लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक -हे ईश्वर हमने तेरे निमंत्रण को स्वीकार किया |

यह जिलहिज का महीना है। यह महीना, मक्का में लाखों तीर्थयात्रियों के एकत्रित होने का काल है जिसमें वे सुन्दर एवं अद्वितीय उपासना हज के संस...


यह जिलहिज का महीना है। यह महीना, मक्का में लाखों तीर्थयात्रियों के एकत्रित होने का काल है जिसमें वे सुन्दर एवं अद्वितीय उपासना हज के संसकार पूरे करते हैं। हज में लोगों की भव्य उपस्थिति, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की प्रार्थना के स्वीकार होने का परिणाम है जब हज़रत इब्राहमी अपने बेटे इस्माईल और अपनी पत्नी हाजरा को इस पवित्र भूमि पर लाए और उन्होंने ईश्वर से कहाः प्रभुवर! मैंने अपनी संतान को इस बंजर भूमि में तेरे सम्मानीय घर के निकट बसा दिया है। प्रभुवर! ऐसा मैंने इसलिए किया ताकि वे नमाज़ स्थापित करें तो कुछ लोगों के ह्रदय इनकी ओर झुका दे और विभिन्न प्रकार के फलों से इन्हें आजीविका दे, कदाचित ये तेरे प्रति कृतज्ञ रह सकें।हज इस्लाम की एक पहचान है और वह धर्म के सामाजिक, राजनीतिक और आस्था संबंधी आयाम के बड़े भाग को प्रतिबिम्बित करता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कथन है कि हज इस्लाम की पताका है। ज़िलहिज्जा का महीना वहि अर्थात ईश्वरीय संदेश उतरने की भूमि में महान ईश्वर पर आस्था रखने वालों के महासम्मेलन का महीना है। आज इस महीने का पहला दिन है। इस महान महीने की पहली तारीख को हम अपने हृदयों को वहि की मेज़बान भूमि की ओर ले चलते है तथा महान ईश्वर के प्रेम व श्रद्धा में डूबे लाखों व्यक्तियों की आवाज़ से आवाज़ मिलाते हैं जो हज के संस्कारों में भाग लेने की तैयारी कर रहे हैं, लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक -हे ईश्वर हमने तेरे निमंत्रण को स्वीकार किया |








हज का शाब्दिक अर्थ होता है संकल्प करना। वे लोग जो ईश्वर के घर के दर्शन का संकल्प करते हैं, उनको इस यात्रा की वास्तविकता से अवगत रहना चाहिए और उसको बिना पहचान के संस्कारों को पूरा नहीं करना चाहिए। इसका कारण यह है कि उचित पहचान और परिज्ञान, ईश्वर के घर का दर्शन करने वाले का वास्तविकताओं की ओर मार्गदर्शन करता है जो उसके प्रेम और लगाव में वृद्धि कर सकता है तथा कर्म के स्वाद में भी कई गुना वृद्धि कर सकता है। ईश्वर के घर के दर्शनार्थी जब अपनी नियत को शुद्ध कर लें और हृदय को मायामोह से अलग कर लें तो अब वे विशिष्टता एवं घमण्ड के परिधानों को अपने शरीर से अलग करके मोहरिम होते हैं। मोहरिम का अर्थ होता है बहुत सी वस्तुओं और कार्यों को न करना या उनसे वंचित रहना। लाखों की संख्या में एकेश्वरवादी एक ही प्रकार के सफेद कपड़े पहनकर और सांसारिक संबन्धों को त्यागते हुए मानव समुद्र के रूप में काबे की ओर बढ़ते हैं। यह लोग ईश्वर के निमंत्रण को स्वीकार करने के लिए वहां जा रहे हैं। पवित्र क़ुरआन के सूरए आले इमरान की आयत संख्या ९७ में ईश्वर कहता है कि लोगों पर अल्लाह का हक़ है कि जिसको वहाँ तक पहुँचने का सामर्थ्य प्राप्त हो, वह इस घर का हज करे।








एहराम बांधने से पूर्व ग़ुस्ल किया जाता है जो उसकी भूमिका है। इस ग़ुस्ल की वास्तविकता पवित्रता की प्राप्ति है। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मोहरिम हो अर्थात दूरी करो हर उस वस्तु से जो तुमको ईश्वर की याद और उसके स्मरण से रोकती है और उसकी उपासना में बाधा बनती है। मोहरिम होने का कार्य मीक़ात नामक स्थान से आरंभ होता है। वे तीर्थ यात्री जो पवित्र नगर मदीना से मक्का जाते हैं वे मदीना के निकट स्थित मस्जिदे शजरा से मुहरिम होते हैं। इस मस्जिद का नाम शजरा रखने का कारण यह है कि इस्लाम के आरंभिक काल में पैग़म्बरे इस्लाम (स) इस स्थान पर एक वृक्ष के नीचे मोहरिम हुआ करते थे। अब ईश्वर का आज्ञाकारी दास अपने पूरे अस्तित्व के साथ ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ता है। हज करने वाले एक ही प्रकार और एक ही रंग के वस्त्र धारण करके तथा पद, धन-संपत्ति और अन्य प्रकार के सांसारिक बंधनों को तोड़कर अपनी वास्तविकता को उचित ढंग से पहचानने का प्रयास करते हैं अर्थात उन्हें पवित्र एवं आडंबर रहित वातावरण में अपने अस्तित्व की वास्तविकताओं को देखना चाहिए और अपनी त्रुटियों एवं कमियों को समझना चाहिए|











जो व्यक्ति भी हज करने के उद्देश्य से सफ़ेद कपड़े पहनकर मोहरिम होता है उसे यह सोचना चाहिए कि वह ईश्वर की शरण में है अतः उसे वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जो उसके अनुरूप हो। यही कारण है कि शिब्ली नामक व्यक्ति जब हज करने के पश्चात इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की सेवा में उपस्थित हुआ तो हज की वास्तविकता को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने शिब्ली से कुछ प्रश्न पूछे। इमाम सज्जाद अ. ने शिब्ली से पूछा कि क्या तुमने हज कर लिया? शिब्ली ने कहा हां, हे रसूल के पुत्र। इमाम ने पूछा कि क्या तुमने मीक़ात में अपने सिले हुए कपड़ों को उतार कर ग़ुस्ल किया था? शिब्ली ने कहा जी हां। इसपर इमाम ने कहा कि जब तुम मीक़ात पहुंचे तो क्या तुमने यह संकल्प किया था कि तुम पाप के वस्त्रों को अपने शरीर से दूर करोगे और ईश्वर के आज्ञापालन का वस्त्र धारण करोगे? शिब्ली ने कहा नहीं। अपने प्रश्नों को आगे बढ़ाते हुए इमाम ने शिब्ली से पूछा कि जब तुमने सिले हुए कपड़े उतारे तो क्या तुमने यह प्रण किया था कि तुम स्वयं को धोखे, दोग़लेपन तथा अन्य बुराइयों से पवित्र करोगे? शिब्ली ने कहा, नहीं। इमाम ने शिब्ली से पूछा कि हज करने का संकल्प करते समय क्या तुमने यह संकल्प किया था कि ईश्वर के अतिरिक्त हर चीज़ से अलग रहोगे? शिब्ली ने फिर कहा कि नहीं। इमाम ने कहा कि न तो तुमने एहराम बांधा, न तुम पवित्र हुए और न ही तुमने हज का संकल्प किया। एहराम के पश्चात दो रकत नमाज़ पढ़ी जाती है। इस नमाज़ को पढ़ने के पश्चात एहराम का अन्तिम चरण आरंभ होता है जिसके अन्तर्गत तलबिया अर्थात “लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक” कहा जाता है। इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कथन है कि जो भी व्यक्ति एहराम के दौरान ईश्वरीय पारितोषिका की प्राप्ति की आशा से पूरी निष्ठा के साथ ७० बार तलबिया कहेगा तो ईश्वर हज़ार फ़रिश्तों को गवाह बनाएगा कि उसने, उसको नरक से मुक्त कर दिया है। अब हाजी “लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक” कहते हुए ईश्वर के घर के दर्शन और उसकी परिक्रमा करने के लिए तैयार होता है ताकि ईश्वर के साथ हर पल अपने संपर्क को अधिक सुदृढ़ बना सके।











हज अत्यन्त प्राचीन संस्कार है। मक्का नगर में काबा, पृथ्वी के पहले मुनष्य हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के युग में बनाया गया था और उस समय से अब तक, एकेश्वरवादियों और ईश्वर में आस्था रखने वालों का उपासनास्थल रहा है। हज़रत इब्राहीम के युग में कि जब हज के अधिकांश संस्कारों की आधारशिला रखी गयी, सब से मुख्य भूमिका हज़रत हाजेरा नामक एक महान महिला ने निभाई। वे हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की पत्नी और हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की माता हैं। उनकी महानता वास्तव में उन परीक्षाओं, संघर्षों, ईश्वर पर भरोसा और उसमें आस्था का परीणाम है जो उनके जीवन में जगह जगह देखने को मिलती है जिनकी याद मक्का के वातावरण और हज के संस्कार से दिलायी गयी है। मक्का के सूखे मरुस्थल में ईश्वर पर भरोसा और अपने पुत्र इस्माईल के लिए एक घूंट पानी के लिए इधर इधर व्याकुलता में हज़रत हाजरा का दौड़ना ईश्वरीय चिन्हों में गिना गया है। हज में हाजियों को सफ़ा और मरवा नामक दो पहाड़ियों के मध्य दौड़ कर हज़रत हाजरा के उसी संघर्ष को याद करना और ईश्वर पर भरोसे में का पाठ लेना होता है। हज़रत हाजेरा ने यह सिखा दिया कि अकेलेपन और बेसहारा हो जाने के बाद किस प्रकार से कृपालु ईश्वर से आशा रखनी चाहिए।










यह कहा जा सकता है कि हज़रत इब्राहीम के साथ हज़रत हाजेरा की जीवनी, वास्तव में उपासना और ईश्वर पर आस्था का इतिहास है। निसंदेह हर मनुष्य किसी न किसी प्रकार इस तरह की परीक्षा का सामना करता है और यह परीक्षा कभी कभी बहुत कठिन होती है। इस स्थिति में संकटों और समस्याओं से निकलने के लिए, हज़रत इब्राहीम और हज़रत हाजेरा जैसे आदर्शों के पदचिन्हों पर चलना चाहिए। कु़रआने मजीद के सूरए मुमतहेना की आयत नंबर चार में कहा गया है कि तुम ईश्वर पर आस्था रखने वालों के लिए अत्यन्त सराहनीय व अच्छी बात यह है कि इब्राहीम और उनके साथ रहने वालों का अनुसरण करो।





हज़रत हाजेरा की महानता का एक अन्य आयाम, ईश्वरीय आदेशों के सामने नतमस्तक होना है। जब उन्हें अपने बेटे इस्माईल की बलि चढ़ाने के ईश्वरीय आदेश का ज्ञान हुआ तो शैतानी बहकावा अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया। शैतान उनके पास गया कहने लगा कि इब्राहीम तुम्हारे बेटे को मार डालना चाहते हैं। हज़रत हाजेरा ने कहा कि क्या विश्व में एसा कोई है जो अपने ही बेटे को मार डाले? शैतान ने कहा वह दावा करते हैं कि यह ईश्वर का आदेश है। हज़रत हाजेरा ने कहा कि चूंकि यह ईश्वर का आदेश है इस लिए उसका पालन होना चाहिए। जो ईश्वर को पसन्द है मैं उसी में खुश हूं। ईश्वर के प्रति आस्था से परिपूर्ण हज़रत हाजेरा की इस बात ने उनकी महानता में चार चांद लगा दिये। आज हज़रत हाजेरा और हज़रत इस्माईल की क़ब्रें, हजरे इस्माईल नामक स्थान पर ईश्वरीय दूतों के साथ हैं। यह स्थान काबे के पास ही गोलार्ध आकार में मौजूद है। जो हाजी काबे की परिक्रमा करना चाहते हैं उन्हें काबे के साथ ही इस स्थान की भी परिक्रमा करनी होती है इस प्रकार से वह महिला जो ईश्वरीय आदेश के कारण मरुस्थल में अकेली रही और जिसने ईश्वरीय आदेश को सह्रदय स्वीकार किया, अन्य लोगों के लिए आदर्श बन गयी। हज़रत हाजेरा पहली महिला हैं जिन्होंने काबे के प्रति अपनी आस्था प्रकट करने के लिए उसके द्वार पर पर्दा डाला|










इस्लाम के उदय के बाद कुछ तथ्य, महिलाओं के हज से परोक्ष व अपरोक्ष रूप से संबंध को दर्शाते हैं। हज़रत ख़दीजा वह एकमात्र महिला हैं जो इस्लाम के उदय के कठिन समय में पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के साथ काबे में जाकर उपासना करती थीं। हज के दौरान महिलाओं द्वारा पैगम्बरे इस्लाम के समक्ष आज्ञापालन की प्रतिज्ञा भी महिलाओं की महानता का एक अन्य चिन्ह है। मक्का नगर में पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने ७३ साथियों के साथ मक्का के लोगों के साथ अक़बा नामक दूसरा जो समझौता किया था उस समय ७३ लोगों में कई महिलाएं शामिल थीं। इन लोगों ने आज्ञापालन की प्रतिज्ञा के लिए पैगम्बरे इस्लाम से समय मांगा। पैग़म्बरे इस्लाम ने मिना के मैदान में आज्ञापालन की प्रतिज्ञा का समय निर्धारित किया। उन लोगों ने १३ ज़िलहिज्जा की रात पैगम्बरे इस्लाम से बात की और मक्का के नास्तिकों की अत्याधिक संवेदनशीलता के बावजूद आज्ञापालन की प्रतिज्ञा का यह कार्यक्रम आयोजित हुआ और बैअतुन्निसा के नाम से विख्यात हुआ। इस से हज में महिलाओं की भागीदारी जो उस समय तक प्रचलित नहीं थी, औपचारिक रूप से होने लगी। उसके बाद से महिलाएं भी पुरुषों के साथ काबे के पास पैगम्बरे इस्लाम की आज्ञापालन की प्रतिज्ञा करती और विभिन्न स्तरों पर उपस्थित रहतीं।




  हज करने वालों को जो अंतिम काम करना होता है उसे तवाफुन्निसा अर्थात स्त्रीपरिक्रमा कहा जाता है इस प्रकार से हज के संस्कार में महिलाओं का उल्लेख मुख्य रूप से किया गया है और यह वास्तव में उन लोगों का उत्तर है जो महिलाओं के बारे में इस्लामी नियमों की आलोचना करते हैं। इस स्त्रीपरिक्रमा के बहुत से आयाम हैं। प्रोफेसर हश्मतुल्लाह क़ंबरी इस संदर्भ में कहते हैं कि तवाफुन्निसा या स्त्रीपरिक्रमा का सब से साधारण संदेश यह है कि वह हाजी को ईश्वर द्वारा महिलाओं को प्रदान चार पदों के सम्मान और उसकी भावनाओं की सराहना की ओर बुलाता है। सब से पहला माता का है, माता, त्याग प्रेम व बलिदान का साक्षात रूप होती है। इसी लिए जब माता या माता पिता के अधिकारों की बात होती है तो ईश्वरीय मार्गदर्शक सब से पहले माता के अधिकारों पर ध्यान दिये जाने पर बल देते हैं। क्योंकि माता का स्थान, प्रशिक्षण में केन्द्रीय स्थान होता है। वह ईश्वर की कृपा की वर्षा का रूप होती है और उसके इस स्थान को सभी धर्मों में स्वीकार किया गया है। उसके बाद बहन का पद है। भाई के लिए बहन का प्रेम अदभुत होता है । तीसरा पद पत्नी का होता है जो वास्तव में अत्याधिक महत्वपूर्ण होता है। एक महिला, विवाह के ईश्वरीय आदेश का पालन करते हुए वास्तव में अपना सब कुछ दांव पर लगा देती है और एक एसे जीवन में क़दम रखती है जिसके बारे में उसे कुछ ही पता नहीं होता है कि आगे क्या होने वाला है। यह महान आत्मा व त्याग का प्रदर्शन है। चौथा पद बेटी का होता है। माता पिता से बेटी के असीम प्रेम को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है । इन भावनाओं और त्याग व बलिदान का क्या मूल्य हो सकता है? हाजियों को महिला की इन पवित्र भावनाओं का सम्मान करना होता है|









यूपी राज्य हज समिति के अध्यक्ष और अल्पसंख्यक कल्याणमंत्री मोहम्मद आजम खां ने हज यात्रा पर जाने वाले यात्रियोंको जरूरी हिदायतों पर अमल करने के लिए कहा है। उन्होंने बताया कि हज के लिए फ्लाइट वाराणसी से सात को औरलखनऊ व दिल्ली से नौ सितंबर को उड़ान भरेगी।यात्री उड़ान से 48 घंटे पहले हज हाउस पहुंच जाएं। इसीतरह उड़ान से सात घंटे पहले भी हज हाउस को रिपोर्ट करनीजरूरी होगा।

Related

हज 8497336549150147921

Post a Comment

emo-but-icon

Follow Us

Hot in week

Recent

Comments

Admin

Featured Post

नजफ़ ऐ हिन्द जोगीपुरा का मुआज्ज़ा , जियारत और क्या मिलता है वहाँ जानिए |

हर सच्चे मुसलमान की ख्वाहिश हुआ करती है की उसे अल्लाह के नेक बन्दों की जियारत करने का मौक़ा  मिले और इसी को अल्लाह से  मुहब्बत कहा जाता है ...

Discover Jaunpur , Jaunpur Photo Album

Jaunpur Hindi Web , Jaunpur Azadari

 

Majalis Collection of Zakir e Ahlebayt Syed Mohammad Masoom

A small step to promote Jaunpur Azadari e Hussain (as) Worldwide.

भारत में शिया मुस्लिम का इतिहास -एस एम्.मासूम |

हजरत मुहम्मद (स.अ.व) की वफात (६३२ ) के बाद मुसलमानों में खिलाफत या इमामत या लीडर कौन इस बात पे मतभेद हुआ और कुछ मुसलमानों ने तुरंत हजरत अबुबक्र (632-634 AD) को खलीफा बना के एलान कर दिया | इधर हजरत अली (अ.स०) जो हजरत मुहम्मद (स.व) को दफन करने

जौनपुर का इतिहास जानना ही तो हमारा जौनपुर डॉट कॉम पे अवश्य जाएँ | भानुचन्द्र गोस्वामी डी एम् जौनपुर

आज 23 अक्टुबर दिन रविवार को दिन में 11 बजे शिराज ए हिन्द डॉट कॉम द्वारा कलेक्ट्रेट परिसर स्थित पत्रकार भवन में "आज के परिवेश में सोशल मीडिया" विषय पर एक गोष्ठी आयोजित किया गया जिसका मुख्या वक्ता मुझे बनाया गया । इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिलाधिकारी भानुचंद्र गोस्वामी

item