मेहर क्या है? और ये कब तय किया और कब दिया जाता है?
मेहर वो रक़म है जो किसी लड़की का होने वाला शौहर लड़की तो तोहफे के तौर पे दिया करता है लेकिन यह रक़म लड़की तय किया करती है | इस मेहर को न तो ...
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लड़की अगर यह रक़म बाद में लेने के लिए तैयार अपनी मर्ज़ी से है तो ठीक वरना इस रकम को अदा किये बिना आप उसके साथ शौहर बीवी की हैसीयत से नहीं रह सकते अगर लड़की इनकार कर दे तो |
और महिलाओं का मेहर उन्हें उपहार स्वरूप और इच्छा से दो यदि उन्होंने अपनी इच्छा से उसमें से कोई चीज़ तुम्हें दे दी तो उसे तुम आनंद से खा सकते हो। (4:4)
सभी जातियों व राष्ट्रों के बीच परिवार के गठन के महत्वपूर्ण विषयों में एक पति द्वारा अपनी पत्नी को मेहर के रूप में उपहार दिया जाना है परंतु कुछ जातियों व समुदायों विशेषकर पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के काल के अरबों के बीच, जहां व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में महिलाओं का कोई विशेष स्थान नहीं था, अनेक अवसरों पर पुरुष या तो मेहर देते ही नहीं थे या फिर मेहर देने के पश्चात उसे ज़बरदस्ती वापस ले लेते थे।
महिला के पारिवारिक अधिकारों की रक्षा में क़ुरआन पुरुषों को आदेश देता है कि वे मेहर अदा करें और वह भी स्वेच्छा तथा प्रेम से न कि अनिच्छा से और मुंह बिगाड़ के। इसके पश्चात वह कहता है कि जो कुछ तुमने अपनी पत्नी को मेहर के रूप में दिया है उसे या उसके कुछ भाग को वापस लेने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है बल्कि यदि वह अपनी इच्छा से तुम्हें कुछ वापस दे दे तो वह तुम्हारे लिए वैध है।
इस आयत में प्रयोग होने वाले एक शब्द नहलह के बारे में एक रोचक बात यह है कि यह शब्द नहल से निकला है जिसका अर्थ मधुमक्खी होता है। जिस प्रकार से मुधमक्खी लोगों को बिना किसी स्वार्थ के मधु देती है और उनके मुंह में मिठास घोल देती है उसी प्रकार मेहर भी एक उपहार है जो पति अपनी पत्नी को देता है ताकि उनके जीवन में मिठास घुल जाये। अत: मेहर की वापसी की आशा नहीं रखनी चाहिये।
मेहर पत्नी की क़ीमत और मूल्य नहीं बल्कि पति की ओर से उपहार और पत्नी के प्रति उसकी सच्चाई का प्रतीक है। इसी कारण मेहर को सेदाक़ भी कहते हैं जो सिद्क़ शब्द से निकला है जिसका अर्थ सच्चाई होता है।
मेहर पत्नी का अधिकार है और वह उसकी स्वामी होती है। पति को उसे मेहर देना ही पड़ता है और उससे वापस भी नहीं लिया जा सकता।
किसी को कुछ देने में विदित इच्छा पर्याप्त नहीं है बल्कि स्वेच्छा से और मन के साथ देना आवश्यक है। यदि पत्नी विवश होकर या अनमनेपन से अपना मेहर माफ़ कर दे तो उसे लेना ठीक नहीं है चाहे वह विदित रूप से राज़ी ही क्यों न दिखाई दे।
कुछ बातें ध्यान देने योग्य हैं |
१) मेहर शादी के पहले तय होता है जिसके तय किये बिना निकाह संभव नहीं क्यूँ की निकाह के समय लड़की कहती है " मैंने खुद को तुम्हारे निकाह में दिया एक तय की हुयी मेहर की रक़म पे| (An Kah’tu nafsaka a’lal mah’ril ma’loom’)
और लड़का फ़ौरन कहता है मैंने कुबूल किया | ‘Qabiltun Nikaha’
यह कहे बिना निकाह नहीं हो सकता |
हाँ अगर किसी कारणवश लड़की महर तय नहीं कर सकी या तय ना करना चाहे तो भी महर की एक रक़म खुद से तय हो जाती है जिसे "महरुल मिसल" कहते हैं और इसकी रक़म ज़िम्मेदार और इल्म रखने वाले बुज़ुर्ग तय करते हैं | लेकिन लड़की ने अगर कह दिया की यह रक़म वो खुद तय करेकी तो किसी और को तय करने का अधिकार नहीं रहता |
२) इस मेहर को अदा करने के दो तरीके हैं अ) मुअज्जल जिसका मतलब है फ़ौरन निकाह के पहले ब) मुवज्जल जिसका मतलब होता है जब पत्नी मेहर की डिमांड करे |
इस्लाम में शादी एक कॉन्ट्रैक्ट हुआ करती है इसलिए मेहर अगर लड़की चाहे तो अदा बाद में किया जा सकता है लेकिन तय पहले ही किया जाता है |
मेहर के बारे में बहुत सारी जानकारी मिली ...धन्यवाद
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteमेहर के बारे में बताने के लिए शुक्रिया .....
ReplyDeleteThanks, for given information about mahr
ReplyDeleteआपने मेहर के बारे में बहुत बारीकी से और बहुत अच्छे से लिखकर के बहुत अच्छे से समझाया है बहुत बहुत धन्यवाद आपका 🙏🙏
ReplyDeleteThanks mehr ke bare me jankari dene ke liye
ReplyDeleteMajeed malumat ke liye suqriya
ReplyDeleteAgar shauhar bina mahar diye mar jay to bibi ko mahar kon dega
ReplyDeleteमेहर के बारे में बताने के लिए आपका शुक्रिया अल्लाह हमे नेक वह एक बनाए
ReplyDeleteBEST 👍
ReplyDeleteThanks my big bro
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