आप कितने आज़ाद हैं और कितने ग़ुलाम?
यह सवाल हर इंसान के लिए एक बड़ी अहमियत रखता है की वो इस दुनिया में अपनी ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए किन उसूलों पे और किसके बनाये उसूलों पे चलता ...
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यह सवाल हर इंसान के लिए एक बड़ी अहमियत रखता है की वो इस दुनिया में अपनी ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए किन उसूलों पे और किसके बनाये उसूलों पे चलता है ? क्या उन उसूलों पे या कानून पे चलने को वो अपनी आज़ादी छिन जाने के दर्जे में रखता है ?
एक इंसान जिस घर में , शहर में, देश में रहता है उसी उस समाज के देश के बनाये कानून को मानना पड़ता है और न माने जाने पे उसी सज़ा भी भुगतनी पद सकती है| देश निकला या जेल भी दिया जा सकता है| यह किसी इंसान के लिए संभव नहीं है की वो अपने जाती फायदे के लिए यह कहे की जिस देश में वो रहता है वहाँ के कुछ कानून को मानेगा और कुछ को नहीं मानेगा |
इसी प्रकार हर इंसान का एक धर्म होता है उस धर्म के कुछ कानून हुआ करते हैं जिसे उस धर्म को माने वाले मन करते हैं | यह आज़ादी हर इंसान को है वो किसी भी धर्म को माने या नास्तिक बन जाए और यह फैसला कर ले की जैसे यह पेड़ पोधे ,घास फूस पैदा हुई और ख़त्म हो जाएगी वैसे ही इंसान खुद से पैदा हुआ और एक दिन खत्म हो जाएगा | न उसका कोई भगवान् है न कोई कानून | जैसे चाहो जिओ और जैसे चाहो रहो | लेकिन धर्म चुनने की इस आज़ादी का इस्तेमाल करने के बाद इंसान जो भी चुनता है उसी उसी उसूलों पे चलना पड़ता है |
मुश्किल तब पैदा होती है जब इंसान किसी धर्म को चुन भी लेता है और यह भी मान लेता है की यह कानून इश्वर के बनाये हैं जो सब जानता है और यह सभी कानून मानने में ही उसकी भलाई है लेकिन फिर भी अपने जाती फायदे के लिए अपने धर्म के कानून की जगह अपने बनाये कानून पे चलने की कोशिश करने लगता है | नतीजे में न घर का ना घाट वाली बात हो जाती है | न दुनिया का ही मज़ा खुल के ले पता है और न ही जन्नत जाने की गारंटी |
मैं दूसरों के धर्म की बात करने की जगह इस्लाम धर्म के माने वालों की बात करना अधिक पसंद करूँगा क्योंकि मेरा धर्म भी इस्लाम है| इस्लाम हम तक पहुँचाने वाले एक लाख चौबीस हज़ार पैगम्बरों के आखिरी पैगम्बर हजरत मुहम्मद (स.अ.व ) की वफात के फ़ौरन बाद से ही बादशाहत की लालच में ताक़त की लालच में इस्लाम के बनाये कानून में कुछ लोगों ने इस्लाम के ठेकेदार बन बन के इस्लाम को बदनाम किया और उसके असल कानून को मानने से इनकार किया | सामने से तो वो रसूल इ खुदा हज़रात मुहम्मद (स.अ.व ) का कलमा पढ़ते रहे और पीछे से अपने फैदे के लिए इस्लाम के बताए कानून के खिलाफ चलते रहे | नतीजे में यजीद जैसा खलीफा पैदा हो गया जिसने उस इस्लाम जो अमन का पैगाम लाया उसे जालिमो का मज़हब बना दिया | इमाम हुसैन (अ.स) जो हज़रात मुहम्मद (स.अ.व) के नवासे थे उन्होंने क़ुरबानी दे के दुनिया को यह बता दिया की इस्लाम अमन का पैगाम देने वाला धर्म है इसका ज़ुल्म या जालिमो से कोई रिश्ता नहीं है |
ऐसे लोग जो किसी धर्म को मानते हों लेकिन उसके बनाई हर एक कानून पे न चलते हों वो मुनाफ़िक़ कहलाते हैं और यही लोग अपने धर्म को बदनाम भी किया करते हैं | आज इस बात की ज़रुरत अधिक है की हर मुसलमान दूसरों के धर्म को निशाना बनाने की जगह पहले अपने कर्मो को देखे और गौर करे की क्या वोह अपने धर्म के बनाये सभी कानून को मानता है? ऐसा तो नहीं की लोगों की नज़र में तो वोह मुसलमान है लेकिनं लोगों पे ज़ुल्म करता है,ज़ालिमो का, झूटों का साथ देता है और ऐसा कर के इस्लाम को बदनाम करता है | ऐसे लोग न अल्लाह की ख़ुशी हासिल कर सकते हैं और न ही दुनिया वालों की ख़ुशी | क्यों की जो इंसान अल्लाह का न हुआ वो दुइअ वालों का क्या होगा ?
कुछ गुनाह जो इस्लाम के बनाये कानून पे न चलने के कारन हुआ करते हैं उनका जिक्र और उसके बारे में फ़िक्र करना आज बहुत ज़रूरी होता जा रह है |
इस्लाम कहता है बेवजह किसी पे ज़ुल्म न करो, किसी बेगुनाह की जान न लो लेकिन यह भी सच है की कुछ लोग इस्लाम के नाम पे ही ज़ुल्म करते हैं | कारन बस बादशाहत और ताक़त को पाना हुआ करता है | इस्लाम कहता है अपने रिश्तेदारों ने मुहब्बत करो ,रिश्ते न तोड़ो और मुसलमान आज अपने रिश्तेदारों से दूर रहने में ही ख़ुशी महसूस करता है | इस्लाम कहता है की दहेज न लो और हर वो मुसलमान जिसकी बेटी है दहेज़ कहा से देंगे यह सोंच के परेशान हुआ करता है | इस्लाम कहता है की किसी के पीठ पीछे उसकी बुराई न करो और मुसलमान जब भी मिलता है उसके पास दूसरों की बुराई करने के सिवाए कोई और विषय ही नहीं रहता | इस्लाम कहता है कि ना महरम से पर्दा करो और मुसलमान मानता है कि परदे से उसे समाज में इज्ज़त नहीं मिलती |
ऐसा नहीं की यह सब बुराईयाँ दुसरे धर्म के मानने वालों में नहीं है लेकिन कम से कम मुसलमान में तो नहीं होनी चाहिए क्यों की इस्लाम के मानने वालों के पास एक बेहतरीन किताब कुरान है ,उसे बताने वाले एक से एक बेहतरीन किरदार के नबी हैं और उन कानून पे चल के दिखाने वाले इमाम (अह्लुल्बैत) हैं | क्या इस मुसलमान को अल्लाह का खौफ नहीं? क्या आज के मुसलमानों को अपने नबियों और इमामो की क़ुरबानी का एहसास नहीं ? या सिर्फ नाम के मुसलमान हैं और हकीकत में नास्तिक जिसे अल्लाह के होने और आखिरत में इन्साफ और सजा पे यकीन नहीं |
मुसलमान रह के इस्लाम के कानून के खिलाफ चलना और इस्लाम को बदनाम करने से बड़ा कोई गुनाह नहीं| ऐसे मुसलमान से काफ़िर बेह्तर हुआ करता है | एक शख्स ने हज़रात अली (अ.स) से पुछा की एक इंसान कितना आज़ाद है और कितना मजबूर ? हज़रात अली (अ.स) ने कहा की एक पैर पे खड़े हो जाओ और वो शख्स खड़ा भी हो गया | फिर हज़रात अली (अ.स) ने कहा अब दोनों पैर उठा के खड़े हो जाओ ,तब उस शख्स ने कहा यह मुमकिन नहीं | हज़रात अली ने कहा एक इतने आज़ाद हो की जब चाहो एक पैर पे खड़े हो जाओ और इतने मजबूर को की दोनों पैर उठा के नहीं खड़े रह सकती |
ठीक उसी तरह इंसान इंतना आज़ाद है कि जिस धर्म को चाहे माने लेकिन इतना मजबूर है की जिस धर्म को एक बार मान ने उसी के कानून पे चलना होगा | ठीक उसी तरह इंसान इतना आज़ाद है की जिस शहर में चाहे रहे लेकिन इतना मजबूर है की जिस शहर और समाज में रहता है उसके कानून को माना होगा |
दो चेहरे वाला इंसान न समाज में इज्ज़त पा सकता है और न ही अल्लाह की ख़ुशी हासिल कर सकता है |इसलिए ऐ मुसलमानों इस्लाम के बनाये और इमामो के दिखाए कानून पे चलो और कामयाब कहलाओ |
एस एम् मासूम
एक इंसान जिस घर में , शहर में, देश में रहता है उसी उस समाज के देश के बनाये कानून को मानना पड़ता है और न माने जाने पे उसी सज़ा भी भुगतनी पद सकती है| देश निकला या जेल भी दिया जा सकता है| यह किसी इंसान के लिए संभव नहीं है की वो अपने जाती फायदे के लिए यह कहे की जिस देश में वो रहता है वहाँ के कुछ कानून को मानेगा और कुछ को नहीं मानेगा |
इसी प्रकार हर इंसान का एक धर्म होता है उस धर्म के कुछ कानून हुआ करते हैं जिसे उस धर्म को माने वाले मन करते हैं | यह आज़ादी हर इंसान को है वो किसी भी धर्म को माने या नास्तिक बन जाए और यह फैसला कर ले की जैसे यह पेड़ पोधे ,घास फूस पैदा हुई और ख़त्म हो जाएगी वैसे ही इंसान खुद से पैदा हुआ और एक दिन खत्म हो जाएगा | न उसका कोई भगवान् है न कोई कानून | जैसे चाहो जिओ और जैसे चाहो रहो | लेकिन धर्म चुनने की इस आज़ादी का इस्तेमाल करने के बाद इंसान जो भी चुनता है उसी उसी उसूलों पे चलना पड़ता है |
मुश्किल तब पैदा होती है जब इंसान किसी धर्म को चुन भी लेता है और यह भी मान लेता है की यह कानून इश्वर के बनाये हैं जो सब जानता है और यह सभी कानून मानने में ही उसकी भलाई है लेकिन फिर भी अपने जाती फायदे के लिए अपने धर्म के कानून की जगह अपने बनाये कानून पे चलने की कोशिश करने लगता है | नतीजे में न घर का ना घाट वाली बात हो जाती है | न दुनिया का ही मज़ा खुल के ले पता है और न ही जन्नत जाने की गारंटी |
मैं दूसरों के धर्म की बात करने की जगह इस्लाम धर्म के माने वालों की बात करना अधिक पसंद करूँगा क्योंकि मेरा धर्म भी इस्लाम है| इस्लाम हम तक पहुँचाने वाले एक लाख चौबीस हज़ार पैगम्बरों के आखिरी पैगम्बर हजरत मुहम्मद (स.अ.व ) की वफात के फ़ौरन बाद से ही बादशाहत की लालच में ताक़त की लालच में इस्लाम के बनाये कानून में कुछ लोगों ने इस्लाम के ठेकेदार बन बन के इस्लाम को बदनाम किया और उसके असल कानून को मानने से इनकार किया | सामने से तो वो रसूल इ खुदा हज़रात मुहम्मद (स.अ.व ) का कलमा पढ़ते रहे और पीछे से अपने फैदे के लिए इस्लाम के बताए कानून के खिलाफ चलते रहे | नतीजे में यजीद जैसा खलीफा पैदा हो गया जिसने उस इस्लाम जो अमन का पैगाम लाया उसे जालिमो का मज़हब बना दिया | इमाम हुसैन (अ.स) जो हज़रात मुहम्मद (स.अ.व) के नवासे थे उन्होंने क़ुरबानी दे के दुनिया को यह बता दिया की इस्लाम अमन का पैगाम देने वाला धर्म है इसका ज़ुल्म या जालिमो से कोई रिश्ता नहीं है |
ऐसे लोग जो किसी धर्म को मानते हों लेकिन उसके बनाई हर एक कानून पे न चलते हों वो मुनाफ़िक़ कहलाते हैं और यही लोग अपने धर्म को बदनाम भी किया करते हैं | आज इस बात की ज़रुरत अधिक है की हर मुसलमान दूसरों के धर्म को निशाना बनाने की जगह पहले अपने कर्मो को देखे और गौर करे की क्या वोह अपने धर्म के बनाये सभी कानून को मानता है? ऐसा तो नहीं की लोगों की नज़र में तो वोह मुसलमान है लेकिनं लोगों पे ज़ुल्म करता है,ज़ालिमो का, झूटों का साथ देता है और ऐसा कर के इस्लाम को बदनाम करता है | ऐसे लोग न अल्लाह की ख़ुशी हासिल कर सकते हैं और न ही दुनिया वालों की ख़ुशी | क्यों की जो इंसान अल्लाह का न हुआ वो दुइअ वालों का क्या होगा ?
कुछ गुनाह जो इस्लाम के बनाये कानून पे न चलने के कारन हुआ करते हैं उनका जिक्र और उसके बारे में फ़िक्र करना आज बहुत ज़रूरी होता जा रह है |
इस्लाम कहता है बेवजह किसी पे ज़ुल्म न करो, किसी बेगुनाह की जान न लो लेकिन यह भी सच है की कुछ लोग इस्लाम के नाम पे ही ज़ुल्म करते हैं | कारन बस बादशाहत और ताक़त को पाना हुआ करता है | इस्लाम कहता है अपने रिश्तेदारों ने मुहब्बत करो ,रिश्ते न तोड़ो और मुसलमान आज अपने रिश्तेदारों से दूर रहने में ही ख़ुशी महसूस करता है | इस्लाम कहता है की दहेज न लो और हर वो मुसलमान जिसकी बेटी है दहेज़ कहा से देंगे यह सोंच के परेशान हुआ करता है | इस्लाम कहता है की किसी के पीठ पीछे उसकी बुराई न करो और मुसलमान जब भी मिलता है उसके पास दूसरों की बुराई करने के सिवाए कोई और विषय ही नहीं रहता | इस्लाम कहता है कि ना महरम से पर्दा करो और मुसलमान मानता है कि परदे से उसे समाज में इज्ज़त नहीं मिलती |
ऐसा नहीं की यह सब बुराईयाँ दुसरे धर्म के मानने वालों में नहीं है लेकिन कम से कम मुसलमान में तो नहीं होनी चाहिए क्यों की इस्लाम के मानने वालों के पास एक बेहतरीन किताब कुरान है ,उसे बताने वाले एक से एक बेहतरीन किरदार के नबी हैं और उन कानून पे चल के दिखाने वाले इमाम (अह्लुल्बैत) हैं | क्या इस मुसलमान को अल्लाह का खौफ नहीं? क्या आज के मुसलमानों को अपने नबियों और इमामो की क़ुरबानी का एहसास नहीं ? या सिर्फ नाम के मुसलमान हैं और हकीकत में नास्तिक जिसे अल्लाह के होने और आखिरत में इन्साफ और सजा पे यकीन नहीं |
मुसलमान रह के इस्लाम के कानून के खिलाफ चलना और इस्लाम को बदनाम करने से बड़ा कोई गुनाह नहीं| ऐसे मुसलमान से काफ़िर बेह्तर हुआ करता है | एक शख्स ने हज़रात अली (अ.स) से पुछा की एक इंसान कितना आज़ाद है और कितना मजबूर ? हज़रात अली (अ.स) ने कहा की एक पैर पे खड़े हो जाओ और वो शख्स खड़ा भी हो गया | फिर हज़रात अली (अ.स) ने कहा अब दोनों पैर उठा के खड़े हो जाओ ,तब उस शख्स ने कहा यह मुमकिन नहीं | हज़रात अली ने कहा एक इतने आज़ाद हो की जब चाहो एक पैर पे खड़े हो जाओ और इतने मजबूर को की दोनों पैर उठा के नहीं खड़े रह सकती |
ठीक उसी तरह इंसान इंतना आज़ाद है कि जिस धर्म को चाहे माने लेकिन इतना मजबूर है की जिस धर्म को एक बार मान ने उसी के कानून पे चलना होगा | ठीक उसी तरह इंसान इतना आज़ाद है की जिस शहर में चाहे रहे लेकिन इतना मजबूर है की जिस शहर और समाज में रहता है उसके कानून को माना होगा |
दो चेहरे वाला इंसान न समाज में इज्ज़त पा सकता है और न ही अल्लाह की ख़ुशी हासिल कर सकता है |इसलिए ऐ मुसलमानों इस्लाम के बनाये और इमामो के दिखाए कानून पे चलो और कामयाब कहलाओ |
एस एम् मासूम