हजरत मुहम्मद (स.अ.व) की वफात (६३२
AD) के बाद मुसलमानों में खिलाफत या इमामत या लीडर कौन इस बात पे मतभेद हुआ और कुछ मुसलमानों ने तुरंत हजरत अबुबक्र (632-634
AD) को खलीफा बना के एलान कर दिया | इधर हजरत अली (अ.स०) जो हजरत मुहम्मद (स.व) को दफन करने में लगे थे उन्हें कुछ पता ही नहीं चला | हजरत अली (अ.स) का शुमार हजरत मुहम्मद (स.व) के घरवालों में हुआ करता था क्यूँ की वो हजरत मुहम्मद (स.व) के दमाद भी थे और रिश्तेदार भी |
मुसलमानों के एक हिस्से ने हजरत अबुबक्र की खिलाफत को नहीं माना क्यूंकि उनका कहना था की इन्तेकाल (
June 8, 632 AD) के ७५ -90 दिन पहले हज से लौटते वक़्त ग़दीर (
10 March 632 CE) के मैदान में हजरत मुहम्मद (स.व) ने हजरत अली के खलीफा होने का एलान अल्लाह की मर्जी के साथ कर दिया था जिसे उस समय सबने माना भी था |
और इसी के साथ मुसलमानों में खिलाफत के मसले में दो हिस्सा हो गया जबकि शरीयत एक ही रही और किताब एक ही रही | हजरत अली (अ.स).की खिलाफत जिन्होंने मानी उन्हें अली का शिया कहा गया | इसी प्रकार से तीन खलीफा हजरत अबुबक्र की खिलाफत को मानने वालों ने बनाए लेकिन अंत में दुनिया के सभी मुसलमानों को लगा की हजरत अली (अ .स) से बेहतर कोई खलीफा संभव नहीं और उन्हें खलीफा बना दिया |
यहाँ तक मुसलमानों में कोई टकराव नहीं था और अंत में हजरत अली के खलीफा (656-661
AD) बनते ही खिलाफत का मतभेद भी ख़त्म हो चुका था | चार साल की खिलाफत के दौरान हजरत अली (अ.स ) को मुआव्विया की बगावत को सहन करना पडा और मुआव्विया से जंग भी करनी पडी |
यहाँ इसी के दौरान मुआव्विया ने हजरत अली (अस) को साज़िश के साथ हटवा के खुद के खलीफा होने का एलान शाम से कर दिया जिसे मुसलमानो ने नहीं माना लेकिन सत्ता की ताक़त और मुआविया के खौफ से लोग चुप रहे |
हजरत अली (अ.स ) (
January 27, 661 AD) की शहादत के बाद मुआव्विया आज़ाद हो गया और अली के चाहने वालों पे उसका ज़ुल्म बढ़ गया |
यह ६६१ AD का दौर था जहां से शियों पे ज़ुल्म खुल के होने लगा और शिया अन्य देशों की तरफ पलायन करने पे मजबूर होने लगे |
यहाँ से मुसलमानों में टकराव शुरू हो गया और हजरत अली के चाहने वालों पे ज़ुल्म किया जाने लगा और यही वो दौर था (६६१-६८० AD ) का जब हजरत अली के चाहने वालों ने भारतवर्ष और अन्य देशों का रुख किया | लेकिन अभी भी यह तादात इतनी कम थी की इतिहासकारों ने इसे इतनी अहमियत नहीं दी |
यहाँ यह बता देना न्यायसंगत होगा की हजरत मुहम्मद (स.अ.व) के समय से ही व्यापार करने मुसलमान भारत आया जाया करते थे और उनमे से कुछ ऐसे भी थे जो यहीं बस जाते थे इसलिए मुस्लिम का यहाँ आना हजरत मुहम्मद (स.अ.व) के समय से ही था इसमें कोई शक नहीं |
694 AD में हज्जाज इब्ने युसूफ ने सिंध पे हमला किया |
यहाँ यह बताना आवश्यक इसलिए हुआ क्यूँ की भारत में मुसलमानों के आने का कारण यहाँ व्यापार के अच्छे अवसरों के कारण था जो हजरत मुहम्मद (स.अ.व) के समय से ही चल रहा था और यह अक्सर समुद्री किनारों की तरफ हुआ करता था |
लेकिन शिया जो भारत आते थे यह अपनी पहचान छुपाते हुए वहाँ से भारत किसी महफूज़ जगह की तलाश में आया करते थे | जो अक्सर या तो उन शासकों के बीच अपनी पहचान छुपा के रह जाते या भारत में नए इलाके बसा लेते जहां उन्हें लगता की वो अपनी सही पहचान के साथ आजादी से रह सकते हैं |
मुआव्विया की खिलाफत में हजरत अली (अ.स) को नमाज़ की हालत में तलवार के वार से और उनके बेटे और हजरत मुहम्मद (स.अ.व. ) के नवासे इमाम हसन (अ.स). को ज़हर दे के मरवा दिया गया | मुआव्विया की म्रत्यु के दौरान उसके बेटे यजीद ने हजरत मुहम्मद (स.व) के नवासे और हजरत अली के बेटे इमाम हुसैन (अ.स ) को कर्बला में भूखा प्यासा शहीद किया और उनके भाई मुस्लिम को कूफा में शहीद कर दिया गया |
जिसके कारण वहाँ से शिया अन्य शहरों की तरफ जाने लगे और जहां भी जाते अपनी पहचान छुपाते थे की वो हजरत अली (अ .स ) के चाहने वाले हैं हजरत मुहम्मद (स.व) के चाहने वाले हैं |
शिया मुसलमानों का मानना है की जब इमाम हुसैन को कर्बला में (६८० AD ) परिवार के साथ घेर लिया गया तो इमाम ने कहा की लोगों मुझे हिन्दुस्तान जाने की इजाज़त दे दो क्यूँ की वहाँ इस्लाम के नाम पे ज़ुल्म करने वाले और इस्लाम को बदनाम करने वाले लोग नहीं मिलते लेकिन इंसान मिलते हैं | यही कारण है की आज भारतवर्ष में इरान के बाद विश्व के सबसे अधिक शिया पाय जाते हैं |
सातवीं सदी से मुसलमान दो हिस्से में बाँट गए | एक शिया (शिया-सुन्नी ) जो अह्लेबय्त के मानने वाले थे और दुसरे सुन्नी जो मुआविया से साथ थे और आठवी सदी सूफी के नाम रही |
इसी प्रकार शिया इराक से इरान , अफगानिस्तान और भारत की तरफ आने लगे लेकिन अधिकतर शिया वहीँ इराक इत्यादि शहरों में अपनी पहचान छुपाते रहते थे और शियों के छटे इमाम जाफ़र ऐ सादिक अ.स.( 765) का दौर आते आते शिया भी चार अलग अलग हिस्सों में बट गए लेकिन चारों हजरत अली और इमाम हुसैन के चाहने वाले थे |
इन चारों में कुछ शिया जैदी कहलाये कुछ इमामी कुछ इस्मैली और कुछ इशना अशरी (१२ इमाम वाले ) कहलाये जिनमे से उस दौर में ( 893) जैदी शिया ताक़तवर हुए और यमन में सत्ता पे काबिज़ हो गए और उसके बाद इस्माइली ताक़त में आये जिन्होंने भारतवर्ष के समुंद्री किनारों की तरफ रुख किया और सिंध ,गुजरात के तरफ बस गए |
इस प्रकार शिया सबसे पहले भारत में सिंध ,गुजरात और दछिन की तरफ आये लेकिन यह शिया उन शियों से अलग थे जिन्हें हम आज शिया कहते हैं या जो आज संख्या में अधिक हैं | आज के शिया जो सबसे अधिक संख्या में हैं वो १२ इमाम (अ.स ) को मानने वाले हैं|
आज जो शिया है उनमे बड़ी जमात (इस्माइली ), छोटी जमात (शिया इशना अशरी ) जिन्हें खोजा कहते हैं और बोहरा शिया गुजरात और महारष्ट्र में बसे हैं और बाकी जो शिया है वो शिया इशना अशरी हैं जिनकी तादात कुछ साउथ, काश्मीर और सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में है |
११वीन सदी से पहले आये शिया काश्मीर, हैदराबाद, सिंध और गुजरात में बसे हैं क्यूँ की यही से इनका भारत में आना शुरू हुआ |
इसी के बाद ११वीन से १६वीन सदी के बीच हजरत मुहम्मद (स.अ.व) के घराने वाले जिन्हें सय्यद कहा जाता है अपने चाहने वालों के साथ साथ भारत का रुख तेज़ी से करने लगे और यहाँ के शांत स्वभाव के हिन्दुओं के बीच रहने लगे |
इस प्रकार देखा जाय तो धीरे धीरे ६८०
AD से शिया मुसलमानो और सय्यद का आगमन सिंध ,दछिन भारत ,गुजरात और काश्मीर में पहले हुआ और उसके बाद उत्तर भारत में आने लगे | कुतुब्बुदीन हिंदल जो काश्मीर की सत्ता का चौथा वारिस था उसके समय में सूफी और सय्यद कश्मीर की तरफ अधिक संख्या में आये और धीरे धीरे ताक़तवर होने लगे|
1015 AD -1032 AD में सय्यद सलार दावूद गाजी और उनके भाई सय्यद सलार मसूद गाजी आये उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले का रुख किया | बहराइच , बनारस ,गाजीपुर इत्यादि जगहों पे इनके साथ आये मुसलमान बस गए | यह बाराबंकी से जैदपुर और गाजीपुर के इलाकों तक आने जाने लगे | इस समय के बाद आने वाले मुसलमान केवल शिया नहीं थे बल्कि अन्य मुसलमान भी थे |
पूरी दुनिया में मुसलमानों का प्रतिशत उनके सेक्ट के अनुसार लगभग इस प्रकार है :-
हनफी सुन्नी मुस्लिम ३५%
शाफ़ई सुन्नी मुस्लिम २५%
शिया मुस्लिम २०%
मालिकी सुन्नी मुस्लिम १५%
हम्बली ४%
इस प्रकार से मुसलमानों के भारत आने का सिल सिला चलने लगा
लेकिन अब तक शिया भी कुछ जगहों में ताक़तवर होने लगे थे | जहां शिया सत्ता में थे वहाँ वे अपनी पहचान को ज़ाहिर करने लगे और अधिक संख्या में वहाँ जा के रहने लगे |
कुछ जगहों में शिया सत्ता में काबिज़ रहे जिनमे से मुख्यतया यह नाम हैं |
*Bahmani Sultanate (1347–1527 AD)
*Sharqi Dynasty (1394 CE to 1479 CE)
*Berar Sultanate (1490-1572 AD)
*Bidar Sultanate (1489-1619 AD)
*Qutb Shahi dynasty (1518–1687 AD)
*Adil Shahi dynasty (1527–1686 AD)
*Nawab of Awadh (1722-1858 AD)
*Najafi Nawabs of Bengal (1757–1880)
*Nawab of Rampur
*Nizams of Hyderabad State(1724–1948 AD)
ले
किन अभी भी शिया मुगलों के बीच अपनी पहचान छुपा के रहते थे और अच्छी पदवी पे रहा करते थे जैसे अकबर के नव रत्न में से ४ शिया थे | मुमताज़ महल ने हमेशा शिया को सहयोग दिया लेकिन औरंगजेब का दौर आते आते जहां मुग़ल सत्ता में थे शिया क़त्ल किये गए जिनमे से काजी नूरुल्लाह शुस्त्री (१५४९ AD ) आगरा में और सय्यद राजू जावरा में मुख्या हैं | इतिहास की किताबों में शिया को क़त्ल किये जाने वाले वर्ष "ताराज ऐ शिया " के नाम से दस वर्ष दर्ज हैं जिनमे 1548, 1585, 1635, 1686, 1719, 1741, 1762, 1801, 1830, 1872 मुख्या है |
1030 AD में सय्यद सलार दावूद गाजी और उनके भाई सय्यद सलार मसूद गाजी आये जिन्होंने उत्तर प्रदेश के बाराबंकी ,बहराइच,जैदपुर से ले के बनारस तक अपना वजूद कायम रखा | इसी दौरान बहुत से शिया यहाँ से जायस, जैदपुर ,मोहान ,गाजीपुर और आस पास के इलाकों में फैलने लगे |
फिर धीरे धीरे शिया उत्तर भारत की तरफ उन शहरों की तरफ आने लगे जहां सत्ता में शिया समुदाय के लिए नरमी रखने वाले बादशाह थे या शिया और हिन्दू बादशाह थे | इनमे से अवध और शार्की राज्य मुख्य हैं | धीरे धीरे भारत में जैदी ,इस्माइली इत्यादि मुसलमान शिया इशना अशरी (१२ इमाम वाले ) होने लगे और इनकी पहचान अज़ादारी और हुसैन का ग़म मनाने वालों से होने लगी | मुहर्रम मनाने में हिन्दू राजाओं और जनता का सहयोग यहाँ बसे शियों को अधिक मिला क्यूँ की शिया समुदाय के लोग वर्षों से जालिमो के सताए हुए थे और अमन पसंद थे इसी लिए हिन्दुओं ने उन्हें गले लगाया और अज़ादारी हुसैन के के लिए सहयोग करने लगे | विजयनगर हो या झांसी की रानी हो सबने हजरत मुहम्मद s.अ.व. के नवासे हुसैन का ग़म मुहर्रम में मनाया और
यही वो समय था जब शिया धीरे धीरे आज़ाद हो के अपनी पहचान को बताने लगे जिनमे से अधिक सूफी और सय्यद थे |
सबसे अधिक शिया या तो १०३० AD में
सय्यद सलार मसूद गाजी के साथ या फिर १३९८ AD में तैमूर लंग के हमले के बाद इरान ,अफगानिस्तान होते हुए भारत आये | तैमूर लंग ने पहली बार ताजिया रखा जो इमाम हुसैन (अ.स ) के रौज़े की नकल था |
शार्की (१३९४ AD ) जो सबसे अधिक अमन पसंद थे और शिया थे उनका तरीका यह था की शिया हो या सुन्नी ज्ञानियों की इज्ज़त करते थे इसलिए शिया आस पास के इलाकों से शार्की राज्य में आ के बसने लगे |
चंगेज़ खान (1221 AD ) के भारत आने के समय उसके साथ बहुत से सय्यद शिया इरान से आये जो अक्सर सूफी और ज्ञानी हुआ करते थे और वे दिल्ली लाहौर से होते हुए बहराइच (जरवल) और बाराबंकी की तरफ बस गए |
इधर सय्यद और शिया अवध , शार्की राज्य और आस पास के इलाके में आजादी से रहने लगे थे तो उधर गुजरात में सुलतान महमूद बेघ्डा (
1458 -1511) द्वारा सय्यदों को बुला के उन्हें उच्च पद और जागीर दे के बसाया जा रहा था | ये सय्यद अधिकतर अपने को शिराज़ी , बुखारी ,नकवी, जैदी,कादिरी ,चिस्ती इत्यादि लिखा करते थे
और जो अमन पसंद शिया तैमूर लंग के हमले से परेशान थे और उन्होंने शार्की की शोहरत सुनी तो शार्की राज्य में आ के बसने लगे |
जौनपुर में सय्यद ,सूफी शिया अधिक तादात में आये जिन्हें शार्की राज्य में काफी इज्ज़त भी मिली और जागीर भी मिली | 1394 -1479 तक शार्की राज्य में शिया बहुत सुख के साथ रहे और यदि गिनती की जाय तो यहाँ एक समय में १४०० से अधिक ज्ञानियों की पालकी निकला करती थी और इन्ही सूफियों की क़ब्रों के कारण जौनपुर शहर को अक्सर लोग क़ब्रों का शहर भी कह देते हैं | यह सूफी और सय्यद जौनपुर ,कन्नोज से लेके बिहार तक शार्की राज्य में फैले थे जिसमे से सबसे अधिक जौनपुर में बसे थे |
बहलोल लोधी ने जौनपुर को तहस नहस कर डाला और खंडहरों में बदल दिया और इसे बाद में सिकंदर लोधी ने दिल्ली में मिला लिया |
शिया समुदाय के लिए फिर से मुश्किल का समय आ गया था जब भारत में कहीं उन्हें इज्ज़त मिलती थी और कहीं मुगलों द्वारा उन्हें मारा जाता था | उसके बाद जब अँगरेज़ राज्य आया तो शिया समुदाय खुशहाल होना शुरू हो गया और वो आजादी के साथ मुहर्रम में हजरत मुहम्मद (स अव ) के नवासे इमाम हुसैन (अ.स ) का ग़म मना सकते थे और १० मुहर्रम को छुट्टी का दिन एलान होने लगा था जो आज तक है | भारत वर्ष के आज़ाद होने के बाद से तो भारतवर्ष पूरी दुनिया के मुकाबले वो देश है जहां शिया समुदाय सबसे अधिक आज़ाद है और अपने धर्म के अनुसार आजादी से जी सकता है | पूरी दुनिया के लोगों में शिया समुदाय १०-१३% है और पूरी दुनिया में सबसे अधिक शिया इरान में हैं और उसके बाद भारतवर्ष में है | यदि BBC का यकीन किया जाय तो कम से कम ४५ मिलियन शिया भारतवर्ष में आज रहते हैं जो भारत की जनसँख्या का ४-५% है | यदि मुस्लिम समुदाय की बात की जाय तो सारे मुसलमानों का २५ से ३१% (
2005–2006) शिया हैं जिनमे से सय्यद केवल १०% ही रह गए हैं |
उत्तर प्रदेश में आज लखनऊ के बाद सबसे अधिक शिया जौनपुर में रहा करते हैं और शार्की समय में जैसा था की सारे शिया -सुन्नी मुसलमान और हिन्दू यहाँ आपस में मिल जुल के भाईचारे से रहते थे वैसे ही आज भी रहा करते हैं | ये दुःख की बात है की जब भारत में शिया के आगमन की बात होती है तो जौनपुर को लोग याद नहीं करते जबकि बिना जौनपुर और शार्की राज्य में शिया आबादी के ज़िक्र के यह इतिहास अधूरा ही नहीं ग़लत भी कहलायगा |
शिया समुदाय को हजरत अली (अ.स ) और हजरत मुहम्मद (स अ व ) को मानने उनके पदचिन्हों पे चलने और उनके रौज़े बनाने के कारण मुसलमानों के एक छोटे से हिस्से द्वारा हमेशा परेशान किया गया | शिया मुसलमान अमन पसंद होता है और अन्यधर्म के लोगों के साथ मिल जुल के चलने में विश्वास रखता है क्यूँ की शियों के इमाम हजरत अली (अ.s) का कहना था की दुनिया के सारे इंसान हमारे इंसानियत के रिश्ते से भाई हैं |
अधिकतर सुन्नी हमेशा से शियों के साथ मिल जुल के रहे और आज भी रहते हैं और संत ,सूफी ,इमाम के रौज़े में जाया करते हैं उर्स लगाते हैं लेकिन एक सेक्ट मुसलमानों में ऐसा है जो इस रौज़े बनाने के खिलाफ है और उनसे आज भी शिया समुदाय को खतरा बना रहता है |
शिया समुदाय का मानना है की दुनिया में जो भी नेक लोग आये ,जिन्होंने समाज के भले के लिए काम किया उनकी याद को हमेशा जीवित रखो इसीलिये शिया नेक लोगों के काम को जिंदा रखने के लिए उनकी म्रत्यु के बाद रौज़े और मजारें बना लेते हैं और उनपे अकीदत के फूल चढाने आया जाया करते हैं | शिया समुदाय के साथ साथ यही सोंच ९०% सुन्नी मुसलमानों में भी है इसीलिये यह आपस में मिल के रहते हैं और उनसे मतभेद रखते है जो मुसलमान रौज़े और मजारों के खिलाफ हैं | इसी लिए भारतवर्ष में सबसे अधिक इमामबाड़े ,रौज़े, मजारें उस समय बनी जब शिया आजादी से अपनी पहचान बताने लगे | सबसे अधिक इमाम बाड़े, रौज़े या तो नवाबों के समय में बने या शार्की राज्य में बने और बहुत से इमाम बाड़े तुगलक़ समय में बने हैं |
लेखक ..एस एम् मासूम
Note : % of shia based on news papers or 2011 jangadna and alimaan trust information of 2005|
लेखक ..एस एम् मासूम