बरज़ख़ ,स्वर्ग.नरक और क़यामत क्या है
बरज़ख़ आयाते क़ुरआन और अहादीस मासूमीन (अ) से मालूम होता है कि मौत इंसान की नाबूदी का नाम नही है बल्कि मौत के बाद इंसान की रूह ...
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बरज़ख़
आयाते क़ुरआन और अहादीस मासूमीन (अ) से मालूम होता है कि मौत इंसान की नाबूदी का नाम नही है बल्कि मौत के बाद इंसान की रूह बाक़ी रहती है। अगर आमाल नेक हों तो वह रूह आराम व सुकून और नेमतों के साथ रहती है और अगर आमाल बुरे हों तो क़यामत तक अज़ाब में मुब्तला रहती है।
मौत के बाद से क़यामत तक के दरमियान की ज़िन्दगी को बरज़ख़ कहा जाता है। बरज़ख़ की ज़िन्दगी कोई ख़्याली ज़िन्दगी नही है बल्कि एक हक़ीक़ी ज़िन्दगी है।
बरज़ख़ के बारे में रिवायत में आया है कि
ان القبر ریاض من ریاض الجنة او حفرة من حفر النار
बरज़ख़ जन्नत के बाग़ों में से एक बाग़ या फिर जहन्नम की आग का एक हिस्सा है।[1]
हज़रत अली (अ) का फ़रमान
हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) से एक तूलानी रिवायत कई सनदों के साथ मोतबर किताबों में नक़्ल हुई है। आप उस रिवायत में बरज़ख़ के हालात को इस तरह बयान करते हैं:
जब इंसान की ज़िन्दगी का आख़िरी दिन और आख़िरत का पहला दिन होगा तो उस की बीवी, माल व दौलत और उस के आमाल उस के सामने मुजस्सम हो जायेगें, उस वक़्त मरने वाला शख़्स माल से सवाल करेगा कि क़सम ख़ुदा की मैं तेरा लालची था अब बता तू मेरे हक़ में क्या कर सकता है? माल जवाब देगा अपना कफ़न मुझ से लेकर चले जाओ। फिर वह अपने बच्चों की तरफ़ रुख़ कर के कहेगा: क़सम ख़ुदा की मैं तुम्हारा मुहिब और हामी था अब तुम मेरे लिये क्या कर सकते हो? वह जवाब देगें हम आप को क़ब्र तक पहुचा देगें और उस में दफ़्न कर देगें, उस के बाद वह आमाल की तरफ़ करेगा और कहेगा कि ख़ुदा की क़सम! मैं ने तुमसे मुँह फेर रखा था और तुम्हें अपने लिये दुशवार और मुश्किल समझता था अब तुम बताओ कि मेरे हक़ में क्या कर सकते हो? तो आमाल जवाब देंगे कि हम क़ब्र और क़यामत में तुम्हारे साथ रहेंगे यहाँ तक कि परवरदिगार के हुज़ूर में एक साथ हाज़िर होगें।
अब अगर इस दुनिया से जाने वाला अवलियाउल्लाह में से होगा तो उसके पास कोई ऐसा आयेगा जो लोगों में सब से ज़्यादा ख़ूबसूरत, ख़ुशबूदार और ख़ुश लिबास होगा और उससे कहेगा कि तुम्हे हर तरह के ग़म व दुख से दूरी और बहिशती रिज़्क़ और जावेद वादी की बशारत हो, इसलिये कि अब तुम बेहतरीन मंज़िल में आ चुके हो वह मरने वाला वली ए ख़ुदा सवाल करेगा ‘’तू कौन है?’’ वह जवाब देगा मैं तेरा नेक अमल हूँ लिहाज़ा अब तुम इस दुनिया से बहिश्त की तरफ़ कूच करो, फिर वह ग़ुस्ल और काधाँ देने वाले अफ़राद से कहेगा कि इसकी तजहीज़ व तकफ़ीन को ख़त्म करो........और अगर मय्यत ख़ुदा के दुश्मन की होगी तो उसके पास कोई आयेगा जो मख़्लूक़ाते ख़ुदा में सबसे ज़्यादा बद लिबास और बदबूदार होगा और वह उससे कहेगा मैं तुझे दोज़ख़ और आतिशे जहन्नम की ख़बर सुनाता हूँ फिर वह उसके ग़ुस्ल देने वालों और काँधा देने वालों से कहेगा कि वह इसके कफ़न व दफ़न में देर करें।
जब वह क़ब्र में दाख़िल होगा तो क़ब्र में सवाल करने वाले आ पहुँचेगें और उसके कफ़न को नोच देंगें और उस से मुख़ातिब हो कर कहेगें कि बता तेरा रब कौन है? नबी कौन है? और तेरा दीन क्या है? वह जवाब देगा कि मैं नही जानता। फिर सवाल करने वाले कहेगें कि क्या तूने मालूम नही किया और हिदायत हासिल नही की? फिर उस के सर पर ऐसा लोहे का गुर्ज़ लगायेगें कि जिस से जिन्नात व इंसान के अलावा ज़मीन के सारे जानवर हिल जायेगें। उस के बाद वह उस की क़ब्र में जहन्नम का एक दरवाज़ा खोल देगें और कहेगें कि बदतरीन हालत में सो जा और वह हालत ऐसी होगी कि तंगी की शिद्दत की वजह से वह नैज़े और उस की नोक की तरह हो जायेगा और उस का दिमाग़ नाख़ुनों और गोश्तों से बाहर निकल पड़ेगा। ज़मीन के साँप बिच्छू उससे लिपट जायेगें और अपने डंक से उस के बदन को अज़ाब देगें। मय्यत उसी अज़ाब में बाक़ी रहेगी। यहाँ तक कि ख़ुदा उसे क़ब्र से उठायेगा। (बरज़ख़ का) अरसा उस पर इस क़दर सख़्त और दुशवार होगा कि वह हमेशा यह आरज़ू करेगा कि जल्द से जल्द क़यामत आ जाये।[2]
सारांश
- मौत के बाद इंसान की रूह बाक़ी रहती है, अगर आमाल नेक हों तो वह रूह नेमतों से सर फ़राज़ रहती है और अगर आमाल बुरे हों तो क़यामत तक अज़ाब में मुबतला रहती है।
- मौत से क़यामत तक के दरमियानी मुद्दत को ‘’बरज़ख़’’ कहा जाता है।
- इमाम अली (अ) ने अपने एक तूलानी बयान में बरज़ख़ के हालात को बयान किया है।
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[1]. बिहारुल अनवार जिल्द 6 पेज 159 रिवायत 19
[2]. तफ़सीरे अयाशी जिल्द 2 पेज 227, फ़ुरु ए काफ़ी जिल्द 3
स्वर्ग
इंसान क़यामत में उठाये जाने के बाद अपने नाम ए आमाल को देखेगा और उसी के अनुसार स्वर्ग या नर्क में जायेगा। स्वर्ग एक हमेशा बाक़ी रहने वाली जगह है जिसे ख़ुदा वंदे आलम ने अपने नेक और अच्छे बंदों को ईनाम देने के लिये पैदा किया है, स्वर्ग में हर प्रकार की शारीरिक और आत्मिक लज़्ज़तें मौजूद होगें।
जिस्मानी (शारीरिक) लज़्ज़तें
क़ुरआन मजीद की आयतों में स्वर्ग की बहुत सी जिस्मानी लज़्ज़तों को बयान किया गया है जिन में से कुछ यह है:
1. बाग़: स्वर्ग में आसमान व ज़मीन से भी ज़्यादा बड़े बाग़ होगें। (सूर ए आले इमरान आयत 133) यह बाग़ तरह तरह के फलों से भरे हुए होगें। (सूर ए दहर आयत 14, सूर ए नबा आयत 32)
2. महल: क़ुरआने मजीद में स्वर्ग के घरों के बारे में ‘’मसाकिने तय्यबा’’ का शब्द आया है जिस से समझ में आता है कि उस में हर क़िस्म का आराम व सुकून होगा। (सूर ए तौबा आयत 72)
3. स्वादिष्ट खाने: क़ुरआन की आयतों से मालूम होता है कि स्वर्ग में हर तरह के खाने होगें। इसलिये कि इस बारे में
مما یشتهون.
(सूर ए मुरसलात आयत 42) के शब्दों का प्रयोग हुआ है जिस का अर्थ हैं जन्नती जो भी चाहेगा वह हाज़िर होगा।
4. लज़ीज़ शरबत: जन्नत में तरह तरह के लज़ीज़ शरबत होगें। इस लिये कि क़ुरआन मजीद में
لذة للشاربین
(सूर ए मुहम्मद आयत 47) का इस्तेमाल हुआ है यानी वह शरबत, पीने वाले के लिये लज़ीज़ और स्वादिष्ट होता है।
5. बीवियाँ: ज़ौजा या बीवी इंसान के सुकून का सबब होती है। आयतों और हदीसों से मालूम होता है कि स्वर्ग में ऐसी बीवियाँ होगीं। जो हर तरह की ज़ाहिरी और बातिनी विशेषताएं रखती होंगी, वह बहुत सुन्दर, मोहब्बत करने वाली और पवित्र होगीं। (सूर ए बक़रा आयत 25, सूर ए आले इमरान आयत 15)
रूहानी (आत्मिक) लज़्ज़ते
क़ुरआने मजीद में स्वर्ग की जिस्मानी लज़्ज़तों की तरह बहुत सी रुहानी लज़्ज़तों का भी तज़किरा हुआ है जिन में से बाज़ यह है:
1. विशेष सम्मान: स्वर्ग में प्रवेश करते ही फ़रिश्ते उन का विशेष स्वागत करेगें और सदैव उनका सम्मान करेगें, हर दरवाज़े से फ़रिश्ते दाख़िल होगें और कहेगें कि दुनिया में इज़्ज़त और इस्तेक़ामत की वजह से तुम पर सलाम हो। (सूर ए राद आयत 23, 24)
2. मुहब्बत और दोस्ती का माहौल: स्वर्ग में हर तरह की मुहब्बत और दोस्ती का माहौल होगा। (सूर ए निसा आयत 69)
3. ख़ुशी और प्रसन्नता का एहसास: ख़ुशी और प्रसन्नता के कारण स्वर्ग वालों के चेहरे खिले होगें, उन की शक्ल व सूरत नूरानी, ख़ुश और मुस्कुराती हुई होगी। (सूर ए अबस आयत 39)
4. ख़ुदा वंदे आलम की ख़ुशनूदी: ख़ुदा के राज़ी होने का एहसास सबसे बड़ा सुख है जो स्वर्ग वालों को प्राप्त होगा। (सूर ए मायदा आयत 119)
5. ऐसी नेमतें जिन का तसव्वुर भी नही किया जा सकता: स्वर्ग में ऐसी चीज़ें और नेमतें होगीं जिन का इंसान तसव्वुर भी नही कर सकता। पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं कि स्वर्ग में ऐसी नेमते होगीं जिन्हे न किसी आँख ने देखा है और न किसी दिल में उन का ख़्याल भी आया होगा। (नहजुल फ़साहा हदीस 2060)
क़ुरआने मजीद में स्वर्ग की उन तमाम जिस्मानी व रूहानी लज़्ज़तों और नेमतों की वजह से मुसलमानों से कहा गया है:
لمثل هذا فلیعمل العاملون .
(अगर ऐसी जन्नत चाहिये तो अमल करने वाले वैसा ही अमल करें।)
सारांश
- इंसान अपने नाम ए आमाल के अनुसार स्वर्ग या नर्क में जाएगा। स्वर्ग एक हमेशा बाक़ी रहने वाली जगह है जहाँ ख़ुदा वंदे आलम नेक लोगों को ईनाम देगा।
- जन्नत में बहुत से जिस्मानी व रूहानी लज़्ज़तें और नेंमतें होगीं। जिस्मानी लज़्ज़तें जैसे बाग़, महल, स्वादिष्ट खाने, लज़ीज़ शरबत, ख़ूबसूरत बीवियाँ वग़ैरह।
- रूहानी लज़्ज़तें जैसे जन्नत वालों का विशेष सम्मान, मुहब्बत व दोस्ती का माहौल, ख़ुशी का अहसास, ख़ुशनूदी ए ख़ुदा और ऐसी नेमतें जिन का तसव्वुर भी नही किया जा सकता।
- ऐसी जन्नत पाने के लिये आमाल भी उसी तरह करने होगें। इस लिये कि क़ुरआन में वाज़ेह तौर पर इरशाद होता है:
لمثل هذا فلیعمل العاملون
(सूर ए साफ़्फ़ात आयत 60)
नर्क
क़यामत में उठाये जाने के बाद काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों और पापी लोग नर्क में जायेगें। नर्क के अज़ाब और मुसीबतों का मुक़ाबला दुनिया की मुसीबतों से नही किया जा सकता।
क़ुरआने मजीद में ख़ुदा वंदे आलम जहन्नम के बहुत ही दर्दनाक हालत के बारे में इरशाद फ़रमाता है ‘’जिन्होने हमारी आयतों का इंकार किया है जल्दी ही हम उन्हे आग में झोंक देगें और जब भी उन के बदन की खाल जल कर ख़त्म हो जायेगी हम दोबारा एक नई खाल उन के बदन पर चढ़ा देगे ता कि वह दोबारा जलें और हमारे अज़ाब को चखें बेशक ख़ुदा वंदे आलम क़ुदरत वाला और हकीम है।’’ (सूर ए निसा आयत 65)
जिस तरह से पिछले लेख (स्वर्ग) में हमने पढ़ा कि ख़ुदा ने स्वर्ग वालों के लिये जिस्मानी व रूहानी लज़्ज़ते क़रार दी है उसी तरह से जहन्नम वालों के लिये भी ख़ुदा ने जिस्मानी व रूहानी सज़ा का इंतेज़ाम किया है जिन में से कुछ यह है:
शारीरिक अज़ाब
1. अज़ाब की भयानकता: जहन्नम का अज़ाब इस क़दर भयानक होगा कि जहन्नम वाले यह आरज़ू करेगा कि अपनी बीवी, बच्चे, भाई और ज़मीन के तमाम लोगों को फ़िदा कर दे ताकि इस अज़ाब से निजात पा सके। (सूर ए मआरिज आयत 11, 14)
2. ख़ौफ़नाक आवाज़ें: नर्क में चीख व पुकार, फ़रियाद और भयानक आवाज़े होगीं। (सूर ए फ़ुरक़ान आयत 13, 14)
3. गंदा पानी: जब भी नर्क वाले प्यास की अधिकता से पानी माँगेंगें तो उन्हे गर्म, गंदा और सड़ा हुआ पानी दिया जायेगा और वह उसे पी लेगें। (सूर ए अनआम आयत 70, सूर ए युनुस आयत 4, सूर ए क़हफ़ आयत 29, सूर ए मुहम्मद आयत 15)
4. खाना: ज़क़्क़ूम (थूहड़) का पेड़, गुनाह करने वालों के लिये खाना होगा और पिघले हुए ताँबें की तरह पेट में खौलेगा। (सूर ए दुख़ान आयत 43, 46)
5. आग के कपड़े: क़ुरआने मजीद में इरशाद होता है कि जो लोग काफ़िर हुए हैं उन के लिये आग से लिबास काट कर निकाला जायेगा और जलती और खौलती हुई एक बहने वाली चीज़ उन के सर पर डालेगी जिस की वजह से उन का ज़ाहिरी और बातिनी हिस्सा पिघल जायेगा। (सूर ए हज आयत 19, 21)
आत्मा का अज़ाब
1. ग़म व दुख और हसरत: जहन्नम वाले जब भी जहन्नम के ग़म व दुख से निकलना चाहेगें उन से कहा जायेगा कि पलट जाओ और जहन्नम के अज़ाब को चखो। (सूर ए हज आयत 22)
2. लानत: जहन्नम वाले एक दूसरे पर लानत भेजेगें। (सूर ए अनकबूत आयत 25)
3. शैतान की बुराई: जहन्नम वाले शैतान से कहेगें कि तुम्हारी वजह से हम गुमराह हुए। वह जवाब देगा कि ख़ुदा ने तुम्हे सच्चा वादा दिया तुम ने कबूल न किया और मैंने झूठा वादा दिया और तुमने कबूल कर लिया। लिहाज़ा मेरे बजाए ख़ुद को बुरा भला कहो। (सूर ए इब्राहीम आयत 22)
4. जहन्नम में जाने का सबब: कुफ़्र व निफ़ाक की वजह से तो लोग जहन्नम में जायेगें ही उस के अलावा अगर कोई इबादात और वाजिबात को बजा न लाये और जिन चीज़ों से मना किया गया है उन्हे अंजाम दे वह भी जहन्नम में जायेगा। इस लिये कि क़ुरआने मजीद में इरशाद होता है (जन्नत वाले, जहन्नम वालों से सवाल करेगें कि किस चीज़ ने तुम्हे जहन्नम में झोंक दिया? वह जवाब देगें कि हम नमाज़ी नही थे, ग़रीबों की मदद नही करते थे, बुराई करने वालों के साथ हो जाते थे और क़यामत का इंकार करते थे।) (सूर ए मुद्दसिर आयत 40, 42)
सारांश
- कुफ़्फ़ार, मुनाफ़ेक़ीन और गुनाहगार लोग जहन्नम में जायेगें।
- जहन्नम में बहुत से जिस्मानी और रुहानी अज़ाब होगें जो दुनिया के अज़ाब और सज़ा से क़ाबिले क़यास न होगें।
- जहन्नम वाले शदीद अज़ीब में रहेगें, उन के आस पास भयानक आवाज़े होगीं, जहन्नम वालों का खाना गंदा और सड़ा हुआ पानी और आग का खाना होगा और उन का लिबास आग का होना।
- उन का रूहानी अज़ाब यह होगा कि वह हमेशा ग़म व दुख में रहेगें, एक दूसरे पर लानत भेजेगें, इसी तरह शैतान भी उन की बुराई करेगा।
- कुफ़्फ़ार व मुनाफ़ेक़ीन तो जहन्नम में जायेगें ही, उन के अलावा वह लोग भी जहन्नम में जायेगें जो नमाज़ नही पढ़ते, ग़रीबों की मदद नही करते, बुरों का साथ देते हैं और क़यामत का इंकार करते हैं।
क़यामत
मौत के बाद क़यामत के दिन दुनिया में किये गये कामों का ईनाम या सज़ा पाने के लिये तमाम इंसानों के दोबारा ज़िन्दा किये जाने को ‘’मआद’’ कहते हैं।
मआद, उसूले दीन का पाचवाँ हिस्सा है जो बहुत अहम है और क़ुरआने मजीद की 1200 आयतें मआद के बारे में नाज़िल हुई हैं, दूसरे उसूले दीन की तरह जो शख़्स मआद का इंकार करे वह मुसलमान नही रहता. तमाम नबियों ने तौहीद की तरह लोगों को इस अक़ीदे की तरफ़ भी दावत दी है।
क़यामत की दलीलें
उलामा ने मआद की ज़रुरत पर बहुत सी दलीलें पेश की हैं जिन में से बाज़ यह हैं:
1. ख़ुदा का आदिल होना
ख़ुदा वंदे आलम ने इंसानों को अपनी इबादत के लिये पैदा किया है लेकिन इंसान दो तरह के होते हैं: 1. वह जो ख़ुदा के नेक और सालेह बंदे हैं। 2. वह जो ख़ुदा की मासियत और गुनाहों में डूबे हुए हैं।
चूँकि ख़ुदा आदिल है लिहाज़ा ज़रुरी है कि वह मोमिन को ईनाम और गुनाह करने वाले को सज़ा दे। लेकिन यह काम इस दुनिया में नही हो सकता इस लिये कि जिस शख़्स ने सैकड़ों क़त्ल किये हों उसे इस दुनिया अगर सज़ा दी जाये तो उसे ज़्यादा से ज़्यादा मौत की सज़ा दी जायेगी। जो सिर्फ़ एक बार होगी जब कि उसने सैकड़ों क़त्ल किये हैं लिहाज़ा कोई ऐसी जगह होनी चाहिये जहाँ ख़ुदा उसे उस के अमल के मुताबिक़ सज़ा दे और वह जगह आख़िरत (मआद) है।
2. इंसान का बे मक़सद न होना
हम जानते हैं कि ख़ुदा ने इंसान को बे मक़सद पैदा नही किया है बल्कि एक ख़ास मक़सद के तहत उसे वुजूद अता किया है और वह ख़ास मक़सद यह दुनियावी ज़िन्दगी नही है। इस लिये कि यह महदूद और ख़त्म हो जाने वाली ज़िन्दगी है जिस के बाद सब को उस दुनिया की तरफ़ जाना है जो हमेशा बाक़ी रहने वाली है लिहाज़ा अगर उसी दुनियावी ज़िन्दगी को पैदाईश का मक़सद मान लिया जाये तो यह एक बेकार और बे बुनियाद बात होगी। लिहाज़ा अगर ज़रा ग़ौर व फ़िक्र किया जाये तो मालूम हो जायेगा कि इंसान इस महदूद दुनियावी ज़िन्दगी के लिये नही बल्कि एक बाक़ी रहने वाली ज़िन्दगी के लिये पैदा किया गया है जो बाद के बाद की ज़िन्दगी यानी मआद है और यह दुनिया उसी असली ज़िन्दगी के लिये एक गुज़रगाह है। इस सिलसिले में क़ुरआने मजीद में इरशाद होता है:
افحسبتم انما خلقناکم عبثا و انکم الینا لا ترجعون .
क्या तुम यह ख़्याल करते हो कि हम ने तुम्हे बे मक़सद पैदा किया है और तुम हमारी तरफ़ पलट कर न आओगे? (सूर ए मोमिनून आयत 115)
मआद के दिन सब के आमाल उन के सामने लाये जायेगें। जिन लोगों ने नेक आमाल अंजाम दिये है उन का नाम ए आमाल दाहिने हाथ में होगा लेकिन जिन लोगों ने बुरे आमाल किये होगें उन की नाम ए आमाल बायें हाथ में होगा और बुरे आमाल वाला अफ़सोस करेगा कि ऐ काश मैं बुरे काम अंजाम न देता।
सारांश
- क़यामत के दिन ईनाम और सज़ा पाने के लिये मौत के बाद तमाम इंसानों के दोबारा ज़िन्दा होने को मआद कहते हैं, इस्लाम में मआद को काफ़ी अहमियत हासिल है।
मआद की दो अहम दलीलें:
1. ख़ुदा का आदिल होना: इस दुनिया में नेक काम करने वालों को ईनाम और गुनाह करने वालों को सज़ा नही दी जा सकती। लिहाज़ा एक ऐसी जगह का होना ज़रुरी है जहाँ ख़ुदा अपनी अदालत के ज़रिये ईनाम और सज़ा दे सके और वह जगह वही आलमे आख़िरत या मआद है।
2. इंसान का बे मक़सद न होना: ख़ुदा ने इंसान को बे मक़सद पैदा नही किया है बल्कि ख़ास मक़सद के तहत उसे वुजूद बख़्शा है और वह ख़ास मक़सद यह महदूद दुनियावी ज़िन्दगी नही हो सकती। इस लिये कि यह एक बेकार बात होगी, वह ख़ास मक़सद हमेशा बाक़ी रहने वाली ज़िन्दगी है और इस दुनिया के बाद हासिल होगी जिसे मआद कहते हैं।'