11 ज़िलहिज से 29 ज़िलहिज तक की मंजिलें इमाम हुसैन (अ.स) के सफ़र की |
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मंज़िल ब मंज़िल हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
अनुवादकः सैय्यद ताजदारु हुसैन ज़ैदी
अल्लाह के दीन की सुरक्षा और अपने नाना पैग़म्बरे इस्लाम (स) की सुन्नत की रक्षा के लिये हुसैनी क़ाफ़िला मक्के से इराक़ एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव एक मंज़िल से दूसरी मंज़िल तक यात्रा की सारी कठिनाईयों को झेलता हुआ बढ़ता चला जा रहा था और अंतः 10 मोहर्रम को करबला की तपती रेत पर हुसैन (अ) ने अपनी अपने अपने साथियों की क़ुरबानी पेश करके ईश्वर के दीन त्रुटी पैदा होने से रोक लिया और इस्लाम को एक नया जीवन दे दिया।
मोहद्देसीन के दरमियान मशहूद है कि हुसैनी क़ाफ़िला 8 ज़िलहिज्जा को मक्के से इराक़ की तरफ़ चला है और इस सफ़र में ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार अपने इस क़ाफ़िले ने बहुत से स्थानों पर पड़ाव डाला है।
हम अपने इस लेख में इमाम हुसैन (अ) की मक्के से करबला तक की यात्रा और उसमें होने वाले पड़ावों के बारे में बहुत सी संक्षिप्त रूप से बयान करेंगे।
"अबतह" "तनईम" "सफ़ाह"
11 ज़िलहिज को इमाम हुसैन (अ) का यह कारवान अबतह नामक मंज़िल पर पहुँचा और यज़ीद बिन सबीत बसरी और उनकी औलाद में से कुछ लोग कुछ शियों के साथ इमाम हुसैन (अ) के काफ़िले में समिलित हुए, उसके बाद यह काफिला आगे बढ़ा और आपका दूसरा पड़ाव तनईम और तीसरा पड़ाव सफ़ाह था।
"वादी अक़ीक़"
12 ज़िलहिज को इमाम हुसैन (अ) का यह काफ़िला वादी अक़ीक़ पहुँचा है।
"वादी सफ़रा"
13 ज़िलहिज को इमाम हुसैन (अ) का काफ़िला अहले हर के साथ वादी सफ़रा में पहुँचा और वहां आप ने पड़ाव डाला यह एक ऐसा स्थान था हो हराभरा और खजूर के बाग़ों एवं खेतो वाला स्थान था, इसी स्थान पर मजमअ और ओब्बाद और उनके साथ इमाम हुसैन (अ) के काफ़िले में शरीक हुए और यह दोनों लोग कर्बला के मैदान में आपकी तरफ़ से लड़ते हुए इस्लाम की रक्षा करते हुए शहीद हुए।
"ज़ाते इर्क़"
14 ज़िलहिज, इस दिन इमाम हुसैन (अ) अपने साथियों और अहलेबैत के साथ ज़ारे इर्क़ नामक मंज़िल पर पहुँचे।
"हाजिर"
15 ज़िलहिज सन 60 हिजरी रिवायतों के अनुसार यह गुरूवार का दिन था कि जब इमाम हुसैन (अ) हाजिर नामक पड़ाव पर पहुँचे और यहीं से आपने अपने दूधभाई अब्दुल्लाह बिन यक़तिर या क़ैस बिन मुसह्हर को एक पत्र देकर हज़रत मुसलिम की तरफ़ भेजा जो क़ादेसिया में हसीन बिन नुमैर द्वारा गिरफ़्तार किये गये।
"फ़ैद" "अजफ़र" "ख़ुज़ैमिया"
16, 17, 18, 19 ज़िलहिज सन 60 हिजरी के दिनों में आप का काफ़िला फ़ैद, अजफ़र और हुज़ैमिया पहुँचा, अजफ़र मक्के से 36 फ़रसख़ की दूरी पर है।
इमाम हुसैन (अ) एक रात और दिन ख़ुज़ैमिया में रुके और यही वह रात थी कि जब हज़रत ज़ैनब ने ख़ैमों से बार किसी की आवाज़ सुनी जो शेर पढ़ रहा था जिसका सार यह था कि यह काफ़िला मौत की तरफ़ बढ़ता जा रहा है। इमाम हुसैन (अ) ने अपनी बहन के जवाब में कहाः अल्लाह ने जो लिख दिया है वह हो कर रहेगा।
"शक़ूक़" "ज़रवद" "सअलबिया" "ज़बाला"
20 ज़िलहिज सन 60 हिजरी को इमाम शक़ूक़ पहुँचे और कहा जाता है कि यहीं पर प्रसिद्ध शाएर फ़रज़दक़ की इमाम हुसैन (अ) से भेंट हुई।
21 ज़िलहिज को इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों ने ज़रवद में पड़ाव डाला और वहां पर ज़ोहैर बिन क़ैन बिजिल्ली ने इमाम हुसैन (अ) से मुलाक़ात की।
22 ज़िलहिज करबला की तरफ़ बढ़ता हुआ यह काफ़िला सअलबिया नामक पड़ाव पर पहुँचा जो एक वीरान देहात था एक एक रिवायत के अनुसार इसी पड़ाव पर दो लोग मक्के से इमाम की तरफ़ आए और उन्होंने हज़रत मुस्लिम और हानी की शहादत की सूचना इमाम को दी और इमाम ने कई बार फरमायाः इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इहैले राजेऊन, और बुलंद आवाज़ में आपने गिरया किया।
अगरचे शेख़ मुफ़ीद और अल्लामा मजलिसी ने कहा है कि ज़बाला नामक मंज़िल पर 23 ज़िलहिज को इमाम और अहलेबैत पहुँचे और वहीं पर आपको हज़रत मुस्लिम और हानी की शहादत की सूचना मिली।
"अलक़ाअ"
24 ज़िहलिज सन 60 हिजरी को इमाम अलक़ाअ नामक मंज़िल पर पहुँचे।
"अक़बह" "शराफ़" "ज़ूहोसुम"
हुसैनी काफ़िला अपनी यात्रा में 25 ज़िलहिज को अकबह नामक पड़ाव पर पहुँचा, इमाम सादिक़ से रिवायत है कि आपने फ़रमायाः जब इमाम हुसैन (अ) वादी अक़बह के ऊपरी छोर पर पहुँचे तो अपने सहाबियों से फ़रमायाः मैं अपने आप को नहीं देखता हूँ मगर यह कि शत्रु के हाथों कत्ल किया जाऊँ, साथियों ने कहाः क्यों या अबाअब्दिल्लाह? फ़रमायाः मैंने स्वप्न में देखा है कि कुछ कुत्ते मुझ पर हमला कर रहे हैं और उनमें से एक कुत्ता जो सबसे ख़तरनाक था वह कोढ़ी था।
26 ज़िलहिज को इमाम हुसैन (अ) अहलेबैत के साथ शराफ़ मंज़िल पर पहुँचे यह वह स्थान था जहां पानी की अधिक्ता थी और इमाम ने जवानों को आदेश दिया की पानी भर लें और इसी मंज़िल के बाद था कि उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद ने एक सेना भेजी जो इमाम हुसैन (अ) को कूफ़ा पहुँचने से रोक सके।
27 ज़िलहिज को इमाम हुसैन (अ) का यह काफ़िला ज़ूहुसुम या ज़ूहसी, ज़ूख़शब, ज़ूजशमी पर पहुँचा रिवायत में है कि इमाम ने आदेश दिया कि खैमे लगाए जाएं उसी समय हुर बिन यज़ीदे रियाही एक हज़ार सिपाहियों की सेना के साथ वहां पहुँचा, इमाम हुसैन (अ) ने आदेश दिया कि इन लोगों को और इनके घोड़ों को पानी पिलाया जाए, आपके आदेश का पालन किया गया और बर्तनों को पानी से भर कर जानवरों तक को पानी पिलाया गया।
"उदैबुल हजनात" "क़तक़तानिया"
28 ज़िलहिज को इमाम का काफ़िला उदैबुल हजानात पहुँचा यहां पर तिरिम्माह और नाफेअ इमाम के काफ़िले में सिमिलित हुए और हुर बिन यज़ीदे रियाही ने उनको पकड़ कर वापस भेजना चाहा तो इमाम ने फ़रमायाः वह मेरे साथी हैं और फिर हुर ने कुछ नहीं कहा। एक रिवायत के अनुसार यही वह स्थान था कि जहां पर इमाम को क़ैस बिन मुसह्हर की शहादत की सूचना मिला।
29 ज़िलहिज को इमाम हुसैन (अ) अपने साथियों और हुर की सेना के साथ क़तक़तानिया पहुँचे एक इमाम सादिक़ की एक रिवायत के अनुसार जब आप इस मंज़िल पर उतरे तो आपकी नज़र एक लगे हुए ख़ैमे पर पड़ी आपने पूछाः यह किसका ख़ैमा है उत्तर दिया गया यह उबैदुल्लाह बिन हुर्रे जअफ़ी का है।
"क़सरे मक़ातिल"
इमाम हुसैन (अ) का यह काफ़िला 23 दिन की कठिन और लंबी यात्रा के बाद एक मोहर्रम को क़सरे मक़ातिल नामक मंज़िल पर पहुँचा और प्रसिद्ध यह है कि इसी स्थान पर उबैदुल्लाह बिन हुर्रे जअफ़ी ने इमाम हुसैन (अ) से मुलाक़त की और आपने उन से सहायता मांगी लेकिन उसने इंकार कर दिया और बाद में वह अपने किये पर लज्जित हुआ, इसी दिन आगे चल कर इमाम का यह काफ़िला नैनवा पहुँचा
इमाम हुसैन (अ) का कर्बला मे प्रवेश
प्रसिद्ध यह है कि इमाम हुसैन (अ) अपने अहलेबैत और साथियों के साथ दो मोहर्रम को कर्बला में प्रवेश किया, वहां पहुँच कर आपके घोड़े ने आगे बढ़ने से इंकार कर दिया, इमाम ने लोगों से पूछा इस स्थान का क्या नाम है? उत्तर मिलाः ग़ाज़रीया, आपने पूछा इसका कोई दूसरा नाम भी है? उत्तर मिलाः शाती फ़ुरात। आपने पूछा क्या इसका कोई और भी नाम है? उत्तर दियाः कर्बला भी कहा जाता है।
हुसैन (अ) ने एक ठंडी आह खींची और तेज़ रोने लके और फ़रमायाः अल्लाह की सौगंध कर्बला यही है! ख़ुदा की क़सम यहीं हमारे मर्द मारे जाएंगे! ईश्वर की सौगंध यहीं हमारे बच्चे और औरतों को क़ैदी बनाया जाएगा, ख़ुदा की क़सम यहीं हमारा अपमान किया जाएगा, हे जवानों उतर आओ कि यहीं हमारी क़ब्रों का स्थान है।
स्रोत
अलइरशाद, आलामुल वर्दी, मसारुश्शिया, बिहारुल अनवार, मिसबाहुल मुज्तहिद, मिसबारे कफ़अमी, कामिलुज़्ज़ियारात, मनाक़िबे आले अबी तालिब, अलइमामुल हुसैन (अ) व असहाबेही, अलग़दीर, तबक़ातुल कुबरा, नफ़सुल महमूम, लहूफ़, मआली अलसिबतैन