तीन तलाक , खुला ,हलाला यह सब है केवल शब्दों का माया जाल |

शरीयत के जानकार जानते  हैं की तीन तलाक ,खुला या हलाला शब्द हों इनके कोई मायने नहीं हैं बल्कि यह शब्द किसी ख़ास समय में ख़ास तरीके को अपनाने...


शरीयत के जानकार जानते  हैं की तीन तलाक ,खुला या हलाला शब्द हों इनके कोई मायने नहीं हैं बल्कि यह शब्द किसी ख़ास समय में ख़ास तरीके को अपनाने के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं वरना तलाक शब्द काफी है और अगर इसके तरीके में कोई बुराई आती जा रही हैं तो यह सामाजिक समस्या है शरीयत का इसमें कोई दखल नहीं |

तलाक देने का तरीका कुरान में है और तलाक एक बार ही दिया जाता है और अगर पति पत्नी एक बार तलाक के बाद समझौता नहीं करते तो तलाक हो जायगा और आप सोंचते रह जायेंगे की तीन तलाक का क्या हुआ ?

अब तीन तलाक शब्द कहाँ से आया ?

अब यदि पति पत्नी कुरान के हुक्म को माते हुए तलाक दिए जाने के बाद तीन महीने के अन्दर फिर से समझौता कर लेते हैं तो तलाक ख़त्म लेकिन समझौते के बाद फिर से तलाक देने तक उनके रिश्ते आ जाते हैं तो दूसरा तलाक गिना जाता है और ऐसे ही शरीयत उन्हें तीन मौक़ा देती है क्यूँ की अल्लाह चाहता है की पति पत्नी में तलाक ना हो और इन्हें इतना मौक़ा दो ही यह एक हो जाए ,समझौता हो जाय और तलाक ना हो | इसलिए तलाक की प्रक्रिया में तीन तलाक शब्द का इस्तेमाल पति पत्नी को समझौते के लोए दियी जाने वाले तीन अवसर के लिए इस्तेमाल हुआ है न की तलाक देने को आसान करने के लिए |

 अल्लाह कुरआन में फरमाता है – “और जब तुम औरतों को तलाक दो और वो अपनी इद्दत के खात्मे पर पहुँच जाएँ तो या तो उन्हें भले तरीक़े से रोक लो या भले तरीक़े से रुखसत कर दो, और उन्हें नुक्सान पहुँचाने के इरादे से ना रोको के उनपर ज़ुल्म करो, और याद रखो के जो कोई ऐसा करेगा वो दर हकीकत अपने ही ऊपर ज़ुल्म ढाएगा, और अल्लाह की आयातों को मज़ाक ना बनाओ और अपने ऊपर अल्लाह की नेमतों को याद रखो और उस कानून और हिकमत को याद रखो जो अल्लाह ने उतारी है जिसकी वो तुम्हे नसीहत करता है, और अल्लाह से डरते रहो और ध्यान रहे के अल्लाह हर चीज़ से वाकिफ है” – (सूरेह बक्राह-231)

लेकिन अगर उन्होंने इद्दत के दौरान रुजू नहीं किया और इद्दत का वक़्त ख़त्म हो गया तो अब उनका रिश्ता ख़त्म हो जाएगा, अब उन्हें जुदा होना है|

इसलिए रोक तलाक पे नहीं बल्कि गाँव इत्यादि में जहाँ लोग अधिक अनपढ़ हैं वहां कुछ कठमुल्लों की मिली भगत से इसे "तलाक तलाक तलाक " कर के आसान बनाया जाता है जो शरीयत के साथ छेड़ छाड़ है और इस पर रोक लगनी चाहिए |

अब दूसरा शब्द है जिसका सबसे अधिक मज़ाक बनाया जाता है या बुरा समझा जाता है वो है "हलाला" जिसे इस प्रकार समझाया जाता है की तलाक तीन बार देने के बाद यदि पति पत्नी फिर से शादी करना चाहें तो लड़की को किसी और की पत्नी बनना होगा और फिर उस से तलाक ले के अपने पहले पति के पास आ सकती है जो की पूर्णतया गलत परिभाषा है |

हलाला है क्या ?

हलाला का तलाक की प्रक्रिया से कोई सम्बन्ध नहीं है क्यूँ की तलाक पूरा हो जाने के बाद पति पत्नी आज़ाद होते हैं और वो जहां चाहें शादी कर सकते है  | ऐसे कि अपनी आज़ाद मर्ज़ी से वो औरत किसी दुसरे मर्द से शादी करे और इत्तिफाक़ से उनका भी निभा ना हो सके और वो दूसरा शोहर भी उसे तलाक देदे या मर जाए तो ही वो औरत पहले मर्द से निकाह कर सकती है, इसी को कानून में ”हलाला” कहते हैं|  लेकिन याद रहे यह इत्तिफ़ाक से हो तो जायज़ है जान बूझ कर या प्लान बना कर किसी और मर्द से शादी करना और फिर उससे सिर्फ इस लिए तलाक लेना ताकि पहले शोहर से निकाह जायज़ हो सके यह साजिश सरासर नाजायज़ है और अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ऐसी साजिश करने वालों पर लानत फरमाई है.

लेकिन तीनबार तलाक और समझौता करने के बाद पत्नी यदि किसी से विवाह नहीं  करती और अपने पति से फिर निकाह चाहती है तो ये मना है और इसका कारण केवल ये है की  तलाक को लोग मज़ाक न बना लें और इसका गलत इस्तेमाल न हो सके |

खुला क्या है ?
अगर सिर्फ बीवी तलाक चाहे तो उसे शोहर से तलाक मांगना होगी, अगर शोहर नेक इंसान होगा तो ज़ाहिर है वो बीवी को समझाने की कोशिश करेगा और फिर उसे एक तलाक दे देगा, लेकिन अगर शोहर मांगने के बावजूद भी तलाक नहीं देता तो बीवी के लिए इस्लाम में यह आसानी रखी गई है कि वो शहर काज़ी (जज) के पास जाए और उससे शोहर से तलाक दिलवाने के लिए कहे, इस्लाम ने काज़ी को यह हक़ दे रखा है कि वो उनका रिश्ता ख़त्म करने का ऐलान कर दे, जिससे उनकी तलाक हो जाएगी, कानून में इसे ”खुला” कहा जाता है.

यही तलाक का सही तरीका है लेकिन अफ़सोस की बात है कि हमारे यहाँ इस तरीके की खिलाफ वर्जी भी होती है और कुछ लोग बिना सोचे समझे इस्लाम के खिलाफ तरीके से तलाक देते हैं जिससे खुद भी परेशानी उठाते हैं और इस्लाम की भी बदनामी होती है.

हाँ यह कोशिश हर मुसलमान को करनी चाहिए की शरीयत के खिलाफ कोई काम न हो और अगर सामाजिक बुराई के रूप में ऐसी कोई समस्या आती जा रही है तो इस् पे रोक लगाने का हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए |


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