सादिक़ (अ ,) ने इर्शाद फ़र्माया किः
अगर कोई व्यक्ति खिज़ाब लगाये हुवे अपनी औरत से संभोग करेगा तो जो बच्चा पैदा होगा नपुंसक पैदा होगा। ( 222)
और आप ही ने इर्शाद फ़र्माया किः
तीन चीज़ शरीर के लिए बहुत खतरनाक (हानिकारक) बल्कि कभी हलाक करने वाली (प्राण घातक) भी होती है। पेट भरे होने की हालत में हमाम में जाना (अर्थात स्नान करना) पेट भरा होने की हालत में संभोग और बूढ़ी औरत से संभोग करना। ( 223)
संभोग के समय इसका भी ख्याल (ध्यान) रखना चाहिए किः
अगर किसी के पास कोई ऐसी अंगूठी हो जिस पर कोई नामे खुदा हो उस अंगूठी को उतारे बिना संभोग न करे। ( 224)
जहाँ यह सभी चीज़े हैं वहीं काबे की तरफ मुँह करके संभोग करना घ्रणित है। इमाम-ए-जाफ़र-ए-सादिक़ (अ.) से सवाल करने वाले ने सवाल किया किः
क्या मर्द नंगा (निर्वस्त्र) होकर संभोग कर सकता है। फ़र्माया नहीं। इसके अतिरिक्त न ही क़िब्ले की ओर मुँह करके संभोग कर सकता है न काबे की ओर पीठ करके और न ही किश्ती में। ( 225)
जबकि आधुनिक युग के अधिकतर जोड़े पूरे नंगे होकर (अर्थात पूरे कपड़े उतार कर) संभोग करने से अधिक स्वाद और आन्नद महसूस करते हैं और यह कहते हैं कि इस से संभोग में कई गुना बढ़ोतरी हो जाती है। लेकिन उन्हे यह मालूम नहीं कि इस तरह मैथुन क्रिया से पैदा होने वाले बच्चे बेशर्म होते हैं। रसूल-ए-अकरम ने फ़र्मायाः
जंगली जानवरों की तरह नंगे न हो , क्योंकि नंगे होकर संभोग करने से संतान बेशर्म पैदा होती है। ( 226)
बहरहाल अगर बहुत ज़्यादा ग़ौर से देखा जाए तो मालूम होगा कि सभी मकहूरात (घ्रणित मैथुन) संभोग से अधिकतर बच्चे का फायदः (अर्थात शारीरिक कमीयों से पाक) होगा और कुछ (जैसे संभोग के बाद लगी हुई गंदगी को दूर करने के लिए मर्द और औरत से अलग-अलग रूमाल होने) में औरत और मर्द का फायदः (अर्थात दुश्मनी या जुदाई न होना) होगा।
याद रखना चाहिए कि जिस तरह घ्रणित मैथुन से मर्द और औरत या बच्चे का लाभ होगा उसी तरह पुनीत मैथुन (मुस्तहिबाते जिमाअ) से औरत और मर्द या बच्चे का ही लाभ होगा।
पुनीत मैथुनः पिछले अध्याय में लिखा जा चुका है कि संभोग के समय वज़ू किये होना और बिस्मिल्लाह कहना पुनीत है। वास्तव में यह इस्लाम धर्म की सर्वोच्च शिक्षाऐं है कि वह व्यक्ति को ऐसे हैजानी , जज़बाती और भावुक माहौल (संभोग के समय) में भी अपने खुदा से बेखबर नही होने देना चाहता। जिसका अर्थ यह है कि एक सच्चे मुस्लमान का कोई काम खुदा की याद या खुदा के क़ानून से अलग हट कर नही होता है। उसके दिमाग़ में हर समय यह बात रहती है कि वह दुनियां का हर काम (यहाँ तक कि मैथुन भी) खुदा कि खुशनूदी के लिए करता है ------ यही कारण है कि ऐसा खुदा का नेक , अच्छा व्यक्ति जिस समय सेक्सी इच्छा की पूर्ति कर रहा होता है उस समय खुदा अपने छिपे हुए खज़ाने से , उसके लिए संतान जैसी वह महान नेअमत (अर्थात ईश्वर का दिया हुआ वह महान धन) तय करता है जो दीन (धर्म) और दुनिया के लिए लाभदायक और प्रयोग योग्य सिद्ध होती है।
उसी नेक औऱ लाभदायक और प्रयोग योग्य संतान प्राप्त करने के लिए जहाँ रसूल-ए-खुदा (स.) ने हज़रत अली (अ ,) को घ्रणित मैथुन की शिक्षा दी है वहीं पुनीत मैथुन से सम्बन्धित बताया है किः
या अली (अ ,) सोमवार की रात को मैथुन करना अगर संतान पैदा हुवी तो हाफिज़े क़ुर्आन और खुदा की नेअमत पर राज़ी व शाकिर होगी। या अली (अ ,) अगर तुम ने मंगलवार की रात को मैथुन किया तो जो बच्चा पैदा होगा वह इस्लाम की सआदत (प्रताप) प्राप्त करने के अलावा शहादत का पद (मरतबा) भी पायेगा। मुँह से उसके खुशबूँ आती होगी। दिल उसका रहम (दया) से भरा होगा। हाथ का वह सखी (दाता) होगा। और ज़बान उसकी दूसरों की बुराई और उनसे सम्बन्धित ग़लत बात कहने से रूकी रहेगी। या अली (अ ,) अगर तुम ब्रहस्पतिवार की रात को मैथुन करोगे तो जो बच्चा पैदा होगा वह शरीअत का हाकिम (पदाधिकारी) होगा या विद्धान और अगर ब्रहस्पतिवार के दिन ठीक दोपहर के समय मैथुन करोगे तो आखिरी समय तक शैतान उस के पास न आ सकेगा और खुदा उसको दीन और दुनिया में तरक्की देगा। या अली (अ ,) अगर तुम ने शुक्रवार की रात को मैथुन किया तो बच्चा जो पैदा होगा वह बात चीत में बहुत मीठा और सरल व सुन्दर मंजी हुवी भाषा के बोलने वालों में प्रसिद्ध होगा और कोई बोलने वाला (व्याखता) उसकी बराबरी न कर सकेगा और अगर शुक्रवार के दिन अस्र की नमाज़ के बाद मैथुन करे तो बच्चा जो पैदा होगा वह ज़माने के बहुत ही बुद्धिजीवीयों में गिना जाएगा। अगर शुक्रवार की रात इशाअ की नमाज़ के बाद मैथुन किया तो उम्मीद है कि जो बच्चा पैदा होगा वह पूर्ण उत्तराधिकारियों (वली-ए-कामिल) में गिना जाएगा। ( 227)
पुनीत मैथुन से सम्बन्धित यह भी मिलता है कि छुप कर मैथुन करना चाहिए जैसा कि ऊपर भी वर्णन किया जा चुका है कि इमाम-ए-ज़ैनुल आबेदीन (अ ,) जब भी संभोग का इरादः करते थे तो दरवाज़े बन्द करते , उन पर पर्दः डालते और किसी को कमरे की तरफ न आने देते थे। छुप कर संभोग करने ही से सम्बन्धित उन घ्रणित मैथुन को भी दृष्टिगत रखा जा सकता है जिसमें अच्छे और बुरे की पहचान न रखने वाले बच्चे के सामने भी संभोग करने को मना किया गया है। या एक आज़ाद (स्वतन्त्र) और से मौजूदगी (उपस्थिति) में दूसरी आज़ाद औरत के साथ मैथुन करने को भी घ्रणित बताया गया है। अतः इस से यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो जाती है कि छुप कर मैथुन करना ही पुनीत (मुस्तहिब) है। इसी से सम्बन्धित रसूल-ए-खुदा (स.) ने इर्शाद फ़र्माया किः
कव्वे की सी तीन आदतें सीखो। छुप कर मैथुन करना , बिल्कुल सुबह रोज़ी की तलाश में जाना , दुश्मनों से बहुत बचे रहना। ( 228)
पुनीत मैथुन में यह भी मिलता है कि कोई भी व्यक्ति अपनी औरत से फौरन संभोग न करे। बल्कि पहले छाती , रान आदि को मसले , सहलाए , (अर्थात मसास करे) छेड़-छाड़ और मज़ाक करे। इस बात को सेक्सी शिक्षा के विद्धानों ने माना है। उनकी दृष्टि में एकदम से संभोग करने पर मर्द का वीर्य शीघ्र ही निकल जाता है जिसके कारण मर्द की इच्छा तो पूरी हो जाती है लेकिन औरत की इच्छा पूरी नहीं हो पाती। जिसकी वजह से औरत अपने मर्द से नफ़रत करने लगती है। शायद इसी लिए प्राकृतिक धर्म इस्लाम ने मसास (मसलना , सहलाना) चूमना चाटना छेड़-छाड़ , हंसी-मज़ाक , प्यार व मुहब्बत की बातें आदि को पुनीत करार दिया है ताकि औरत उपर्युक्त कार्यों से संभोग के लिए पूरी तरह तैय्यार हो जाए और जब उससे संभोग किया जाए तो वह भी मर्द की तरह से पूरी तरह सेक्सी संतुष्टि (अर्थात स्वाद और आन्नद) प्राप्त कर सके। इसीलिए रसूल-ए-खुदा ने इर्शाद फ़र्माया किः
जो व्यक्ति अपनी औरत से संभोग करे वह मुर्ग़ की तरह उस के पास न जाए बल्कि पहले मसास और छेड़-छाड़ी हंसी मज़ाक करे उसके बाद संभोग करे। ( 229)
यही वजह है कि जिस समय इमाम-ए-जाफ़र-ए-सादिक़ (अ ,) से किसी ने पूछा किः
अगर कोई व्यक्ति हाथ या उंगली से अपनी बीवी या अपनी लौड़ी (अर्थात वह औरत जिसे मर्द ने खरीद लिया हो) की योनि के साथ छेड़-छाड़ करे तो कैसा ? फ़र्माया कोई नुकसान नहीं लेकिन बदन (शरीर) के हिस्सों (अंगों) के अलावा कोई और चीज़ (वस्तु) उस स्थान में प्रवेश न करे। ( 231)
अर्थात औरत को संभोग के लिए पूरी तरह तैय्यार करने और गर्म करने के लिए मर्द औरत की योनि (शर्मगाह) में अपनी उंगली या शरीर के किसी अंग से छेड़-छाड़ कर सकता है ताकि औरत और मर्द को पूरी तरह से सेक्सी स्वाद और आन्नद प्राप्त हो सके।
अनिवार्य मैथुन
घ्रणित और पुनीत मैथुन की तरह अनिवार्य मैथुन में मर्द पर वाजिब है कि वह अपनी जवान बल्कि बूढ़ी पत्नी से चार महीने में एक बार मैथुन अवश्य करे।
मसाएल में है किः-
पति अपनी जवान पत्नी से चार महीने से अधिक संभोग को नही छोड़ सकता। बल्कि एहतियात (सावधानी) यह है कि अपनी बूढ़ी पत्नी के साथ भी इससे अधिक समय तक संभोग को न छोड़े। ( 232)
यह भी मिलता है किः-
औरत के जो हुक़ूक़ (अधिकार) मर्द पर है उनमें से एक यह भी है कि अगर मर्द घर में मौजूद है और कोई शरई (धार्मिक) उज़र (आपत्ति) न रखता हो तो चार महीने में एक बार संभोग करे यह अनिवार्य है और अगर कई पत्नियाँ हों और उनमें से किसी एक के साथ एक रात सोये तो अनिवार्य है कि औरों (दूसरों) के पास भी एक एक रात सोये। विद्धानों का एक गिरोह मानता है और यह मानना सावधानी पर आधारित मालूम होता है कि चार रातों मे से एक रात एक औरत के लिए मखसूस हो। अब चाहे इसमें एक औरत हो या ज़्यादा (पास सोने का तात्पर्य यह नही है कि संभोग भी अवश्य करे) लौङियों (वह औरत जिन्हें खरीद लिया गया हो) के हक़ (अधिकार) मे और उन औरतों के हक़ में जिन से मुतअः किया है यह क़ानून अनिवार्य नही है बल्कि लौड़ी के हक़ मे अच्छा तरीक़ा यह है कि उसकी सेक्सी इच्छा की पूर्ति मर्द खुद करे या उसका किसी के साथ निकाह कर दे। कुछ हदीसों में आया है कि अगर ऐसा न किया और वह बलात्कार कर बैठी तो इसका गुनाहः मालिक के नामः-ए-आमाल में लिखा जाएगा। ( 233)
बहरहाल जब संभोग से सम्बन्धित हराम , मक्रूह , मुस्तहिब और वाजिब का ज्ञान हो गया तो आव्यश्क है कि संभोग की कुछ बुनियादी और अनिवार्य बातों का अवश्य ध्यान में रखे क्योंकि संभोग का सम्बन्ध औरत और मर्द की पूरी ज़िन्दगी (के पूरे जीवन) से रहता है।
वज़ू और दुआ
जैसा कि ऊपर भी वर्णन किया जा चुका है कि संभोग का इरादः होने पर सब से पहले वज़ू करे और खुदा से नेक और पाकीज़ा संतान की दुआ करे। जैसा कि कुछ नबीयों ने भी किया। जनाब-ए-ज़करिया (अ.) ने नेक संतान की दुआ करते हुवे कहाः
....... ऐ मेरे पालने वाले तू मुझ को (भी) अपनी बारगाह से नेक और पाक संतान दे। बेशक तू ही दुआ का सुनने वाला है। ( 234)
या जनाब-ए-इब्राहीम (अ.) ने दुआ किः
परवर्दिगारा मुझे एक नेक सीरत (औलाद) अता फ़र्मा। ( 235)
अतः संभोग से पहले नेक संतान की दुआ अवश्य माँग लेना चाहिए।
एकान्तः वज़ू और दूआ के अलावा संभोग के लिए यह भी आव्यशक है कि छुप कर संभोग करने के लिए एकान्त अर्थात उस कमरे में जाया जाए जिस में औरत और मर्द का बिस्तर लगा हुआ हो। उसके दर्वाज़े और खिड़कियां बन्द करके अगर सम्भव हो तो पर्दे गिरा दें (( 236)) ताकि दोनों को तस्ल्ली (संतोष) हो जाए कि उनकी सेक्सी क्रिया को कोई और नही देख सकता। संभोग से पूर्व उचित है कि औरत और मर्द दोनों पेशाब कर लें क्योंकि इस तरह स्वाद और आन्नद ज़्यादा देर तक बाकी रहता है।
मसास व दस्तबाज़ी
बन्द कमरे में जब औरत और मर्द को पूरी तरह इस बात का यक़ीन हो जाए कि उनकी सेक्सी क्रिया कलापों को कोई और नही देख रहा है तो सर्व प्रथम आव्यश्कता अनुसार वस्त्र को उतारे फिर पुनीत है कि दोनों आपस में सेक्सी खेल खेलें। दोनों एक दूसरे के हस्सास (संवेदनशील) अंगों को मस (स्पर्श) करें , सहलाए , खुजलायें और मसलें ताकि प्राकृतिक तौर पर वह चीकनाहट और तरी पैदा हो सके जिसे -मज़ी- कहा जाता है। जिसका काम पहले से निकल कर रास्ते को चिकना करना होता है ताकि मैथुन कठीनाई और परेशानी न होकर स्वाद और आन्नद पैदा हो सके ------ याद रखना चाहिए कि मसास (अर्थात अंगों को सहलाना , खुजलाना और मसलना) और दस्तबाज़ी की इस क्रिया में मर्द मुख्य रूप से ध्यान रखे। अर्थात वह प्यार और मुहब्बत की बातों के साथ साथ औरत को गोद में ले , चूमे चाटे , छाती (स्तन) के निपुलों को मसले , छाती को धीरे धीरे दबाए , होटों या ज़बान को धीरे धीरे चूसे , बगल , गुददी और रान आदि में उंगलियाँ फेरे , योनि में उंगली से हल्के हल्के हरकत दे , अपना लिंग औरत के हाथ में दे ताकि वह उसे धीरे धीरे दबाए और तनाव पैदा होने पर अपनी सेक्सी इच्छा को उस समय तक काबू में रखे जब तक कि औरत की सांसें उखड़ी न शुरू हो जायें , और औरत अपनी आँखे बन्द न करने लगे , ज़ोर से सीने से चमटने न लगे , चेहरे पर लाली , खुशी और ताज़गी के आसार (लक्षण , निशानात) न पैदा हो जाए------- अगर इस बीच मर्द को स्वाद महसूस हो तो वह अपने ख्याल को बाटे , अगर वीर्य अपनी जगह से हरकत कर चुका हो तो सांस रोके ताकि वीर्य रूक जाए और न निकले। लेकिन इस बीच भी औरत के संवेदनशील अंगों को हाथों से सहलाता ( 237) रहे ताकि औरत की इच्छा कम न हो--- फिर जब औरत की आँखों में लाल ड़ोरें मालूम हों या वह लम्बी लम्बी सांसें ले , या वह मर्द को ज़ोर से सीने से चिमटा ले---- उस समय औरत को सीधा लिटा कर उसकी क़मर के नीचे तकीया रख दे और उसकी रानों को खोल दें या उसके दोनों पैर समेट कर सुरीन (चूतड़) के नीचे रख दें ताकि औरत का मुख्य स्थान (आगे का सुराख) ऊचाँ हो जाए इस तरह मर्द के लिंग का मुहँ औरत के मुख्य स्थान के बिल्कुल सामने होगा और मर्द का लिंग आसानी के साथ औरत के गर्भ के मुहँ तक पहुँच जाएगा ----- तब मर्द अपने लिंग को , औरत के मुख्य सुराख में सख्ती से प्रवेश (दाखिल) कर दे। इस क्रिया से औरत को तकलीफ़ नही होगी बल्कि उसके स्वाद में काफी हद तक बढ़ोतरी होगी------ फिर अगर पैर औरत के चूतड़ के नीचे हो तो एक-एक कर के औरत के दोनों पैर फैला दें और खुद भी अपने पैर फैलाकर औरत पर इस तरह छा जाए ( 238) कि उसके शरीर के एक एक हिस्से को छुपा लें। लेकिन उस समय भी प्यार और मुहब्बत , प्रेम , मसलता और सहलाता रहे , होठों और ज़बान को चूसता रहे , धीरे धीरे लिंग को निकालता और दाखिल करता रहे , जिससे गर्भ फैल जाता है , उसका मुहँ खुल जाता है और इस वजह से गर्भ कुछ ऊचाँ भी हो जाता है। जिससे मर्द का लिंग टकराता है (जिसका अनुभव कुछ बहुत जल्दी अनुभव करने वाले लोगों को आसानी से हो जाता है) इस क्रिया से औरत बहुत जल्दी मुन्ज़िल हो जाती (अर्थात उसका वीर्य निकल जाता है) है। ऐसे समय में मर्द को स्वाद बिल्कुल नही उठाना चाहिए ताकि उसका वीर्य शीघ्र न निकले। बल्कि जब औरत मुन्ज़िल होने के बिल्कुल करीब हो अर्थात वह मर्द को कस के दबाये। तब मर्द भी जल्दी जल्दी दाखिल और खारिज (डाले और निकाले) करके मुन्ज़िल (वीर्य को निकाल दे) हो जाये। अगर इत्तिफाक (संयोगवश) से औरत उस समय तक मुन्ज़िल न हो और वह अपने हाथों या टागों से मर्द को कस कर दबा रही हो ताकि मर्द अलग न हो तो मर्द को चाहिए कि उस समय तक अपने लिंग को औरत की योनि से बाहर न निकाले जब तक कि औरत मुन्ज़िल न हो जाए। फिर कुछ देर बाद लिंग को निकाल कर मर्द धीरे से औरत से अलग हो जाए और औरत कुछ देर तक चित लेटी रहे , अपनी रानों को चिपकाये रहे ताकि गर्भ ठहरने में आसानी हो। उसके बाद अपने अपने रूमाल से (रसूल-ए-अकरम (स.) की वसीयत के अनुसार एक रूमाल होने पर पहले औरत और मर्द में दुश्मनी होती है और बाद में अलगाव) शरीर पर लगी हुई गन्दगी को साफ़ करें और मर्द के लिए ज़रूरी है कि वह पेशाब कर ले ताकि कई तरह की बीमारियों से बचा रहे।
बहरहाल मर्द का वीर्य निकलते ही उसके वीर्य के पदार्थ के पचास करोड़ जरसूमे (अर्थात छोटे-छोटे कीड़े जो बिना सूक्ष्मदर्शी के नही दिखाई देते) औरत के गर्भ में पहुँच कर अंड़ो की पैदाइश के स्थान की तरफ़ दौड़ते हैं जहाँ लगभग तीन लाख अंडे होते है------- और कभी कभी मर्द का जरसूमा औरत के अंडे से मिलकर बच्चे की पैदाइश का कार्य शुरूअ कर देता है। ( 229)
यह खुदा कि क़ुदरत (दैवी माया) है कि मर्द के वीर्य पदार्थ के जरसूमें उछलते कुदते सुरक्षा के साथ औरत के गर्भ में पहुँच कर अंडो से मिलते और बच्चे की पैदाइश का कार्य प्रारम्भ करते है। चाहे मर्द लिंग लम्बा और छोटा हो , औरत का गर्भ दूर हो या करीब , मर्द का लिंग औरत के गर्भाशय से टकराये या न टकराये। हर सूरत में प्राकृतिक तौर पर मर्द के वीर्य पदार्थ के जरसूमे उछलते कूदते ही औरत के गर्भाशय में पहुँचते है और गर्भ करार पाता है।
संभोग का उपर्युक्त तरीक़ा (अर्थात और नीचे और मर्द ऊपर होने की हालत) ही सब से अच्छा और आसान तरीक़ा है। जिसकी तरफ क़ुर्आन-ए-करीम ने भी इशारा किया है किः
तो जब मर्द औरत के ऊपर छा जाता है (अर्थात संभोग करता है) तो बीवी एक हल्के से गर्भ से गर्भवती हो जाती है। ( 240)
और मर्द उसी समय औरत पर पूरी तरह छा सकता है जब मर्द ऊपर और औरत उसके नीचे हो और मर्द का ऊपर होना इसलिए भी उचित है कि मर्द को अपना वीर्य औरत के गर्भ में टपकाना पडता है जिसके लिए क़ुर्आन में मिलता हैः
और यह कि वह नर और मादा दो तरह (के जीव) वीर्य से जब (गर्भ) में जब डाला जाता है , पैदा करता है। ( 241)
या
क्या गर्भ (सर्व प्रथम) वीर्य का एक कतरा न था जो गर्भ में डाली जाती है। ( 242)
और
तो जिस वीर्य को तुम (औरतों के) गर्भ में डालते हो क्या तुम ने देख भाल लिया है क्या तुम उस से आदमी बनाते हो या हम बनातें हैं।( 243)
उपर्युक्त क़ुर्आनी आयतों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि मर्द को अपना वीर्य औरत के गर्भ मे टपकाने , डालने के लिए संभोग के समय औरत के ऊपर ही होना चाहिए। मर्द के ऊपर होने ही से सम्बन्धित रसूल-ए-खुदा (स.) ने एक हदीस में इर्शाद फ़र्माया किः
जब मर्द औरत के चारों तरफ बैठ जाए फिर उसके साथ मिलकर खूब थक जाए तो स्नान (ग़ुस्ल) अनिवार्य (वाजिब) हो जाता है।( 244)
और औरत के चारों किनारों पर बैठना उसी समय सम्भव है जब औरत नीचे और मर्द ऊपर हो।
लेकिन याद रखना चाहिए कि इस्लामी शरीअत (प्राकृतिक धर्म) ने मनुष्य की प्रकृति को दृष्टिगत रखते हुवे केवल उपर्युक्त अच्छे और आसान तरीक़े का ही हुक्म (आदेश) नहीं दिया है बल्कि संभोग के लिए पूरी स्वतन्त्रा और छूट दी है कि हर मनुष्य जिस तरीक़े से चाहे अपनी पसन्द के अनुसार संभोग करे।
क़ुर्आन-ए-करीम में है किः
तुम्हारी बीवीयां (गोया) तुम्हारी खेती है तो तुम अपनी खेती में जिस तरह चाहो आओ।( 245)
अर्थात अपनी पसन्द के अनुसार जिस तरह चाहो संभोग करो।
संभोग के विभिन्न तरीक़ों को इस्तिलाह (परिभाषा) में –आसन- कहा जाता है इनकी कुल तादाद (गिनती) चौरासी बताई जाती है। लेकिन डाक्टर केवल घेर के कथा अनुसार छः आसनों को छोड़कर उनमें सब के सब बेकार और अधिकतर असम्भव हैं। छः सम्भव आसन इस तरह हैँ।
1.औरत नीचे और मर्द ऊपर की अवस्था में
2.औरत व मर्द पहलू बा पहलू की अवस्था में
3.मर्द नीचे और औरत ऊपर की अवस्था में
4.औरत और मर्द लगभग खड़े रहने की अवस्था में
5.औरत और मर्द आगे पीछे की अवस्था में
6. औरत और मर्द बैठने की अवस्था में
लेकिन इनमें प्रारम्भिक दो आसन ज़्यादा प्रचलित और उपयोग में आने वाले हैं। तिसरा आसन इस्लामी दृष्टि से हराम (अर्थात वह कार्य जिसे करने पर पाप हो) तो नही लेकिन चिकित्सा शास्त्र के हिसाब से हानिकारक अवश्य है। क्योंकि मर्द का वीर्य पूरी तरह से नही निकल पाता। बल्कि अधिकतर मर्द की लिंग में कुछ हिस्सा बाकी रह जाता है। जो बाद में सड़ता और बीमारी का कारण बनता हैं। इसके अतिरिक्त ऐसी सूरत (अर्थात मर्द के नीचे और मर्द के ऊपर की अवस्था) में मर्द के लिंग में औरत की योनि से बहुत सा पदार्थ आकर एकत्र हो जाता है जो हानिकारक है। ऐसी हालत में सब से बड़ी हानि यह होती है कि गर्भ ठहरने की सम्भावना बहुत कम रहती है। बाकी आसन भी प्रयोग में आते हैं लेकिन उनका प्रयोग पहली दो आसनों की तुलना में बहुत कम होता है इनमें भी पहला आसन ही ज़्यादा प्रचलित आसान और उचित है और इसी से ज़्यादा सेक्सी इच्छा की पूर्ति होती है क्योंकि इस सूरत में औरत और मर्द दोनों मैथुन क्रिया में पूरी सरगर्मी से भाग लेते हैं।
यहाँ यह भी लिखना उचित है कि सुल्तान अहमद इस्लाही ने अपनी किताब –जिमाअ- के आदाब में निम्नलिखित इस्लामी आसनों का वर्णन किया है।
1.औरत खड़ी हो औरत मर्द भी खड़ा हो (लेकिन रसूल-ए-खुदा (स.) ने हज़रत अली (अ ,) को वसीयत करते (आखिरी शिक्षा देते) हुवे खड़े खड़े संभोग करने से मना फ़र्माया है क्योंकि यह क्रिया गधों की सी है। रसूल-ए-खुदा (स.) ने यह भी फर्माया कि अगर इस हालत में गर्भ ठहरे तो बच्चा गधों ही कि तरह बिछौने पर पेशाब करेगा। ( 247)
2.औरत बैठी हो और मर्द भी बैठा हो
3.औरत बैठी हो और मर्द खड़ा हो
4.औरत लेटी हो और मर्द आगे से आगे के रास्ते में मैथुन करे।
5.औरत लेटी हो और मर्द पीछे की ओर से आगे के रास्ते में मैथुन करे।
6.औरत करवट लेटी हो और मर्द बैठकर उससे मैथुन करे।
7.औरत करवट लेटी हो और मर्द भी करवट ही की हालत में पीछे की ओर से मैथुन करे।
8.औरत चित लेटी हो और मर्द करवट हो और आगे के रास्ते में आगे की ओर से मैथुन करे।
9.औरत करीब करीब रूकू की अवस्था (हालत) में हो और मर्द पीछे की ओर से आगे के रास्ते में मैथुन करे।
10.औरत करीब करीब सज्दे की हालत में हो और मर्द पीछे की ओर से आगे के रास्ते में मैथुन करे।
11.औरत रुकू और सज्दे की हालत में हो और मर्द आगे के रास्ते में पीछे की ओर से मैथुन करे।( 248)
उपर्युक्त आसनों के अतिरिक्त भी बहुत से आसन हैं जिनमें कुछ से औरतों को स्वाद मिलने के बजाए तकलीफ होती है और यही तकलीफ जब ज़्यादा बढ़ जाती है तो वह रोना भी आरम्भ कर देतीं हैं। अतः उचित है कि संभोग के लिए ऐसा तरीका अपनाया जाए जिस से औरत और मर्द दोनों स्वाद प्राप्त करने के साथ साथ खुश भी हो और एक संभोग के बाद दूसरे संभोग के अवसरों की प्रतिक्षा (इन्तिज़ार) करते रहें। यह न हो कि एक बार संभोग के बाद मैथुन से नफरत हो जाए।
नफरत पैदा होने का मौका मुख्य रूप से उस समय आ जाता है जब मर्द संभोग के फन को पहलवानी का फ़न समझकर सूहागरात या किसी दूसरे मौके पर अपनी औरत पर पूरे ज़ोर व शोर से टूटकर एक के बाद एक कई बार संभोग के द्वारा औरतों पर अपनी मर्दानगी का रोब (प्रभाव) जमाने की कोशिश (का प्रयत्न) करता है जबकि यह बिल्कुल ग़लत है। क्योंकि कुछ मौकों मुख्य रूप से पहली रात (अर्थात सुहागरात) में औरत में झिझक या रुकावट हो सकती है इस लिए उस रात का खाली चला जाना कोई बूरा ( 249) (ऐब) नहीं है। यूँ भी बीवी की मौजूदगी (उपस्तिथि) में बहुत सी रातें ऐसी आती है जिनको सुहागरात समझकर भरपूर संभोग का स्वाद प्राप्त किया जा सकता है।
स्नान या तयम्मुमः
बहरहाल क़ुर्आन शिक्षा अनुसार औरत और मर्द अपनी पसन्द और आसानी के अनुसार मैथुन का कोई भी तरीका अपना सकते हैं और जब दोनों मिलकर खूब थक जायें तो उन पर ग़ुस्ल (स्नान) अनिवार्य (वाजिब) हो जाता है। रसूल-ए-अकरम (स.) का इर्शाद है किः
जब मर्द औरत के चारों किनारों पर बैठ जाए फिर उसके साथ मिलकर खूब थक जाए तो ग़ुस्ल वाजिब हो जाता है। ( 250)
इसी ग़ुस्ल को ग़ुस्ले जनाबत कहा जाता है जिसके दो प्रकार हैः ग़ुस्ले तरतीबी , ग़ुस्ले इरतेमासी (इनका वर्णन पहले किया जा चुका है) इसी ग़ुस्ल से सम्बन्धित कुर्आन-ए-करीम में हैः
ऐ ईमानदारों। तुम नशे की हालत में नमाज़ के करीब न जाओ ताकि जो कुछ मुँह से कहो समझो भी तो और न जनाबत की हालत में यहाँ तक की ग़ुस्ल करो मगर रास्ता चालते में (जब ग़ुस्ल सम्भव नही है तो ज़रूरत नहीं है) बल्कि अगर तुम बीमार हो (और पानी नुकसान करे) या सफर में हो या तुम में से किसी को पैखाना निकल आए और औरतों से संभोग किया हो और तुम को पानी न मिल पा रहा हो (कि स्नान करो) तो पाक मिट्टी पर तयम्मुम कर लो और (इसका तरीका यह है कि) अपने मुँह और हाथों पर मिटटी भरा हाथ फेर लो। बेशक (निसंदेह) खुदा माफ़ करने वाला (औऱ) बख्शने वाला है। ( 251)
या
ऐ ईमानदारों। जब तुम नमाज़ के लिए तय्यार हो तो अपने मुँह और कोहनियों तक हाथ धो लिया करो और अपने सरों और टखनों तक पैर का मसह कर लिया करो। और अगर तुम जनाबत की हालत में हो तो तुम तहारत (ग़ुस्ल) कर लो (हाँ) और अगर तुम बीमार हो या सफर में हो या तुम में से किसी को पखना निकल आए या औरत से संभोग किया हो और तुम को पानी न मिल सके तो पाक मिट्टी से तय्यमुम कर लो अर्थात (दोनों हाथ मार कर) उससे अपने मुहँ अपने हाथों का मसह कर लो (देखो तो खुदा ने कैसी आसानी कर दी) खुदा तो यह चाहता ही नहीं कि तुम पर किसी तरह की सख्ती करे बल्कि वह यह चाहता है कि पाक व पाकीज़ा कर दे और तुम पर अपनी नेअमत पूरी कर दे ताकि तुम शुक्रगुज़ार बन जाओ। ( 252)
उपर्युक्त क़ुर्आनी आयतों से यह स्पष्ट हो जाता है कि संभोग के बाद औरत और मर्द दोनों पर ग़ुस्ल-ए-जनाबत (स्नान) वाजिब हो जाता है और अगर स्नान करना सम्भव नहीं है तो तयम्मुम करना वाजिब (अनिवार्य) है----- लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि संभोग के फौरन बाद ग़ुस्ल करना वाजिब है। बल्कि कई बार संभोग कर के केवल एक स्नान कर लेना काफी और जाएज़ है। मगर इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है कि नमाज़ का समय जाने से पहले ग़ुस्ल-ए-जनाबत कर लिया जाए ताकि नमाज़ अदा किया जा सके ------- यह भी याद रखना चाहिए कि एक ही औरत से एक बार संभोग करने से पहले योनि (शर्मगाह) को धोकर वज़ू कर लेना पुनीत (मुस्तहिब) है।
इमाम-ए-अली-ए-रिज़ा (अ ,) का इर्शाद है किः
एक बार संभोग करने के बाद अगर दोबारा संभोग करने का इरादा हो और ग़ुस्ल न करे तो चाहिए कि वज़ू करे और वज़ू करने के बाद संभोग करे। ( 253)
याद रहना चाहिए कि योनि धोने से और वज़ू करने से थोड़ी सफाई हो जाती है और दुबारा संभोग में कुछ अधिक स्वाद और आनन्द मिलता है।
अगर दो , तीन या चार स्वतन्त्र औरतों से एक के बाद एक संभोग करना हो तो उचित है कि हर संभोग के बाद स्नान कर ले। मिलता है कि रसूल-ए-अकरम (स ,) ने एक रात अपनी सभी पाक व पाकीज़ा बीवीयों के यहाँ चक्कर लगाया और उनमे से हर औरत के पास आपने ग़ुस्ल फ़र्माया। ( 254) लेकिन अगर कोई कनीज़ों (अर्थात वह औरतें जिन्हे खरीदा गया हो) मे एक के बाद एक से संभोग करना है तो हर एक के लिए केवल वज़ू करना ही काफी है।
इमाम-ए-जाफ़र-ए-सादिक (अ ,) ने इर्शाद फ़र्मायाः
जो व्यक्ति अपनी कनीज़ से संभोग करे और फिर चाहे कि ग़ुस्ल से पहले दूसरी कनीज़ से भी संभोग करे तो उस पर लाज़िम (अनिवार्य) है कि वज़ू कर ले। ( 255)
बहरहाल संभोग के बाद वज़ू या ग़ुस्ल करना अनिवार्य है जिस से सफाई व पाकीज़गी पैदा होती है और सफाई और पाकीज़गी को खुदा पसन्द करता है ---- वज़ू या ग़ुस्ल से तबीअत में चुस्ती , फुरती और खुशी पैदा होती है। इसी के द्वारा कुछ खतरनाक बीमारियों से भी बचा जा सकता है। जिसे चिकित्सा शास्त्र के विद्धानों ने भी माना है।
मैथुन के राज़ को बयान करने की मनाहीः
मैथुन से सम्बन्धित ध्यान में रखने वाली बुनियादी और मुख्य बातों में एक बात यह भी है कि औरत और मर्द अपने खास सेक्सी (शारीरिक) मिलाप के राज़ो को दूसरों (सहेली और दोस्तों) के सामने बयान न करे। क्योंकि यह बहुत बुरा गुनाह (पाप) है। रसूल-ए-खुदा (स.) का इर्शाद है किः
कयामत (महाप्रलय) के दिन अल्लाह के निकट सब से खराब पोज़ीशन वाला वह व्यक्ति होगा जो अपनी बीवी से संभोग करने के बाद उसका राज़ फैलाता है। ( 256)
संतानः बहरहाल औरत और मर्द के शारीरिक मिलाप के नतीजे में उस समय संतान वुजूद में आती है जब खुदा कि रहमत और बरकत शरीक होती है। और अगर खुदा न ख्वास्ता खुदा की रहमत और बरकत नही होती तो औरत और मर्द पूरी ज़िन्दगी पूरे जोश व खरोश के साथ शारीरिक मिलाप करते रहते हैं लेकिन एक संतान भी पैदा नहीं कर पाते। क्योंकि संतान का पैदा करना मनुष्य के बस (सामथ्यर) की बात नही। इसी से सम्बन्धित क़ुर्आन-ए-करीम में मनुष्य के मस्तिष्क को झिंझोड़ते हुवे मिलता है किः
तो जिस वीर्य को तुम (औरतों के) गर्भ में डालते हो क्या तुमने देख भाल लिया है कि तुम उससे आदमी बनाते हो या हम बनाते हैं। ( 257)
अर्थात मनुष्य को पैदा करने वाला केवल और केवल खुदा ही है , जो माँ के गर्भाशय में नौ महीने तक पड़ा रहता है। जिसकी पैदाइश (बनावट) की विभिन्न मंज़िलों से सम्बन्धित किताब –अल काफ़ी- में इमाम-ए-बाक़िर (अ ,) से रिवायत है किः
जब अल्लाह अज़ व जल ऐसे वीर्य को जिस से हज़रत आदम (अ ,) के वीर्य को जिस (अभिवचन , वादा) लिया होता है , आलमे बशरीयत (मानवता के संसार) में पैदा करने का इरादः करता है तो सब से पहले उस मर्द में मैथुन की ख्वाहिश (इच्छा) पैदा करता है। जिसके वीर्य में वह नुत्फः (वीर्य) मौजूद होता है और उसकी पत्नी के गर्भ को आदेश देता है कि अपने दरवाज़े खोल दे ताकि उस समय मनुष्य की पैदाइश से सम्बन्धित कज़ा व कदर (खुदा का लिखा हुवा) आदेश पारित (नाफिज़) हो। फिर गर्भ के दरवाज़े खुल जाते हैं और उसमें नुत्फः दाखिल हो जाता है फिर चालीस दिन तक वह वही एक हालत से दूसरी हालत की तरफ बदलता रहता है। फिर वह ऐसा गोश्त का लोथड़ा बन जाता है कि जिस में रगों का जाल होता है। फिर अल्लाह दो फरिश्तों को भेजता है जो औरत के मुँह के रास्ते से उसके गर्भ में दाखिल हो जाते है , जहाँ वह पैदाइश (तखलीक़ , सूजन) का काम जारी करते हैं। उस गोश्त के लोथड़े में वह पुरानी रूह जो वीर्यों और गर्भों से स्थानान्तरित होती हुई आती है सामर्थ्य और शक्ति के हिसाब से मौजूद होती है। फिर फरिश्ते उसमें ज़िन्दगी और बक़ा की रूह फूँक देते हैं और अल्लाह की इजाज़त से उसमें आँख , कान , और दूसरे सभी अंग बना देते हैं। फिर अल्लाह उन दोनों को वही (अर्थात खुदा की तरफ से आया हुआ आदेश) कहता है कि- इस पर मेरी कज़ा और कद्र और नाफ़िज़ (लागू) आदेश को लिख दो और जो कुछ लिखो उसमें तेरी तरफ़ से बदअ (शुरूअ , प्रारम्भ) की शर्त लगा दो।
तब वह फरिश्ते कहते हैःऐपरवर्दिगार हम क्या लिखें ?
परवर्दिगार उनको आदेश देता हैः अपने सरों को उसकी माँ की सर के तरफ उठाओ। फिर वह फरिश्ते जब सर उठाकर उधर देखते हैं तो मालूम होता है कि तकदीर की तख़्ती उसकी पेशानी (माथे) से टकरा रही है , जिसमें उस बच्चे (शिशु) की सूरत और खूबसूरती , उसकी उम्र (आयु) और उसके अच्छे या बुरे आदि होने के बारे में सब कुछ लिखा होता है। फिर उन फ़रिश्तों में से एक दूसरे के लिए पढ़ता है और दोनों लिखते हैं वह सब कुछ जो उस शिशु (बच्चे) की तक़दीर (भाग्य) में होता है और शुरूअ की शर्त भी वह लिखते जाते हैं। ( 258)
और यह बच्चा (शिशु) कभी लड़का (नर) और कभी लड़की (मादा) हुआ करती है। जिस से सम्बन्धित क़ुर्आन-ए-करीम में मिलता है किः
सारे आसमान और ज़मीन की हुकूमत खास खुदा ही की है। जो चाहता है पैदा करता है (और) जिसे चाहता है (केवल) बेटियाँ देता है और जिसे चाहता है (केवल) बेटे अता करता है। या उनको बेटे , बेटियाँ (संतान की) दोनों किस्में देता है और जिस को चाहता है बाँझ बना देता है बेशक (निःसन्देह) वह बड़ा जानने वाला और हर चीज़ पर क़ुदरत रखने वाला है। ( 259)
उपर्युक्त आयत से सम्बन्धित हाशिये में मौलाना फ़र्मान अली ने लिखा है किः
चूँकि लोग आम तौर से पहले के भी और अब भी बेटियों को विभिन्न कारणों से पसन्द नहीं करते हैं और यही कारण था कि कुफ़्फ़ार ने खुदा की तरफ बेटियों की निसबत (संज्ञा) दी और अपनी तरफ बेटों की। तो मोमेनीन को जो प्राकृतिक तौर से बेटी होने से दुख होता है तो खुदावन्दे आलम उसका बदला देता है। चूँनाचे हज़रत रसूल-ए-खुदा (स.) फ़र्माते हैं वह औरत बहुत बरकत वाली है जो पहले बेटी जने (पैदा करे) क्योंकि खुदा ने पहले बेटियों का वर्णन किया है फिर फ़र्माया है बेटी रहमत और बेटा नेअमत। यह बिल्कुल वाक़ेए का बयान है और इसी वजह से लोगों को शाक़ (अरूचिकर) भी होता है मगर यह भी याद रखना चाहिए कि नेअमत प्राप्त होने पर सवाब नहीं मिलता बल्कि महनत पर मिलता है। ( 260)
यह वास्तविकता है कि पहले भी और अब भी ऍसे लोग अत्याधिक मिल जाते हैं। जो बेटी की पैदाइश पर बहुत ज़्यादा दुखित होते हैं , गुस्सा (क्रोध) करते हैं , पेच व ताब खाते हैं , ग़लत बात मुँह से निकालते हैं बेटी को मार डालते हैं या उस बेटी को जनने वालीयों (अर्थात अपनी पत्नी) को ही मार डालते हैं ताकि वह किसी बेटी को न जन सके------ मनुष्य की इसी प्रकृति से सम्बन्धित क़ुर्आन-ए-करीम में इशारः मिलता है किः
यह लोग खुदा के लिए बेटियाँ तज्वीज़ (निर्णय) करते हैं (सुब्हानल्लाह) वह इससे पाक व पाकीज़ा है (अर्थात उसे इसकी ज़रूरत नहीं है) और अपने लिए (बेटे) जो चाहते (और पसन्द) है और जब उनमें से किसी एक को लड़की पैदा होने की खुशखबरी दी जाए तो दुख के मारे उसका मुँह काला हो जाता है और वह ज़हर सा का घूँट पी कर रह जाता है (बेटी की) आर (लज्जा) है जिसकी इसको खुशख़बरी दी गयी है अपनी कौम के लोगों से छिपा छिपा करता है (और सोचता रहता है) कि या उसको ज़िल्लत (अपमान) उठा कर जीवित रहने दे या (ज़िन्दा ही) उसको ज़मीन में गाड़ दे देखो तो यह लोग कितना बुरा हुक्म (आदेश) लगाते हैं। ( 261)
और क्या उसने अपनी मख़लूक़ात (अर्थात वह सब चीज़े जो दुनियां में हैं) में से खुद तो बेटीयाँ ली हैं और तुम को चुन कर बेटे दिए हैं। हालाँकि जब उनमें किसी व्यक्ति को उस चीज़ (बेटी) की खुशख़बरी दी जाती है जिसकी मसल (उदाहरण) उसने खुदा के लिए बयान की हो तो वह (क्रोध के मारे) काला हो जाता है और ताओ पेच खाने लगता है। ( 262)
अर्थात बेटीयों की पैदाइश खुदा की ओर से एक खुशख़बरी है जो रहमत बन कर आती है। अतः इस पर मनुष्य (अर्थात माता पिता) को खुश होना चाहिए न कि दुखी।
बहरहाल लड़का हो या लड़की या दोनों हर हाल मे मनुष्य को खुदा का शुक्र अदा करना चाहिए। क्योंकि खुदा ने उसे औलाद की नेअमत दी , वंचित नहीं रखा। माता पिता का कर्तव्य है कि बच्चे का अच्छे से अच्छा नाम रखने और शिक्षा और प्रशिक्षण (तालीम व तर्बियत) का भी उचित प्रबन्ध करे।
संतान की शिक्षा और प्रशिक्षणः बच्चों को सहीह शिक्षा और प्रशिक्षण करना माता पिता का कर्तव्य है। और यह कर्तव्य उस समय से आरम्भ हो जाता है जब औरत और मर्द आपस में संभोग कर रहें होते हैं। क्योंकि समय का प्रभाव बच्चे पर अवश्य पड़ता है। मिलता है किः
हज़रत अली (अ.) के सामने पति और पत्नी आए दोनों गोरे रंग के थे और उनकी संतान का रंग काला था। बाप कहता है कि यह मेरी संतान नहीं है। मेरा रंग गोरा है और मेरी पत्नी का भी. लेकिन इस बच्चे का रंग काला है। अवश्य इसकी माँ ने कोई ग़लती की है। हज़रत अली (अ ,) ने फ़र्माया कि – न तुम ने कोई ग़लती की है और न तुम्हारी पत्नी ने। यह बच्चा तुम्हारे ही वीर्य का है। अब उस व्यक्ति ने आशचर्य से पूछा मौला। गोरे माता पिता का बच्चा काला कैसे हो सकता है। हज़रत अली (अ.) ने जवाब दिया कि –इसलिए ऐसा हुवा कि जब वीर्य (गर्भ) ठहर रहा था तब तुम खुदा को याद नहीं कर रहे थे और तुम्हारी पत्नी के ध्यान में किसी काले हबशी का ख्याल था जिसका नतीजा यह निकला। ( 263)
अर्थात मैथुन (संभोग) के बीच खुदा की याद करने और अपने ध्यान में नेक ख़्यालों को लाने पर ही नेक संतान पैदा हो सकती है। और जब वीर्य (नुत्फः , हमल , गर्भ) ठहर जाता है तो उसके प्रशिक्षण की ज़िम्मेदारी केवल औरत पर ही होती है। क्योंकि उसके एक-एक अच्छे या बुरे का प्रभाव उसके पेट में पलने और बढ़ने वाले बच्चे पर पड़ता रहता है। मिलता है किः
अल्लामः मजलिसी (र.) अपने बच्चे को मस्जिद लेकर जाते हैं। अब बच्चा कभी खेलता है और कभी सजदः करता है। एक मोमिन आया और उसने पानी से भरकर मशकिज़ः रखा और नमाज़ पढ़ने लगा। अब बच्चे के दिमाग में शरारत आई और उसने उस मोमिन के मशकीज़े मे सुराख कर दिया। मशकिज़ः फट गया और सारा पानी बह गया। नमाज़ के बाद अल्लामः मजलिसी (र ,) को इस वाकये का ज्ञान हुआ तो बहुत दुखी हुवे और सोच कर कहने लगे कि मैने कोई हराम काम नहीं किया , वाजिब , मुस्तहिब और हराम का ख़्याल रखा. ऍसा ज़ुल्म (ग़लत काम) मेरे बच्चे ने कैसे किया ? वास्तव में यह ग़लती माँ की तरफ से है। अब उन्होने अपनी बीवी से पूछा कि ----- हमारे बच्चे ने यह ग़लती की कि एक मज़दूर के मश्कीज़े को नुकसान पहुँचाया और उसका पानी बहा दिया। उसने ऍसा किया , वास्तव में हमारी ग़लती है। माँ ने बहुत सोचा और कहाः हाँ मेरी ही ग़लती है। गर्भ के दौरान में मौहल्ले के किसी घर चली गई थी और उसमें अनार का पेड़ था। मैने मालिक की इजाज़त (आज्ञा) के बिना सूई अनार में दाखिल कर दी और उसमें जो रस निकला उसे मैने चखा और उसको मैने नहीं बताया। ( 264)
अतः यह मानना पड़ेगा कि गर्भ के दौरान माँ के हर काम का असर (प्रभाव) बच्चे पर पड़ता है और जब बच्चा दुनियां में आ जाता है तो वह धीरे धीरे माँ और बाप की आदतों और तरीक़ो को सीखता रहता है। इसीलिए उचित है कि माँ और बाप ऐसी ज़िन्दगी व्यतीत करें जिसका प्रभाव बच्चे पर अधिक पड़े। क्योंकि यही माँ और बाप बच्चे (अर्थात परिवार , खानदान) को बनाने के दो मुख्य अंग होते है। लेकिन यह तभी सम्भव है जब माँ और बाप और दोनों इस्लामी शिक्षाओं पर पूरी तरह अमल कर रहे हों।
मर्द और औरत के अधिकारः- हर मर्द और औरत पर अपनी वैवाहिक ज़िन्दगी खुशगवार (रुचिकर , सुस्वाद) और बेमिस्ल (अद्वितीय) बनाने के लिए अनिवार्य है कि वह इस्लाम के बताए हुवे अपने अपने अधिकारों और कर्तव्यों पर पूरी पाबन्दी से अमल करें। क्योंकि प्राकृतिक धर्म (इस्लाम) ने मनुष्य की प्रकृति को दृष्टिगत रखते हुवे ही मर्द औऱ औरत के अलग-अलग अधिकार और कर्तव्य बताए हैं। जिन पर अलम करने के बाद यह सम्भव ही नहीं है कि वैवाहिक जीवन में कोई अरूचिकर मौका आ सके और वह अरूचिकर मौक़े बढ़ते बढ़ते तलाक़ (औरत और मर्द में अलगाव पैदा) की नौबत ला सकें।
याद रखना चाहिए कि प्रत्येक परिवार के मर्द और औरत (अर्थात पति और पत्नी) दो मुख्य सदस्य होते हैं जिसका संरक्षक मर्द है। इसकी तरफ रसूल-ए-खुदा (स ,) ने इशारः किया हैः
मर्द परिवार के संरक्षक हैं और हर संरक्षक पर अपने अधिक लोगों के पालन-पोषण की ज़िम्मेदारी (का उत्तरदायित्व) होती है। ( 265)
और औरत घर की मालिकः (रानी) होती है। जो अपने कर्तव्यों को पूरा करने से घर को जन्नत (स्वर्ग) की तरह बना सकती है और वास्तव में यही उसका जिहाद (अर्थात धर्म के लिए युद्ध) भी है। हज़रत अली (अ ,) ने इर्शाद फ़र्मायाः
औरत का जिहाद यही है कि वह पत्नी होने की हैसीयत से अपने कर्तव्यों को खूबसूरती के साथ पूरा करे। ( 266)
लेकिन औरत और मर्द को यह बात अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि किसी पत्नी का पति बनना या किसी पति की पत्नी बनना कोई आसान और मामूली काम नही है जिसे हर एक अच्छी तरह से निभा सके। बल्कि दोनों को वैवाहिक जीवन में हर हर क़दम पर समझदारी , अक़्लमंदी , होशमंदी , और होशियारी की आव्यशकता है। अपने-अपने अधिकारों और कर्तव्यों का जानना ज़रूरी है , ताकि पति और पत्नी बनकर एक दूसरे के जीवन की आव्यशकताओं को पूरा करें और एक दूसरे के दिलों को इस तरह अपने कब्ज़े (अधिकार) में कर लें कि एक के बिना दूसरे का दिल ही न लगे और दोनों पर एक जान दो क़ालिब का मुहावरा पूरा उतर सके। यह तभी सम्भव है कि जब दोनों अपने-अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझते हुवे इस्लामी हदों में रहकर एक दूसरे की खुशी और मर्ज़ी (इच्छा) के तरीक़े तलाश कर लें। क्योंकि दोनों के एक दूसरे पर अधिकार और कर्तव्य है। जिसकी तरफ इस्लाम की क़ानूनी किताब क़ुर्आन-ए-करीम में इशारः मौजूद हैः
..... और शरीअत के अनुसार औरतों का (मर्दों पर) वही सब कुछ (अधिकार) है जो (मर्दों का) औरतों पर है हाँ मगर यह कि मर्दों को (श्रेष्ठता , फ़ज़ीलत में) औरतों पर प्रधानता (फौक़ियत) अवश्य है। ( 267)
अर्थात इस्लाम में दोनों (पति और पत्नी) पर ज़िम्मेदारी डाली है।
इस्लाम ने मर्द (पति) पर यह ज़िम्मेदारी (बार) सौंपी है कि वह औरत (पत्नी) की देखभाल करे , उससे अपनी मुहब्बत , चाहत और प्रेम को दर्शाये ( 268) उसका आदर करे , (269) उसके साथ अच्छा व्यवहार ( 270) करे , बुराई तलाश न करे , जितना सम्भव हो सके उसकी ग़लतियों पर ध्यान न दे , (271) रात में अपनी पत्नी के पास जाए ( 272), चार महीने में एक बार संभोग अवश्य करे ( 273) इत्यादि। वास्तव में यही वह बातें है जिस से पत्नी के दिल को जीता जा सकता है। उपर्युक्त बातों के साथ मर्द को यह भी याद रखना चाहिए कि वह अपनी पत्नी से सलाह न करे , उन्हे पर्दे में रखे , अजनबी (नामहरम) मर्द से मुलाक़ात न होने दे , (274) कोठों और खिड़कियों में जगह न दे , सूरः-ए-यूसुफ की शिक्षा न दे , (275) ज़ीन की सवारी से मना करे , (276) उसकी आज्ञा का पालन न करे , (277) अपना राज़ उनसे न कहे ( 278) इत्यादि। क्योंकि यह बातें धीरे-धीरे पति और पत्नी के बीच फूट और बिगाड़ का कारण बनती हैं। अनुभव से यह भी पता चलता है कि पति पत्नी के बीच फूट और बिगाड़ के कारणों मे ग़लत ऐतिराज़ व शिकायत , बीवी की माँ (अर्थात लड़के की सास जो प्राकृतिक तौर पर अपने दामाद से अत्याधिक मुहब्बत करती है , लेकिन कमअक़्ल होने के कारण से कुछ ऐसी बातें कर बैठती है जिस से बेटी दामाद के बीच तलाक़ तक की घड़ी आ जाती है) मर्द (पति) का पत्नी पर शक करना , (279) मर्द (पति) का अजनबी (नामहरम) औरतों पर निगाह डालना , रात में घर देर से आना इत्यादि भी हैं जिससे तलाक़ तक की घड़ी आ सकती है। जिसे इस्लाम ने जाएज़ और हलाल होने के बावजूद हद से ज़्यादा बुरा और अरूचिकर कार्य बताया है।
इमाम-ए-जाफ़र-ए-सादिक़ (अ.) ने इर्शाद फ़र्मायाः
शादी (विवाह) कीजिए लेकिन तलाक़ न दीजिए। क्योंकि तलाक़ होने से आसमान हिल जाता है। ( 280)
लेकिन यही तलाक़ उस समय ज़रूरी हो जाता है जब औरत बलात्कार कर बैठी हो रसूल-ए-खुदा (स ,) ने इर्शाद फ़र्मायाः
मुझ से जिबरील-ए-अमीन (अ.) ने औरतों के बारे में इतना ज़ोर दे कर यह बात कही कि मैं समझता हूँ कि अलावा उस मौक़े पर कि वह बलात्कार कर बैठी हो उन्हे हरगिज़ (कदापि) तलाक़ नही देनी चाहिए। ( 281)
और बलात्कारी औरत (अर्थात बलात्कार जिसकी आदत बन चुकि हो) को अगर पति तलाक़ नहीं देता बल्कि उस पर राज़ी (संतुष्ट) रहता है तो रसूल-ए-खुदा (स.) के इर्शाद की रौशनी में पति स्वर्ग की खुशबू भी नहीं सूघँ सकता। आप ने इर्शाद फ़र्मायाः
पाँच सौ साल में तय होने वाले रास्ते में स्वर्ग की खुशबू आती है लेकिन दो तरह के लोगों को स्वर्ग की खुशबू नहीं मिल सकती। माता पिता के आक़ (अर्थात वह व्यक्ति जिसको उसके माता पिता ने किसी बड़ी ग़लती के कारण अपनी संतान होने से इन्कार कर दिया हो) किये हुए और बेग़ैरत (बेशर्म) मर्द ------ किसी ने आप से पूछा या रसूलल्लाह (स.) बेग़ैरत मर्द कौन हैं ? फ़र्माया वह मर्द जो जानता हो कि उसकी पत्नी बलात्कारी है (और उसके इस बुरे काम पर खामोश रहे) ( 282)
बहरहाल मर्द जो औरत की तुलना में बहादुर और अक़्लमंद होता है अपने वैवाहिक जीवन में खराब और नाज़ुक हालात पैदा होने पर उन्हें अच्छे और खूबसूरत बनाने तथा तलाक़ का मौका न आने देने की मुख्य भूमिका निभा सकता है। शायद इसी लिए इस्लाम में तलाक़ देने का अधिकार केवल मर्द को दिया है। जो प्राकृतिक तौर पर काम को जल्दी करने की प्रवृत्ति नहीं रखता बल्कि ग़ौर व फिक्र तथा अपनी बुद्धी का प्रयोग कर के अच्छे से अच्छा रास्ता निकालने पर क़ुदरत रखता है। (जबकि आधुनिक युग में छोटी-छोटी बातों पर भी मर्द जल्दी कर के पत्नी को तलाक़ दे देता है। जिससे जहाँ तक सम्भव हो सके मर्दों को बचना चाहिए ताकि कई जीवन खराब न हों और न ही आसमान कांपे) कभी-कभी यह भी देखने में आता है कि तलाक़ का मौक़ा आ जाने के बावजूद , मर्द के मुक़ाबले (की तुलना) में और ज़्यादा समझदारी और होशियारी से कदम उठाकर अपने खराब और बुरे वैवाहिक जीवन को खुशी और आराम के जीवन में तबदील (परिवर्तित) कर लेने की मुख्य भूमिका अदा करती है- और वह इस बात पर पूरी तरह क़ुदरत भी रखती है , क्योंकि यह बात दुनियां में मानी जा चुकि है कि औरत एक अजीब व ग़रीब ताक़त की मालिक होती है। वह खुदा के लिखे हुवे की तरह होती है। वह जो चाहे वह बन (कर) सकती है। ( 283)
इसी औरत पर खराब और बुरे हालात न पैदा करने के लिए ही इस्लाम ने कुछ बार (ज़िम्मेदारी) सौंपा है कि पति की बात को माने , उसका आदर करे , उसकी आज्ञा के बिना कोई काम न करे (यहाँ तक भी सुन्नती रोज़े भी न रखे , अपने माल के अलावा परिवार वालों के सदकः तक न दे , घर से बाहर न निकले इत्यादि।) पति को संभोग से मना न करे , (284) पति के लिए खुशबू लगाये , अपनी आवाज़ को पति की आवाज़ से ऊँचा न करे इत्यादि। यही वह बातें है जिस से पति का दिल जीता जा सकता है। औरत को यह भी ख्याल रखना चाहिए कि वह जहाँ तक सम्भव हो सके अपने पति (मर्द) को नाखुश (अप्रसन्न) न करे। क्योंकि इमाम-ए-जाफ़र-ए-सादिक़ (अ ,) ने फ़र्माया किः
जो औरत एक इस हाल में बीताये कि उसका पति उससे अप्रसन्न रहा हो तो जब तक उसका पति राज़ी (प्रसन्न) न होगा उसकी नमाज़ कुबूल न होगी। जो औरत दूसरे मर्दों के लिए खुशबू लगायेगी जब तक उस खुशबू को दूर न कर लेगी उसकी नमाज़ कुबूल न होगी। ( 285)
कुछ इसी तरह की बात एक और मौक़े पर फ़र्मायी हैः
कोई चीज़ पति के आज्ञा के बिना न दे अगर देगी तो सवाब उसके पति के नामः-ए-आमाल (कर्म पत्र) में लिखा जाएगा और गुनाह उस औरत के , और किसी रात इस हालत में न सोये कि उसका पति उस से अप्रसन्न हो। उस औरत ने कहा या रसूलल्लाह (स.) चाहे उसके पति ने कितना ही अत्याचार किया हो। ( 286)
अर्थात औरत के लिए मर्द के साथ प्रेम , मुहब्बत और शीलता का व्यवहार करना ही बेहतर (उचित) है क्योंकि यह सवाब एवं पुण्य का कारण होता है------ जबकि आधुनिक युग में औरत और मर्द के साथ बुरा व्यवहार करने मे फख्र महसूस करती है। जिससे वह ग़ुनाह व पाप की मुस्तहक़ (पात्र) होती हैं----- आम तौर से जिसका व्यवहार अच्छा होता है जो लोगों से हस्ता हुआ मिलता है मुस्कुरा कर बात करता है वह सबकी दृष्टि में महान और प्रीय होता है इसी लिए रसूल-ए-खुदा (स.) ने इर्शाद फ़र्मायाः
अच्छे व्यवहार से बेहतर कोई अमल नहीं है। ( 287)
और इमाम-ए-जाफ़र-ए-सादिक़ (अ) ने इर्शाद फ़र्मायाः
अच्छे व्यवहार से बढ़कर जीवन में और कोई चीज़ नही है। ( 288)
जबकि बुरा व्यवहार , चिड़चिड़ापन , खराब ज़बान से ही जीवन में खराबियां और परेशानियां पैदा होती हैं। जिससे जीवन अज़ाब (पीड़ा युक्त) हो जाता है। इसीलिए इमाम-ए-जाफ़र-ए-सादिक़ (अ.) ने फ़र्मायाः
बुरे व्यवहार का व्यक्ति स्वयं अपने को अज़ाब में डाल लेता है। ( 289)
अतः प्रत्येक औरत और मर्द का कर्तव्य है कि वह अपना अच्छा जीवन व्यतीत करने के लिए सर्वप्रथम अपने को अच्छे व्यवहार का बनाए।
औरत को चाहिए कि वह उपर्युक्त ज़िम्मेदारियों को निभाते हुवे (कर्तव्यों का पालन करते हुवे) इस बात का भी ध्यान रखे कि पति से प्रेम व मुहब्बत को ज़ाहिर करे , शिकवा व शिकायत न करे , अजनबी मर्दों से मेल मिलाप न रखे , पर्दे में रहे , पति कि ग़लतियों कि अंदेखी करे , पति के परिवार वालों से मेल मिलाप रखे , पति के कामों में दिलचस्पी दिखाए , पति पर शक न करे इत्यादि। क्योंकि यह वह बातें है जिस से घर स्वर्ग जैसा मालूम होता है हमेशा खुशी महसूस होती है और कभी भी फूट , बिगाड़ और अप्रसन्नता पैदा नही होती। जिसका बच्चों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। और औरत और मर्द का वैवाहिक जीवन बेमिसाल , लाजवाब व्यतीत होता है लेकिन यह सब उसी समय सम्भव है जब मर्द और औरत (अर्थात पति और पत्नी) दोनों इस्लामी शिक्षाओं पर पूरी तरह अमल कर के मुत्तक़ी और पर्हेज़गार बन जाए ऐसे ही मुत्तक़ी और पर्हेज़गारों के लिए क़ुर्आन-ए-करीम ने दुनियां मे भी भलाई बतायी है और आख़िरत (परलोक , यमलोक) में भीः-
और जब पर्हेज़गारों से पूछा जाता है कि तुम्हारे परवर्दिगार ने क्या नाज़िल किया तो बोल उठते हैं कि सब अच्छे से अच्छा। जिन लोगों ने नेकी की उनके लिए इस दुनियां में (भी) भलाई है और आखिरत का घर तो (उनके लिए) अच्छा ही है और पर्हेज़गारों का भी (आखिरत का) घर कितना अच्छा है। वह हमेशा बहार वाले (हरे भरे) बाग़ हैं जिनमें (बिना झिझक) जा पहुँचेंगे। उनके नीचे नहरें जारी होंगी और यह लोग जो चाहेंगे उनके लिए मौजूद है। यूँ खुदा पर्हेज़गार को जज़ा (सवाब , नेअमत , फल) अता फ़र्माता (देता) है। ( 290)
और आखिरत (परलोक , यमलोक) के अच्छे औक खूबसूरत घर में और आराम व सुकून के साथ-साथ सेक्सी स्वाद व आनन्द और सेवा के लिए हूर व ग़िलमान मौजूद हैं अर्थात सेक्स एक ऐसी मुख्य और अनिवार्य चीज़ है जिसका सम्बन्ध दुनियां के साथ-साथ आखिरत में भी है।
छटा अध्याय
सेक्स और परलोक
पिछले अध्यायों तक लिखी गयी सभी बातें मनुष्य की पैदाईश से लेकर जीवन के आखिरी दिन तक बाक़ी रहने वाली –सेक्सी इच्छा- (जिन्सी ख्वाहिश) से सम्बन्धित है। जो सभी मनुष्यों यहाँ तक की दीवाने और पागल ( 291) दिखाई देने वाले लोगों में भी एक जैसी होती और महसूस की जाती है।
इस अध्याय (सेक्स और परलोक) में उन बातों की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ जिस से यह स्पष्ट होता है कि दुनियां के सभी मनुष्यों में से कुछ मनुष्यों की सेक्सी इच्छा परलोक में भी बाकी रहेगी। जहाँ उनके जोड़े हुरों से लगाए जायेंगे। यही मनुष्य मुत्तक़ी और पर्हेज़गार होगें। जो बिना विलम्भ किये ईमान लाने वाले , खुदा की खुशी और रज़ा को चाहने वाले , खुदा के क़ानून की पाबंदी करने वाले , खुदा से दुआ और तौबः करने वाले , सब्र (धीरज और धौर्य) करने वाले , खुदा की राह में खर्च करने वाले और दुनियां के कुछ दिनों के मुक़ाबले में आखिरत के लम्बे जीवन (दीर्घकालीन जीवन) को पसन्द करने वाले होते हैं। यह वह लोग है जो दुनियां की कुछ दिनों की इम्तिहान गाह (परिक्षा केन्द्र) में परलोक को दृष्टिगत रखते हुवे जल्दी- जल्दी तोशए आख़िरत (अर्थात वह काम जो यम लोक , परलोक में काम आए) जमा करते रहते हैं। क्योंकि दुनियां हमेशा रहने की जगह नहीं बल्कि एक आने जाने का रास्ता है। जिसमें रहकर परलोक का सामाने-सफर तैय्यार किया जा सकता है। शायद इसी लिए हज़रत अली (अ ,) ने इर्शाद फ़र्मायाः
ऐ लोगों। दुनिया एक आने जाने की जगह और आख़िरत ठहरने की जगह है। अतः अपनी आने जाने की जगह से हमेशा ठहराव की जहग के लिए सामान-ए-सफर (अर्थात वह काम जो परलोक में काम आ सके , तोशः) उठा लो। जिसके सामने तुम्हारा कोई राज़ (रहस्य) छुपा नहीं उसके सामने अपने पर्दे चाक न करो और इसके पहले के तुम्हारे शरीरों को दुनिया से निकाल लिया जाए दिलों को इस से अलग कर लो।
इस दुनिया में केवल तुम्हारी परीक्षा ली जा रही है , वास्तव में तुम्हें दूसरी जगह के लिए पैदा किया गया है। जब कोई मरता है तो लोग पूछते हैं कि क्या छोड़ गया है। और फ़रिशते पूछते हैं कि इसने आगे के लिए क्या सामान भेजा है। खुदा तुम्हारा भला करे कुछ तो आगे के लिए भेजो वह एक तरह का (खुदा के ऊपर) कर्ज़ः होगा। सारे का सारा पीछे न छोड़ जाओ कि वह तुम्हारे लिए बोझ बने।( 292)
इस दुनिया से परलोक के लिए अच्छे कामों को जमा करने के लिए मनुष्य के लिए आव्यशक है कि वह कम उम्मीदें (आशाऐं) करे , खुदा के दिए हुवे पर उसका धन्यवाद (शुक्र) अदा करे और हराम (अर्थात वह काम जिसके करने पर गुनाह पड़ता है) से बचा रहे। क्योंकि ज़्यादा आशाऐं , खुदा के दिए हुवे पर उसका ध्नयवाद करना और हराम को कर बैठना ही वह चीज़े होती हैं जो मनुष्य को गुमराह कर के (अर्थात धार्मिक रास्ते से हटाकर) जहन्नुम (नरक) में ढकेल दिया करती है। इसी लिए हज़रत अली (अ ,) ने एक खुतबे में इर्शाद फ़र्मायाः
ए लोगों कम उम्मीदें , नेअमतों (खुदा के दिए हुवे) पर शुक्र और हराम से बचना यही तक़वा और पर्हेज़गारी है। अगर यह न हो सके तो कम से कम इतना तो हो कि हराम तुम्हारे सब्र पर ग़ालिब न आने (अर्थात विजेता न होने) पाये और नेअमतों के समय खुदा का शुक्र न भूल जाओ।
खुदा वन्दे आलम ने खुली हुवी रौशन दलीलों और आख़िरी हुज्जत (दलील , प्रमाण) देने वाली स्पष्ट किताबो के द्वारा तुम्हारे लिए किसी बहाने या विवश्ता (उज्र) का मौका बाक़ी नहीं रखा। ( 293)
उपर्युक्च चीज़ो के अतिरिक्त सेक्सी इच्छाओं की पैरवी और खुदा के बन्दों (लोगों) पर अत्याचार (अर्थात उन्हें कष्ट देना) भी नर्क में जाने का कारण हुवा करती है। हज़रत अली (अ ,) ने फ़र्मायाः
आख़िरत के लिए सब से बुरा सामाने सफर खुदा के बन्दों पर अत्याचार है। ( 294)
इन खुदा के बन्दों में दुनिया के सभी लोगों के साथ एक कड़ी में बन्धे हुवे पति- पत्नी और बच्चे भी आते हैं। जिन में से किसी एक को भी दूसरे पर अत्याचार नहीं करना (कष्ट नहीं देना) चाहिए। क्योंकि हज़रत अली (अ ,) के कथनानुसार यह अत्याचार और कष्ट परलोक के लिए सब से बुरा सामाने सफर (अर्थात परलोक में काम आने वाली चीज़) है। जिस के होते हुवे स्वर्ग का मिल जाना कठिन है। जबकि आधुनिक युग में औरत ---- मर्द और बच्चों पर ---- माता पिता पर औप मर्द ----- औरत और बच्चों पर अत्याचार करने और कष्ट देने पर फख्र महसूस करते हैं। लेकिन वह यह नहीं समझते कि यह अत्याचार और कष्ट उन्हें नर्क तक पहुँचाने मे मददगार साबित (सिद्ध) होता है। जो अत्याधिक ख़राब और बुरा ठिकाना है।
अत्याचार करने और कष्ट देने की सूची (औरत , बच्चे और मर्द) में औरत सदैव ऊपर रही है। (इसका अनुमान आधुनिक युग में भी लगाया जा सकता है) क्योंकि हज़रत अली (अ ,) के कथनानुसार औरत की ख़स्लत (प्रवृति , स्वभाव) में अत्याचार करना , कष्ट देना और लड़ाई-झगड़े को पैदा करना ही होता है।
नहजुल बलाग़ी में हैः
........ वास्तव में जानवरों के जीवन का उद्देशय (मक़्सद) पेट भरना है , फाड़ खाने वाले जंगली जानवरों के जीवन का उद्देशय दूसरों पर हमला कर के चीरना फाड़ना है और औरतों का उद्देशय दुनिया की ज़िन्दगी का बनाव- सिंगार और लड़ाई झगड़े का पैदा करना होता है। मोमिन वह है जो घमण्ड से दूर रहते हैं। मोंमिन वह हैं जो मेहरबान हैं मोमिन वह हैं जो खुदा से डरते हैं। ( 295)
जहाँ हज़रत अली (अ ,) ने औरत को लड़ाई झगड़े फैलाने और पैदा करने वाला बताया है वहीं रसूल-ए-खुदा (स.) ने इर्शाद फ़र्मायाः
औरतें शैतानों की रस्सीयाँ हैं।
अर्थात औरतें कम अक़्ल (मन्द बुद्धि , नाक़िसुल अक्ल) होने के कारण ( 296) शैतान के कब्ज़े (चंगुल) में शीघ्र आ जाती है और शैतान उस मन्द बुद्धि औरत के हाथों दुनिया में लड़ाई झगड़ा (दंगा , फ़साद) फैलाने (अर्थात खुदा के बन्दों पर अत्याचार करने का काम लेता है और हज़रत अली (अ.) के विचारानुसार मर्द वह होता है जो औरत के लड़ाई झगड़े फ़ैलाने के बावजूद भी खुदा से डरता रहता है और औरत जैसी कमज़ोर जाति पर मज़बूत (क़वी) ( 297) होने की वजह से अत्याचार नही करता और न ही कष्ट देता है।
बहरहाल हज़रत अली (अ.) ने औरतों को जहाँ लड़ाई झगड़ा फ़ैलाने और पैदा करने वाला बताया है वहीं पूरी तरह से (सरापा) आफत (मुसीबत) भी बताया है.
औरत सरापा (पूरी तरह से) आफत (मुसीबत) है और इस से ज़्यादा आफत यह है कि उसके बिना कोई चारा नहीं (अर्थात गुज़ारा नही)। ( 298)
अर्थात औरतों के साथ होने या न होने ----- दोनों हालातों (अवस्थाओं) में मर्द के लिए मुसीबत ही मुसीबत है शायद इसी लिए मर्द। इस पूरी तरह से मुसीबत औरत को अपने गले से लगा लेता है ताकि मुसीबत के साथ साथ उसके शरीर से चिमटने और लिपटने पर स्वाद और आनन्द भी मिलता रहे। हज़रत अली (अ ,) इर्शाद फ़र्माया किः
औरत एक बिच्छु है लिपट जाए तो (उसके ज़हर में) स्वाद है। ( 299)
लेकिन जिस तरह बिच्छु अपनी आदत (खस्लत , प्रविति) के अनुसार डंक मारे बिना नही रह सकता उसी तरह औरत भी लड़ाई झगड़ा फ़ैलाए बिना नहीं रह सकती। (अर्थात कुछ को छोड़कर अधिकतर) औरत की खस्लत में अत्याचार करना , ढ़ोंग मचाना , कष्ट देना और शत्रुता फ़ैलाना इत्यादि कुट कुट कर भरा होता है ऐसी औरतों के लिए रसूलल्लाह (स.) ने इर्शाद फर्मायाः
जो औरत अपने पति को दुनिया में तकलीफ पहुँचाती है हूरे उससे कहती हैं , तुम पर खुदा की मार , अपने पति को कष्ट न पहुँचा (दे) , यह मर्द तेरे लिए नहीं है तू इसके लाएक (पात्र) नहीं वह शीघ्र ही तुझ से जुदा (अलग) होकर हमारी तरफ आ जाएगा। ( 300)
अर्थात अपने पति को कष्ट देने वाली औरत स्वर्ग नही पहुँच सकती।
सम्भव है ऐसी ही दुश्मन औरतों से सम्बन्धित क़ुर्आन-ए-करीम ने ऐलान किया होः
ऐ ईमानदारों। तुम्हारी बीवी और तुम्हारी औलादें में से कुछ तुम्हारे दुश्मन हैं और तुम उनसे बचे रहो और अगर तुम मांफ कर दो और छोड़ दो और बख्श दो तो खुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है।( 301)
उपर्युक्त क़ुर्आन की आयत से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि औरत ( 302) के अलावा कुछ बच्चे भी मर्द के दुश्मन हुआ करते हैं। जिन पर वह क़वी होने के बावजूद भी अत्याचार नहीं करता और न ही कष्ट देता है बल्कि मोमिन ( 303) होने की वजह से मआफ़ करता , छोड़ देता , बख़्शता , महरबानी करता और उनके लिए खुदा से दुआ करता रहता हैः
और वह लोग जो (हम से) कहा करते है कि परवर्दिगार हमें हमारी बीवीयों और बच्चों की तरफ से आँखों की ठंडक अता फर्मा (दे) और हम को पर्हेज़गारों का पेशवा (लीडर , अगुवाकार) बना , यह वह लोग हैं जिन्हे उनकी जज़ा (इनआम) में (स्वर्ग के) बालाखाने (ऊँचे ऊँचे मकानात , दर्जे) अता किये (दिये) जायेंगे और वहाँ उन्हे सम्मान (तअज़ीम) और सलाम (का हदिया , तोहफः) पेश किया जाएगा और यह लोग उसमें हमेशा रहेंगे और वह रहने और ठहरने की क्या अच्छी जगह है। ( 304)
और इस दुआ के नतीजे में बीवी , बच्चे नेक होकर , मर्द की आँखों को ठंडक पहुँचाते हैं उनके हक़ (परिश्रमिक) में फ़रिश्ते भी दुआ करने लगते हैः
जो फ़रिश्ते आसमान अर्थात (अर्श) को उठाये हुवे हैं और जो उसके चारो तरफ (तैनात) हैं (सब) अपने परवर्दिगार की तारीफ़ के साथ तसबीह (प्राथना) करते हैं और उस पर ईमान रखते हैं और मोमिन के लिए बख्शिश की दुआऐं माँगा करते हैं कि परवर्दिगार तेरी रहमत और तेरा इल्म (ज्ञान , जानकारी) हर चीज़ को अपने घेरे में किये (लिये) हुवे है तो जिन लोगों ने (सच्चे) दिल से तौबः कर ली और तेरे रास्ते पर चले उनको बख़्श दे और उनको नर्क (जहन्नम) के आज़ाब (पाप , कष्ट) से बचा ले। ऐ हमारे पालने वाले उनको हमेशा बहार वाले बागों में जिनका तूने उनसे वायदा किया है दाखिल कर (पहुँचा) और उनके बाप दादाओं (पूर्वजों) और उनकी पत्नीयों और औलादों में से जो लोग नेक हों उनको (भी बख़्शिश दे)। बेशक (निःसंदेह) तू ही सबसे ज़्यादा शक्ति शाली (और) हिकमत (युक्ति) वाला है। ( 305)
बहरहाल मोमिन मर्द और फ़रिश्तों की दुआओं को क़ुबूल करते हुवे खुदा कहता हैः
.. (और खुदा उन अर्थात मुत्तक़ी और पर्हेज़गार लोगों से कहेगा) ऐ मेरे बन्दों। आज न तो तुम को कोई ख़ौफ (डर) है और न तुम दुखी होगे। (यह) वह लोग हैं जो हमारी निशानियों (आयतों) पर ईमान लाये और (हमारे) कहे पर चले (फ़र्मांबर्दार थे)। तो तुम अपनी बीवीयों (पत्नियों) के साथ इज़्ज़त और सम्मान के साथ स्वर्ग मे दाखिल हो जाओ। उन पर सोने की रकाबियों और प्यालों का दौर चलेगा और वहाँ जिस चीज़ को जी चाहेगा और जिससे आँख़ें स्वाद और आनन्द उठायें (सब मौजूद हैं) और तुम इसमें हमेशा रहोगे और यह जन्नत (स्वर्ग) जिसके तुम वारिस (हिस्सेदार) कर दिये गये हो , तुम्हारे द्वारा दुनियां में किये गये कार्यों का फल है। ( 306)
मालूम हुआ कि मोमिन मर्द के साथ उनकी नेक पत्नी (और नेक बच्चे) भी स्वर्ग में दाखिल हो जायेंगे। जिस में वह हमेशा हमेशा रहेंगे। जो नर्क (जहन्नुम) की तुलना (मुक़ाबले) में अच्छा और खूबसूरत ठिकाना है। जहाँ उनके आराम व सुकून का सारा सामान मौजूद होगा। वह जो चाहेगा वह मिलेगा और दोनों साथ रहकर खूब स्वाद और आनन्द उठायेंगे।
स्वर्ग के रहने वाले आज (क़यामत के दिन) एक न एक मशूग़ले (काम) में जी बहला रहे हैं वह अपनी पत्नीयों के साथ (ठंडी) छाओं में तकिये लगाये तख़्तों पर (चैन से) बैठे हुवे हैं। ( 307)
क्योंकि हूरें भी उस नेक (अर्थात पति पर अत्याचार न करने वाली) औरत से यह नहीं कह पायेगी किः
......... यह मर्द तेरे लिए नहीं है। तू इसके लाइक़ (पात्र , योग्य) नहीं। वह शीघ्र ही तुझ से जुदा (अलग) होकर हमारी तरफ़ आ जायेगा। ( 308)
अर्थात नेक औरतें बिल्कुल हूर जैसी होंगी बल्कि उनसे बढ़कर होंगी। क्योंकि वह और नेक मर्द स्वर्ग में रहकर आपस में स्वाद व आनन्द उठायेंगे।
यहाँ यह लिखना अनुचित नहीं है कि आज मोमिन मर्द की चेतावनी या दुआ के नतीजे में औरत नेक नहीं हो पाती तो वह स्वर्ग में दाखिल नहीं हो सकती। अतः केवल मोमिन मर्द ही स्वर्ग में दाख़िल होंगे। जहाँ उनकी सेक्सी इच्छा की पूर्ति के लिए खुदा उनके जोड़े हूरों से लगायेगा। क़ुर्आन-ए-करीम में है किः
और हम बड़ी बड़ी आँखों वाली हूरों से उनके जोड़े लगा देंगे। ( 309)
खुदा जाने कि उन हूरों में कितना आकर्षण (खिचाव , कशिश) है कि उनका ख्याल आते , नाम सुनते या नाम लेते ही सभी मर्दों मुख्य रूप से नेक मर्दों के शरीर में एक मुख़्य तरह की लहर दौड़ जाती है , चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है और खुशी व प्रसन्नता को ज़ाहिर करने लगते हैं। जबकि उन हूरों को आज तक किसी ऍसे मनुष्य ने नहीं देखा जो दुनिया के लोगों को बता सके कि वह हूरें कैसी है। ----- फिर भी आकर्षण (खिचाव) बाक़ी है---- और अपनी अपनी आँखों से देख ले तो क्या हालत होगी। ---- इसका केवल विचार किया जा सकता है बल्कि यह विचार से भी ऊपर की चीज़ है।
बहरहाल स्वर्ग में सेक्सी इच्छा की पूर्ति के लिए हूरों जैसी महान नेअमत (अता , तोहफः) केवल नेक और पर्हेज़गार मर्दों के लिए होगी। क्योंकि मर्द प्राकृतिक तौर पर और चीज़ों (बेटों आदि) के साथ साथ औरत को भी पसन्द करता है। जिस (अर्थात औरत) की आव्यशकता उसको स्वर्ग के लम्बे जीवन में उसी तरह महसूस होगी जिस तरह दुनिया के कुछ दिनों के जीवन में महसूस होती है। ---- लेकिन परलोक में यह आव्यशकता उसी समय पूरी हो सकती है जबकि मर्द दुनिया में रहकर खुदा पर ईमान लाए , खुदा के क़ानूनों (आदेशों) पर पूरी तरह अमल करे , सच बोले , सब्र (धैर्य , धीरज) व शुक्र से काम ले , अच्छे काम करता रहे , खुदा की राह (के लिए) खूब खर्च करे , रातों मे उठकर खूब इबादत (प्राथना) करे , तौबः (अर्थात खुदा से पापों की क्षमा चाहता) व मोक्ष-प्राप्ति की दुआ करता रहे , दुनिया के कुछ दिनों के आराम व सुकून की तुलना में जन्नत (स्वर्ग) अर्थात आख़िरत (परलोक) के (अधिकारों) को पूरा करता रहे , किसी पर अत्याचार न करे और न ही किसी को कष्ट दे इत्यादि। ------ तब ही मर्द को स्वर्ग में दाखिल होने का इजाज़तनामः (अनुमति पत्र , आज्ञा पत्र) मिल सकता है , जो बेहतरीन , खूबसूरत और अच्छा ठिकाना है। जहाँ और नेअमतों के साथ- साफ सुथरी बीवीयों जैसी महान नेअमत भी मिलेगी। क़ुर्आन-ए-करीम में हैः
.. (दुनिया में) लोगों को उनकी पसन्दीदः चीज़े (जैसे) बीवियों और बेटों और सोने चाँदी के बड़े बड़े लगे हुए ढेरों और अच्छे व खूबसूरत घोड़ो और जानवरों और खेती के साथ लगाव भला करके दिखा दिया गया है। यह सब दुनिया कि ज़िन्दगी के (कुछ दिनों के) फ़ायदे (लाभ) हैं और (हमेशा का) अच्छा ठिकाना तो खुदा ही के यहाँ है (ए रसूल (स.)) इन लोगों से कहो कि क्या तुम को इन सब चीज़ो से अच्छी चीज़ बता दूँ (अच्छा सुनों) जिन लोगों ने पर्हेज़गारी और नेकी को अपनाया उनके लिए उनके परवर्दिगार (खुदा) के यहाँ (स्वर्ग में) वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं (और वह) सदैव उसमें रहेंगे और उसके अलावा उनके लिए साफ़ सुथरी बीवियां हैं और (सबसे बढ़कर) खुदा की खुशनुदी है और खुदा अपने उन बन्दों (लोगों) को खूब देख भाल रहा है जो यह दुआऐं माँगा करते है किऐहमारे पालने वाले हम तो (बिना किसी सोच विचार के) ईमान लाये हैं अतः तू भी हमारे गुनाहों (पापों) बख्श (माफ़ कर दे) और हम को नर्क के आज़ाब (पाप , दुखों) से बचा (यही लोग हैं) सब्र (धीरज) करने वाले और सच बोलने वाले और (खुदा के) क़ानूनों पर अमल करने वाले और (खुदा की राह में) खर्च करने वाले और पिछली रातों में (खुदा से तौबः) व मोक्ष- प्राप्ति करने वाले। ( 310)
अर्थात स्वर्ग मे साफ सुथरी बीवियाँ नेक काम करने वालों और पर्हेज़गार लोगों को केवल उनके द्वारा दुनिया में किये गये नेक कामों के बदले मे दी जायेगी। इसी खूशखबरी से सम्बन्धित क़ुर्आन-ए-करीम में मिलता हैः
और जो लोग ईमान लाए और उन्होने नेक काम किये उनको (ए पैग़म्बर (स.)) खुशखबरी दे दो कि उनके लिए (स्वर्ग के) वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं जब उन्हें उन (बाग़ात) का कोई मेवा (फल) खाने को मिलेगा तो कहेंगे यह तो वही मेवा है जो पहले भी हमें खाने को मिल चुका है (क्योंकि) उन्हें मिलती जुलती सूरत व रंग के (मेवे) मिला करेगें और स्वर्ग में उनके लिए साफ सुथरी बीबियाँ होंगी और यह लोग उस (बाग़) में हमेशा (सदैव) रहेंगे। ( 311)
और
बेशक (निःसंदेह) पर्हेज़गार लोग बाग़ों और नेअमतों में होंगे जो (जो नेअमत) उनके परवर्दिगार ने उन्हें दी हैं उनके मज़े ले रहे हैं और उनका परवर्दिगार उनहें नर्क के अज़ाब (पाप) से बचायेगा जो काम तुम कर चुके हो उनके बदले में (आराम से) तख़्तों पर जो बिछे हुवे हैं तकिये लगा कर खूब मज़े से खाओ पीयो और बड़ी बड़ी आँखों वाली हूर से उनका बियाह (विवाह) रचायेंगे। और जिन लोंगो ने ईमान में उनका साथ दिया तो हम उनकी संतान को भी उनके दर्जे तक पहुँचा देंगे। ( 312)
इसी तरह।
और बड़ी बड़ी आँखों वाली हूरें जैसे ठीक (अहतियात) से रखे हुवे मोती। यह बदला है उनके नेक कामों का। वहाँ न तो बुरी और खराब बात सुनेगा और न गुनाह (पाप) की बात (गालियाँ , फ़ोहश) बस उनका कमाल (उनकी बात) सलाम ही सलाम होगा और दाहिने हाथ वाले (वाह) दाहिने हाथ वालों का क्या कहना है बे कांटे की बेरीयों और लदे गुथे हुवे केलों और लम्बी-लम्बी छाओं और झरने के पानी और बहुत सारे मेवों में होंगे जो न कभी ख्तम होंगे और न उनकी कोई रोक टोक और ऊँचे ऊँचे (नरम गबभों के) फ़रिश्तों में (मज़े करते) होगें (उनको वह हूरें मिलेंगी) जिनको हम ने नित नया पैदा किया है तो हम ने उन्हें कवाँरियाँ प्यारी प्यारी हमजोलियाँ बनाया (यह सब सामान) दाहिने हाथ (में अपना कर्मपत्र , नामः-ए-आमाल) लेने वालों के वास्ते है।( 313)
या
उन बाग़ों में खुश मिज़ाज और खूबसूरत औरतें होंगी तो तुम दोनों अपने परवर्दिगार की किस किस नेअमत (अता) को न मानोंगे वह हूरें जो ख़ैमों मे छुपी बैठी हैं। फिर तुम दोनों अपने परवर्दिगार की कौन कौन सी नेअमत से इन्कार करोगे। उनसे पहले उनको किसी इन्सान ने छुआ तक नहीं और न जिन ने। फिर तुम दोनों अपने मालिक की किस किस नेअमत का इन्कार करोगे यह लोग हरे कालीनों और खूबसूरत व नाज़ुक मसनदों पर तकीया लगाए (बैठे) होगें फिर तुम दोनों अपने परवर्दिगार की किन किन नेअमतों का इन्कार करोगे। ( 314)
अर्थात स्वर्ग में नेक काम करने वाले और पर्हेज़गार लोगों के लिए बड़ी बड़ी आँखों (जैसे ठीक से रखी हुवी मोतियों) वाली हर घड़ी नयी पैदा की हुवी , कुँवारी प्यारी , उनसे पहले किसी इन्सान या जिन की छुई तक नहीं , खैमों में छुपी हुई , शर्मीली तख़्तों पर सजी सजाई हुई बैठी होंगी।
स्वर्ग में इन नेक काम करने वालों लोगों के लिए हूरों के अलावा सेवा के लिए आस पास चक्कर लगाते , हाथों में शरबत के प्याले लिए , खूबसूरत या कहा जाए ठीक से रखे हुए मोती , खुश मिज़ाज और खुश अख़लाक लड़के (अर्थात ग़िलमान) होगें जिस से सम्बन्धित क़ुर्आन-ए-करीम में मिलता हैः
.. (और सेवा के लिए) नौजवान लड़के आस पास चक्कर लगाया करेंगे वह (खूबसूरती में) गोया अहतियात (ठीक) से रखे हुए मोती है और एक दूसरे की तरफ मुँह करके (मज़े की) बातें करेंगे। ( 315)
और
... नौजवान लड़के जो स्वर्ग में सदैव (लड़के ही बने) रहेंगे (शरबत आदि के) प्याले और चमकदार टोटिदार और साफ शराब के प्याले लिए हुवे उनके पास चक्कर लगाते होंगे। ( 316)
बहरहाल उपर्युक्त क़ुर्आनी आयतों की रौशनी में यह नतीजा आसानी के साथ , निकाला जा सकता है कि परलोक में हर तरह के आराम व सुकून और सेक्सी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आव्यशक है कि मनुष्य दुनिया कि इम्तिहानगाह (परिक्षा केन्द्र) में ईमानदार रहे , नेक काम करता रहे , दूसरों के अधिकारों को पूरा करता रहे , दुआ व तौबः करे , खुदा की राह में खर्च करे , अल्लाह के क़ानूनों पर अमल करे , खुदा की वन्दना (इबादत , प्राथना) करे , अपने वायदे को पूरा करे , सच बोले इत्यादि। क्योंकि यही बातें नेकी और पर्हेज़गारी की निशानियाँ हैं। जिससे सम्बन्धित क़ुर्आन-ए-करीम में मिलता है किः
.. नेकी कुछ यही थोड़ी है कि (नमाज़ में) अपने मुँह पूरब या पश्चिम की ओर कर लो , बल्कि नेकी तो उसकी है जो खुदा और परलोक के दिन और फ़रिशतों और (खुदा की) किताबों और पैग़मबरों पर ईमान लाए और उसकी मुहब्बत में अपना माल रिश्तेदारों (परिवार वालों) और यतीमों (अनाथों) और मोहताजों और परदेसीयों और माँगनेवालों और लौड़ी ग़ुलाम (के आज़ाद करने) में ख़र्च करे और पाबन्दी से नमाज़ पढ़े और ज़कात देता रहे और जब कोई वायदा करे तो अपनी बात को पूरा करे और भूख व प्यास , दुख और कठिनाईयों के समय साबित क़दम रहे , यही लोग वह हैं जो (अपने ईमान के दावे में) सच्चे निकले और यही लोग पर्हेज़गार हैं। ( 317)
उपर्युक्त क़ुर्आनी आयतों के हिसाब से मुत्तक़ी और पर्हेज़गार लोगों की पहचान होने के बाद किताब के अन्त में यह दुआ कि खुदाया (हे ईश्वर) हम सब को जीवन के हर भाग (शोबे , हिस्से) में क़ुर्आन व आइम्मः-ए-मासूमीन (अ ,) के बताये हुवे रास्ते पर चलने की तौफ़ीक़ अता फ़र्मा (उमंग पैदा कर) ताकि नेक , मुत्तक़ी और पर्हेज़गार बन कर जन्नत (स्वर्ग) में पहुँचने के लाएक़ (पात्र , योग्य) हो सकें। आमीन सुम्मा आमीन।
हवाशी
1. इस्लामी समाज , प्रो , रियूबन लेवी , अनुवादक प्रो , मुशीर-उल-हक़ पेज ( 507) तरक्की ऊर्दू ब्योरो , नई दिल्ली , 1987 ई.
2. पाण्डुलिपी रिसालः-ए-नख्लबंदी , हकीम अमानुल्लाह खाँ अमानी हुसैनी , एशियाटिक सोसाइटी आफ बंगाल (रिसालः-ए-नख्लबंदी , पाण्डुलिपि के मूल लेखक तथा टीका की तय्यारी और अनुवाद का काम लेखक ने किया है। जो शीघ्र ही प्रकाशित होकर सामने आने की उम्मीद है। यह फारसी से आज़ाद ऊर्दू अनुवाद है।) (तक़ी अली आबिदी)
3. तहलील-ए- नफ्सी का इजमाली खाका , सिगमंड फ्राइड , अनुवादक प्रो , ज़फर अहमद सिददीक़ी पेज ( 20) तरक्की ऊर्दू ब्योरो , नई दिल्ली , 1985 ई तथा हयात-ए-इज़दवाज फित तफसीर-ए-जिन्सियात हकीम सै , अली अहमद पेज ( 25) व , (61) पैग़ाम प्रेस हिमाँयू बाग़ कानपुर , 1978 ई.।
4. तहलील-ए-नफ़सी का इजमाली ख़ाका , पेज 18।
5. मनुष्य अपनी सेहत और तन्दुरूस्ती को बाक़ी रखने तथा बनाये रखने के लिए खाना खाता है जिस से खून बनता है। बाद में उसी खून के ( 80) क़तरे के बराबर मनी (वीर्य) बनती है जो अण्ड कोशों मे पहुँचकर गाढ़ी होकर सफेद रंग ग्रहण करती है। वहीं उसमें मनी के कीड़े पैदा होते हैं। धीरे धीरे यह मनी , मनी की थैलीयों में पहुचँती रहती है और जब मनी निकलने का कार्य अर्थात मैथुन , गुद मैथुन या हस्त मैथुन किया जाता है या सोने में सेक्सी स्वपन देखते हैं तो यह बाहर आ जाती है। यह मनी मनुष्य की नस्ल को बाक़ी रखने का कारण होती है।
मनी औरत में भी बनती है और वह वीर्य पात (इंज़ाल) भी होती है इस विषय में – दोषीज़ः – किताब के लेखक ने कुछ दलीलें भी दी हैं।
1. जब औरत में मर्द की तरह से इच्छा पैदा होती है तो आव्यशक है कि उस समय इच्छा का परिणाम भी मर्द की तरह से हो।
2. --- मर्द और औरत की मनी मिलने से ही नुतफः (वीर्य , शुक्र) बन सकता है. इसलिए दूसरे का वजूद अनिवार्य है।
3. --- कभी कभी औरत केवल मसास (अर्थात मैथुन के समय स्त्री के अंगों का मर्दन) ही से वीर्यपात हो जाती है और उसकी इच्छा बाक़ी नहीं रहती और वह मैथुन योग्य नहीं रह जाती।
4. जिस तरह से मर्द वीर्यपात हो जाने के बाद मैथुन करने के योग्य नही रह जाता उसी तरह से औरत भी जब मैथुन के बीच वीर्यपात हो जाता है तो वह मैथुन क्रिया के सहन करने के योग्य नहीं रहती और मर्द से अलग होना चाहती है। ऍसी अवस्था औरत पर कभी एक या आधा मिनट में ही पैदा हो जाती है और कभी बहुत देर तक पैदा नहीं होती।
5. अगर औरत में वीर्य पात की क़ुव्वत न होती तो वह मैथुन से कभी न थकती।
6. मर्द और औरत की मनी का रंग और कैफियत अलग-अलग है। एक में असर कुबूल करने की क़ुव्वत होती है और एक में असर डालने की। दोनों के मिलने से नुतफः बनता है।
7. औरत के कभी स्वपन में वीर्यपात हो जाता है। जिसे अहतिलाम कहते हैं।
8. औरत में अण्डकोशों की मौजूदगी मनी में तरी के वुजूद पर एक दलील है।
9. औरत को भी वीर्यपात में मर्द की तरह से स्वाद और आनन्द महसूस होता है।
10. बच्चा कभी माँ की शक्ल पर होता है और कभी बाप की शक्ल पर। और यह अपनी अपनी मनी की मुशाबहत (एक रूपता) है। (दोषीज़ः प्रथम भाग , हकीम मुहम्मद युसूफ हसन , पेज ( 74) युसूफिया कुतुब खाना , बारूद खाना , लाहौर)
बहरहाल यह याद रखना चाहिए कि जब मनी स्वाद व आनन्द के साथ इख्तियारी (इच्छा से) या बे इख्तियारी (बिना इच्छा के) तौर पर बदन से निकलती है अर्थात अहतिलाम या इन्ज़ाल होता है या हस्त मैथुन (मुश्त ज़नी) के द्वारा मनी निकलती है या औरत से आनन्द लेते समय उसके आगे या पीछे के सुराख में अपने लिंग की केवल सुपारी या उससे अधिक हिस्से को दाखिल करते हैं (चाहे मनी न निकले) या खुदा न करे किसी जानवर से संभोग करने पर मनी निकलती है तो ग़ुस्ल-ए-जनाबत (जनाबत का स्नान) अनिवार्य हो जाता है। उस समय बदन के किसी हिस्से को क़ुर्आन के शब्दों , अल्लाह के नाम , पैग़मबरों या इमाम के नाम से मस (छुआना) करना , मस्जिद-उल-हराम और मस्जिद-ए-नबी की तरफ से गुज़रना , मस्जिद में ठहरना , उन आयतों का पढ़ना जिनके पढ़ने पर सजदः वाजिब (अनिवार्य) है , मुजनिब (अर्थात जिसके वीर्य निकल चुका हो) हराम है। इसी लिए चाहिए कि कपड़े और बदन की गंदगी को साफ कर के ग़ुस्ले इरतिमासी (अर्थात नीयत के बाद पूरे तालाब , नदी आदि में सम्भव है) या तरतीबी (अर्थात नीयत के बाद पहले सर और गर्दन धोए फिर दाहिना हिस्सा और आखिर में बाँया हिस्सा , या लोटे आदि किसी बर्तन से या शावर के नीचे खड़े होने पर सम्भव है) करके पाक व साफ हो जाए।
6. खून-ए-हैज़ (मासिक धर्म) से सम्बन्धित क़ुर्आन मे मिलता हैः
(ए रसूल स.) तुम से लोग हैज़ के बारे में पुछते हैं। तुम उनसे कह दो कि यह गंदगी और घिन की बीमारी है। तो हैज़ (के दिनों) में तुम औरतों से अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जायें उनके पास न जाओ तो जिधर से तुम्हें खुदा ने हुक्म दिया है उनके पास जाओ। बेशक खुदा तौबः करने वालों और साफ सुथरे लोगों को पसन्द करता है। (सूरः-ए-बक़रः आयत न. 223)
खून-ए-हैज़ औरतों में जवानी की निशानी है। जो अक्सर हर महीने में कुछ दिन औरत की बच्चा दानी से आता है। जो आम तौर पर सुर्ख और गाढ़ा होता है और थोड़ी जलन के साथ निकलता है। इसका कम से कम समय तीन से चार दिन तक है और ज़्यादा से ज़्यादा समय दस दिन का है। (यह याद रखना चाहिए के दो हैज़ों के बीच का समय दस दिन से कम नहीं होना चाहिए) खूने हैज़ की मेक़दार ( 25) तोला है। खूने हैज़ आने के बीच औरत पर वह सभी इबादतें जिन में नमाज़ की तरह वज़ू , ग़ुस्ल या तयम्मुम करना ज़रूरी है , हराम हैं। वह सभी बातें भी हराम हैं जो एक मुजनिब (अर्थात जिसके वीर्य निकल चुका हो) पर हराम होती हैं। औरत के अगले या पिछले सुराख मे मर्द का लिंग दाखिल करना (चाहे केवल सुपारी या उससे कम हिस्सा दाखिल हो और मनी भी न निकले) औरत और मर्द दोंनो पर हराम है। लेकिन मैथुन के अलावा बाक़ी हर तरह की छेड़ छाड़ और बोसा बाज़ी (चूमा-चाटी) जाएज़ है।
हायज़ः औरत की छः किस्में होती हैं।
1. साहिबे आदते वक्तियः व अददिय (अर्थात वक़्त और दिनों की गिनती के हिसाब से एक आदत रखने वाली औरत)
2. साहिबे आदते वक्तियः (अर्थात हर महीने वक़्त के हिसाब से आदत रखने वाली औरत)
3. साहिबे आदते अददियः अर्थात हर महीने दिनों की गिनती के हिसाब से आदत रखने वाली औरत)
4. मुज़तरिबः (अर्थात जिस की कोई आदत तय न हो)
5. मुबतदियः (अर्थात जिसे पहली बार खूने हैज़ आया हो) और
6. नासियः (अर्थात अपनी आदत भूलने वाली औरत)
बहरहाल हर औरत पर खूने हैज़ से पाक हो (अर्थात खून आना रूक) जाने के बाद ग़ुस्ले हैज़ (हैज़ का स्नान) वाजिब हो जाता है।
संस्कृत की पुरानी किताबों की मदद से औरत के पहली बार हैज़ आने पर उसके भविष्य के बारे में फैसला किया जा सकता है। इन किताबों में महीनों , चाँद की तारीखों , दिनों और समय के अनुसार औरत पर पड़ने वाले हैज़ के असरात (प्रभाव) को बताया गया है (विस्तार के लिए देखिये दोशीज़ः प्रथम भाग , हकीम मुहम्मद युसूफ हसन , पेज ( 19) से ( 23) और क़ानूने मुबाशिरत , हकीम वली उर रहमान नासिर , पेज ( 36) से ( 44) फैसल पब्लीकेशनज़ , नयी दिल्ली , 1993 ई ,।
यहाँ यह भी स्पष्ट करना ज़रूरी है कि हैज़ के अलावा औरत के खूने निफास (अर्थात वह खून जो बच्चे की पैदाइश के साथ पहले या बाद दस दिन के अन्दर औरत की योनि से निकलने वाला वह खून जो आम तौर से ठंडा , पतला और लाल रंग का होता है और बिना उछाल और जलन के धीरे धीरे निकलता रहता है) भी आता है।
खूने निफास के वही अहकाम (हुक्म) हैं जो खूने हैज़ के हैं। इसके अलावा खूने इस्तिहाज़ा की चूँकि तीन क़िस्में कलीलः (अर्थात और की योनि मे रखे जाने वाली रूई में ऊपर ऊपर खून लग जाए लेकिन रूई तर न हो) मुतवस्सितः (अर्थात खून रूई में पहुँच जाए लेकिन जाये लेकिन दूसरी तरफ फूट कर न निकले) और कसीरः (अर्थात खून रूई में पहुँच कर दूसरी तरफ फूट कर निकल जाये) हैं। अतः उनके अलग अलग अहकाम भी हैं। (विस्तार के लिए देखिये तौज़िहुल मसाएल , आकाऐ सैय्यद अबुल कासिम-अल-मूसवी अल खुई ऊर्दू अमलियः तनज़ीमुल मकातिब लखनऊ या किसी भी आलम का अमलियः और तोहफतुल अवाम)
7. छोटे और नौजवान लड़के और लड़कियों को इन बुराईयों से बचाने के लिए दोशीज़ः किताब के लेखक ने निम्मलिखित बचाओ की तरकीबें बतायी हैः
1. मामाओं और नौकरानियों और दूसरी गैर औरतों के साथ छोटे बच्चों को न सुलायें।
2. बच्चों को अलग चारपाई पर सोने की आदत डालें।
3. नौजवान लड़कियों को आपस में एक चारपाई पर न सोने दें।
4. लड़को और लड़कियों को एक चारपाई पर सोने से रोके दें।
5. लड़को और लड़कियों की देख रेख रखें कि वह शौचालय आदि इकटठे न जायें और वहाँ ज़्यादा देर तक न बैठे रहें। इस बात का भी ध्यान रखें कि बे वक्त शौचालय में न जाया करें। किसी न किसी खुफिया तरीक़े से उनकी निगरानी ज़रूरी है।
6. नौजवान लड़कों को अकेले कमरों मे बैठने से मना करें। अकेला पन एक नौजवान के लिए बहुत हानिकारक होता है।
7. खेल , पढ़ाई और घर के काम काज में बच्चों और बच्चीओं को लगाये रखना उन्हे बुरी आदतों से बचाये रखता है।
8. नौजवान लड़कियों जो एक दूसरे की सहेलियाँ होती है वह अकेले में घंटों अलग कमरों या कोठों पर बातें करती रहती हैं , उनकी निगरानी भी ज़रूरी है मगर वह थोड़ी देर अकेले रहें तो कोई नुक़सान नहीं।
9. उचित हो अगर उन्हें इस तरीक़े से बिठायें कि घर की बड़ी औरतों की निगाहें उन पर कभी कभी पड़ती रहें।
10. प्रेम व मुहब्बत के अफसाने , नाविल और इस तरह के वाकेआत उनके सामने पेश न किये जायें।
11. पति और पत्नी , बच्चों के सामने चूमा चाटी न करें। बल्कि अलग अलग चारपाईयों पर सोयें। (जबकि आज टी वी और वी सी आर पर गन्दी फिल्में घर के सभी बच्चे बुढ़े और जवान साथ-साथ देखते हैं जिससे आदतें बिगड़ती हैं। अतः इस से बचे रहना ज़रूरी है। (तकी अली आबिदी)
12. नौजवान लड़को और लड़कियों को सो जाने के बाद जब आप रात में जागें तो उनको ज़रूर देख लिया करें और सुबह तड़के जागने के बाद नौजवान लिहाफ के अन्दर देर तक दबके रहें तो उनके खराब होने की सम्भावना है। इसलिए उन्हें सुबह तड़के ही जगा देना और बिस्तर से अलग कर देना ज़रूरी है।
13. बच्चों को हमेशा फरिश्ता , मासूम और केवल कम उम्र का बच्चा ही न समझने , जो सच्ची मिसालें ऊपर दी जा चुकी है उनको दृष्टिगत रखते हुवे आप अपने बच्चों पर पूरी तरह निगरानी रखें (देखिये दोशीज़ः प्रथम भाग , पेज 143-150)
8. कानूने मुबाशिरत , पेज 90-91
9. जबकि हयाते इज़दिवाज की तफसीरे जिनसीयात के लेखक ने लिखा है कि मर्दों की तुलना में औरतों में हस्त मैथुन (मुश्त ज़नी , खुद लज़्ज़ती) की आदत ज़्य़ादः होती है। इसके निम्नलिखित कारण बतायें हैं।
1. मर्दों की तादाद में कमी जो जंग (युद्ध) या किसी वबा (बीमारी) का शिकार हो जाते हैं।
2. मर्दों की तुलना में औरतों में शर्म व हया (लाज व लज्जा) ज़्यादा होती है इसलिए वह हरामकारी के बजाये अकेले गुनाह करने की तरफ लग जाती है , चूँकि ईश्वर ने औरत के अन्दर शर्म व हया ज़्यादा रखी है और दूसरे समाज व माहौल ने भी औरत के अन्दर शर्म व हया पैदा कर दी है। इस पर्दे की वजह से औरत अपनी इच्छाओं को प्रकट नहीं कर पाती और आम तौर से ऍसा देखा गया है कि वैवाहिक सम्बन्धों में बंधने के कई साल बाद भी औरत अपनी प्राकृतिक सेक्सी इच्छाओं को प्रकट करने में हिचकिचाती रहती है और पति और पत्नी के बीच इस सिलसिले में एक पर्दः पड़ा रहता है।
3. कुछ कौमों मे दोबारा शादी करना बुरा ख्याल किया जाता है इसलिये प्राकृतिक इच्छाओं को पूरा करने के लिए औरतें इस कार्य की ओर रागिब (लग) हो जाती हैं।
4. चूँकि मर्द के बहुत जल्दी वीर्य पात हो जाता है और उस (औरत) की इच्छा देर तक बाक़ी रहती है इसलिए वह इस तरह काम लेती है।
5. अधिकतर औरतें ऍसी होती हैं जिनकी इच्छा पूर्ति प्राकृतिक तौर पर आसानी से नहीं हो सकती इसलिये वह यह तरीक़ा अपना लेती हैं।
6. चूँकि औरतों को हामिलः (गर्भवती) होने का खौफ रहता है इसलिये यह तरीक़ा उनको बहुत महफूज़ नज़र आता है।
7. औरत का मासिक धर्म खत्म होते ही मर्द की ख्वाहिश पैदा होती है और अगर उस समय उनको दूसरी जिन्स (अर्थात मर्द) न मिले तो वह कभी-कभी गुद मैथुन की ओर लग जाया करती है।
8. मर्द के अन्दर सेक्सी आला (अंग) केवल एक है लेकिन औरत के अन्दर बहुत से अंग ऐसे है जिन में इच्छा पैदा होती है।
9. इस ज़माने मे पैसा कमाने के लिए मर्दों को काम में लगे रहने कि ज़्यादा ज़रूरत रहती है। जिस के कारण वह औरतों की तरफ पूरा ध्यान नहीं कर सकते इस लिए औरते हस्त मैथुन से अपना शौक़ पूरा कर लेती हैं।
10. कुछ औरतों को हिस्टीरिया आदि ऐसी बीमारियाँ होती हैं कि उनकी तरबीयत इस तरफ अपने आप लग जाती है।
11. कुछ औरतें जो ऊँचे घरानें की होती या ऊचाँ पद ग्रहण कर लेती हैं उन्हें मन पसन्द पति न मिलने से इसकी तरफ लग जाती हैं।
12. कुछ औरतों को अपनी खूबसूरती का इतना ज़्यादा घमण्ड होता है कि वह मर्द से बात करना अपने लिए बुरा समझती हैं लेकिन प्राकृतिक इच्छा होने पर उन्हे हस्त मैथुन पर मजबूर होना पड़ता है।(देखिए हयाते इज़दिवाज फी तफसीरे जिनसीयात , पेज 76-81
10. व. 11. ग़रूल हिकम पेज ( 218) व ( 354) मसायल-ए-ज़िन्दगी अनुवाद सैय्यद अहमद अली आबदी पेज ( 117) व ( 118) नूरूल इस्लाम , ईमाम बाड़ा , फैज़ाबाद से नक़्ल।
12.विस्तार के लिए देखिए क़ानूने मुबाशिरत , पेज 46- (51)
13.जबकि फ्रांस के मशहूर माहिरे हैवानात (जानवरों के विशेषज्ञ बफोन , Baffon) ने अपनी किताब में जानवरों और पक्षियों की आदत के बारे में गुद मैथुन के अध्याय में लिखा है कि अगर नर जानवर या पक्षी एक जगह एकत्र कर दियें जायें तो उन में शीघ्र ही यह क्रिया आरम्भ हो जाती है इस बात को फ्रेंच स्कालर सैट कीलेर डी वेली ने भी सही माना है और बाद में यह बताया है कि यह कैफियत मादा के बजाए नर में शीघ्र ही पैदा होती है। (देखिए हायाते इज़दिवाज फी तफसीरे जिनसीयात पेज 65।
14.विस्तार के लिए देखिए क़ुर्आन-ए-करीम सूराऐ राफ आयत न. 80-84 सूरः हूद आयत न. 77-83 – सूरः हजर आयत न , 58-77 सूरः अम्बीया आयत न , 71-74 व ( 75) सूरः शोअरा आयत न. 107-175 सूरः नम्ल आयत न. 54-55 सूरः अनकबूत आयत न. 26,28-30, 33-35, सूरः साफात आयत न. 133-138, सूरः ज़ारियात आयत न. 32-37, सूरः नजम आयत न. 53, सूरः क़मर आयत न , 33-36, और सूरः तहरीम आयत न ,10
15.देखिए हाशीया क़ुर्आन-ए-करीम सूराऐ राफ आयत न. ( 80) अनुवादक मौलाना फर्मान अली , निज़ामी प्रेस , लखनऊ।
16. से 19. क़ुर्आन-ए-करीम सूराऐ राफ आयत न. 81 सूरः नम्ल आयत न. 55 सूरः अनकबूत आयत न. 29 (इस में रहज़नी करने तकतऊनस्सुबुल से मुराद कुछ तफसीर लिखने वालों ने बच्चे पैदा करने की राह रोकना (मारना) अर्थात नुतफे की बरबादी मुराद लिया है) और सूरः-ए-शोअरा आयत न. ( 165) व 166।
20 व 21. नौजवानों के मसाएल और उनका हल , अली असगर चौधरी , पेज 63, ,सरताज कम्पनी , दिल्ली , 1981 ई.।
22. यह याद रखना चाहिए कि मर्द (नर) औरत (मादा) की मर्ज़ी के बिना हराम कारी नही कर सकता। यह बात जानवरों और पक्षीयों में भी पाई जाती है कि जब मादा संभोग पर तैय्यार होती हैं तब नर संभोग कर सकता है मादा (औरत) की इसी खुसूसीयत (विशेषतायें) से सम्बन्धित मौला-ए-कायनात हज़रत अली (अ.) की किताब नहजुल बलाग़ा में मिलता है कि औरत की बेहतरीन खसलतों में घमण्ड भी है जिस से वह अपना शरीर आसानी के साथ किसी मर्द के क़ब्ज़े में नही दे सकती जिसके नतीजे में बलात्कारी नहीं हो सकती (देखिए नहजुल बलाग़ा इर्शाद न. ( 234) पेज 877, शीया जनरल बुक एजेन्सी , इन्साफ प्रेस , लाहौर) (तक़ी अली आबदी)
23.कुछ ऐसी ही बात कुछ जानवरों में भी पाई जाती है जैसे एक कुतिया के पीछे कई कुत्ते लगे रहते हैं और मौक़ा मिलने पर सेक्सी इच्छा की पूर्ति करते हैं। आज के अख़बारात आये दिन औरतों के सामूहिक बलात्कार की खबरें प्रकाशित करते रहते हैं जो इस बात की दलील है कि एक लड़की (औरत) बारी बारी से कई लड़कों (मर्दों) की सेक्सी इच्छा की पूर्ति का ज़रिया बन सकती हैं। (तक़ी अली आबदी) केवल यही नही बल्कि वत्सायन ने अपनी किताब कामासूत्र में A WOMAN WITH TWO YOUTHS (दो जवानों के साथ एक औरत) से यह स्पष्ट किया गया है कि एक औरत एक ही समय में दो मर्दों की इच्छा पूर्ति का ज़रिया बन सकती है। (विस्तार के लिए देखिए KAMA SUTRA, VATSYAYANA EDITED BY MULK RAJ ANAND P 140. OM PRAKASH JAIN, SANSKRITI PRATISHTHAN, NEW DEHLI 1982 A.D)
24.दोशीज़ः प्रथम भाग , पेज 48
25. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः युसूफ आयत न. 23 सं 26
26.नहजुल बलाग़ा इर्शाद न ,420 पेज ( 637)
27.विस्तार के लिए देखिए इन पंकतियों के लेखक का लेख औरत नहजुल बलाग़ा की रौशनी में , पेज ( 28) से 38, बाबे शहरे इल्म , फैज़ाबाद जुलाई 1986 ई.।
28. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-नूर आयत न ,31 अपनी निगाहों को नीचे रखे और शर्मगाह की हिफाज़त (सुरक्षा) करने से सम्बन्धित मर्दों को भी हुक्म (आदेश) दिया गया है।
(ए रसूल स.) ईमानदारों से कह दो कि अपनी निगाहों को नीचे रखे और शर्मगाह की हिफाज़त करें यही उनके लिए ज़्यादा सफाई की बात है-। देखिये सूरः-ए-नूर आयत न ,30
इस से यह नतीजा निकलता है कि जब औरत और मर्द दोनों अपनी अपनी जगह निगाहों को नीचा रखे और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करेंगे तो बलात्कारी सम्भव ही नही।
औरत को अपने सीने पर चादर डाले रहने से सम्बन्धित ही क़ुर्आन में यहाँ तक मिल जाता है कि जो औरतें बाहर निकलते वक़्त चादर का घूँघट लटका लिया करेंगी तो उनको रास्ता चलते कोई मर्द छेड भी नही सकता।
ए नबी (स.) अपनी बीबीयों और अपनी लड़कियों और मोमिनीन की औरतों से कह दो कि (बाहर निकलते वक़्त) अपने (चेहरों और गर्दनों) पर अपनी चादरों का घूँघट लटका लिया करो यह उनकी (शराफत की) पहचान के वास्ते बहुत मुनासिब (उचित) है तो उन्हे कोई छेडेगा नहीं और खुदा तो बड़ा बख्शने वाला महरबान है। (कृपा करने वाला है)। (सूरः-ए-अहज़ाब आयत न ,59)
बहरहाल यह याद रखना चाहिए कि बलात्कार उस वक़्त सिद्ध होता है जब कोई मर्द अपने लिंग को ऍसी औरतों के आगे या पीछे के सुराख में जो उस पर पूरी तरह से हराम है इरादे के साथ दाखिल कर दे और अगर लिंग का दाखिल करना साबित न हो तो वह बलात्कार नही है चाहे बाकी हर तरफ स्वाद व आनन्द उठाया जाए बल्कि अपनी उंगलियाँ औरत की योनि में दाखिल करे या अपने लिंग को औरत के मुँह में दाखिल कर दे औरत के हराम होने की क़ैद इसी लिए लगाई गई है कि जो औरत उस पर हराम न हो जैसे हमेशा विवाह या कुछ समय के लिए विवाह (मुतअः) वाली बीबी या नौकरानी (लौड़ी) आदि तो उनसे मैथुन संभोग करने पर हद को (सज़ा) जारी न होगी क्योंकि यह उनके लिए शरई (धर्म के हिसाब से) हलाल है। इसी तरह लिंग के इरादे के साथ दाखिल करने की क़ैद इसलिए लगाई गई है अगर कोई लिंग को इरादे के साथ दाखिल न करे तो वह भी बलात्कार न होगा जैसे कोई दूसरा व्यक्ति किसी के लिंग को या स्वय औरत किसी के लिंग को अपने योनि में उसके अख्तियार और इरादे के बिना ज़बरदस्ती दाखिल कर ले तो यह भी बलात्कार न होगा.... लेकिन यह याद रखना चाहिए की बलात्कार का सबूत मिल जाने के बाद बलात्कार की हद कभी कत्ल होती है और कभी पत्थर मारना , कभी कोड़े मारना और कभी शहर से बाहर निकाल देना। बलात्कारी के विस्तार अध्यन के लिये देखिये , किताब अलहुदुद , व अलताज़ीरात , प्रथम भाग , सैय्यद मुहम्मद शीराज़ी , अनुवादक अख्तर अब्बास मुअर-सतु-अल-रसूल-अल-आज़म , पाकिस्तान , हुसैनीया हाल , हूप रोड लाहौर , 1404 हि)
29.तरबीयत-ए-औलाद , जान अली शाह काज़मी , पेज ( 18) अब्बास बुक एजेन्सी , लखनऊ , 1992 ई.
30.नहजुल बलाग़ा , इर्शाद न. 234 पेज न , 877
31 – 33. क़ुर्आन-ए-करीम बनी इस्राईल आयत न. ( 32) सूरः निसाअ आयत न. ( 15) व ( 19) व सूरः-ए-नूर आयत न , (2)
34. क़ुर्आन-ए-करीम , हाशिया सूरः-ए-निसाअ आयत न. ( 15) (देखिए मौलाना फर्मान अली का तर्जुमः)
35. दोशीज़ः प्रथम भाग पेज न , 48
36. मुस्तदक-अल-वसाएल , दूसरा भाग पेज न , 531, हदीस न ,21 मसाएल-ए-ज़िन्दगी पेज ( 176) से नक़्ल सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम , आदाब-ए-अज़वाज अबू अजवद मुहम्मद अल आज़मी पेज ( 11) व ( 12) इदारः-ए-तहकीक़ात व नशरियात-ए-इस्लामी , मदरसा-ए-ऐ आलिया अरबिया , मऊनाथ भनजन , यू पी 1985 ई से नक़्ल।
37.वसाएल-अल-शीयः भाग ( 14) पेज 5, मसाएल-ए-ज़िन्दगी पेज ( 185) से नक़्ल।
38.तहज़ीब-उल-इस्लाम ऊर्दू अनुवाद हिलयतुल मुत्तक़ीन , मुल्ला मुहम्मद बाक़िर मजलिसी , अनुवादक सैय्यद मक़बूल अहमद पेज 101, नूर-अल-मताबेअ , लखनऊ 1328 हि , सहीह मुस्लिम आदाबे अज़वाज पेज ( 12) से नक़्ल जवाहेर अल अखबार व रोज़ः अल अज़कार , औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तक़ीन , नवाब सैय्यद मुज़फ्फर हुसैन खाँ बहादुर पेज ( 307) स्टार प्रेस , कानपुर , 1313 हि , से नक़्ल।
39 व 40.तहज़ीब अल इस्लाम पेज ( 100) व 101.
41 व 42.मजमअ अल ज़वाएद व मनबअ अल फवाएद , भाग 4, अली बिन अबी बक्र अबू अल हसन नूर अल दीन अल हसीमी मिस्री , पेज 252, खानदान का अखलाक़ उस्ताद इब्राहीम अमीनी , अनुवादक अनदलीब ज़हरा पेज ( 12) दार अल सकाफा अल इस्लामिया , पाकिस्तान , 1992 ई से नक़्ल , औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तक़ीन पेज ( 307) व 308.
43. बिहार अल अनवार , जिल्द 103, अल्लामा मुहम्मद बाक़िर मजलिसी , पेज 217, खानदान का अखलाक़ पेज ( 12) से नक़्ल.
44. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 101.
45.याद रखना चाहिए कि अगर सेक्सी इच्छा की बहुतायत (अधिकता) की वजह से हराम का डर हो तो विवाह (निकाह) वाजिब (अनिवार्य) है वरना सुन्नत.
46 से 48. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-नूर आयत न , (32) सूरः-ए-रूम आयत न. 21 व सूरः-ए-फतह आयत न ,4.
49.बिहार अल अनवार , मसाएल-ए-ज़िन्दगी पेज ( 182) से नक़्ल.
50.तहज़ीब अल इस्लाम पेज 101.
51 से 53.औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तक़ीन पेज 308.
54. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-नूर आयत न ,32.
55.तहज़ीब अल इस्लाम , पेज ( 101) व 102.
56. कोशिश (प्रयास , मेहनत) से सम्बन्धित क़ुर्आन मे मिलता हैः
और यह कि मनुष्य को वही मिलता है जिसकी वह कोशिश करता है। (सूरः-ए-नज्म आयत न , 39)
57.रोज़ी (रिज़्क) से सम्बन्धित क़ुर्आन में मिलता हैः अपने परवर्दिगार की दी हुई रोज़ी खाओ (पियो) और उसका शुक्र (ध्नयवाद) अदा करो। (सूरः-ए-सबा आयत न , 15)
(58) व 59. वसाएल अल शीअः भाग ( 14) पेज न , 78, मसाएल ज़िन्दगी पेज ( 189) व ( 190) से नक़्स.
(60) से 64.तरबीयत-ए-औलाद पेज ( 19) से 21
65.तहज़ीब अल इस्लाम पेज 103.
66 व 67. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-नूर आयत न. 26 व 30-31.
68. जबकि ग़रीबी के खौफ (डर) से अपनी संतान (औलाद) को क़त्ल करने वाले लोंगो को क़ुर्आन-ए-करीम ने इस तरह आगाह किया हैः
और मुफलिसी (ग़रीबी) के खौफ से अपनी औलाद को मार न डालना (क्योंकि) उनको चाहे तुम को रोज़ी (रिज़्क) देने वाले तो हम हैं। (देखिए सूरः-ए-अनआम आयत न. 152.)
या
और (लोंगो) मुफलिसी के खौफ से अपनी औलाद को कत्ल न करो (क्योंकि) उनको और तुम को (सब को) तो हम ही रोज़ी देते हैं। बेशक औलाद (संतान) का कत्ल करना बड़ा सख्त गुनाह (बहुत बड़ा पाप) है। (देखिए सूरः-ए-बनी इस्राईल आयत न. 31) और फैमली प्लानिंग के उसूलों पर अमल करना (को मानना) औलाद को कत्ल करने के बराबर है।
69.तोहफतुल अवाम पेज 431, नवल किशोर , लखनऊ 1975 ई.
70.तहज़ीब अल इस्लाम पेज 101.
71.तौज़ीह अल मसाएल (ऊर्दू) आकाये सैय्यद अबू अल कासिम अल मूसवी अल खूई पेज ( 287) व 288, तनज़ीम अल मकातिब व तौज़ीह अल मसाएल (ऊर्दू) सैय्यद मुहम्मद रज़ा अल मूसवी गुलपाएगानी पेज ( 391) व ( 392) अनुवादक सैय्यद फ़य्याज़ हुसैन नक़वी दार अल कुर्आन अल करीम , कुम , ईरान 1413 हि.
72. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-निसाअ आयत न. 24
73. तोहफतुल अवाम पेज 422
74. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-निसाअ आयत न. ( 24) का हाशिया मौलाना फर्मान अली.
75. हुकूक ज़न दर इस्लाम (हिन्दी अनुवाद इस्लाम में नारी के विशेष अधिकार) लेखक शहीद मुर्तज़ा मुतहरी , अनुवाद सैय्यद शम्सुल हसन ज़ैदी व सैय्यद मुनतज़िर जाफरी पेज न. 79. उपकार प्रेस लखनऊ , 1989 ई.
76.हयात-ए-इज़दिवाज पेज ( 47) – 48
77.मसाएल ज़िन्दगी पेज 196-197
78. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-निसाअ आयत न. 24 का हाशिया मौलाना फर्मान अली।
79.अब्द उल करीम मुशताक़ अपनी किताब – हम मुतअः क्यों करते हैं- में लिखा है किः
प्राकृतिक उसूल (कायदः) है कि बुढापे मे औरत की इच्छा मर्द को अधिक होती है और मुख्य रूप से कम आयु की औरत की। उनकी यह इच्छा लालच और हवस पर आधारित नहीं की जा सकती क्योंकि प्राकृतिक कायदः है और प्राकृतिक इच्छा है। यही कारण है लोग खोई हुई जवानी क़मर झुकाये तलाश करते फिरते है और सैकङों रूपये इधर उधर की दवाईयों पर बरबाद करते हैं। लेकिन इस्लाम चूँकि हकीमानः (विज्ञान पूर्ण) निज़ाम (पद्धति) है अतः इसने इस समस्या का हल भी बहुत आसान बताया है कि अगर मर्द में समझ और अक़्ल बाक़ी है और कम औरत का प्रयोग दवाई के लिए , न कि मज़े लूटने के लिए चाहता है तो यह नुसखा लाभदायक सिद्ध होगा। चूँनाचे शुरूअ (आरम्भ) में इस नुस्खे पर अमल किया गया। इतिहास में यह बात पूरी तरह स्पष्ट है कि बुढ़ापे की उम्र मे सहाबः ने कम आयु की लड़कियों से शादीयाँ की मगर आज कल केवल ज़िद में इस बात को बुरा बता कर पूर्वजों की सीरतों को शर्मिन्दः किया जाता है। (ग़लत बताया जाता है)
लेकिन यहाँ यह सवाल किया जा सकता है कि चलिए यह नुस्खा बुढ़े मर्द के लिए लाभदायक हो सकता है मगर औरत के लिए बेकार है। क्योंकि मर्द अपने बुढ़ापे को दूर करने के लिए अपना बुढ़ापा जवान औरत के हवाले कर देता है जो औरत के हक़ पर डाका और ज़ुल्म (अन्याय) है। लेकिन ज़रा ग़ौर कीजिए , ऍसा एतिराज़ (हस्तक्षेप) पूरी उम्र के निकाह पर ठीक होगा लेकिन इस्लाम ने मुतअः का हुक्म देकर ऍसी हालत में मर्द और औरत दोनों की प्राकृतिक इच्छा का लिहाज़ रखा है कि थोड़े समय के लिए तुम इस दवाई का प्रयोग कर लो। फिर इसको छोड़ दो। अब मर्द की प्राकृतिक इच्छा भी पूरी हो गई और औरत भी आज़ाद है कि अपनी इच्छा अनुसार शादी कर सकती है। सारी उम्र बूढ़े के पल्ले से बंधी न रहेगी। अतः अन्याय (ज़ुल्म) किसी पर भी नहीं हुआ। (देखिए –हम मुतअः क्यों करते हैं- अब्द उल करीम मुश्ताक़ पेज ( 24) से 26, हैदरी कुतुब खाना , बम्बई)
यह याद रखना चाहिए की मुतअः की मुददत (समय) खत्म होने अर्थात औरत के आज़ाद होने पर औरत को इददे (अर्थात वह समय जिस में औरत पुनर्विवाह नहीं कर सकती) के दिन गुज़ारना (व्यतीत) करना होंगे ताकि यह साबित हो सके की मुतअः की मुददत में शारीरिक मिलाप से गर्भ ठहरा है या नहीं। तथा गर्भ किसका है ताकि बच्चे की विरासत (के संरक्षक) को तय किया जा सके। क्योंकि वह भी निकाही औलाद की तरह बाप की जाएदाद का वारिस होगा।मुतअः के बाद मुतअः की गई औरत की इददत से सम्बन्धित इमाम-ए-जाफ़र सादिक़ (अ ,) एक हदीस में इर्शाद फर्माते हैं किः
खुद उसी व्यक्ति से फिर अगर विवाह करना चाहे तो इददे की ज़रूरत नहीं है और अगर किसी और से विवाह चाहे तो पैतालिस ( 45) दिन का इददा रखने की ज़रूरत है। (मुतअः और इस्लाम , सैय्यद अल उलमा सैय्यद अली नक़ी नक़वी , पेज ( 76) इमामिया मिशन , लखनऊ , 1387 हि ,) और मुतअः के बाद औलाद पैदा होने से सम्बन्धित मिलता हैः
एक व्यक्ति ने इमाम-ए-रिज़ा (अ ,) से सवाल किया कि अगर कोई व्यक्ति औरत से मुतअः करे इस शर्त पर कि औलाद की इच्छा न करे और फिर औलाद हो जाए तो क्या हुक्म है। हज़रत ने यह सुन कर औलाद के इन्कार से सख्त मना किया और बहुत ज़्यादा अहमियत ज़ाहिर करते हुवे फर्माया कि हाँय। क्या वह औलाद का इन्कार कर देगा।
अर्थात हमेशा के या कुछ समय के निकाह से पैदा होने वाली औलाद में कोई अनतर नहीं है और दोनों को मीरास का हिस्सा बराबर मिलेगा। (देखिए मुतअः और इस्लाम पेज 96) (मुतअः से सम्बन्धित और मालूमात के लिए सैय्यद अल उलमा सैय्यद अली नक़ी नक़वी की किताब मुतअः और इस्लाम को देखा जा सकता है)
80.हम मुतअः क्यों करते हैं , पेज 28, मुतअः और इस्लाम पेज 92
81 व 82. इस्लाम में नारी के विशेष अधिकार पेज 79
83 व 84. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-निसाअ आयत न , (1) व सूरः-ए-एअराफ आयत न , 189
85.परवर्दिगार-ए-आलम ने मनुष्यों के अलावा भी हर एक की दो क़िस्में नर और मादा को बनाया है। क़ुर्आन में मिलता हैः
और यह कि वही नर व मादा दो तरह (के जानदार) नुत्फे (वीर्य) से जब (रहिम , गर्भ में) डाला जाता है पैदा करता है। (सूरः-ए-नज्म आयत न. 45-46)
86. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-तारिक़ आयत न. ( 5) से 7
87. यह बात बीसवीं सदी के आखिर में इल्मी तौर पर मालूम हो गयी है कि मर्द की रीढ़ की हड्डी में और औरत के सीने के ऊपरी हड्डियों में मनी बनती है। जिस को कुर्आन-ए-करीम ने सदियों पहले बताया था (तक़ी अली आबदी) (देखिए हयात-ए-इन्सान के छः मरहले , सैय्यद जवाद अल हुसैनी आले अली अल शाहरूदी अनुवादक प्रोफेसर अली हसनैन शेफतः पेज 22, जामेअ तालीमाते इस्लामी कराँची , पाकिस्तान , 1989 ई.।
88.औरत और मर्द की , माँ के गर्भाशय में जमा हुई इस मनी को कुर्आन-ए-करीम नुतफः-ए-मखलूत कहता है , इसी से मनुष्य की पैदाईश का तात्पर्य भी मालूम हो जाता है। मिलता हैः
हमने मनुष्य को मखलूत नुत्फे से पैदा किया कि उसे आज़मायें (उसकी परीक्षा लें) तो हमने उसे सुनता देखता बनाया। क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-दहर आयत न. 2
89. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-कयामः आयत न , (37) से ( 39) यहाँ याद रखना चाहिए कि औरत का गर्भवती होना और बच्चा जनना (पैदा करना) बिना खुदा की मर्ज़ी (इच्छा) के सम्भव नहीं।
क़ुर्आन-ए-करीम में हैः
और खुदा ने ही तुम लोंगों को पैदा (पहले पहल) मिट्टी से पैदा किया फिर नुत्फे से फिर तुम को जोड़ा (नर व मादा) बनाया और बिना उसके इल्म (ज्ञान) (और इजाज़त) के न कोई औरत गर्भवती होती है और न बच्चा जनती है (पैदा करती है) (सूरः-ए-फातिर आयत न. 11)
90. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-मोमिनून आयत न. 12 से 14
91 से 95. तहज़ीब अल इस्लाम पेज ( 100) से 103
96. दीवान परवीन ऍतिसामी पेज 187, तेहरान. 1962 ई. (जदीद फारसी कवित्री परवीन ऍतिसामी से सम्बन्धित कुछ मालूमात को इन पंक्तियों के लिखने वाले ने अपनी दो किताबों , परवीन ऍतिसामी हालात और शायरी , नामी प्रेस लखनऊ 1988 ई. में जमा किया है। (तक़ी अली आबदी)
97. विस्तार के लिए देखिए दोशिज़ः पहला भाग पेज 9, (13) व ( 14) और क़ानूने मुबाशरत पेज ( 23) से ( 25) (मुख्य रूप से पहचान के लिए)
98 से 100. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 103
101. तहज़ीब अल इस्लाम पेज ( 103) व ( 104) व औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तक़ीन पेज 307
102. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 104
103. सुन्दर औरत खूबसूरत औरत की पहचान से सम्बन्धित लोक शास्त्रों मे मिलता है किः
1. औरत के चार अंग सफेद होने चाहिए (अ) दाँत (ब) नाखुन (स) चेहरा (द) आँख की सफेदी
2. औरत की चार चीज़े सुर्ख (लाल) होनी चाहिए (अ) ज़बान (ब) गाल (स) होंठ (द) मसूढ़े
3. औरत की चार चीज़े गोल होनी चाहिए (अ) सर (ब) बाज़ू (स) ऐङियाँ (द) उगँलियों के पोरवे
4. औरत की चार चीज़े लम्बी होनी चाहिए (अ) कद (ब) पलकें (स) सर के बाल (द) उगँलियां
5. औरत की चार चीज़े मोटी होनी चाहिए (अ) चूतड़ (ब) गर्दन (स) रान (द) हिप
6. औरत की चार चीज़े छोटी होनी चाहिए (अ) सर (ब) कमर (स) बग़ल (द) मुँह
7. औरत की चार चीज़े चौड़ी होनी चाहिए (अ) शाना (ब) आँख (स) सीना (द) माथा
8. औरत की चार चीज़े तंग होनी चाहिए (अ) नाफ (ब) नाक के सुराख (स) मुँह का दहाना (द) शर्मगाह (योनि)
9. औरत की चार चीज़े छोटी होनी चाहिए (अ) हाँथ (ब) पाँव (स) रहिम (द) छाती
10. औरत की चार चीज़े नर्म होनी चाहिए (अ) सर के बाल (ब) पेट (स) हाँथ (द) शर्मगाह। (कानून-ए-मुबाशिरत पेज ( 76) व ( 77) से नक़्ल)
104 से 106. तहज़ीब अल इस्लाम पेज ( 104) व 105
107. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-नूर आयत न , 31
108. नहजुल बलाग़ा इर्शाद न , (234) पेज 877
109. दोशीज़ः पहला भाग पेज ( 15) – (16) व क़ानून-ए-मुबाशरत पेज 19-20
110. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-नूर आयत न. 30
111. जब कि अधुनिक युग में मर्द अपने शरीर के अधिक से अधिक हिस्सों को वस्त्रों से छुपाने की कोशिश कर रहा है और इसके विपरीत औरत शरीर के अधिक से अधिक हिस्सों (मुख्य रूप से सीना , पीठ , रान , पिंडली , बाज़ू , बग़ल आदि) को प्रकट करके आधी नंगी हो रही हैं ----- जो एक अच्छी औरत की निशानी नहीं समझी जा सकती। (तक़ी अली आबदी)
112. नक़ाब या चादर केवल मुसलमानों मे प्रचलित है और घूँघट मुसलमान औरतों के अलावा गैर मुसलमान औरतों मे भी। जो इस बात की दलील है कि प्राकृतिक तौर पर औरत अपनी निगाहों का पर्दः करना चाहती है। तक़ी अली आबदी
अच्छी और बुरी औरतों की पहचान के लिए –दोशिज़ः किताब के लेखक ने लिखा है किः
1. ज़्यादा सोच विचार और बनाव सिंगार में लगी रहने वाली , पर्दः कम करने वाली , झूठ बोलने वाली , पति से लड़ने झगड़ने वाली औरत मशकूक (संदिगद्ध) है।
2. दायें बायें घूरने , बिना वजह हसनें , ग़ैर मर्दों को अपना बाप , भाई बनाने वाली की इज़्ज़त देर तक बाक़ी रहनी मुश्किल है।
3. ग़ैर मर्दों के सामने हसने बोलने वाली औरत को अकेला नही छोड़ना चाहिए।
4. जो औरत शर्म और हया करने वाली , मुँह और शरीर को छुपाने वाली , अपनी औलाद से बहुत मुहब्बत रखती हो वह शरीफ और पाक दामन होती है। (देखिए दोशिज़ः पहला भाग , पेज ( 9) व 10)
113. औरतों और मर्दों के अंगों के लिए देखिए , दोशिज़ः पहला भाग , पेज ( 70) से ( 74) और पेज ( 135) से ( 140)।
114 से 116. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-बक़रः आयत न , 221, सूरः-ए-नूर आयत न , (3) और सूरः-ए-रूम आयत न. 21
117. रसूल और तयदाद इज़दिवाज , सैय्यद मुस्तफा हसन रिज़वी , पेज ( 13) इमामिया मिशन , लखनऊ 1386 हि.
118. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-निसाअ आयत न , 3
119. यहाँ एक से मुराद एक मर्द के नुत्फे से है क्योंकि कभी कभी औरत एक मर्द से मिलाप कर के नौ महीने में दो बच्चे को दे दिया करती है। इस तरह दो एक मिसालें दो से ज़्यादा बच्चों की भी मिल जाती है। (तक़ी अली आबदी)
120. रसूल और तयदादे इज़दवाज़ पेज न , (18) व 19
121 व 122. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-निसाअ आयत न. ( 3) व 23
123. तहज़ीब अल इस्लाम पेज न. ( 107) व औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तक़ीन भाग चार पेज 308, 1314 हि.
124. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-मोमिन आयत न. 60
125. सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम , आदाबे जवाज पेज ( 12) व ( 13) से नक़्ल व मसाएले ज़िन्दगी पेज ( 176) से नक़्ल.
126. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-नूर आयत न. ( 33) और पाकदामनी इख्तियार करने के लिए रसूले खुदा ने इर्शाद फ़र्मायाः
जिस किसी को निकाह करने की क़ुव्वत न हो वह रोज़े रखे , रोज़ा उनके लिए गुनाहों से बचाओ है। (देखिए सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम आदाबे ज़वाज पेज ( 13) से नक्ल।
जो व्यक्ति किसी ग़ैर औरत को देखे और उसको वह औरत अच्छी मालूम हो बाद में उसके वह व्यक्ति अपनी औरत से इस ख्याल से मैथुन , संभोग करे कि यह औरत और वह औरत एक जैसी है और शैतान को अपने दिल मे रास्ता न दे और अगर औरत न रखता हो तो दो रकअत नमाज़ पढ़े और हम्दे खुदा (खुदा की वन्दना करे) बजा लाए और सलवात (दुरूद) मुहम्मद (स.) व आले मुहम्मद (अ) पर भेजे , उसके बाद खुदा से सवाल करे कि खुदा वन्दा उसे औरत अता करे तो खुदा उसे औरत या वह चीज़ देगा कि उसको हराम से बचाए रखे। (देखिए तोहफाऐ अहमदिया , दूसरा भाग , सैय्यद अबू अल हसन पेज 141-142, बुसताने मुर्तज़वी , 1305 हि.
127. नहजुल बलाग़ा , इर्शाद न , 399, पेज 931
128. तौज़ीह अल मसाएल , खूई मसअलः न. 2420 पेज 283, व तौज़ीह अस मसाएल , गुलपाएगानी , मसअलः न 2384 पेज 386
129. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-कसस आयत न. 27
130. क़ुर्आन-ए-करीम में हराम औरतों की सूची इस तरह गिनाई गयी है।
मुसलमानो। निम्नलिखित औरतें तुम पर हराम की गयी हैं। तुम्हारी माँयें (दादी नानी आदि सब) और तुम्हारी बेटीयाँ (पोतियाँ नवासियाँ आदि) और तुम्हारी बहनें और तुम्हारी फूफीयाँ और खालायें और भतीजीयाँ और भानजीयाँ और तुम्हारी वह माँयें जिन्होने तुम को दुध पिलाया है और तुम्हारी दूध शरीक (रिज़ाई) बहनें और तुम्हारी बीवीयों की माँयें (सास) और उन औरतों (के पेट) से (पैदा हुई हैं) जिन से तुम संभोग कर चुके हो। हाँ अगर तुम ने उन बीवीयों से (केवल निकाह किया हो) संभोग न किया हो तो (उन माँओं की) लड़कियों से (निकाह करने में) तुम पर कुछ गुनाह नही और तुम्हारे वीर्य से पैदा हुए लड़कों (पोतों , नवासों आदि) की बीवीयाँ (बहूऐं) और दो बहनो से एक साथ निकाह करना मगर जो कुछ जो हो चुका (वह माफ है) बेशक खुदा बड़ा बखशने वाला और महरबान है। (देखिए सूरः-ए-निसाअ आयत न , 23)
और क़ुर्आन ही ने हलाल औरतों की सूची इस तरह गिनाई है।
और हमनें तुम्हारे वास्ते तुम्हारी उन बीवीयों को हलाल कर दिया है जिन को तुम महर दे चुके हो और तुम्हारी उन लौङियों को भी जो खुदा ने तुम को (बिना लड़े भिड़े) माले गनीमत (युद्ध में शत्रु से लूटा हुआ माल) में अता की है और तुम्हारे चाचा की बेटीयाँ और तुम्हारे मामू की बेटीयाँ और तुम्हारी खालाओं की बेटीयाँ (देखिए सूरः- अहज़ाब आयत न. 50)
क़ुर्आन ने हराम और हलाल के साथ शादी अर्थात रिश्ते के चयन का कुल्लिया (व्यापक नियम) इस तरह बयान किया हैः
गंदी औरत गंदे मर्दों के लिए (मुनासिब) हैं और गंदे मर्द गंदी औरत के लिए और पाक औरत पाक मर्दों के लिए (उचित) हैं और पाक मर्द पाक औरतों के लिए। लोग जो कुछ भी इनके सम्बन्ध में बाका करते हैं उससे यह लोग पूरी तरह अलग है इन ही (पाक लोगों के लिए (आखिरत) में बख्शिश (मोक्ष) है और इज़्ज़त की रोज़ी। (देखिए सूरः-नूर आयत न. 26)
131. क़ुर्आन-ए-करीम में है किः
तुम्हारी बीवीयों (वास्तव में) तुम्हारी खेती हैं तो तुम अपनी खेती में जिस तरह चाहो आओ। (देखिए सूरः-ए-बक़रा आयत न. 233)
132 व 133. हयाते इन्सान के छः मरहले , पेज 25
134. तरबीयते औलाद पेज 19
135. यहाँ इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि अगर किसी ने किसी औरत से निकाह का पैगाम भेजा है तो उसमें दूसरे को पैग़ाम नहीं देना चाहिए क्योंकि यह मनुष्ता , शराफत और हमदर्दी से गीरी हुई बूरी हरकत है जिसे इस्लामी शरीअत बिल्कुल पसन्द नही करती। इसीलिए रसूले खुदा ने इर्शाद फ़र्मायाः
कोई शख्स अपने भाई के पैग़ाम पर पैग़ाम न दे जब तक कि पहला शख्स अपना पैग़ाम छोड़ न दे या दूसरे को पैग़ाम देने की आज्ञा दे। (देखिए सहीह बुखारी , आदाबे ज़वाज , पेज ( 23) से नक़्ल।
136. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-निसाअ आयत न. ( 23) में लिखी हराम औरतों की सूची के अनुसार हराम मर्दों की सूची में बाप , दादा , नाना , पोता , नवासा , भाई , चाचा , मामूँ , भतीजा भानजा आदि आयेंगे जो औरतों पर हराम हैं। और क़ुर्आने क़रीम के सूराऐ अहज़ाब आयत न. ( 50) में वर्णित हलाल औरतों की मदद से हलाल मर्दों की सूची में चाचा का बेटा , फूफी का बेटा , मामूँ का बेटा , खाला का बेटा , जिसने महर दे कर निकाह किया हो आदि आयेंगे जो औरत पर हलाल हैं। (तक़ी अली आबदी)
137. अच्छे मर्दों के लिए हज़रत अली (अ) ने इर्शाद फर्माया है किः
मर्दों की खूबीयाँ हालात के बदलाव में मालूम होती हैं। (देखिए नहजुल बलाग़ा इर्शाद न. ( 217) पेज 874)
138. रसूले खुदा (स) ने इर्शाद फर्माया किः
अपनी बेटी अपने बराबर वाले और अपने जैसे को दो और अपने बराबर और अपने जैसे की बेटी लो और नुत्फे (वीर्य) के लिए ऍसी औरत तलाश करो जो उसके लिए मुनासिब (उचित) हो ताकि उससे लाएक़ (अच्छी) औलाद पैदा हो। (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम , पेज 103)
139. इस्लाम में नारी के विशेष अधिकार , पेज 83-84
140. तिरमाज़ी , निसाई , आदाबे ज़वाज , पेज ( 21) से नक़्ल
141. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 107
142. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-निसाअ आयत न. 115
143. कोक शास्त्र से सम्बन्धित संस्कृत किताबों में भी चाँद के महीने (अर्थात वैशाख , ज्येशठ , आषाढ़ , श्रवण , भादृपद , आश्विन , कार्तिक , मार्ग शीर्ष , पौष , माघ , फाल्गुन , और चैत्न) और तारीख के असरात (प्रभाव) औरत मर्द और बच्चे पर बताये गये हैं। (तक़ी अली आबदी)
144. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 107
145. चाँद के महीने के वह आखिरी तीन दिन जिसमें चाँद नहीं निकलता।
146. चाँद के महीने के वह आखिरी दिन जिसमें चाँद बुर्जे अकरब (व्रश्चिक राशि) में रहता है। इसके मालूम करने का तरीका यह है कि पहले यह मालूम करे के सूरज किस बुर्ज में है इस तरह से ईसवी कलैन्डर की तारीख तक जनवरी से तमाम दिनों की गिनती करके उस में दस को बढ़ायें। फिर हर बुर्ज में दिनों को बाटें (अर्थात सभी बुर्जों को दिनों में इस तरह बाटें।) जदी (मकर राशि) 29. दलव (कुंभ राशि) 30, हूत (मीन राशि) 30, हमल (मेष राशि) 31, सौर (वृष राशि) 31, जौज़ा (मिथुन राशि) 32, सर्तान (कर्क राशि) 31, असद (सिंह राशि) 30, संबुल (कन्या राशि) 31, मीज़ान (तुला राशि) 30, अक्रब (वृश्चिक राशि) 30, और क़ौस (धनु राशि) 29। फिर आखिर में बचे हुवे या पूरे पूरे बटे हुए दिनों से सूरज का बुर्ज मालूम हो जाएगा। उदाहरणर्थात यह मालूम करना है कि ( 14) नवम्बर 1993 ई. ( 28 जमादी अल अव्वल 1414 हि.) को सूरज किस बुर्ज (राशि) में है तो पहली जनवरी से ( 14) नवम्बर तक सभी दिनों की गिनती करें।
जनवरी ( 31) + फरवरी 28+ मार्च ( 31) + अप्रैल ( 30) + मई ( 31) + जून ( 30) + जुलाई ( 31) + अगस्त ( 31) + सितम्बर ( 30) + अक्तूबर ( 31) + नवम्बर ( 14) = (318) दिन इसमें ( 10) को बढ़ाओ ( 318) + (10) = (328) अब ( 328) को राशियों के दिनों में बाँटा , जदी ( 29) + दलव ( 30) + हूत ( 30) + हमल ( 31) + सौर 31+ जौज़ा ( 32) + सर्तान ( 31) + असद ( 31) + संबुलः ( 31) + मीज़ान ( 30) = (306) इसके बाद ( 22) दिन ( 328 – (306) = 22) बचे जो बुर्जे अक्रब (वृश्चिक राशि) में आयें। अतः मालूम हुआ कि सूरज बुर्जे अक्रब में है।
और चाँद के महीने की तारीख ( 28 जमादी अल अव्वल. ( 14) नवम्बर) को ( 13) से गुणा देकर उसमें ( 26) को बढ़ाया। फिर बुर्जे अक्रब (जिस में ( 14) नवम्बर को सूरज है) से हर राशि में 30-30 बाटते चले गए तो आखिरी राशि चाँद का बुर्ज (की राशि) होगा। इस तरह चाँद की तारीखों को ( 13) से गुणा करने पर 28*13=364, (26) को बाढ़ाने पर 364+26 = (39) अब बुर्जे अक्रब (जिसमें ( 14) नवम्बर को सूरज है) से 30-30 हर बुर्ज में बाटने पर अक्रब 30+ कौस 30+ जदी 30+ दवल 30+ हूत 30+ हमल 30+ सौर 30+ जौज़ा 30+ सर्तान 30+ असद 30+ संबुल 30+ मीज़ान 30+ अक्रब ( 30) = (390) पूरे पूरे बुर्जे अक्रब में बट गये अतः मालूम हुआ कि ( 14) नवम्बर ( 28) जामादी अल अव्वल को क़मर दर अक्रब (अर्थात चाँद बुर्जे अक्रब में) हुआ।
क़ुर्आने करीम में हैः
बहुत बा बरकत है वह खुदा जिसने आसमान पर बुर्ज बनाए और उन बुर्जों में सूरज का चिराग और जगमगाता चाँद बनाया। (सूराऐ फुर्क़ान आयत न. 61)
आठवां आसमान जिसे शरीअत में कुर्सी कहते हैं उसकी खबुर्ज़े की काशों के से बारह टुकड़े बराबर के हैं उन्ही को बुर्ज कहते हैं। इन में हर एक सूरज तो एक महीना रहता है और चाँद एक ही महीनें में सब बुर्जों को तय करता और हर बुर्ज में ढ़ाई दिन रहता है (देखिए क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-हजर आयत न. ( 16) का हाशिया) और इन्ही सूरज और चाँद के बुरूज से क़मर दर अक्रब निकाला जाता है जो लगभग दो दिन पाँच घन्टे रहता है। और दो क़मर दर अक्रब के बीच लगभग ( 25) दिन ( 10) घंटे का वकफा रहता है यह घंटा , मिनट , सेकेंड मे रहता है जिसके निकालने का तरीक़ा नुजूम (ज्योतिष) की किताबों (जैसे देखिए मुहम्मद वाजिद अली शाह के काल में लिखी गई किताब अनवार उस नुजूम , सैय्यद मुहम्मद हसन , उर्फ मीर ग़ुलाम हुसैन दहलवी , पेज 29-30, 37-38 आदि , हसन प्रिंटिंग प्रेस , हीवेट रोड , लखनऊ) आसानी के लिए जनतरीयों को भी देखा जा सकता है। (तक़ी अली आबदी)
147 से 149. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 107
150. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 107, निकाह के रात में होने से सम्बन्धित अल्लामा सैय्यद ज़ीशान हैदर जवादी ने लिखा है किः
अक़्द का रात में होना उस सुहावने माहौल की तरफ इशारा है जिस में सेक्सी लगाव के बहुत से कारण खुद से पैदा हो जाते हैं और इन्सान एक दीमागी सुकून महसूस करने लगता है। (देखिए खानदान और इन्सान , अल्लामा ज़ीशान हैदर जवादी , पेज 46, मज़हबी दुनियां 19, कोहलन टोला , इलाहाबाद , 1983 ई ,
151 व 152. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 107
153. आधुनिक युग में दहेज देने या लेने के खिलाफ एहतिजाज किया जाता है। जबकि पैग़मबर ए इस्लाम (स.) ने अपनी बेटी फातमः ज़हरा (स) को दहेज दिया जो इस बात की दलील है कि आप अपनी बेटी को नये घर का इन्तिज़ाम (रख रखाव) के लिए दहेज दे सकते हैं। लेकिन उसे इस बात का ज़रूर ध्यान रखना चाहिए कि रसूल ए खुदा (स) ने अपनी बेटी का दहेज तय्यार करने के लिए लड़के (अर्थात हज़रत अली (अ)) से महर की माँग की और उसी से दहेज तैय्यार किया। अतः हर बाप को अपनी बेटी का दहेज तैय्यार करने के लिए चाहिए की वह उसके होने वाले पति से महर की माँग करे और उसी से ज़िन्दगी की ज़रूरतों का सामान , अर्थात दहेज तैय्यार करे। (तक़ी अली आबदी)
154. वसाएल अल शीअः भाग ( 14) पेज 78, मसाएल ए ज़िन्दगी पेज ( 189) से ( 190) से नक्ल.
155. हदीस मे आया है कि पाँच सौ को इस लिए तय किया गया है कि परवर्दिगार ने अपने ऊपर वाजिब करार दिया है कि जो मोमिन अल्लाहो अकबर सौ बार , सौ बार ला इलाहा इललल्लाह , सौ बार अलहमदो लिल्लाह , सौ बार सुबहान अल्लाह और सौ बार अल्ला हुम्मा सल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद (सब मिला कर पाँच सौ बार) कहेगा और उसके बाद कहेगा अल्लाहुम्मा ज़वविजनी मिनल हूरिल ऍन (अर्थात ऐ अल्लाह मेरा बड़ी बड़ी आँखों वाली हूर से जोड़ा लगा) तो खुदा बड़ी बड़ी आँखों वाली हूर से उसका जोड़ा लगाऐगा और उस मोमिन बन्दे के पढ़े गये पाँच सौ कलमात को महर करार देगा। (देखिए औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तकीन पेज 309)
156. वसाएल अल शीअः भाग ( 14) पेज 78, मसाएल ए ज़िन्दगी पेज ( 190) से नक्ल.
157. तोहफत उल अवाम पेज 428
158 व 159. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-निसाअ , आयत न , (4) व 24
160. आम तौर से शीओं में निकाह के समय खुतबः पढ़ा जाता है जो इमाम ए मुहम्मद ए तक़ी (अ) ने खलीफ़ा मामून रशीद की बेटी उम उल फज़ल के साथ अपने अक्द ए निकाह के मौके पर पढ़ा। (देखिए औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तकीन पेज 309, तहज़ीब अल इस्लाम पेज 108, तोहफत उल अवाम पेज 424, 425, चौदह सितारे , सैय्यद नजमुल हसन करारवी , पेज 382, शीआ बुक ऐजन्सी , इन्साफ प्रेस , लाहौर , 1974 ई. कुछ विद्धानों ने इसी को बेहतर जाना है।
161. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-फुरक़ान , आयत न. 54
162. तहज़ीब अल इस्लाम , पेज 107
163. मिलता है कि रूखसत की रात में रसूल ए खुदा (स) ने अपना खच्चर अशहब नाम का मगाया और एक चादर जो रंग बिरंग के टुकड़ो से जोड कर बनाई गई थी उसके मुँह पर डाल दी। जनाब सलमान ए फारसी को हुक्म दिया कि इसकी लगाम थाम कर चलें। हज़रत फातिमः ज़हरा (स) को हुक्म दिया की उस पर सवार हो जायें और खुद आन हज़रत पीछे पीछे रवाना हुवे। रास्ते में फ़रिश्तों की आवाज़ आन हज़रत (स) के मुबारक कान में पहुँची देखा की जिबरईल व मीकाईल (अ) एक एक हज़ार फ़रिश्तों को साथ लेकर आयें हैं और उन्होंने अर्ज़ की कि खुदा ने हमको हज़रत ज़हरी (स) की विदाई की मुबारकबाद के लिए भेजा है। उस वक़्त से जिबरईल व मीकाईल अपने साथ के फ़रिश्तों के साथ अल्लाहो अकबर कहते रहे। इसी वजह से दुल्हन की रूखसती (विदाई) के समय अल्लाहो अकबर कहना सुन्नत है। (देखिए तहज़ीब उल इस्लाम पेज 113)
164 व 165. तहज़ीब उल इस्लाम पेज 117
166. तहज़ीब उल इस्लाम पेज 116, व औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तकीन पेज 312
167. तहज़ीब अल इस्लाम , पेज ( 111) व तोहफ ए अहमदया भाग ( 2) पेज 139
168. वर्तमान युग में अधिकतर लोग दुल्हन के पैर केवल रस्म समझ कर धुलाते हैं न की रसूल अल्लाह (स) की वसीयत समझ कर खुदा करे रसूल अल्लाह (स) की वसीयत समझकर पैर धुलायें और घर के कोने कोने में पानी छिड़क कर खैर व बरकत (लाभ) का अन्दाज़ः लगायें। आमीन (तक़ी अली आबदी)
169. जब कि वर्तमान युग मे दुल्हन के वुजूद को शौहर...... दहेज , अच्छे की तलाश न पसन्दीदः आदि के हरकत के कारण खत्म कर देते हैं या दुल्हन खुद कुछ खटपट , अपनी पसन्द के अनुसार जीवन व्यतीत न होने , दहेज , अच्छे का चयन न होने आदि के कारण अपने वुजूद को खत्म कर लेती है , इस तरह की खबरें रोज़ पढ़ने और सुनने को मिलती हैं जिसको खत्म करना हर औरत और मर्द का अपनी अपनी जगह कर्तव्य है। (तक़ी अली आबदी)
170. जबकि आम तौर से देखने में यह आता है कि दूल्हा तो खामोशी से दुल्हन के आँचल पर दो रकअत नमाज़ पढ़ लेता है लेकिन दुल्हन से नहीं कह पाता की नमाज़ पढ़ो..... मुमकिन है कि किसी मौके पर दुल्हन शरई सबब (मज़हबी कारण अर्थात मासिक खून आने) की वजह से नमाज़ न पढ़ सकी हो और बाद में धीरे धीरे उसी को रस्म बना लिया गया हो। अतः चाहिए कि इस रस्म को तोड़े और इमाम ए मुहम्मद ए बाक़िर (अ) की शिक्षा के अनुसार दूल्हा और दुल्हन दोनों नमाज़ पढ़े और अपने लिए खैर व बरकत की दुआऐं करें। यही इस्लाम मज़हब की बुनियादी शिक्षा भी है। (तक़ी अली आबदी)
171. तहज़ीब उल इस्लाम , पेज ( 116) व औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तक़ीन , पेज 313
172 से 175. तहज़ीब अल इस्लाम पेज ( 116) से 118
176. आदाबे ज़वाज पेज 60, सहीह बुखारी , सुनन तिरमीज़ी अबू दाऊद , आदाबे इज़दवाज , सैय्यद अहमद उरूज कादरी , पेज 9, इदारः ए शहादत ए हक़ , नई दिल्ली 1986 ई.)
177 व 178. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 118.
179. मिलता है कि पैग़मबर ए इस्लाम (स) जनाबे फातिमः ज़हरा (अ) और हज़रत अली (अ) के घर गये और पानी मगाया , उससे वज़ू किया और वज़ू का पानी हज़रत अली (अ) पर डाल कर यह दुआ किः
अल्लाहुम्मा बारिक फीहेमा व बारिक लहोमा फी बेनाए हेमा (अर्थात ए खुदा इन के सम्बन्धों में बरत नाज़िल फर्मा और इनकी सुहाग रात को इनके लिए मुबारक बना) (देखिए इब्ने सऊद , तिबरानी , इब्ने असाकर , आदाबे इज़दवाज पेज ( 16) से नक़्ल)
181 व 182. तहज़ीब अल इस्लाम , पेज ( 107) व 114
182 व 183. देखिए तौज़ीहु अल मसाएल (उर्दू) सैय्यद अबुल अल कासिम अल खुई या आकाए सैय्यद मुहम्मद रज़ा गुलपाएगानी क्रमशः पेज ( 283) या पेज 386
184. सहीह मुस्लिम आदाब ए ज़वाज पेज ( 61) व आदाब ए इज़दिवाज पेज 15
185. मसाएल में मिलता है किः
जहाँ भी एक महीना कहा जाए उससे वहाँ महीने की पहली तारीख से लेकर तीसवीं तारीख तक का समय तय नहीं बल्कि खून आना शुरू से लेकर तीस दिन खत्म होने तक के समय से मुराद है। (देखिए तौज़ीहु अल मसाएल (उर्दू) सैय्यद अबुल अल कासिम अल खुई पेज ( 57) आकाए सैय्यद मुहम्मद रज़ा गुलपाएगानी पेज 90-91.
186 व 187. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-बकरा आयत न. ( 222) व हाशिया
188. आदाब ए ज़वाज , पेज 64
189. मसाएल में मिलता है किः
मासिक खून आने वाली औरत के साथ संभोग के अलावा बाकी हर तरह की छेड़ छाड़ , चुमा चाटी जाएज़ है। (देखिए तौज़ीह अल मसाएल , सैय्यद अबुल अल कासिम अल खुई पेज 58)
190. मसाएल में मिलता है किः
अगर औरत के मासिक खून आने के दिनों को तीन हिस्सों में बाँटा जाए और शौहर पहले हिस्से में औरत के आगे के हिस्सें में मैथुन करे तो मुसतहब बल्कि अहतियात यह है कि चने के अठठारह दानों के बराबर सोना कफ्फारे के तौर पर फकीर को दे और अगर दूसरे हिस्से में मैथुन करे तो नौ दानों के बराबर और अगर तीसरे हिस्से में मैथुन करे तो साढे चार दानों के बराबर दे। जैसे एक औरत को छः दिन हैज़ आता है तो अगर शौहर पहले दो दिनों की रात में मैथुन करे तो मुसतहिब बल्कि अहतियात यह है कि अठठारह दोने को देना पड़ेगा और तीसरे चौथे दिन या रात में हो तो नौ दाने और पाँचवे या छटे दिन या रात में साढ़े चार दाने देने पड़ेगें। (देखिए तौज़ीहुल मसाएल (उर्दू) मुहम्मद रज़ा गुलपाएगानी पेज ( 79) व अल खूई पेज 50)
191. शर्मगाह योनि में मैथुन करना औरत के लिए हराम है और मर्द के लिए भी अगरचे (चाहे) केवल खतने की जगह हो और वीर्य भी न निकले बल्कि अहतियात वाजिब यह है कि खतने वाली जगह से कम जगह भी दाखिल (प्रविष्ट) न करे। और हैज़ वाली औरत के पीछे के हिस्से में भी मैथुन न करें। (चूँकि सख्त (बहुत ज़्यादा) मक्रूह है। (देखिए तौज़ीहुल मसाएल (उर्दू) गुलपाएगानी पेज 79)
192. मसनद अहमद , 444/2, 479, अबू दाऊद भाग ( 1) किताब अल निकाह , बाब फी जेमाअ अल निकाह , जिमाअ के आदाब , सुल्तान अहमद इस्लामी पेज 28-29 अल कलम प्रेस एण्ड पब्लीकेशन्स , नई दिल्ली , 1991 ई. से नक़्ल।.
193. तिरमिज़ी भाग 1, अबवाब अल रिज़ाअ , जिमाअ के आदाब पेज. ( 250) से नक़्ल।
194. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-बकरा आयत न. 222
195.तौज़ीह अल मसाएल , खुई पेज ( 51) व गुलपाएगानी पेज 80-81
196. तौज़ीह अल मसाएल खूई पेज 58, जबकि आकाए गुलपाएगानी ने कफ्फारः अदा करने को अहतियाते मुसतहिब बताया है। मिलता है किः
निफास की हालत में औरत को तलाक़ देना बातिल है और उससे संभोग करना हराम है और अगर शौहर उस से संभोग कर ले तो अहतियाते मुसतहिब यह है कि जिस तरह अहकामे हैज़ में बयान हो चुका है कफ्फारः अदा करे। (देखिए तौज़ीह अल मसाएल (उर्दू) आकाए गुलपाएगानी पेज 92)
197. तौज़ीह अल मसाएल (उर्दू) खूई , पेज 172
198. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-बकरा आयत न. 187
199 व 200. तौज़ीह अल मसाएल (उर्दू) खूई पेज 190
201. दस्तूर ए हज , मसाएल ए हज मुताबिक फतवाए अबू अल कासिम अल खूई , रूह अल्लाह खुमैनी , अनुवादक सैय्यद मुहम्मद सालेह रिज़वी , पेज 39, निज़ामी प्रेस , लखनऊ , 1980 ई.।
202. यहाँ रहे कि अहले सुन्नत के यहाँ तवाफ ए निसाअ नहीं है। (तक़ी अली आबदी)
203 व 204. दस्तूर ए हज , पेज ( 82) व 83
205. देखिए हयात ए इन्सान के छः मरहले पेज ( 32) से 36
206. इमाम ए जाफ़र ए सादिक (अ.) ने इर्शाद फ़र्माया किः जिस समय सूरज निकलता है या निकलने के बाद अभी पूरी तरह रौशन न हुआ हो बल्कि थोड़ी लाली ली हो और इसी तरह डूबने से पहले जब रौशनी कम हो गई हो और लाली लिए हुवे हो या डूबता हो , उन वक़्तों में मुजनिब (अर्थात वीर्य निकलना) होना मक्रूह है (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज ( 111) व औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तकीन पेज 313
207. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 115
208. यही वजह है कि चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण के मौकों पर गर्भवती औरतों को विभिन्न तरह की हिदायतें की जाती हैं। जैसे कुछ काटे नहीं , जागती रहे आदि। क्योंकि इन मौकों पर गर्भवती औरत के किये गये कार्य का असर गर्भ में बढ़ रहे बच्चे पर ज़रूर पड़ता है। (तकी अली आबदी)
209. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 108
210. वही पेज ( 109) व औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तकीन में यही हदीस इमाम ए जाफर ए सादिक (अ.) से नक्ल है (देखिए पेज 313)
211. तहज़ीब अल इस्लाम , पेज 109
212. तोहफत अल अवाम , पेज 430
213. तहज़ीब अल इस्लाम , पेज 113
214. बातें न करने से सम्बन्धित ही इमाम ए जाफऱ ए सादिक (अ) ने इर्शाद फर्माया किः
अगर संभोग के समय बात किया जाए तो ख़ौफ है कि बच्चा गूँगा पैदा हो और अगर उस हालत में मर्द औरत की तरफ देखे तो खौफ है कि बच्चा अन्धा पैदा हो। (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज 109)
215. जहाँ एक मौके पर इमाम ए जाफर ए सादिक (अ) ने संभोग के समय औरत की योनि की तरफ न देखने की बात कही है। वहीं दूसरी जगह मिलता है किः
संभोग के समय औरत की योनि की ओर देखनें में कोई हर्ज नहीं। (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज 109)
216. यहाँ कोठे से मुराद आसमान के नीचे खुली छत है न कि कोठे का कमरा। (तकी अली आबदी)
217. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 111-112
218 व 219. वही पेज 110, व औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तकीन ( 313) – (314) लेकिन अगर कनीज़ से संभोग कर रहा है तो कोई हर्ज नही। हदीस में है किः
लौड़ी से ऐसी हालत में संभोग करना कि उस मकान में कोई व्यक्ति हो जो उनको देखे या उन की आवाज़ सुने कुछ हर्ज नहीं (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम , पेज 110)
220 से 222. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 110, 115
223. हयात ए इन्सान के छः मरहले पेज 38
224 व 225. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 115-116, 110-111
226. कानून ए मुबाशरत पेज 12
227. तहज़ीब अल इस्लाम , पेज 112-113 व तोहफः ए अहमदया भाग ( 2) पेज 141
228 व 229. तहज़ीब अल इस्लाम पेज ( 114) व ( 109) व औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तकीन पेज 314
230. याद रखना चाहिए कि इमाम ए जाफर ए सादिक (अ) से संभोग से सम्बन्धित निम्नलिखित बातें भी पूछी गयी कि
(अ) अगर संभोग के समय औरत या मर्द के मुँह से कपड़ा हट जाए तो कैसा। फर्माया कुछ हर्ज नहीं।
(ब) अगर कोई संभोग करने की हालत में अपनी औरत का बोसा ले (प्यार करे) तो कैसा। फर्माया कुछ हर्ज नही। (इस तरह करने से सेक्सी स्वाद व आनन्द काफी हद तक बढ़ जाता है। जिसका अहसास (अनुभव) औरत और मर्द दोनों को होता है।) (तकी अली आबदी)
(स) अगर कोई व्यक्ति अपनी औरत को नंगा कर के देखे तो कैसा। फर्माया न देखने में स्वाद व आनन्द ज़्यादा है।
(द) क्या पानी में संभोग कर सकते हैं। फर्माया कोई हर्ज नहीं।
और इमाम रज़ा (अ) से पूछा गया कि हम्माम (स्नानग्रह) में संभोग कर सकते हैं। फर्माया कुछ हर्ज नहीं। (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम , पेज ( 109) व 110)
231. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 110
232. तौज़ीह अल मसाएल (उर्दू) मुहम्मद रज़ा गुलपाएगानी पेज ( 391) और अबू अल कालिस अल खूई के अमलये मे मिलता है कि
मर्द को अपनी जवान और विवाहित बीवी से चार महीनें में एक बार ज़रूर संभोग करना चाहिए। (देखिए तौज़ीह अल मसाएल अल खूई पेज 287)
233. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 122
234 व 235. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-आले इमरान , आयत न. 38 व सूराऐ वस्साफफात , आयत न. ( 100)
236. तोहफ ए अहमदया भाग ( 2) पेज 139
237. सेक्स के विशेषज्ञों (माहिरीन ए जिनसीयात) ने औरत की सेक्सी इच्छा बढ़ाने और भड़काने के लिए चाँद की तारीखों के हिसाब से अलग अलग हस्सास (संवेदन शील) अंगों को बताया है जिस को सहलाने और मसलने से औरत बहुत जल्दी काबू हो कर संभोग के लिए तैय्यार हो जाती है और मर्द अपनी पूरी मर्दानगी के साथ संभोग करके खुद भी स्वाद व आनन्द उठाता है और बीवी