माँ, बाप, अल्लाह, और पड़ोसी का हक़ चौथे इमाम की नज़र में

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.) ने फ़रमाया: अल्लाह का तुम पर हक़ यह है कि उसकी आराधना करो और किसी चीज़ को उसका साथी न बनाओ, और अगर सच्चे द...



इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.) ने फ़रमाया: अल्लाह का तुम पर हक़ यह है कि उसकी आराधना करो और किसी चीज़ को उसका साथी न बनाओ, और अगर सच्चे दिल से यह किया तो अल्लाह ने वादा किया है कि वह तुम्हारे दुनिया और आख़ेरत के कार्यों को पूरा करे और जो तुम उसस चाहो वह तुम्हारे

बुशरा अलवी
पेट का हक़
قال الامام علي بن الحسين عليه السلام: وَ أمّا حَقُّ بَطْنِكَ فَأنْ لا تَجْعَلْهُ وِعأ لِقَلیلٍ مِنَ الْحَرامِ وَلا لِكَثیرٍ، وَ أنْ تَقْتَصِدَ لَهُ فِی ‏الْحَلالِ
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.) ने फ़रमाया: तुम्हारे पेट का तुम पर यह हक़ है कि उसको हराम चीज़ों (चाहे कम हो या ज़्यादा) का बर्तन न बनाओ और हलाल चीज़ों में संतुलित रहो।
(तोहफ़ुल उक़ूल पेज 186)
अल्लाह का हक़
قال الامام علي بن الحسين عليه السلام:  فَأَمّا حَقُّ اللّهِ الاَْکْبَرِ فَإِنَّکَ تَعْبُدُهُ لا یُشْرِکُ بِهِ شَیْئًا فَإِذا فَعَلْتَ ذلِکَ بِإِخْلاص جَعَلَ لَکَ عَلى نَفْسِهِ أَنْ یَکْفِیَکَ أَمْرَ الدُّنْیا وَ الاْخِرَةِ وَ یَحْفَظَ لَکَ ما تُحِبُّ مِنْ‌ها
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.) ने फ़रमाया: अल्लाह का तुम पर हक़ यह है कि उसकी आराधना करो और किसी चीज़ को उसका साथी न बनाओ, और अगर सच्चे दिल से यह किया तो अल्लाह ने वादा किया है कि वह तुम्हारे दुनिया और आख़ेरत के कार्यों को पूरा करे और जो तुम उसस चाहो वह तुम्हारे लिये सुरक्षित करे।
(तोहफ़ुल उक़ूल पेज 186)
बाप का हक़
قال الامام علي بن الحسين عليه السلام:  وَ أَمّا حَقُّ أَبیکَ فَتَعْلَمَ أَنَّهُ أَصْلُکَ وَ أَنَّکَ فَرْعُهُ وَ أَنَّکَ لَوْلاهُ لَمْ تَکُنْ، فَمَهْما رَأَیْتَ فى نَفْسِکَ مِمّا تُعْجِبُکَ فَاعْلَمْ أَنَّ أَباکَ أَصْلُ النِّعْمَةِ عَلَیْکَ فیهِ وَ احْمَدِ اللّهَ وَ اشْکُرْهُ عَلى قَدْرِ ذلِکَ
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.) ने फ़रमाया: और तुम्हारे पिता का हक़, तो जान लो कि वह तुम्हारी जड़ है और तुम उसकी शाख़ा, और जान लो कि अगर वह न रोते तो तुम भी न होते, तो जब भी तुम अपने में कुछ ऐसा देखो जो अच्छा लगे तो जान लो (कि यह तुम्हारे पिता से है) क्योंकि तुम्हारी नेमत की जड़ तुम्हारे पिता हैं और अल्लाह की प्रशंसा करो और उसी मात्रा में उसका शुक्र करो।
(तोहफ़ुल उक़ूल पेज 186)
माँ का हक़
قال الامام علي بن الحسين عليه السلام:  فَحَقُّ أُمِّکَ فَأَنْ تَعْلَمَ أَنَّ‌ها حَمَلَتْکَ حَیْثُ لایَحْمِلُ أَحَدٌ وَ أَطْعَمَتْکَ مِنْ ثَمَرَةِ قَلْبِ‌ها ما لا یُطْعِمُ أَحَدٌ أَحَدًا. وَ أَنَّ‌ها وَقَتْکَ بِسَمْعِ‌ها وَ بَصَرِ‌ها وَ یَدِ‌ها وَ رِجْلِ‌ها وَ شَعْرِ‌ها وَ بَشَرِ‌ها وَ جَمیعِ جَوارِحِ‌ها مُسْتَبْشِرَةً بِذلِکَ، فَرِحَةً، مُوبِلَةً مُحْتَمِلَةً لِما فیهِ مَکْرُوهُ‌ها وَ أَلَمُ‌ها وَ ثِقْلُ‌ها وَ غَمُّ‌ها حَتّى دَفَعَتْ‌ها عَنْکَ یَدُالْقُدْرَةِ وَ أَخْرَجَتْکَ إِلَى الاَْرْضِ فَرَضِیَتْ أنْ تَشْبَعَ وَ تَجُوعَ هِىَ وَ تَکْسُوَکَ وَ تَعْرى وَ تَرْوِیَکَ وَ تَظْمَأَ وَ تُظِلَّکَ وَ تَضْحى وَ تُنَعِّمَکَ بِبُؤْسِ‌ها وَ تُلَذِّذَکَ بِالنَّوْمِ بِأَرَقِ‌ها وَ کانَ بَطْنُ‌ها لَکَ وِعاءً وَ حِجْرُ‌ها لَکَ حِواءً وَ ثَدْیُ‌ها لَکَ سِقاءً، وَ نَفْسُ‌ها لَکَ وِقاءً، تُباشِرُ حَرَّ الدُّنْیا وَ بَرْدَ‌ها لَکَ وَ دُونَکَ، فَتَشْکُرْ‌ها عَلى قَدْرِ ذلِکَ وَ لا تَقْدِرُ عَلَیْهِ إِلاّ بِعَوْنِ اللّهِ وَ تَوْفیقِهِ.»:
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.) ने फ़रमाया: तुम्हारी माँ का हक़ यह है कि जानो कि उसने तुमको अपने पेट में वैसे उठाया है जैसे कोई भी किसी को नहीं उठाता है, और अपने दिल को फल को तुम्हें खिलाया है जिसे कोई भी किसी दूसरे को नहीं खिलाता है, उसी ने तुम्हारी अपने कान, आँख, हाथ. पैर बाल और पूरे शरीर से देखभाल की है और अपने इस बलिदान पर प्रसन्न और जमी रही और उसने हर परेशानी, दर्द और बोझ को सहा यहां तक कि बुरी ताक़तों से तुम को बचाया वह तुमको दुनिया में लाई फिर भी इस बात पर ख़ुश रही कि तुम्हारा पेट भरा हो और वह भूखी, तुम्हारे तन पर कपड़ा हो और वह बिना कपड़े के, तुम्हारी प्यास बुझाए और ख़ुद प्यासी रही, तुम को छाया में रखे और ख़ुद धूप देखे, कठिनाइयों के साथ तुमको नेमतों में पाले, खुद जाग कर तुमको सुलाए, उसका पेट तुम्हारे अस्तित्व का बर्तन था और उसका दामन तुम्हारे आराम की जगह, उसका पिस्तान तुम्हारे पानी की मश्क और उसकी जान तुम पर फ़िदा उसने तुम्हारे लिये दुनिया के सुख और दुख को बर्दाश्त किया।
अपनी माँ का इतना हक़ जानो और इसको तुम पूरा नहीं कर सकोगे अगर अल्लाह की तौफ़ीक और उसकी मदद के।
(तोहफ़ुल उक़ूल पेज 186)
बड़ों का हक़
قال الامام علي بن الحسين عليه السلام:  حَقُّ الکَبِیر توقیرهُ لِسِنِّهِ و اجلالُهُ لِتَقدَّمَهُ فی الِاسلام
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.) ने फ़रमाया: बड़े का हक़ यह है कि उसकी आयु के कारण उसका सम्मान करो और चूँकि वह तुमसे पहले मुसलमान हुआ है इसलिये उसका सम्मान करो।
(जेहादे नफ़्स हदीस 19)
पड़ोसी का हक़
قال الامام علي بن الحسين عليه السلام:  مَنْ زارَ أخاهُ فی اللّهِ طَلَبا لاِنْجازِ مَوْعُودِ اللّهِ، شَیَّعَهُ سَبْعُونَ ألْفَ مَلَكٍ، وَ هَتَفَ بِهِ ‏هاتِفٌ مِنْ خَلْفٍ ألا طِبْتَ وَ طابَتْ لَكَ الْجَنَّةُ، فَإذا صافَحَهُ غَمَرَتْهُ الرَّحْمَةُ
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.) ने फ़रमाया: जो भी अपने दोस्त और भाई से मुलाक़ात को जाए और अल्लाह की ख़ुशी के लिये उससे मुलाक़ात करे इस आशा के साथ कि अल्लाह के वादे को प्राप्त कर ले तो सत्तर हज़ार फरिश्ते उसके साथ जाएंगे, और आवाज़ देने वाला उसके पीछे से आवाज़ देता है कि स्वर्ग तुमको मुबारक हो कि तुम गंदगी से पवित्र हो गए, और जब वह अपने भाई और दोस्त से हाथ मिलाए तो रहमत उस पर छा जाएगी।
(मिश्कातुल अनवार पेज 207)


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