मेहमान का एहतिराम और इस्लाम
आज मेहमान नवाजी का दस्तूर ख़त्म सा होता जा रहा है और इसका अंदाज़ भी बदलता जा रहा है | मेहमान किसी के घर जब आता था तो वो या तो मुसाफिर ...
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आज मेहमान नवाजी का दस्तूर ख़त्म सा होता जा रहा है और इसका अंदाज़ भी बदलता जा रहा है | मेहमान किसी के घर जब आता था तो वो या तो मुसाफिर हुआ करता था या फिर मुहब्बत या दोस्ती के रिश्ते से बंधा नेक इंसान होता था | आज मेहमान उसे बनाया जाता है जिससे कोई काम फंसा हो या जिसे खुश करना हो और वो भी एकदिन के नाश्ते या खाने का मेहमान | इस्लाम में मेहमान नवाजी की बड़ी अहमियत है और इसका शुमार इखलाक में होता है | आज इस बात की आवश्यकता महसूस की जा रही है लोग मेहमान की अहमियत को समझें और उसके आने को अल्लाह की भेजी नेमत समझें | इस बात को समझाने के लिए पेश करता हूँ इस्लाम के पैगम्बरों और रहबर इमाम (अ.स) के कथन |
- मेहमान का एहतिराम करो चाहे वह काफ़िर ही क्यों न हो।
- · तुम्हारी दुनियों से तीन चीज़ों को दोस्त रखता हँ, लोगों को मेहमान करना, ख़ुदा की राह में तलवार चलाना और गर्मियों में रोज़ा रखना। (हज़रत अली अ0)
- ·इख़्लाक़ क्या है : हया, सच बोलना, दिलेरी, साएल को अता करना, खुश गुफ्तारी, नेकी का बदला नेकी से देना, लोगों के साथ रहम करना, पड़ोसी की हिमायत करना, दोस्त का हक़ पहुँचाना और मेहमान की ख़ातिर करना। (इमाम हसन अ0)
- पैग़म्बरे इस्लाम स0 ने फ़रमाया कि जब अल्लाह किसी बन्दे के साथ नेकी करना चाहता है तो उसे तोहफ़ा भेजता है। लोगों ने सवाल किया कि वह तोहफ़ा क्या है? फ़रमाया : मेहमान, जब आता है तो अपनी रोज़ी लेकर आता है और जब जाता है तो अहले ख़ाना के गुनाहों को लेकर जाता है।
- · मेहमान राहे बेहिश्त का राहनुमा है। (रसूले ख़ुदा स0)
- · खाना खिलाना मग़फ़िरते परवरदिगार है। (रसूले ख़ुदा स0)
- · परवरदिगार खाना खिलाने को पसन्द करता है। (इमाम मो0 बाक़िर अ0)
- · जो भी ख़ुदा और रोज़े क़ियामत पर ईमान रखता है उसे चाहिये कि मेहमान का एहतिराम करे। (हदीस)
- · तुम्हारे घर की अच्छाई यह है कि वह तुम्हारे तन्गदस्त रिश्तादारों और बेचारे लोगों की मेहमानसरा हो। (रसूले ख़ुदा स0)
- · वो मोमिन नहीं है जो की मेहमान के क़दमों की आवाज़ सुन कर ख़ुश न हों क्यूंकि कि ख़ुदा उसके तमाम गुनाह माफ़ कर देता है जिसके घर मेहमान अआता है चाहे वो गुनाह ज़मीनो-आसमान के दरमियान पुर हों। (हज़रत अली अ0)
- · अजसाम की कुव्वत खाने में है और अरवाह की कुव्वत खिलाने में है। (हज़रत अली अ0)
- · (तुम्हारा फ़र्ज़ है) कि नेकी और परहेज़गारी में एक दूसरे की मदद किया करो (सूर-ए-अल माएदा ः 2)