आज के दौर मे लोगो को बुराई से कैसे रोके और जहूर ए इमाम मेहदी की तैयारी कैसे करे ?
इमाम हुसैन ने करबला मे कहा बहन ज़ैनब झूठे बहुत से मददगार पैदा कर लेते हैं लेकिन सच की राह पे चलने वालो को सिर्फ गिनती के कुछ ही साथी मिल...

इमाम हुसैन ने करबला मे कहा बहन ज़ैनब झूठे बहुत से मददगार पैदा कर लेते हैं लेकिन सच की राह पे चलने वालो को सिर्फ गिनती के कुछ ही साथी मिला करते हैं ।
इस्लाम का यह कानून की इस समाज मे जो भी अच्छा हो रहा है उसका साथ दो और उसे औरो तक पहुचाओ और जो घालत हो रहा उसका साथ ना दो और उसे रोकने की कोशिश करो आज के दौर मे लोगो ने भुला दिया है जबकी यही इस्लाम धर्म की नीव है जिसपे पे पुरा इस्लाम का ढांचा टिका हुआ है | केवल इतना ही नही बल्की जो लोग इमाम मेहदी (अ स ) के जहूर की दुआ करते है उन्हे भी यह मालूम की चाहिये कि अगर हम मे से अधिकतर लोग इस्लाम के इस क़ानून पे चलने लगे तो इमाम का जहूर आज ही हो जाय और दुनिया से जुल्म का अन्त हो जाय |
इस्लाम धर्म के ज्ञानी कुलैनी कहते है की इमाम जाफर ए सादिक़ के समय मे बादशाहत गलत हाथो मे थी और अक्सर लोग बादशाह के खिलाफ आंदोलन किया करते थे जिसमे इमाम जाफर ए सादिक़ अ स शरीक नही हुआ करते थे और अपने तरफ से अहलेबैत अलैहिस्सलाम की शिक्षाओं को प्रचलित करने को अधिक अहमियत दिया करते थे जिसका कारण यह था की जो लोग बादशाह के खिलाफ आंदोलन करते रहते थे उनका मक़्सद बिदअत को मिटाना और अल्लाह के दीन को प्रचलित करना या पैग़म्बरे इस्लाम के अहलेबैत की सहायता नही था बल्की उनका मक़्सद सत्ता को हासील करना या बादशाहत मे अहम स्थान हासील करना हुआ करता था और अगर ऐसे लोग थे भी जो इस्लाम को बचाने के लिये आवाज उठाना चाहते थे तो वो गिनती मे इतने कम थे कि इमाम जाफर ए सादिक़ अ स के लिये बादशाहों के विरुद्ध आंदोलन करना उचित नहीं था |
कुलैनी र.अ. ने लिखा है: मैं इमाम सादिक़ अ. के पास गया और उनसे कहा ख़ुदा की क़सम ये जाएज़ नहीं है कि आप ना इन्साफ बादशाह के खिलाफ आंदोलन न करें! क्यों? इसलिए कि आपके दोस्त शिया और मददगार बहुत ज़्यादा हैं। अल्लाह की क़सम अगर अली अ. के शियों और दोस्तों की संख्या इतनी ज़्यादा होती तो कभी भी उनके हक़ को न छीना जाता। इमाम अ. ने पूछा सुदैर उनकी संख्या कितनी है? सुदैर ने कहा जी दो लाख बल्कि आधी दुनिया आपके साथ है।
इमाम ख़ामोश हो गए सुदैर कहते हैं कि इमाम उठ खड़े हुए मैं भी उनके साथ चल पड़ा रास्ते में बकरी के एक झुँड के बग़ल से गुज़र हुआ इमाम सादिक़ अ. ने फ़रमाया :-ऐ सुदैर अल्लाह की क़सम अगर इन बकरियों भर भी हमारे शिया होते तो आंदोलन न करना मेरे लिए जाएज़ नहीं था फिर हमने वहीं पर नमाज़ पढ़ी और नमाज़ के बाद हमने बकरियों को गिना तो उनकी संख्या 17 से ज़्यादा नहीं थी। काफ़ी जिल्द 2 पेज 243
आज भी ऐसा ही दौर है की सच की राह पे चलने वालो को सिर्फ गिनती के कुछ ही साथी मिला करते हैं लेकिन हम इमाम अ स की सीरत पे चलते हुये अपने किरदार को बलंद करते हुये इमाम ए जमाना के जहूर की दुआ नही करते बल्की बातिल के साथ यह कहते हुये मिल जाते है की कोई हक़ पे रहो तो साथ नही देता तो क्या हम अकेले रहे ?
हम भूल जाते है की जिसके साथ अल्लाह हो और इमाम अ स की मुहब्बत हो वो अकेला कहां से हो सकता है ? आज के युग मे अगर आप बातिल के खिलाफ आवाज काम सहयोगी होने के कारण नही उठा पा रहे है तो आप इमाम जाफर ए सादिक़ अ स की तरह अहलेबैत अलैहिस्सलाम की शिक्षाओं को प्रचलित करने को अधिक अहमियत दे और बातिल से दूरी अख्तियार करे |
