अब सूरए इब्राहीम की आयत नंबर १२ - मानवीय समर्थकों पर भरोसा नुकसान का सौदा

और हम ईश्वर पर भरोसा क्यों न करें जबकि उसी ने (कल्याण के) मार्गों की ओर हमारा मार्गदर्शन किया है और तुम्हारी ओर से दी जाने वाली यातनाओं पर ...

और हम ईश्वर पर भरोसा क्यों न करें जबकि उसी ने (कल्याण के) मार्गों की ओर हमारा मार्गदर्शन किया है और तुम्हारी ओर से दी जाने वाली यातनाओं पर हम धैर्य करेंगे और भरोसा करने वालों को तो केवल ईश्वर पर ही भरोसा करना चाहिए। (14:12)

क़ुरआने मजीद इस आयत में कहता है कि जिस ईश्वर के हाथ में मनुष्य का कल्याण व सौभाग्य है, उसके अतिरिक्त किस पर भरोसा एवं विश्वास किया जा सकता है? अल्बत्ता ईश्वर पर भरोसे का अर्थ यह नहीं है कि मनुष्य समाज से कट जाए और एकांत में रहने लगे, बल्कि ईश्वर पर भरोसे का अर्थ कठिनाइयों के समक्ष डटे रहना तथा यातनाओं को सहन करना है।
यातनाएं देना और समस्याएं खड़ी करना विरोधियों का काम है तथा सत्य के मार्ग पर डटे रहना, ईमान वालों की शैली है। इस संघर्ष में ईमान वालों को ईश्वर का समर्थन प्राप्त होता है जबकि विरोधी मानवीय समर्थकों पर भरोसा करते हैं कि जो ईश्वरीय संकल्प के मुक़ाबले में टिकने की क्षमता नहीं रखते।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का कथन है कि ईश्वर पर वास्तविक भरोसे का चिन्ह यह है कि तुम उसके अतिरिक्त किसी अन्य से न डरो, और यही ईमान की कुंजी है।
इस आयत से हमने सीखा कि जो ईश्वर मार्गदर्शन करता है वह सहायता भी करता है, अतः हमें केवल उसी पर भरोसा करना चाहिए।
ईश्वर के मार्ग पर चलने में कठिनाइयां सहन करनी ही पड़ती हैं, विरोधियों की यातनाओं और बाधाओं के कारण अपने ईमान को नहीं छोड़ना चाहिए। सच्चे ईमान वाला किसी भी स्थिति में सत्य पर आस्था और कर्म को नहीं छोड़ता।


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