हम पे एहसान है अल्लाह का जिसने हमें इस्लाम की शक्ल मैं हिदायत दी | एहसान फरामोशी |
https://www.qummi.com/2017/06/blog-post_18.html
एक दिन हज़रत मूसा अलैहिस्लाम कोहे तूर पर तशरीफ ले जा रहे थे। रास्ते में उनकी मुलाकात एक इंसान से हुई जो अल्लाह की इबादत मैं लगा हुआ था ओर इतना कमज़ोर हो गया था की चल भी नहीं सकता था।
हज़रत मूसा अलैहिस्लाम ने पूछा कि ऐ इंसान तुझ को खाना पानी कौन देता है? उस इन्सान ने जवाब दिया, वही अल्लाह जिसकी मैं इबादत दिन रात किया करता हूँ। वोह एक परिंदा भेजता है, जो मुझे खाना ओर पानी अपनी चोंच से देता है।
फिर उस इंसान ने पुछा आप कहां जा रहे हैं,? हज़रत मूसा ने जवाब दिया कि मैं कोहे तूर पर जा रहा हूं।
उस आदमी ने कहा कि क्या तुम मेरा एक सवाल अल्लाह तक पहुंचा सकते हो? हज़रत मूसा ने कहा कि तुम्हारा सवाल क्या है? आदमी ने कहा कि अल्लाह से पूछो मैं इतनी इबादत करता हूँ, मेरी जगह जन्नत मैं कहां है?। हज़रत मूसा कोहे तूर पर गए। अल्लाह रब्बुल इज्जत की हम्द व सना के बाद हज़रत मूसा ने उस आदमी की बात का सवाल किया। अल्लाह रब्बुल इज्जत ने फरमाया:-
ऐ मूसा उस आदमी से कह दो उसकी जगह जहन्नम है ओर इसकी वजह यह की जब एक परिंदा उसको हर रोज़ खाना खिलाता है, तो यह आदमी उस परिंदे से कभी नहीं पूछता की उसने भी खाना खाया या नहीं? यह एहसान फरामोशी है, ओर एहसान फरामोश कितनी भी इबादत कर ले जन्नत की खुशबू भी नहीं पाएगा।
उस आदमी ने जब हजरत मूसा को वापस आते देखा तो उनसे पूछा कि क्या तुमने मेरे सवाल को अल्लाह तक पहुंचा दिया था?
अल्लाह ने जो फरमाया उसे हज़रत मूसा ने बता दिया। यह सुनकर उस आदमी का रंग उड़ गया। उस आदमी ने दुआ की ऐ मूसा अल्लाह से कह दो की , मुझको इतना बड़ा कर दे की पूरा जहन्नम भर जाए ओर इसके बाद कोई भी इबादत करने वाला जहन्नम ना जाए. हज़रत मूसा ने यह बात भी अल्लाह तक पहुंचा दी!
अल्लाह रब्बुल इज्जत ने फरमाया जाओ उस आदमी से कहो, इसलिए की तुमने दूसरों की तकलीफ को महसूस किया ओर उनके लिए तुम्हें जन्नत दी ।
हम पे एहसान है अल्लाह का जिसने हमें इस्लाम की शक्ल मैं हिदायत दी। हम पे एहसान है मुहम्मद(स.अ.व) का जिन्होंने हुक्मे खुदा से हम सबके पास अल्लाह का पैग़ाम पहुँचाया और उसपे अमल कर के दिखाया। हम पे एहसान हैं मुहम्मद (स.अ.व) के घराने का जिन लोगों ने इस्लाम के लिए कुर्बानियाँ दी ,इस्लाम को बचाया और उसके कानून पे अमल करके बताया और नतीजे मैं शहादत पाई ।
सूर ए शूरा आयत २३ ऐ रसूल "आप कह दिजीये कि मैं तुम से इस तबलीग़ का कोई अज्र नही चाहता सिवाए इसके कि मेरे क़राबत दारों से मुहब्बत करो"
हम पे एहसान है हमारे मां बाप का जिन्होंने हमारी परवरिश की- इसी लिए मां बाप के लिए यह दुआ करना हर औलाद का फ़र्ज़ है " ऐ अल्लाह हमारे मां बाप पे ऐसे रहम करना जैसा उन्होंने हमारे बचपन मे हमपर किया था जब हम मजबूर और कमज़ोर थे।
हम पे एहसान है हमारे असातिजाह (शिक्षकों) का जिन्होंने हमको पढना लिखना सीखाया।
हम पे एहसान हैं हमारे रिश्तेदारों का, जिनकी मुहब्बत हमको जिन्दा रहने का एहसास दिलाती है।
हम पे एहसान है उन दोस्तों का, पड़ोसियों का, जिन्होंने हमारी बुरे वक़्त मैं मदद की ।