क़यामत, अल्लाह तआला की रहमत, दया
क़यामत , अल्लाह तआला की रहमत , दया , हिकमत , नीति और उसके न्याय की नुमाइश का स्थान है इस बारे में क़ुर्आने मजीद में यह फ़रमाता हैः ...

क्या तुमने यह सोच रखा है कि हमने तुमको बेकार पैदा किया है और तुम हमारी तरफ़ पलटा कर नहीं लाये जाओगे?
दूसरे स्थान पर यह बयान करने के बाद कि आसमान और ज़मीन और जो कुछ इनके बीच है अल्लाह तआला ने उन सब को बेकार पैदा नहीं किया है। क़यामत को बयान करने के बाद यह फ़रमाता हैः
क़यामत का एक और फ़लसफ़ा यह है कि अच्छे और बुरे तथा मोमिन और काफ़िर के बारे में अल्लाह तआला का न्याय पूरी तरह से लागू हो जाए क्योंकि दुनिया में सारे इन्सानों के एक साथ ज़िन्दगी गुज़ारने के आधार पर अल्लाह तआला के न्याय के अनुसार इनाम व सज़ा देने के क़ानून पर पूरी तरह अमल नामुमकिन है इस आधार पर एक ऐसी जगह का होना ज़रूरी है कि जहाँ अल्लाह तआला के इनाम व सज़ा पर आधारित क़ानून के लागू होने का इमकान पाया जाता हो, इस बारे में क़ुरआने मजीद में इरशाद होता हैः
क्या हम मोमिनों और अच्छे काम करने वालों को ज़मीन पर फ़साद व उपद्रव फैलाने वालों और परहेज़गारों व सदाचारियों को गुनाहगारों व पापियों के बराबर क़रार देंगे?
क्या हम बात मानने वालों को अपराधियों के बराबर क़रार देंगे, तुम्हे क्या हो गया है, कैसे फ़ैसला करते हो?