तुम मेरी पनाह में थे, मैं तुम्हारा क़त्ल कैसे करता? इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अली इब्ने हुसैन, अल सज्जाद)

इस मेहमान नवाज़ी की कोई  मिसाल नहीं |  शाम का धुंधलका घिर चुका था। अचानक  इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अली इब्ने हुसैन, अल सज्जाद) को लगा ...



इस मेहमान नवाज़ी की कोई  मिसाल नहीं | 

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शाम का धुंधलका घिर चुका था। अचानक इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अली इब्ने हुसैन, अल सज्जाद) को लगा की कोई दरवाज़े पे दस्तक दे रहा है |  इमाम ने दरवाज़ा खोला देखा एक शख्स है जो दुश्मनो से भाग के पनाह लेने के लिए उनके दर पे आया है | 


इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अली इब्ने हुसैन, अल सज्जाद)  ने उसे घर में बुलाया और कहा खाना खाओ लो भूखे लगते हो और आराम करो जब इत्मीनान हो जाए की बहार कोई खतरा नहीं  तो चले जाना | 

थोड़ी देर बाद इमाम ने देखा की वो शख्स सो नहीं रहा कुछ घबराया हुआ है तो इमाम ने उस से पूछा ऐ शख्स कोई और परेशानी हो तो बताओ लेकिन उस शख्स ने कुछ ना बताया | 

इस शख़्स की आंखो में मगर नींद न थी। आख़िर उसने भाग निकलने का फैसला किया। छिपकर निकलना ही चाहता था कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अली इब्ने हुसैन, अल सज्जाद) ने आवाज़ दी ऐ  सनान, कहां जा रहे हो? सुबह तक तो इंतज़ार करो। 

शख़्स और घबरा गया।
आपने मुझे पहचान लिया?


हमने तो उसी वक़्त पहचान लिया था सनान जब तुम को दरवाज़ा खोलते ही देखा था | 


आप जानते हैं मैं कौन हूं?


हां। तुम मेरे भाई अकबर के क़ातिल हो। तुमने कर्बला में मेरे बाबा को नेज़ा मारकर घायल किया था। तुम मेरे तमाम भूखे-प्यासे अज़ीज़ों के क़त्ल मे शामिल थे सनान इब्ने अनस।
फिर भी आपने मुझे पानी दिया, खाना खिलाया और पनाह दी? आपने मुझे क़त्ल क्यों किया?


तुम मेरी पनाह में थे, मैं तुम्हारा क़त्ल कैसे करता?
लेकिन मैंने कर्बला में ये सब नहीं सोचा...


वो तुम्हारा ज़र्फ था सनान ये हमारा ज़र्फ है। तुम घायल, निहत्थे, भूखे-प्यासे, हैरान-परेशान जान बचाने के लिए भटक रहे हो। हम ऐसे इंसान का क़त्ल नहीं करते। चाहे वो बदतरीन दुश्मन ही क्यों न हो। हम वारिसे रसूल (सअ) हैं। हम तुम जैसे नहीं। जाओ तुम्हारे गुनाहों का हिसाब अल्लाह पर छोड़ा।

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