हदीसे ग़दीर का वर्णन पैग़म्बर (स.) के एक सौ दस सहाबियों ने किया है।

आज कल यह स्थान भले ही आकर्षण का केन्द्र न रहा हो परन्तु एक दिन यही स्थान इस्लामिक इतिहास की एक महत्वपूर्ण धटना का साभी था। और यह घटना 18 ज़िलहिज्जा सन् 10 हिजरी की है, जिस दिन हजरत अली अलैहिस्सलाम को रसूले अकरम (स.) के उत्तराधिकारी के पद पर नियुक्त किया गया।.
हदीसे ग़दीर
हदीसे ग़दीर अमीरूल मोमेनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम की बिला फ़स्ल विलायत व खिलाफ़त के लिए एक रौशन दलील है और मुहक़्क़ेक़ीन इसको बहुत अधिक महत्व देते हैं।ग़दीरे ख़ुम का दृश्य
ऐ रसूल उस संदेश को पहुँचा दीजिये जो आपके परवर दिगार की ओर से आप पर नाज़िल हो चुका है और अगर आप ने ऐसा न किया तो ऐसा है जैसे आपने रिसालत का कोई काम अंजाम नही दिया। अल्लाह, लोगों के शर से आप की रक्षा करेगा।
ग़दीरे खुम में पैगम्बर का खुत्बा
हदीसे ग़दीर की अमरता
यह बात भी दिलचस्प है कि अबुरिहाने बैरूनी ने अपनी किताब आसारूल बाक़िया में ईदे ग़दीर को उन ईदों में गिना है जिनका आयोजन सभी मुसलमान किया करते थे और खुशिया मनातें थे।[11]
सिर्फ़ इब्ने खलकान और अबुरिहाने बैरूनी ने ही इस दिन को ईद का दिन नही कहा है बल्कि अहले सुन्नत के प्रसिद्ध आलिम सआलबी ने भी शबे ग़दीर को मुस्लिम समाज के मध्य मशहूर मानी जाने वाली शबों में गिना है।[12]
इस इस्लामी ईद की बुनियाद पैगम्बरे इस्लाम (स.) के ज़माने में ही पड़ गई थी। क्योंकि आप ने इस दिन तमाम मुहाजिर, अंसार और अपनी पत्नियों को आदेश दिया था, कि हज़रत अली (अ.) के पास जा कर उन को इमामत व विलायत के सम्बन्ध में मुबारक बाद दें।
इस हदीस का वर्णन पैग़म्बर (स.) के एक सौ दस सहाबियों ने किया है।
इस ऐतिहासिक घटना के महत्व के लिए इतना ही काफ़ी है कि इसका वर्णन पैगम्बरे अकरम (स.) के 110 सहाबियों ने किया है।[14]लेकिन इस वाक्य का अर्थ यह नही है कि सहाबियों की इतनी बड़ी सँख्यां में से केवल इन्हीं सहाबियों ने इस घटना का वर्णन किया है। बल्कि इससे यह अभिप्रायः है कि अहले सुन्नत के उलमा ने जो किताबें लिखी हैं उनमें सिर्फ़ इन्हीं 110 सहाबियों का वर्णन मिलता है।
यह हदीस इमाम अली अलैहिस्सलाम के, तमाम सहाबा से श्रेष्ठ होने को सिद्ध करती है।
उसमान की खिलाफ़त के ज़माने में और स्वयं अपनी खिलाफ़त के समय में भी इस पर विरोध प्रकट किया है।[19]
इसके अलावा हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा जैसी महान शख्सियत नें हज़रत अली अलैहिस्सलाम की श्रेष्ठता से इंकार करने वालों के सामने इसी हदीस को तर्क के रूप में प्रस्तुत किया।[20]
मौला से क्या अभिप्रायः है ?
पहली दलील
दूसरी दलील
तीसरी दलील
चौथी दलील
पाँचवी दलील
पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने अपने ख़ुत्बे (भाषण) के शुरू में अपनी रेहलत (मृत्यु) के बारे में ख़बर देते हुए कहा हैं कि “ इन्नी औशकु अन उदआ फ़उजीबा” अर्थात क़रीब है कि मुझे बुलाया जाये और मैं चला जाऊँ।[25]यह जुमला इस बात की ओर संकेत कर रहा है कि पैगम्बर यह चाहते हैं कि अपने बाद के लिए कोई इंतेज़ाम करें और अपनी रेहलत (मृत्यु) के बाद पैदा होने वाले ख़ाली स्थान पर किसी को नियुक्त करें। जो रसूले अकरम (स.) की रेहलत के बाद तमाम कार्यों की बाग डोर अपने हाथों मे संभाल ले।
छटी दलील
सातवी दलील
अर्थात ऐ अली इब्ने अबितालिब आपको मुबारक हो कि सुबह शाम मेरे और हर मोमिन मर्द और औरत के मौला हो गये।
क्या क़ुरआन ने तमाम मोमिनों को एक दूसरे का भाई नही कहा है ? जैसा कि इरशाद होता है “इन्नमा अल मुमिनूना इख़वातुन।”[28] मोमिन आपस में एक दूसरे के भाई हैं।
अब आप फ़ैसला करें
तीन महत्वपूर्ण हदीसें
इस लेख के अन्त में इन तीन महत्वपूर्ण हदीसों पर भी ध्यान दीजियेगा।अहले सुन्नत के मशहूर मुफ़स्सिर फ़ख़रे राज़ी ने तफ़सीरे कबीर में सूरए हम्द की तफ़सीर के अन्तर्गत लिखा है कि “हज़रत अली अलैहिस्सलाम बिस्मिल्लाह को बलन्द आवाज़ से पढ़ते थे और यह बात तवातुर से साबित है कि जो दीन में अली की इक़्तदा करता है वह हिदायत याफ़्ता है। इसकी दलील पैगम्बर (स.) की यह हदीस है कि आपने कहा “अल्लाहुम्मा अदरिल हक़्क़ा मअ अलीयिन हैसु दार।” अनुवाद – ऐ अल्लाह तू हक़ को उधर मोड़ दे जिधर अली मुड़े।[30]
यह हदीस काबिले तवज्जोह है जो यह कह रही है कि अली की ज़ात हक़ का मरकज़ (केन्द्र बिन्दु) है
क्या हज़रत अली अलैहिस्सलाम और पैगम्बरे अकरम (स.) के दरमियान बरादरी का रिश्ता इस बात की दलील नही है कि वह उम्मत में सबसे अफ़ज़लो आला हैं ? क्या अफ़ज़ल के होते हुए मफ़ज़ूल के पास जाना चाहिए ?
जिस दिन तूफ़ाने नूह ने ज़मीन को अपनी गिरफ़्त में लिया था उस दिन नूह अलैहिस्सलाम की किश्ती के अलावा निजात का कोई दूसरा ज़रिया नही था। यहाँ तक कि वह ऊँचा पहाड़ भी जिसकी चौटी पर नूह (अ.) का बेटा बैठा हुआ था उसको निजात न दे सका।
Ref
[1] एक स्थान का नाम
[2] यह जगह अहराम के मीक़ात की है और माज़ी में यहाँ से इराक़ मिस्र और मदीने के रास्ते जुदा हो जाते थे।
[3] राबिग अब भी मक्के और मदीने के बीच में है।
[4] सूरए मायदा आयत न.67
[5] पैगम्बर ने इतमिनान के लिए इस जुम्ले को तीन बार कहा ताकि बाद मे कोई मुग़ालता न हो।
[6] यह पूरी हदीसे ग़दीर या फ़क़त इसका पहला हिस्सा या प़क़त दूसरा हिस्सा इन मुसनदों में आया है। क-मुसनद ऊब्ने हंबल जिल्द 1 पेज न. 256 ख- तारीखे दमिश्क़ जिल्द42 पेज न. 207, 208, 448 ग- खसाइसे निसाई पेज न. 181 घ- अल मोजमुल कबीर जिल्द 17 पेज न. 39 ङ- सुनने तिरमीज़ी जिल्द 5 पेज न. 633 च- अल मुसतदरक अलल सहीहैन जिल्द 13 पेज न. 135 छ- अल मोजमुल औसत जिल्द 6 पेज न. 95 ज- मुसनदे अबी यअली जिल्द 1 पेज न. 280 अल महासिन वल मसावी पेज न. 41 झ- मनाक़िबे खवारज़मी पेज न. 104 व दूसरी किताबें।
[7] इस खुत्बे को अहले सुन्नत के बहुत से मशहूर उलमा ने अपनी किताबों में ज़िक्र किया है। जैसे क- मुसनदे अहमद जिल्द 1 पेज 84,88,118,119,152,332,281,331 व 370 ख- सुनने इब्ने माजह जिल्द 1 पेज न. 55 व 58 ग- अल मुस्तदरक अलल सहीहैन हाकिम नेशापुरी जिल्द 3 पेज न. 118 व 613 घ- सुनने तिरमीज़ी जिल्द 5 पेज न. 633 ङ- फ़तहुलबारी जिल्द 79 पेज न. 74 च- तारीख़े ख़तीबे बग़दादी जिल्द 8 पेज न.290 छ-तारीखुल खुलफ़ा व सयूती 114 व दूसरी किताबें।
[8] सूरए माइदह आयत 3व 67
[9] वफ़ायातुल आयान 1/60
[10] वफ़ायातुल आयान 2/223
[11] तरजमा आसारूल बाक़िया पेज 395 व अलग़दीर 1/267
[12] समारूल क़ुलूब511
[13] उमर इब्ने खत्ताब की मुबारक बादी का वाक़िआ अहले सुन्नत की बहुतसी किताबों में ज़िक्र हुआ है। इनमें से खास खास यह हैं-क-मुसनद इब्ने हंबल जिल्द6 पेज न.401 ख-अलबिदाया वन निहाया जिल्द 5 पेज न.209 ग-अलफ़सूलुल मुहिम्माह इब्ने सब्बाग़ पेज न.40 घ- फराइदुस् सिमतैन जिल्द 1 पेज न.71 इसी तरह अबु बकर उमर उस्मान तलहा व ज़ुबैर की मुबारक बादी का माजरा बहुत सी दूसरी किताबों में बयान हुआ है। जैसे मनाक़िबे अली इब्ने अबी तालिब तालीफ़ अहमद बिन मुहम्मद तबरी अल ग़दीर जिल्द 1 पेज न. 270)
[14] इस अहम सनद का ज़िक्र एक दूसरी जगह पर करेंगे।
[15] सनदों का यह मजमुआ अलग़दीर की पहली जिल्द में मौजूद है जो अहले सुन्नत की मशहूर किताबों से जमा किया गया है।
[16] सूरए माइदा आयत न.3
[17] हस्सान के अशआर बहुत सी किताबों में नक़्ल हुए हैं इनमें से कुछ यह हैं क- मनाक़िबे खवारज़मी पेज न.135 ख-मक़तलुल हुसैन खवारज़मी जिल्द 1पेज़ न.47 ग- फ़राइदुस्समतैन जिल्द1 पेज़ न. 73 व 74 घ-अन्नूरूल मुशतअल पेज न.56 ङ-अलमनाक़िबे कौसर जिल्द 1 पेज न. 118 व 362.
[18] यह एहतेजाज जिसको इस्तलाह में मुनाशेदह कहा जाता है हस्बे ज़ैल किताबों में बयान हुआ है। क-मनाक़िबे अखतब खवारज़मी हनफ़ी पेज न. 217 ख- फ़राइदुस्समतैन हमवीनी बाबे 58 ग- वद्दुर्रुन्नज़ीम इब्ने हातम शामी घ-अस्सवाएक़ुल मुहर्रेक़ा इब्ने हज्रे अस्क़लानी पेज़ न.75 ङ-अमाली इब्ने उक़दह पेज न. 7 व 212 च- शरहे नहजुल बलाग़ह इब्ने अबिल हदीद जिल्द 2 पेज न. 61 छ- अल इस्तिआब इब्ने अब्दुल बर्र जिल्द 3 पेज न. 35 ज- तफ़सीरे तबरी जिल्द 3 पेज न.417 सूरए माइदा की 55वी आयत के तहत।
[19] क- फ़राइदुस्समतैन सम्ते अव्वल बाब 58 ख-शरहे नहजुल बलाग़ह इब्ने अबिल हदीद जिल्द 1 पेज न. 362 ग-असदुलग़ाब्बा जिल्द 3पेज न.307 व जिल्द 5 पेज न.205 घ- अल असाबा इब्ने हज्रे अस्क़लानी जिल्द 2 पेज न. 408 व जिल्द 4 पेज न.80 ङ-मुसनदे अहमदजिल्द 1 पेज 84 व 88 च- अलबिदाया वन्निहाया इब्ने कसीर शामी जिल्द 5 पेज न. 210 व जिल्द 7 पेज न. 348 छ-मजमउज़्ज़वाइद हीतमी जिल्द 9 पेज न. 106 ज-ज़ख़ाइरिल उक़बा पेज न.67( अलग़दीर जिल्द 1 पेज न.163व 164.
[20] क- अस्नल मतालिब शम्सुद्दीन शाफ़ेई तिब्क़े नख़ले सखावी फ़ी ज़ौइल्लामेए जिलेद 9 पेज 256 ख-अलबदरुत्तालेअ शौकानी जिल्द 2 पेज न.297 ग- शरहे नहजुल बलाग़ह इब्ने अबिल हदीद जिल्द 2 पेज न. 273 घ- मनाक़िबे अल्लामा हनॉफ़ी पेज न. 130 ङ- बलाग़ातुन्नसा पेज न.72 च- अलअक़दुल फ़रीद जिल्द 1 पेज न.162 छ- सब्हुल अशा जिल्द 1 पेज न.259 ज-मरूजुज़्ज़हब इब्ने मसऊद शाफ़ई जिल्द 2 पेज न. 49 झ- यनाबी उल मवद्दत पेज न. 486.
[21] इन अशआर का हवाला पहले दिया जा चुका है।
[22] शब्दकोष का ज्ञाता
[23] मरहूम अल्लामा अमीनी ने अपनी किताब अलग़दीर की दूसरी जिल्द में पेज न. 25-30 पर इस शेर को दूसरे अशआर के साथ 11 शिया उलमा और 26 सुन्नी उलमा के हवाले से नक़्ल किया है।
[24] “अलस्तु औला बिकुम मिन अनफ़ुसिकुम” इस जुम्ले को अल्लामा अमीनी ने अपनी किताब अलग़दीर की पहली जिल्द के पेज न. 371 पर आलमे इस्लाम के 64 महद्देसीन व मुवर्रेख़ीन से नक़्ल किया है।
[25] अलग़दीर जिल्द 1 पेज न. 26,27,30,32,333,34,36,37,47 और 176 पर इस मतलब को अहले सुन्नत की किताबों जैसे सही तिरमिज़ी जिल्द 2 पेज न. 298, अलफ़सूलुल मुहिम्मह इब्ने सब्बाग़ पेज न. 25, अलमनाक़िब उस सलासह हाफ़िज़ अबिल फ़तूह पेज न. 19 अलबिदायह वन्निहायह इब्ने कसीर जिल्द 5 पेज न. 209 व जिल्द 7 पेज न. 347 , अस्सवाएक़ुल मुहर्रिकह पेज न. 25, मजमिउज़्ज़वाइद हीतमी जिल्द9 पेज न.165 के हवाले से बयान किया गया है।
[26] अल्लामा अमीनी ने अपनी किताब अलग़दीर की पहली जिल्द के पेज न. 43,165, 231, 232, 235 पर हदीस के इस हिस्से का हवाला इब्ने जरीर की किताब अलविलायत पेज न. 310, तफ़सीरे इब्ने कसीर जिल्द 2 पेज न. 14, तफ़सीरे दुर्रे मनसूर जिल्द 2 पेज न. 259, अलइतक़ान जिल्द 1 पेज न. 31, मिफ़ताहुन्निजाह बदख़शी पेज न. 220, मा नज़लः मिनल क़ुरआन फ़ी अलियिन अबुनईमे इस्फ़हानी, तारीखे खतीबे बग़दादी जिल्द 4 पेज न. 290, मनाक़िबे खवारज़मी पेज न. 80, अल खसाइसुल अलविया अबुल फ़तह नतनज़ी पेज न. 43, तज़किराए सिब्ते इब्ने जोज़ी पेज न. 18, फ़राइदुस्समतैन बाब 12, से दिया है।
[27] अलग़दीर जिल्द 1 पेज न. 270, 283.
[28] सूरए हुजरात आयत न. 10
[29] इस हदीस को मुहम्मद बिन अबि बक्र व अबुज़र व अबु सईद ख़ुदरी व दूसरे लोगों ने पैगम्बर (स.) से नक़्ल किया है। (अल ग़दीर जिल्द 3)
[30] तफ़सीरे कबीर जिल्द 1/205
[31] अल्लामा अमीने अपनी किताब अलग़दीर की तीसरी जिल्द में इन पचास की पचास हदीसों का ज़िक्र उनके हवालों के साथ किया है।
[32] मसतदरके हाकिम जिल्द 2/150 हैदराबाद से छपी हुई। इसके अलावा अहले सुन्नत की कम से कम तीस मशहूर किताबों में इस हदीस को नक़्ल किया गया है।

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