google.com, pub-0489533441443871, DIRECT, f08c47fec0942fa0 मज़हबी साजिशों का शिकार यह समाज| | हक और बातिल

मज़हबी साजिशों का शिकार यह समाज|

इधर मैंने कुछ लेख इस्लाम और आज का मुसलमान जैसे विषयों पे लिखे जैसे इस्लाम के दामन में लगा दाग़ , धर्म और भ्रष्टाचार , इस्लाम की हकीकत &qu...

इधर मैंने कुछ लेख इस्लाम और आज का मुसलमान जैसे विषयों पे लिखे जैसे इस्लाम के दामन में लगा दाग़ ,धर्म और भ्रष्टाचार ,इस्लाम की हकीकत" बहुत से लोगों ने सवाल भी पूछे| कुछ के सवाल इस बात की ओर इशारा करते थे की उनका ज्ञान इस्लाम के बारे में कुरान और सीरत इ रसूल (स.अ.व) की जगह सुनी सुनायी कहानियों पे आधारित है और कुछ को मैंने आज कल की राजनीती का शिकार पाया| कुछ ने तो खुल के यह बात कही की हम दूसरों के धर्म की कमियां निकालते रहेंगे चाहे इसका असर समाज में सही पड़े या गलत पड़े और यह सोंच एक चिंता का विषय है | लेकिन सभी के सवाल अपनी जगह जाएज़ हैं, हकीकत यही है कि आज के युग में किसी भी इंसान को देख के उसके किरदार को देख के यह पता ही नहीं लगता है कि किसी धर्म से इसका कोई ताल्लुक भी है | उनकी धार्मिक किताबें कुछ और कहती हैं और उनका आचरण ,व्यवहार या किरदार कुछ और कहता है | यही हाल मुसलमान का भी है|गुज़रे कुछ सालों से इस्लाम के खिलाफ राजनितिक साजिशें विश्वस्तर पे दखी गयीं और तालिबान ,आतंकवाद जैसे शब्द अधिक सुनने में आने लगे | ज़िया उल हक के पहले तालिबानी कहाँ थे आज कोई नहीं बता सकता | केवल हिंदुस्तान के ही नहीं पूरे विश्व में इस्लाम के खिलाफ फैलाई अफवाहों का असर हुआ और आज आम इंसान को सच में ऐसा लगता है की मुसलमान का मतलब आतंकवादी |

यह एक अफ़सोस की बात है की अधिकतर मुसलमान अमन और शांति से जीना चाहते हैं लेकिन उनकी छवि अमन और शांति को भंग करने वाली बनाई जा रही है | यह भी सत्य है की आज धर्म के नाम पे इंसानों को एक दुसरे का दुश्मन बनाने की साजिश विश्वस्तर पे चलाई जा रही है |हिंदुस्तान में तो मुसलमान विश्व के किसी दुसरे मुल्क के मुकाबले अधिक ख़ुशी से रहता आया है | ऐसे में भारवासियों की यह कोशिश होनी चाहिए एक इन साजिशों से खुद को बचाते हुए अपने भाईचारे को काएम रखें |

मेरी कोशिश यही रहती है की औरों के सामने इस्लाम की सही तस्वीर पेश करूँ और मुसलमानों को भी आइना दिखाओं की देखो गुमराह न हो जाना, किसी के बहकावे में न आना |क्यूंकि अज्ञानता ही सभी झगड़ो और नफरतों की जड़ है |कुरान में तो साफ़ साफ़ कहा है की मुसलमान शक्ल से या नमाज़ों से नहीं सीरत से अच्छे किरदार से बनता है और पहचाना जाता है | इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स) ने कहा की किसी को उसकी नमाज़ों या बड़े बड़े सजदो से न पहचानो बल्कि उसकी सीरत से पहचानो | वैसे भी सूरत अक्सर झूट बोल जाती है |

हज़रात मुहम्मद (स.अ.व) के वक़्त का एक वाकेया है की एक इंसान उनके पास रोज़ बैठता था और इस्लाम के बारे में जानकारी हासिल करता था | अपने घर जा के कुरान पढता और समझने की कोशिश किया करता था | क्यूंकि उसका बाप इस्लाम पे नहीं था वो उसे रोकता था कभी कभी बुरा भला भी कह देता था | एक दिन जब वो शख्स रसूल इ खुदा (सव) की बज़्म में पहुंचा तो उसका चेहरा उतरा हुआ था और कुछ परेशां नज़र आ रह था | रसूल ऐ खुदा (स.अ.व) ने उससे इसका कारन पुछा तो उसने कहा | कल जब उसका बाप उसे कुरान पढने से मन कर रह था तो उसे गुस्सा आ गया और उसने अपने बाप पे हाथ उठा दिया |

इतना सुनना था की रसूल ऐ खुदा हजरत मुहम्मद (स.अ.व) ने कहा मेरी बज़्म से चले जाओ और जा के अपने बाप से माफी मांगो |उस शख्स ने कहा अरे रसूल ऐ खुदा (स.अ.व) वो तो काफ़िर है ,इस्लाम पे भी नहीं है मुझे कुरान पढने पे मारता भी है |उस से क्यूँ माफी मांगू |रसूल ऐ खुदा हजरत मुहम्मद (स.अ.व) ने जवाब दिया " वो इस्लाम पे हो या किसी और मज़हब पे इस से तुझे कोई फर्क नही पड़ना चाहिए ,क्यूंकि वो तुम्हारा बाप है और उसे तकलीफ पहुँचाना इस्लाम के कानून के खिलाफ है | अब ज़रा गौर करें उनके बारे में रसूल ऐ खुदा हजरत मुहम्मद (स.अ.व) का क्या ख्याल होगा जो खुद को मुसलमान भी कहते हैं और अपने वालेदैन (मा-बाप) को तकलीफ भी पहुंचाते हैं |

एक दूसरा वाकेया भी याद आ रह है जो उस वाकये से मिलता जुलता है जिसे बचपन में स्कूल की किताबों में पढ़ा था | कूड़ा फेकने वाली बुढिया और रसूल ऐ खुदा हजरत मुहम्मद (स.अ.व) का |एक बूढी औरत थी जो मक्के में उस दौर में रहती थी जब रसूल ऐ खुदा हजरत मुहम्मद (स.अ.व) ने लोगों को इस्लाम की बातें बतानी शुरू की | उस बूढी औरत को लोगों ने कहा यह कोई जादूगर है ,उससे दूर रहना क्यूँ की वो जिससे बात करता है या जो उससे मिलता है वो उसकी बातों में आ जाता है और इस्लाम को अपना धर्म मान लेता है |वो औरत इस बात से डर गयी और उसने मक्का छोड़ने का फैसला कर लिया | वो अपना सामान ले कर सफ़र पे निकल पडी | सामान वजनी था और औरत बूढी | बड़ी मुश्किल से आगे बढ़ पा रही थी | उसे रास्ते में एक ख़ूबसूरत शख्स मिला जिसने उसका सामान उठा लिया और बोला कहाँ जाना है बता दो और उस बूढी औरत को उस इलाके के बहार पहुँच दिया |
रास्ते में वो औरत बताए जा रही थी की एक शख्स मक्के में हैं, जादूगर है ,लोगों को गुमराह कर रहा है, इसीलिए वो उस शख्स की पहुँच से दूर जा रही है | जब वो बूढी उस ख़ूबसूरत शख्स की मदद से मंजिल पे पहुँच गयी तो उस औरत ने कहा बेटा  तुमने अपना नाम नहीं बताया ? कौन हो और कहाँ के हो ? उस ख़ूबसूरत शख्स ने जवाब दिया मैं वही मुहम्मद हूँ जिसके बारे में तुम रास्ते में मुझे बता रही थी और जिससे दूर तुम जाना चाह रही हो | उस औरत को बड़ा ताज्जुब हुआ और उसने पुछा की तुम सब कुछ जानते थे फिर भी मुझे मंजिल पे पहुंचा दिया और मेरी इतनी मदद की | क्यूँ ?

रसूल ऐ खुदा हजरत मुहम्मद (स.अ.व) ने कहा इस्लाम में अल्लाह का हुक्म है कि कमज़ोर ,बूढों और मजबूर की मदद करो ,इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो किस धर्म को मानने वाला है |
वो बूढी औरत रसूल ऐ खुदा हजरत मुहम्मद (स.अ.व) के क़दमो पे गिर पड़ी और कहने लगी जिस धर्म के कानून इतने अच्छे हैं उसे बताने वाला जादूगर या गलत कैसे हो सकता है ?

इन उदाहरण से यह बात साफ़ है की मुसलमान अपनी सीरत से पहचाना जाता है और जिसकी सीरत पैग़म्बर ऐ इस्लाम हज़रात मुहम्मद (स.अ.व) से जुदा हो वो कुछ भी हो सकता है मुसलमान नहीं हो सकता |
आज के मुसलामो को समझना चाहिए की जैसे वो बूढी औरत लोगों के बहकाने में आ के गुमराह हो गयी और इस्लाम को खराब मज़हब और हज़रात मुहम्मद(स.अ.व) को जादूगर समझने लगी थी वैसे ही आज का आम इंसान भी इस्लाम को गलत समझने लगा है |तुम केवल अपने अच्छे किरदार से और हज़रात मुहम्मद (स.अ.व) की सीरत पे चल के ही दूसरों की ग़लतफ़हमी को दूर कर सकते हो |धर्म कोई भी हो इंसानियत का पैगाम देता है फिर आज का इंसान नफरतों के बीज बो के क्यों अपने  ही धर्म को बदनाम करता है ?
अमन पसंद इंसान किसी भी धर्म का हो सभी को अच्छा लगता है |



आज अपने एक ब्लॉगर मित्र के शब्द भी यहाँ शामिल कर रहा हूँ आप भी पढ़ें और सुने |
अ-मन अर्थात अपने मन के पूर्वाग्रहों से उत्पन्न वैमनस्य के दमन से ही समाज में अमन की बयार बह सकती है. अपने मन के विचारों को ही उत्कृष्ट मानकर समाज से अपेक्षा करना की पूरा समाज हमारे मनोअनुकूल चले, आपसी द्वेष को बढ़ाने वाला होता है. अमन वहीँ पनपता है जहाँ सभी सच्चे मन से सबके विचारों का आदर करते हुए जीवन जीए, ना की समाज में अपनी अपनी मान्यताओं को थोपने का दुराग्रह रखें...अमित शर्मा

लेखक :एस.एम्.मासूम

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