1400 साल पहले हज़रत अली (अ) ने बता दिया था मोर और मोरनी के आंसुओं का राज़ |

चौथी सदी हिजरी में सैयद रज़ी नामक प्रसिद्ध धर्मगुरु ने हज़रत अली (अ) के  कथनों का संकलन प्रकाशित किया जिसे" नहजुलबलागा" क...



 https://www.facebook.com/smmasoomjaunpur/
चौथी सदी हिजरी में सैयद रज़ी नामक प्रसिद्ध धर्मगुरु ने हज़रत अली (अ) के  कथनों का संकलन प्रकाशित किया जिसे" नहजुलबलागा" कहा जाता है। मोर के बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने एक खुतबा  दिया था जिसे सैयद रज़ी ने " नहजुलबलागा" में लिखा है। 


नहजुल बलागा में  खुतबा नंबर 165 में हज़रत अली ने विस्तार से मोर और उसकी रचना पर बात की है,  एक हिस्सा इस तरह हैः


रचना की दृष्टि से सबसे अधिक आश्चर्यजनक, ''मोर '' होता है जिसे उसने अत्यधिक मज़बूत संतुलन से बनाया और उसके रंगों को अत्यधिक व्यवस्था से सजाया है, ऐसे पंख दिए जिसके पर एक दूसरे पर चढ़े हुए हैं और लम्बी दुम बनाई कि जब वह अपनी मादा के पास जाता है तो उसे फैला कर उससे छतरी की भांति अपने सिर पर छाया कर लेता है जैसे वह किसी नौका का बादबान हो जिसे माँझी ने फैला दिया हो। अपने रंगों पर इतराता है,  मस्ती में अपनी दुम इधर-उधर हिलाता है, मुर्ग़ों की भांति समागम करता है और कामेच्छा में मस्त होकर नर की भांति मादा को गर्भवती करता है। यदि विश्वास नहीं है तो तुम स्वयं जाकर देख लो, मैं उस व्यक्ति की भांति नहीं हूँ जो कमज़ोर हवालों का सहारा लेता हो। यदि कोई यह सोचता है कि मोर अपनी आँखों से निकलने वाले आँसू की बूंद से अपनी मादा को गर्भवती करता है इस प्रकार से कि आँसू की बूंद उसकी पलकों पर ठहरती है और उसकी मादा उसे पी जाती है जिसके बाद वह यही आँसू पीने के कारण अंडे देती है न कि नर के समागम के कारण तो उसकी यह सोच उस व्यक्ति की सोच से अधिक आश्चर्यजनक नहीं है जो यह समझता है कि कौआ, अपनी चोंच से मादा को चारा खिला कर गर्भवती करता है। '' 
( नहजुलबलागा खुतबा  165)



Related

social 6916711761184626301

Post a Comment

emo-but-icon

Follow Us

Hot in week

Recent

Comments

इधर उधर से

Comment

Recent

Featured Post

नजफ़ ऐ हिन्द जोगीपुरा का मुआज्ज़ा , जियारत और क्या मिलता है वहाँ जानिए |

हर सच्चे मुसलमान की ख्वाहिश हुआ करती है की उसे अल्लाह के नेक बन्दों की जियारत करने का मौक़ा  मिले और इसी को अल्लाह से  मुहब्बत कहा जाता है ...

Admin

item